Ayushmann Khurrana भी झेल चुके हैं कास्टिंग काउच का दर्द, किए कईं खुलासे

बौलीवुड के कई सेलेब्स कास्टिंग काउच का दर्द झेल चुके हैं, जिस पर कई लोग अपने दर्द को बयां कर चुके हैं. वहीं अब इसमें आयुष्मान खुराना का भी नाम शामिल हो गया है.

फिल्म ‘विक्की डोनर’ से बौलीवुड में एक्टिंग करियर की शुरुआत करने वाले आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) आज “बॉलीवुड की हिट मशीन” के नाम से जाना जाता है. बॉक्स ऑफिस पर लगातार 6 सुपरहिट फिल्में हिट देने वाले आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) के साथ हर कोई काम करना चाहता है, लेकिन अब उन्होंने कास्टिंग काउच को लेकर बड़ा खुलासा किया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

आयुष्मान का खुलासा

 

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Woh saamne waali building kuch din pehle seal ho gayi. Aur tab se aas pados ke logon ki zindagi thodi tabdeel ho gayi. Ussi building ke neeche waali dukaan se toh ghar ka samaan aata tha. Woh bimaari ke baare mein pehle bata deta toh kya jaata tha. Aaj hum dare hue hain. Jeevit hain par mare hue hain. Aaj lagta hai kaash kar dein sab kuch theek is duniya ko karke rewind. But believe me this is nothing but the collective karma of mankind. Salaam hai usko jo sadkein saaf karta hai, kachra le kar jaata hai, ghar ka saamaan le kar aata hai. Aur phir apne ghar jaata hai. Par humne unko kabhi izzat dee hee nahi. Hum paise waale hain. Humare baap ka kya jaata hai. Aur woh bechaara darta hai ki coronavirus uske parivaar ko na ho jaaye. Woh apne chote bachche ko choo nahi paata hai. Yeh ameer gareeb ka insaaniyat se pare ka naata hai. Is desh ko gareeb hee chalata tha. Gareeb hee chalayega. Humein is samay bhi sab suvidhaaen gareeb hee dilaayega. Ab jab sab theek ho jaayega toh in logon ko izzat dena. Koi kaam chota nahi hota yeh baat apne palle baandh lena. Aaj doctor nurses, police, humaare security gaurd hain sabse zyaada kaam ke Hum sab Bollywood hero hain bas naam ke Hum bas paise de sakte hain. Hathiyaar de sakte hain. Ladhna unko hai. Unhi ko sab kuch sehna hai. Humko toh sirf ghar pe rehna hai. Humko toh sirf ghar pe rehna hai.

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आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) ने बताया है कि, एक वक्त ऐसा भी था जब ए-ग्रेड की अदाकाराएं उनके साथ स्क्रीन स्पेस शेयर नहीं करना चाहती थीं. आयुष्मान खुराना ने बताया है कि, ‘एक कास्टिंग डायरेक्टर ने मुझसे कहा था. अगर आप मुझे अपना टूल दिखाएंगे तो मैं आपको मुख्य भूमिका दूंगा. मैंने उसे बताया कि मैं उस तरह का इंसान नहीं हूं और मैंने विनम्रता से उसके ऑफर को अस्वीकार कर दिया.’

 

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बौलीवुड जर्नी को लकर आयुष्मान ने कही ये बात

बॉलीवुड में अपनी जर्नी के बारे में बात करते हुए आयुष्मान खुराना ने कहा, ‘शुरुआत में जब मैं ऑडिशन देने जाता था तो एक कमरे में एक ही कलाकार अपने हुनर का प्रदर्शन करता था लेकिन बाद में लोग बढ़ने लगे और एक कमरे में 50-50 लोग तक रहने लगे. जब मैं इसका विरोध करता था तो ऑडिशन लेने वाले मुझे वहां से जाने को कहते थे.’

 

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‘अब मैं असफलता से निपटने के लिए अच्छी तरह से तैयार रहता हूं क्योंकि मैंने अपने शुरुआती दिनों में इस तरह की काफी चीजें देखी हैं. अब ऐसी चीजें मेरे साथ दोबारा होती हैं तो मैं इन्हें बेहतर तरीके से हैंडल कर सकता हूं. यहां हर शुक्रवार को नई चीजें देखने को मिलती हैं. मेरे खाते में पिछले 2-3 सालों से अच्छे शुक्रवार आ रहे हैं, जिसके लिए मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूं.’

