अपनी अपनी खुशियां: शिखा का पति जब घर ले आया अपनी प्रेमिका

‘कौन कहता है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं? आदमी में समझ होनी चाहिए,’ रूपेश ने दिल ही दिल में कहा. फिर उस ने अर्चना के सुंदर मुखड़े की ओर ताका व उस के बाद उस की नजरें अपनी पत्नी शिखा के चेहरे पर पड़ीं. शिखा अपनी प्लेट में धीरेधीरे उंगलियां चला रही थी. अर्चना से रूपेश की मुलाकात अपने एक मित्र के कार्यालय में हुई थी, जो उसे इंतजार करने को कह कर खुद कहीं चला गया था. एकडेढ़ घंटे की बातचीत के बाद अर्चना और रूपेश में इतनी घनिष्ठता हो गई थी कि रूपेश को अर्चना के बगैर रहना कठिन महसूस होने लगा था. कुछ दिनों तक सिनेमाघरों, पार्कों और होटलों में मुलाकातों के बाद रूपेश उसे अपने घर लाने की लालसा को न दबा पाया. शिखा को रूपेश ने जब यह कहा कि वह अर्चना को भी अपने घर में रहने दे तो शिखा पर मानो बिजली गिर पड़ी थी. वह काफी चीखीचिल्लाई थी किंतु रूपेश ने उस को समझाया था कि जब हम अपने हर रिश्तेदार, मित्रों और जानपहचान वालों की खुशियों के लिए सबकुछ करने को तैयार रहते हैं, तब यह कितनी अजीब बात है कि पतिपत्नी, जिन का रिश्ता संसार में सब से बड़ा और गहरा होता है, एकदूसरे की खुशियों का खयाल न रखें.

रूपेश ने शिखा से कहा कि अर्चना पर और घर पर उसे पूरा अधिकार होगा. उस को अपनी हर इच्छा को पूरा करने का अधिकार होगा. बस, वह अर्चना को उस के साथ इस घर में रहने पर आपत्ति न उठाए. पड़ोसियों को वह यही बताए कि अर्चना उस की मामी की या चाची की लड़की है और वह, यहां पर नौकरी करने आई है तथा अब उन लोगों के साथ ही रहेगी. आखिर जब शिखा ने देखा कि रूपेश को समझानेबुझाने का अब कोई फायदा नहीं है तो एक हफ्ते की खींचतान के बाद उस ने रूपेश की इच्छा के आगे सिर झुका दिया. रूपेश के पांव धरती पर न टिकते थे. वह उसी दिन जा कर अर्चना को अपने घर ले आया. पड़ोसियों से कहा गया कि वह शिखा की बहन है. रिश्तेदारों ने आपत्ति उठाई तो रूपेश ने यह कह कर मुंह बंद कर दिया कि जब मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी. शिखा ने अर्चना का खुले दिल से स्वागत किया. उस के रहने की व्यवस्था रूपेश के कमरे में कर दी गई. अर्चना को नहानेधोने के लिए शिखा स्नानघर में खुद ले गई. अपने हाथों से तौलिया, साबुन, तेल वहां पहुंचाया. बाथरूम स्लीपर खुद अर्चना के पांव के पास रख दिए. रूपेश मानो खुशियों के हिंडोलों में झूल रहा था. नहाने के बाद नाश्ते की मेज पर बड़े आग्रह के साथ शिखा ने अर्चना को खिलायापिलाया. शिखा से ऐसे बरताव की आशा रूपेश को कभी न थी.

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रूपेश मन ही मन मुसकरा रहा था और अपने सुंदर जीवन की कल्पना में डूबतैर रहा था. औटोरिकशा की भड़भड़ाहट से उस की कल्पना में सहसा विघ्न पड़ा. औटोरिकशा से एक लंबाचौड़ा खूबसूरत युवक उतरा और ‘हैलो शिखा’ बोलते हुए घर में घुस गया. शिखा एकाएक उस की तरफ बढ़ी. किंतु फिर थोड़ा रुक गई. उस नौजवान ने आगे बढ़ कर शिखा के कंधे पर अपनी बांह रख दी.

