Mother’s Day Special: देश की 70 % मांओं के लिए आज भी मुश्किल है ब्रेस्ट फीडिंग

क्या मांओं के लिए स्तनपान जितना स्वाभाविक काम लगता है उतना है? क्या उन्हें इस काम में मुश्किलें आती हैं? स्तनपान को लेकर उन्हें जरूरी सहयोग मिलता है? स्तनपान को लेकर उनकी एक्सपेक्टेशन क्या है? ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब खोजने के लिए लेकर मौमस्प्रेसो ने मेडेला के साथ एक औनलाइन सर्वे किया है. इस सर्वे का विषय है ‘ स्तनपान को लेकर भारतीय माओं के सामने चुनौतियां’. यह सर्वे 25-45 साल की 510 शहरी और कस्बाई माओं पर किया गया.

सर्वे का उद्देश्य यह जानना था कि स्तनपान के दौरान कामकाज की जगहों, घर या सार्वजनिक स्थलों पर माएं किन किन चुनौतियों का सामना करती हैं.    उन्हें मेडिकल, व्यवहारिक और सहयोग के स्तर पर कैसा माहौल मिलता है. माओं के लिए स्तनपान की प्रक्रिया को सुलभ बनाने के लिए एक बहस शुरू करना.

स्तनपान को लेकर हुए इस सर्वे में जो तथ्य सामने आए उसमें ज्यादातर मौम्स का उत्साहवर्धन करने वाले नहीं थे. आइये जानते हैं सर्वे में सामने आई प्रमुख चुनौतियां:

  • 70 % से भी ज्यादा माएं स्तनपान के दौरान मुश्किल हालातों का सामना करती हैं.
  • 34.7 % माओं को स्तनपान के शुरुआती दिनों में ड्राइनेस के कारण स्तनों में कट या क्रैक का सामना करना पड़ता है.
  • करीब31.8 % माएं लंबे समय तक स्तनपान कराने,  कई बच्चों को बार-बार स्तनपान कराने और आधी रात में बच्चों के जागने पर बहुत ज्यादा थक जाती हैं.
  • 26.61 % माएं स्तनपान के दौरान बच्चों द्वारा काटने को लेकर परेशान होती हैं.
  • 22.7 % माओं को दूध न आने से जुड़ी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं.
  • 17.81 % माओं को सार्वजनिक जगहों जैसे बाजार,मौल्स और मेट्रो स्टेशनों आदि में स्तनपान को लेकर जरूरी इंतेजाम न होने के चलते मुश्किल पेश होती है.
  • 17.42 % माएं मां बनने के बाद पैदा हुए तनाव यानी पोस्टपार्टम का शिकार हो जाती हैं.
  • 38% माओं को मां बनने के शुरुआती दिनों में स्तनपान कराते समय दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. खासतौर पर अस्पतालों में माओं को स्तनपान कराने का अनुभव सबसे कड़वा लगता है.
  • करीब 64% स्तनपान के दिनों में अपने परिवार का सहयोग हासिल कर पाती हैं.
  • महज 37% माएं यह स्वीकार करती हैं कि स्तनपान को लेकर उनके पति सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए उनके साथ मजबूती से खड़े रहते हैं. जाहिर है यह प्रतिशत बेहद कम है.
  • सिर्फ 2.4 % माओं को अपने कामकाज की जगहों, यानी औफिस/वर्कप्लेस में सहयोगात्मक माहौल मिलता है. यह बड़ा निराशाजनक आंकड़ा है.
  • परिवार, पति के सहयोग के बावजूद सिर्फ30 % माएं ही पारिवारिक जरूरतों और औफिस के बीच तालमेल बिठा पाती हैं.

हालांकि यह राहत भरी बात है कि स्तनपान के दौरान इतनी चुनैतियों के बावजूद 78% माओं ने अपने बच्चों को पिछले साल स्तनपान कराया. जब हमने उनसे स्तनपान कराने के पीछे के कारणों को लेकर सवाल पूछे तो कई दिलचस्प और खुशनुमा जवाब मिले. इन जवाबों में टौप 4 जवाब थे:  करीब 98.6 % माएं अपने बच्चों को उनकी बेहतर सेहत के लिए स्तनपान कराना पसंद करती हैं.  जबकि 73.4% माएं बच्चों के साथ घनिष्ट लगाव के चलते स्तनपान कराती हैं.  वहीं 57.5% मौम्स पाने स्वास्थ्य लाभ के लिए बच्चों को स्तनपान कराती हैं.  और आखिर में 39.7% मौम्स गर्भावस्था के बाद अपने बढ़े हुए वजन को कम करने के लिए स्तनपान कराती हैं.

हालात बदलने की जरूरत है
स्तनपान करना हर बच्चे का और कराना हर मां का पहला हक है. लेकिन आज भी हमारे देश की ज्यादातर माओं को यह काम कराना मुश्किल भरा लगता है तो  गलती समाज, परिवार की है. हम उन्हें इस से जुड़ी आधारभूत सुविधाओं को न तो घर पर मुहैया करा पाते हैं और न ही दफ्तर या सार्वजनिक जगहों पर. स्तनपान शुरुआती दिनों में मां और बच्चे के लिए लाभप्रद होता लेकिन समस्या यह है कि शुरुआती सप्ताहों में ही माओं को इसे लेकर दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं.

बच्चे के जन्म के बाद मौम्स को अपनी लाइफ में कई बड़े बदलाओं को एडजस्ट करना पड़ता है. ऐसे में उनको जरूरत होती है अपने आसपास के लोगों के हरसंभव सपोर्ट की. चाहे वो परिवार के सदस्य हों, बौस हो या सहकर्मी.

Mother’s Day Special: कंगारू केयर से प्रीमेच्योर बेबी को बचाएं, कुछ ऐसे

भारत एक ऐसा देश है, जहाँ हर साल, विश्व की तुलना में सबसे अधिक प्रीमेच्योर जन्म लेने वाले बच्चे की मृत्यु होती है, इसकी वजह गर्भधारण के बाद से मां को सही पोषण न मिलना, गर्भधारण के बाद भी मां का वजनी काम करना, प्रीमच्योर बच्चा जन्म लेने के बाद आधुनिक तकनीकी व्यवस्था का अस्पताल में न होना आदि कई है. इसके अलावा कुछ प्रीमेच्योर बच्चे एक महिना ही जीवित रह पाते है. ऐसे में कंगारू केयर नवजात शिशु के लिए वरदान से अधिक कुछ भी नहीं है.

तकनीक है आसान

इस बारें में नियोनेटोलॉजी चैप्टर, इंडियन एकेडेमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. नवीन बजाज ‘इंटरनेशनल कंगारू केयर अवेयरनेस डे’ पर कहते है कि कंगारू केयर प्रीमेच्योर और नवजात शिशुओं के देखभाल की एक तकनीक है. अधिकतर जिन शिशुओं का जन्म समय से पहले होने पर वज़न कम हो, उनके लिए कंगारू केयर का प्रयोग किया जाता है. इसमें बच्चे को माता-पिता के खुले सीने से चिपकाकर रखा जाता है, जिससे पैरेंट की त्वचा से शिशु की त्वचा का सीधा संपर्क होता रहता है, जो बहुत प्रभावशाली होने के साथ-साथ प्रयोग में भी आसान होता है और शिशु का स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है. इस तकनीक को समय से पहले या समय पूरा होने के बाद पैदा हुए सभी बच्चों की अच्छी देखभाल के लिए कंगारू केयर लाभकारी होता है.

जरुरी है स्वस्थ और हायजिन होना

इसके आगे डॉ.नवीन कहते है कि कंगारू केयर तकनीक से शिशु की देखभाल के लिए सबसे सही व्यक्ति उसकी मां होती है, लेकिन कई बार कुछ वजह से मां बच्चे को कंगारू केयर नहीं दे पाती, ऐसे में पिता या परिवार का कोई भी करीबी सदस्य, जो बच्चे की जिम्मेदारी सम्हाल सकें, मसलन भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी, चाची, मौसी, बुआ, चाचा आदि में से कोई भी बच्चे को कंगारू केयर देकर मां की जिम्मेदारी का कुछ भाग बाँट सकते है. इसके अलावा कंगारू केयर दे रहे व्यक्ति को स्वच्छता के कुछ सामान्य मानकों का पालन करना आवश्यक होता है, जैसे हर दिन नहाना, साफ़ कपड़ें पहनना, हाथों को नियमित रूप से धोकर स्वच्छ रखना, हाथों के नाख़ून कटे हुए और साफ़ होना आदि बहुत जरूरी होता है.