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बता दें, हाल ही में आयुष्मान खुराना की फिल्म शुभ मंगल ज्यादा सावधान रिलीज हुई थी, जिसमें वह गे के रोल में नजर आए थे. वहीं इस रोल में उनकी काफी तारीफ हुई थी.

Shubh Mangal Zyada Saavdhan: जानें क्यों खुद को ‘गृहशोभा मैन’ कहते हैं आयुष्मान खुराना

समाज में टैबू समझे जाने यानी कि वर्जित विषयों के पर्याय बन चुके और ‘‘अंधाधुन’’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुके अभिनेता आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) के लिए कहानी व किरदार ही मायने रखते हैं. इतना ही नहीं आयुष्मान खुराना खुद (Ayushmann Khurrana) को ‘‘गृहशोभा मैन’’ (Grihshobha Man) कहते हैं, क्योंकि जिस तरह से ‘गृहशोभा’ पत्रिका में हर वर्जित विषय पर खुलकर बात की जाती है, उसी तरह वह अपनी फिल्मों में वर्जित विषयों पर खुलकर बातें करते नजर आते हैं. इन दिनों वह आनंद एल रौय और टीसीरीज निर्मित तथा हितेष केवल्य निर्देषित फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ (Shubh Mangal Zyada Saavdhan) को लेकर अति उत्साहित हैं, जिसमें दो समलैंगिक पुरूषों की प्रेम कहानी है. प्रस्तुत है ‘‘गृहशोभा’’ (Grihshobha) पत्रिका के लिए आयुष्मान खुराना से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश

आप अपने आठ वर्ष के करियर में किसे टर्निंग प्वाइंट मानते हैं?

-सबसे पहली फिल्म ‘‘विक्की डोनर’’मेरे कैरियर की टर्निंग प्वाइंट थी. उसके बाद ‘‘दम लगा के हईशा’’टर्निंग प्वाइंट थी. यह फिल्म मेरे लिए एक तरह से वापसी थी. क्योंकि बीच के 3 साल काफी गड़बड़ रहे. ‘‘दम लगा के हाईशा’’के बाद ‘‘अंधाधुन’’टर्निंग प्वाइंट रही. जिसने मुझे सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्ीय पुरस्कार दिलाया. फिर फिल्म‘आर्टिकल 15’भी एक तरह का टर्निंग प्वाइंट था. इस फिल्म के बाद एक अलग व अजीब तरह की रिस्पेक्ट /इज्जत मिली. फिल्म‘‘आर्टिकल 15’’में मैने जिस तरह का किरदार निभाया,उस तरह के लुक व किरदार में लोगों ने पहले मुझे देखा नहीं था.  फिर जब फिल्में सफल हो रही हों,तो एक अलग तरह की पहचान मिल जाती है. मुझे आपका,दशकों से, क्रिटिक्स से भी रिस्पेक्ट मिल रही है. यह अच्छा लगता है.

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‘‘अंधाधुन’’के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बाद आपके प्रति फिल्मकारो में किस तरह के बदलाव आप देख रहे हैं?

-फिल्म‘‘अंधाधुन’’ ने बहुत कुछ दिया है. मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. यह फिल्म चाइना में बहुत बड़ी फिल्म बनी. बदलाव यह आया कि अब लोग मुझे अलग नजरिए से देखते हैं. मुझे रिस्पेक्ट देते हैं. अब दर्शक भी जदा इज्जत दे रहे हैं. जब मैं पत्रकारों से मिलता हूं, तो अच्छा लगता है. क्योंकि ‘अंधाधुन’ एक ऐसी फिल्म है, जिसे मैंने खुद जाकर मांगी थी.

आप अक्सर कहते है कि आप ‘गृहशोभा मैन’हैं. इसके पीछे क्या सोच रही है?

-कई लोगों ने मुझसे कहा कि मैं तो ‘गृहशोभा’ पत्रिका हूं. उनका कहना था कि मैं जिस तरह के विषय वाली फिल्में सिलेक्ट करता हूं, वह इतने निजी होते हैं, जिस पर आप खुलकर बात करने से कतराते नही हैं. पर आप ‘गृहशोभा’ पत्रिका की तरह खुल कर बात करते हैं. आप ‘गृहशोभा’ के लिए लिखते हैं,तो कितनी मजेदार लाइफ है आपकी.

