घरवालों की ढूंढी पत्नी, पति को जब नापसंद हो

नितिन की आज सुहागरात है और वह दोस्तों की बैचलर पार्टी में उदास सा बैठा है.उसके दोस्त अपनी शाम उसके नाम पर रंगीन कर रहे हैं, नितिन के चेहरे की रौनक नदारद है. पार्टी खत्म कर दोस्तों ने जब घर की राह पकड़ी, तब वह बेरौनक बुझा बुझा अपनी गाड़ी में जाकर बैठा.

क्या बात हुई होगी!

नितिन को गुड़गांव वाली लड़की पसंद थी.वह उसकी ही तरह इंजीनियर है.स्मार्ट सुंदर, सबसे बड़ी बात नितिन की तरह ही सोच उसकी.बावजूद इसके नितिन के घरवालों ने किसी भी हाल में उससे शादी नहीं होने दी.समस्या यह थी कि कुंडली मिलान में नितिन से उसके तीन जरूरी गुण नहीं मिले, जबकि घरवालों की पसंद की लड़की से नितिन के छत्तीस गुण मिल गए.

ये अलग बात हुई कि अब नितिन को इस कुंडली के छत्तीस गुण वाले आंकड़े की वजह से अपनी पत्नी से छत्तीस का आंकड़ा ही रह गया!

निहार का किस्सा कुछ अलग होते हुए भी एक ही दर्द बयां करता है.

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घरवालों ने पारिवारिक दोस्त की बेटी से किशोर उम्र से ही निहार की शादी तय कर रखी थी. कालेज जाते तक उन दोनों में दोस्ती रही, लेकिन कालेज में अच्छी लड़कियां जब उसकी दोस्त बनती गईं तो निहार को पहले से तय शादी बोझ लगने लगी.निहार को उस लड़की के प्रति न लगाव था, न आकर्षण! बचपन में इन बातों की गहराई मालूम न थीं,अब लेकिन वह इस बन्धन से मुक्त होने को परेशान हो गया.
बागदत्ता कहकर घरवालों ने नौकरी लगते ही उसकी जबरदस्ती उस लड़की से शादी कर दी. दोनो परिवारों के अनगिनत रिश्तेदारी के दबाव में शादी तो हो गई, लेकिन निहार से निभाते न बना.
दो साल उहापोह में गुजार कर वह अपनी गर्लफ्रेंड के साथ विदेश चला गया! सब देखते रह गए.

*ऐसा हश्र क्यों?

सच पूछा जाए तो लड़कों पर यह तोहमत लगा देना कि शादी न निभाकर वे गैर जिम्मेदार हो गए हैं, गलत होगा!

विवाह आपसी समझदारी है, तो एक दूसरे के प्रति आकर्षण से उपजा लगाव भी है.अगर आकर्षण का तत्व पूरी तरह हटा दिया जाय, तो यह निभाना सिर्फ मुसीबत ही है.और मुसीबत जिंदगी भर के लिए उठाई नहीं जा सकती!

*अरेंज मैरेज को मज़बूरी क्यों बनाया जाय?

दो जिंदगी के बीच बेहतर तालमेल से जीने की तमाम चुनौतियों को बहुत हद तक कम कर सकने का नाम शादी होना चाहिए. अगर शादी के बाद दो व्यक्तियों की जिंदगी अलग अलग और कठिन ही हो जाय तो उस शादी को नाकाम ही समझना चाहिए.

यह ठीक है कि भारत में आज भी अरेंज मैरेज का अपना महत्व है, क्योंकि शादी में पूरा समाज जुड़ता है, समाज के अपरिचित लोग मिलकर एक परिवार और उसके हिस्से बनते हैं. लेकिन इससे व्यक्ति के व्यक्तिगत सुख शांति को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. अरेंज मैरेज में जब शादी वाले जोड़े की इच्छा अनिच्छा का कोई मोल नहीं रह जाता और शादी को धार्मिक रीति रिवाज ,परंपरा मानकर निभाने को बाध्य कर दिया जाता है, तो ही बात बिगड़ती है.

*अरेंज मैरेज और धार्मिक रूढ़ि –

सदियों से भारतीय समाज में अरेंज मैरेज को धार्मिक सिंहासन पर बिठाया गया है. जबकि लव मैरेज हो या अरेंज यह दो दिलों को साथ लाने का माध्यम भर है.
अगर शादी के बाद दो दिल आपस में जुड़ा हुआ महसूस नहीं करते, तो शादी महत्वहीन हो जाती है.
शादी जैसी भी हो, धार्मिक बाध्यता से कभी भी आपसी संबंध मधुर नहीं हो सकते.

*शादी सिर्फ नून तेल और धर्म का डर नहीं है

चाहे कुंडली के सौ गुण मिले अगर घरवालों की पसंद पर लड़के को आपत्ति हो, दिल बेगाना ही रहता है.
फिर यह नून तेल का रिश्ता बना रहे, या फिर धार्मिक डर की डोरी से बंधा रिश्ता!
ऐसी शादी कभी सुकून नहीं दे सकती जो लड़का लड़की के खुद के पसंद से न हो.
देखते है जब घरवालों ने ढूंढी हो पत्नी और पति को हो वह नापसंद तो परिणाम क्या क्या हो सकते है :

केस 1.

पति दूसरी औरत के साथ भावनात्मक संबंध रखे.-

जबरदस्ती की शादी कई बार नई पत्नी पर भारी पड़ जाती है जब पति घरवालों के दवाब में शादी तो कर लेता है, लेकिन मन कहीं और भटकता है.  पत्नी की उपस्थिति को भुलाकर वह बाहर कहीं संपर्क गढ़ लेता है.

केस 2. घर बाहर शरीर संबंध –

ऐसा देखा जाता है कि जब पत्नी मन पसंद न हो तो पति को घर में कोई रुचि नहीं रह जाती है.भले ही वह घर में पत्नी के साथ शरीर संपर्क में रहता है, लेकिन पत्नी के प्रति व्यक्तिगत रुचि उसे महसूस नहीं होती!
पति पत्नी के प्रति कोई जवाबदारी महसूस नहीं करता, पत्नी से किसी तरह निभाते हुए भी अपनी सारी खुशी बाहर ढूंढता रहता है.

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केस 3 –

पत्नी का मानसिक शोषण करे.

पति जब नापसंद वाली शादी से खिन्न रहे तो बहुत संभव है वह पत्नी की गलतियां ढूंढे, और बात बात पर उसे जलील करे. पत्नी के घरवालों को ताना दे, और पत्नी कभी भी पति के प्रति इज्जत महसूस न कर सके.

