वृंदा ने बात को जल्दी ही समाप्त किया और लगभग भागती हुई अपने घर आ गई. घंटेभर शांति से बैठने के बाद जब उस की सांसें स्थिर हुईं तब उसे घर छोड़ कर बाहर अकेले रहने का अपना फैसला गलत लगने लगा. कितना कहा था रवि ने कि इसी घर में पड़ी रहो, पर वह कहां मानी. स्वाभिमान और आत्मसम्मान आड़े आ रहा था. पता नहीं क्या हो गया था उसे. भूल गई थी कि औरतों का भी कहीं सम्मान होता है. पर उसे तो स्वयं पर भरोसा था, समाज पर विश्वास था. सुनीसुनाई बातें वह मानती नहीं थी.
उस के अनुभव में भी अब तक ऐसी कोई घटना नहीं थी कि वह डरती. किंतु अब तक वह पति के द्वारा छोड़ी भी तो नहीं गई थी. पति ने छोड़ा है उसे? नहीं, वृंदा स्वाभिमान से घिर जाती. वह पति के द्वारा छोड़ी गई नहीं है बल्कि उस ने अपने पति को छोड़ा था. जब वह अपने पति द्वारा दिए अपमान को न सह सकी तब डा. निगम से इतना डर क्यों? इसी साहस के बल पर वह अकेले रहने निकली है? डा. निगम जैसे तो अब पगपग पर मिलेंगे. कब तक डरेगी?
अंधेरा घिर आया था. किसी ने दरवाजा फिर खटखटाया. वृंदा फिर भयभीत हुई. भय अंदर तक समाने की कोशिश कर रहा था, किंतु वृंदा ने उठ कर पूरे साहस के साथ दरवाजा खोल दिया. दरवाजे के सामने पड़ोस में रहने वाली मिसेज श्रीवास्तव खड़ी थीं. वृंदा को उदास देख उन्हें शंका हुई. उन्होंने कारण पूछा तो वृंदा रो पड़ी तथा शाम को घटी घटना का बयान ज्यों का त्यों उन के सामने कर दिया. फिर मिसेज श्रीवास्तव के प्रयास से ही 15 दिन के भीतर उसे यह कमरा मिला था.
वृंदा ने एक गहरी सांस ली. कमरे में रखे सामान पर उस की नजर गई. इस कमरे में तमाम सामान के साथ एक अटैची भी थी, जिस में सब से नीचे एक तसवीर रखी थी. तसवीर में रवि मुसकरा रहा था. वृंदा जब उस अटैची को खोलती तो उस तसवीर को जरूर देख लेती. क्या था इस तसवीर में? क्यों इसे इतना संभाल कर रखती है वह? बारबार इसे देखने की उस की इच्छा क्यों उमड़ती है? वह तो रवि से नफरत करती है. इतनी नफरत के बाद भी वह तसवीर उस की अटैची में कैसे है? उस ने महसूस किया कि न सिर्फ अटैची में है उस की तसवीर बल्कि अपनी हर छोटीमोटी परेशानी में वह सब से पहले रवि को ही याद करती है. क्या उस के हृदय में रवि के प्रति प्रेम जैसा कुछ अब भी है?
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जितनी बार वृंदा के मन में ये विचार, ये प्रश्न उठते, उतनी ही बार वह मन को विश्वास दिलाती कि ऐसा कुछ नहीं है. यह तसवीर तो वह अपनी बेटियों के लिए लाई है, खुद अपने लिए नहीं. बेटियां पूछेंगी अपने पापा के बारे में तो वह बता सकेगी कि देखो, ये हैं तुम्हारे पापा, यह चेहरा है उन का, इस चेहरे से करो नफरत कि इस चेहरे ने किया है अनाथ तुम्हें. उस की बच्चियां और अनाथ? वह क्या कर रही है फिर? उस ने अपने अस्तित्व को नकार दिया है क्या? बस रवि ही सब कुछ था क्या? दुख में रवि, खुशी में रवि, नफरत में रवि. उलझ गई है वृंदा. वह रवि को जितना नकारती है, रवि उतना ही उसे याद आता है तभी तो अटैची खोलते ही वह सामान बाद में निकालती है तसवीर को पहले देखती है.
वृंदा अब लेटी नहीं रह पा रही थी. वह उठ कर खिड़की के पास तक आई. बाहर अभी भी अंधेरा था किंतु सुबह होने में अब अधिक देर नहीं थी. सरसराती हवा कमरे में आ रही थी. वृंदा ने अपने माथे को खिड़की से टिका दिया और एक लंबी सांस ली, चलो किसी तरह एक रात और बीती.