आपने वर्जित विषयों पर आधारित फिल्में की, जिन पर लोग बात करना तक पसंद नहीं करते. जब आपने यह निर्णय लिया था, तो आपके घर में किस तरह की प्रतिक्रिया मिली थी?

-मेरा पूरा कैरियर रिस्क पर बना है. बाकी कलाकार जिन विषयों को रिस्की मानते हैं,उन्हीं विषयों पर बनी फिल्में कर मैंने अपना कैरियर बनाया. इस तरह की रिस्क मैं आगे भी लेता रहूंगा. मतलब मैं रिस्क ना लूं, ऐसा कैसे हो सकता है. कई लोगों के लिए समलैंगिकता विषय पर फिल्म एक रिस्क है. पर मुझे लगता है कि आज के दौर में इसकी जरूरत है.  सुप्रीम कोर्ट ने भी सेक्शन 377 को जायज ठहरा दिया है. देखिए ‘गे’ लोगो की अपनी निजी जिंदगी है.

‘‘शुभ मंगल सावधान’’ भी एक वर्जित विषय पर थी. इसके प्रर्दशन के बाद किस प्रतिक्रिया ने ज्यादा संतुष्टि दी?

-ऐसी तो कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. पर फिल्म हर किसी को बहुत अच्छी लगी थी. वास्तव में हमारी धारणा होती है कि हीरो को ऐसा होना चाहिए. मर्दांनगी को लेकर हमने अपनी एक धारणा बना रखी है, जो कि हमारे देष में बिस्तर तक की सीमित होती है. इस फिल्म में मर्दांनगी को लेकर लोगों की सोच पर एक कटाक्ष था. उस सोच पर एक तरह का प्रहार था,जो कि बहुत सफल भी रहा. फिल्म के प्रदर्षन के बाद उस पर लोगों ने खुलकर बात करना भी शुरू किया. लोगों की समझ में आया कि खांसी या जुखाम की तरह इसका भी इलाज किया जा सकता है. अब लोग इसका इलाज करने लगे है. कुछ लोग मुझसे मिले और इस विषय पर फिल्म करने के लिए मेरा शुक्रिया अदा किया. पर खुले में किसी ने कुछ नही कहा. पर मेरे पास आकर जरूर बोलते थे.

मतलब अभी भी वह टैबू बना हुआ है?

-जी हां!! अभी भी वह टैबू बना हुआ है. पर फिल्म के प्रदर्शन के बाद कुछ तो बातचीत हुई. हमने पहला कदम उठाया.

होमोसेक्सुआलिटी जैसे विषय पर अपनी नई फिल्म‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’को आप पारिवारिक फिल्म मानते हैं. जबकि इस तरह के विषय में अश्लीलता आने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं. ऐसे में बतौर कलाकार  स्क्रिप्ट सुनते वक्त आपने किस बात पर ध्यान दिया?

-फिल्म के निर्माता आनंद एल राय पारिवारिक फिल्म के लिए जाने जाते हैं. जब वह आपके साथ हों, तो आपको इतनी चिंता की जरूरत नहीं होती. जब मुझे आनंद एल राय की तरफ से इस फिल्म का आफर मिला,तो मुझे यकीन था कि वह पारिवारिक फिल्म ही बनाएंगे. इसके बावजूद मैं स्क्रिप्ट जरुर सुनता हूं. स्क्रिप्ट सुनते समय मैं इस बात पर पूरा ध्यान देता हूं कि फिल्म में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए.  इस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे आप परिवार के साथ बैठकर न देख सकें. वैसे भी अब तो बच्चे बच्चे को पता है कि समलैंगिकता क्या होती है. पर इसे अपनाना जरूरी है.
देखिए,समलैंगिकता ऐसा नहीं है कि आप एक दिन सुबह सोकर जगे और आपको ऐसा लगा कि मैं ‘गे’ब न जाऊंगा. ऐसा होता नहीं है. बचपन से आपकी वही सोच होती है,जो आपको पसंद है. वही आपको पसंद है. हर युवक लड़के या लड़कियां या कुछ लोग दोनों पसंद करते हैं.  लेकिन यह आपकी निजी जिंदगी है,आप जिसका चयन करना चाहें, उसका चयन करें. आपकी जिंदगी में अगर उससे फर्क नहीं पड़ता है,तो फिर दूसरों को क्या तकलीफ?