4.पति पत्नी को हमेशा आर्थिक रूप से कमजोर रखे –

यद्दपी शादी के बाद पत्नी को कानूनी रूप से आर्थिक अधिकार प्राप्त होता ही है, लेकिन पति अगर पत्नी को तकलीफ़ देना चाहे तो दैनिक जीवन उसकी कठिन हो सकती है.
कानूनी प्रक्रिया एक लम्बी लड़ाई है, और इससे रिश्ते खत्म ही होते हैं .

5. निभाते हुए भी पति खुश न रहे –

पति अगर भावुक और अभिमानी किस्म का हो तो घुट घुट कर अपनी इच्छा को दबा लेता है. जैसे तैसे पत्नी के साथ निभाता भी है, लेकिन मन से हमेशा असंतुष्ट रहता है. वह इसी आवेश में जिंदगी गुजारता है कि उसके साथ अन्याय हुआ, किसी ने उसकी नहीं सुनी.
उसका सारा क्रोध अंततः पत्नी पर ही रहता है. जब न चाहते हुए भी इंसान निभाता है तो उस जैसा दुखी इंसान और कौन हो सकता है!

उपरोक्त सारी स्थितियां एक जटिल पारिवारिक स्थिति को दर्शाती है और निष्कर्ष तो यही निकलता है कि अरेंज मैरेज को जबरदस्ती विवाह बन्धन का जरिया बनाने से सिवा बगावत के कुछ भी हासिल नहीं होगा.

चाहे धर्म कर्म के नाम पर, चाहे सामाजिक रीति नीति, जाति पाति के नाम पर जब दो दिलों को जबरन एक दूसरे पर थोपा जाएगा – सिर्फ नफरत की जमीन ही तैयार होगी!
आज लड़की लड़का दोनो परिपक्व सोच रखते हैं, इसलिए उनकी निजी पसंद नापसंद का महत्व ही सबसे ज्यादा है.

भले ही भारतीय समाज विविधता से परिपूर्ण है, समाज और परिवार व्यवस्था एक दूसरे मे गूंथें हो,
इंकार तो लेकिन किया नहीं जा सकता कि शादी करके निभाने का काम तो लड़का लड़की को ही करना है.अगर वे ही खुशी से एक दूसरे को अपना नहीं पाए, तो पूरी शादी ही व्यर्थ हो जाती है.
आइए जाने ऐसी जबरन शादी के बाद क्या कारगर कदम उठाएं, कि बिगड़े रिश्तों और उनसे पैदा हुई

मानसिक परेशानियां सुलझ सकें –

1. परिवार के बड़ों की जिम्मेदारी – लड़का और लड़की के परिवार वाले जब अपनी धुन में कुंडली मिलान और धार्मिक आस्थाओं के तामझाम तले जवान दिलों की मर्जी को कुचल दें तो जिम्मेदारी सबसे पहले उनकी ही बनती है कि इस शादी को बुरे हश्र से बचाया जाए.

2. लड़का खुद भी समझे – शादी जिंदगी को निपटाना नहीं है, बल्कि जिंदगी को नई दिशा देने की एक सार्थक पहल है. इसलिए लड़का सिर्फ यह कहकर नहीं बच सकता कि घरवालों ने शादी दी तो अब वही समझे! पल्ला झाड़ने की गैर जिम्मेदाराना हरकत आखिर लड़के को भी चैन नहीं लेने देगी. यह लड़के की भी भविष्य की बात है.

एक लड़की जब हजार सपने लेकर नए घर में प्रवेश करती है तो मासूम और कोरा स्लेट होती है.
पति हो जाने के बाद अपने आप कुछ जिम्मेदारियां जुड़ जाती है और इसमें प्रधान यह है कि पत्नी की स्थिति ,उसकी मानसिकता को पति समझे .
अगर निहायत ही यह ग़लत शादी है, तो पत्नी को तलाक देकर जल्द से जल्द उसे स्वतंत्र करना जरूरी है ताकि वह त्रिशंकु की तरह बीच मे न झूलती रहे.

3. खुद की जिम्मेदारी लड़की की भी –

पारिवारिक दवाब और मन के भुलभुलैया में फंसकर अगर लड़की ने किसी ऐसे लड़के से शादी कर ली हो जो इस शादी को मानता ही नहीं, तो लड़की को खुद के प्रति जिम्मेदारी उठाने से कतराना नहीं चाहिए.

जैसे तैसे मुंह फुलाकर जिंदगी काटने से बेहतर है कि पहले पति से नरम शब्दों में साफ बात की जाय, और सही रास्ता न निकले तो ससुराल और मायके के जिम्मेदार सदस्यों तक खुद की तकलीफ़ बताई जाय.

बावजूद इसके अगर लोग उसकी बातों पर ध्यान न दें, और पति अपनी नापसंदगी की वजह से उसे उपेक्षित छोड़ दे, तो वह तीव्र विरोध को कमर कस ले.
अगर चारा न रहे तो उसे अवश्य इस शादी से निकलने को तैयार हो जाना चाहिए
पूरी जिंदगी रोकर तो गुजारी नहीं जा सकती. लड़की अपने करियर पर फोकस करे, तलाक लेकर नई जिंदगी और नई शादी की भी पहल की जा सकती है.
“जाने दो, अब जो भाग्य में लिखा था ” जैसी बातों के साथ ताउम्र घुटना जिंदगी के साथ खिलवाड़ करना है.

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जिंदगी खुद की है, और इसकी जिम्मेदारी खुद को ही उठानी पड़ेगी.
जब सामने लड़ाई आ ही जाती है तो उससे भागकर या मुंह छुपाकर मसले हल नहीं होते .
टाल कर कुछ भी अपने आप ठीक नहीं हो सकता जब तक न इस ओर प्रयास किए जाएं.
पुराने रीति रिवाज, कर्म काण्ड और कुंडली विधान के प्रपंच से बचकर शादी के लिए लड़के लड़की के मनोविज्ञान की जांच जरूरी है, उनके स्वास्थ्य और व्यवहार की पड़ताल जरूरी है.दोनो की इच्छा से ही शादी हो, इस बात पर नजर रखी जाए.
स्थाई रिश्ते और परिवार में शांति के लिए यही ज्यादा कारगर उपाय है.

Arranged Marriage में दिलदार बनें, रिश्ता तय करने से पहले ध्यान रखें ये बातें

यदि किसी कारणवश युवा अपना भावी जीवनसाथी खुद न ढूंढ पाए या ढूंढना ही न चाहे और अपने मातापिता के सहयोग से ही विवाह बंधन में बंधने का निर्णय ले, तो आज के समय में पेरैंट्स के लिए अपने बच्चे की मैरिज करना खासा पेचीदा होता जा रहा है.