आज बच्चों के स्कूल में ऐनुअल फंक्शन था. उस ने बच्चियों को जगाया और अपने काम में लग गई. प्राची अपने कपड़ों को उलटनेपलटने लगी. गिनती के कपड़ों में वह यह देख रही थी कि अब तक कौन सी ड्रैस पहन कर स्कूल नहीं गई है. किंतु बारबार पलटने पर भी उसे एक भी ऐसी ड्रैस नहीं मिल रही थी. इन सब कपड़ों को एक बार तो क्या कईकई बार पहन कर वह स्कूल गई है. हार कर उस ने एक पुरानी फ्रौक निकाल ली और नहाने के लिए बाथरूम में घुसी.
रश्मि अभी तक बिस्तर पर लेटी थी. प्राची को बाथरूम में जाते देख चिल्लाने लगी कि पहले वह नहाएगी. रश्मि का रोना सुन कर प्राची बाथरूम से बाहर आ गई ताकि रश्मि ही पहले नहा ले. प्राची के हाथ में फ्रौक थी. रश्मि फ्रौक को खींचती हुई बोली, ‘‘इसे मैं पहनूंगी, तुम दूसरी पहन लेना. फ्रौक बड़ी है इस बात की चिंता उसे नहीं थी. वह तो खुश थी कि प्राची यह फ्रौक नहीं पहन पाई, बस.
इधर, कुछ दिनों से वृंदा रश्मि की इन आदतों, जिस में प्राची की चीजों को छीन लेना और उसे हरा देना शामिल होता जा रहा था, से परेशान थी. और शायद इसलिए आजकल उसे डरावने सपने भी अधिक आने लगे थे. वृंदा को रश्मि के जन्म के समय मैटरनिटी होम में कहे गए उस बंगाली महिला के शब्द याद आ गए. उस के दोनों बच्चों में मात्र सालभर का अंतर है, यह जानते ही बंगाली महिला ने उसे सलाह दी थी, ‘इस को, इस के हाथ से केला खिला देना. तब वह बहन से हिंसा नहीं करेगी.’
हिंसा शब्द ईर्ष्या शब्द के पर्याय में बोला गया था. यह तो वृंदा भलीभांति समझ गई थी, किंतु केला बड़ी बेटी के हाथ से छोटी को खिलाए या छोटी बेटी के हाथ से बड़ी बेटी को, यह नहीं समझ पाई थी. समझने का प्रयास भी नहीं किया था, कहीं केला खिलाने से प्रेम और द्वेष हो सकता है भला.
पर अब उस के मन में कभीकभी आता है कि वह पूरी तरह क्यों नहीं उस बंगाली महिला की बात को समझी. समझ कर वैसा कर लेती तो शायद रश्मि प्राची से इतनी ईर्ष्या न करती. लेकिन प्राची इतनी उदार कैसे हो गई? कहीं अनजाने में उस ने रश्मि को केला खिला तो नहीं दिया था. वृंदा झुंझला उठी, क्या हो गया है उसे? किनकिन बातों में विश्वास करने लगी है वह?
स्कूल के स्टेज पर एक कार्यक्रम के बाद दूसरा कार्यक्रम था. तालियों पर तालियां बज रही थीं, किंतु वृंदा का मन अपने ही द्वारा बुने गए विचारों में उलझा था. समारोह समाप्त होने पर सब बच्चों को स्कूल की तरफ से एकएक पैकेट चिप्स और चौकलेट दी गई. बच्चे खुश हो कर घर लौटे.
वृंदा का मन अब तक उदास था. वह बेमन से घर के कामों को निबटाने लगी.
प्राची ने रश्मि से पूछा, ‘‘रश्मि चौकलेट का स्वाद कैसा था?’’
‘‘अच्छा, बहुत अच्छा,’’ रश्मि ने इठलाते हुए जवाब दिया.
‘‘तुम्हें नहीं मिली थी क्या?’’ वृंदा के काम करते हाथ रुक गए.
‘‘हां, मिली थी.’’
‘‘फिर तुम ने भी तो खाई होगी?’’
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‘‘नहीं.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘रश्मि ने मांग ली थी.’’
‘‘उसे भी तो मिली होगी?’’
‘‘हां, उसे मिली थी, पर उसे और खानी थी.’’
