social story in hindi
social story in hindi
इधर, अफशां को काफी देर से बेबे की कोठरी में दरवाज़ा बंद कर के बैठे हुए देख कर रजिया की छोटी भाभी ने फ़ौरन अपनी सास के कान भरे और दरवाज़ा खुलवाने को कहा. फौजिया दनदनाती हुई आई और दरवाज़े पर लात मार कर रजिया से दरवाज़ा खोलने को कहा. तो झट से अपना फोन कुरते की जेब में डाल कर अफशां बेबे से शीरमाल की रैसिपी पूछने लगी और रजिया ने दरवाज़ा खोल दिया.
बीकानेर में अपने घर में बैठे किशनचंद मेघवाल ने पोते से पूछा कि उन की बीरी को भारत लाने का प्रबंध कैसे किया जाएगा? संजय ने अपने दादू को हौसला देते हुए कहा कि वह जल्दी ही भारतीय विदेश मंत्रालय में इस बारे में पत्र लिखेगा और दादू को उन की बीरी से मिलवाने का प्रयत्न करेगा.
कुछ महीनों के प्रयास के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय से बात कर के अमीरन उर्फ़ लक्ष्मी के भारत लौटने का प्रबंध करवा दिया और सरकारी हुक्म होने के कारण बेबे के बेटे उस के भारत जाने में कोई रुकावट नहीं डाल सके. मगर अपनी मां को धमकी ज़रूर दे दी कि अगर वह हिंदुस्तान गई तो बेटे वापस उस को अपने घर में कभी नहीं आने देंगे. अपने देश जाने की ख़ुशी में बेबे ने बेटे की बात पर कोई ध्यान ही नहीं दिया और अपने टीन के बक्से में सफ़र पर ले जाने का सामान रखने लगी.
नियत दिन पर रजिया अपनी बेबे को ले कर अपना वादा पूरा करने के लिए चल पड़ी. उस के अब्बू ने तो साथ चलने से इनकार कर दिया, इसलिए अफशां ने अपने अब्बा से गुजारिश की तो अजीबुर्रहमान अमीरन और रजिया को ले कर कराची रेलवे स्टेशन पंहुच गए. वहां पंहुचने पर पता चला कि दूतावास की तरफ से भारत जाने का प्रबंध केवल लक्ष्मी के लिए किया गया है, इसलिए और कोई उस के साथ नहीं जा सकता है. रजिया ने बेबे की उम्र का हवाला देते हुए साथ जाने की इजाज़त मांगी लेकिन पाकिस्तान सरकार ने अनुमति नहीं दी. निराश रजिया ने भीगी आंखों से अपनी बेबे को रुखसत किया और अफशां के अब्बा के साथ अपने गांव वापस आ गई. अफशां द्वारा बेबे के आने की सूचना मिलने पर संजय व उस के पापा अमृतसर के लिए रवाना हो गए.
इतना लंबा सफ़र अकेले तय करने में लक्ष्मी को बहुत घबराहट हो रही थी. तब उस के साथ सफ़र कर रही एक महिला ने उस से बातें करनी शुरू कीं और बेबे की कहानी सुनने के बाद उस ने रास्तेभर बेबे की पूरी देखभाल की और अमृतसर पर लक्ष्मी के परिवार वालों को उसे सौंप कर ही वहां से गई. अमृतसर स्टेशन पर कुछ रेलवे अधिकारियों के अलावा प्रैस के संवाददाता और संजय एवं उस के पिता बरसों से बिछुड़ी लक्ष्मी की प्रतीक्षा में फूलों के गुलदस्ते ले कर खड़े थे. संजय और उस के पिता ने आगे बढ़ कर लक्ष्मी के पैर छू कर जब अपना परिचय दिया तो लछमी ने आंखें मिचमिचाते हुए उन दोनों को पहचानने का प्रयास किया और फिर दोनों को कलेजे से लगा कर सिसकने लगी.
कुछ और घंटों की यात्रा पूरी करने के बाद लक्ष्मी जब अपने राजस्थान पंहुची तो इतने लंबे सफ़र से उस का तन तो थका हुआ था लेकिन अपनी धरती पर पांव रखने की ख़ुशी ने उस थकान को मन पर हावी होने ही नहीं दिया और घर के दरवाज़े पर अपनी प्रतीक्षा करते अपने किसना को देख कर तो उस के पैरों में जैसे पंख लग गए व उस ने अपने किसना को कलेजे से ऐसे चिपका लिया जैसे अब वह अपने भाई से कभी अलग नहीं होगी. घर के अंदर पंहुचने पर संजय की मां ने भी अपनी बरसों से बिछुड़ी बूआ सास के पांव छुए और उस का सत्कार किया. चायनाश्ता करते हुए जब लक्ष्मी ने बंसी, सरजू और लाली के बारे में पूछा, तब किशनचंद ने बताया कि बंसी भैया का 2 वर्ष पहले कैंसर से देहांत हो गया और उन के बच्चे जयपुर में कारोबार करते हैं. सरजू भैया मोर गांव में ही रहते हैं और लाली अपने परिवार के साथ कोटा में रहती है.