पेरैंट्स व बच्चों की किसी रिश्ते में किसी एक बिंदु पर सहमति बनना कोई आसान बात नहीं होती. वहां भी जैनरेशन गैप साफ दिखाई देता है और उस पर जब अधिकतर युवा लव मैरिज करने लगे हैं तो अरैंज्ड मैरिज के लिए विवाहयोग्य लड़केलड़कियों का जैसे अकाल सा पड़ने लगा है. और फिर बच्चे साथ में न रह कर दूसरे शहरों में या विदेश में हों तो वैवाहिक रिश्तों के बारे में चर्चा करना कठिन ही नहीं असंभव भी हो जाता है.

सुधा थपलियाल जो एक उच्च शिक्षित गृहिणी हैं, बताती हैं कि बेटी के लिए रिश्ते आते हैं पर जब फोन पर बेटी से रिश्तों के बारे में चर्चा करना चाहती हूं तो सुबह वह जल्दी में होती है, शाम को थकी होती है और छुट्टी के दिन आराम के मूड में होती है. विवाह के बारे में आखिर चर्चा करूं तो किस से करूं.

सावी शर्मा भी एक उच्च शिक्षित गृहिणी हैं. चर्चा छिड़ने पर कहती हैं कि मैं ने बेटे की अरैंज्ड मैरिज की लेकिन मुझे इतनी दिक्कत नहीं आई, क्योंकि बेटे ने पूरी तरह सब कुछ मुझ पर छोड़ दिया था. इसलिए जो रिश्ते मुझे पूरी तरह ठीक लगे, उन्हीं लड़कियों को मैं ने बेटे से मिलवाया और एक जगह बात फाइनल हो गई.

पेरैंट्स की मुशकिल समझें युवा:

अरैंज्ड मैरिज में आजकल पेरैंट्स की सब से बड़ी मुश्किल है बच्चों की कल्पना को धरातल पर उतारना, जोकि नामुमकिन होता है. साथ ही पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक पृष्ठभूमि को देखते हुए सही तालमेल वाले रिश्ते ढूंढना जिस में बच्चे बहुत कम सहयोग देते हैं.

कई युवा सोचते तो बहुत कुछ हैं पर विवाह को ले कर पेरैंट्स के साथ संवादहीनता की स्थिति कायम कर देते हैं, जैसे कि पेरैंट्स को पहली ही बार में उन की कल्पना को धरातल पर उतार देना चाहिए था और ऐसा नहीं हुआ तो यह उन की गलती है. लेकिन युवाओं को समझना चाहिए कि किसी की भी कल्पना धरातल पर नहीं उतरती.

सहज बातचीत से सामने से आए रिश्ते के माइनसप्लस पौइंट्स पर विचार किया जा सकता है. लव मैरिज में जहां बिना कुछ आगापीछा जानेबूझे, सोचेसमझे प्यार हो जाता है, मतलब कि प्यार की भावना ही प्रधान होती है वहीं अरैंज्ड मैरिज में आप के गुण, दोष, कमी, नौकरी, पैसा, सैलरी, खूबसूरती, सामाजिक रूतबा, घरपरिवार शिक्षा बगैरा देख कर ही रिश्ते आते हैं.

इसलिए यदि युवा स्वयं मनचाहा जीवनसाथी न ढूंढ पाए हों और भावी जीवनसाथी ढूंढने के लिए पेरैंट्स पर निर्भर हों तो पेरैंट्स के साथ सहयोग करें ताकि वे आप के लिए सुयोग्य जीवनसाथी का चुनाव कर सकें.

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बच्चों की मुश्किलें समझें पेरैंट्स:

दूसरी तरफ पेरैंट्स को भी चाहिए कि अरैंज्ड मैरिज में भी थोड़ा लव मैरिज वाला लचीलापन लाएं और दिलदार बनें. वर्षों से चली आ रही लकीर को न पीटें. जाति, जन्मपत्री, प्रथाएं, गोत्र, धर्म, रीतिरिवाज जैसी चीजों में उलझने के बाद जो रिश्ते छन कर बचते हैं वे शिक्षा व विचारों के लिहाज से आप के लाडले व लाडली के साथ कितने फिट बैठते हैं यह देखने व सोचने की जहमत भी उठाएं.

इसलिए अरैंज्ड मैरिज में भी इस तयशुदा चारदीवारी से बाहर आ कर थोड़ा उदार रवैया अपनाएं. खुद की सड़ीगली मान्यताओं को एकतरफ रख कर, जो बच्चों के साथ फिट बैठ सके, ऐसे साथी के बारे में सोचें. आजकल के समय में लड़कियों के लिए भी हर तरह का समझौता करना सरल नहीं है. इसलिए उन के लिए भी अरैंज्ड मैरिज करना कोई आसान बात नहीं रह गई.

अरैंज्ड मैरिज की मुश्किलें:

अरैंज्ड मैरिज में बिचौलिए, मातापिता या रिश्तेदार किसी रिश्ते के लिए भावनात्मक दबाव बनाने लगते हैं. यह सही नहीं है. इस के अलावा लड़कालड़की को एकदूसरे को समझने के लिए समय नहीं मिल पाता, यह मुश्किल तब और बड़ी हो जाती है जब वे अलगअलग शहरों में या उन में से एक विदेश में हो.

लव मैरिज में युवा एकदूसरे को लंबे समय तक जाननेसमझने के बाद विवाह का फैसला लेते हैं, इसलिए उन्हें अपने फैसले पर विश्वास होता है. लेकिन अरैंज्ड मैरिज में उन्हें फैसला लेने में घबराहट होती है. आजकल के युवा उम्र व मानसिक रूप से परिपक्व होने के कारण हर किसी के साथ सरलता से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं.

लव मैरिज में जहां प्रेम गुणदोषों को साथ ले कर चलता है वहीं अरैंज्ड मैरिज में सब कुछ विवाह के बाद की स्थिति पर निर्भर करता है. लव मैरिज में जहां युवा आपसी सहमति से भविष्य की योजना बनाते हैं वहीं अरैंज्ड मैरिज में कई बार इन सब भावी फैसलों पर पारिवारिक दबाव बन जाता है और लड़कालड़की अपने साथी का मंतव्य ठीक से समझ नहीं पाते.

साथी से मिलें कुछ इस तरह:

जब यह तय है कि साथी मातापिता ही ढूंढेंगे तो उन पर भरोसा कीजिए. उन के फैसले के साथ अपनी पसंद भी मिलाइये और भावी साथी के साथ कुछ इस तरह मिलिए:

– साथी को अपने सामने खुलने का अवसर दें. स्थिति में तनाव को दूर करने की कोशिश करें. दोनों में से कोई भी सहज बातचीत शुरू कर के साथी को कंफर्टेबल कर सकता है. आप का उन के बारे में जो भी खयाल बने, अपने परिवार वालों को स्पष्ट तौर पर बताएं.

