बरसों बाद मिले थे सात्वत और चेष्टा. दोनों के मन में एकदूसरे के बारे में जानने की जिज्ञासा छिपी थी. पर जबान खामोश थी. दिल के हाथों मजबूर सात्वत ने अंतत: चेष्टा के मौन को तोड़ ही डाला.