मोर गांव का नाम सुनते ही लक्ष्मी ने गांव जाने की रट पकड़ ली. तब किशनचंद ने कुछ दिनों बाद गांव ले चलने का आश्वासन दे कर अपनी बीरी को शांत किया. लेकिन 15 दिन निकल गए और अपनीअपनी व्यस्तताओं के चलते किसी का भी गांव जाना न हो सका. लक्ष्मी के अंदर भी अब कभीकभी अमीरन अपना सिर उठाने लगती और उसे अपने बच्चों, विशेषरूप से रजिया, की याद सताने लगती. मगर संकोचवश वह किसी को इस विषय में कुछ न बताती थी.
अचानक मार्च के महीने से दुनिया का माहौल एकदम बदल गया और हर तरफ कोरोना का डर व्याप्त हो गया. तब अमीरन ने लक्ष्मी को अपने टब्बर की तरफ से लापरवाह हो जाने के लिए फटकार लगाई और उस ने संजय से कहा कि वह उस की बात एक बार रजिया से करवा दे. संजय ने तुरंत फोन मिलाया तो अफशां ने अगले दिन बेबे के परिवार से बात करवाने का वादा किया.
अगले दिन अफशां ने रजिया के घर पंहुच कर बेबे से सब की बात करवानी चाही तो बेबे की बहु और पोताबहुएं तो काम के बहाने इधरउधर खिसक गईं और रजिया के भाई खेतों पर थे. रजिया ने फोन अफशां के हाथ से ले कर अपनी बेबे से बात करने लगी तो बेबे भी खूब चटखारे ले कर अपने भाई व उस के परिवार के बारे में बताने लगी. तभी रजिया का अब्बा अकरम वहां आ गया और जब उसे पता चला कि रजिया फोन पर बेबे से रूबरू है तो उस ने बेटी के हाथ से फोन छीन कर अपनी मां को दोबारा फोन न करने की हिदायत देते हुए कहा कि वह अब पाकिस्तान वापस आने के बारे में सोचे भी न, क्योंकि इस परिवार के लिए वह मर चुकी है. फिर अकरम ने फोन काटा और अफशां के हाथ में थमा कर वहां से चला गया.
रजिया अपने अब्बू के व्यवहार से दुखी हो कर रोने लगी तो अफशां ने उसे दिलासा देते हुए कहा कि उसे जब भी बेबे से बात करनी हो, तो वह उस के घर आ कर आराम से बात कर सकती है.
अपने बेटे के ज़हरबुझे शब्दों से आहत लक्ष्मी फोन हाथ में पकडे निश्छल बैठी रह गई. यह देख कर संजय ने उसे बड़े प्रेम से समझाते हुए कहा कि ‘काका अपनी मां के यहां आ जाने से दुखी हो कर ऐसे बोल रहे होंगे, असलियत में नाराज़ नहीं होंगे.‘ उस की बात सुन कर लक्ष्मी ने अपने आंसू तो पोंछ लिए लेकिन मन ही मन वह जानती थी कि अकरम ने जो भी कहा है, उस का एकएक शब्द सच्चा है.
अब सीमापार लक्ष्मी का कोई टब्बर नहीं है. जीवन की यह कैसी विडंबना है कि जिस परिवार में जन्म लिया वह अब अपना हो कर भी अपना नहीं है और जो नाता ज़बरदस्ती जुड़ा था वह अधिक अपना था लेकिन उसे मानने से उस के अपने बेटे ने ही इनकार कर दिया. कहां जाए अब अमीरन का चेहरा ओढ़े यह लक्ष्मी. यह परिवार अब उस के भाई और बच्चों का है जिस पर उस का कोई अधिकार नहीं है और जिन पर अधिकार बनता है उन्होंने तो उस को जीतेजी ही मार दिया है. वह अब जाए तो कहां जाए? इस बंटवारे ने केवल ज़मीनें ही नहीं बांटी हैं बल्कि रिश्तों के भी टुकड़ेटुकड़े कर दिए हैं.