‘‘रूपेश भैया, जरा औटोरिकशा से सामान तो उतार लाना,’’ उस नवयुवक ने रूपेश की तरफ मुंह फेर कर कहा. कुछ न समझते हुए भी रूपेश ने औटोरिकशे वाले से उस नवयुवक का सामान अंदर रखवाया और उसे पैसे दे कर चलता किया. शिखा और वह युवक सोफे पर पासपास बैठे बातों में मग्न थे जैसे जिंदगीभर की सारी बातें आज ही खत्म कर के दम लेंगे.

‘‘आप की तारीफ,’’ रूपेश ने शिखा से पूछा. शिखा थोड़ा सा मुसकराई और शर्म से सिमटसिकुड़ गई. फिर उस ने एक बार उस नवयुवक के सुंदर मुखड़े की ओर ताका. ‘‘यह संजय है. तुम्हें शायद याद होगा कि एक बार तुम्हारे बहुत जोर देने पर मैं ने स्वीकार किया था कि शादी से पहले मैं भी किसी से प्यार करती थी. मेरी अधूरी प्रेमकहानी का हीरो यही है.’’ रूपेश को झटका सा लगा. उस की आंखें फैल गईं.

‘‘जब मैं ने अर्चना को साथ रखने की बात सुनी और तुम ने मेरा पूरा हक और मेरी खुशियां मुझे देने का वचन दे दिया, तब मैं ने संजय को अपने साथ रखने का फैसला कर लिया,’’ शिखा ने अपनी आंखों को नचाते हुए कहा, ‘‘अपने मिलनेजुलने वालों से हम यही कहेंगे कि संजय आप के मामाजी, फूफाजी या चाचाजी का बेटा है और यह नौकरी के सिलसिले में यहां आया हुआ है और अब हमारे साथ ही रहेगा.’’ ‘‘अरे, शिखा डार्लिंग, पहले तो मुझे यकीन ही नहीं आया. किंतु जब तुम ने बताया कि तुम लोग एकदूसरे की खुशियों के लिए झूठे रस्मोरिवाज तोड़ रहे हो तब मैं ने उस महान आदमी के दर्शन करने के लिए यहां आने का निश्चय कर ही लिया,’’ संजय बोला.

‘‘अब तुम इन से खुद पूछ लो,’’ शिखा ने संजय की तरफ देखा और फिर वह अपने पति की तरफ घूम गई, ‘‘क्यों जी, है न यही बात? आप मेरी खुशियों के आगे दीवार तो नहीं बनेंगे? प्यार की जिस प्यास से मैं आज तक तड़पती रही हूं, अब उसे बुझाने में आप मुझे पूरा सहयोग देंगे न?’’ ‘‘हांहां.’’ रूपेश आगे कुछ न कह सका.

‘‘डार्लिंग, तुम थकेहारे आए हो. आओ, नहाधो लो ताकि थकावट दूर हो जाए.’’

‘‘स्नानघर किधर है?’’ संजय ने पूछा. ‘‘जाइए जी, इन को स्नानघर बताइए,’’ शिखा ने कहा, ‘‘और हां, यह तौलिया और साबुन वहां रख दीजिएगा.’’ रूपेश ने तौलिया और साबुन हाथ में ले लिया और स्नानघर की ओर मुड़ा. संजय उस के पीछेपीछे चल पड़ा.

‘‘अरे हां, यह बाथरूम स्लीपर भी साथ ले जाइए.’’ शिखा ने संजय का ब्रीफकेस खोल कर उस में से बाथरूम स्लीपर निकाले. संजय बाथरूम से स्लीपर लेने के लिए पलटा.

‘‘अरे, नहीं. आप चलिए. ये ले कर आते हैं.’’ शिखा ने बाथरूम स्लीपर रूपेश की तरफ बढ़ा दिए. रूपेश ने कंधे उचकाए और फिर बाथरूम स्लीपर पकड़ कर आगे बढ़ गया.

स्नानघर से पानी गिरने की आवाज आ रही थी और संजय मग्न हो कर गुनगुना रहा था. ‘‘यह क्या मजाक है?’’ रूपेश ने शिखा से कमरे में लौटते ही कहा.

