विकास के आधार को लेकर क्या कहती है पत्रकार और टीवी एंकर बरखा दत्त

पत्रकार और राइटर बरखा दत्त का जन्म नई दिल्ली में एयर इंडिया के अधिकारी एस पी दत्त और प्रभा दत्त, के घर हुआ था. दत्त को पत्रकारिता की स्किल मां से मिला है. महिला पत्रकारों के बीच बरखा का नाम लोकप्रिय है. उनकी छोटी बहन बहार दत्त भी टीवी पत्रकार हैं. बचपन से ही क्रिएटिव परिवार में जन्मी बरखा ने पहले वकील या फिल्म प्रोड्यूस करने के बारें में सोचा, लेकिन बाद में उन्होंने पत्रकारिता को ही अपना कैरियर बनाया.

चैलेंजेस लेना है पसंद

वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के समय कैप्टेन बिक्रम बत्रा का इंटरव्यू लेने के बाद बरखा दत्त काफी पॉपुलर हुई थी. वर्ष 2004 में भूकंप और सुनामी के समय भी रिपोर्टिंग की थी. उन्हें चुनौतीपूर्ण काम करना बहुत पसंद था, इसके लिए उन्हें काफी कंट्रोवर्सी का सामना करना पड़ा. वर्ष 2008 में बरखा को बिना डरे साहसिक कवरेज के लिए पदम् श्री पुरस्कार भी मिला है. इसके अलावा उन्हें बेस्ट टीवी न्यूज एंकर का ख़िताब भी मिल चुका है. बरखा के चुनौतीपूर्ण काम में कोविड 19 के समय उत्तर से दक्षिण तक अकेले कवरेज करना भी शामिल है, जब उन्होंने बहुत कम मिडिया पर्सन को ग्राउंड लेवल पर मजदूरों की दशा को कवर करते हुए पाया. उनकी इस जर्नी में सबसे कठिन समय कोविड से आक्रांत उनकी पिता की मृत्यु को मानती है, जब वह कुछ कर नहीं पाई.

 

 

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बरखा दत्त ने मोजो स्टोरी पर ‘वी द वीमेन’ की 6 एडिशन प्रस्तुत किया है, जहाँ महिलाओं ने अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों से गुजरते हुए कैसे आगे बढ़ी है, उनके जर्नी की बात कही गयी है, जिसे सभी पसंद कर रहे है. वह कहती है कि वुमन एम्पावरमेंट पर कई कार्यक्रम हर साल होते है, जिसमे कुछ तो एकेडमिक तो कुछ ग्लैमर से जुड़े शो होते है, जिससे आम महिलाएं जुड़ नहीं पाती. मैंने ग्रासरूट से लेकर सभी से बात की है. ग्राउंड से लेकर एडल्ट सभी को शामिल किया गया है, इसमें केवल महिलाएं ही नहीं, पुरुषों, गाँव और कम्युनिटी की औरतों को भी शामिल किया गया है. इसमें गे राईट से लेकर मेनोपोज सभी के बारें में बात की गई है, ताकि दर्शकों के पसंद के अनुसार कुछ न कुछ देखने और सीखने को मिले.

इक्विटी ऑफ़ वर्क है जरुरी

बरखा आगे कहती है कि मुझे लगता है, चुनौती हर इंसान का अपने अपने अंदर होता है, इसमें हमारे संस्कार, एक माहौल में बड़े होना शामिल होती है. घरों में क्वालिटी की बात नहीं होती, लेकिन महिलाएं काम और ड्रीम शुरू करती है, लेकिन आगे जाकर छोड़ देती है, इसे क्यों छोड़ दिया, या क्या समस्या था, पूछने पर वे परिवार और बच्चे की समस्या को खुद ही उजागर कर संतुष्टि पा लेती है. मैं हमेशा कहती हूँ कि ‘इक्वलिटी ऑफ़ वर्क’ अधूरी रहेगी, अगर महिला ने घर पर इक्वलिटी की बात न की हो, क्योंकि एक सर्वे में पता चला है कि कोविड के दौरान काफी महिलाओं ने काम करना छोड़ दिया है. देखा जाय तो महिलाएं हर बाधाओं को पार कर काम कर रही है. फाइटर जेट से लेकर फ़ौज और स्पेस में भी चली गई है, लेकिन आकड़ों को देखे तो इंडिया में काम करने वाली महिलाओं की संख्या में कमी आई है, बढ़ी नहीं है. भागीदारी काम में कम हो रही है. पढ़ी लिखी औरतों के लिए मेरा कहना है कि पढ़े लिखे होने की वजह से हमेशा जागरूक होनी चाहिए. हमें मौका गवाना नहीं चाहिए, क्योंकि कई महिलाओं को ये मौका नहीं मिल पाता है.