मन ही मन कुछ तय करने के बाद लक्ष्मी ने किशनचंद से बात की और कहा कि अब वह अपना बाकी जीवन अपने गांव में ही बिताना चाहती है, इसलिए उस को जल्द से जल्द गांव भेजने का प्रबंध करवा दिया जाए. बीरी की इच्छा पूरी करते हुए उसे (लक्ष्मी) को ले कर किशनचंद मोर गांव गए और वहां अपने पैतृक घर के एक हिस्से में लक्ष्मी के रहने का प्रबंध करवा कर लौट आए. और लछमी के गांव जाने के पूरे एक महीने बाद आज सुबहसुबह गांव से सरजू भैया का फोन आया कि बीरी सुबहसुबह परलोक सिधार गई.
आजीवन जो धरती उसे नसीब नहीं हुई, उस ने अंत में अपने अंक में उसे समेट लिया था.
अमीरन ने गांव वालों से भी कई बार खुशामद की कि उसे हिंदुस्तान भिजवाने का कुछ इंतज़ाम करवा दें. कुछ लोगों ने तो उस की बात पर कान ही नहीं दिए लेकिन गफूर के एक दूर के रिश्तेदार कादिर ने पास के एक गांव से 2 लोगों को ला कर उस के सामने खड़ा कर दिया और बोला, “परजाई, तेरे प्रा नू ले आया.” पहले तो अमीरन उनको देख कर खुश हो गई लेकिन जैसे ही उस ने उन दोनों के नाम पूछे तो कादिर का झूठ खुल गया क्योंकि उन नकली भाइयों ने अपने नाम जाकिर और हशमत बताए. बस, फिर क्या था, अमीरन ने झाड़ू से पीटपीट कर तीनों को घर से बाहर निकाल दिया और कादिर को दोबारा इस तरफ आने पर जान से मार देने की धमकी दे दी.
वक्त गुज़रता गया और धीरेधीरे चारों बेटों ने खेतीबारी पूरी तरह से संभाल ली. लक्ष्मी को पुराने बेकार सामान की तरह घर के एक कोने में पटक दिया. रहीसही कसर बहुओं ने अपनी सास की दुर्दशा कर के पूरी कर दी. धीरेधीरे चारों बेटे अलगअलग घर बसा कर रहने लगे और मां को बड़े बेटे के पास छोड़ गए. तब से लक्ष्मी अकरम के परिवार के साथ रह रही है और उन लोगों द्वारा किए जाने वाले अपमान को सह रही है. लेकिन दुख के इस अंधेरे में रज़िया उस के लिए उम्मीद की किरन बन कर हमेशा उस के साथ खड़ी रहती है.
सारी बात सुन कर अफशां ने रजिया से पूछा, “रज्जो, हुण त्वाडे दिमाग विच की चलदा प्या मैनू दस.” तब रजिया ने उस से पूछा कि क्या वे बेबे की मदद करने के लिए फेसबुक पर बेबे के परिवार वालों को ढूंढने की कोशिश करेंगी? अफशां ने जवाब दिया कि बगैर नामपता जाने फेसबुक पर किसी को ढूंढना मुश्किल है और बेबे को अपने भाइयों के पूरे नाम भी मालूम नहीं हैं. और यह भी ज़रूरी नहीं है कि बेबे के परिवार वाले लोग फेसबुक पर हों.
रजिया यह सुन कर निराश हो गई. तब अफशां ने कुछ सोच कर लक्ष्मी की पूरी कहानी और मोर गांव का ज़िक्र करते हुए एक लेख फेसबुक पर पोस्ट किया और साथ ही, लोगों से प्रार्थना की कि इस बारे में कोई भी जानकारी होने पर तुरंत सूचित करें.
पोस्ट डाले कई दिन बीत गए. लेकिन किसी का कोई जवाब नहीं आया. अफशां निराश हो गई और रजिया से बोली कि शायद बेबे को उस के परिवार से मिलवाना संभव नहीं होगा. मगर रजिया ने उम्मीद नहीं छोड़ी और अफशां को दोबारा लोगों से अपील करने को कहा जिस पर अफशां ने एक बार फिर लोगों से मदद की अपील की.
रजिया के गांव से 4-5 सौ किलोमीटर दूर बीकानेर के एक दफ्तर में बैठे मनीष राठौर ने जब अपने फेसबुक के पन्ने पर लक्ष्मी की कहानी पढ़ी तो उस का ध्यान सब से पहले मोर गांव ने खींचा और उस ने फ़ौरन अपने मित्र संजय मेघवाल को फोन मिलाया जो मूलरूप से मोर गांव का रहने वाला है. “संजय, तूने फेसबुक पर लक्ष्मी की कहानी देखी?” संजय ने शायद जवाब नहीं में दिया क्योंकि मनीष ने उसे बताया कि कहानी किसी लक्ष्मी नाम की महिला से संबंधित है जो मोर गांव से पार्टीशन के समय गायब हुई थी. “यार, जल्दी से पढ़ पूरा किस्सा, हो सकता है तेरे पापा या दादाजी इस औरत को जानते हों.”
