‘‘अकी, बेटा उठो, सुबह हो गई, स्कूल जाना है,’’ अनुभव ने अपनी लाडली बेटी आकृति को जगाने के लिए आवाज लगानी शुरू की.
‘‘हूं,’’ कह कर अकी ने करवट बदली और रजाई को कानों तक खींच लिया.
‘‘अकी, यह क्या, रजाई में अब और ज्यादा दुबक गई हो, उठो, स्कूल को देर हो जाएगी.’’
‘‘अच्छा, पापा,’’ कह कर अकी और अधिक रजाई में छिप गई.
‘‘यह क्या, तुम अभी भी नहीं उठीं, लगता है, रजाई को हटाना पड़ेगा,’’ कह कर अनुभव ने अकी की रजाई को धीरे से हटाना शुरू किया.
‘‘नहीं, पापा, अभी उठती हूं,’’ बंद आंखों में ही अकी ने कहा.
‘‘नहीं, अकी, साढ़े 5 बज गए हैं, तुम्हें टौयलेट में भी काफी टाइम लग जाता है.’’
यह सुन कर अकी ने धीरे से आंखें खोलीं, ‘‘अभी तो पापा रात है, अभी उठती हूं.’’
अनुभव ने अकी को उठाया और हाथ में टूथब्रश दे कर वाशबेसन के आगे खड़ा कर दिया.
सर्दियों में रातें लंबी होने के कारण सुबह 7 बजे के बाद ही उजाला होना शुरू होता है और ऊपर से घने कोहरे के कारण लगता ही नहीं कि सुबह हो गई. आकृति की स्कूल बस साढ़े 6 बजे आ जाती है. वैसे तो स्कूल 8 बजे लगता है, लेकिन घर से स्कूल की दूरी 14 किलोमीटर तय करने में बस को पूरा सवा घंटा लग जाता है.
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जैसेतैसे अकी स्कूल के लिए तैयार हुई. फ्लैट से बाहर निकलते हुए आकृति ने पापा से कहा, ‘‘अभी तो रात है, दिन भी नहीं निकला. मैं आज स्कूल जल्दी क्यों जा रही हूं.’’
‘‘आज कोहरा बहुत अधिक है, इसलिए उजाला नहीं हुआ, ऐसा लग रहा है कि अभी रात है, लेकिन अकी, घड़ी देखो, पूरे साढ़े 6 बज गए हैं. बस आती ही होगी.’’
कोहरा बहुत घना था. 7-8 फुट से आगे कुछ नजर नहीं आ रहा था. सड़क एकदम सुनसान थी. घने कोहरे के बीच सर्द हवा के झोंकों से आकृति के शरीर में झुरझुरी सी होती और इसी झुरझुराहट ने उस की नींद खोल दी. अपने बदन को बे्रक डांस जैसे हिलातेडुलाते वह बोली, ‘‘पापा, लगता है, आज बस नहीं आएगी.’’
‘‘आप को कैसे मालूम, अकी?’’
‘‘देखो पापा, आज स्टाप पर कोई बच्चा नहीं आया है, आप स्कूल फोन कर के मालूम करो, कहीं आज स्कूल में छुट्टी न हो.’’
‘‘आज छुट्टी किस बात की होगी?’’
‘‘ठंड की वजह से आज छुट्टी होगी. इसलिए आज कोई बच्चा नहीं आया. देखो पापा, इसलिए अभी तक बस भी नहीं आई है.’’
‘‘बस कोहरे की वजह से लेट हो गई होगी.’’
‘‘पापा, कल मोटी मैडम शकुंतला राधा मैडम से बात कर रही थीं कि ठंड और कोहरे के कारण सर्दियों की छुट्टियां जल्दी हो जाएंगी.’’
‘‘जब स्कूल की छुट्टी होगी तो सब को मालूम हो जाएगा.’’
‘‘आप ने टीवी में न्यूज सुनी, शायद आज से छुट्टियां कर दी हों.’’
