आपदा के समय रमेशचंद्र के मध्यमवर्गीय परिवार के भूखों मरने की नौबत आ गई. सरकार की तरफ से भी किसी तरह की मदद नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में उन्होंने देश में आपदा के हालात चल रहे थे, इस स्थिति में लोग न जाने कैसेकैसे अपने परिवार का पेट भर रहे थे. सरकार भी ऐसी स्थिति में जरूरतमंदों की यथासंभव सहायता कर रही थी. लेकिन एक परिवार ऐसा था जिसे खाने के लाले पड़े थे. सरकार से भी उसे कोई मदद नहीं मिल पा रही थी. ऐसी स्थिति में रमेशचंद्र ने आपदा राहत कंट्रोल रूम में फोन किया, ‘‘नमस्कार जी, क्या आप आपदा राहत कंट्रोल रूम से बोल रहे हैं?’’
‘‘हां जी बोलिए, मैं आपदा राहत कंट्रोल रूम से बोल रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.
तभी रमेशचंद्र ने लड़खड़ाती जुबान से कहा, ‘‘साहब, हमारे घर के पास झुग्गियों में कुछ बेहद लाचार किस्मत के मारे मजदूर रहते हैं, जोकि अपना राशन खत्म होने के कारण कई दिनों से भूख से तड़प रहे हैं. इन बेचारों की तुरंत मदद कर के उन की जान बचा लो साहब.’’औफिसर ने रमेशचंद्र को हड़काते हुए कहा, ‘‘उन लोगों ने मदद के लिए फोन क्यों नहीं किया और तुम क्यों कर रहे हो?’’‘‘साहब, गुस्सा मत होइए. वो बेचारे भूख से बहुत परेशान हैं. बात करने तक की स्थिति में नहीं हैं.’’ रमेशचंद्र ने प्यार से कहा.
‘‘ठीक है एड्रेस बताओ, कहां मदद पहुंचवानी है और कितने लोग हैं?’’
औफिसर ने पूछा. ‘‘जी साहब, लिखो. मकान नबंर 1008, सेक्टर 27, सिटी सेंटर. यहां 2 बच्चे व 4 लोग बड़े लोग हैं.’’ रमेशचंद्र ने बताया. यह सुनते ही उस अफसर ने गुस्से में भर कर रमेशचंद्र को डांटते हुए कहा, ‘‘तेरा दिमाग खराब है क्या, अभी तो झुग्गी बता रहा था और अब मकान का पता लिखवा रहा है, इस सेक्टर में तो सब पैसे वाले लोग रहते हैं.’’रमेशचंद्र ने बड़ी लाचारी से कहा, ‘‘जी साहब, दिमाग भी खराब है और आजकल किस्मत भी खराब चल रही है. आप ठीक कह रहे हैं कि इस सेक्टर में पैसे वाले लोग रहते हैं.
लेकिन साहब झुग्गी का कोई नंबर तो होता नहीं और अगर आप की टीम झुग्गी ढूंढने में इधरउधर भटकती रही और उन को मदद देर से पहुंची तो उन मुसीबत के मारों पर भूख के चलते पहाड़ टूट सकता है. साहब, उन की जान जा सकती है. इसलिए मैं ने अपने घर का पता लिखवा दिया है.’’‘‘तुम्हारी बातों से लगता है कि उन लोगों की बहुत गंभीर स्थिति है. चलो ठीक है, हम तुरंत मदद भिजवा रहे हैं, लेकिन तुम को जरा भी इंसान व इंसानियत की फिक्र नहीं है, एक टाइम रोटी बनवा कर तुम भी उन बेचारों को खिलवा सकते थे.
‘‘ऐसा कर के तुम्हारा कुछ बिगड़ तो नहीं जाता. खैर, मैं तुरंत मदद करने वाली जिला राहत टीम को आप के पास भेज रहा हूं. टीम आधे घंटे में तुम्हारे पास उन लोगों के लिए खाना व एक महीने का राशन ले कर पहुंच रही है.’’ ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद साहब. मैं हमेशा आप का बहुत एहसानमंद रहूंगा, वो लाचार भूखे लोग आप को हमेशा दिल से दुआ देंगे साहब.’’ रमेशचंद्र ने कहा.‘‘ठीक है, मैं ने इस काम के लिए टीम के वरिष्ठ अधिकारी विजय की ड्यूटी लगा दी. वो खाना व राशन ले कर निकलने वाले हैं. तुम उन का इंतजार करना.’’
