बौलीवुड के कई सेलेब्स कास्टिंग काउच का दर्द झेल चुके हैं, जिस पर कई लोग अपने दर्द को बयां कर चुके हैं. वहीं अब इसमें आयुष्मान खुराना का भी नाम शामिल हो गया है.
फिल्म ‘विक्की डोनर’ से बौलीवुड में एक्टिंग करियर की शुरुआत करने वाले आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) आज “बॉलीवुड की हिट मशीन” के नाम से जाना जाता है. बॉक्स ऑफिस पर लगातार 6 सुपरहिट फिल्में हिट देने वाले आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) के साथ हर कोई काम करना चाहता है, लेकिन अब उन्होंने कास्टिंग काउच को लेकर बड़ा खुलासा किया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…
आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) ने बताया है कि, एक वक्त ऐसा भी था जब ए-ग्रेड की अदाकाराएं उनके साथ स्क्रीन स्पेस शेयर नहीं करना चाहती थीं. आयुष्मान खुराना ने बताया है कि, ‘एक कास्टिंग डायरेक्टर ने मुझसे कहा था. अगर आप मुझे अपना टूल दिखाएंगे तो मैं आपको मुख्य भूमिका दूंगा. मैंने उसे बताया कि मैं उस तरह का इंसान नहीं हूं और मैंने विनम्रता से उसके ऑफर को अस्वीकार कर दिया.’
बॉलीवुड में अपनी जर्नी के बारे में बात करते हुए आयुष्मान खुराना ने कहा, ‘शुरुआत में जब मैं ऑडिशन देने जाता था तो एक कमरे में एक ही कलाकार अपने हुनर का प्रदर्शन करता था लेकिन बाद में लोग बढ़ने लगे और एक कमरे में 50-50 लोग तक रहने लगे. जब मैं इसका विरोध करता था तो ऑडिशन लेने वाले मुझे वहां से जाने को कहते थे.’
‘अब मैं असफलता से निपटने के लिए अच्छी तरह से तैयार रहता हूं क्योंकि मैंने अपने शुरुआती दिनों में इस तरह की काफी चीजें देखी हैं. अब ऐसी चीजें मेरे साथ दोबारा होती हैं तो मैं इन्हें बेहतर तरीके से हैंडल कर सकता हूं. यहां हर शुक्रवार को नई चीजें देखने को मिलती हैं. मेरे खाते में पिछले 2-3 सालों से अच्छे शुक्रवार आ रहे हैं, जिसके लिए मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूं.’
बता दें, हाल ही में आयुष्मान खुराना की फिल्म शुभ मंगल ज्यादा सावधान रिलीज हुई थी, जिसमें वह गे के रोल में नजर आए थे. वहीं इस रोल में उनकी काफी तारीफ हुई थी.
ताहिरा कश्यप खुराना में एक नहीं बल्कि कई प्रतिभायें हैं, डायरेक्शन से लेकर लिखने के अलावा उन्होंने दर्शकों तक ऐसी कहानियां लायीं हैं जो न केवल हमें भावनात्मक रूप से छूती हैं, बल्कि एक बदलाव लाने में भी सफल रही हैं. ताहिरा कश्यप कोरोनोवायरस महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान कैसे रह रही हैं, इससे जुड़ी हर चीज से सभी को अपडेटेड रखती है. इस बार, वह हमें लॉकडाउन की दिलचस्प कहानियों से परिचित कराने के लिए पूरी तरह तैयार है, जो वर्तमान वास्तविक जीवन की स्थिति से प्रेरित हैं और इसमें उन्होंने अपनी कल्पना से ट्विस्ट दिया है| ये कहानियां लोगों के रोजमर्रा के जीवन से भावनाओं और क्षणों को दर्शाती हैं कि कैसे वो लॉकडाउन से प्रभावित होते हैं. इन कहानियों की वीडियो सीरीज़ बनने जा रही हैं जिसे वह अपने सोशल मीडिया पर शेयर करेंगी.