‘‘आधी दे देनी थी, पूरी क्यों दी?’’
‘‘रश्मि रोने लगी थी, मम्मी.’’
प्राची के जवाब से वृंदा का धैर्य थर्रा कर टूट गया. उस ने प्राची के गाल पर तड़ातड़ कई थप्पड़ जड़ दिए, ‘‘उस ने मांगी और तुम ने दे दी, अपनी चीजों को बचाना नहीं आता तुम्हें? तुम दादी बन रही हो? तुम्हें क्या लगता है कि रश्मि तुम्हारा बड़ा मानसम्मान करेगी कि तुम ने हर पल अपने हिस्से को उसे दिया है…अरे, यों ही देती रहोगी तो एक दिन वह तुम से तुम्हारा जीवन भी छीन लेगी…अब उसे कुछ दोगी, बोलो, अब दोगी अपनी चीजें उसे…’’ वृंदा प्राची को मारे जा रही थी और बोले जा रही थी.
मां का रौद्र रूप देख कर रश्मि डर के मारे एक कोने में दुबक गई थी. वृंदा के मारते हाथ जब थोड़े रुके तो वह स्वयं फूटफूट कर रोने लगी और वहीं दीवार के सहारे जमीन पर बैठ गई.
घंटों रो लेने के बाद उस ने कमरे में नजर दौड़ाई. खिड़की के बाहर एक स्याह परदा पड़ गया है. भीतर की पीली रोशनी में कमरा कुछ उदास और खोयाखोया सा लग रहा था. उस की दोनों बेटियां रोतेरोते वहीं उस के पास जमीन पर ही सो गई थीं. रश्मि प्राची की गोद में दुबक गई थी और प्राची का हाथ रश्मि के सिर पर था. वृंदा का मन विह्वल हो गया. वह क्यों पिछली जिंदगी की गुत्थियों में उलझी है? 10 साल पहले घटी एक घटना का अब तक इतना गहरा प्रभाव? वह गलत राह पर है. उसे इस छाया को अपनी जिंदगी से मिटाना पड़ेगा. कितना प्रेम तो है दोनों में? वह क्यों अलगाव के बीज बो रही है. उस के इस व्यवहार से तो दोनों एकदूसरे से बहुत दूर हो जाएंगी. उस ने तय किया कि अब वह कभी पीछे लौट कर नहीं देखेगी. वह काली छाया अपनी बेटियों पर नहीं पड़ने देगी. उस ने बारीबारी से दोनों के सिर पर हाथ फेरा और आश्चर्य उसे यह हुआ कि आज इस अवसाद की स्थिति में भी उस ने रवि को याद नहीं किया.
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वृंदा को लगा था कि शादी की बात सुनते ही सास के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ेगा. ‘ऐसा कैसे होगा? मेरे जीतेजी ऐसा नहीं हो सकता.’ इस तरह का कोई वाक्य वे बोलेंगी. किंतु उन्होंने तो सपाट सा जवाब दे कर पल्लू झाड़ लिया.
वृंदा का गला भर्रा गया, ‘मां, आप ऐसा कैसे बोल रही हैं? आप मुझे बहू बना कर इस घर में लाई हैं. क्या आप यह सब होने देंगी? मेरे लिए कुछ भी नहीं करेंगी?’
‘मैं क्या करूंगी? तुम्हारी बहन है, तुम देखो.’
‘लाख मेरी बहन है, घुस तो आप के बेटे के संसार में रही है न. आप अपने बेटे को समझा सकती हैं. कुंदा का विरोध कर सकती हैं. मैं ने आप से कहा तो था कि मैं डिलिवरी के लिए अपनी मां के यहां चली जाती हूं, तब आप ने स्वास्थ्य की दुहाई दे कर मुझे यहीं रोक लिया था. आप के कहने पर ही मैं ने कुंदा को यहां बुलाया था.’
हमेशा उन के सामने चुप रह जाने वाली वृंदा का इतना बोलना सास से सहन नहीं हुआ और उन का क्रोध भभक पड़ा, ‘अब मुझे क्या पता था कि तुम्हारी बहन के लक्षण खराब हैं. पता नहीं कौन से संस्कार दिए थे तुम्हारी मां ने. वैसे यह कोई बड़ी बात भी नहीं हो गई है. तुम्हें कोई घर से निकाल रहा है क्या? रवि तो कहता है कि दूसरी शादी भी कर लूंगा तब भी वृंदा को इस घर से बेघर नहीं करूंगा. अपनी जिम्मेदारी की समझ है उसे.’