कब शुरू करें कंगारू केयर

डॉक्टर का मानना है कि कंगारू केयर या त्वचा से त्वचा का संपर्क तकनीक की शुरूआत बच्चे के जन्म से ही करनी चाहिए और आगे पूरी पोस्टपार्टम अवधि तक इसे जारी रखा जा सकता है. इस तकनीक की इस्तेमाल की अवधि शुरूआत में कम रखनी चाहिए. पहले 30 से 60 मिनट, इसके बाद धीरे-धीरे मां को इसकी आदत पड़ जाने इस तकनीक के इस्तेमाल का आत्मविश्वास मां में आ जाने पर जितना हो सकें, उतने लंबे समय के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. खास कर कम वज़न के शिशुओं के लिए कंगारू केयर की अवधि जितनी ज़्यादा हो, उतनी अच्छी होती है, बच्चे को कंगारू केयर देते हुए मां खुद भी आराम कर सकती है या आधा लेटकर सो सकती है.

कंगारू केयर की प्रक्रिया

मां के स्तनों के बीच शिशु को रखना चाहिए, उसका सिर एक तरफ झुका हो, ताकि उसे साँस लेने में आसानी हो. बच्चे का पेट मां के पेट के ऊपरी भाग से चिपका हो, हाथ और पैर मुड़े हुए हो. शिशु को बेस देने के लिए स्वच्छ, सूती कपड़ा या कंगारू बैग का इस्तेमाल किया जा सकता है. समय से पहले पैदा हुए या कम वज़न के बच्चों की देखभाल के लिए कंगारू केयर की शुरूआत हुई, लेकिन समय पूरा होकर पैदा हुए या सही वज़न के बच्चों के लिए भी यह तकनीक लाभकारी है.

पिता और कंगारू केयर का संपर्क

डॉक्टर बजाज आगे कहते है कि माताओं की तरह, पिता भी त्वचा से त्वचा का संपर्क तकनीक से बच्चे की देखभाल कर सकते है. यह शिशु और पिता दोनों के लिए फायदेमंद है. पिता के लिए कुछ प्रमुख लाभ यह है कि वे बच्चे की देखभाल अच्छी तरह से कर सकेंगे और अपने आप को असहाय महसूस नहीं करेंगे. इससे शिशु और पिता के बीच अपनापन बढ़ता है और बच्चे की देखभाल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा पाने की ख़ुशी पिता को मिलती है, ये तकनीक पिता को बच्चे के भूख और तनाव के संकेतों को समझने में भी मदद करती है. जब पिता कंगारू केयर दे रहे हो, तब मां आराम कर सकती है और बच्चे की अच्छी देखभाल के लिए अपनी ऊर्जा और उत्साह को बनाए रख सकती है. कंगारू केयर के फायदे निम्न है,

• शिशु की अच्छी देखभाल और उसमें अपनेपन का एहसास स्टाब्लिश करने का यह सबसे बेहतरीन तरीका है. इस तकनीक से देखभाल किए गए बच्चों का अपने मातापिता के साथ जुड़ाव काफी करीबी रहता है,
• त्वचा से त्वचा का संपर्क होने से मस्तिष्क के विकास और भावनात्मक संबंधों के निर्माण को बढ़ावा मिलता है, आँखों से आँखों का कॉन्टैक्ट होते रहने से, प्यार, अपनापन और विश्वास से सामाजिक प्रतिभा का भी विकास होने में मदद मिलती है,
• इस तकनीक के इस्तेमाल से स्तनपान को भी बढ़ावा मिलता है, बच्चा और मां दोनों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है, इसके अलावा बच्चे के पोषण और विकास में स्तनपान का योगदान महत्वपूर्ण होता है,
• साथ ही सर्दियों में कम वज़न के बच्चों में बच्चे के शरीर के तापमान को स्थिर रखा जाता है,
• इस तकनीक से देखभाल किए गए बच्चों का वज़न अच्छे से बढ़ता है, वे लंबे समय तक शांत सोते हैं, जागने पर भी शांत रहते हैं और रोते भी कम है.
• इसके अलावा कंगारू केयर तकनीक से देखभाल किए जाने वाले बच्चें ज़्यादा स्वस्थ, ज़्यादा होशियार होते हैं और अपने परिवार के प्रति उनके मन में ज़्यादा अपनापन होता है. यह तकनीक शिशु के साथ-साथ मां, परिवार, समाज और पूरे देश के लिए लाभकारी है.
इसलिए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनजेशन और चिकित्सकों ने सलाह दी है कि सभी बच्चों के लिए कंगारू केयर तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, ताकि बच्चे का विकास सही तरीके से हो सकें.

गरमी में इन 7 टिप्स से करें बेबी केयर

गरमी में बच्चों की स्किन व हैल्थ से जुड़ी समस्याएं जैसे कि घमौरियां, रैशेज व डिहाइड्रैशन देखने को मिलती हैं. वैसे भी इस मौसम में मांएं अकसर अपने छोटे बच्चों की स्किन की सुरक्षा को ले कर चिंतित रहती हैं, क्योंकि बच्चों की स्किन बड़ों की स्किन से3 गुना अधिक कोमल होती है. बच्चों के लिए मौनसून को सहन करना थोड़ा असुविधाजनक होता है और बच्चे को इस मौसम में आराम महसूस हो सके यही हर मां का प्रयास होता है. आइए, जानते हैं कि मौनसून के दिनों में बच्चों की देखभाल के बेहतर तरीके:

1. कपड़ों का सही करें चुनाव

गरमियों में जब आप अपने लिए सूती कपड़े लेना पसंद करती हैं, तो भला बच्चे के लिए क्यों नहीं? कोशिश करें कि बच्चों को हलके रंग व फैब्रिक के कपड़े पहनाएं ताकि बच्चा असहज न महसूस करे. गलत कपड़ों के चयन की वजह से उसे कहीं घमौरियां या रैशेज न पड़ जाएं.

बाहर जाते वक्त बच्चे को पूरी बांह के कपड़े पहनाएं. कौटन की टोपी भी पहना कर ले जा सकती हैं, ताकि धूप सीधे उस के चेहरे पर न पड़ें.

2. रोजाना नहलाना है जरूरी

जितनी गरमी आपको लगती है उतनी ही गरमी आप के बच्चे को भी लगती है. इसलिए कोशिश करें कि बच्चे को रोजाना नहलाएं और हो सके तो आप उसे शाम को भी नहला सकती हैं. शाम को नहला नहीं सकती हैं, तो बच्चे को स्पौंज कर उस के कपड़े बदल दें. इस से बच्चा तरोताजा महसूस करेगा और वह चैन की नींद सो पाएगा.

3. डायपर बदलना न भूलें

गरमी में बच्चे अधिक मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करते हैं, जिस की वजह से डायपर जल्दी हैवी हो जाती है. कोशिश करें कि हर 3 घंटे पर बच्चे का डायपर बदल दें ताकि अधिक नमी से बच्चे की स्किन को कोई नुकसान न पहुंचे और बच्चे को रैशेज या बैक्टीरिया न हो जाएं. डायपर बदलने से पहले उस जगह को पानी से साफ करें और फिर साफ कपड़े से अच्छे से सुखाने के बाद ही दूसरा डायपर पहनाएं

4. बच्चे को पिलाएं भरपूर पानी

गरमियों में बच्चों में डिहाइडे्रशन की समस्या आम है. यदि आप बच्चे को स्तनपान करा रही हैं और उस की मांग के अनुसार उसे दूध पिला रही हैं तो आप अपने बच्चे को उचित तरीके से हाइड्रेट कर रही हैं. यदि आप ने बच्चे का दूध छुड़ाया हुआ है, तो ध्यान रखें कि गरमियों के दौरान उस की भूख बहुत कम हो जाती है. उसे अन्य तरल पदार्थ जैसे फलों का रस, छाछ या मिल्क शेक आदि पिलाएं. उसे पिलाने से पहले गिलास को कुछ मिनट के लिए फ्रिज में रखें पर ध्यान रहे कि यह बहुत अधिक ठंडा न हो.

5. मालिश करने से बचें

गरमियों के दौरान स्किन पर तेल लगाने से फायदे की जगह नुकसान ही होता है. यदि इसे अच्छी तरह नहीं धोया गया तो स्किन में जोड़ों के स्थान पर यह रह जाता है जिस कारण हीट रैशेज, खुजली एवं फोड़फुंसियों आदि की समस्याएं हो सकती हैं. बच्चे के पूरे शरीर पर पाउडर न लगाएं क्योंकि पसीना आने पर पाउडर उस स्थान पर जम जाता है, जिस कारण स्किन संबंधी प्रौब्लम हो सकती है.

6. बाहर ले जाने का समय करें तय

बच्चे को धूप से बचाने के लिए सुबह 10 से शाम 5 बजे तक बाहर ले कर न जाएं. सूर्यास्त के बाद उसे थोड़े समय के लिए बाहर ले जाएं. यदि आप के बच्चे की उम्र 2 वर्ष से अधिक है तो गरमियों में उसे वाटर स्पोर्ट्स के लिए प्रोत्साहित करें.