जैसा कि आपने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 377 को कानूनी जामा पहना दिया है. तो अब आपकी यह फिल्म कितनी महत्वपूर्ण हो गई है?

-मेरी राय में यह ह्यूमन राइट की बात है. ‘गे’ लोगों को ‘बुली’ किया जाता है. बचपन से इनका मजाक उड़ाया जाता है. बचपन से इनको नीची नजरों से देखा जाता है. तो हमारा और हमारी फिल्म का मकसद उनमें समानता लाना जरूरी है. यह फिल्म भी फिल्म ‘आर्टिकल 15’ की तरह से ही है. एक तरह से देखा जाए, तो यह उसका कमर्शियल वर्जन है. फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’में पिछड़े वर्ग को समानता दिलाने की बात है. यहां हम होमोसेक्सुआलिटी की बात कर रहे हैं. लेकिन यह कमर्शियल और पारिवारिक फिल्म है. जबकि ‘‘आर्टिकल 15’’कमर्शियल नहीं थी. वह डार्क थी. जबकि ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ कॉमेडी फिल्म है. यह फिल्म इंसानों के बीच समानता को जरूरी बताती है. फिर चाहे जैसा इंसान हो,चाहे जिस जाति का और  जिस सोच का भी हो.

फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ की स्क्रिप्ट पढ़ने पर किस बात ने आपको इसे करने के लिए प्रेरित किया?

-सबसे पहले तो इसका विषय समसामायिक और बहुत अच्छा है. मेरी राय में होमोसेक्सुअलिटी पर आज तक कोई भी अच्छी फिल्म नहीं बनी है. जो बनी हैं, वह पूर्ण रूपेण कलात्मक रही,जो कि दर्षको तक पहुंचने की बजाय केवल फिल्म फेस्टिवल तक सीमित रही. जबकि हमारा हिंदुस्तान इस तरह की फिल्में देखने के लिए तैयार है.
दूसरी बात इस फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ते समय मुझे फिल्म ‘‘ड्रीम गर्ल’’की शूटिंग के वक्त का आंखों देखी घटना याद आयी. मैं मथुरा जैसे छोटे षहर में रात के वक्त शूटिंग कर रहा था. मैने देखा कि पार्किंग में दो लड़के एक दूसरे को ‘किस’कर रहे हैं. तो मेरे दिमाग में बात आयी कि भारत इसके लिए तैयार है. क्योंकि खुले में कभी भी लड़के या लड़कियों का ‘किस’नहीं होता है. मुंबई में ऐसा हो सकता है,पर छोटे शहरों में संभव नही. तो मैंने कहा कि हम इसके लिए तैयार तो हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कानूनन मंजूरी दे ही दी है. मैंने खुले में भी देख लिया हैं. इसलिए इसके ऊपर फिल्म बनाई जा सकती हैं. जब से मैने दो लड़को को ‘किस’करते हुए देखा था,तब से मैं ‘होमोसेक्सुआलिटी के विषय को  एक्स्प्लोरर कर रहा था. फिर मुझे पता चला कि हितेश जी इसी विषय पर फिल्म लिख रहे है,तो मैने उनसे कहा था कि स्क्रिप्ट पूरी होने पर मुझे सुनाएं. जब उन्होने स्क्रिप्ट सुनाई,तो मुझे तो बहुत फनी लगी.  इस विषय की फिल्म का फनी होना बहुत जरूरी है. अगर फिल्म गंभीर हो जाएगी,तो लोग इंज्वॉय नहीं कर पाएंगे और हम जो बात कह रहे हैं,वह वहां तक पहुंची नहीं पाएगी.  इसी विषय पर इससे पहले बनी गंभीर होने के चलते ही सिर्फ फेस्टिवल में ही दिखाई गई है. फिल्म फेस्टिवल में इस तरह की फिल्मों के दर्शक ‘गे’ समलैंगिक या समलैंगिकों के साथ खड़े रहने वाले लोग ही रहे. जबकि हमें यह फिल्म उनको दिखानी है,जो ‘गे’ समलैंगिकता के विरोध में हैं. इन तक हम तभी अपनी फिल्म को पहुंचा सकते हैं, जब हम इन्हें मनोरंजन दें. फिर पता भी नहीं चलेगा कि कैसे उन तक संदेश पहुंच जाता है. तो वही चीज हमने भी इस फिल्म के जरिए सोचा है.

