शिव की नगरी काशी शिव भक्ति के लिए प्रसिद्ध है,मोक्ष नगरी काशी में मंदिरों घाटो और पान के अलावा एक और चीज पुरे विश्व भर में प्रसिद्ध है, वह है यहाँ की बनारसी साड़ी. विश्व के कोने-कोने में इस साड़ी का एक विशेष स्थान है . एक लंबे समय तक भारतीय दुल्हन अलमारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहने वाली बनारसीसाडिया,आज भी अपने पुराने रंगों में दुल्हन को भा रही है. आज भी नव विवाहित जोडियो की पहली पसंद यही साड़ी होती है.
बनारसीसाडिय़ों का निर्माण मुगल काल में अधिक होता था, इस काल में साड़ी बुनाई कला के दौरान काफी लोकप्रिय था, तभी तो बनारसी साड़ी की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गयी थी. मुग़ल काल से आज तक बनारसी साड़ी में कई परंपरागत बुनकर की प्रतिभा की संस्करणों कों बोलते हुए दिखा जा सकता है. बनारस के कई इलाके विश्व प्रसिद्ध बनारसीसाडिय़ो के अतीत और वर्तमान से आज भी सजता- सवारता है.
साड़ी भारतीय नारी का अहम पोषक है, साडिय़ो के कई प्रकार भारतीय बाजारों में उपलब्ध है , इन प्रकारों में उत्तम प्रकार माना जाता है, बनारसी साड़ी कों. बनारसी साड़ी के विभिन्न किस्मों आता है- जरी बनारसी साड़ी और सिल्क बनारसी साड़ी एवं शुद्ध रेशम का बनारसी साड़ी . बनारसी साडिय़ों का निर्माण बनारस के बाहर भी होती है. बनारसी सिल्क के अधिकांश काम भारत दक्षिण से होता है, लेकिन बनारसी साड़ी का मुख्य बाजार बनारस ही है . बनारस में कई पारंपरिक कलाकार साड़ी को नित्य नए अद्भुत डिजाइन देने में लगे होते है . बनारस से आप कई जगहों पर इन साडिय़ो को बनाते हुए देख सकते है . कई जगहों पर साड़ी डिजाइन करने वाले आप को डिजाइन बोर्ड लिए, रंग के मदद से ग्राफ बनाते दिख जायेगे, ग्राफ डिजाइन के पहले नमूने में कई सुधार करने के बाद उसे अंतिम डिजाइन का रूप दिया जाता है. बनारस के लाखों लोगों के बनारसी साड़ी के व्यवसाय से जुड़े हुए है . बनारस के कई प्रमुख बाजार में बनारसी साड़ी आराम से मिल जाती है .
बनारसी साड़ी निर्माण के क्षेत्र में तीन दशक से काम करने वाले संजय बताते है कि बनारसी साड़ी के एक डिजाइन के लिए, सर्वप्रथम एक छिद्रित कार्ड के सैकड़ा करने की आवश्यकता है, फिर तैयार छिद्रित कार्ड से काम शुरू किया जाता है . तैयार छिद्रित कार्ड अलग धागे और रंग के साथ करघा पर सजाकर एक व्यवस्थित तरीके से बुनाई शुरू किया जाता है . सामान्यत एक बनारसी साड़ी के निर्माण में 15 दिन से एक महीने का समय लगते हैं. साड़ी निर्माण पर लगने वाला समय साड़ी पर कलाकरी एवं नकासी पर आधारित होता है .
बनारसी साड़ी निर्माण में तीन दशक से अधिक समय तक काम करने वाले संतोष बताते है कि महगाई और आधुनिकता के मार ने बनारसी साड़ी कोंथोडा सा जरुर पिछड़ा है, फिर भी इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नही आई है. कभी इस साडिय़ो में शुद्ध सोने की जऱी का प्रयोग होता था, किंतु बढ़ती कीमत को देखते हुए नकली चमकदार जऱी से ही काम चलाया जा रहा है . ये जारी भी काफी आकर्षित होती है, सोना जैसा चमक देने वाली ये जरिया हर भारतीय नारी कों अपने अपने तरफ आकर्षित करती है .
आज भी उत्तर प्रदेश के चंदौली, बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर और संत रविदासनगर जिले में बनारसीसाडिय़ां बनाई जाती हैं. इसका कच्चा माल भी यहीं से आता है. इन इलाकों में ये पारंपरिक काम सदियों से चला आ रहा है.
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साड़ी को लेकर हर महिला के मन में अलग तरह का क्रेज होता है. साड़ी को भारतीय संस्कृति में नारी का उतम पोषक माना जाता है और इस उतम पोषक में बनारसी रंग का समावेश हो तो बात ही कुछ खास होती है, बनारसी साड़ी विश्व के कोने -कोने में ख्याति पा चुकी है . कई जगहों पर बनारसी साड़ी नारियो का उत्तम पोशाकी आभूषण बन गयी है .