मित्र के आग्रह पर संजय ने पूरा किस्सा फेसबुक पर पढ़ा तो उसे ख़याल आया कि बहुत पहले दादू ने एक बार ज़िक्र तो किया था अपनी किसी रिश्तेदार के गायब होने का.
दफ्तर से शाम को घर पंहुचने पर संजय ने अपने दादू को लक्ष्मी की कहानी के बारे में बताया. तो किशन चंद मेघवाल तुरंत पलंग पर सीधे बैठ गए और खुश हो कर चिल्लाए, “म्हारी बीरी मिली गई.” दादू से इस प्रतिक्रया की उम्मीद संजय को हरगिज़ न थी. उस ने दादू को तकिए से टिका कर बैठाते हुए पूछा कि क्या लक्ष्मी उन की बहन का नाम है?
किशनचंद ने आंसू पोंछते हुए हामी भरी और बताया कि वे उस समय करीब 5 वर्ष के रहे होंगे, इसलिए ज़्यादाकुछ याद नहीं है पर उस दिन घर में खूब रौनक थी. उन को लड्डू खाने को मिले थे और घर में गानाबजाना हो रहा था. लेकिन कुछ देर बाद ही शोर मचने लगा की लक्ष्मी गायब हो गई है और मासा रोने लगी थी. सब ने बहुत ढूंढा लेकिन बीरी कहीं नहीं मिली. मासा ने तो इसी दुख में बिस्तर पकड़ लिया और जल्दी ही दुनिया से चली गईं. परिवार वाले भी धीरे धीरे बीरी को भूल गए. “के संजय बेटा, म्हारी बात हो सके छे बीरी से?” किशनचंद ने पोते से पूछा.
“पता करता हूं दादू,” संजय ने जवाब दिया और फिर से फेसबुक पर लक्ष्मी की कहानी पर नज़र दौडाने लगा तो नीचे एक व्हाट्सऐप नंबर दिखाई दिया. संजय ने तुरंत उस नंबर पर मैसेज कर के अपना फोन नंबर भेजा और वीडियोकौल करने को कहा. इस के बाद उस ने यह खबर मनीष को दी और फिर अपने पापा व मम्मी को बताने गया. पापा तो खबर सुन कर खुश हो गए लेकिन मां ने एक सवाल खड़ा कर दिया- “तुम्हें क्या मालूम कि ये असली लक्ष्मी हैं या आतंकवादियों की नई चाल? तुम्हारे पास क्या सुबूत है कि वह औरत बाबूजी की बहन ही हैं? जानते तो हो कि आजकल न जाने कितने धोखेबाज़ झूठी कहानियां बना कर लोगों को लूटते रहते हैं. तुम तो इन चक्करों से दूर ही रहो बेटा.”
मां की बात में दम तो था लेकिन संजय का मन कह रहा था कि एक बार इस कहानी की सचाई जाननी ज़रूरी है. उधर पाकिस्तान में अफशां ने जैसे ही संजय मेघवाल का संदेश और फोन नंबर देखा, वह रजिया के घर की तरफ दौड़ी. रजिया की भाभियां और अम्मी आंगन में बैठ कर गेंहू साफ़ कर रही थीं. अफशां को अपने घर आया देख कर वे सब चौंक गईं और अफशां उन लोगों को इतना हैरान देख कर अपने आने की वजह उन लोगों को बताने ही वाली थी कि तभी बेबे की कोठरी से निकलते हुए रजिया की नज़र अफशां पर पड़ी और वह अफशां बाजी चिल्लाती हुई दौड़ कर उस के पास आई व उस का हाथ पकड़ कर बहाने से उसे छत पर ले गई. अफशां ने उसे बताया कि वह बेबे की बात उन के भाई से करवाने के लिए यहां आई है, इसलिए अभी बेबे के पास चलना ज़रूरी है.
रजिया ने मारे ख़ुशी के अफशां के हाथ पकड़ कर उस को नचा डाला और फिर उसे ले कर बेबे के पास गई. फौजिया ने बेटी को अफशां के साथ बेबे के पास जाते हुए देखा तो वह लपक कर आई और रजिया से बोली कि बेबे की कोठरी में तो बहुत गरमी है, इसलिए अफशां को बैठक में ले जा कर बैठाए. उस पर अफशां ने कहा कि वह बेबे से ख़ास किस्म की शीरमाल बनाने के बारे में पूछने आई है. फौजिया ने झट से कहा कि शीरमाल बनाना तो उस को भी आता है वही सिखा देगी लेकिन रजिया ने अम्मी को परे करते हुए कहा कि अफशां शीरमाल के बारे में बेबे से पूछना चाहती है, इसलिए वह बीच में न पड़े और फिर दोनों सहेलियां दौड़ कर बेबे के पास पंहुच गईं.
