अवगुण चित न धरो: कैसा था आखिर मयंक का अंतर्मन

समुद्र के किनारे बैठ कर वह घंटों आकाश और सागर को निहारता रहता. मन के गलियारे में घुटन की आंधी सरसराती रहती. ऐसा बारबार क्यों होता है. वह चाहता तो नहीं है अपना नियंत्रण खोना पर जाने कौन से पल उस की यादों से बाहर निकल कर चुपके- चुपके मस्तिष्क की संकरी गली में मचलने लगते हैं. कदाचित इसीलिए उस से वह सब हो जाता है जो होना नहीं चाहिए. सुबह से 5 बार उसे फोन कर चुका है पर फौरन काट देती है. 2 बार गेट तक गया पर गेटकीपर ने कहा कि छोटी मेम साहिबा ने मना किया है गेट खोलने को.

वह हताश हो समुद्र के किनारे चल पड़ा था. अपनी मंगेतर का ऐसा व्यवहार उसे तोड़ रहा था. घर पहुंच कर बड़बड़ाने लगा, ‘क्या समझती है अपनेआप को. जरा सी सुंदर है और बैंक में आफिसर बन गई है तो हवा में उड़ी जा रही है.’ मयंक के कारण ही अब उन का ऊंचे घराने से नाता जुड़ा था. जब विवाह तय हुआ था तब तो साक्षी ऐसी न थी. सीधीसादी सी हंसमुख साक्षी एकाएक इतनी बदल क्यों गई है?

मां ने मयंक की बड़बड़ाहट पर कुछ देर तो चुप्पी साधे रखी फिर उस के सामने चाय का प्याला रख कर कहा, ‘‘तुम हर बात को गलत ढंग से समझते हो.’’ ‘‘आप क्या कहना चाह रही हैं,’’ वह झुंझला उठा था.

मम्मी उस के माथे पर प्यार से हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘पिछले हफ्ते चिरंजीव के विवाह में तुम्हारे बुलाने पर साक्षी भी आई थी. जब तक वह तुम से चिपकी रही तुम बहुत खुश थे पर जैसे ही उस ने अपने कुछ दूसरे मित्रों से बात करना शुरू किया तुम उस पर फालतू में बिगड़ उठे. वह छोटी बच्ची नहीं है. तुम्हारा यह शक्की स्वभाव उसे दुखी कर गया होगा तभी वह बात नहीं कर रही है.’’ मयंक सोच में पड़ गया. क्या मम्मी ठीक कह रही हैं? क्या सचमुच मैं शक्की स्वभाव का हूं?

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दफ्तर से निकल कर साक्षी धीरेधीरे गाड़ी चला रही थी. फरवरी की शाम ठंडी हो चली थी. वह इधरउधर देखने लगी. उस का मन बहुत बेचैन था. शायद मयंक को याद कर रहा था. पापा ने कितने शौक से यह विवाह तय किया था. मयंक पढ़ालिखा नौजवान था. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पद पर था. कंपनी ने उसे रहने के लिए बड़ा फ्लैट, गाड़ी आदि की सुविधा दे रखी थी. बहुत खुश थी साक्षी. पर घड़ीघड़ी उस का चिड़चिड़ापन, शक्की स्वभाव उस के मन को बहुत उद्वेलित कर रहा था. मयंक के अलगअलग स्वभाव के रंगों में कैसे घुलेमिले वह. लाल बत्ती पर कार रोकी तो इधरउधर देखती आंखें एक जगह जा कर ठहर गईं. ठंडी हवा से सिकुड़ते हुए एक वृद्ध को मयंक अपना कोट उतार कर पहना रहा था.

कुछ देर अपलक साक्षी उधर ही देखती रही. फिर अचानक ही मुसकरा उठी. अब इसे देख कर कौन कहेगा कि यह कितना चिड़चिड़ा और शक्की इनसान है. इस का क्रोध जाने किधर गायब हो गया. वह कार सड़क के किनारे पार्क कर के धीरेधीरे वहां जा पहुंची. मयंक जाने को मुड़ा तो उस ने अपने सामने साक्षी को खड़ा मुसकराता पाया. इस समय साक्षी को उस पर क्रोध नहीं बल्कि मीठा सा प्यार आ रहा था. मयंक का हाथ पकड़ कर साक्षी बोली, ‘‘मैं ने सोचा फोन पर क्यों मनाना- रूठना, आमनेसामने ही दोनों काम कर डालते हैं.’’