ताहिरा के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान स्थितियों को देखने के लिए दो तरीके हैं, पहला, या तो जो उपलब्ध है उसका लाभ उठाएं या फिर सिर्फ शिकायत करें. वह मानती हैं कि उन्होंने ये दोनों किये जिसके बाद उनके पास इन लॉकडाउन टेल्स का आइडिया आया.
इस बारे में बात करते हुए ताहिरा कश्यप खुराना ने एक बयान में कहा, “मैं रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी खास कहानियों को लोगों तक पहुंचाने के लिए वास्तव में उत्साहित हूं. ये मानवता के बारे में सरल कहानियां हैं लेकिन जटिल समय में हैं. मुझे लेखन पसंद है और सच कहूं तो, बिना किसी एजेंडे के ये कहानियाँ बस बहने लगीं. ये लॉकडाउन टेल्स हमारे जीवन से लिए गए एक क्षण या विचार मात्र हैं और कई बार, हमें बस उसे संजोने की जरूरत होती है. ”
सकारात्मकता फैलाने के लिए ताहिरा के इस कदम को लेकर हम काफी रोमांचित हैं, खास बात ये है कि उन्होंने इन दिलचस्प कहानियों को बुना है ताकि हम सभी का मनोरंजन कर सकें.
जब भी किसी अलग और दिलचस्प कहानी को सिल्वर स्क्रीन पर उतारने की बात होती हैं तो मेकर्स के दिमाग में सबसे पहले टैलेंटेड अभिनेता आयुष्मान खुराना का नाम आता है. इस प्रतिभाशाली अभिनेता ने सिल्वर स्क्रीन पर न सिर्फ मनोरंजक किरदार ही किए हैं, बल्कि ये कई ऐसी कहानियों का चेहरा भी बने हैं जिन्होंने समाज पर अपनी एक गहरी और अलग छाप छोड़ी है.
आयुष्मान ने आर्टिकल 15, जिसमें जाति के नाम किए गए अत्याचारों के बारे में बताया गया था जैसी फिल्मों में काम किया और अब वह जल्द ही मोस्ट अवेटेड फिल्म ‘शुभ मंगल ज़्यादा सावधान’ में दिखेंगे. इस फिल्म में समलैंगिकता को स्वीकार करने की बात की गई हैं. ये अभिनेता स्पष्ट रूप से नए दशक के मुख्य सिनेमा में एक अलग और मजबूत परिवर्तन लाया है.
जैसे की हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं, यह कहना बिलकुल सुरक्षित होगा कि ये अभिनेता मुख्य सिनेमा में बदलाव का एक एजेंट हैं और उनकी आगामी पिक्चर शुभ मंगल ज़्यादा सावधान भी कुछ इसी प्रकार है. यह समाज से जुड़े हुए एक महत्वपूर्ण विषय पर आधारित है, जहां परिवारों में समलैंगिकता को स्वीकार करने का एक बड़ा महत्व है.
आयुष्मान ने कहा, “मैं हमेशा उन विषयों पर काम करने की इच्छा रखता हूं जो कही न कही सामाजिक रूप से प्रासंगिक है और जो लोगो में हलचल पैदा कर उसके बारे में किसी तरह की चर्चा की एक शुरुआत करेंगे. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए इस प्रतिभाशाली अभिनेता ने कहा, “मैं समाज का एक जागरूक नागरिक हूं, मैंने कई ऐसे स्ट्रीट थिएटर्स में काम किया है, जिसमें हम समाज से जुड़े हुए मुद्दों को संपर्क में लाए हैं. मैं अब जिस तरह का सिनेमा कर रहा हूं वह मेरे थिएटर के दिनों को विस्तार से बयां करता हैं.”
इस प्रतिभाशाली अभिनता ने हाल ही में एक हाथ में भारत के झंडे के साथ फोटोशूट करवाया तो वही दूसरी तरफ एलजीबीटीक्यू को भी गौरव और सम्मान दिया. जैसा कि सब जानते हैं कि हम इस साल अपना 71 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं, ऐसे में इस अभिनेता ने इस तस्वीर के साथ एक बहुत ही प्रभावशाली मैसेज दिया, जो देश और गर्व समुदाय की समानता में विश्वास को दर्शाता है.