आकृति ही क्या सारे बच्चे ठंड में यही चाहते हैं कि स्कूल बंद रहे, लेकिन स्कूल वाले इस बारे में कब सोचते हैं. चाहे ठंड पहले पड़े या बाद में, छुट्टियों की तारीखें पहले से तय कर लेते हैं. ठंड और कोहरे के कारण न तो छुट्टियां करते हैं न स्कूल का टाइम बदलते हैं. सुबह के बजाय दोपहर का समय कर दें, लेकिन हम बच्चों की कोई नहीं सुनता है. सुबहसुबह इतनी ठंड में बच्चे कैसे उठें. आकृति मन ही मन बड़बड़ा रही थी.
तभी 3-4 बच्चे स्टाप पर आ गए. सभी ठंड में कांप रहे थे. बच्चे आपस में बात करने लगे कि मजा आ जाएगा यदि बस न आए. तभी एक बच्चे की मां अनुभव को संबोधित करते हुए बोलीं, ‘‘भाभीजी के क्या हाल हैं. अब तो डिलीवरी की तारीख नजदीक है. आप अकेले कैसे मैनेज कर पाएंगे. अकी की दादी या नानी को बुलवा लीजिए. वैसे कोई काम हो तो जरूर बताइए.’’
‘‘अकी की नानी आज दोपहर की टे्रन से आ रही हैं,’’ अनुभव ने उत्तर दिया.
तभी स्कूल बस ने हौर्न बजाया, कोहरे के कारण रेंगती रफ्तार से बस चल रही थी. किसी को पता ही नहीं चला कि बस आ गई. बच्चे बस में बैठ गए. सभी पेरेंट्स ने बस ड्राइवर को बस धीरे चलाने की हिदायत दी.
बस के रवाना होने के बाद अनुभव जल्दी से घर आया. स्नेह को लेबर पेन शुरू हो गया था, ‘‘अनु, डाक्टर को फोन करो. अब रहा नहीं जा रहा है,’’ स्नेह के कहते ही अनुभव ने डाक्टर से बात की. डाक्टर ने फौरन अस्पताल आने की सलाह दी.
अनुभव कार में स्नेह को नर्सिंग होम ले गया. डाक्टर ने चेकअप के बाद कहा, ‘‘मिस्टर अनुभव, आज ही आप को खुशखबरी मिल जाएगी.’’
अनुभव ने अपने बौस को फोन कर के स्थिति से अवगत कराया और आफिस से छुट्टी ले ली. अनुभव की चिंता अब रेलवे स्टेशन से आकृति की नानी को घर लाने की थी. वह सोच रहा था कि नर्सिंग होम में किस को स्नेह के पास छोड़े.
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आज के समय एकल परिवार में ऐसे मौके पर यह एक गंभीर परेशानी रहती है कि अकेला व्यक्ति क्याक्या और कहांकहां करे. सुबह आकृति को तैयार कर के स्कूल भेजा और फिर स्नेह के साथ नर्सिंग होम. स्नेह को अकेला छोड़ नहीं सकता, मालूम नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाए.
आकृति की नानी अकेले स्टेशन से कैसे घर आएंगी. घर में ताला लगा है. नर्सिंग होम के वेटिंगरूम में बैठ कर अनुभव का मस्तिष्क तेजी से चल रहा था कि कैसे सबकुछ मैनेज किया जाए. वर्माजी को फोन लगाया और स्थिति से अवगत कराया तो आधे घंटे में मिसेज वर्मा थर्मस में चाय, नाश्ता ले कर नर्सिंग होम आ गईं.
‘‘बेटा, पहले तो आप चाय और नाश्ता लीजिए, मैं यहां स्नेह के पास बैठती हूं. आप आकृति की नानी को रेलवे स्टेशन से ले आइए.’’