पहले मनाने का कार्य मयंक कर रहा था पर अब साक्षी को देखते ही उस ने रूठने की ओढ़नी ओढ़ ली और बोला, ‘‘अभी से बातबेबात नाराज होने का इतना शौक है तो आगे क्या करोगी?’’ साक्षी मन को शांत रखते हुए बोली, ‘‘चलो, कहां ले जाना चाहते थे. 2 घंटे आप के साथ ही बिताने वाली हूं.’’

मयंक अकड़ कर चलते हुए अपनी कार तक पहुंचा और अंदर बैठ कर दरवाजा खोल साक्षी के आने की प्रतीक्षा करने लगा. साक्षी बगल में बैठते हुए बोली, ‘‘वापसी में आप को मुझे यहीं छोड़ना होगा क्योंकि अपनी गाड़ी मैं ने यहीं पार्क की है. ’’ कार चलाते हुए मयंक ने पूछा, ‘‘साक्षी, क्या तुम्हें लगता है कि मैं अच्छा इनसान नहीं हूं?’’

‘‘ऐसा तो मैं ने कभी नहीं कहा.’’ ‘‘पर तुम्हारी बेरुखी से मुझे ऐसा ही लगता है.’’

‘‘देखो मयंक,’’ साक्षी बोली, ‘‘हमें गलतफहमियों से दूर रहना चाहिए.’’ मयंक एक अस्पताल के सामने रुका तो साक्षी अचरज से उस के साथ चल दी. कुछ दूर जा कर पूछ बैठी, ‘‘क्या कोई अस्वस्थ है?’’

मयंक ने धीरे से कहा, ‘‘नहीं,’’ और वह सीधा अस्पताल के इंचार्ज डाक्टर के कमरे में पहुंच गया. उन्होंने देखते ही प्यार से उसे बैठने को कहा. लगा जैसे वह मयंक को भलीभांति पहचानते हैं. मयंक ने एक चेक जेब से निकाल कर डाक्टर के सामने रख दिया. ‘‘आप लोगों की यह सहृदयता हमारे मरीजों के बहुत से दुख दूर करती है,’’ डाक्टर ने मयंक से कहा, ‘‘आप को देख कर कुछ और लोग भी हमारी सहायता को आगे आए हैं. बहुत जल्द हम कैंसर पीडि़तों के लिए एक नया और सुविधाजनक वार्ड आरंभ करने जा रहे हैं.’’

मयंक ने चलने की आज्ञा ली और साक्षी को चलने का संकेत किया. कार में बैठ कर बोला, ‘‘तुम परेशान हो कि मैं यहां क्यों आता हूं.’’ ‘‘नहीं. एक नेक कार्य के लिए आते हो यह तुरंत समझ में आ गया,’’ साक्षी मुसकरा दी.

मयंक चुपचाप गाड़ी चलातेचलाते अचानक बोल पड़ा, ‘‘साक्षी, क्या तुम्हें मैं शक्की स्वभाव का लगता हूं?’’ साक्षी चौंक कर सोच में पड़ गई कि यह व्यक्ति एक ही समय में विचारों के कितने गलियारे पार कर लेता है. पर प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘क्या मैं ने कभी कहा?’’

‘‘यही तो बुरी बात है. कहती नहीं हो…बस, नाराज हो कर बैठ जाती हो.’’ ‘‘ठीक है. अब नाराज होने से पहले तुम्हें बता दिया करूंगी.’’

‘‘मजाक कर रही हो.’’ ‘‘नहीं.’’

‘‘मुझे तुम्हारे रूठने से बहुत कष्ट होता है.’’ साक्षी को उस की गाड़ी तक छोड़ कर मयंक बोला, ‘‘क्लब जा रहा हूं, चलोगी?’’

‘‘आज नहीं, फिर कभी,’’ साक्षी बाय कर के चल दी. विवाह की तारीख तय हो चुकी थी. दोनों तरफ विवाह की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. एक दिन साक्षी की सास का फोन आया कि नलिनी यानी साक्षी की होने वाली ननद ने अपने घर पर पार्टी रखी है और उसे भी वहां आना है. यह भी कहा कि मयंक उसे लेने आ जाएगा. उस दिन नलिनी के पति विराट की वर्षगांठ थी.

साक्षी खूब जतन से तैयार हुई. ननद की ससुराल जाना था अत: सजधज कर तो जाना ही था. मयंक ने देखा तो खुश हो कर बोला, ‘‘आज तो बिजली गिरा रही हो जानम.’’ पार्टी आरंभ हुई तो साक्षी को नलिनी ने सब से मिलवाया. बहुत से लोग उस की शालीनता और सौंदर्य से प्रभावित थे. विराट के एक मित्र ने उस से कहा, ‘‘बहुत अच्छी बहू ला रहे हो अपने साले की.’’