इस अभिनेता ने कहा, “जब समलैंगितकता और एलजीबीटीक्यू समुदाय के बारे बात होती हैं तो यह भारत को एक प्रगतिशील रूप को दर्शाता हैं. हमें भारतीय होने पर गर्व है. इसने धारा 377 के खिलाफ कानून पास किया और इससे अत्यधिक गर्व की नहीं हो सकता. ”
इस फिल्म के लेखक और निर्देशक हितेश केवल्य है. फिल्म को आनंद एल राय का कलर्स येलो प्रोडक्शन और भूषण कुमार का टी-सीरीज़ साथ में मिलकर प्रोड्यूस कर रहे हैं. यह फिल्म 21 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज़ हो रही हैं.
कलाकारःआयुश्मान खुराना, ईशा तलवार, सयानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा,नसर,अशीश वर्मा, जीशान अयूब खान व अन्य.
अवधिः दो घंटे 11 मिनट
संविधान के आर्टिकल 15 अर्थात अनुच्छेद 15 में डौ.बाबा साहेब आंबेडकर ने साफ साफ लिखा है कि राज्य,किसी नागरिक के विरूद्ध केवल धर्म,मूल वंश,जाति,लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के भी आधार पर विभेद नहीं करेगा.पर यह भेदभाव आज भी समाज में है.‘ एकता में ही शक्ति है’ इसे हम सभी मानते हैं. मगर धर्म ही नहीं जाति की बात आते ही हम सभी इसे भूल जाते हैं. यह कटु सत्य है. मगर फिल्मकार की इस फिल्म की कहानी 2019 की है,कम से कम 2019 में जाति व धर्म को लेकर उस कदर का विभाजन नही है, जिस हद तक का विभाजन फिल्मकार ने अपनी फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’में दिखाया है.
फिल्मकार अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’ की कहानी का ढांचा 1988 में प्रदर्शित हौलीवुड निर्देशक अलान पारकर निर्देशित अमरीकन अपराध प्रधान रोमांचक फिल्म ‘‘मिसीसिपी बर्निंग’’ के कथानक से प्रेरित नजर आता है. ‘‘मिसीसिपी बर्निंग’’ को उठाकर उसका भारतीय करण करते हुए उसमें बदायूं के गैंग रैप और उना सहित कुछ घटनाओं और गटर साफ करने वाले बाल्मिकी समाज की कथा को पिरोते हुए फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’ का निर्माण, लेखन व निर्देशन किया है. फिल्म ‘‘मिसीसिपी बर्निंग’’ की कहानी तीन (दो जेविश और एक ब्लैक) गायब पुरूषों से शुरू होती है, जिसमें से दो मारे जाते हैं और एक (ब्लैक) जंगल में छिपा रहा है. फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’ में तीन लड़कियां (दो चचेरी बहने और एक दलित नेता की प्रेमिका गौरा की बहन पूजा) गायब होती हैं, जिसमें से दो (चचेरी बहनों) की लाश पेड़ से लटकी मिलती है और तीसरी (पूजा) लड़की बाद में जंगल में छिपी मिलती है.
