नितिन की आज सुहागरात है और वह दोस्तों की बैचलर पार्टी में उदास सा बैठा है.उसके दोस्त अपनी शाम उसके नाम पर रंगीन कर रहे हैं, नितिन के चेहरे की रौनक नदारद है. पार्टी खत्म कर दोस्तों ने जब घर की राह पकड़ी, तब वह बेरौनक बुझा बुझा अपनी गाड़ी में जाकर बैठा.
क्या बात हुई होगी!
नितिन को गुड़गांव वाली लड़की पसंद थी.वह उसकी ही तरह इंजीनियर है.स्मार्ट सुंदर, सबसे बड़ी बात नितिन की तरह ही सोच उसकी.बावजूद इसके नितिन के घरवालों ने किसी भी हाल में उससे शादी नहीं होने दी.समस्या यह थी कि कुंडली मिलान में नितिन से उसके तीन जरूरी गुण नहीं मिले, जबकि घरवालों की पसंद की लड़की से नितिन के छत्तीस गुण मिल गए.
ये अलग बात हुई कि अब नितिन को इस कुंडली के छत्तीस गुण वाले आंकड़े की वजह से अपनी पत्नी से छत्तीस का आंकड़ा ही रह गया!
निहार का किस्सा कुछ अलग होते हुए भी एक ही दर्द बयां करता है.
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घरवालों ने पारिवारिक दोस्त की बेटी से किशोर उम्र से ही निहार की शादी तय कर रखी थी. कालेज जाते तक उन दोनों में दोस्ती रही, लेकिन कालेज में अच्छी लड़कियां जब उसकी दोस्त बनती गईं तो निहार को पहले से तय शादी बोझ लगने लगी.निहार को उस लड़की के प्रति न लगाव था, न आकर्षण! बचपन में इन बातों की गहराई मालूम न थीं,अब लेकिन वह इस बन्धन से मुक्त होने को परेशान हो गया.
बागदत्ता कहकर घरवालों ने नौकरी लगते ही उसकी जबरदस्ती उस लड़की से शादी कर दी. दोनो परिवारों के अनगिनत रिश्तेदारी के दबाव में शादी तो हो गई, लेकिन निहार से निभाते न बना.
दो साल उहापोह में गुजार कर वह अपनी गर्लफ्रेंड के साथ विदेश चला गया! सब देखते रह गए.
*ऐसा हश्र क्यों?
सच पूछा जाए तो लड़कों पर यह तोहमत लगा देना कि शादी न निभाकर वे गैर जिम्मेदार हो गए हैं, गलत होगा!
विवाह आपसी समझदारी है, तो एक दूसरे के प्रति आकर्षण से उपजा लगाव भी है.अगर आकर्षण का तत्व पूरी तरह हटा दिया जाय, तो यह निभाना सिर्फ मुसीबत ही है.और मुसीबत जिंदगी भर के लिए उठाई नहीं जा सकती!
*अरेंज मैरेज को मज़बूरी क्यों बनाया जाय?
दो जिंदगी के बीच बेहतर तालमेल से जीने की तमाम चुनौतियों को बहुत हद तक कम कर सकने का नाम शादी होना चाहिए. अगर शादी के बाद दो व्यक्तियों की जिंदगी अलग अलग और कठिन ही हो जाय तो उस शादी को नाकाम ही समझना चाहिए.
यह ठीक है कि भारत में आज भी अरेंज मैरेज का अपना महत्व है, क्योंकि शादी में पूरा समाज जुड़ता है, समाज के अपरिचित लोग मिलकर एक परिवार और उसके हिस्से बनते हैं. लेकिन इससे व्यक्ति के व्यक्तिगत सुख शांति को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. अरेंज मैरेज में जब शादी वाले जोड़े की इच्छा अनिच्छा का कोई मोल नहीं रह जाता और शादी को धार्मिक रीति रिवाज ,परंपरा मानकर निभाने को बाध्य कर दिया जाता है, तो ही बात बिगड़ती है.
*अरेंज मैरेज और धार्मिक रूढ़ि –
सदियों से भारतीय समाज में अरेंज मैरेज को धार्मिक सिंहासन पर बिठाया गया है. जबकि लव मैरेज हो या अरेंज यह दो दिलों को साथ लाने का माध्यम भर है.
