धीरेंद्र स्वयं तो हमेशा विवाह व प्यार के सुख को अलगअलग कर के देखता रहा तथा उन चीजों को नजरअंदाज करता रहा जिन पर सुधा का हक था. पर सुधा का केवल एक सच वह क्यों नहीं स्वीकार सका?