अनुभव ने बिस्कुट के साथ चाय पी और रेलवे स्टेशन रवाना हुआ. स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि गाड़ी 2 घंटे लेट है. रेलवे प्लेटफार्म के बेंच पर बैठा अनुभव सोचने लगा कि एकल परिवार के जहां एक तरफ अपने सुख हैं तो दूसरी ओर दुख भी. आज जब प्रसव के समय किसी अपने की जरूरत है, तो अकेले सभी कार्य खुद को करने पड़ रहे हैं. लेकिन यह उस की मजबूरी है. नौकरी जहां मिलेगी, वहीं रहना पड़ेगा. ऐसे समय में पड़ोस ही सगा होता है. पता नहीं डाक्टर भी डिलीवरी की गलत तारीख क्यों बताते हैं. तारीख के हिसाब से आकृति की नानी को 10 दिन पहले बुलाया है, लेकिन कुदरत के सामने किसी का बस चलता तो नहीं न.
पड़ोसी वर्माजी की भी कुछ ऐसी स्थिति है. दोनों बुजुर्ग दंपती रिटायरमेंट के बाद अकेले रह रहे हैं. एक बेटा विदेश में नौकरी कर रहा है, 2-3 साल बाद 2 महीने के लिए मिलने आता है और दूसरा बेटा बंगलौर में आईटी कंपनी में नौकरी करता है. साल में 10 दिन के लिए मिलने आता है. 2 बेटियां हैं, एक अहमदाबाद में रहती है, दूसरी नोएडा में, जो हर रविवार को सपरिवार मिलने आती है. बाकी सप्ताह भर वर्मा दंपती अकेले. इसी कारण अनुभव और वर्माजी के बीच काफी नजदीकियां हो गई थीं.
अनुभव और स्नेह दोनों नौकरी करते थे. आकृति की वजह से वर्मा दंपती की नजदीकियां बढ़ीं. दोपहर को आकृति स्कूल से आती तो अधिक समय उस का वर्माजी के घर बीतता. घर के कार्य के लिए अनुभव ने नौकरानी रखी हुई थी, लेकिन नौकरानी आकृति का कम और अपना ध्यान अधिक रखती थी. इस कारण कई नौकरानियां आईं और चली गईं, लेकिन वर्मा परिवार से संबंध बढ़ता ही गया. अकेलेपन को दूर करने के लिए एक छोटे बच्चे का सहारा वर्माजी को अपने खुद के बच्चों की दूरी भुला देता था. इस में दोष किसी का नहीं है.
तभी रेलवे की घोषणा ने अनुभव को विचलित कर दिया. गाड़ी 2 घंटे और लेट है. उफ, ये रेलवे वाले कभी नहीं सुधरेंगे. एक बार में क्यों नहीं बता देते कि गाड़ी कितनी देर से आएगी. सुबह से एकएक घंटे बाद और अधिक देरी से आने की घोषणा कर रहे हैं. सर्दियों में कोहरे के कारण गाडि़यां अकसर देरी से चलती हैं. अनुभव आज और अधिक इंतजार नहीं कर सकता था. लेकिन इस समय वह केवल झुंझला कर रेलवे प्लेटफार्म के एक छोर से दूसरे छोर के चक्कर लगा रहा था. तभी मोबाइल की घंटी बजी. दूसरी तरफ वर्माजी थे.
‘‘मुबारक हो, अनु बेटे. अकी का भाई आया है. स्नेह और छोटा काका एकदम ठीक हैं. तुम चिंता मत करो. मैं घर जा रहा हूं, अकी के स्कूल से वापस आने का समय हो गया है. चिंता मत करना.’’
यह सुन कर अनुभव की जान में जान आई. अब शांति से बेंच पर बैठ गया. निश्ंिचत हो कर अब अनुभव टे्रन का इंतजार करने लगा. गाड़ी पूरे 6 घंटे देरी से आई. बच्चे की खुशखबरी सुन कर नानी की सफर की सारी थकान मिट गई.
‘‘अनु बेटे, अब सीधा नर्सिंग होम ले चल. पहले छोटे काके को देख कर स्नेह से मिल लूं.’’
नर्सिंग होम में स्नेह के पास झूले में छोटा काका सो रहा था. नानी को देख कर वर्मा दंपती ने बधाई दी. नानी ने नर्स और आया को रुपए न्योछावर किए और छोटे काके को गोद में लिया. छोटे काके को गोद में लेते देख आकृति बोली, ‘‘नानी, मैं ने आप से पहले छोटे काका को देखा. नानी, कितना गोरा है. देखो, कितना सौफ्ट है लेकिन एकदम गंजा है. सिर पर एक भी बाल नहीं है.’’