‘‘जी साहब, मैं उन का इंतजार करूंगा, आप चिंता न करें.’’ लगभग आधे घंटे बाद रमेशचंद्र के मोबाइल पर काल आई. फोन करने वाले ने उन से कहा, ‘‘मैं जिला राहत टीम से विजय बोल रहा हूं, घर के बाहर आ जाओ. ‘‘जी साहब, अभी आया.’’ कहते हुए रमेशचंद्र घर से बाहर निकले तो देखा कि एक जीप में 2 लोग खाना व सामान ले कर इंतजार कर रहे थे, वह पास घबराते हुए उन के पहुंचे और बोले, ‘‘साहब नमस्कार, मैं रमेशचंद्र हूं.’’ ‘‘ठीक है, बताओ कौन सी झुग्गी है जिन लोगों की खाने और राशन से मदद करनी है?’’ विजय ने कहा.
‘‘आप क्यों परेशान होते हैं, आप खाना व सामान मुझे दे दो, मैं उन की झुग्गी पर खुद ही पहुंचा दूंगा.’’ रमेशचंद्र बोले. ‘‘नहीं, मैं खुद दे कर आऊंगा. साहब का आदेश है कि उन मुसीबत के मारे लोगों से मिल कर जरूर आना और उन की कोई और जरूरत हो तो उन से पूछ लेना. तुम मुझे उन से मिलवाओ, जिस से मैं समय से अपना काम कर के किसी दूसरे व्यक्ति की मदद करने जा सकूं.’’ यह सुन कर रमेशचंद्र पसीने से तरबतर हो घबराते हुए बोले, ‘‘जी ठीक है, जैसा आप का आदेश, चलिए.’’
वह विजय को अपने छोटे से अव्यवस्थित घर के अंदर ले जाने लगे. ‘‘तुम आपदा के समय में मेरा टाइम खराब नहीं करो, हमें और भी जरूरतमंदों की सहायता करनी है. इसलिए हमारे पास आप के यहां बैठने का समय नहीं है. हमें जल्दी से उन झुग्गियों पर ले चलो.’’ रमेशचंद्र उस से नजरें छिपा कर बोले, ‘‘साहब मैं आप का टाइम खराब नहीं कर रहा बल्कि आप को जरूरतमंद लोगों के पास ही ले जा रहा हूं.’’
‘‘मैं तुम्हारे खिलाफ कानूनी काररवाई करूंगा, तुम ने इस भयंकर आपदा काल में झूठ बोल कर हमारा टाइम खराब किया. तुम इंसानियत के दुश्मन हो, जिस घर में तुम चलने के लिए बोल रहे हो, उस घर के लोगों को मदद की आवश्यकता नहीं हो सकती. कोई भी इस बात का अंदाजा घर और गाड़ी देख कर लगा सकता है. मैं फोन कर के पुलिस को बुलाता हूं.’’
विजय गुस्से से लाल हो कर मोबाइल से कोई नंबर मिलाने लगा तो रमेशचंद्र घबरा गए. उन्होंने मानमनौव्वल कर के जैसेतैसे उसे रोका तो वह बेहद गुस्से में वापस अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगा.
रमेशचंद्र उसे रोकते हुए बोले, ‘‘साहब, अगर आप खाना और राशन दे जाएं तो आप का बहुत एहसान होगा. हम लोगों की जान बच जाएगी. मुझे और मेरे घर वालों को खाने व राशन की बहुत सख्त जरूरत है.’’
‘‘क्यों झूठ बोल रहे हो, तुम को जरूरतमंद लोगों का अधिकार मारते हुए शर्म नहीं आती. तुम्हारे घर के लोगों को मदद की क्या जरूरत है. तुम तो स्वयं सक्षम हो. तुम क्यों लाचार, मजबूर गरीबों का हक मारना चाहते हो, भयावह आपदा के काल में इतना बड़ा अपराध मत करो और वैसे भी तुम ने मदद झूठ बोल कर किसी अन्य व्यक्ति के लिए मंगवाई है.’’ विजय ने कहा. रमेशचंद्र ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘साहब, कुछ तो रहम करो मुझ पर और मेरे परिवार पर. हम लोग सक्षम नहीं हैं. आप एक बार घर के अंदर जा कर देखो तो सही, हमें मदद की बहुत सख्त जरूरत है साहब.’’