– गलत निर्णय लेने से अच्छा है देर से निर्णय लेना या फिर नहीं लेना. पर पेरैंट्स के साथ विवाह की चर्चा को ले कर सहज बातचीत या सकारात्मकता बनाए रखें ताकि वे आप के लिए सुयोग्य जीवनसाथी का चयन कर सकें.

– एकदूसरे का इतिहास जानने की कोशिश न करें, बल्कि भविष्य की योजनाओं, रूचियों, स्वभाव बगैरा समझने की कोशिश करें. अपनी नौकरी, वर्किंग आवर, टूरिंग, व्यस्तता, सैलरी आदि के विषय में स्पष्ट जानकारी देना व लेना एकदम सही रहेगा ताकि बाद में कोई विवाद न हो. इस के अलावा एकदूसरे के पुरुष व महिला मित्रों के बारे में रवैया और हद जान लेना भी सही रहेगा.

– खर्चे की बात भी साफ हो जानी चाहिए, क्योंकि अधिकतर लड़कियों की सोच होती है कि पति का पैसा तो सब का लेकिन उन का पैसा सिर्फ उन का. इस के अलावा आजकल की कामकाजी लड़कियां ऐसे लड़कों को पसंद करती हैं जो उन्हें यह विश्वास दिलाएं कि घरपरिवार, बच्चे सिर्फ उन की जिम्मेदारी नहीं हैं.

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अरैंज्ड मैरिज में भी जगाएं लव मैरिज वाला जज्बा:

अब जब विवाह तय हो गया है और आप ने स्वयं को अरैंज्ड मैरिज के लिए तैयार कर लिया है तो एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताइए, चाहे एक शहर में हों या अलग या फिर विदेश में.

काम के बोझ तले यदि मन बेताब नहीं भी हो पा रहा है, दिल में कई सशंय घूम रहे हैं और साथी के प्रति इतना आकर्षण महसूस नहीं कर पा रहे हैं, तब भी बेताबी जगाइए. आकर्षण पैदा कीजिए एकदूसरे के लिए. सोचिए कि कुदरत ने उन्हें सिर्फ आप के लिए ही बनाया है. फ्लर्टिंग कीजिए, हंसिएहंसाइए, छोटेछोटे सरप्राइज दीजिए और महसूस कीजिए कि आप का प्यार बस अभीअभी शुरू हुआ है व आप को इसे कैसे जीत कर मंजिल तक पहुंचाना है.

अपने लिए साथी भले ही आप ने खुद नहीं ढूंढ़ा है पर पसंद तो आप ने ही किया है. इसलिए उस के प्रति भी वही जज्बा जगाइए जो प्रेम विवाह में होता है. चाहें तो छिपछिप कर मिलें या प्रेम का इजहार करें. फिर  देखिए कैसे अरैंज्ड मैरिज में भी लव मैरिज जैसा लुत्फ आता है.

संबंध को टेकेन फार ग्रांटेड लेंगी तो पछताना ही पड़ेगा

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

एक सुखी दांपत्य के लिए क्या जरूरी है? इस बात से जरा भी इनकार नहीं किया जा सकता कि दांपत्य जीवन के लिए हेल्दी फिजिकल रिलेशन जरूरी है. अलबत्त, यह जरूरी नहीं कि इसके अलावा भी ऐसा बहुत कुछ है जो संबंध को हमेशा सजीव रखता है.हग, स्पर्श, प्यार , कद्र, सम्मान और संवाद कभी संबंध को सूखने नहीं देते.

शबाना आजमी से एक इंटरव्यू में पूछा गया था कि जावेद साहब इतनी सारी कविताएं, गीत और गजल लिखते हैं तो आप पर भी रोजाना एक गीत या गजल लिखते होंगें? शबाना आजमी ने इस सवाल के जवाब में कहा था कि जावेद साहब मेरे ऊपर कविता या गीत नहीं लिखते, इतने लंबे वैवाहिक जीवन में मेरे ऊपर गिनती की 3-4 कविताएं लिखी होंगीं. पर सच बात तो यह है कि मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है. क्योंकि उनके व्यवहार में मैं अपने प्रति भरपूर स्नेह देखती हूं. मेरी छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना, मेरी हर बात को शांति से सुनना, मेरी कोई प्राब्लम हो तो उसे हल करना, रोजाना प्रेम से हग करना,  यह सब मेरे लिए कविता से विशेष है. मैं अपने प्रति उनके स्नेह को आज भी वैसा ही अनुभव कर रही हूं, जो मेरे लिए कविता से बढ़ कर है. शबाना आजमी की पूदी बात में आखिरी बात बारबार  पढ़ने और समझने लायक है कि ‘मैं इतने सालों बाद भी उनके अपने प्रति स्नेह को उनके व्यवहार में अनुभव कर सकती हूं.’ यही सब से महत्वपूर्ण बात है.

पूरे दिन की दौड़भाग के बाद घर आने पर मिलने वाला पत्नी का प्रेम भरा एक हग दिन भर की थकान उतार सकता है. यह वाक्य हम न जाने कितनी बार पढ़ या सुन चुकी होंगीं, शादी के बाद शुरू के दिनों में कुछ समय तक पति-पत्नी के बीच यह घटनाक्रम चलता है. पर जैसेजैसे समय बीतता जाता है, वैसेवेसे यह आदत छूटने लगती है. अलबत्त, पति थक कर आया हो, पूरे दिन घर और घर के सदस्यों की देखभाल करने वाली पत्नी की भी इच्छा होती है कि उसका भी कोई ख्याल रखे. जिस तरह पति आफिस से थकामांदा आता है और पत्नी के हाथ की गरमामरम चाय पी कर उसकी थकान उतर जाती है, उसी तरह रोज सवेरे जल्दी उठ कर नाश्ता तैयार करने वाली पत्नी को भी किसी दिन आराम दे कर पति नाश्ता बनाए तो पत्नी के लिए इससे बढ़कर खुशी की बात दूसरी नहीं होगी.

