18वीं सदी में जी रहे थे भाईसाहब और भाभी. उन के लिए जाति, धर्म, साधुमहात्माओं की बातें ही सर्वोच्च थीं. ऐसे में अपनी बेटी को आधुनिकता की हवा भला कैसे लगने दे सकते थे.