अफशां ने रजिया से कोठे का दरवाज़ा बंद करने को कहा और फिर शुरू हुआ बरसों से बिछुड़े भाई और बहन का वार्त्तालाप जिस में बातें तो कम हुईं लेकिन दोनों तरफ से आंसू ज़्यादा बहे. बेबे फोन में दिखाई दे रहे सफ़ेद बालों वाले बूढ़े के चेहरे में अपने छोटे से किसना को ढूंढ रही थी और किशनचंद मेघवाल अपनी जर्जर बूढ़ी बहन की हालत देख कर दुखी हो रहे थे. फिर बेबे से फोन ले कर अफशां ने संजय से कहा कि अगर वे लोग बेबे को हिंदुस्तान बुलाना चाहते हैं तो उस के लिए उन लोगों को ही कोशिश करनी होगी क्योंकि यहां बेबे के बेटे इस मामले में उस की कोई मदद नहीं करेंगे. संजय ने उस से कहा कि वह बेबे को भारत लाने का सारा प्रबंध होते ही अफशां को सूचित कर देगा.
विभाजन के समय बेबे 13-14 साल की बच्ची थी और राजस्थान के एक गांव में रहती थी. उसे अपने गांव का नाम व पता तो अब याद नहीं है लेकिन इतना ज़रूर याद है कि उस के गांव में मोर बहुत थे और उसी बात के लिए उस का गांव मशहूर था. परिवार में अम्मा, बापू के अलावा 3 भाई और 1 बहन थी. बहन व भाइयों के नाम उसे आज भी याद हैं- बंसी, सरजू और किसना 3 भाई और बहन का नाम लाली.l उस का बापू कालूराम गांव के ज़मींदार के खेतों में काम करता था और अम्मा भी कुंअरसा ( ज़मींदार ) के घर में पानी भरने व कपड़ेभांडी धोने का काम करती थी. अपने छोटे बहनभाइयों को लक्ष्मी (बेबे) संभालती थी. बापू ने पास के गांव में लक्ष्मी का रिश्ता तय कर दिया था. लक्ष्मी का होने वाला बिनड़ा चौथी जमात में पढ़ता था और उस की परीक्षा के बाद दोनों के लगन होने की बात तय हुई थी.
उसी दौरान देश का विभाजन होने की खबर आई और चारों तरफ हड़कंप सा मचने लगा. उस के गांव से भी कुछ मुसलमान परिवार पाकिस्तान जाने की तैयारी करने लगे. लक्ष्मी के बापू ने उस की ससुराल वालों से हालात सुधरने के बाद लगन करवाने के लिए कहा, तो लक्ष्मी के होने वाले ससुर ने कहा कि ब्याह बाद में कर देंगे, पर सगाई अभी ही करेंगे.
सगाई वाले दिन हाथों में मेंहदी लगा व नया घाघराचोली पहन कर लक्ष्मी तैयार हुई. अम्मा ने फूलों से चोटी गूंथी तो लक्ष्मी घर के एकलौते शीशे में बारबार जा कर खुद को निहारने लगी. आंगन में ढोलक बज रही थी और आसपास की औरतें बधाइयां गा रही थीं. फिर उस की होने वाली सास ने लक्ष्मी को चांदला कर के हंसली व कड़े पहनाए और हाथों में लाललाल चूड़ियां पहना कर उस को सीने से लगा लिया. घर में गानाबजाना चल रहा था, तब मां की आंख बचा कर लक्ष्मी अपने गहने व कपड़े सहेलियों को दिखाने के लिए झट से बाहर भाग गई व दौड़ती हुई खेतों की तरफ चली गई. बहुत ढूंढा, पर उसे वहां कोई भी सहेली खेलती हुई नहीं मिली. हां, खेतों के पास से कई खड़खडों में भर कर लोगों की भीड़ कहीं जाती हुई ज़रूर दिखाई दी.
लछमी वापस लौटने लगी, तभी किसी ने उसे पुकारा. उस ने पलट कर देखा. उस की सहेली फातिमा एक खड़खड़े में बैठी उसे आवाज़ दे रही थी. लक्ष्मी दौड़ कर उस के पास गई और उस से पूछने लगी कि वह कहां जा रही है? फातिमा ने बताया कि वह पाकिस्तान जा रही है और अब वहीं रहेगी. लक्ष्मी अपनी सहेली से बिछुड़ने के दुख से रोने लगी. तभी फातिमा के अब्बू जमाल चचा ने लक्ष्मी को झट से हाथ पकड़ कर अपने खड़खड़े में बैठा लिया और कहा कि जब तक चाहे वह अपनी सहेली से बात कर ले, फिर वह उसे नीचे उतार देंगे. खड़खड़ा चल पड़ा और दोनों सहेलियां बातें करते हुए गुट्टे खेलती रहीं. बीचबीच में जमाल बच्चियों को गुड़ के लड्डू खिलाता जा रहा था. इन्हीं सब में वक्त का पता ही न चला और घर जाने का ख़याल लक्ष्मी को तब आया जब जमाल चचा ने उसे अपने खड़खड़े से उतार कर दूसरी ऊंटगाड़ी में बैठा दिया.