7. कमरे का टैम्प्रेचर रखें स्थिर

यदि आप एसी इस्तेमाल कर रही हैं तो कमरे का तापमान 24 डिग्री पर स्थिर रखें. तापमान में परिवर्तन होने से बच्चे को सर्दी, खांसी आदि की समस्याएं हो सकती हैं. इस के अलावा इस बात का भी ध्यान रखें कि नहाने के बाद बच्चा सीधे एसी के सामने न बैठे.

8. बच्चे के लिए रहेगा पाउडर फायदेमंद

गरमियों में बच्चे को पाउडर लगाना भी सही रहता है. इसे लगाने से बच्चा फ्रैश महसूस करता है. साथ ही उसे ठंडक का भी एहसास होता है. पाउडर लगाते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि पाउडर ज्यादा न लगाएं, क्योंकि पसीने के साथ मिल कर यह जमने लगता है.

बेबी की ऐसे करें कोमल देखभाल

शिशु का जन्म घरआंगन में खुशियों के साथसाथ जिम्मेदारी भी ले कर आता है. जिम्मेदारी नवजात की सही परवरिश और उस की कोमल देखभाल की. ऐसे में नई मांओं के सामने यह जिम्मेदारी किसी चुनौती से कम नहीं होती, क्योंकि शिशु की देखभाल से संबंधित कई अहम बातों की जानकारी उन्हें नहीं होती.

स्तनपान के जरीए नवजात के शरीर  का आंतरिक विकास तो सही ढंग से होता  रहता है, मगर उस की त्वचा को सेहतमंद व सुरक्षित रखने के लिए ज्यादा देखभाल की  जरूरत पड़ती है.

पेश हैं, कुछ सुझाव जो शिशु की त्वचा की कोमल देखभाल में आप के बेहद काम आएंगे:

बेबी बाथ

शिशु को नहलाते समय व नहलाने के बाद यहां बताई गई बातों का ध्यान रखें:

  1. शिशु के नहाने का पानी या तो साधारण तापमान पर या फिर कुनकुना होना चाहिए. उस के शरीर को हाथों की सहायता से धीरेधीरे पानी डालते हुए साफ करें.
  2. शिशु को नहलाने के लिए सौम्य बेबी सोप या लोशन का ही इस्तेमाल करें. किसी अन्य साबुन या लोशन का इस्तेमाल उस की नाजुक त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है.
  3. शिशु के बालों को साफसुथरा रखने के लिए बेबी शैंपू का ही इस्तेमाल करें. शैंपू को हथेलियों पर हलका सा रगड़ने के बाद शिशु के बालों में लगाएं. पानी से साफ करने के लिए शिशु को अपनी गोद में बैठा कर हथेलियों में पानी ले कर धीरेधीरे सिर के आगे से पीछे की तरफ शैंपू साफ करें. ऐसा करने से शैंपू शिशु की आंखों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा.
  4. नहलाने के बाद नरम तौलिए से थपथपा कर शिशु के शरीर को सुखाएं

बेबी मसाज

बच्चे के संपूर्ण विकास में उस की मालिश का सब से ज्यादा महत्त्व है. मालिश बच्चे की त्वचा के साथसाथ उस की हड्डियों को भी मजबूती व पोषण देती है. शिशु की मालिश के दौरान इन बातों का ध्यान रखें:

  1. शिशु की मालिश के लिए पोषणयुक्त, कैमिकलरहित बेबी मसाज औयल का ही इस्तेमाल करें.
  2. मालिश शुरू करने से पहले शिशु को आरामदायक स्थिति में लिटा लें. फिर हथेलियों पर तेल ले कर सब से पहले शिशु के पैरों की मालिश करें. इस के बाद हाथों व अन्य हिस्सों जैसे छाती व पीठ की मालिश करें.
  3. मालिश करते समय शिशु के शरीर पर दबाव न डालें.
  4. शिशु की मालिश हमेशा स्तनपान कराने से पहले ही करें.
  5. शिशु की हथेलियों और तलवों पर भी मसाज औयल जरूर लगाएं. इस के साथसाथ उस के हाथों और पैरों की अंगुलियों की भी हलके हाथों से मालिश करें.

बेबी स्किन केयर ऐंड हाइजीन

  1. शिशु की त्वचा की कोमलता बनाए रखने में इन बातों की भी बड़ी भूमिका है:
  2. शिशु के नाजुक अंगों की साफसफाई के लिए तौलिया इस्तेमाल करने के बजाय सौफ्ट बेबी वाइप्स का प्रयोग करें. तौलिया या अन्य किसी कपड़े का इस्तेमाल करने से शिशु की त्वचा पर रैशेज पड़ने का खतरा रहता है.
  3. नहलाने के बाद शिशु को कपड़े पहनाने से पहले उस के शरीर पर सौम्य बेबी पाउडर लगाएं. बेबी पाउडर की सुगंध बच्चे को ताजगी का एहसास देती है.
  4. बच्चे की नैपी को समयसमय पर चैक करती रहें ताकि गीलेपन की वजह से बच्चे के नाजुक अंगों को नुकसान न पहुंचे.
  5. बच्चे को नहलाने के बाद बेबी इयरबड्स की सहायता से उस के कानों में जमा शैंपू का पानी साफ करना न भूलें.

इन बातों का ध्यान रखने के साथसाथ शिशु के सही शारीरिक विकास के लिए हमेशा सौम्य बेबी प्रोडक्ट्स का ही चुनाव करें. शिशु की कोमल देखभाल का यह दौर आप के जीवन का सब से यादगार दौर होता है. इसलिए उस की कोमलता का ध्यान रखें.

Winter Special: सर्दियों में ऐसे करें नवजात की देखभाल

नवजात शिशु परिवार के सभी सदस्यों के लिए खुशियां और आशा की नई किरण ले कर आता है. परिवार के सभी सदस्य उस के पालनपोषण का दायित्व खुशीखुशी लेते हैं और डाक्टर मां को सही राय देते हैं ताकि उस का शिशु स्वस्थ रहे.

गरमियों की तपिश के बाद जब सर्दी शुरू होती है तो लोग राहत महसूस करते हैं. पर सर्दी भी अपने साथ लाती है खुश्क हवाएं, खांसी और जुकाम जैसी कुछ तकलीफें, जिन से नवजात शिशु को खासतौर से बचाना चाहिए और उस की देखभाल में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.

त्वचा की देखभाल

सर्दी के मौसम में हवा की नमी चली जाती है, जिस से शिशु की त्वचा शुष्क हो जाती है. ऐसे में बच्चे की मालिश जैतून के तेल से करने से बहुत लाभ होता है. उस से मालिश करने से खून का संचार सही रहता है और उस का इम्यूनिटी पावर यानी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. मालिश करते समय बच्चे को गरम और आरामदेह जगह पर लिटाना चाहिए. मालिश के कुछ देर बाद नहलाना चाहिए. बच्चे की त्वचा अत्यधिक नरम होती है, इसलिए साबुन ग्लिसरीन युक्त होना चाहिए और पानी कुनकुना होना चाहिए. जिस दिन ज्यादा सर्दी हो, उस दिन स्नान के बजाय साफ तौलिए को पानी में भिगो कर व निचोड़ कर उस से बच्चे का बदन पोंछ सकते हैं.

होंठों की देखभाल

सर्दी में शिशु के होंठ उस के थूक निकालने से गीले हो जाते हैं. उन की ऊपरी परत हट जाती है और उन पर सूखापन आ जाता है. उस के लिए पैट्रोलियम जैली या लिपबाम का उपयोग करना चािहए.

आंखों की देखभाल

सर्दी में कभीकभी शिशु की आंखों के कोने से सफेद या हलके पीले रंग का बहाव हो सकता है. इसे न तो हाथ से रगड़ें और न ही खींच कर निकालने की कोशिश करें. कुनकुने पानी में रुई डाल कर उसे हाथों से दबाएं फिर उस से आंखों को अंदर से बाहर की तरफ साफ करें. अगर शिशु की आंखें लाल हों या उन से पानी निकल रहा हो तो तुरंत आंखों के विशेषज्ञ को दिखलाना चाहिए.

शिशु के कपड़े

सर्दियों में शिशु के कपड़े गरम, नरम और आरामदेह होने चाहिए, जिन में कोई जिप या टैग न लगा हो.

बच्चे के हाथपैर गरम रखने के लिए उसे दस्ताने और मोजे पहनाने चाहिए और उस का सिर टोपी से ढकना चाहिए.

बच्चे के कपड़े धोने का डिटर्जैंट माइल्ड होना चाहिए.