डेप्थ अफेक्शन और एट्रेक्शन का खेल

यह समय ऐसा है कि संबंधों में डेप्थ मुश्किल से ही देखने को मिलता है. युवा अफेक्शन और एट्रेक्शन के बीच की पतली रेखा को भूलते जा रहे हैं. परिणामस्वरूप एट्रेक्शन को प्रेम मान लेने की गलती कर रहे हैं. एट्रेक्शन कुछ समय बाद कम होने लगता है, इसलिए एक समय जो व्यक्ति बहुत अच्छा लग रहा होता है, वही व्यक्ति कुछ समय बाद जीवन की भूल लगने लगता है. यहां महिला या पुरुष,  किसी एक गलती नहीं कही जा सकती, महिला और पुरुष दोनों की ओर से अब ऐसा होने लगा है. मार्डर्न कल्चर को मानने वाले युवाओं में यह चीज खास कर देखने को मिलती है. ये बहुत जल्दी किसी की ओर आकर्षित हो जाते हैं. यह आकर्षण फिजिकल होता है, इसलिए कुछ दिनों बाद वह आदमी बोर लगने वगता है. फिर उस आदमी की बातें, विचार और पसंद अच्छी नहीं लगतीं.मन में उसे छोड़ कर भाग जाने का मन होने लगता है.

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 प्रेम को शारीरिक संबंध की बाऊंड्री में न लाएं

सेक्सुअल रिलेशन हम सब की जरूरत है. आदमी की बेसिक जरूरत में एक जरूरत है. पर प्रेम केवल शारीरिक संबंधों की बाऊंड्री में नहीं आता. प्रेम इस सब से परे है. हम जब अपने पार्टनर से जुड़ते हैं, तो शारीरिक रूप से खुश रखने के साथसाथ मानसिक रूप से भी खुशी देने के वचन का हमेशा पालन करना चाहिए. क्योंकि शारीरिक खुशी कहीं न कहीं स्वखुशी भी होती है. जबकि पार्टनर को दिया जाने वाला प्रेम, लगाव, स्नेह और अपनेपन की भावना पूरी तरह पार्टनर की खुशी के लिए किया गया कार्य है.

 छोटे स्टेप्स भी ध्यान देने लायक

ऐसा कहा जाता है कि प्रेम करने वाला व्यक्ति आप द्वारा की गई छोटी से छोटी बात पर ध्यान रखता है और यह बात उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है. जेसेकि पति उठे तो उसके लिए गरम पानी तैयार रखना, इससे पति को आप की केयरिंग का आभास होगा. पार्टनर की छोटी से छोटी बात का ध्यान रखने की आदत, रास्ते में जा रहे हों और पार्टनर को ठंड लगने पर अपनी जैकेट उतार कर ओढ़ाने की आदत, कार में जा रहे हों, पार्टनर जहां उतरे उसे हग कर के सीआफ करने की आदत, थोड़ा समय निकाल कर पार्टनर को सरप्राइज देने की आदत, सुबह उठने तथा रात को सोने के पहले उसी तरह बाहर से आने पर तुरंत स्नेहिल हग करने की आदत, पार्टनर को उसके कार्यस्थल से पिकअप करने की आदत, लांग ड्राइव पर गए हों तो पार्टनर की पसंद के गाने बजाने की आदत, जैसे छोटेछोटे काम भी आपको प्रेम करने के लिए अति महत्वपूर्ण हो सकते हैं. क्योंकि आपकी यही आदतें आपको अनुभव कराएंगी कि आप उसके लिए महत्वपूर्ण हैं.

 समय समय पर संबंध को पोसना जरूरी है

खैर, आप कहेंगे कि नयानया संबंध बना है तो सभी ऐसा करते हैं. यह बात सौ प्रतिशत सच है, नया संबंध बना हो, एकदूसरे को इम्प्रेश करने की शुरुआत हो तो इस तरह की तमाम छोटीछोटी चीजें एकदूसरे के लिए पार्टनर्स करते रहते हैं. पर जैसेजैसे समय गुजरता जाता है, वैसेवैसे ये चीजें भुलाती जाती हैं. कहो कि पार्टनर एकदूसरे को टेकेन फार ग्रांटेड लेना चाहते हैं. यह टेकेन फार ग्रांटेड लेने की आदत ही संबंधों में गैप लाने की शुरुआत करती है. ‘बारबार थोड़ा प्रेम जताना हो’?’ ‘यह तो पता ही हो न?’ ‘संबंध को कितना समय हो गया, अब यह बहुत अच्छा नहीं लग रहा’, ‘यह लपरझपर हमें नहीं आता’, ‘यह सब नयानया संबंध बना था तो किया था, अब हमेशा के लिए यह अच्छा नहीं लगता’, आदमी की यही मानसिकता संबंध में गैप लाने का काम करती है. एक सीधासादा उदाहरण देखते हैं. हम घर में एक पेड़ उगाते हैं. शुरूशुरू में उसकी खूब देखभाल करते हैं. उसमें खाद डालते हैं  पानी डालते हैं. थोड़ेथोड़े दिनों में उसकी गुड़ाई कर के उसे हराभरा रखने की कोशिश करते हैं. जब तक यह सब करते रहते हैं, तब तक पेड़ खूब हराभरा रहता है. उसमें सुंदर फूल भी आते हैं. पर जैसेजैसे समय गुजरता जाता है, पेड़ भी बड़ा हो जाता है, देखने में सुंदर लगने लगता है, तब उसकी देखभाल कम कर देते हैं. ऐसा करने से कुछ दिनों में पेड़ सूख जाएगा. संबंधों में भी ऐसा होता है. संबंध भी जतन मांगते हैं. इन्हें टेकेन फार ग्रांटेड लेने के बदले इनका जतन करें. संबंध में भी स्नेह, प्रेम लगाव की खाद और पानी डालते रहें. इस तरह करने से वह हमेशा हराभरा रहेगा.

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 जतन सब से ज्यादा जरूरी

लड़केलड़की के बीच संबंध बनता है तो सेक्सुअली क्लोजनेस आ ही जाती है, यह स्वाभाविक भी है. पर शारीरिक निकटता के साथ संबंध में स्नेह और मानसिक निकटता भी बनाए रखें, पार्टनर की छोटीछोटी बात का ध्यान रखें, यहां केवल लड़का या लड़की ही नहीं, दोनों की बात है. दोनों ही एकदूसरे के लिए ज्यादा समय न निकाल सकते हों तो भी छोटेछोटे काम से एकदूसरे के लिए लगाव फील कराएं, जैसेकि सुबह उठ कर एकदूसरे को स्नेह भरा हग करें, लंच बनाते समय एक साथ समय गुजारें, एकदूसरे की तमाम चीजों का ख्याल रखें, एकदूसरे को दिन में बारबार आई लव यू कहें, पूरे दिन क्या किया, रात को एकदूसरे से जानें, मन में क्या चल रहा है, एकदूसरे से शेयर करें. पार्टनर फ्रस्ट्रेट हो तो उस पर गुस्सा होने के बजाय उसे संभालें. छोटीछोटी सरप्राइज दें. जैसा पहले बताया कि संबंध भी हरेभरे पेड़ की तरह है. इसे टेकेन फार ग्रांटेड लेने के बजाय इसका जतन करना जरूरी है.