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‘‘मेरा साला भी तो कुछ कम नहीं है,’’ विराट ने हंस कर कहा. मयंक ने दूर से सुना और मुसकरा दिया. मां ने कहा था कि पार्टी में कोई तमाशा न करना और उन की यह नसीहत उसे याद थी. इसलिए भी मयंक की कोशिश थी कि अधिक से अधिक वह साक्षी के निकट रहे. डांस फ्लोर पर जैसे ही लोग थिरकने लगे तो मयंक ने झट से साक्षी को थाम लिया. साक्षी भी प्रसन्न थी. काफी समय से मयंक उसे खुश रखने के लिए कुछ न कुछ नया करता रहा था. कभी उपहार ला कर, कभी सिनेमा या क्लब ले जा कर. एक दिन साक्षी ने अपनी होने वाली सासू मां से कहा, ‘‘मम्मीजी, मयंक बचपन से ही ऐसे हैं क्या? एकदम मूडी?’’

मम्मी ने सुनते ही एक गहरी सांस भरी थी. कुछ पल अतीत में डूबतेउतराते व्यतीत कर दिए फिर बोलीं, ‘‘यह हमेशा से ऐसा नहीं था.’’ ‘‘फिर?’’

‘‘क्या बताऊं साक्षी…सब को अपना मानने व प्यार करने के स्वभाव ने इसे ऐसा बना दिया.’’ साक्षी ने उत्सुकता से सासू मां को देखा…वह धीरेधीरे अतीत में पूरी तरह डूब गईं.

पहले वे लोग इतने बड़े घर व इतनी हाई सोसायटी वाली कालोनी में नहीं रहते थे. मयंक को शानदार घर मिला तो वे यहां आए.

उस कालोनी में हर प्रकार के लोग थे और आपस में सभी का बहुत गहरा प्यार था. मयंक बंगाली बाबू मकरंद राय के यहां बहुत खेलता था. उन का बेटा पवन और बेटी वैदेही पढ़ते भी इस के साथ ही थे. वैदेही कत्थक सीखा करती थी. कभीकभी मयंक भी उस का नृत्य देखता और खुश होता रहता. उस दिन राय साहब ने वैदेही की वर्षगांठ की एक छोटी सी पार्टी रखी थी. आम घरेलू पार्टी जैसी थी. महल्ले की औरतों ने मिलजुल कर कुछ न कुछ बनाया था और बच्चों ने गुब्बारे टांग दिए थे. इतने में ही वहां खुशी की मधुर बयार फैल गई थी.

राय साहब बंगाली गीत गाने लगे तो माहौल बहुत मोहक हो गया. तभी किसी ने कहा, ‘वैदेही का डांस तो होना ही चाहिए. आज उस की वर्षगांठ है.’ सभी ने हां कही तो वैदेही भी तैयार हो गई. वह तुरंत चूड़ीदार पायजामा और फ्राक पहन कर आ गई. उसे देखते ही उस के चाचा के बच्चे मुंह पर हाथ रख कर हंसने लगे. मयंक बोला, ‘क्यों हंस रहे हो?’

‘कैसी दिख रही है बड़ी दीदी.’ ‘इतनी प्यारी तो लग रही है,’ मयंक ने खुश हो कर कहा.

नृत्य आरंभ हुआ तो उस के बालों में गुंथे गजरे से फूल टूट कर बिखरने लगे. वे दोनों बच्चे फिर ताली बजाने लगे. ‘अभी वैदेही दीदी भी गिरेंगी.’

मयंक को उन का मजाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा. इसीलिए वह दोनों बच्चों को बराबर चुप रहने को कह रहा था. अचानक वैदेही सचमुच फिसल कर गिर गई और उस के माथे पर चोट लग गई जिस में से खून बहने लगा था. मयंक को पता नहीं क्या सूझा कि उठ कर उन दोनों बच्चों को पीट दिया.

‘तुम्हारे हंसने से वह गिर गई और उसे चोट लग गई.’ मयंक का यह कोहराम शायद कुछ लोगों को पसंद नहीं आया… खासकर वैदेही को. वह संभल कर उठी और मयंक को चांटा मार दिया. साथ में यह भी बोली, ‘क्यों मारा हमारे भाई को.’