तो ये भी रवि की योजना में शामिल हैं. मां के दिए संस्कार की बात कर रही हैं. जो काम कुंदा कर रही है वही तो इन का बेटा भी कर रहा है बल्कि दो कदम आगे बढ़ कर अपनी पहली पत्नी और 2 बच्चियों को छोड़ कर. इन्होंने कौन से संस्कार दिए हैं अपने बेटे को. एहसान बता रही हैं कि घर से नहीं निकाला जा रहा है उसे. अरे कौन होते हैं ये लोग घर से निकालने वाले? शादी कर के आई है यहां. पूरा हक है इस घर पर. यहां से निकलना होगा तो वह खुद ही निकल जाएगी.
जिम्मेदारी की क्या खाक समझ है इन लोगों को? कोई नौकरानी है वह कि सुविधाएं दे देंगे. पगार दे देंगे. उतने से वह खुश हो जाएगी. ये सास हैं? इन के तमाम नखरों को बड़े प्रेम और आदर के साथ झेलते हुए उस ने 5 साल बिता दिए किंतु इस घर की रीतिनीति समझ ही न पाई.
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ये वही सास हैं जिन को उस ने मां का दरजा दिया था. इतनी कठोर. इन से डरती रही थी वह. ये तो नफरत के काबिल भी नहीं हैं. वृंदा के सिर से पल्ला सरक कर नीचे गिर गया जिसे फिर से सिर पर रखने की जरूरत उस ने महसूस नहीं की और हिकारत भरी नजर से सास को देखती हुई उठ आई.
वृंदा के मन से सास का आदर एक झटके में ही समाप्त हो गया और इस परिस्थिति से लड़ने की हिम्मत पनपने लगी. उस ने सोचा, अब रवि के सिवा किसी से वह इस विषय पर बात नहीं करेगी. था ही कौन उस का? पिता बहुत पहले ही चल बसे थे. मां के बस का कुछ है नहीं. अब उसे खुद ही सोचना पड़ेगा. इस समस्या से उबरना तो है ही.
मां को उस ने न तो चिट्ठी लिखी, न फोन किया. कुंदा से इस विषय पर बात करने की उस की इच्छा ही नहीं हुई. किंतु रवि? रवि पर तो उस का अधिकार है. वह अपने अधिकार को नहीं छोड़ेगी.
उस दिन से कईकई बार उस ने रवि को समझाने का प्रयास किया था. अपने प्यार का हवाला दिया. बच्चों की तरफ देखने की प्रार्थना की. ‘उस के बिना नहीं रह पाएगी’ कह कर जारजार रोई भी थी, पर रवि का मन काबू में नहीं था. उस की नजरें अन्य सारी बातों को पछाड़ देतीं. बस कुंदा का चेहरा ही उसे दिखता था. वृंदा हताश हो गई थी. अब घर में चौबीसों घंटे तनाव रहने लगा था.
फिर मां आ पहुंचीं. उस की अपनी मां. बताया तो उस ने नहीं था पर मां सब जान गई थीं पर आ कर भी कर कुछ नहीं पाई थीं वे. हार कर वृंदा के आगे ही आंचल पसार दिया था उन्होंने. वृंदा समझ गई थी कि अब मां भी उन्हीं लोगों की भाषा बोलना चाह रही हैं. कोई उस की पीड़ा को नहीं समझता. मां भी नहीं. मां की 2 बेटियां एक ही सुख की कामना किए हैं, मां किस की पीड़ा समझें. अपने सामने फैले मां के आंचल को वृंदा ने अपने हाथों से नीचे किया और बोली, ‘मैं तुम्हारे आंचल में अब कुछ नहीं डाल पाऊंगी
मां. मैं यह घर छोड़ दूंगी. तुम मुझ से कुछ मत मांगो. मैं देने में असमर्थ हूं. मेरी नियति अकेले बहने की है मां. मैं बहूंगी, यहां नहीं रुकूंगी.’
‘कहां जाओगी…? अकेले रहना आसान है क्या? तुम रह भी लो, पर ये बच्चियां? इन्हें पिता से क्यों अलग कर रही हो?’
‘मैं अलग कर रही हूं मां? मैं? रवि ने सोचा इन के बारे में? इन की किस्मत में पिता का सुख नहीं है मां, अपना दम घोंट कर मैं इन्हें पिता का सुख नहीं दे सकती.’