नानी ने लाड़ में कहा, ‘‘बाल भी आ जाएंगे. अकी से भी ज्यादा. जब तुम पैदा हुई थीं, तुम्हारे भी सिर में बाल नहीं थे, अब देखो, कितने लंबे बाल हैं.’’
‘‘नानी, मुझे दो न छोटे काका को, मम्मी तो हाथ भी नहीं लगाने दे रहीं.’’
नानी ने प्यार से कहा, ‘‘अभी बहुत छोटा है, मेरे पास बैठो, तुम्हारी गोदी में देती हूं.’’
गोदी में काका को पा कर आकृति उल्लास से भर कर बोली, ‘‘नानी, देखो, अभी आंखें खोल रहा था, देखो, कितने अच्छे तरीके से मुसकरा रहा है.’’
ऐसे हंसतेखेलते शाम हो गई. स्नेह ने नानी को घर जा कर आराम करने को कहा. आकृति का मन जाने को नहीं हो रहा था.
‘‘नानी, थोड़ा रुक कर चलते हैं. अभी काका जाग रहा है. जब सो जाएगा, तब चलेंगे.’’
‘‘अकी, अब घर चलो, होमवर्क भी करना होगा और फिर तुम उठने में देर कर देती हो,’’ अनुभव ने आकृति से कहा.
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घर में होमवर्क करते समय अकी का ध्यान छोटे काका में लगा हुआ था. जैसेतैसे होमवर्क पूरा किया. रात को एक बार फिर वह अनुभव के साथ नर्सिंग होम गई और काफी देर तक छोटे काका को निहारती रही, पुचकारती रही.
रात को घर आने में देरी हो गई. पूरे दिन की थकान के बाद स्नेह और अपने बेटे को सही देख कर संपूर्ण निश्ंिचतता के साथ अनुभव सोया तो सुबह उठने में देरी हो गई.
वर्मा आंटी ने कालबेल बजाई तब जा कर अनुभव की आंख खुली.
‘‘बेटे, क्या बात है, क्या अकी स्कूल नहीं जाएगी. मैं ने उस का नाश्ता भी बना दिया है.’’
‘‘आंटी, मालूम नहीं आज घड़ी का अलार्म कैसे नहीं सुनाई दिया. अभी अकी को उठाता हूं. स्कूल की तो अगले सप्ताह से छुट्टियां हैं.’’
‘‘कोई बात नहीं, बेटा. मैं तुम्हारी चाय और अकी का नाश्ता रसोई में रख देती हूं और हां, स्नेह और नानी की चाय ले कर नर्सिंग होम जा रही हूं. तुम आराम से अकी को स्कूल के लिए तैयार करो.’’
अनुभव के उठने पर बड़ी मुश्किल से अकी स्कूल जाने के लिए तैयार हुई. चूंकि स्कूल बस आज निकल गई, इसलिए अनुभव को कार ले जानी पड़ी. अनुभव अकी को ले कर स्कूल पहुंचा तो गेट पर प्रिंसिपल खड़ी थीं और देरी से आने वाले बच्चों को घर वापस भेज रही थीं.
अनुभव ने काफी मिन्नत की लेकिन प्रिंसिपल के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा, उलटे वह अनुभव पर बिफर पड़ीं, ‘‘आप अभिभावकों का कर्तव्य है कि बच्चों को नियमित समय पर स्कूल भेजें, उन को अनुशासित करें, लेकिन आप उन को शह दे कर और अधिक बिगाड़ रहे हैं. मैं स्कूल का नियम किसी को नहीं तोड़ने दूंगी. आप अपने बच्चे को वापस ले जाइए.’’
‘‘मैडम प्लीज, आगे से देर नहीं होगी. आज अधिक सर्दी और धुंध के कारण देर हुई है,’’ अनुभव ने विनती की.
