कोविड 19 की वजह से लॉकडाउन का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है, पर इसे लागू करने के बाद दूर दराज से आने वाले मरीज और उनके परिजनों को काफी समस्या आ रही है. भारत में लगातार कोरोना के मरीज लगातार बढ़ रहे है और उनके इलाज के लिए सरकार काम कर रही है, लेकिन कोरोना वायरस से पीड़ित रोगी को छोड़कर बाकी लोग जो कैंसर या अन्य बीमारी से पीड़ित है, जिनके परिजन अस्पतालों में या तो इलाज करवा रहे है या फिर इलाज के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया है, पर लॉकडाउन होने की वजह से वे घर नहीं जा पाए है. ये साधारण लोग अस्पताल के बाहर सोने, नहाने, बिना पानी और भोजन के रहने के लिए विवश है, ऐसे ही परिजनों की सेवा में लगी एनजीओ क्रांति की को फाउंडर बानी दास बताती है कि क्रांति पिछले 10 सालों से सेक्स वर्कर की लड़कियों को शिक्षा देने और उन्हें सहयोग देने की दिशा में काम कर रही है. लॉक डाउन होने से उनके पास सारी लड़कियां जो अलग-अलग राज्यों में पढाई कर रही थी, सभी मुंबई संस्था में आ गयी. अख़बारों और न्यूज़ में लगातार कोविड 19 के समाचार आ रहे रहे थे, ऐसे में मुझे मुंबई की वर्ली स्थित टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल की याद आई, क्योंकि पिछले साल मेरी एक रिश्तेदार को लेकर टाटा हॉस्पिटल इलाज़ करवाने गयी थी, वहां साधारण परिवार के लोग अपने मरीज के साथ दूसरे शहर या राज्य से आते है और हॉस्पिटल के बाहर खाना खाते है और छोटे कमरे में रहते है, लेकिन लॉक डाउन के चलते ये सुविधाएं बंद है. जवान और कम उम्र की महिलाएं और लड़कियां अस्पताल के बाहर कोरिडोर पर रातें गुजार रही है. जो लोग अस्पताल के अंदर एडमिट है उनके लिए सब व्यवस्था है, लेकिन जो परिजन उनके साथ आये है, उनके लिए कोई व्यवस्था प्रसाशन या किसी संस्था के द्वारा नहीं किया गया है. केवल एक बार कुछ समय के लिए उन्हें मरीज के साथ मिलने दिया जाता है. मैंने एक दिन केवल 3 लड़कों ने थोडा खाना देते हुए देखा बाद में मैंने किसी को नहीं देखा.
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बानी आगे कहती है कि असल में टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल जहां पूरे देश से हजारों की संख्या में मरीज कैंसर का इलाज करवाने आते है और 70 प्रतिशत मरीज़ ठीक होकर फोलोअप के लिए आते रहते है, ऐसे में ऐसी लॉक डाउन से उनके परिवार जन को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. उनके लिए प्रसाशन की तरफ से कोई सुविधा नहीं है. मैं जब वहाँ उनका हालचाल देखने गयी तो पता चला कि लोगों को कुछ दिनों से भरपेट खाना और पानी नहीं मिला है. उनके पास पैसे है ,पर दुकाने बंद है. नहाने और टॉयलेट के लिए उन्हें रोज 20 रुपये देने पड़ते है, जिसमें उन्हें साबुन भी नहीं मिलता और दुकाने भी खुली नहीं है कि वे उसे खरीद सकें. हाईजिन के नाम पर कुछ भी नहीं है. ये सारे लोग दूसरे शहरों के है, इसलिए उन्हें कुछ अधिक पता भी नहीं है. अस्पताल परिसर भी उनको अंदर जाने नहीं देती. ट्रेन नहीं है कि वे अपने घर जा सकें,ऐसे में मैंने उन्हें भोजन देने का निश्चय