‘बेटा, राजा दशरथ ने भी…’
‘बस करो मां, बस करो. क्या हो गया है तुम्हें? कुछ नहीं कर सकती हो तो कम से कम चुप ही रहो. अब तक मैं यहां इसलिए रही मां, क्योंकि यह मेरा घर था. पूरे हक से रहती थी यहां, अब दया पर नहीं रहूंगी. कह दो कुंदा से, मैं ने उसे अपना पति दे दिया.’
मां वृंदा से लिपट कर फूटफूट कर रोईं. मां वृंदा की मनोव्यथा समझ रही थीं. क्या करें मां. इस उम्र में किसी समस्या से जूझने की शक्ति खो चुकी हैं. वे चाहती हैं कि शांति से इस का निबटारा हो जाए तो न उन्हें कुंदा की चिंता होगी और न ही वृंदा की. दोनों बेटियों के प्रेम में पड़ी मां समझ नहीं पा रही हैं कि वृंदा आखिर पति को बांटे भी तो कैसे?
6 महीने से वृंदा स्थिति को बदलने का प्रयास कर रही है किंतु जब ज्वालामुखी फट ही चुका है तो कब तक वह इस के लावे से बचेगी. इस लावे में झुलस कर दफन नहीं होना है उसे. जानती है वृंदा कि उस का वजूद अब बिखर चुका है किंतु वह उसे समेटेगी. अपनी खातिर नहीं, अपनी बच्चियों की खातिर.
घर छोड़ कर जब वह अलग रहने के लिए निकली थी तब उसे 2 कमरों का मकान मिल गया था. जगह अच्छी थी किंतु रवि के दूसरे ब्याह की खबर उस से पहले इस घर में पहुंची थी. मिसेज निगम बड़ी नेक विचारों की थीं. हर छोटीमोटी तकलीफों में वृंदा को उन्हीं का सहारा था.
एक दिन शाम को डा. निगम ने वृंदा का दरवाजा खटखटा कर बताया कि उस के लिए फोन आया है. कई बार वृंदा की मां का फोन उन के घर आ जाता था. फोन आने पर उसे निगम की लड़कियां ही बुलाने आती थीं. आज क्या इन के घर में कोई नहीं है? वृंदा असमंजस में थी. वह फोन पर बात करने जाए या न जाए. थोड़ी देर बाद डा. निगम ने फिर आवाज लगाई. मन की तमाम उलझनों के बावजूद भी वृंदा इस बार फोन पर बात करने चली गई.
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वृंदा जब तक वहां पहुंची फोन कट गया था. वह वहीं बैठ कर फोन आने का इंतजार करने लगी. डा. निगम वृंदा की बेटियों से बातें कर रहे थे पर उन की नजरें वृंदा की तरफ ही उठ आती थीं. वृंदा असहज हो गई. डर के मारे उस की सांसें चलने लगीं. वह उठ कर अपने घर लौट आना चाहती थी तभी फोन की घंटी बजी. डा. निगम ने फोन उठाया. फोन उस की मां का ही था. वृंदा रिसीवर लेने आगे बढ़ी और उस ने महसूस किया कि यह जो रिसीवर देते समय डा. निगम की उंगलियां उस के हाथों से कुछ गहराई तक छू गईं वह अनजाने में नहीं हुआ.
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स्वप्न इतना डरावना तो नहीं था किंतु न जाने कैसे वृंदा पसीने से तरबतर हो गई. गला सूख गया था उस का. आजकल अकसर ऐसा होता है. स्वप्न से?डरना. यद्यपि वह इन मान्यताओं को नहीं मानती थी कि स्वप्न किसी शुभाशुभ फल को ले कर आता है, पर पता नहीं क्यों, आजकल वह उस कलैंडर की तलाश में रहने लगी है जिस में स्वप्न के शुभाशुभ फल दिए रहते हैं. क्या करे, सहेलियां डरा जो देती हैं उसे.
कभीकभी जब वह अपना कोई स्वप्न बता कर पूछती है कि मरा हाथी देखने से क्या होता है? या फिर मकान गिरते हुए देखने का क्या फल मिलता है? तब सहेलियां चिंतित हो कर अपनी बड़ीबड़ी आंखें घुमा कर उस का भविष्य बताने लगतीं, ‘लगता है, अभी तुम्हारी मुसीबत खत्म नहीं हुई है. कोई बहुत बड़ी विपत्ति आने वाली है तुम पर. अपनी बेटियों की देखभाल जरा ध्यान से करना.’