सबकुछ इतनी तीव्रता से हुआ था कि सभी अचंभित से थे. वातावरण को शीघ्र संभालना आवश्यक था. अत: मैं ने ही मयंक से कहा, ‘माफी मांगो.’ मेरे कई बार कहने पर उस ने बुझे मन से माफी मांग ली पर शीघ्र ही वह चुपके से घर चला गया. हम बड़ों ने स्थिति संभाली तो पार्टी पूरी हो गई. उस छोटी सी घटना ने मयंक को बहुत बदल दिया था पर वैदेही ने मित्रता को रिश्तेदारी के सामने नकार दिया था. शायद तब से ही मयंक का दृष्टिकोण भरोसे को ले कर टूट गया और वह शक्की…

‘‘मैं समझ गई, मम्मीजी,’’ साक्षी के बीच में बोलते ही मम्मी अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गईं. विराट हमेशा बहुत बड़े पैमाने पर पार्टी देता था. उस दिन भी उस की काकटेल पार्टी जोरशोर से चल रही थी. साक्षी उस दिन पूरी तरह से सतर्क थी कि मयंक का मन किसी भी कारण से न दुखे.

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जैसे ही शराब का दौर चला वह पार्टी से हट कर एक कोने में चली गई ताकि कोई उसे मजबूर न करे एक पैग लेने को. मयंक वहीं पहुंच गया और बोला, ‘‘क्या हुआ? यहां क्यों आ गईं?’’ ‘‘कुछ नहीं, मयंक, शराब से मुझे घबराहट हो रही है.’’

‘‘ठीक है. कुछ देर आराम कर लो,’’ कह कर वह प्रसन्नचित्त पार्टी में सम्मिलित हो गया. विराट के आफिस की एक महिला कर्मचारी के साथ वह फ्लोर पर नृत्य करने लगा. उस कर्मचारी का पति शराब का गिलास थाम कर साक्षी की बगल में आ बैठा और बोला, ‘‘आप डांस नहीं करतीं?’’

‘‘मुझे इस का खास शौक नहीं है,’’ साक्षी ने जवाब में कहा. ‘‘मेरी पत्नी तो ऐसी पार्टीज की बहुत शौकीन है. देखिए, कैसे वह मयंकजी के साथ डांस कर रही है.’’

प्रतिउत्तर में साक्षी केवल मुसकरा दी. ‘‘आप ने कुछ लिया नहीं. यह गिलास मैं आप के लिए ही लाया हूं.’’

‘‘अगर यह सब मुझे पसंद होता तो मयंक सब से पहले मेरा गिलास ले आते,’’ साक्षी को कुछ गुस्सा सा आने लगा. ‘‘लेकिन भाभीजी, यह तो काकटेल पार्टी का चलन है. यहां आ कर आप इन चीजों से बच नहीं सकतीं,’’ वह जबरन साक्षी को शराब पिलाने की कोशिश करने लगा.

साक्षी निरंतर बच रही थी. मयंक ने दूर से देख लिया और पलक झपकते ही उस व्यक्ति के गाल पर एक झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया. ‘‘अरे, वाह, ऐसा क्या किया मैं ने. अकेली बैठी थीं आप की मंगेतर तो उन्हें कंपनी दे रहा था.’’

‘‘अगर उसे साथ चाहिए होगा तो वह स्वयं मेरे पास आ जाएगी,’’ मयंक क्रोध से बोला. ‘‘वाह साहब, खुद दूसरों की पत्नी के साथ डांस कर रहे हैं. मैं जरा पास में बैठ गया तो आप को इतना बुरा लग गया. कैसे दोगले इनसान हैं आप.’’

‘‘चुप रहिए श्रीमान,’’ अचानक साक्षी उठ कर चिल्ला पड़ी, ‘‘मेरे मयंक को मुसीबतों से मुझे बचाना अच्छी तरह आता है और अपनी पत्नी से मेरी तुलना करने की कोशिश भी मत करिएगा.’’ वह तुरंत हौल से बाहर निकल गई. पार्टी में सन्नाटा छा गया था.

मयंक भी स्तब्ध हो उठा था. धीरेधीरे उसे खोजते हुए बाहर गया तो साक्षी गाड़ी में बैठी उस की प्रतीक्षा कर रही थी. वह चुपचाप उस की बगल में बैठ गया तो साक्षी ने उस के कंधे पर सिर टिका दिया. उस की हिचकी ने अचानक मयंक को बहुत द्रवित कर दिया था. उस का सिर थपकते हुए बोला, ‘‘चलें.’’ साक्षी ने आंसू पोंछ अपनी गरदन हिला दी. कार स्टार्ट करते मयंक ने सोचा, ‘शुक्र है, साक्षी मुझे समझ गई है.’

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