‘‘अगर आप का घर दूर है तो आप घर के पास किसी स्कूल में बच्चे को दाखिल करवाइए. मुझे अपने स्कूल का अनुशासन नहीं तोड़ना,’’ पिं्रसिपल ने कड़क स्वर में कहा.
इस के आगे अनुभव कुछ नहीं कह सका और चुपचाप अकी के साथ कार स्टार्ट कर घर के लिए रवाना हो गया. अनुभव का मूड खराब हो गया कि कितने कठोर हैं स्कूल वाले जो बच्चों के साथ उन के मातापिता से भी कितने गलत तरीके से पेश आते हैं. इतनी ठंड में छोटे बच्चों को सुबह उठाना, तैयार करना कितना मुश्किल होता है. ठंड की परेशानी को समझना चाहिए. स्कूल के समय को बदलना चाहिए. यदि 1 घंटा देरी से सर्दियों में स्कूल लगाया जाए तो सब समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है. चाहे कुछ हो जाए, इस साल अकी का स्कूल बदलवा दूंगा. घर के पास जिस भी स्कूल में दाखिला मिलेगा, उसी में करवा दूंगा. आखिर मैं भी तो घर के पास के सरकारी स्कूल में पढ़ा हूं. क्या जिंदगी की दौड़ में पिछड़ गया. स्कूल के बड़े नाम में क्या रखा है.
अनुभव यह सोचता हुआ धीरेधीरे कार चला रहा था. अकी समझ गई कि पापा पिं्रसिपल की बात से उदास और नाराज हो गए हैं. अकी ने सीडी प्लेयर औन कर पापा की मनपसंद सीडी लगा दी. मुसकरा कर अनुभव ने अकी को देखा और कार की रफ्तार तेज की. आखिर बच्चे भी सब समझते हैं. हमें कुछ कहते नहीं, शायद डरते हैं क्योंकि हम डांट मार कर उन्हें चुप करा देते हैं.
‘‘अकी, जब स्कूल की छुट्टी हो गई है तब कुछ समय नानी, स्नेह और छोटे काका के संग गुजारा जाए,’’ यह कहते हुए अनुभव ने कार सीधे नर्सिंग होम की तरफ मोड़ दी. अकी बहुत खुश हुई कि छोटे काका के साथ उसे सारा दिन गुजारने को मिलेगा.
स्कूल बैग के साथ अकी को देख कर स्नेह कुछ नाराज हुई, ‘‘आप ने अकी की छुट्टी क्यों करवाई.’’
अनुभव ने कहा कि इस विषय में घर चल कर बात करेंगे.
शाम को स्नेह को नर्सिंग होम से छुट्टी मिल गई. अनुभव ने अकी से कहा कि आज स्कूल की छुट्टी हो गई तो वह अपनी फें्रड से होमवर्क पूछ कर पूरा कर ले.
अकी ने जैसेतैसे होमवर्क किया और फिर नानी के पास सट के बैठ गई कि इसी बहाने वह छोटे काका के पास रह लेगी. रात काफी हो गई थी, खुशी में बातोंबातों में आंखों से नींद गायब थी, घड़ी देख कर स्नेह ने अकी को सोने को कहा कि कल सुबह भी कहीं लेट न हो जाए.
अभी अकी को एक सप्ताह और स्कूल जाना था, ठंड इस साल कुछ अधिक थी. सुबह जबरदस्त कोहरा होने लगा. रोज सुबह अकी को इतनी जल्दी स्कूल के लिए तैयार होते देख कर नानी ने स्नेह से कहा, ‘‘बेटी, किसी पास के स्कूल में अकी को दाखिल करवा दे. इतना अधिक परिश्रम छोटे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए घातक है.’’
‘‘मां, मैं स्कूल चेंज नहीं कराऊंगी. बहुत नामी और बढि़या स्कूल है.’’