‘‘अगर तुम्हारी बात झूठ निकली तो मैं तुम्हें जेल भिजवा कर ही दम लूंगा. ठीक है, चलो तुम्हारे घर के अंदर चल कर देखते हैं.’’ विजय ने कहा. रमेशचंद्र घबराते, लड़खड़ाते हुए विजय को अपने घर के अंदर ले गए.घर के अंदर की हालत देख कर जैसे विजय के पैरों तले की जमीन खिसक गई, उस की आंखें फटी रह गईं. वहां पर भूख से बिलखते 12 व 15 साल के 2 बच्चे और रमेशचंद्र के बुजुर्ग मातापिता और उन की 40 वर्षीय पत्नी मौजूद थी. उन सभी की स्थिति बेहद दयनीय थी.
यह देख कर विजय कुछ नहीं बोल पाया. उस ने तुरंत उन लोगों की जांच के लिए डाक्टर को बुलाने के लिए फोन किया और साथ आए आदमी से गाड़ी से खाना व राशन घर के अंदर रखने के लिए कहा.
यह सब देख कर रमेशचंद्र की आंखों से आंसू की धारा फूट पड़ी और कहा, ‘‘साहब, आज आप ने मेरे परिवार की जान बचा कर मुझ को हमेशा के लिए अपना ऋणी बना लिया. साहब, मेरा परिवार एक हफ्ते से भूखा है और मुझ को कोई मदद नहीं मिल पा रही थी. इसलिए आज मैं ने परिवार की जान बचाने की खातिर झुग्गियों के नाम पर झूठ बोल कर राहत सामग्री मंगवाई थी.’’
रमेशचंद्र जमीन पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लगे.विजय ने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘जब तक डाक्टर साहब आते हैं, तब तक जरा मुझे अपने बारे में विस्तार से बताओ. यह घर और गाड़ी तो तुम्हारी ही है ना?’’‘‘हां साहब, यह घर भी मेरा है यह गाड़ी भी मेरी है. अभी साल भर पहले अपनी व मातापिता की ताउम्र की कमाई व बैंक से लोन ले कर दोनों खरीदे थे. लेकिन यह पता नहीं था कि लोन लेने के एक साल बाद ही आपदा के चक्कर में एकाएक मेरी नौकरी चली जाएगी और दरदर ठोकर खाने की स्थिति आ जाएगी.
‘‘साहब, हमारी कमाई तो बैंक का लोन भरने व बच्चों की पढ़ाई में ही खत्म हो जाती है. घर का खर्चा पिताजी की पेंशन से बड़ी ही मुश्किल से चल पाता है. हमारे पास किसी तरह की कोई भी बचत हो ही नहीं पाती. लेकिन अब तो खाने के भी लाले पड़ गए हैं. हम मध्यमवर्गीय तो आज के व्यावसायिक दिखावे वाले दौर में केवल कर्ज चुकाने के लिए जिंदा हैैं.’’ रमेशचंद्र ने अपनी व्यथा सुनाई. ‘‘लेकिन तुम अपने पड़ोसियों, परिचितों, रिश्तेदारों व यारदोस्तों से तो मदद मांग सकते थे.’’ विजय ने कहा.
‘‘आप ठीक कह रहे हैं साहब, मैं ने मदद के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन हर कोई मदद की बात को मजाक मान कर टाल देता था. यह उधार की गाड़ी व मकान आज मेरी व मेरे परिवार की जान का दुश्मन बन गया है, इस के चलते कोई भी मेरी मदद करने के लिए तैयार नहीं है. ‘‘कई बार मदद के लिए आपदा राहत कंट्रोल रूम भी फोन किया, लेकिन उन्होंने भी परिचय सुनते ही मुझे झिड़क दिया और दुत्कारते हुए कहा कि तुम गरीबों का हक मारना चाहते हो.
‘‘मैं खुद कई बार सामाजिक संगठनों द्वारा बंटने वाले भोजन व राशन भी लेने गया, पर वहां पर वो लोग मदद करते समय फोटो खींच रहे थे, इसलिए शर्म व बच्चों के भविष्य के बारे में सोच कर मैं बारबार वहां से वापस आ जाता था.’’ रमेश की दयनीय स्थिति समझने के बाद विजय की आंखों में आंसू आ गए. वह नि:शब्द हो गया. वह सोचने लगा कि एक मध्यमवर्गीय परिवार भी इतने गंभीर आर्थिक संकट में हो सकता है, आज उस की समझ में आ गया.
