एक मां की व्यथा को न अजय समझ पाया और न ही रंजनजी. उसे अपने दर्द का साझीदार कोई न मिला. मन में बहती ममता की शीतल धारा उसे जिंदगीभर शांत करती रही. पर यह कैसी विडंबना थी कि ममता के उसी सागर के तूफान में सब बह गया.