इस का जवाब अनुभव ने दिया, ‘‘स्नेह, नानी ठीक कह रही हैं, मैं ने सोच लिया है कि इस साल रिजल्ट निकलने पर अकी का दाखिला किसी पास के स्कूल में करवा दूंगा,’’ और फिर उस ने पूरी बात स्नेह को विस्तारपूर्वक बताई कि कैसे फटकार लगा कर प्रिंसिपल ने उसे अपमानित किया. ऐसी बात सुन कर स्नेह उदास हो गई कि उस का अकी को एक नामी स्कूल में पढ़ाने का अरमान साकार नहीं हो पाएगा. लेकिन अनुभव के दृढ़ निश्चय और नानी के सहयोग के आगे स्नेह को झुकना पड़ा.
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आकृति यह सुन कर बहुत खुश हुई कि अब उसे नए सत्र से पास के किसी स्कूल में जाना होगा. इतनी जल्दी भी नहीं उठना पड़ेगा. स्कूल बस में वह बहुत अधिक परेशान होती थी. बड़े बच्चे बस की सीटों पर छोटे बच्चों को बैठने नहीं देते थे. स्कूल टीचर भी उन्हें कुछ नहीं कहती थीं. उलटे सब से आगे की सीटों पर बैठ जाती थीं.
गरमियों में तो इतना ज्यादा पसीना आता, घबराहट होती कि तबीयत खराब हो जाती थी, लेकिन पापामम्मी तो इस बारे में सोचते ही नहीं. सर्दियों में कितनी ज्यादा ठंड होती है. स्कर्ट पहन कर जाना पड़ता है. ऊपर से कोट पहना देते हैं, लेकिन स्कर्ट पहनने से टांगों में बहुत ज्यादा ठंड लगती है. छोटे बच्चों की परेशानी कोई नहीं समझता.
ठंड बढ़ती जा रही थी. बच्चों की परेशानी को महसूस कर प्रशासन ने सरकारी स्कूलों की छुट्टी समय से पहले घोषित कर दी. अभिभावकों के दबाव में आ कर निजी स्कूलों में भी निर्धारित समय से पहले सर्दियों की छुट्टियां घोषित कर दीं. जिस दिन छुट्टियों की घोषणा की, आकृति अत्याधिक खुशी के साथ झूमती हुई, नाचती हुई स्कूल से वापस आई. जैसे नानी ने फ्लैट का दरवाजा खोला, आकृति नानी से लिपट गई.
‘‘नानी, मेरी प्यारी नानी, आज मैं आजाद पंछी हूं. हमारी कल से पूरे 20 दिन की छुट्टी. अब मैं रोज छोटे काका के संग खेलूंगी,’’ और अपना स्कूल बैग एक तरफ पटक दिया और आईने के सामने कमर मटकाते हुए गीत गाने लगी.
तभी स्नेह ने आवाज लगाई, ‘‘अकी, काका सो रहा है, शोर मत मचाओ.’’
‘‘गाना भी नहीं गाने देते,’’ कह कर अकी बाथरूम में मुंह धोने के लिए चली गई और गीत गाने लगी, ‘‘मैं ने जिसे अभी देखा है, उसे कह दूं, प्रीटी वूमन, देखो, देखो न प्रीटी वूमन, तुम भी कहो न प्रीटी वूमन.’’
अकी का गाना सुन कर स्नेह ने उस की नानी से कहा, ‘‘मम्मी, जा कर अकी को बाथरूम से निकालो, वरना वह 2 घंटे से पहले बाहर नहीं आएगी.’’
नानी ने अकी को बाथरूम में जा कर कहा, ‘‘प्रीटी वूमन, बहुत बनसंवर लिए. अब बाहर आ जाइए. छोटा काका आप को बुला रहा है.’’
‘‘सच्ची,’’ कह कर अकी ने फर्राटे की दौड़ लगाई, ‘‘यह क्या नानी, छोटा काका तो सो रहा है, आप ने मेरा मजाक उड़ा कर सारा मूड खराब कर दिया,’’ अकी ने मुंह बनाते हुए कहा.
‘‘मूड कैसे बनेगा, मेरी लाड़ो का,’’ नानी ने अकी को अपनी गोद में बिठाते हुए पूछा.