इतने में घर के गेट पर डाक्टर की गाड़ी आ कर रुकी, तो विजय उस गाड़ी के पास पहुंचा और डाक्टर को घर के अंदर ले गया. डाक्टर ने घर के सभी लोगों का चैकअप किया. चैकअप करने के बाद डाक्टर ने बताया, ‘‘भूख के चलते इन लोगों की हालत बहुत खराब है अगर इन को आज समय पर भोजन और चिकित्सा नहीं मिलती तो इन की जान जा सकती थी. अब मैं ने इन को एक हफ्ते की दवाई व विटामिन की गोलियां दे दी हैं. अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया है अगर कोई दिक्कत होगी तो मुझे फोन कर के बुला लेंगे.’’ ‘‘वैसे एक हफ्ते बाद मैं खुद इन को देखने आ जाऊंगा. खाना खाने के बाद ये एकएक खुराक दवा ले लेंगे. और बाकी कैसे खानी है, वह भी समझा दिया है. सुबह तक ये लोग अपने आप को काफी ठीक महसूस करने लगेंगे.’’ डाक्टर फिर वहां से चला जाता है.
विजय ने भी रमेशचंद्र को अपना पर्सनल नंबर देते हुए कहा, ‘‘आज सच में तुम ने मेरी आंखें खोल दीं, शासन, प्रशासन व जिला राहत टीम ने यह कभी भी नहीं सोचा था कि एक मध्यमवर्गीय परिवार पर भी आपदा के कारण इतनी भयंकर मार पड़ सकती है. मैं अभी औफिस जा कर अपने सीनियरों को स्थिति से अवगत करवाऊंगा और उन से भविष्य में मध्यमवर्गीय परिवारों की मदद का भी प्रावधान करने की बात कहूंगा.’’‘‘साहब, मेरा भी आप से एक यही निवेदन है कि सरकार को अब मध्यमवर्गीय परिवारों की मदद के लिए भी ध्यान देना चाहिए. क्योंकि सामाजिक संस्थाओं द्वारा मदद करते समय फोटो खींचने की वजह से कई लोग चाहते हुए भी उन से मदद नहीं ले पाते.
यह मजबूरी व लाचारी उन के जीवन पर बहुत भारी पड़ सकती है, इसलिए सरकार को उन का ध्यान रखना चाहिए.’’ रमेशचंद्र ने कहा. ‘‘बिलकुल. तुम ने हमारी आंखें खोल दी हैं और हम मध्यमवर्गीय परिवारों के सहयोग के लिए भी हरसंभव प्रयास करेंगे.’’विजय ने अपनी जेब में रखे 5 हजार रुपए निकाल कर रमेश को दिए तो रमेश ने पैसे लेने से इनकार कर दिया. बहुत इनकार करने के बाद भी विजय ने अधिकार के साथ जबरन पैसे देते हुए कहा, ‘‘सब का ध्यान रखना, कोई दिक्कत हो तो मुझे फोन करना. अच्छा, अब मैं चलता हूं.’’ इस के बाद वह गाड़ी में बैठ कर आंखों में आंसू लिए अपने औफिस की तरफ यह सोचता हुआ चल दिया कि धनवान लोगों के पास दौलत की कोई कमी नहीं. वह आपदा में भी साधन इकट्ठा कर के जीवन जी लेंगे. गरीब की मदद सरकार व समाजसेवी और धनवान लोग करते हैं.
लेकिन एक मध्यमवर्गीय परिवार के पास न तो दौलत है न वो गरीब है, जो कोई उस की मदद करे. ऐसे में वो आपदा के वक्त कैसे अपना और अपने परिवार का गुजारा करेगा. सरकारी तंत्र को भी इस तरह के हालात बनने से पहले ही मध्यमवर्गीय परिवारों की इस समस्या का समाधान करना चाहिए.
हमारे देश के सिस्टम को ध्यान रखना चाहिए कि मजबूरी, लाचारी किसी भी वक्त किसी भी व्यक्ति के सामने आ सकती है, इसलिए हमेशा मानवीय मूल्यों व संवेदनाओं के आधार पर मदद का प्रावधान करना चाहिए.