बच्चे को कई बार ऊनी कपड़ों से ऐलर्जी हो जाती है जिस से उस के शरीर पर रैशेज हो जाते हैं. इसलिए कपड़े तापमान के हिसाब से ही पहनाने चाहिए. बच्चे को सीधा ऊनी कपड़ा पहनाने के बजाय पहले एक सूती कपड़े पहनानी चाहिए.

बच्चे को जूते पहनाने की आवश्यकता नहीं होती.

शिशु को सुलाते वक्त जब कंबल डालें तो ध्यान रखें कि कंबल से मुंह न ढक जाए, जिस से बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो.

शिशु के कपड़े अच्छी क्वालिटी के होने चाहिए और ज्यादा तंग नहीं होने चाहिए.

जरूरी कपड़े

6-8 मुलायम सूती की बनियान.

6-8 गरम इनर या गरम कपड़े.

6-8 पूरी बाजू के सूती या होजरी के टौप.

6-8 पाजामी.

7-8 बौडी सूट.

4 गरम पाजामा.

4-6 ऊनी जुराब.

2-4 ऊनी टोपी.

2 सूती टोपी.

4-6 स्वैटर, 4 जैकेट.

7-8 मोटी सूती जुराब.

4 दस्ताने.

6 तौलिए, 6 बिब.

3-4 नहाने के लिए इस्तेमाल होने वाले तौलिए.

डायपर रैशेज से बचाव

सर्दी में डायपर और सूती नैपीज की ज्यादा जरूरत होती है, क्योंकि शिशु सर्दी में जल्दी गीला करता है और सूखने में ज्यादा समय लगता है. कुछ खास बातें ऐसी हैं जिन का खयाल रखना आवश्यक है, जिस से डायपर रैशेज से बचाव हो पाए:

इस बात का खयाल रखना चाहिए कि डायपर समय पर बदला जाए.

डायपर ज्यादा टाइट नहीं होना चाहिए. उसे सही नाप का चुनना चाहिए.

डायपर बदलने से पहले और बाद में अपने हाथ अच्छी तरह धो लेना चाहिए.

डायपर बदलते वक्त ध्यान रखें कि शिशु की त्वचा सूखी और साफ हो.

गुप्तांगों को रगड़ें नहीं कोमलता से साफ करें.

नैपी रैश क्रीम का इस्तेमाल करें.

घर का वातावरण

आप को घर और बच्चे के कमरे को गरम रखना चाहिए, जिस के लिए कमरे की खिड़कीदरवाजे बंद रखने चाहिए. दीवारों पर गीलापन नहीं होना चाहिए. क्योंकि इस से फफूंदी लग सकती है, जिस से बच्चे को ऐलर्जी या सर्दी व खांसी हो सकती है.

यदि घर का कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है तो उसे घर से बाहर जा कर करना चाहिए. कमरे और बाथरूम के फर्श को अच्छे डिटर्जैंट से धोना चािहए.

सर्दी में मच्छर वैसे कम होते हैं लेकिन अगर कीड़े या मच्छर हैं तो पेस्ट कंट्रोल करवाना चाहिए और बच्चे को उस दिन उस कमरे में नहीं ले जाना चाहिए. इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि घर के आसपास पानी इकट्ठा न हो और घर की नियमित रूप से सफाई हो. आजकल बाजार में स्टिकर के रूप में भी मौसक्यूटो उपलब्ध हैं, जो बच्चे की चारपाई या गाड़ी में भी लगाए जा सकते हैं.

मां के लिए कुछ निर्देश

अपने शिशु का टीकाकरण समयसमय पर नियमित रूप से करवाएं ताकि वह वायरस और बैक्टीरिया से दूर रहें.

बारबार अपने हाथ धोएं ताकि बच्चे को फ्लू और सर्दीखांसी के कीटाणुओं से दूर रख सकें.

अपने बच्चे के हाथ भी धोएं, क्योंकि बच्चा मुंह में हाथ डालता है.

शिशु के लिए मां का दूध सर्वोत्तम है, क्योंकि इस से उस का इम्यूनिटी पावर बढ़ता है और शरीर में पानी की कमी नहीं होती.

सर्दियों में बच्चे को ज्यादातर बीमारियां उस के करीब किसी बीमार व्यक्ति के खांसनेछींकने और उस के संपर्क में आने से होती हैं, इसलिए बच्चे को रोगी व्यक्ति से दूर रखें.

शिशु को डियोड्रैंट, परफ्यूम्स और धुएं से दूर रखें, क्योंकि इन से सांस की बीमारी हो सकती है.

सर्दियों में होने वाली बीमारियां

सर्दियों में शिशु को ये बीमारियां हो सकती हैं:

सामान्य जुकाम.

बुखार (वायरल फीवर).

फ्लू.

निमोनिया.

ब्रौंकाइटिस.

कान का संक्रमण.

मेनिनजाइटिस (मस्तिष्क ज्वर).

रोटावायरस.

कब ले जाएं डाक्टर के पास

बुखार आने पर.

खांसी आने पर.

अगर शिशु दूध कम पी रहा हो. दूध कम पीने से शिशु के शरीर में पानी की कमी हो जाती है.

अगर शिशु अत्यधिक सुस्त है तो.

प्राथमिक उपचार

आप के पास शिशु के लिए कुछ जरूरी दवाएं होनी चाहिए ताकि कभी भी रात में अगर जरूरत पड़े तो आप उन को उपयोग कर सकें. जैसे क्रोसिन सिरप, विक्स वेपोरब, सेवलौन, नोजीवियान ड्रौप्स और थर्मामीटर.

जब शिशु बीमार पड़े तो उस को कंफर्टेबल रखना और गोद में ले कर प्यार करना बहुत जरूरी है. नाक बंद होने पर नोजीवियान ड्रौप डालने से नाक खुल जाएगी. बच्चे को जितना आराम मिलेगा, वह बेहतर महसूस करेगा. उसे सर्दी के मौसम की ज्यादातर बीमारियां 1 हफ्ते में ठीक हो जाती हैं और उन से आप के शिशु की इम्यूनिटी बढ़ती है. इसलिए घबराएं नहीं.

-डा. शिवानी सचदेव गौड़

(निदेशक, एससीआई हैल्थकेयर, आईवीएफ व स्त्री रोग विशेषज्ञा)

प्यार से संवारें बच्चे का कल

आज की व्यस्त जीवनशैली में मातापिता अपने काम व जिम्मेदारियों के बीच अपने शिशु के छोटेछोटे खास पलों को महसूस करने से वंचित रह जाते हैं. दरअसल हर दिन की छोटीछोटी गतिविधियां नवजात शिशु के विकास में मदद करती हैं और उन में आत्मविश्वास, जिज्ञासा, आत्मसंयम और सामाजिक कौशल की कला का विकास करती हैं.

यहां हम एक खास उम्र में होने वाले परिवर्तनों के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि आप को यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि किस तरह से बातचीत के माध्यम से नवजात शिशु में सामाजिक, भावनात्मक ज्ञान का विकास किया जा सकता है. यह मातापिता और शिशु के बीच की एक विशेष पारस्परिक क्रिया है जो हर पल को खास व सुंदर बनाती है.

स्तनपान के समय

जब आप अपने शिशु को स्तनपान कराती हैं तब आप उसे केवल आवश्यक पोषण प्रदान करने के अलावा भी कुछ खास करती हैं, जो उसे उस की दुनिया में सुरक्षा का एहसास कराता है. शिशु को भूख लगने पर स्तनपान कराना उसे शांत महसूस करने में मदद करता है. आप के चेहरे को देख कर, आप की आवाज सुन कर और आप के स्पर्श को महसूस कर के वह महत्त्वपूर्ण काम पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनता है. जब वह देखता है कि वह संचार करने के प्रयास में सफल हो रहा है तो आप उस की भाषा की कला विकसित करने में उस की मदद करती हैं. जब आप उसे स्तनपान कराएं तब उस से धीरेधीरे बात करें, उस का शरीर हाथों से सहलाएं और उसे आप के स्पर्श का अनुभव करने दें.

नवजात को आराम दें

जब आप अपने शिशु को आराम देती हैं तब आप उसे बताती हैं कि दुनिया एक सुरक्षित जगह है जहां कोई है जो उस की परवाह करता है, उस का ध्यान रखता है. शिशु जितना ज्यादा आराम महसूस करता है उसे दूसरों से जुड़ने में उतनी ही मदद मिलती है और वह सीखता है कि उस के आसपास की दुनिया कैसे काम करती है. जब आप का शिशु रोता है तब आप तुरंत जवाब दे कर उसे सिखाती हैं कि आप उस की हमेशा देखभाल करेंगी. यह सोच कर परेशान न हों कि आप तुरंत जवाब दे कर उसे बिगाड़ रही हैं. दरअसल, शोध बताते हैं कि जब बच्चे रोते हैं, तब तुरंत प्रतिक्रिया करने पर वे कम रोते हैं, क्योंकि इस से वे सीखते हैं कि उन का ध्यान रखने वाला आ रहा है. जब आप उसे आराम देती हैं तब आप उसे उस के तरीके से खुद को शांत रहना सिखाती हैं.