‘‘जब पापा गाना गाएंगे तब मैं पापा के साथ मिल कर गाऊंगी.’’
‘‘वह क्यों?’’
‘‘नानी, आप को नहीं पता, पापा को यह गाना बहुत अच्छा लगता है. मम्मी को देख कर गाते हैं.’’
‘‘अच्छा अकी, पापा का गाना तो बता दिया, मम्मी कौन सा गाना गाती हैं, पापा को देख कर?’’ इस से पहले अकी कुछ कहती, स्नेह तुनक कर बोली, ‘‘मां, तुम यह क्या बातें ले कर बैठ गईं.’’
यह सुनते ही अकी नानी के कान में धीरे से बोली, ‘‘नानी, मम्मी को थोड़ा समझाओ. हमेशा डांटती रहती हैं.’’
छुट्टियों में अकी को बेफिक्र देख कर नानी ने स्नेह से कहा कि बच्चों के कुदरती विकास के लिए जरूरी है कि उन्हें पूरा समय मिले, पढ़ने के साथ खेलने का मौका मिले. क्या तू भूल गई, किस तरह बचपन में तू पड़ोस की लड़कियों के साथ खेलती थी और पूरा महल्ला शोर से सिर पर उठाती थी. हम अपना बचपन भूल जाते हैं कि हम ने भी शैतानियां की थीं. बच्चों पर आदर्श थोपते हैं, जो एकदम अनुचित है.
‘‘मां, तुम भाषण पर आ गई हो,’’ स्नेह ने तुनक कर कहा.
‘‘तुम खुद देखो कि अकी आजकल कितनी खुश है, जितने दिन स्कूल गई, एकदम थकी सी रहती थी, अब एकदम चुस्त रहती है. इसलिए कहती हूं कि अनुभव की बात मान ले.’’
‘‘मम्मी, तुम और अनु एक जैसे हो, एकदूसरे की हां में हां मिलाते रहते हो. मेरी भावनाओं की तरफ सोचते भी नहीं हो. आखिर आप ने मुझे इतना क्यों पढ़ाया. एमबीए के बाद शादी कर दी. मेरा कैरियर भी नहीं बनने दिया. मुश्किल से 1 साल भी नौकरी नहीं की, शादी हो गई. शादी के बाद शहर बदल गया, फिर अकी के जन्म के कारण नौकरी नहीं की. अकी स्कूल जाने लगी, तब बड़ी मुश्किल से अनु को राजी किया. 3-4 साल ही नौकरी की, अब फिर छोटे काका के जन्म पर नौकरी छोड़नी पड़ रही है.’’
‘‘स्नेह, एक बात तुम समझ लो, परिवार के लालनपालन और बच्चों में अच्छी आदतों की नींव डालने के लिए मांबाप को अपनी कई इच्छाओं को मारना पड़ता है. परिवार को सही तरीके से पालना नौकरी करने से अधिक कठिन है. गृहस्थी की कठिन राह से परेशान लोग संन्यास लेते हैं, लेकिन दरदर भटकने पर भी न तो शांति मिलती है और न ही सुख. कठिन गृहस्थी में ही सच्चा सुख है.’’
स्नेह मां के आगे निरुत्तर हो गई और आकृति को घर के पास वाले स्कूल में दाखिल करने को राजी हो गई. सर्दियों की छुट्टियों में वर्माजी की लड़की भी अपने परिवार के साथ रहने आ गई. वर्माजी की नातिन वृंदा आकृति की हमउम्र थी. दोनों सारा दिन एकसाथ धमाचौकड़ी करती रहतीं और नानी, स्नेह, छोटा काका वर्मा परिवार के साथ सोसाइटी के लौन में धूप सेंकते. एक दिन धूप सेंकते वर्माजी ने अपनी लड़की को सलाह दी कि वह भी वृंदा को पास के स्कूल में दाखिल करवा दे. वे आकृति की नानी के गुण गाने लगे कि उन्होंने स्नेह को आकृति के स्कूल बदलने के लिए राजी कर लिया है.