अगर शादी के बाद दो दिल आपस में जुड़ा हुआ महसूस नहीं करते, तो शादी महत्वहीन हो जाती है.
शादी जैसी भी हो, धार्मिक बाध्यता से कभी भी आपसी संबंध मधुर नहीं हो सकते.
*शादी सिर्फ नून तेल और धर्म का डर नहीं है
चाहे कुंडली के सौ गुण मिले अगर घरवालों की पसंद पर लड़के को आपत्ति हो, दिल बेगाना ही रहता है.
फिर यह नून तेल का रिश्ता बना रहे, या फिर धार्मिक डर की डोरी से बंधा रिश्ता!
ऐसी शादी कभी सुकून नहीं दे सकती जो लड़का लड़की के खुद के पसंद से न हो.
देखते है जब घरवालों ने ढूंढी हो पत्नी और पति को हो वह नापसंद तो परिणाम क्या क्या हो सकते है :
केस 1.
पति दूसरी औरत के साथ भावनात्मक संबंध रखे.-
जबरदस्ती की शादी कई बार नई पत्नी पर भारी पड़ जाती है जब पति घरवालों के दवाब में शादी तो कर लेता है, लेकिन मन कहीं और भटकता है. पत्नी की उपस्थिति को भुलाकर वह बाहर कहीं संपर्क गढ़ लेता है.
केस 2. घर बाहर शरीर संबंध –
ऐसा देखा जाता है कि जब पत्नी मन पसंद न हो तो पति को घर में कोई रुचि नहीं रह जाती है.भले ही वह घर में पत्नी के साथ शरीर संपर्क में रहता है, लेकिन पत्नी के प्रति व्यक्तिगत रुचि उसे महसूस नहीं होती!
पति पत्नी के प्रति कोई जवाबदारी महसूस नहीं करता, पत्नी से किसी तरह निभाते हुए भी अपनी सारी खुशी बाहर ढूंढता रहता है.
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केस 3 –
पत्नी का मानसिक शोषण करे.
पति जब नापसंद वाली शादी से खिन्न रहे तो बहुत संभव है वह पत्नी की गलतियां ढूंढे, और बात बात पर उसे जलील करे. पत्नी के घरवालों को ताना दे, और पत्नी कभी भी पति के प्रति इज्जत महसूस न कर सके.
4.पति पत्नी को हमेशा आर्थिक रूप से कमजोर रखे –
यद्दपी शादी के बाद पत्नी को कानूनी रूप से आर्थिक अधिकार प्राप्त होता ही है, लेकिन पति अगर पत्नी को तकलीफ़ देना चाहे तो दैनिक जीवन उसकी कठिन हो सकती है.
कानूनी प्रक्रिया एक लम्बी लड़ाई है, और इससे रिश्ते खत्म ही होते हैं .
5. निभाते हुए भी पति खुश न रहे –
पति अगर भावुक और अभिमानी किस्म का हो तो घुट घुट कर अपनी इच्छा को दबा लेता है. जैसे तैसे पत्नी के साथ निभाता भी है, लेकिन मन से हमेशा असंतुष्ट रहता है. वह इसी आवेश में जिंदगी गुजारता है कि उसके साथ अन्याय हुआ, किसी ने उसकी नहीं सुनी.
उसका सारा क्रोध अंततः पत्नी पर ही रहता है. जब न चाहते हुए भी इंसान निभाता है तो उस जैसा दुखी इंसान और कौन हो सकता है!
उपरोक्त सारी स्थितियां एक जटिल पारिवारिक स्थिति को दर्शाती है और निष्कर्ष तो यही निकलता है कि अरेंज मैरेज को जबरदस्ती विवाह बन्धन का जरिया बनाने से सिवा बगावत के कुछ भी हासिल नहीं होगा.
चाहे धर्म कर्म के नाम पर, चाहे सामाजिक रीति नीति, जाति पाति के नाम पर जब दो दिलों को जबरन एक दूसरे पर थोपा जाएगा – सिर्फ नफरत की जमीन ही तैयार होगी!
आज लड़की लड़का दोनो परिपक्व सोच रखते हैं, इसलिए उनकी निजी पसंद नापसंद का महत्व ही सबसे ज्यादा है.