जब आप का शिशु रोता है या आप उसे परेशान देखती हैं तब अलगअलग चीजों पर ध्यान दें जैसे उसे भूख तो नहीं लगी है, उसे डकार तो नहीं लेनी, उस का डायपर चैक करें. अलगअलग तरीके से गोद में लें, गाना गाएं, प्यार से बात करें.

शिशु के संकेतों को समझें

नवजात शिशु कई तरह की नईनई चीजें करते हैं, जिन्हें हम समझ नहीं पाते हैं, लेकिन इन संकेतों को समझ कर उन के विकास में मदद की जा सकती है. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर शिशु एक ही तरह का संकेत दे. आप को यह बात समझने की जरूरत है कि हर शिशु अलग होता है और सब की सीखने की क्षमता अलगअलग होती है. आप के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना उस के सीखने की कला, स्वास्थ्य और विकास की नींव है इसलिए अपने शिशु के व्यवहार और विकास में हर बदलाव में ध्यान दें और शिशु चिकित्सक के संपर्क में रहें.

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10 बेबी स्किन केयर टिप्स

उस दिन माया बहुत परेशान थी. वह पति और 4 महीने की बच्ची के साथ अपनी कार में मायके जा रही थी. लंबा सफर तय करना था. दिल्ली से मायके यानी इलाहाबाद पहुंचने में 7-8 घंटे लग गए थे. उस पर बारिश का मौसम था. बेटी को ठंड न लग जाए इस

वजह से 2-3 ऐक्स्ट्रा कपड़े भी पहना रखे थे. बेटी आधे रास्ते तो सोती हुई गई, मगर फिर परेशान करने लगी. वह कसमसा रही थी और रोने भी लगी थी. घर पहुंच कर माया ने देखा कि उस की स्किन में कई जगह लाल चकत्ते और दाने से हो गए हैं.

जब माया की मां ने बच्ची को गोद में लिया तो कहने लगीं कि लगता है इसे घमौरियां हो गई हैं. टाइट कपड़ों या नमी वाले मौसम में लंबी यात्रा से छोटे बच्चों में पसीने की वजह से यह प्रौब्लम हो जाती है. उन्होंने तुरंत बच्ची के टाइट कपड़ों को उतार कर ढीले और आरामदायक कपड़े पहनाए और थोड़ा बेबी पाउडर भी लगाया. फिर दूध पिला कर उसे सुला दिया. सुबह जब उठी तो उसे नौर्मल देख कर माया की जान में जान आई.

दरअसल, बच्चे की स्किन वयस्कों की तुलना में 3 गुना ज्यादा सैंसिटिव और कोमल होती है. यही वजह है कि उन की स्किन पर अकसर रैशेज, दाने या ड्राइनैस की समस्या आ जाती है. मां के गर्भ के बाहर आने के बाद बच्चे की स्किन नए वातावरण में खुद को एडजस्ट करने की कोशिश कर रही होती है. इसी वजह से शिशुओं की स्किन को अतिरिक्त देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता होती है.

ऐसे में बेबी की स्किन की केयर करने में कई बातों का खास ध्यान रखना होता है जैसे:

सूरज की रोशनी

जन्म के शुरुआती दिनों में बेबी को डाइरैक्ट सनलाइट में ले कर नहीं आना चाहिए. इस से बच्चों को सनबर्न हो सकता है. अगर आप कहीं बाहर जा रहे हैं और बच्चा लंबे समय तक धूप में रहने वाला है तो उसे पूरी बांह के कपड़े, फुल पैंट पहनाएं और कैप लगाएं, साथ ही बाकी खुले हुए हिस्सों में बेबी सेफ सनस्क्रीन लगाना बेहतर रहेगा.

जब बच्चा बड़ा हो जाए तो उसे कुछ समय के लिए धूप में ले जाया जा सकता है. इस से विटामिन डी मिलता है.

कौटन के कपड़े पहनाएं

बच्चों को गरमी से रैशेज बहुत आसानी से हो जाते हैं क्योंकि उन की स्किन फोल्ड्स में पसीना बहुत ज्यादा आता है. इसलिए बच्चों को जितना हो सके कौटन के कपड़े पहनाने चाहिए. ये सौफ्ट, पसीना सोखने वाले और काफी कंफर्टेबल होते हैं. सिंथैटिक कपड़ों से बच्चों को ऐलर्जिक रिएक्शन हो सकते हैं.

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मसाज जरूरी

यह बहुत जरूरी है कि आप नियमित रूप से बच्चे की मालिश करें. मालिश से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और इस से आप के बच्चे की स्किन बेहतर बनेगी. बच्चों की मालिश के लिए नारियल, सरसों, बादाम या जैतून के तेल को चुन सकती हैं. इस से उन की स्किन को पोषण मिलेगा और स्किन हाइड्रेट और मौइस्चराइज रहेगी.

मालिश से पहले तेल को कुनकुना कर लें. बच्चे की मसाज करते समय इस बात का ध्यान रखें कि कमरे का तापमान 280 सी से 320 सी के बीच होना चाहिए. हलके गरम कमरे में ही बच्चे की मसाज करें और ज्यादा से ज्यादा 5 से 7 मिनट तक ही करें.

साफसफाई पर दें ध्यान

अपने बच्चे को नियमित अंतराल पर वेट वाइप्स से साफ करें. उसे रोजाना नहलाने के बजाए आल्टरनेटिव दिनों में नहलाएं. स्पौंज बाथ ज्यादा दें.

अगर बच्चा बहुत ही छोटा है तो उसे हफ्ते में 3 बार केवल स्पौंज बाथ दें और 4 बार नौर्मल बाथ. स्पौंज बाथ देने के लिए एक स्पौंज या बहुत ही मुलायम कपड़े को कुनकुने पानी में भिगो लें. इस के बाद बहुत ही हलके हाथों से बेबी के पूरे शरीर को पोंछ लें.

नहलाने के लिए एक जैंटल कैमिकल फ्री क्लींजर या बेबी बौडी वाश चुनें जो स्किन को कोमल और स्वस्थ रखने में मदद करता हो. रोजाना सफाई करने से आप के बच्चे को किसी तरह का इन्फैक्शन आदि नहीं होता खासकर जाड़े में अधिक कपड़े पहनने की वजह से पसीने के कारण बच्चे की स्किन के पोर्स बंद हो जाते हैं. नहाने से बंद हुए छिद्रों को खोलने में मदद मिलती है. बौडी के पोर खुलने से बच्चा फ्रैश महसूस करेगा. सर्दियों में बच्चे को 5 मिनट से ज्यादा न नहलाएं.

ज्यादा गरम पानी से न नहलाएं

कई बार माताएं यह गलती करती हैं कि ठंड के मौसम में शिशु को सर्दीजुकाम के खतरे से बचाने के लिए बहुत गरम पानी से नहला देती हैं. मगर याद रखें कि गरम पानी शिशु की स्किन के लिए नुकसानदेह हो सकता है. इसलिए सादे पानी में थोड़ा सा गरम पानी मिला कर शिशु को नहलाएं.

सौफ्ट टौवेल ही यूज करें

नहलाने के बाद बेबी की स्किन को बहुत ही सौफ्ट टौवेल से पोंछ लें. यह जरूर ध्यान रखें कि आप जिस भी टौवेल का यूज करें वह मुलायम होने के साथसाथ साफ भी हो. एक बात का और ध्यान रखना चाहिए कि उस के कपड़े माइल्ड डिटर्जैंट से ही धोने चाहिए. वयस्कों के डिटर्जैंट में कई हानिकारक कैमिकल्स होते हैं जो बच्चे के कपड़ों पर रह सकते हैं. इस से बच्चे की स्किन पर इरिटेशन या रैशेज हो सकते हैं.

स्किन को 2 बार लोशन से मौइस्चराइज करें

नहलाने और स्किन को टौवेल से पोंछने के बाद बच्चे की स्किन को मौइस्चराइज करने की जरूरत होती है. बेबी की स्किन बहुत जल्दी ड्राई हो जाती है. इसलिए उसे लगातार हाइड्रेट रखने की जरूरत होती है. बेबी की स्किन पर दिन में 2 बार मौइस्चराइज, बेबी क्रीम या मिल्क लोशन अप्लाई किया जा सकता है.