‘‘कैसा मजाक, क्या आप को संजय का यहां आना अच्छा नहीं लगा?’’ शिखा ने पूछा. ‘‘नहीं, यह बात नहीं, मैं पूछता हूं कि संजय के बाथरूम स्लीपर मुझ से उठवाना क्या तुम्हें शोभा देता है?’’

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‘‘डार्लिंग, मैं आप की खुशी के लिए अर्चना बहन की दिल से सेवा कर रही हूं. आप मेरी खुशी के लिए माथे पर बल न डालिए. कहीं ऐसा न हो कि संजय के दिल को चोट पहुंचे. वह बहुत भावुक है,’’ शिखा ने कहा. रूपेश मन ही मन ताव खाए कंधे हिला कर रह गया.

‘‘अब ऐसा करिए, दो?पहर के खाने के लिए कुछ सब्जी वगैरह लेते आइए. आप डब्बों में बंद सब्जी ले आइए.’’ रूपेश ने अर्चना की तरफ देखा.

‘‘यदि अर्चना बहन आराम करना चाहती हैं तो आराम करें या आप के साथ जाना चाहती हैं तो बाजार घूम आएं. मैं रसोई की तैयारी करती हूं.’’ ‘‘नहीं, अर्चना यहीं रहेगी,’’ रूपेश ने जल्दी से कहा.

‘‘क्या आप मुझे संजय के साथ अकेले छोड़ते हुए डरते हैं?’’ शिखा ने तीखी नजरों से रूपेश की तरफ देखा. ‘‘नहीं, मैं ऐसा तंगदिल नहीं हूं. मैं तो इसलिए कह रहा हूं कि यह काम में तुम्हारी मदद करेगी,’’ रूपेश ने जल्दी से कहा और फिर थैला उठा कर बाहर निकल गया.

रूपेश ताव खाते हुए बाजार की ओर जा रहा था. उस के घर में उस की पत्नी उस से किसी के जूते उठवाए, यह कहां तक ठीक था. शिखा ने यदि अर्चना के लिए तौलिया, साबुन, स्लीपर स्नानघर में पहुंचा दिए तो अपनी खुशी से. उस ने उसे मजबूर तो नहीं किया था? संजय को बुलाने से पहले वह उस से पूछ तो लेती, सलाह तो कर लेनी चाहिए थी. और अब नौकर की तरह थैला थमा कर उसे बाजार की ओर ठेल दिया है. यह ठीक है कि शिखा को उस ने घर में पूरा हक देने का वादा जरूर किया था, मगर उसे एकदूसरे की बेइज्जती करने का तो अधिकार नहीं है.

इस की कुछ न कुछ सजा जरूर संजय और शिखा को मिलनी चाहिए. वे दोनों फूड पौयजन से बीमार हो जाएं तो कैसा रहे? रूपेश के दिमाग में एकदम विचार उभरा. हां, यह ठीक रहेगा. उस के कदम एक डिपार्टमैंटल स्टोर की ओर बढ़े.

‘‘आप के यहां कोई ऐसी डब्बाबंद सब्जी है जिस से फूड पौयजन होने का खतरा हो?’’ उस ने सेल्समैन से सीधा सवाल किया. ‘‘क्या मजाक करते हैं, साहब? हमारे यहां तो बिलकुल ताजा स्टौक है,’’ सेल्समैन ने दांत निकालते हुए कहा.

‘‘एकआध डब्बा भी नहीं?’’ ‘‘क्या आप स्वास्थ्य विभाग से आए हैं?’’ सेल्समैन ने सतर्क हो कर पूछा.

‘‘नहीं, डरो नहीं. हां, यह बताओ कि कोई ऐसा डब्बा…’’ ‘‘जी नहीं. हम इमरजैंसी से पहले और इमरजैंसी के बाद भी अच्छा ही माल बेचते रहे हैं,’’ सेल्समैन ने कहा.