उस ने चारों तरफ निगाह घुमाई, तो देखा कि वह अपने गांव से बहुत दूर रेगिस्तानी रास्ते में है और वहां ढेर सारी भीड़ गांव से उलटी दिशा में चली जा रही है. लक्ष्मी यह देख कर ऊंटगाड़ी से कूदने लगी, तो गाड़ी में बैठे दाढ़ी वाले आदमी ने उस का हाथ कस कर पकड़ लिया और फिर एक रस्सी से उस के हाथपैर बांध कर अपनी अम्मा के पास बैठाते हुए बोला कि वह उस को अपने साथ पाकिस्तान ले जा रहा है क्योंकि उस ने जमाल को पूरे 30 रुपए दे कर लक्ष्मी को खरीदा है और अब वह उस की बीवी है. लाचार लक्ष्मी पूरे रास्ते रोती रही. पर न उस आदमी को रहम आया, न ही उस की बूढी अम्मा को.
गफूर नामक वह आदमी भी राजस्थान के किसी गांव से ही आया था. पकिस्तान पहुंच कर इस गांव में उस ने अपना डेरा डाल दिया और धीरेधीरे अच्छा पैसा कमाने लगा. आते ही गफूर ने यह मकान और कुछ खेत यह सोच कर ख़रीद लिए कि उस की गिनती गांव के रईसों में होने लगेगी और लोग उस की इज्ज़त करेंगे. मगर जिसे अपना असली मुल्क समझ कर वह आया था वहां, तो उसे हमेशा परदेसी का ही दर्जा दिया गया और अपनी इस घुटन व झुंझलाहट को वह अमीरन यानी लक्ष्मी पर उतारता था.
दिनभर उस की मां अमीरन को मारतीपीटती रहती और रात को गफूर अपना तैश उस बच्ची पर निकालता. उस की सास ने पहले तो उसे डराधमका कर गोश्त पकाना सिखाया और उस से भी मन नहीं भरा, तो मांबेटे ने कई दिनों तक भूखा रख कर उसे ज़बरदस्ती गोश्त खिलाना भी शुरू कर दिया और आखिर उस को लक्ष्मी से अमीरन बना कर ही दम लिया. जब तक अमीरन 20 वर्ष की हुई तब तक 3 बच्चे जन चुकी थी. धीरेधीरे खानदान बढ़ता गया और अमीरन के अंदर की लक्ष्मी मरती गई.
अमीरन (लक्ष्मी) के बच्चे छोटेछोटे थे, तभी गफूर की मौत हो गई और लक्ष्मी की परेशानियां और भी बढ़ गईं क्योंकि अकेली औरत जान कर गांव वालों ने उस के खेतों पर कब्ज़ा करने की कोशिश तो शुरू कर ही दी, साथ ही, कई लोगों ने उस को अपनी हवस का शिकार भी बनाना चाहा. और जब एक दिन खेत में काम करते समय बगल के खेत वाले अब्दुल ने उस को धोखे से पकड़ कर उस के साथ ज़बरदस्ती करनी चाही तो अमीरन के अंदर की राजस्थानी शेरनी जाग गई और उस ने घास काटने वाले हंसिए से अब्दुल की गरदन काट डाली.
गांव में उस की इस हरकत से हंगामा मच गया और उस को पंचायत में घसीट कर ले जाया गया. लेकिन लक्ष्मी डरी नहीं. उस ने साफ़साफ़ कह दिया कि जो भी उस के खेतों की तरफ या उस की तरफ बुरी नज़र डालेगा उस का वह यही हश्र करेगी. कुछ लोग उस की इस जुर्रत के लिए उसे पत्थरों से मारने की सज़ा देने की बात करने लगे और कुछ लोगों ने गांव से निकाल देने की सलाह दी. लेकिन गांव के सरपंच, जो एक बुजुर्गवार थे, ने फैसला अमीरन के हक़ में करते हुए गांव वालों को चेतावनी दी कि कोई भी इस अकेली औरत पर ज़ुल्म नहीं करेगा वरना उस आदमी को सज़ा दी जाएगी.