 

 

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करना पड़ा, खुद को प्रूव

बरखा कहती है कि मैंने कई बार अपनी बातों को जोर देकर सामने रखा है. वर्ष 1999 में जब मैंने कारगिल वार को कवर करने गई थी, मुझे अपनी ऑर्गनाइजेशन को बहुत मनाना पड़ा. वार फ्रंट में जाने का मौका नहीं मिल रहा था, आज तो महिलाएं फ़ौज में है, तब बहुत कम थी. उन्होंने कहा कि खाने , रहने औए बाथरूम के लिए जगह नहीं होगी, मैंने कहा कि मैं सबकुछ सम्हालने के लिए तैयार हूँ, क्योंकि मैं एक वार ज़ोन में जा रही हूँ. मैंने देखा है कि आप जितना ही चुनौतीपूर्ण काम करें और अचीव कर लें, उतनी ही आपको बहुत अधिक मेहनत करने की जरुरत आगे चलकर होती है और उस पोस्ट पर पहुँच कर 10 गुना अधिक काम, कंट्रोवर्सी और जजमेंट की शिकार होना पड़ता है. एक महिला को पूरी जिंदगी संघर्ष करनी पड़ती है, वह ख़त्म कभी नहीं होती.

खुले मन से किया काम

बरखा ने हमेशा ही चुनौतीपूर्ण काम किया है और ग्राउंड लेवल से जुड़े रहना उन्हें पसंद है. वह कहती है कि कोविड के समय में मैंने दिल्ली से केरल गाडी में गयी थी और पूरे देश का कवरेज दिया था. किसी बड़ी मिडिया को मैंने रास्ते पर नहीं देखा. माइग्रेंट्स रास्ते पर पैदल जा रहे थे, केवल दो चार लोकल प्रेस दिखाई पड़ी थी. बड़े-बड़े टीवी चैनल कोई भी नहीं दिखा. रिपोर्टर के रूप मैं मुझे लोगों तक ग्राउंड लेवल तक पहुंचना मेरा पैशन रहा है. इसके अलावा मुझे ऑथेंटिक रहने की इच्छा हमेशा रही है, क्योंकि मैंने बहुतों को देखा है कि वे खुले मन से काम नहीं करते. फॉर्मल रहते है और अगर कोई व्यक्ति फॉर्मल रहता है, तो अगला भी कुछ कहने से हिचकिचाएगा. मैने हमेशा एक आम इंसान बनकर ही लोगों से बातचीत की है.

 

 

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था कठिन समय

उदास स्वर में बरखा कहती है कि जीवन का कठिन समय मेरे पिता का कोविड में गुजर जाना रहा. दो साल से मैंने कोविड को कवर किया और बहुत सारे ऐसे स्टोरी को कवर किया जिसमे लोगों को ऑक्सीजन, बेड और प्रॉपर चिकित्सा नहीं मिल रही थी. मेरे लिए अच्छी बात ये रही कि मैने फ़ोन कर पिता को एक हॉस्पिटल मुहैय्या करवाया था. मैं उस समय बहुत सारे हॉस्पिटल गई, लेकिन मेरे पिता जिस हॉस्पिटल में थे, वहां नहीं जा पाई. जबतक मैं पहुंची, बहुत देर हो चुकी थी. वही मेरे लिए जीवन का सबसे कठिन समय था.

मिली प्रेरणा

बरखा आगे कहती है कि मेरा प्लान वकील बनने का था, फिर फिल्म बनाने की सोची, लेकिन जब मैंने मास्टर की पढाई पूरी की, तो कोई प्राइवेट प्रोडक्शन हाउस इंडिया में नहीं थी. केवल दूरदर्शन के पास प्रोडक्शन हाउस था. मैंने एन डी टीवी में ज्वाइन किया और मुझे एक स्टोरी करने के लिए भेजा दिया गया, उन्हें मेरा काम पसंद आया और मैं रिपोर्टर बन गई

विकास का आधार

विकास का आधार हर इंसान का हक बराबर होने से है. मेरी राय में घर्म, जाति, क्लास आदि से किये गए आइडेंटिटी कई बार लोगों को डिसाइड करती है तो कई बार डीवाईड करती है. विकास मेरे लिए एक्रोस आइडेंटिटी, केटेगोरी, डिवीज़न आदि सबके अधिकार एक जैसे होने चाहिए, तभी विकास संभव हो सकेगा.

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