कहानीः
दिल्ली में शास्त्री से मतभेद के चलते आईपीएस अधिकारी अयान रंजन( आयुश्मान खुराना) को एडीशनल वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बनाकर लालगांव पुलिस स्टेशन भेज देते हैं. यूरोप से उच्च शिक्षा हासिल कर वापस लौटे अयान बहुत उत्साहित हैं, वह अपनी प्रेमिका अदिति (ईशा तलवार) से मोबाइल पर संदेश के माध्यम से संपर्क में रहते हैं. यहां पहुंचते हुए रास्ते में जो अनुभव होते हैं, उनके आधार पर वह अदिति को बता देते हैं कि यहां की दुनिया शहरी दुनिया से बहुत अलग है. लालगांव पहुंचकर सब कुछ समझ पाने के पहले ही अयान रंजन को खबर मिलती है कि चमड़ा फैक्टरी में काम करने वाली तीन दलित लड़कियां गायब हैं.पर इलाके के सीओ धर्म सिंह (मनोज पाहवा)इन लड़कियों की गुमशुदी की एफआर आई तक दर्ज नहीं करता. धर्म सिंह और जाटव (कुमुद मिश्रा), अयान रंजन को बताते हैं कि उनके यहां ऐसा ही होता है. लड़कियां व लड़के गायब होते है, फिर खुद ब खुद वापस आ जाते हैं. कई बार लड़कियों के माता पिता खुद ब खुद औनर किलिंग कर पेड़ से लटका देते हैं. दूसरे दिन एक पेड़ से दो दलित लड़कियों की लटकी हुई लाशें मिलती है. सीओ धर्मसिंह इसे औनर किंलिंग की कहानी बता देते हैं कि दोनो चचेरी बहनें थीं और दोनों के बीच समलैंगिक संबंध थे. इसी बात से नाराज होकर इन्हे इनके पिता ने मारकर पेड़ से लटका दिया. पूरा मामला जाति से जोड़ दिया जाता है.
मगर दलित लड़की गौरा (सयानी गुप्ता) व गांव के कुछ लोग अयान रंजन से मिलकर बताते हैं कि इन लड़कियों ने सड़क मरम्मत के काम को करने के लिए ठेकेदार से तीन रूपए बढ़ाने के लिए कहा था. ठेकेदार ने ऐसा नही किया,तो इन लड़कियों के साथ कुछ अन्य लड़कियां ने दूसरे गांव की चमड़े की फैक्टरी में काम करने लगी थी. यह बात ठेकेदार को पसंद नहीं आयी. इसके अलावा गौरा बताती है कि तीसरी गायब लड़की उसकी बहन पूजा है. अब अयान रंजन अपनी तरफ से पुलिस बल को पूजा की तलाश करने के लिए कह देते हैं. अयान रंजन को अहसास होता है कि उनके पुलिस विभाग के कुछ लोग ही गलत बात बयां कर रहे हैं. धर्म सिंह डौक्टर पर गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाने के लिए कहता है, जबकि हकीकत में गैंप रैप हुआ होता है. जब अयान रंजन खुद जांच में दिलचस्पी लेते हैं तो पता चलता है कि जातिवाद के नाम पर फैलायी गयी इस दल दल में कौन किस हद तक फंसा हुआ है.
इधर धर्म सिंह लगातार अपनी तरफ से अयान रंजन पर गैंगरैप के इस केस को औनर कीलिंग के नाम पर बंद करने के लिए दबाव डालता रहता है. पर अयान अपने तरीके से जांच करता रहता है. वह दलित नेता निषाद (जीशान अयूब खान) से भी मिलते हैं. बीच में हिंदू धर्म अनुयायी महंत का जिक्र होता है और महंत का दूसरे दलित नेता के साथ मिलकर निषाद के खिलाफ एकता रैली निकाली जाती है. आगजनी होती है.
उधर जब अयान की तरफ से ठेकेदार को गिरफ्तार करने की शुरूआत होती है, तो धर्म सिंह उस ठेकेदार को गोली मार देते हैं और अयान से कहते है कि ठेकेदार का इनकाउंटर करना पड़ा. पर सच सामने आ जाता है कि दोनों लड़कियों का गैंगरेप ठेकेदार के साथ ही सीओ धर्म सिंह व दूसरे पुलिस के सिपाही निहाल सिंह ने किया था. इस बीच धर्म सिंह राजनेता की मदद से सीबीआई की जांच बैठवा देता है. सीबीआई के अफसर अयान को सस्पेंड कर देते हैं. निहाल सिंह ट्रक के नीचे आकर आत्महत्या कर लेता है. अयान रंजन पर अपनी जांच रिपोर्ट सबूत के साथ सीबीआई के साथ मदन शास्त्री व मुख्यमंत्री को दे देते हैं. अंततः धर्मसिंह को ग्यारह साल की सजा हो जाती है.
