कोविड पेशेंट के लिए ‘डॉक्टर ऑन व्हील्स’ करती है 20 घंटे काम, जानें कैसे

हर दिन सुबह 8 बजे कर्नाटक के बंगलुरु में रहने वाले 36 वर्षीय जनरल फिजिशियनडॉ. सुनील कुमार हेब्बीकार से किसी हॉस्पिटल या क्लिनिक की ड्यूटीपर नहीं जाते, बल्कि कोविड 19 से पीड़ित मरीजों की चिकित्सा के लिए उनके पास जाते है. ये साधारण कारनहीं,बल्कि मोबाइल क्लिनिक कार है, जिसके अंदर उन्होंने बेड,ऑक्सीजन, थर्मामीटर, ओक्सिमीटर आदि सभी कोविड 19 के मरीजों की इलाज के लिए एक अस्पताल की तरहव्यवस्था रखे हुए है. वे ‘मात्रु सिरी फाउंडेशन’ के फाउंडर ट्रस्टी है और उसके तहत इस कार को चलाते है. कई दिनों की कोशिश के बाद उनसे फ़ोन पर बात हो पायी, क्योंकि वे हर दिन 20 घंटे काम करते है. उनकी कार बंगलुरु के आसपास के सभी जगहों पर उन बुजुर्ग और अकेले रहने वाले मरीजो को देखने जाती है, जो अस्पताल नहीं जा सकते.

मिली प्रेरणा

corona

डॉ. सुनील कहते है कि मैं पिछले 12 साल से मोबाइल क्लिनिक चला रहा हूँ. एक दिन मैं अस्पताल की ड्यूटी पर जा रहा था. वहां एक एक्सीडेंट हुआ था. मेरे कार से फर्स्टएड बॉक्स निकाल कर मैंने उस लड़के का इलाज किया और नजदीक के अस्पताल में भर्ती किया. उस लड़के की माँ ने फ़ोन कर मुझे उसके इकलौते बेटे को बचाने के लिए धन्यवाद दिया और अगले दिन मुझसे मिलकर मेरे पाँव छू लिया और रोने लगी. मैंने उनसे कहा कि एक नागरिक और डॉक्टर होने के नाते मुझे तो ये करना ही था. मैं उनकी इमोशन से बहुत प्रभावित हुआ और अब कारमें केवल फर्स्ट एड बॉक्स ही नहीं,बल्कि कार की डिकी स्पेस, चेयर के पीछे या आगे, जहाँ जो भी चीज फिट बैठता हो, उसे फिट किया, जिसमें फोल्डिंग कुर्सी,टेबल, बेड, ओक्सिमीटर, ECG मशीनआदि जो भी चीज इलाज के लिए जरुरत है, उसे अच्छी तरह से फिट कर दिया. अभी कोरोना को ट्रीट करने के लिए दो ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर भी लेकर आयेहै. इसमें मैं दो मरीज का इलाज कर सकता हूँ.

ये भी पढ़ें- शादी निभाने की जिम्मेदारी पत्नी की ही क्यों

छोड़नीपड़ी नौकरी 

corona-1

मरीजों को जानकारी देने के लिए डॉ. सुनील फेसबुक का सहारा लेते है,जिसमें उनकी एक विडियो के साथ फ़ोन नंबर है. पहले सरकारी स्कूल, ओल्ड ऐज होम, कंस्ट्रक्शन वर्कर्स आदि जगहों पर शनिवार और रविवार को इलाज करतेथे. डॉक्टर हेब्बीका कहना है किमैं कॉर्पोरेट हॉस्पिटल में काम करता थाऔर सैलरी भी अच्छी थी,लेकिन एक दिन मेरे सीनियर ने मुझे शनिवार और रविवार को छुट्टी देने से मना कर दिया, मैंने नौकरी छोड़ दी.काम छोड़ने से पैसों की तंगी होने लगी. मैंने एक क्लिनिक शुरू किया, जिसमें रात में ही पेशेंट देखता था, इससे कुछ जीविका चलती रही. लोगों की सेवा करना मेरा निर्णय था, इसलिए किसी भी समस्या का समाधान मुझे ही निकालना था. कोरोना से पहले मैंने लगभग 785 फ्री मेडिकल कैम्प्स पूरे बंगलुरु में लगाया है. अब तक एक लाख 20 हज़ार पेशेंट को 12 साल में ठीक किया है. अभी तेरहवां साल चल रहा है. मेरे साथ 17 स्कूल्स और 5 ओल्ड एज होम जुड़े है. शुरू में मेरे साथ कोई नहीं था, पर बाद में मेरे काम को देखकर कई अलग-अलग फील्ड के डॉक्टर्स भी मुझसे जुड़े, जिससे काम करना आसान हो गया. अभी 2-3 महीने में मैंने कोविड के 700 रोगी का इलाज कर चुका हूँ. करीब 17 लाख लोगों ने मेरे पोस्ट को कोविड के दौरान फेसबुक पर 15 दिन में देख चुके है.कोविड से पीड़ित मरीज को दवा और इलाज मैं फ्री में देता हूँ. मेरे साथ वोलेंटीयर काम करने वाली एक नर्स को कोविड 19 सीरियस हो गया था, उसका इलाज मैंने बहुत मुश्किल से कर उसे उसके घर भेज दिया. अभी जगदीश, आशा लक्ष्मण, सौभाग्या मेरे काम में सहयोग देते है.