एक बार नहाने के तुरंत बाद और दूसरी बार शाम के समय. यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि मौइस्चराइजर अच्छी क्वालिटी का होना चाहिए. इस में मुख्य रूप से पानी के अलावा प्रोपिलीन ग्लाइकोल होना चाहिए. प्रोपिलीन बच्चे की नाजुक स्किन को मुलायम और नर्म बनाए रखता है.

डायपर रैशेज का रखें ध्यान

छोटे बच्चे को डायपर से जल्दी रैशेज हो जाते हैं क्योंकि उस की स्किन बहुत कोमल और संवेदनशील होती है. इसलिए अपने बच्चे को कस कर या बहुत लंबे समय तक डायपर पहना कर न रखें. डायपर से अगर रैशेज हो भी गए हों तो उसे खुला रहने दें और बेबी पाउडर लगाएं.

इस से बच्चे को आराम मिलेगा. बहुत देर तक उसे गीले डायपर में न रहने दें. रैशेज वाली जगह पर नारियल का तेल भी लगा सकती हैं. यह फंगल इन्फैक्शन होने से रोकता है और बच्चे की स्किन को राहत पहुंचाता है. बच्चे के लिए ऐसे डायपर का चुनाव करें जो सौफ्ट और ज्यादा सोखने वाला हो.

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सही उत्पाद करें इस्तेमाल

शिशु की स्किन बड़ों से बहुत अलग होती है, इसलिए उस की स्किन की जरूरतें भी अलग होती हैं. अगर आप शिशु की स्किन पर बड़ों के लिए इस्तेमाल होने वाले उत्पादों का इस्तेमाल करेंगी तो उस की स्किन को नुकसान पहुंच

सकता है. बाजार में बच्चों के लिए अलग से साबुन, क्रीम, पाउडर और मौइस्चराइजर उपलब्ध होते हैं, जिन का इस्तेमाल आप शिशु के लिए कर सकती हैं.

बच्चे के नाखूनों का भी रखें ध्यान

बच्चे के नाखूनों को छोटा रखना भी जरूरी है. कई बार बच्चा अपने नाखूनों से ही खुद को चोट पहुंचा लेता है, साथ ही इन में मैल भरने से इन्फैक्शन का भी खतरा रहता है क्योंकि बच्चा अकसर अपने हाथों को मुंह में डालता रहता है. बच्चे के नाखून बढ़ते भी बहुत जल्दी हैं. उन्हें काटने के लिए नेल क्लीपर पर का इस्तेमाल करें और बेहद सावधानी से इन्हें काटें.

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जानें न्यू बोर्न बेबी केयर से जुड़ें ये 6 खास मिथ

किसी महिला के पहली बार गर्भधारण करते ही आसपास से सबके सुझाव आने शुरू हो जाते है, कभी माँ, कभी सास, दादी, नानी, चाची आदि, परिवार की सारी महिलाओं के पास सुझाव के साथ नुस्खे भी तैयार रहते है, जिसे वह बिना पूछे ही उन्हें देती रहती है और गर्भधात्री इन सभी सुझावों को शांति से सुनती है,क्योंकि एक नए शिशु के आगमन की ख़ुशी नए पेरेंट्स के लिए अनोखा और अद्भुत होता है. ये सुख मानसिक और शारीरिक दोनों रूपों में होती है.

इस बारें में सुपर बॉटम की एक्सपर्टपल्लवी उतागी कहती है कि बच्चे के परिवार में आते ही बच्चे के पेरेंट्स बहुत अधिक खुश हो जाते है और उनका हर मोमेंट उनकी जिज्ञासा को बढ़ाता है. जबकि बच्चे की असहजता की भाषा उस दौरान एक पहेली से कम नहीं होती, जिसे पेरेंट्स नजदीक से समझने की कोशिश करते रहते है, जबकि परिवार, दोस्त और ऑनलाइन कुछ अलग ही सलाह देते है, ऐसे में न्यू मौम को कई प्रकार की मिथ से गुजरना पड़ता है, जिसकी जानकारी होना आवश्यक है, जो निम्न है,

अपने बच्चे की ब्रेस्ट फीडिंग का समय निर्धारित करें

न्यू बोर्न बेबी को जन्म के कुछ दिनों तक हर दो घंटे बाद स्तनपान करवाने की जरुरत होती है, इसकी वजह बच्चे के वजन को बढ़ाना होता है, इसके बाद जब बच्चे को भूख लगे, उसे ब्रैस्ट फीडिंग कराएं, कई बार जब बच्चे की ग्रोथ होने लगती है, तो उसे अधिक बार स्तनपान कराना पड़ता है, जिसके बाद बच्चा काफी समय तक अच्छी नींद लेता है. बच्चे में स्तनपान की इच्छा लगातार बदलती रहती है. बच्चा हेल्दी होने पर उसकी ब्रैस्ट फीडिंग अपने आप ही कम हो जाती है. जरुरत के अनुसार ही ब्रैस्ट फीडिंग अच्छा होता है.

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फीडिंग के बाद भी बच्चा रोता है, क्योंकि वह अब भी भूखा है

कई बार भरपेट स्तनपान करने के बाद भी बच्चा रोता है. बहुतों को लगता है कि बच्चे का पेट पूरा नहीं भरा है और उन्हें ऊपर से फार्मूला मिल्क या गाय की दूध पिलाने की सलाह दी जाती है, जो सही नहीं है. भूख के अलावा बच्चे कई दूसरे कारणों से भी रो सकते है मसलन असहज कपडे, गीला डायपर, डायपर रैशेज, अधिक गर्मी या अधिक सर्दी, माँ की गर्भ से अलग होने के बाद की असहजता आदि कई है, जिसे सावधानी से समझना पड़ता है. समय के साथ पेरेंट्स शिशु की असहजता को अपने हाथ और लिप्स से समझ जाते है.

एक अच्छी माँ बच्चे को बार-बार गोंद नहीं उठाती

एक न्यू बोर्न बेबी अपने सुरक्षित माँ की कोख से अचानक नई दुनिया में जन्म लेता है, बच्चा आराम और गर्माहट को माँ के स्पर्श से महसूस करता है. बच्चा केवल उसी से परिचित होता है और उसे बार-बार अपने आसपास महसूस करना चाहता है. ये बच्चे की एक नैचुरल नीड्स है, जिसे माँ को देना है. इसके अलावा आराम और गर्माहट बच्चे की इमोशनल, फिजिकल और दिमागी विकास में सहायक होती है. एक्सपर्ट का सुझाव ये भी है कि शिशु को कंगारू केयर देना बहुत जरुरी है,जिसमे पेरेंट्स की स्किन टू स्किन कांटेक्ट हर दिन कुछ समय तक करवाने के लिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए.इसके अलावा पहले 2 से 3 महीने तक शिशु को बेबी स्वेड्ल में रखने से उन्हें माँ की कोख का एहसास होता है और वह एक अच्छी नींद ले पाता है.

गोलमटोल होना है हेल्दी बच्चे की निशानी

हर बच्चे का आकार अलग होता है, जिसमें उसकी अनुवांशिकी काफी हद तक निर्भर करती है, जहाँ से उसे पोषण मिलता है. बच्चे की स्वास्थ्य को उसकी आकार के आधार पर जज नहीं की जानी चाहिए. उनके स्वास्थ्य की आंकलन के लिए पेडियाट्रीशन से संपर्क करन आवश्यक है, जो शिशु का वजन, उसकी ग्रोथ, हाँव-भाँव आदि सबकुछ जांचता है और कुछ कमी होने पर सही सलाह भी देता है.

न्यू बोर्न के कपडे कीटाणु मुक्त करने के लिए एंटीसेप्टिक से धोना

न्यू बोर्न बेबी की इम्युनिटी जन्म के बाद विकसित होती रहती है, ऐसे में बच्चे के कपडे को साफ़ और हायजिन रखना आवश्यक है. अधिकतर न्यू पेरेंट्स एंटीसेप्टिक लिक्विड का प्रयोग कर कपडे और नैपीस धोते है. एंटीसेप्टिक अच्छे और ख़राब दोनों बेक्टेरिया को मार डालते है,इसके अलावा इसमें कई हार्श केमिकल भी होते है, जो बच्चे की स्किन में रैशेज पैदा कर सकते है. जर्मफ्री करने के लिए बच्चे के कपड़ों को धूप में सुखाएं.

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न्यू बोर्न के पेट में दर्द से राहत के लिए ग्राइप वाटर देना

अभी तक ये सिद्ध नहीं हो पाया है कि ग्राइप वाटर बच्चे कोपेट दर्द में देना सुरक्षित है या अच्छी नीद के लिए ग्राइप वाटर सही है, इसलिए जब भी बच्चा पेट दर्द से रोये, तो तुरंत बाल और शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क कर दवा दे.