यथार्थ परक फिल्म के नाम पर फिल्म को जरुरत से ज्यादा बोझिल कर दिया गया है. फिल्म की गति कई जगह बहुत धीमी हो जाती है. फिर भी फिल्म अंत तक दर्शकों को बांधकर रखती है व दर्शक सोचने पर मजबूर भी होता है. मगर फिल्म में मनोरंजन का अभाव है. इतना ही नहीं फिल्मकार ने गैंगरैप के मुद्दे को ही गौण कर दिया. फिल्मकार फिल्म में जाति विभाजन की भयावहता तक ही खुद को सीमित रखा है. फिल्म की कहानी जिस छोटे शहर या गांव की जिंदगी दिखायी गयी है, वहां पर जमीन के नीचे गटर नही है. यह फिल्मकार को याद नही रहा.
फिल्म लड़कियों के साथ गैंग रैंप की कहानी हैं, पर फिल्मकार ने इसे जातिगत दलदल की कहानी के रूप में पेश किया है. यूं तो किसी दलित को ‘चमार’जैसे शब्द कहने पर सजा का प्रावधान है, मगर इस फिल्म में ‘चमार’,जाट, पासी, कायस्थ, ठाकुर, क्षत्रिय, ब्राम्हण सहित हर जातिगत शब्द मौजूद हैं. फिल्म में समाजिकता को बरकरार रखने की बात करते हुए सामाजिक विषमता का जो भयावह चेहरा पेश किया गया है, वह यदि यथाथ है, तो अति सोचनीय मुद्दा है. मगर 2019 में हालात ऐसे नही हैं. अब इंसान बिसलरी पानी की बोटल खरीदते समय यह नही पूछता कि बेचने वाली की जाति क्या है? मगर शायद जाति विभाजन के अनुभव फिल्मकार, कहानीकार या जाति की राजनीति करने वालों के पास ज्यादा है.
फिल्म की कहानी 2019 की है.फिल्म में एक संवाद है कि बिसलरी की बोटल बेचाने वाला पासी है,इसलिए यह पानी वह नहीं पिएंगे. एक किरदार कहता है कि हम तो पासी की परछार्इं से भी दूर रहते हैं. एक किरदार कहता है कि,‘हम चमार हैं और हमारी जाति पासी से भी उच्च है.’अफसोस की बात यह है कि फिल्म में जातिगत यह सारे संवाद पुलिस विभाग में बैठे लोग ही कर रहे हैं.
निर्देशनः
अनुभव सिन्हा ने निर्देशक के तौर पर बेहतरीन काम किया है.कुछ दृश्यों का संयोजन काबिले तारीफ है. ग्रामीण पृष्ठभूमि में सामाजिकता विषमता की क्रूरता को चित्रित करने में अनुभव सिन्हा सफल रहे हैं.
फिल्म के कैमरामैन ईवान मुलिगन अवश्य बधाई के पात्र हैं.उन्होने कुछ दृश्य बड़ी खूबसूरती से फिल्माए हैं. मसलन-पेड़ पर लटकी दो लड़कियों की लाश का दृश्य हो या नंगे बदन गंदे नाले के अंदर जाकर सफाई करने का दृश्य हो.इस तरह के दृश्य दर्शकों को विचलित करते हैं. दलित नेता निषाद (जीशान अयूब खान) के संवाद जरुर चुटीले हैं.
अभिनयः
निडरता के साथ अपने फर्ज के प्रति दृढ़प्रतिज्ञ अयान रंजन के किरदार में आयुश्मान खुराना का शानदार अभिनय है. निषाद के छोटे किरदार में जीशान अयूब खान प्रभाव छोड़ जाते हैं. गौरा के किरदार में सयानी गुप्ता की आंखे बहुत कुछ कह जाती हैं. ईशा तलवार की प्रतिभा को जाया किया गया है. मनेाज पाहवा व कुमुद मिश्रा भी अपने अभिनय के कारण याद रह जाते हैं.