‘‘अच्छा, कोई ऐसी दुकान का पता बता दो जहां ऐसी डब्बाबंद सब्जी मिल जाए.’’ अपनी बेइज्जती के बाद की भावना से पागल हो रहे रूपेश ने 500 रुपए का नोट सेल्समैन की तरफ सरकाया. ‘‘क्रांति बाबू, जरा पुलिस को फोन करना. यह पागल आदमी किसी की हत्या करना चाहता है,’’ सेल्समैन ने टैलीफोन के करीब बैठे एक नौजवान से कहा.

पुलिस का नाम सुन कर रूपेश उड़नछू हो गया. 500 रुपए का नोट काउंटर से उठाने की भी उसे सुध न रही, संजय व शिखा को बीमार कर देने का विचार भी उस के दिमाग से उड़ गया. अब तो वह उन दोनों की सेहत ठीक रहने की ख्वाहिश कर रहा था. उस के डरे हुए मस्तिष्क में यह विचार उभरा कि संजय व शिखा को कुछ हो गया तो सेल्समैन की गवाही पर वह पकड़ लिया जाएगा. रात को खाने के बाद कौफी का दौर चला. वे चारों बैठक में बैठे थे. संजय अपने चुटकुलों से सब को हंसाता रहा.

‘‘क्या बात है, डार्लिंग, तुम कुछ नहीं बोल रहे हो?’’ अर्चना ने रूपेश के करीब सरकते हुए कहा. ‘‘मैं तो कहता हूं, रूपेशजी, यदि सब लोग आप की तरह समझदार हो जाएं तो प्रेम के कारण होने वाली सारी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं,’’ संजय ने कहा.

‘‘और प्रेम में निराश हो कर आत्महत्याएं भी कोई न करे,’’ अर्चना बोली. ‘‘मानव जाति को कितना अच्छा सुझाव दिया है रूपेशजी ने,’’ शिखा

ने कहा. ‘‘मगर पहले तो तुम अडि़यल घोड़े की तरह दुलत्तियां झाड़ रही थीं, मरनेमारने की धमकियां दे रही थीं,’’ रूपेश ने शिखा की तरफ देख कर कहा.

‘‘तब मैं तुम्हारे दिल की गहराई नाप नहीं पाई थी.’’ ‘‘अच्छा भई, तुम दिल की गहराइयां नापो. हम तो नींद की गहराइयों में उतरने चले,’’ संजय उठ खड़ा हुआ, ‘‘शिखा डार्लिंग, सोने का कमरा किधर है?’’

‘‘वह बाएं कोने वाला इन का है और दाएं वाला हमारा.’’ ‘‘अच्छा भई, गुडनाइट,’’ स्लीपिंग गाउन सरकाता हुआ संजय दाईं ओर के सोने के कमरे की ओर बढ़ गया.

संजय के चले जाने के बाद कुछ देर तक अर्चना अंगरेजी पत्रिका के पन्ने पलटती रही. फिर वह भी अंगड़ाई ले कर उठ खड़ी हुई.

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‘‘सोना नहीं है, रूपेश डार्लिंग?’’ ‘‘तुम चलो, मैं थोड़ी देर और बैठूंगा.’’ रूपेश ने अनमने स्वर में कहा.

‘‘ओके, गुडनाइट.’’ ‘‘गुडनाइट,’’ रूपेश कुछ नहीं बोला लेकिन शिखा ने स्वेटर पर सलाई चलाते हुए कहा.

फिर बैठक में खामोशी छा गई. घड़ी की टिकटिक और शिखा की सलाइयों की टकराहट इस खामोशी को तोड़ देती. रूपेश अनमना सा कुरसी पर बैठा रहा.

‘‘अब सो जाइए, 1 बजने को है, मुझे तो नींद आ रही है,’’ शिखा ऊन के गोलों में सलाइयां खोंसती हुई बोली. शिखा ने स्वेटर और ऊन के गोलों को कारनेस पर टिका कर एक अंगड़ाई ली, रूपेश की तरफ देखा और और फिर पलट पड़ी दाएं कोने वाले सोने के कमरे की ओर.