प्यार पर पहरा क्यों?

दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में रहने वाले प्रतीक (29) ने जब अपने घर  में सिया (25) के बारे में बताया तो मानो घर पर पहाड़ टूट पड़ा हो. सिया के बारे में सुनते ही प्रतीक के घरवाले खुद को दोतरफा चोट खाया महसूस करने लगे. सिया उन के अपने राज्य उत्तराखंड से नहीं थी, वह यूपी से तअल्लुक रखती थी. बड़ी बात यह कि वह जाति से भी अलग थी.

दरअसल, प्रतीक और सिया काफी समय से एकदूसरे से प्रेम कर रहे थे. साथ समय बिताते हुए दोनों के बीच आपसी अंडरस्टैंडिंग काफी अच्छी हो गई थी. दोनों ने शादी करने का फैसला किया. लेकिन उन दोनों के प्रेम संबंध और शादी के बंधन के बीच उन की जाति आड़े आ रही थी. जहां प्रतीक ऊंची जाति था वहीं सिया कथित नीची जाति की थी.

प्रतीक के घर में काफी हंगामा बरपा. शहरी रहनसहन होने के बावजूद जाति की खनक परिवार के कामों में शोर मचा रही थी. यह वही खनक थी, जिस में खुद की जातीय श्रेष्ठता का झठा गौरव ऊंचनीच के भेदभाव की नींव को सदियों से मजबूत कर रहा है. प्रतीक के घर में शादी के लिए नानुकुर हुई. ऐसे में सगेसंबंधी कहां पीछे रहने वाले थे. उन्होंने तो खासकर ताने मारने ही थे.

बात परिवार की इज्जत पर आ गई. लेदे कर परिवार की सहमति बनी कि यह शादी हरगिज नहीं होनी चाहिए. बारबार प्रतीक के समझने के बाद भी घर वाले नहीं माने तो अंत में दोनों ने सहमति बनाई और कोर्ट मैरिज कर ली.

फिलहाल वे परिवार से अलग अच्छी जिंदगी जी रहे हैं. लेकिन उम्मीद इसी बात की करते हैं कि एक दिन प्रतीक के मातापिता जरूर सिया को बहू के रूप में स्वीकार लेंगे.

जाति ने न जाने कितने रिश्तों की भेंट चढ़ा दी

यह तो शहरी मामला रहा जहां प्रतीक और सिया ने कानून का सहारा ले कर शादी रचाई और खुद की इच्छा का जीवनसाथी चुना.

लेकिन क्या भारत में ऐसा हर जगह हो पाना आज भी संभव है? अगर बात गांवदेहातों की हो तो वहां ऐसा करना तो दूर, सोचना भी पाप माना जाता है. यदि ऐसा कोई मामला सामने आ जाए तो अगले दिन ‘ओनर किलिंग’ की खबर देश की शोभा बढ़ाने में चार चांद लगाने को तैयार रहती है.

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भारत में जाति व्यवस्था सदियों से अस्तित्व में है, जो न सिर्फ समाज में घृणा फैलाती रही है, बल्कि कई लोगों के मौत का भी कारण बनी है. ऐसे में जातीय शुद्धता के चलते अंतर्जातीय प्रेमी युगलों/विवाहितों को समाज द्वारा खास टारगेट किया जाता रहा है.

शर्मसार कर देने वाली घटनाएं

अक्तूबर, 2020 में कर्नाटका के रामनगरा जिला (मगदी तुलक) में ओनर किलिंग की घटना घटी. बकौल पुलिस, एक पिता ने अपनी बेटी को इसी के चलते मार दिया कि उस की बेटी का किसी गैरजातीय लड़के के साथ प्रेम संबंध चल रहा था और दोनों शादी करने वाले थे. हैरानी की बात यह कि गांव वाले घटना की हकीकत जानने के बावजूद पुलिस के आगे मूक बने रहे.

जाहिर है इस में उन की भी सामाजिक स्वीकृति रही. यही कारण है कि बहुत सी ऐसी घटनाएं सामने आ भी नहीं पातीं. बहुत बार यदि प्रेमी युगल के परिवार बच्चों की खुशी के लिए शादी करने को तैयार हो भी जाएं तो गांव का खाप उन्हें ऐसा करने से रोक देता है और दंडित करता है.

एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014-17 के बीच भारत में कुल 300 ओनर किलिंग की घटनाएं सामने आईं. देश में अधिकाधिक ओनर किलिंग की शर्मशार कर देने वाली घटनाएं उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से अधिक देखने को मिलती हैं.

गोत्र एक होना भी समस्या

भारत में 2 प्रेमी जोड़ों की स्वेच्छा से शादी में रुकावट डालने का समाज के पास सिर्फ यही तंत्र नहीं है. ऐसा ही एक मामला अमित और प्रिया के साथ हुआ. यहां समस्या उन की जाति नहीं, बल्कि उन का एक गोत्र होना था. हिंदू धर्म में 3 गोत्र (खुद का, मां का और दादी व नानी का) में शादी करने को गलत माना जाता है.

आमतौर पर माना जाता है कि एक गोत्र होने पर गुणसूत्र एक से हो जाते हैं, फिर आगे समस्याएं पैदा होने जाती हैं. लेकिन अमित के लिए प्रिया से प्यार न करने की यह दलील नाकाफी थी. प्रिया, अमित के ननिहाल गांव से थी, जहां अमित का अकसर आनाजाना रहता था. जाहिर है जहां उठनाबैठना व बातचीत का सिलसिला चलता है वहां आपसी समझदारी भी बनने लगती है.

यही कारण है कि अमित और प्रिया को आपस में प्रेम हुआ. वे एकदूसरे के करीब आए और शादी का फैसला कर लिया. बात घर में पता चली तो इस रिश्ते का पुरजोर विरोध हुआ. उन के घर वालों ने एक गोत्र होने की अड़चन खड़ी कर दी और एकदूसरे से न मिलने का फरमान जारी कर दिया.

यहां बात गांव की थी, स्थानीय समाज भी उन दोनों के खिलाफ खड़ा हो गया, जिस का अंत यह हुआ कि जोरजबरन आननफानन में प्रिया की शादी ऐसे व्यक्ति से कर दी गई जो उस के लिए बिलकुल अजनबी था, जिस के प्रति उस की चाहत शून्य थी.

