टिप यानी दिनदहाड़े लूट

टिप को दुनिया का सब से बड़ा और अंतर्राष्ट्रीय उद्योग कहना गलत नहीं होगा, पर यह सब से अधिक दुरूह भी है. मैं जब लंदन पहली बार गया था तो पैसे बचाने के लिए 3-4 महीने में एक बार बाल कटाता था क्योंकि वहां बाल कटाना बहुत महंगा जान पड़ता था. इसे आप मेरी कंजूसी भी कह सकते हैं.

मेरे गृहनगर इटारसी में उस समय नाई बाल कटाने व दाढ़ी बनाने का 25 पैसे लेता था. लंदन आने पर पता चला कि वहां केवल साधारण बाल कटाने का ढाई शिलिंग (तब करीब 4 रुपए) लगता था.

पहली बार बाल कटाने के बाद नाई को ढाई शिलिंग दे कर सैलून से बाहर निकलने लगा तो नाई ने मेरी ओर ऐसे देखा मानो मैं कुछ चुरा कर और उस से नजर बचा कर चला जा रहा हूं. फिर उस ने कुछ जोर की आवाज में लगभग चिल्ला कर कहा, ‘‘वाट अबाउट माई टिप?’’  पता चला कि वहां नाई को भी टिप जाती है. बाल कटाने का रेट भले ही ढाई शिलिंग था पर टिप मिला कर पूरा 3 शिलिंग हो जाता था.

आजकल लंदन में केवल बाल काटने के कम से कम 6 पौंड (करीब 525 रुपए) देने पड़ते हैं. पर एक बात जरूर है कि रिटायर्ड लोगों को यहां सरकार की ओर से मिलने वाली तरहतरह की सुविधाओं के समान कुछ नाई भी 50 प्रतिशत डिस्काउंट देते हैं. ऐसा उन की दुकान के बाहर लिखा रहता है.

हर देश में टिप देने या न देने के बारे में अलगअलग रिवाज हैं. अत: कभीकभी कहींकहीं उलझन में पड़ जाता हूं कि टिप दूं या नहीं और दूं तो कम से कम कितनी.

सवाल यह है कि टिप क्यों दी जाए. इस का उत्तर भी कुछ कम उलझनभरा नहीं होगा. यदि आप कभी ‘कू्रूज’ टूर (जलयान द्वारा सैर) पर गए हों तो आप को पता होगा कि टिप केवल गूढ़ ही नहीं है बल्कि कभीकभी टिप देना काफी महंगा भी पड़ जाता है. जहाज में इतने अधिक लोग छोटेमोटे काम करने वाले होते हैं कि आप तय नहीं कर पाते कि किसे टिप दें और किसे नहीं. शायद यही कारण है कि आजकल कू्रज कंपनियां यात्रा के किराए में टिप भी शामिल करने लगी हैं.

कुछ लोग मानते हैं कि टिप देने से आप को भविष्य में अच्छी सेवा मिलेगी और यह अब मिली अच्छी सर्विस का पुरस्कार है. कुछ लोग टिप न दे कर बाद में बड़े व्याकुल से नजर आते हैं. भले ही उन्हें अच्छी सर्विस न मिली हो, कुछ लोग यह सोच कर टिप देते हैं कि वेटर को कोई अच्छा वेतन नहीं मिलता होगा, अत: अपनी तरफ से उस की कुछ सहायता हो जाए.

यह याद रखना चाहिए कि टिप देने का कोई कानून नहीं है. यदि आप किसी की सेवा से खुश नहीं हैं तो आप किसी भी प्रकार टिप देने के लिए बाध्य नहीं हैं, पर आप को किसी न किसी रूप में यह अवश्य बतला देना चाहिए कि आप ने टिप क्यों नहीं दी. कुछ लोगों की राय में टिप देने की यह पूरी प्रथा ही गलत है. उन का मानना है कि वेटर, दरबान आदि टिप की आशा रखें, इस से अच्छा यह है कि उन्हें समुचित वेतन दिया जाए.

20वीं सदी के शुरू में कई अमेरिकी राज्यों में टिप देना अवैध घोषित कर दिया गया था.

एशियाई, अफ्रीकी और अरब देशों में तो टिप, जिसे वहां बख्शिश कहा जाता है, आप की किसी भी समस्या को हल करने में सहायक होती है. आप की कार स्टार्ट नहीं हो रही है, लोग स्वयं आ कर उसे धक्का देने लगेंगे. कार का टायर पंक्चर हो गया है, लोग टायर बदलने में सहायता करेंगे. आप कोई पार्सल खोल नहीं पा रहे हैं तो वे बिना बुलाए मेहमान के समान आ कर आप का पार्सल खोलने लगेंगे. आप कोई पता खोज रहे हैं, वे आप के साथ चल कर उस पते तक आप को ले जाएंगे, यानी आप की कोई भी छोटी से छोटी भी समस्या हो, वे बख्शिश की आशा में किसी न किसी रूप में आप की सहायता करेंगे.

एअरपोर्ट पर आप ने प्रीपेड टैक्सी ली है. प्रीपेड बूथ से टिकट लेने के बाद आप टैक्सी का पता लगाने जा रहे होते हैं कि कोई आप के पास आ कर कहता है, ‘‘चलिए, टैक्सी वहां है.’’ आप के न चाहते हुए भी वह आप के साथसाथ चलने लगता है और टैक्सी के पास पहुंच कर रुक जाता है. टैक्सी ड्राइवर आप का सामान टैक्सी में नहीं रखेगा.

आप जब स्वयं टैक्सी में सामान रखने लगते हैं तो वह व्यक्ति आप का सामान रखने लगता है. अब मना करने पर भी उस ने आप के सामान को हाथ लगा दिया है. अत: टिप का हकदार बन जाता है. आप सामान रख कर टैक्सी ड्राइवर को चलने के लिए कहते हैं कि वह व्यक्ति सामने आ जाता है, ‘बाबूजी, टिप’ या टैक्सी ड्राइवर स्वयं आप से कहता है कि उसे कुछ दे दें. आप न देने के लिए बहाना बना कर कहते हैं कि आप के पास फुटकर पैसे नहीं हैं तो ड्राइवर स्वयं फुटकर देने को तैयार हो जाता है और आप को न चाहते हुए भी उसे कुछ न कुछ देना पड़ता है.

आप इसे बख्शिश भी कह सकते हैं. खैर, जो कुछ भी हो, टिप के बारे में एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि जिसे आप टिप दे रहे हैं उस से आप बड़ी रकम का नोट न भुनाएं. आप टिप के रूप में या तो पूरा नोट दे दें या बिलकुल ही टिप न दें क्योंकि आप टिप देने के लिए मजबूर नहीं हैं. टिप का यही तरीका है.        द्य

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