विंटर बेबी केयर टिप्स

न्यू मौम को लोग उस के बच्चे को ले कर तरहतरह की सलाह देते हैं जैसे तुम बच्चे को पहली सर्दी में ऐसे कपड़े पहनाओ, यह औयल लगाओ, इस औयल से मसाज करो, यह प्रोडक्ट इस्तेमाल करो, उसे ऐसे पकड़ो बगैराबगैरा. उसे समझ नहीं होती है, लेकिन बच्चे की बैस्ट केयर के चक्कर में वह हर नुसखा, हर सलाह हर किसी की मान लेती है, जिस की वजह से कई बार दिक्कतें भी खड़ी हो जाती हैं. लेकिन यह बात आप जान लें कि आप से बेहतर उसे कोई नहीं जान सकता क्योंकि आप उस की मौम जो हैं.

ऐसे में हम आप को गाइड करते हैं कि कैसे आप विंटर्स में अपने नन्हेमुन्ने की केयर कर के उस का खास तरह से खयाल रख सकती हैं. तो आइए जानते हैं:

कंफर्ट दें लाइट ब्लैंकेट से

सर्दियों का मौसम है और वह भी आप के बच्चे की पहली सर्दी, तो सावधानी बरत कर तो चलना ही पड़ेगा. लेकिन हर पेरैंट्स यही सोचते हैं कि बस हमारा बच्चा ठंड से बचा रहे और लंबी नींद सोए, इस के लिए वे बच्चे को पहली ठंड से उसे हैवी ब्लैंकेट से ढक कर सुलाने की कोशिश करते हैं.

लेकिन वे केयर के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि वह बच्चा है और जिस पर अगर बच्चे से ज्यादा ब्लैंकेट का भार डाल दिया जाए तो न तो वह सोने में आप के बच्चे को कंफर्ट देगा और सेफ्टी के लिहाज से भी ठीक नहीं है क्योंकि छोटा बच्चा ज्यादा हाथपैर नहीं चला पाता, ऐसे में अगर गलती से ब्लैंकेट से उस का मुंह कवर हो गया, फिर तो बड़ी दिक्कत हो सकती है.

इसलिए आप बच्चे को हैवी ब्लैंकेट की जगह लाइट लेकिन वार्म ब्लैंकेट से कवर करें जो आप के बच्चे को वार्म रखने के साथसाथ साउंड स्लीप देने का काम भी करेगा. ध्यान रखें कि ब्लैंकेट का आदर्श भार आप के बच्चे के वजन का 10% के करीब ही होना चाहिए.

कपड़े हों आरामदायक

जब घर में नन्हे के कदम पड़ते हैं, तो घर में हर किसी के चेहरे पर खुशी नजर आती है और वे अपनी इस नन्ही जान के लिए जो बन पड़ता है वह करते हैं. वे अपने बच्चे को अच्छा दिखाने व सर्दी से बचाने के लिए हर ऐसा कपड़ा खरीद लाते हैं, जो उसे सर्दी से बचा कर रखे. लेकिन आप शायद बच्चे के कपड़े की शौपिंग में यह भूल जाते हैं कि उसे वार्म रखने के साथसाथ उस के कंफर्ट का भी ध्यान रखना है, वरना कपड़ों के कारण डिसकंफर्ट होने पर बच्चा न तो चैन की नींद सोएगा और हर समय चेहरे से वह परेशान ही नजर आएगा.

इसलिए जब भी नन्हे के लिए विंटर के कपड़े खरीदें तो मोटे वूलन कपड़े न खरीदें, बल्कि सौफ्ट फैब्रिक से बने कपड़़े ही खरीदें. हाथपैरों को मोटे ग्लव्स व सौक्स से कवर करने से बचें. इन की जगह आप हलके व सौफ्ट फैब्रिक का चयन करें क्योंकि इस से बच्चे को डिस्कंफर्ट होने के साथसाथ उस की मूवमैंट में भी बाधा उत्पन्न होती है. नन्हे को घर में वेसीएस पहनाने से बचें क्योंकि यह बच्चे की मूवमैंट में पूरी तरह से व्यवधान पैदा करने का काम करता है.

आप इस तरह के कपड़ों को जब बच्चे को बाहर ले जाएं तब ही इस्तेमाल करें. इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे के कपड़े रूम टैंपरेचर के हिसाब से होने चाहिए.

डिस्कंफर्ट का कैसे पता लगाएं:

अगर आप के बच्चे का फेस पूरा लाल व शरीर जरूरत से ज्यादा गरम है और वह आप के स्पर्श मात्र से ही रोना शुरू कर दे तो समझ जाएं कि आप ने उसे जरूरत से ज्यादा कपड़ों से कवर किया हुआ है, जो उसे परेशान कर रहे हैं.

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मालिश जो बनाए स्ट्रौंग

नन्हे बहुत नाजुक होते हैं, इसलिए उन की खास केयर की जरूरत होती है और जब बात हो विंटर्स की तो उन्हें वार्म रखने के साथसाथ स्ट्रौंग बनाना भी बहुत जरूरी होता है, जिस में मसाज का अहम रोल होता है क्योंकि मसाज करने से बच्चे की हड्डियां मजबूत बनने के साथसाथ इस से शरीर की बनावट में भी सुधार होता है. यह ब्लड सर्कुलेशन को इंपू्रव कर के गैस व ऐसिडिटी के कारण होने वाले डिस्कंफर्ट को भी कम करने का काम करती है.

लेकिन मालिश के लिए जरूरी है सही तेल का चुनाव करना. वैसे तो सदियों से लोग सरसों के तेल से बच्चे की मसाज करते आए हैं और आज भी करते हैं, लेकिन आप इस की जगह कोकोनट औयल व औलिव औयल का भी चुनाव कर सकती हैं क्योंकि इस में हैं विटामिन ई की खूबियां, जो शरीर को मजबूती प्रदान करने के साथसाथ स्किन को भी हैल्दी रखने का काम करती हैं. इस की खास बात यह है डायपर के कारण स्किन पर होने वाले रैशेज व जलन को भी कम करने में मददगार है क्योंकि इस में है ऐंटीइनफ्लैमेटरी व ऐंटीमाइक्रोबियल प्रौपर्टीज जो होती हैं.

एशियन जर्नल रिसर्च की 2012 की रिपोर्ट के अनुसार, मसाज करने से बच्चे की पेरैंट्स के साथ सोशल बौंडिंग बनती है. वह उन के स्पर्श को जाननेपहचानने लगता है.

टिप: इस बात का ध्यान रखें कि जब भी आप बच्चे की मसाज करें तो आप का रूम वार्म हो ताकि कंफर्ट जोन में आराम से मसाज कर सकें. नहाने से पहले मसाज करने से बौडी में वौर्मनैस बनी रहती है. शुरुआत में मसाज हमेशा हलके हाथों से करें. कभी भी दूध पिलाने के तुरंत बाद मसाज न करें क्योंकि इस से बच्चे के उलटी करने का डर रहता है.

कैसा हो न्यूबौर्न का मौइस्चराइजर

इस संबंध में जानते हैं कौस्मैटोलौजिस्ट भारती तनेजा से:

बच्चों की स्किन बहुत ही सैंसिटिव होती है, जिस पर कोई भी प्रोडक्ट नहीं लगाया जा सकता क्योंकि उस से स्किन पर जलन, रैशेज व ईचिंग की समस्या हो सकती है. लेकिन सैंसिटिव के साथसाथ सर्द हवाएं उन की स्किन को ड्राई भी बनाने का काम करती हैं. ऐसे में आप अपने बच्चे की स्किन को बेबी औयल जैसे आमंड औयल व औलिव औयल से मौइस्चराइज करें क्योंकि इस में मौजूद विटामिन ई की खूबियां बच्चे की स्किन को सौफ्ट व हैल्दी बनाने का काम करती हैं, साथ ही आप अपने बच्चे के लिए कोको बटर, शिया बटर युक्त मौइस्चराइजर का भी चयन कर सकती हैं क्योंकि यह काफी सौफ्ट होते हैं.

जब भी अपने नन्हे के लिए मौइस्चराइजर का चयन करें तो देखें कि उस में परफ्यूम, कैमिकल्स व कलर्स न हों. हमेशा बच्चे की स्किन टाइप को देख कर ही मौइस्चराइजर खरीदें. आप को मार्केट में बायोडर्मा व सीबमेड के मौइस्चराइजर मिल जाएंगे, जो बच्चों की स्किन के लिए परफैक्ट होते हैं.