भाषा और संस्कृति का झमेला

भारत में ऐसे कई मामले सामने आते हैं जहां प्रेमी युगलों को सामाजिक दबाव के चलते अपनी इच्छाओं की आहुति देनी पड़ती है. यह न सिर्फ जाति या गोत्र के चलते होता है, बल्कि ऐसे ही कुछ मामले तब भी देखने को मिलते हैं जब 2 परिवारों के रहनसहन, भाषा और संस्कृति में अंतर होता है.

यह विडंबना है कि भारत में शादी 2 व्यक्तियों का आपसी मसला नहीं, बल्कि 2 परिवारों और उन के सगेसंबंधियों का आपसी मसला बन जाता है.

यहां राज्यों के भीतर ही भाषा और संस्कृति में कई तरह की विविधताएं देखने को मिल जाती हैं तो फिर दूसरे राज्य की विविधता की तो बात ही अलग है. यही कारण है कि जब हिमाचल प्रदेश के विक्रम ने अपनी प्रेमिका आभा के बारे में घर वालों को बताया तो परिवार सन्न रह गया. दरअसल, 8 साल पहले आभा और विक्रम की मुलाकात दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस राम लाल कालेज में साथ पढ़ते हुए हुई थी.

दोनों का आपस में खास लगाव हो गया, तो उसी समय दोनों ने अंत तक साथ रहने का विचार भी मजबूत कर लिया. इस बीच दोनों ने खुद के कैरियर को मजबूत किया, जिस के चलते उन्होंने परिवार से बात करने की हिम्मत जुटाई.

भाषा और संस्कृति के नाम पर

विक्रम के घर वालों का फिलहाल यही मानना है कि दोनों परिवारों की भाषा, संस्कृति और रहनसहन में काफी  अंतर है वे आपस में मेल नहीं खा पाएंगे. ऊपर से डर है कि बंगाल के लोग चालाक होते हैं. अत: आभा विक्रम को अपने वश में कर लेगी.

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जाहिर सी बात है जब दो वयस्क लोग आपस में शादी के लिए पूरी तरह तैयार हैं तो उस स्थिति में बाकी लोगों को शादी कराने की पौसिब्लिटी की तरफ बढ़ना चाहिए न कि रोकने की. ऐसे में उचित यही होता कि विक्रम के मातापिता देखें कि विक्रम को आभा के साथ जीवन बिताना है.

ऐसे में उस की पसंद प्राथमिक होनी चाहिए. दूसरा, अगर संस्कृति आपस में मेल नहीं खा रही तो यह समस्या आभा के लिए ज्यादा होनी चाहिए, जिसे अपना घर छोड़ कर ससुराल आना है. ऐसे में अगर वह तैयार है तो उन्हें भी एक कदम आगे बढ़ाना चाहिए. बाकी किसी के गलत और सही को ऐसे जज तो बिलकुल भी नहीं किया जा सकता.

अंतरधार्मिक विवाह बड़ा बवाल

मौजूदा समय में जिस तरह से सामाजिक और राजनीतिक हवा बह रही है वह प्रेम विवाहों पर तरहतरह से रोड़े अटकाए जाने को ले कर है, किंतु इस हवा के सीधे रडार पर वे जोड़े आ रहे हैं, जो धर्म के इतर जा कर अपने प्यार की बुनियाद मजबूत कर रहे थे.

भारत में अंतरधार्मिक विवाहों को समाज द्वारा सब से ज्यादा हिराकत भरी नजरों से देखा जाता रहा है. परिवार, रिश्तेदार और समाज द्वारा अंतरधार्मिक विवाहों का खुल कर विरोध किया जाता रहा है. ऐसे में इन प्रेम विवाहों को जहां सरकार को प्रोत्साहन देने की जरूरत थी व हर संभव मदद करने की जरूरत थी, वहां खुद भाजपा शासित सरकारें तथाकथित धर्मांतरण विरोधी कानून के नाम पर इन प्रेम विवाहों पर अड़चनें डालने में जुट गई हैं, जिस के बाद कई शादीशुदा जोड़ों को इस कानून के नाम पर उत्पीडि़त किया जा रहा है.

स्थिति यह है कि ऐसे प्रेमी व विवाहित जोड़ों को असामाजिक तत्त्वों द्वारा ढूंढ़ढूंढ़ कर पीटा जा रहा है. इस में संविधान की कसम खाने वाले पुलिस भी पीछे नहीं है. वह लाठी के बल पर इन जोड़ों को अलग व गिरफ्तार कर रही है. उन के ऊपर झठे मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं, जबरन विवाहित महिला को उस के पिता की कस्टडी में भेजा जा रहा है.

ऐसे में वयस्क प्रेमी युगलों के पास न सिर्फ घरपरिवार, सगेसंबंधी और समाज को मनाने का चैलेंज है बल्कि इस के बाद सरकार के सामने भी यह साबित करना चैलेंज हो गया है कि प्यार और शादी उन की खुद की मरजी से हुई है.

विवादित कानून की आड़ में

विवादित धर्मांतरण निषेध कानून के यूपी में पास होने के बाद से ही इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष कई अंतरधार्मिक विवाह के मामले आने लगे हैं. ऐसा ही हालिया मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में सामने आया. झठे आरोपों में फंसाए बालिग सिखा (21) और सलमान को पहले परिवार, नातेरिश्तेदारों और समाज से लड़ना पड़ा. फिर जब वे शादी करने में कामयाब हुए तो अब उन्हें सरकार से भी संघर्ष करना पड़ रहा है.

गत 18 दिसंबर को जस्टिस पंकज नकवी और विवेक अग्रवाल की बैंच ने कहा, ‘‘शिखा अपने पति के साथ रहना चाहती है और वह आजाद है कि अपनी इच्छानुसार अपना जीवन जीए.’’

वहीं इस से पहले 7 दिसंबर को कोर्ट ने सिखा की जबरन पिता की कस्टडी में भेजे जाने की सिफारिश पर सीडब्ल्यूसी को कहा था कि बिना उस की इच्छा के सीडब्ल्यूसी द्वारा इसा किया गया.

ये चीजें दिखाती हैं कि किस प्रकार से विवादित कानून की आड़ में अंतरधार्मिक वैवाहिक जोड़ों को परेशान किया जा रहा है. इस से पहले कोलकाता हाई कोर्ट ने भी दोहराया, ‘‘अगर कोई वयस्क अपनी पसंद के अनुसार शादी करता है और धर्मपरिवर्तन कर अपने पिता के घर नहीं जाना चाहता है, तो मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता है.’’

अब स्थिति यह है कि इन सब फसादों के चलते कई प्रेमी जोड़े डर रहे हैं कि वे शादी के लिए आगे बढ़ें या नहीं.

कानून क्या कहता है

भारत में वयस्कों की शादी करने की न्यूनतम उम्र पुरुष की 21 और महिला की 18 साल है. ऐसे में दोनों स्वतंत्र हैं कि अपनी मरजी से जिस से चाहे शादी कर सकते हैं. भारत में अधिकतर शादियां अलगअलग धार्मिक कानूनों और ‘पर्सनल लौ’ बोर्ड के तहत होती हैं. इस के लिए शर्त यह कि दोनों का उसी धर्म का होना जरूरी है.

‘नैशनल कौंसिल औफ एप्लाइड इकनौमिक रिसर्च’ (एनसीएईआर) द्वारा 2014 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 5% ही अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाह होते हैं और 95% अपनी जाति/समुदाय के भीतर होते हैं.

हिंदू विवाह अधिनियम-1955, में यह प्रावधान है कि हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध आपस में शादी कर सकते हैं. कुछ इसी प्रकार मुसलिम पर्सनल लौ बोर्ड-1937, भारतीय इसाई विवाह अधिनियम-1872, पारसी विवाह और निषेध अधिनियम-1936 है, जहां एक ही धर्म के लोग आपस में शादी कर सकते हैं. ऐसे में अगर किसी गैरधार्मिक व्यक्ति को इन नियमकानूनों के तहत शादी करनी हो तो उसे अपना धर्म बदलना ही पड़ता है.

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ऐसे में भारत सरकार साल 1954 में विशेष विवाह अधिनियम-1954 ले कर आई ताकि किसी भी पार्टी को धर्म बदलने की जरूरत न पड़े. इस अधिनियम के तहत दोनों में से कोई भी पार्टी बिना धर्म परिवर्तन के एक वैध शादी कर सकती है. साफ है कि यह अधिनियम अनुच्छेद 21 के जीवन जीने के अधिकार के तहत अपना जीवनसाथी स्वयं चुनने की स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है.

कानूनी खामियां

किंतु उस के बावजूद इस कानून की कुछ खामियां रही हैं, जिस के चलते इस प्रक्रिया से प्रेमी जोड़े को शादी करना पेचीदा महसूस होने लगता है. जाहिर है, इस में घरपरिवार की सहमति हो तब तो ठीक है (अलबता बजरंग दल या युवावाहिनी होहल्ला न करे तो), लेकिन अगर वे असहमत हैं और नोटिस लगने के 30 दिन के भीतर औब्जैक्ट करते हैं तो शादी में रुकावट पैदा की जा सकता है.

यही कारण है कि इन पेचीदगियों से बचने के लिए प्रेमी जोड़ा धार्मिक कानूनों में सरल प्रक्रिया के चलते धर्म परिवर्तन के लिए भी तैयार हो जाता है. ऐसे में धर्म प्रेमी युगलों के लिए बहुत बड़ा मसला है भी नहीं, जितना हौआ कट्टरपंथी लगातार खड़ा कर रहे हैं.

अब मुख्य मामला यह कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 संविधान के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है, जिस में यह स्पष्ट कहा गया है कि भारत में कानून द्वारा स्थापित किसी भी प्रक्रिया के अलावा कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उस के जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता है.

इस का अर्थ वह चाहे जिस से प्रेम करे, चाहे जिसे माने यह उस की निजी स्वतंत्रता और हक है. ऐसे में इन दिनों इन्हीं वाक्यों को बारबार इलाहाबाद हाई कोर्ट सामने आ रहे फर्जी मुकदमों के खिलाफ कहते भी आ रहा है. फिर सवाल यह कि जब संविधान हामी भरता है तो ऐसी शादियों से समस्या किसे और क्यों है?

मिक्स्ड कल्चर का खौफ

दुनिया के किसी भी कोने में समाज को अगर किसी चीज का डर सताता है तो वह कल्चर के मिक्स होने का है. हजारों सालों से लोगों ने खुद को मानसिक दासता की बेडि़यों में बांध कर डब्बों में देखने की आदत डाल ली है. ये डब्बे धर्म के हैं, जाति के हैं, अमीरीगरीबी के हैं, नस्ल के हैं. यही कारण है कि थोड़े से सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव से भी यह समाज विचलित हो उठता है. ऐसे ही इस मानसिक दासता को चोट पहुंचाने का तीखा काम इसी प्रकार के प्रेम विवाह करते हैं, जहां लोगों के हजारों सालों से जमे अंधविश्वासों पर गहरी चोट पड़ती है. जाति और धर्म के बाहर जा कर शादी करना रूढि़वाद पर तीखा प्रहार करने के समान है. सिर्फ एक मामला और सबकुछ कुहरे की तरह साफ होने जैसा है. अंतरजातीय और अंतरधार्मिक शादियों के बाद होने वाले बच्चे मुसलमान, हिंदू, ब्राह्मण, हरिजन नहीं बनते बल्कि वे इंसान बनते हैं.

यही चीज समाज के अव्वल दुश्मन, रूढि़वादी और धार्मिक कट्टरपंथी नहीं होने देना चाहते. उन्हें डर होता है अपनी विरासत चले जाने का. यह डर होता है कि कहीं उन के खिलाफ बगावत न उठ खड़ी हो जाए. वे ताकत को अपने हाथों में ही केंद्रित रखना चाहते हैं. लोगों को बंटा हुआ देखना ही उन के राजपाट को मजबूत करता है. उन की तमाम राजनीतिक शुरुआत और अंत एकदूसरे की विभिन्नता को कुरेदने से होती है. यह लोग जानते हैं कि इस प्रकार की शादियों से लोग धार्मिक अंधविश्वासों के बनाए भ्रम को मानने से इनकार करेंगे. मिक्स्ड कल्चर से पैदा हुए बच्चे कभी इन के धार्मिक और जातीय उकसावे में नहीं आएंगे. यही कारण है कि सत्ता में बैठे लोगों की कोशिश यही रहती है कि जितना हो सके इन की भिन्नता को और गाढ़ा किया जाए.

आमतौर पर मिक्स्ड कल्चर के लोग समानता और मानव अधिकारों के पक्ष में अधिक उदार होते हैं. ऐसे में वे धर्म के पाखंडों के फरेब में आसानी से नहीं फंसते हैं. उन का ध्येय धर्म की सिरखपाई से अधिक कर्म की कमाई होता है, जिस कारण इन कट्टरपंथियों को इस प्रकार के लोग खासा रास नहीं आते हैं, इसलिए इन की मूल कोशिश यही रहती है कि ऐसी स्थिति बनने से पहले इन पर रोक लगा दी जाए. किंतु प्रेम को कोई रोक पाया है भला. इस तरह के लोग अपने घरपरिवारों में ही इसे रोक न सके तो समाज को क्या रोकेंगे.

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