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इस फिल्म के अपने किरदार को कैसे परिभाषित करेंगें?

-मैने इसमें कार्तिक का किरदार निभाया है, जो कि समलैंगिक है और उसे एक अन्य समलैंगिक युवक अमन से प्यार है.

इस फिल्म के अपने किरदार को निभाने के लिए किस तरह के मैनेरिज्म या बौडी लैंगवेज अपनायीं?

-हमने यह दिखाया है कि हाव भाव कोई जरूरी नहीं है कि लड़कियों की तरह हों. रोजमर्रा की जिंदगी में आप किसी भी आदमी को देख सकते हैं, जो समलैंगिक हो सकता है. एक नजर में आपको नही पता चलेगा कि सामने वाला समलैंगिक है. यह कटु सच्चाई भी है. यही बात हमारी फिल्म के अंदर भी है. हमने कुछ भी स्टीरियोटाइप नहीं दिखाया है कि यह हाव भाव होना चाहिए. लड़कियों की तरह बात करता है,कभी-कभी ऐसा होता भी है,पर जरूरी नहीं है.  मैं फिल्में कम देखता हूं. किताबें ज्यादा पढ़ता हूं. मैं एक अंग्रेजी किताब पढ़ रहा हूं ‘लिव विथ मी. ’यह किताब मैंने पढ़़ी है,जो कि ‘गे’लड़कों की कहानी है. इस किताब से मैंने कुछ चीजें कार्तिक के किरदार को निभाने के लिए ली हैं.

इसके अलावा भी आपने कुछ पढ़ने की यह जानने की कोशिश की है?

-जी हां!हमारी फिल्म इंडस्ट्री में भी काफी समलैंगिक लोग हैं. फैशन इंडस्ट्री में भी हैं. यॅंू तो हर जगह हैं और होते हैं. पर इस तरह के लोगों को हमारी इंडस्ट्री में ज्यादा स्वीकार किया जाता है. कॉरपोरेट में भी होते हैं,लेकिन वहां वह खुलकर आ नहीं पाते. वहां वह बंधन में महसूस करते हैं. जबकि हमारी फिल्म इंडस्ट्री बहुत खुली है. यहां आप जैसे हैं,वैसे रहिए.  यह बहुत बड़ी बात है. इस बात को मुंबई आने के बाद से तो मैं जानता ही हॅूं. आप तो मुझसे पहले से मुंबई में हैं और फिल्लम नगरी में सक्रिय हैं,तो आप ज्यादा बेहतर ढंग से जानते व समझते हैं.
जब मैं कौलेज में पढ़ रहा था,तब हमारे कौलेज में ‘‘गे’’क्लब हुआ करता था. एक दिन मुझे इस ‘गे’क्लब के अंदर गाना गाने के लिए बुलाया गया. उन्होंने मुझसे कहा कि,‘हम सभी को आपका गाना बहुत पसंद आया है. आप हमारे क्लब में आकर गाना गाइ. ’आप यकीन नहीं करेंगे,पर उनकी बात सुनकर मैं डर गया था. मैंने कह दिया था कि यह मुझसे नहीं हो पाएगा. मैं आप लोगों से नहीं मिल सकता. पर आज मैं उन्ही ‘गे’/ समलैंगिक लोगों के साथ खड़ा हूं. तो समय के साथ यह बदलाव मुझमें भी आया है. मैं चाहता हूं कि यही बदलाव देश के बाकी लोगों में भी आ सके.

बदलाव हो रहा है?

-जी हां! हमारी इस फिल्म के अंदर भी वही है कि जब दो इंसान प्यार करते हैं, भले वह लड़के लड़के हांे या लड़की लड़की हो,इस पर यदि इन दोनों की निजी एकमत है,तो इन्हें अपने हिसाब से जिंदगी जीने देना चाहिए.
हम पटना गए थे. वहां हमसे किसी पत्रकार ने पूछा यदि यह होगा तो वंश कैसे आगे बढ़ेगा? मैंने कहा कि,‘सर आपको जिंदगी जीने के लिए वंश की पड़ी है. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा?आप बच्चे को गोद ले सकते हैं?इसके अलावा अब तो  बच्चे पैदा करने के लिए कई वैज्ञानिक तकनीक आ गयी हैं,जिससे आप बच्चा कर सकते हैं. इस तरह की सोच को बदलना जरूरी है. यह सोच रातों रात नहीं बदलेगी,वक्त लगेगा. लेकिन पहला कदम हम ले चुके हैं.