स्नेह मुंह बना कर बोली, ‘‘क्या अंकल आप भी स्कूल पुराण ले कर बैठ गए. बड़ी मुश्किल से तो नानी की कथा बंद की है.’’
‘‘बेटे, इस का जिक्र बहुत जरूरी है. देखो, जब हम स्कूल में पढ़ते थे तब गरमियों और सर्दियों में स्कूल का अलग समय होता था. गरमी में सुबह 7 बजे और सर्दियों में 10 बजे स्कूल लगता था. गरमी में 12 बजे घर वापस आ जाते थे और सर्दी में धूप में बैठ कर पढ़ते थे.’’
‘‘अच्छा,’’ वृंदा ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘आप कुरसीमेज क्लास से रोज बाहर लाते थे और फिर अंदर करते थे. अपने सर पर उठाते थे, क्या नानाजी?’’
‘‘नहीं बेटे, हमारे समय में तो मेजकुरसी नहीं होते थे. जमीन पर दरी बिछा कर बैठते थे. धूप निकलते ही मास्टरजी हुक्म देते थे और सारे बच्चे फटाफट दरियां उठा कर क्लासरूम के बाहर धूप में बैठ जाते थे. मजे की बात तो बरसात में होती थी. स्कूल की छत टपकती थी. जिस दिन बारिश होती थी, उस दिन छुट्टी हो जाती थी, मास्टरजी कहते थे, रेनी डे, बच्चो, आज की छुट्टी.’’
यह सुन कर वृंदा और आकृति जोरजोर से हंसने लगीं…रेनी डे, होलीडे, कहतेकहते और हंसतेहंसते दोनों लोटपोट हो गईं.
अब अनुभव कहने लगा, ‘‘वर्मा अंकल के बाद मेरी भी सुनो, मेरा स्कूल 2 शिफ्टों में लगता था. छठी क्लास तक दूसरी शिफ्ट में स्कूल लगता था. खाना खा कर 1 बजे स्कूल जाते थे. 6 बजे वापस आते थे, मजे से सुबह 7-8 बजे सो कर उठते थे, सुबह स्कूल जाने की कोई जल्दी नहीं होती थी.’’
आकृति और वृंदा को स्कूल की बातों में बहुत अधिक रस आ रहा था और वे हंसतेहंसते लोटपोट होती जा रही थीं.
अकी को छुट्टियों में इतना अधिक खुश देख कर स्नेह ने पास के स्कूल का महत्त्व समझा और फाइनल परीक्षा के बाद नए सत्र में घर के पास स्कूल में अकी का दाखिला करा दिया. घर से स्कूल का पैदल रास्ता सिर्फ 5 मिनट का था. 2 दिन में ही अकी इतनी अधिक खुश हुई और स्नेह से कहा, ‘‘मम्मी, यह स्कूल बहुत अच्छा है, मेरी 2 फ्रेंड्स साथ वाली सोसाइटी में रहती हैं. मम्मी, आप को मालूम है, वे साइकिल पर स्कूल आती हैं, मुझे भी साइकिल दिला दो, 2 मिनट में स्कूल पहुंच जाऊंगी.’’
अनुभव ने आकृति को साइकिल दिला दी. अब अकी को न तो टेंशन था सुबह जल्दी उठ कर स्कूल जाने की और न स्कूल बस मिस हो जाने का. सारा दिन वह खुश रहती था. होमवर्क करने के बाद काफी समय छोटे काका के साथ खेलती और बेफिक्र चहकती रहती.
6 महीने में एकदम लंबा कद पा गई आकृति को देख कर स्नेह खुशी से फूली नहीं समाती थी. जो अकी कल तक सारा दिन थकीथकी रहती थी, आज वह कहने लगी, ‘‘मम्मी, मुझे चाय बनाना सिखाओ, मैं आप को सुबह बेड टी पिलाया करूंगी.’’
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सुन कर स्नेह को अपनी मां की कही बातें बारबार याद आतीं कि बच्चों के बहुमुखी विकास के लिए उन का बेफिक्र होना बहुत जरूरी है. उन पर उन की क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालना चाहिए. बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी होती है.