वित्तीय चुनौती है अधिक

corona-2

डॉ. सुनील को वित्तीय समस्या कई बार आई, लेकिन उनके दोस्तों ने उन्हें सहायता किया, क्योंकि जॉब छोड़ने के बाद जमा किये हुए राशि से उन्होंने 12 साल निकाला है. उनके माता-पिता उनके साथ रहते है और मुश्किल समय में हमेशा उन्हें सहयोग देते है. उनका कहना है कि गरीब और बुजुर्गों को कोविड पीरियड में मुफ्त इलाज की आवश्यकता है. अभी मैं टेम्पो ट्रेवलर वैन खरीदना चाहता हूँ, क्योंकि मेरी ये कार ख़राब हो चुकी है और इससे मैं अधिक दूर तक नहीं जा सकता. टेम्पो ट्रेवलर होने पर अधिक पेशेंट देख सकूँगा और दूर तक भी जा सकता हूँ. बंगलुरु के आसपास में बहुत बड़ी स्लम है,जहाँ गरीबी बहुत अधिक है. ब्लडप्रेशर और डायबिटीज के मरीज नियमित लेने वाली दवा भी खरीदने में असमर्थ है. वहां इस तरह की मोबाइल क्लिनिक की जरुरत है, जिससे उनकी चेकअप के साथ-साथ दवा भी मुफ्त में दी जाय.

आगे की योजनायें

corona-3

आगे डॉ. सुनील एक चैरिटेबल अस्पताल अपने गाँव विजयापुरा में बनाना चाहते है, जिसमें गरीबों को मुफ्त में सही इलाज मिले. कोविड की दूसरी लहर में अमीर से लेकर गरीब बहुतों ने अपनी जान बिना इलाज और ऑक्सीजन के गवाई है, जिसका उन्हें मलाल है. डॉ. सुनील कहते है कि ऑक्सीजन और बेड की कमी बंगलुरु में बहुत थी. मैं 300 किलोमीटर रातभर गाड़ी चलाकर तमिलनाडु से ऑक्सीजन सिलिंडर ब्लैक में बंगलुरु लाया, जिससे कई लोगों की जान बची. एक छोटे बच्चे को मैं ऑक्सीजन के अभाव में नहीं बचा पाया. कोविड के इस भयंकर रूप को देखकर मैं कुछ को ऑनलाइन कंसलटेशन और कुछ को बुलाकर इलाज करता हूँ. मेरे साथ काम करने वालों को भी मैंने आने से मना कर दिया है, क्योंकि ये बीमारी बहुत खतरनाक है. मैं कई अस्पताल से जुड़ा हूँ, क्योंकि सीरियसली बीमार रोगी को अस्पताल में एडमिट करने की जरुरत पड़ती है, लेकिन कोविड में सारे अस्पताल भरे होने की वजह से मैं किसी भी बीमार को एडमिट नहीं कर सका. मेरा मेसेज लोगों से यह है कि कोरोना की कोई दवा नहीं है. केवल लक्षण के आधार पर इलाज किया जाता है. यंग लोगों की लापरवाही से ये रोग अधिक फैला है और यूथ की मृत्यु भी अधिक हुई है. कोविड की तीसरी लहर न आयें, इसके लिए जरुरत के बिना घर से बाहर न निकलना, मास्क पहनना, डिस्टेंस मेंटेन करना और हाथ धोना ये सब रोज की प्रैक्टिस में लाना चाहिए. इस बीमारी से डरने की जरुरत नहीं, क्योंकि मेरे 700 मरीज में केवल 50 मरीज ही थोड़े सीरियस थे.

ये भी पढ़ें- आर्टिस्ट कृपा शाह से जानें कैसे भरे जीवन में रंग

सिर्फ मिला एप्रीसिएशन

corona-4

डॉ. का कहना है कि सरकार की तरफ से किसी प्रकार की सुविधा मुझे नहीं मिली. कर्नाटक के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधान मंत्री ने कोरोना वारियर और हीरो के रूप में उनके वेब साईट पर मेरा नाम डाला है और एप्रीसिएशन मिला है, इसके अलावा किसी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं मिली. मुझे सहयोग करने वाले ऑटो ड्राईवर, मजदूर, अनपढ़ गरीब लोग है, जो केवल व्हाट्सएप चलाना जानते है. उससे ही वे मुझसे जुड़ते है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें