संस्थापक, आशिमा एस कुटोर
‘आशिमा एस कुटोर’ की संस्थापिका और फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा 5 साल से अपना फैशन पोर्टल चला रही हैं. वे 7 साल की उम्र से ही पोर्ट्रेट बनाती और पेंटिंग करती आ रही हैं. कला में दिलचस्पी के चलते कुछ ही सालों में फैशन इंडस्ट्री में अपनी अलग जगह बना ली. आशिमा ने कई अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंड व अंतर्राष्ट्रीय आर्ट गैलरीज के साथ भी काम किया है. उन्हें लिखने का भी शौक है. वे ‘एशी माइंड सोल’ नाम से वैबसाइट चलाती हैं. उन्हें 2018 में ‘वूमन ऐक्सीलैंस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया. 2015 में उन्होंने एलएसीएमए (लैक्मा) लौस एंजिल्स में विश्व में 19वां पद प्राप्त किया. उन्हें 2012 में पर्थ अंतर्राष्ट्रीय आर्ट फैस्टिवल में बैस्ट अंतर्राष्ट्रीय टेलैंट से सम्मानित किया गया. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के अंश:
आप की नजर में फैशन क्या है?
मेरे लिए फैशन न केवल ट्रैंड्स को फौलो करना है, बल्कि व्यक्ति द्वारा अपनी पसंद के अनुसार आरामदायक ट्रैंड अपनाना भी माने रखता है. फैशन से व्यक्ति को अलग पहचान मिलती है.
फैशन को आत्मविश्वास से कैसे जोड़ा जा सकता है?
फैशन सिर्फ और सिर्फ आत्मविश्वास के बारे में है. आत्मविश्वास के बिना कोई भी पोशाक अच्छी नहीं दिखेगी, क्योंकि अगर पहनने वाला आत्मविश्वास के साथ सामने नहीं आ सकता तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि कपड़े कितने अच्छे हों.
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भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या कहेंगी?
मुझे यह बात बहुत बुरी लगती है कि आज भी महिलाओं को वस्तु माना जाता है, जबकि लोगों को महिलाओं का सम्मान करना चाहिए. उन का समाज में बहुत बड़ा योगदान रहा है. आज पुरुष और महिलाएं दोनों मिल कर काम कर रहे हैं. महिलाएं अपने काम और प्रोफैशनल जीवन के साथसाथ घर भी संभालती हैं. वे परिवार बनाती हैं और पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर बाहरी दुनिया में भी नाम कमाती हैं, पुरुषों को इस बात का एहसास होना चाहिए.
बतौर स्त्री आगे बढ़ने के क्रम में क्या कभी असुरक्षा का एहसास हुआ?
एक महिला होने के नाते मैं ने हमेशा महसूस किया कि मुझे काम में हमेशा पुरुषों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करना पड़ता है, क्योंकि महिलाओं के लिए खुद का नाम बनाना हमेशा कठिन होता है. लेकिन सफलता की राह हमेशा उन महिलाओं के लिए आसान होती है, जो चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहती हैं और कड़ी मेहनत करती हैं. एक समय के बाद मेरे मन से भी असुरक्षा के भाव दूर हो गए, क्योंकि मुझे पता था कि मैं अपने प्रयासों को सही दिशा में लगा रही हूं.
क्या आज भी महिलाओं के साथ अत्याचार और भेदभाव होता है?
बिलकुल. खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में देखा गया है कि महिलाओं को अभी भी समान वेतन, सुरक्षित वातावरण, उचित स्वच्छता नहीं मिलती है. उन की अधिकांश बुनियादी जरूरतें बड़ी कठिनाई से पूरी होती हैं. यह एक सचाई है कि भारत की ग्रामीण महिलाएं अभी भी बहुत कुछ झेल रही हैं.
घर वालों की कितनी सपोर्ट मिलती है?
मेरे पिता डा. एम.सी. शर्मा, माता डा. शालिनी शर्मा और भाई मनीष शर्मा सभी मुझे हमेशा सपोर्ट देते हैं. उन्होंने हमेशा मेरी प्रतिभा और कड़ी मेहनत पर विश्वास किया है. उन के समर्थन और प्रोत्साहन के बिना मेरे लिए कैरियर में ऊंचाइयां छूना नामुमकिन था.
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ग्लास सीलिंग के बारे में आप की राय?
आज महिलाएं हर वह मुकाम हासिल कर रही हैं जहां वे जाना चाहती हैं. कड़ी मेहनत हमेशा रंग लाती है. सफर मुश्किल जरूर होता है, लेकिन नामुमकिन बिलकुल नहीं खासकर उन के लिए जो मेहनत करने से बिलकुल नहीं कतराते हैं. ग्लास सीलिंग आज भी बड़ी समस्या है, पर जो हर मुश्किल को झेल आगे बढ़े उसे कामयाबी जरूर हासिल होती है.