आप अपनी तरफ से क्या करना चाहेंगे कि इंसानी सोच बदल सके?

-मैं तो फिल्मों के जरिए ही कर सकता हूं. मैं एक्टिविस्ट नहीं हूं. मैं हर मुद्दे पर फिल्म के जरिए ही बात करता रहूंगा. एक्टिविस्ट बनने का निर्णय आपका अपना होता है. मैं समाज में जो भी बदलाव लाना चाहता हूं,उसका प्रयास अपनी कला के जरिए ही करना चाहता हूं. मुझे लगता है कि जो आप चैराहे पर खड़े होकर नहीं कर सकते हैं,उसे आप फिल्म के जरिए ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकते हैं. एक अंधेरे कमरे में फिल्म इंसान को हिप्नोटाइज कर लेता है. आपको अपने अंदर ले जाता है और आपको समझा देता है. फिल्म के साथ भावनात्मक रुप से आप जुड़ जाते हैं. फिल्म के जरिए रिश्ता जो बन जाता है.

इस फिल्म को देखने के बाद दर्शक अपने साथ क्या लेकर जाएगा?

-सबसे पहले तो दर्शक अपने साथ मनोरंजन लेकर जाएगा. फिल्म देखते समय बहुत ठहाके लगेंगे. इस फिल्म में दिखाया गया है कि एक छोटे आम मध्यम वर्गीय परिवार को जब  पता चलता है कि उनका बेटा ‘गे’/समलैंगिक है, तो वह इसे किस तरह से लता है. उसके इर्द -गिर्द कैसा मजाक होता है? फिर वह परिवार कैसे इसे स्वीकार करता है.

आपके लिए प्यार क्या मायने रखता है?

– मुझे लगता है दोस्ती सबसे बड़ी चीज होती है. अगर आपकी बीवी आपके दोस्त नहीं है, उनका साथ आपको अच्छा नहीं लगता,तो आपकी उनसे कभी नहीं निभ सकती. आकर्षण तो कुछ वर्षों का होता है. उसके बाद तो दोस्ती होती है. आप कितने कंपैटिबल है. आपको साथ में फिल्में देखना अच्छा लगता है या एक ही तरह की किताबें पढ़ना अच्छा लगता है या एक ही तरह के गाने सुनना अच्छा लगता है. जब तक यह ना हो तब तक प्यार नहीं बरकरार रहता. शाहरुख खान साहब ने बोला कि प्यार दोस्ती है,तो सही कहा है.

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इस बार वैलेंटाइन डे की कोई प्लानिंग है?

-मैं वैलेंटाइन डे में विश्वास नहीं रखता. मुझे लगता है कि यह तो सिर्फ कार्ड और फूल बेचने के लिए एक मार्केटिंग का जरिया है. प्यार तो आप रोज कर सकते हैं,उसके लिए एक दिन रखने की क्या जरूरत है? जितने भी दिन बने हुए हैं,वह सिर्फ फूलों और केक की बिक्री के लिए बने है,इसके अलावा कुछ नहीं है.

आप लेखक व निर्देषक कब बन रहे हैं?

-अभी तो नहीं. . . जब तक लोग मुझे कलाकार के तौर पर देखना चाहते हैं,तब तक तो एक्टिंग ही करूंगा.  क्योंकि अभिनय करना बहुत आसान काम है. लेखन व निर्देषन बहुत कठिन काम है.

वेब सीरीज करना चाहते हैं?

-ऐसी कोई योजना नहीं है. पर अगर कुछ अलग व अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो,तो बिल्कुल करना चाहूंगा.

सोशल मीडिया पर क्या लिखना पसंद करते हैं?

-सोशल मीडिया पर कभी कविताएं लिख देता हूं. कभी मैं अपनी फिल्म के संबंध में लिख देता हूं. ऐसा कुछ नियम नहीं है कि क्या लिख सकता हूं. आजकल तो फिल्म ही प्रमोट कर रहा हूं.