ब्रैस्टफीडिंग का रखें खास ध्यान

न्यूबौर्न बेबी का इम्यून सिस्टम विकसित हो रहा होता है, जिस के कारण उसे ज्यादा श्वसन संबंधित बीमारियों के साथसाथ बैक्टीरिया व वायरस से संक्रमित होने की भी ज्यादा संभावना होती है खास कर के सर्दियों के मौसम में. ऐसे में उसे वार्म और बीमारियों से दूर रखने के लिए उस की इम्यूनिटी को स्ट्रौंग बनाने की जरूरत होती है और इस में ब्रैस्टफीड का अहम रोल होता है क्योंकि मां के दूध में सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स होने के साथसाथ ऐंटीबौडीज भी होती हैं, जो बच्चे के इम्यून सिस्टम को स्ट्रौंग बनाने के साथसाथ बीमारियों से बचाने का भी काम करती हैं. इसलिए आप ब्रैस्टफीडिंग से अपने बच्चे की हैल्थ का खास ध्यान रखें. इस से आप का बच्चा भी सुरक्षित रहेगा और आप भी निश्चिंत रहेंगी.

टौपिंग ऐंड टेलिंग ट्रिक को अपनाएं

सर्दी का मौसम न्यूबौर्न के लिए किसी चैलेंज से कम नहीं होता है. ऐसे में नए बने पेरैंट्स नहीं सम?ा पाते कि उन्हें अपने बेबी को रोजाना बाथ देना है या फिर हफ्ते में 2-3. ऐसे में आप के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि अगर बाहर काफी ठंड है तो आप अपने नन्हेमुन्हे को रोजाना नहलाने की भूल न करें, बल्कि इस की जगह हफ्ते में 2-3 बार ही नहलाएं और वह भी ऐसे समय पर जब बाहर धूप निकली हो ताकि नहाने के बाद आप उसे नैचुरल गरमी दे कर उस की बौडी को वार्म रख पाएं.

रोजाना नहलाने के बजाय आप उस के हाथपैर, गरदन व बौटम एरिया को कुनकुने पानी से क्लीन करें. इसे ही टौपिंग ऐंड टेलिंग कहते हैं. इस से आप का बच्चा क्लीन भी हो जाएगा और उसे ठंड से भी बचा पाएंगी.

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दें विटामिन डी

यहां हम बच्चे को विटामिन डी के लिए किसी सप्लिमैंट को देने की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि सनलाइट से मिलने वाले विटामिन डी की बात कर रहे हैं, जो बच्चे की हड्डियों को स्ट्रौंग बनाने के साथसाथ इम्यूनिटी को बूस्ट करने का भी काम करता है. इस के लिए जब भी आप बच्चे को नहलाएं तो उस के बाद उसे धूप में जरूर ले जाएं क्योंकि इस से बच्चे को गरमी मिलने के साथसाथ जर्म्स का भी सफाया होता है.

क्या है कंगारू मदर केयर

भारत एक ऐसा देश है, जहां हर साल विश्व की तुलना में सब से अधिक प्रीमैच्योर जन्म लेने वाले बच्चों की मृत्यु होती है. इस की वजहें गर्भधारण के बाद से मां को सही पोषण न मिलना, गर्भधारण के बाद भी मां का वजनी काम करना, प्रीमैच्योर बच्चा जन्म लेने के बाद आधुनिक तकनीकी व्यवस्था का अस्पताल में न होना आदि कई हैं. इस के अलावा कुछ प्रीमैच्योर बच्चे 1 महीना ही जीवित रह पाते हैं.

तकनीक है आसान 

इस बारे में नियोनेटोलौजी चैप्टर, ‘इंडियन ऐकेडेमी औफ पीडिएट्रिक्स’ के नियोनेटोलौजिस्ट डा. नवीन बजाज ‘इंटरनैशनल कंगारू केयर अवेयरनैस डे’ पर कहते है कि कंगारू केयर प्रीमैच्योर और नवजात शिशुओं के देखभाल की एक तकनीक है.

अधिकतर जिन शिशुओं का जन्म समय से पहले होने पर वजन कम हो, उन के लिए कंगारू केयर का प्रयोग किया जाता है. इस में बच्चे को मातापिता के खुले सीने से चिपका कर रखा जाता है, जिस से पेरैंट की त्वचा से शिशु की त्वचा का सीधा संपर्क होता रहता है, जो बहुत प्रभावशाली होने के साथसाथ प्रयोग में भी आसान होता है और शिशु का स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है. इस तकनीक को समय से पहले या समय पूरा होने के बाद पैदा हुए सभी बच्चों की अच्छी देखभाल के लिए लाभकारी होता है.

डा. नवीन कहते हैं कि कंगारू केयर तकनीक से शिशु की देखभाल के लिए सब से सही व्यक्ति उस की मां होती है, लेकिन कई बार कुछ वजहों से मां बच्चे को कंगारू केयर नहीं दे पाती. ऐसे में पिता या परिवार का कोई भी करीबी सदस्य, जो बच्चे की जिम्मेदारी संभाल सकें, मसलन भाईबहन, दादादादी, नानानानी, चाचीमौसी, बूआ, चाचा आदि में से कोई भी बच्चे को कंगारू केयर दे कर मां की जिम्मेदारी का कुछ भाग बांट सकता है.

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इस के अलावा कंगारू केयर दे रहे व्यक्ति को स्वच्छता के कुछ सामान्य मानकों का पालन करना आवश्यक होता है, जैसे हर दिन नहाना, साफ कपड़े पहनना, हाथों को नियमित रूप से धो कर स्वच्छ रखना, नाखून कटे हुए और साफ होना आदि बहुत जरूरी होता है.

कब शुरू करें कंगारू केयर

डाक्टरों का मानना है कि कंगारू केयर या त्वचा से त्वचा का संपर्क तकनीक की शुरुआत बच्चे के जन्म से ही करनी चाहिए और आगे पूरी पोस्टपार्टम अवधि तक इसे जारी रखा जा सकता है. इस तकनीक की इस्तेमाल की अवधि शुरुआत में कम रखनी चाहिए.

पहले 30 से 60 मिनट, इस के बाद धीरेधीरे मां को इस की आदत पड़ जाने, इस तकनीक के इस्तेमाल का आत्मविश्वास मां में आ जाने पर जितना हो सके, उतने लंबे समय के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है खासकर कम वजन के शिशुओं के लिए कंगारू केयर की अवधि जितनी ज्यादा हो, उतनी अच्छी होती है. बच्चे को कंगारू केयर देते हुए मां खुद भी आराम कर सकती है या आधा लेट कर सो सकती है.

कंगारू केयर की प्रक्रिया

मां के स्तनों के बीच शिशु को रखना चाहिए, उस का सिर एक तरफ   झुका हो ताकि उसे सांस लेने में आसानी हो. बच्चे का पेट मां के पेट के ऊपरी भाग से चिपका हो, हाथ और पैर मुड़े हुए हों. शिशु को बेस देने के लिए स्वच्छ, सूती कपड़ा या कंगारू बैग का इस्तेमाल किया जा सकता है. समय से पहले पैदा हुए या कम वजन के बच्चों की देखभाल के लिए कंगारू केयर की शुरुआत हुई, लेकिन समय पूरा हो कर पैदा हुए या सही वजन के बच्चों के लिए भी यह तकनीक लाभकारी है.

पिता और कंगारू केयर का संपर्क

डाक्टर बजाज कहते हैं कि माताओं की तरह पिता भी त्वचा से त्वचा का संपर्क तकनीक से बच्चे की देखभाल कर सकते हैं. यह शिशु और पिता दोनों के लिए फायदेमंद है. यह तकनीक पिता को बच्चे की भूख और तनाव के संकेतों को सम  झने में भी मदद करती है. जब पिता कंगारू केयर दे रहा हो, तब मां आराम कर सकती है और बच्चे की अच्छी देखभाल के लिए अपनी ऊर्जा और उत्साह को बनाए रख सकती है.

कंगारू केयर के फायदे

– त्वचा से त्वचा का संपर्क होने से मस्तिष्क के विकास और भावनात्मक संबंधों के निर्माण को बढ़ावा मिलता है, आंखों से आंखों का कौंटैक्ट होते रहने से प्यार, अपनापन और विश्वास से सामाजिक प्रतिभा का भी विकास होने में मदद मिलती है.

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– इस तकनीक के इस्तेमाल से स्तनपान को भी बढ़ावा मिलता है. बच्चा और मां दोनों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है. इस के अलावा बच्चे के पोषण और विकास में स्तनपान का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है.

– सर्दियों में कम वजन के बच्चे के शरीर के तापमान को स्थिर रखा जाता है.

– इस तकनीक से देखभाल किए गए बच्चों का वजन अच्छी तरह बढ़ता है, वे लंबे समय तक शांत सोते हैं, जागने पर भी शांत रहते हैं और रोते भी कम हैं.

इसलिए ‘वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन’ और चिकित्सकों ने सलाह दी है कि सभी बच्चों के लिए कंगारू केयर तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि उन का विकास सही तरह से हो सके.

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