सरपंच की सरपरस्ती के कारण लक्ष्मी अपनी मेहनत से अपने बच्चों को पालने लगी. बड़ा बेटा अकरम जब खेतों में अम्मी की मदद करने लायक हो गया तो लक्ष्मी को थोड़ा आराम मिला. लेकिन उसे हमेशा इस बात का अफ़सोस रहा कि उस के अपने बच्चों ने भी कभी अपनी अम्मी का साथ नहीं दिया. कितनी बार उस ने अपने बेटों की खुशामद की कि एक बार उसे हिंदुस्तान ले जा कर उस के भाइयों से मिलवा दें लेकिन उन लोगों की निगाहों में तो अम्मी के नाते वाले सब काफिर थे और काफिरों से नाता रखना उन के मज़हब के खिलाफ है. इसलिए हर बार बेटों ने उस के अनदेखे परिवार वालों को दोचार गालियां देते हुए लक्ष्मी (अमीरन) को काफिरों के पास जाने की जिद छोड़ देने को कहा.
चूल्हे पर रोटियां सेंकते सेंकते फौजिया सामने फर्श पर बैठे पोतेपोतियों को थाली में रोटी और रात का बचा सालन परोसती जा रही थी, साथ ही, बगल में रखी टोकरी में भी रोटियां रखती जा रही थी ताकि शौहर और बेटों के लिए समय से खेत पर खाना भेज सके. तभी उस की सास की आवाज़ सुनाई पड़ी, “अरी खस्मनुखानिये, आज मैनू दूधरोट्टी मिल्लेगी कि नै?”
सास की पुकार पर फौजिया ने जल्दी से पास रखे कटोरदान में से 2 बासी रोटियां निकाल कर एक कटोरे में तोड़ कर गुड़ में मींसीं और उस में थोड़ा पानी व गरम दूध डाल कर अपनी बगैर दांत वाली सास के खाने लायक लपसी बना कर पास बैठी बेटी को कटोरा थमा दिया, “जा, दे आ बुड्ढी नू.” कटोरा तो पकड़ लिया रज़िया ने, लेकिन जातेजाते अम्मी को ताना ज़रूर दे गई, “जब तू तज्ज़ी रोटी सेंक रही है हुण बेबे नू बस्सी रोटी किस वास्ते दें दी?”
फौजिया ने कोई जवाब न दे कर गुस्से से बेटी को घूरा और वहां से जाने का इशारा किया, तो रजिया बड़बड़ाती हुई चली गई. फौजिया ने अपनी बड़ी बहू सलमा को आवाज़ दे कर खेत में खाना पंहुचाने को कहा और जल्दीजल्दी सरसों का साग व कच्ची प्याज फोड़ कर रोटियों के साथ टोकरी में रख कर टोकरी एक तरफ सरका दी.
रज़िया को अपनी दादी के प्रति अम्मी के दोगले व्यवहार से बहुत चिढ़ है. लेकिन उस का कोई वश नहीं चलता, इसीलिए हर रोज़ अपनी अम्मी से छिपा कर वह दादी के लिए कुछ न कुछ खाने का ताज़ा सामान ले जा कर चुपचाप उसे खिला देती है और दादी भीगी आंखों व भरे गले से अपनी पोती को पुचकारती रहती हैं. आज जब रज़िया नाश्ते का कटोरा ले कर बेबे के पास गई तो वह अपनी फटी कथरी पर बैठी अपने सामने एक पुरानी व मैली सी पोटली खोल कर उस में कुछ टटोल रही थी पर उस की आंखें अपनी पोती के इंतज़ार में दरवाज़े की तरफ ही गड़ी हुई थीं.
रजिया ने रोटी का कटोरा बेबे को पकड़ा कर अपने दुपट्टे के खूंट में बंधे 3-4 खजूर निकाल कर झट से तोड़ कर कटोरे में डाले और बेबे को जल्दी से रोटी ख़त्म करने को कहा. बेबे की बूढ़ी आंखों में खजूर देख कर चमक आ गई और उस ने कटोरा मुंह से लगा लिया. तभी रजिया की नज़र खुली पोटली पर पड़ी जिस में किसी बच्ची की लाख की चूड़ियां, चांदी की पतली सी हसली और पैरों के कड़े एक छींटदार घाघरे व चुनरी में लिपटे रखे हुए थे. बेबे ने एक हाथ से पोटली पीछे सरकानी चाही, तो रज़िया ने पूछा, “बेबे, आ की?”
पोती के सवाल को पहले तो बेबे ने टालना चाहा मगर रजिया के बारबार पूछने पर लाख की लाल चूड़ियों को सहलाती हुई बोली, “ये म्हारी सचाई, म्हारो बचपण छे री छोरी.”