कभी आपने यह नहीं सोचा कि किसी एक विषय को लेकर लगातार कुछ न कुछ सोशल मीडिया पर लिखते रहें?

-पहले ब्लौग लिखता था. मैं कुछ ना कुछ लिखता रहता था. पर अब समय नहीं मिलता है. लिखना तो चाहता हूं,पर समय नहीं मिलता है. क्योंकि आजकल लगातार फिल्म की शूटिंग कर रहा हूं.

Republic Day Special: आर्टिकल 15 से लेकर सेक्शन 377 तक, समानता और गर्व के साथ करें नए दशक का स्वागत

जब भी किसी अलग और दिलचस्प कहानी को सिल्वर स्क्रीन पर उतारने की बात होती हैं तो मेकर्स के दिमाग में सबसे पहले टैलेंटेड अभिनेता आयुष्मान खुराना का नाम आता है.  इस प्रतिभाशाली अभिनेता ने सिल्वर स्क्रीन पर न सिर्फ मनोरंजक किरदार ही किए हैं, बल्कि ये कई ऐसी कहानियों का चेहरा भी बने हैं जिन्होंने समाज पर अपनी एक गहरी और अलग छाप छोड़ी है.

आयुष्मान ने आर्टिकल 15, जिसमें जाति के नाम किए गए अत्याचारों के बारे में बताया गया था जैसी फिल्मों में काम किया और अब वह जल्द ही मोस्ट अवेटेड फिल्म ‘शुभ मंगल ज़्यादा सावधान’  में दिखेंगे.  इस फिल्म में समलैंगिकता को स्वीकार करने की बात की गई हैं. ये अभिनेता स्पष्ट रूप से नए दशक के मुख्य सिनेमा में एक अलग और मजबूत परिवर्तन लाया है.

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जैसे की हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं, यह कहना बिलकुल सुरक्षित होगा कि ये अभिनेता मुख्य सिनेमा में बदलाव का एक एजेंट हैं और उनकी आगामी पिक्चर शुभ मंगल ज़्यादा सावधान भी कुछ इसी प्रकार है.  यह समाज से जुड़े हुए एक महत्वपूर्ण विषय पर आधारित है, जहां परिवारों में समलैंगिकता को स्वीकार करने का एक बड़ा महत्व है.

आयुष्मान ने कहा, “मैं हमेशा उन विषयों पर काम करने की इच्छा रखता हूं जो कही न कही सामाजिक रूप से प्रासंगिक है और जो लोगो में हलचल पैदा कर उसके बारे में किसी तरह की चर्चा की एक शुरुआत करेंगे.  अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए इस प्रतिभाशाली अभिनेता ने कहा, “मैं समाज का एक जागरूक नागरिक हूं, मैंने कई ऐसे स्ट्रीट थिएटर्स में काम किया है, जिसमें हम समाज से जुड़े हुए मुद्दों को संपर्क में लाए हैं.  मैं अब जिस तरह का सिनेमा कर रहा हूं वह मेरे थिएटर के दिनों को विस्तार से बयां करता हैं.”
इस प्रतिभाशाली अभिनता ने हाल ही में एक हाथ में भारत के झंडे के साथ फोटोशूट करवाया तो वही दूसरी तरफ एलजीबीटीक्यू को भी गौरव और सम्मान दिया.  जैसा कि सब जानते हैं कि हम इस साल अपना 71 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं, ऐसे में इस अभिनेता ने इस तस्वीर के साथ एक बहुत ही प्रभावशाली मैसेज दिया, जो देश और गर्व समुदाय की समानता में विश्वास को दर्शाता है.

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इस अभिनेता ने कहा, “जब समलैंगितकता और एलजीबीटीक्यू समुदाय के बारे बात होती हैं तो यह भारत को एक प्रगतिशील रूप को दर्शाता हैं. हमें भारतीय होने पर गर्व है.  इसने धारा 377 के खिलाफ कानून पास किया और इससे अत्यधिक गर्व की नहीं हो सकता. ”

इस फिल्म के लेखक और निर्देशक हितेश केवल्य है.  फिल्म को आनंद एल राय का कलर्स येलो प्रोडक्शन और भूषण कुमार का टी-सीरीज़ साथ में मिलकर प्रोड्यूस कर रहे हैं.  यह फिल्म 21 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज़ हो रही हैं.

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