भले ही भारतीय समाज विविधता से परिपूर्ण है, समाज और परिवार व्यवस्था एक दूसरे मे गूंथें हो,
इंकार तो लेकिन किया नहीं जा सकता कि शादी करके निभाने का काम तो लड़का लड़की को ही करना है.अगर वे ही खुशी से एक दूसरे को अपना नहीं पाए, तो पूरी शादी ही व्यर्थ हो जाती है.
आइए जाने ऐसी जबरन शादी के बाद क्या कारगर कदम उठाएं, कि बिगड़े रिश्तों और उनसे पैदा हुई
मानसिक परेशानियां सुलझ सकें –
1. परिवार के बड़ों की जिम्मेदारी – लड़का और लड़की के परिवार वाले जब अपनी धुन में कुंडली मिलान और धार्मिक आस्थाओं के तामझाम तले जवान दिलों की मर्जी को कुचल दें तो जिम्मेदारी सबसे पहले उनकी ही बनती है कि इस शादी को बुरे हश्र से बचाया जाए.
2. लड़का खुद भी समझे – शादी जिंदगी को निपटाना नहीं है, बल्कि जिंदगी को नई दिशा देने की एक सार्थक पहल है. इसलिए लड़का सिर्फ यह कहकर नहीं बच सकता कि घरवालों ने शादी दी तो अब वही समझे! पल्ला झाड़ने की गैर जिम्मेदाराना हरकत आखिर लड़के को भी चैन नहीं लेने देगी. यह लड़के की भी भविष्य की बात है.
एक लड़की जब हजार सपने लेकर नए घर में प्रवेश करती है तो मासूम और कोरा स्लेट होती है.
पति हो जाने के बाद अपने आप कुछ जिम्मेदारियां जुड़ जाती है और इसमें प्रधान यह है कि पत्नी की स्थिति ,उसकी मानसिकता को पति समझे .
अगर निहायत ही यह ग़लत शादी है, तो पत्नी को तलाक देकर जल्द से जल्द उसे स्वतंत्र करना जरूरी है ताकि वह त्रिशंकु की तरह बीच मे न झूलती रहे.
3. खुद की जिम्मेदारी लड़की की भी –
पारिवारिक दवाब और मन के भुलभुलैया में फंसकर अगर लड़की ने किसी ऐसे लड़के से शादी कर ली हो जो इस शादी को मानता ही नहीं, तो लड़की को खुद के प्रति जिम्मेदारी उठाने से कतराना नहीं चाहिए.
जैसे तैसे मुंह फुलाकर जिंदगी काटने से बेहतर है कि पहले पति से नरम शब्दों में साफ बात की जाय, और सही रास्ता न निकले तो ससुराल और मायके के जिम्मेदार सदस्यों तक खुद की तकलीफ़ बताई जाय.
बावजूद इसके अगर लोग उसकी बातों पर ध्यान न दें, और पति अपनी नापसंदगी की वजह से उसे उपेक्षित छोड़ दे, तो वह तीव्र विरोध को कमर कस ले.
अगर चारा न रहे तो उसे अवश्य इस शादी से निकलने को तैयार हो जाना चाहिए
पूरी जिंदगी रोकर तो गुजारी नहीं जा सकती. लड़की अपने करियर पर फोकस करे, तलाक लेकर नई जिंदगी और नई शादी की भी पहल की जा सकती है.
“जाने दो, अब जो भाग्य में लिखा था ” जैसी बातों के साथ ताउम्र घुटना जिंदगी के साथ खिलवाड़ करना है.
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जिंदगी खुद की है, और इसकी जिम्मेदारी खुद को ही उठानी पड़ेगी.
जब सामने लड़ाई आ ही जाती है तो उससे भागकर या मुंह छुपाकर मसले हल नहीं होते .
टाल कर कुछ भी अपने आप ठीक नहीं हो सकता जब तक न इस ओर प्रयास किए जाएं.
पुराने रीति रिवाज, कर्म काण्ड और कुंडली विधान के प्रपंच से बचकर शादी के लिए लड़के लड़की के मनोविज्ञान की जांच जरूरी है, उनके स्वास्थ्य और व्यवहार की पड़ताल जरूरी है.दोनो की इच्छा से ही शादी हो, इस बात पर नजर रखी जाए.
स्थाई रिश्ते और परिवार में शांति के लिए यही ज्यादा कारगर उपाय है.