किया. भोजन लेकर जब मैं वहां गयी तो वहां दो महिला ने खाना लेने से मना किया और पानी की मांग की, क्योंकि वहां एक पेट्रोल पम्प में दिन में एक बार पानी दिया जाता है. अगर किसी कारणवश वे पानी नहीं भर पाती है, तो उन्हें पानी के बिना ही रहना पड़ता है. तीन चार परिवार पटना और तीन चार परिवार कोलकाता के है, कुछ लोग ठीक तो हुए पर उनके मुंह में छाले है, इसलिए वे कुछ तेल मसालेदार खाना नहीं खा पा रहे थे. मैने उनके लिए दूध की व्यवस्था की, जो बहुत मुश्किल था, क्योंकि वह एरिया हॉट स्पॉट होने की वजह से लॉकडाउन का बहुत सख्ती से पालन हो रहा है. ये सभी लोग ट्रेन बंद होने की वजह से मुंबई में फंसे है और यहाँ से निकलने की कोशिश कर रहे है. खाना वितरित करने के लिए मैंने पुलिस की परमिशन लिया, जो बहुत मुश्किल और लंबा प्रोसेस है, जिसे मैंने एक जानकार पुलिस की सहायता से किया और उनतक खाना पहुंचा पायी. करीब 200 खाने का डिब्बा बनाती हूँ, जिसमें कोशिश करती हूँ कि खाना अच्छा और पौष्टिक हो, ताकि उनके सेहत सही रहे. खाने के अलावा मैंने साबुन, सर्फ, शैम्पू, सेनिटरी पैड भी मैंने उनके लिए बांटे है, क्योंकि वाकहं कई महिलाएं भी है. मैं पिछले कई दिनों से ये काम कर रही हूँ पर वित्तीय कमी की वजह से कितना कर पाउंगी पता नहीं.
वित्तीय सहायता के बारें में पूछे जाने पर बानी कहती है कि मेरी संस्था में करीब 15 लड़कियां है. संस्था के डोनर भी अभी मुश्किल में है और वे भी पैसा देने से कतरा रहे है. मेरे यहाँ रहने वाली सभी लड़कियों के खाने पीने की व्यवस्था मुझे करनी पड़ रही है. डोनर के पैसे का सही इस्तेमाल हो इसके लिए मैंने ऑनलाइन योगा और वर्कआउट की क्लासेज भी क्रांतिकारी लड़कियों के द्वारा शुरू किया है. कुछ लोग ऐसे भी है जो इस अवस्था का फायदा उठा रहे है, फेक आई डी बनाकर पैसे इकट्ठा किये और थोड़े सामान जरुरत मंदों को देकर पूरा पैसा हथिया लिये, जो गलत है. क्रांति कभी भी सरकार के डोनेशन नहीं लेती.
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बानी का आगे कहना है कि मुंबई की पीला हाउस, कमाठीपुरा, आदि स्थानों पर जहाँ सेक्स वर्कर करीब 5 हज़ार की संख्या में रहते है. हर दिन की कमाई पर उनका दिन गुजरता है. उनकी दशा भी सोचनीय हो चुकी है. मेरे यहां रहने वाली लड़कियों की अधिकतर माएं वहां रहती है और बदतर जिंदगी जी रही है. इन जगहों पर एक साथ बहुत सारी महिलाएं रहती है, ऐसे में अगर किसी को भी करोना पॉजिटिव निकला तो दृश्य बहुत भयंकर होगा. ऐसी महिलाओं के पास खाने पीने के सामान की बहुत किल्लत है, क्योंकि दुकाने बंद है. उन्हें थोड़ी-थोड़ी खिचड़ी सुबह शाम मिलती है, उन्ही में वे गुजारा कर रही है. मैंने उन्हें कुछ राशन के सामान दिए है पर वह बहुत कम है.
बानी सबसे यही कहना चाहती है कि ऐसे सभी नागरिकों के लिए जो भी जितना कर सकें, अच्छा होगा,क्योंकि लोग मुश्किल में है, कही काम नहीं है और इतने बड़े देश में सबको सम्हालना और दो वक़्त का खाना देना आज मुश्किल हो चुका है. क्रांति की वेबसाइट के जरिये मैं डोनेशन जुटाने की कोशिश कर रही हूँ , ताकि खाना बांटने का मेरा काम न रुके.