‘‘रुक जाओ, शिखा,’’ रूपेश तड़प कर शिखा और कमरे के दरवाजे के बीच बांहें फैला कर खड़ा हो गया, ‘‘बेशर्मी की भी हद होती है.’’ ‘‘बेशर्मी, कैसी बेशर्मी? रूपेश डार्लिंग, तुम ने मुझे जो हक दिया है मैं उसी का इस्तेमाल कर रही हूं. हट जाओ, मेरी वर्षों से मुरझाई हुई खुशियों के बीच दीवार न बनो. मुझे खुशियों का रास्ता दिखा कर राह में कांटे न बिछाओ.’’

‘‘अपने पति के सामने ऐसा कदम उठाते हुए तुझे डर नहीं लगता? शर्म नहीं आती?’’ ‘‘डर, शर्म आप से? क्यों? यह तो बराबरी का सौदा है. रात काफी हो चुकी है, सो जाइए. आप का कमरा उधर है,’’ शिखा ने बाएं कोने में कमरे की ओर इशारा किया, ‘‘छोडि़ए, मेरा रास्ता.’’

‘‘बेशर्म, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम इतनी गिर सकती हो. तुम्हारी इस हरकत से एक पति के दिल पर क्या गुजर सकती है, यह तुम ने कभी सोचा है?’’ रूपेश की आंखें क्रोध से जल उठीं. ‘‘मर्द जब दूसरी पत्नी ब्याह कर लाता है तब क्या अपनी पहली पत्नी के दिल में उठने वाली चीखों की शहनाइयों के शोर को सुनता है? रातरातभर कोठों पर ऐश की शमाएं जलाने वाले पति कभी अपनी पत्नी के दिल के अंधेरों में झांक कर देखते हैं? हर जवान लड़की पर लार टपकाने वाला पति कभी यह भी सोचता है कि उस की पत्नी के गालों पर आंसू के निशान क्यों बने रहते हैं? आप ने जब अर्चना को लाने की तजवीज पेश की थी, तब मैं भी रोईचिल्लाई थी. अब मैं संजय के पास जा रही हूं तो आप क्यों चीख उठे?’’

‘‘मैं उस का सिर तोड़ दूंगा,’’ रूपेश कमरे की तरफ बढ़ा. ‘‘अरे, रुको तो,’’ शिखा ने उस की बांह पकड़ ली.

‘‘मैं कुछ सुनना नहीं चाहता. उसे इसी वक्त चलता कर दो.’’ ‘‘और अर्चना?’’

‘‘वह भी जाएगी. मेरा फैसला गलत था. मैं अंधे जज्बात की धारा में बह गया था,’’ रूपेश ने हथियार डाल दिए. ‘‘अंधे जज्बात नहीं, वासना ने तुम्हें अंधा कर दिया था. रूपेश भैया,’’ संजय पूरे कपड़े पहन अतिथिकक्ष के दरवाजे पर खड़ा था.

रूपेश कभी सोने के कमरे की तरफ और कभी अतिथिकक्ष के दरवाजे पर खड़े संजय की ओर देख रहा था. ‘‘जी हां, आप का खयाल ठीक है. मैं सोने के कमरे में स्लीपिंग सूट पहन कर गया जरूर था. किंतु दूसरे दरवाजे से बाहर निकल गया था,’’ संजय ने कहा, ‘‘आप को फिर कोई शो करना हो तो याद कीजिएगा. यह रहा मेरा कार्ड.’’

‘नितिन…निर्देशक तथा स्टेज आर्टिस्ट,’ रूपेश कार्ड की पहली पंक्ति पर अटक गया. ‘‘आगे हमारे ड्रामा क्लब का पता भी लिखा है. नोट कर लीजिए,’’ नितिन मुसकरा दिया.

रूपेश मुंह फाड़ कभी कार्ड को तो कभी उस युवक को देख रहा था, जो संजय से नितिन बन गया था.

‘‘यह नितिन है, हमारे शहर के माने हुए कलाकार और भैया के जिगरी दोस्त. जब मैं ने भैया को आप की अर्चना को साथ रखने की जिद के बारे में लिखा तब उन्होंने नितिन की सहायता से यह सारा नाटक रचवाया,’’ शिखा ने सारी बात समझाते हुए कहा. ‘‘ओह,’’ रूपेश ने एक लंबी सांस ली और धम से सोफे पर बैठ गया.

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