दादी को अलग ढंग से बात करते सुन रजिया को थोड़ी हैरानी हुई और उस ने हंस कर पूछा, “अरी बेबे, आज तू केसे गल्लां कर दी पई?” बेबे ने चेहरा उठाया, तो आंखों में आंसू डबडबा रहे थे. कुछ देर रुक कर बोली, “आज मैं तैनू सच्च दसां पुत्तर.” और फिर बेबे ने जो बताया उसे सुन कर रज़िया का कलेजा कांप उठा और वह बेबे से लिपट कर रोते हुए बोली, “बेबे, मैं तैनू जरूर त्वाडे असली टब्बर नाल मिल्वाइन. तू ना घबरा.” और अपने आंसू पोंछती हुई वह खाली कटोरा ले कर आंगन में आ गई.
रज़िया 18-19 साल की एक संजीदा और समझदार लड़की है जो अपने अनपढ़ परिवार की मरजी के खिलाफ जा कर अपनी एक सहेली की मदद से 8वीं तक की पढ़ाई कर चुकी है और अब उसी सहेली अफशां के स्मार्टफोन के ज़रिए फेसबुक व व्हाट्सऐप जैसी आधुनिक दुनिया की बातों के बारे में भी जान गई है. यों तो रज़िया के अब्बू और तीनों भाई उस का घर से निकलना पसंद नहीं करते पर अफशां चूंकि गांव के सरपंच अजीबुर्रहमान की बेटी है, इसलिए उस के घर जाने की बंदिश रजिया पर नहीं है. अफशां लाहौर के एक कालेज में पढ़ती है और छुट्टियों में ही घर आती है. इसलिए उस से मिल कर शहरी फैशन और वहां के रहनसहन के बारे में जानने की उत्सुकता रज़िया को अफशां के घर ले जाती है.
रज़िया के अब्बा 4 भाई और 3 बहनें थीं जिन में से सब से बड़ी बहन का पिछले साल इंतकाल हो गया. बाकी 2 बहनें अपनेअपने परिवारों के साथ आसपास के गांवों में रहती हैं और चारों भाई इसी गांव में पासपास घर बना कर रहते हैं. हालांकि इन की बीवियां एकदूसरे को ज़रा भी पसंद नहीं करती हैं मगर खेतों का बंटवारा अभी तक नहीं हुआ है. इसलिए सभी भाई एकसाथ खेतों में काम करते हैं और उन की बीवियों को जगदिखाई के लिए अपनेपन का नाटक करना पड़ता है.
सभी भाइयों के बच्चे अंगूठाछाप हैं क्योंकि उन के खानदान में पढ़ाईलिखाई को बुरा माना जाता है. रज़िया ने अफशां की मदद से जो थोड़ी किताबें पढ़ लीं हैं उस की वजह है रज़िया का मंगेतर जहीर, जो चाहता था कि निकाह से पहले रजिया थोड़ा लिखनापढ़ना सीख ले. वह खुद भी 12वीं पास कर के पास ही के कसबे में नौकरी करता है और साथ ही, आगे की पढ़ाई भी कर रहा है. वह हमेशा रज़िया को आगे और पढ़ने के लिए कहता रहता है. लेकिन रजिया के अब्बू उसे किसी स्कूल में भेजने के खिलाफ हैं, इसलिए अफशां से ही जो भी सीखने को मिल जाता है उसी से रजिया तसल्ली कर लेती है.
आज बेबे की बातें सुनने के बाद रजिया ने मन ही मन तय किया कि वह हर हाल में अपनी बेबे को उस के अपनों से मिलवा कर रहेगी. इस के लिए चाहे उसे अपने खानदान से लड़ाई ही क्यों न करनी पड़े. मगर सिर्फ तय कर लेने से तो काम बनेगा नहीं, उस के लिए कोई राह भी तो निकालनी पड़ेगी. तभी रजिया को अफशां के फोन पर देखे फेसबुक के देशविदेश के लोगों का ख़याल आया और वह तुरंत अफशां के घर की तरफ लपक ली.
सुबह-सुबह रजिया को आया देख कर हैरान अफशां ने आने की वजह पूछी, तो रजिया उस के कंधे पर सिर रख कर सिसकने लगी. अफशां उसे अपने कमरे में ले गई और आराम से बैठा कर उस की परेशानी की वजह पूछी. तब रजिया ने अपनी बेबे का पूरा इतिहास उस के सामने रख दिया. “बाजी, बेबे हिंदुस्तानी हैं.” रजिया की यह बात सुन कर अफशां ने हंस कर कहा कि पाकिस्तान में बसे आधे से ज़्यादा लोग हिंदुस्तानी ही हैं क्योंकि बंटवारे के वक्त वे लोग यहां आ कर बसे हैं. “ना बाजी, बेबे साडे मज़हब दी नहीं हैगी” और फिर रजिया ने बेबे की पूरी आपबीती अफशां को सुनाई.