तब वृंदा मारे डर के कांपने लगती है. अब ये मासूम बेटियां ही तो उस की सबकुछ हैं. कैसे नहीं ध्यान रखेगी इन का? दोनों कितनी गहरी नींद में सो रही हैं? वृंदा अरसे से ऐसी गहरी नींद के लिए तरस रही है. यदि किसी रात नींद आ भी जाती है तो कमबख्त डरावने स्वप्न आ धमकते हैं और नींद छूमंतर हो जाती है.
वृंदा ने घड़ी की तरफ देखा, रात के 3 बज रहे थे. स्वप्न की बेचैनी और घबराहट से माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आई थीं. वह बिस्तर से उठी, मटके से गिलास भर पानी निकाला व एक ही सांस में गटागट पी गई. माथे पर आए पसीने को साड़ी के आंचल से पोंछती हुई वह फिर बिस्तर पर आ कर लेट गई. वृंदा ने पूरे कमरे में नजर घुमाई. यह छोटा सा कमरा ही अब उस का घर था. न अलग से रसोई, न स्टोर, न बैठक. सबकुछ इसी कमरे में था. गैस चूल्हे की आंच से जो गरमी निकलती वह रातभर भभकती रहती.
कमरे से लगा एक छोटा सा बाथरूम था और एक छोटी सी बालकनी भी. वृंदा का मन हुआ कि बालकनी का दरवाजा खोल दे, बाहर की थोड़ी हवा तो अंदर आएगी, किंतु उस की हिम्मत नहीं पड़ी. रात के 3 बजे सवेरा तो नहीं हो जाता. वृंदा मन मार कर लेटी रही.
उस का ध्यान फिर से स्वप्न पर गया. एक बड़े से गड्ढे में गिर कर उस की बड़ी बेटी प्राची रो रही थी और रश्मि बड़ी बहन को रोता देख कर खिलखिला रही थी. यह भी कोई स्वप्न है? इतना डरने लायक? वह डरी क्यों? इस स्वप्न के किस हिस्से ने उसे डराया? प्राची का गड्ढे में गिरना या रश्मि का किनारे खड़े हो कर खिलखिलाना? रश्मि हंस क्यों रही थी? शायद प्राची को गड्ढे में उस ने ही धकेला था. वृंदा फिर कांप गई.
स्वप्न, स्वप्न था. आया और चला गया. किंतु उस की परछाईं किसी सच्ची घटना की तरह उसे डरा रही थी. वह इस प्रकार डरी मानो अभी घर में तूफान आया हो और घर की दीवारें तक हिल गई हों.
यह स्वप्न उसे अतीत के बिंबों की तरफ ले जा रहा था जिस में न जाने की उस ने सैकड़ों बार प्रतिज्ञा की थी.
बिंब अभी थोड़े धुंधले थे. उसे थोड़ा संतोष हुआ. वह इन्हें और चटक नहीं होने देगी. यहीं से उबर जाएगी. किंतु उस का प्रयास अधिक देर तक टिक नहीं पाया. शीघ्र ही एक के बाद एक सारे बिंब चमकदार होने लगे हैं जिन्हें देखते ही उस की धड़कनें अधिक तेज हो गईं.
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उस की भी एक छोटी बहन थी, कुंदा. हमेशा उस के चौकलेट, खिलौनों तथा कपड़ों को हथिया लेती थी. वृंदा या तो उस से जीत नहीं पाती थी या जीतने का भाव मन में लाती ही नहीं थी. छोटी बहन से क्या जीतना और क्या हारना? खुशीखुशी अपने चौकलेट, खिलौने और कपड़े कुंदा को दे देती थी. कुंदा विजयी भाव से उस की चीजों का इस्तेमाल करती थी. वृंदा को बस उस का यह विजयभाव ही खटकता था. वह सोचती, ‘काश, कुंदा समझ पाती कि उस की विजय का कारण मेरी कमजोरी नहीं बल्कि प्रेम है, छोटी बहन के प्रति प्रेम.’ पर कुंदा को न समझना था, न ही समझी.
बचपन छूटता गया पर कुंदा का स्वभाव न बदला. रश्मि के जन्म के समय वृंदा के घर आई कुंदा ने उस से उस का पति भी छीन लिया. वृंदा हतप्रभ थी. 5 वर्ष के संबंध चंद दिनों की परछाईं में दब कर सिसकने लगे.
वृंदा का विश्वास टूटा था, वह स्वयं नहीं. उस ने अपने घर को संभालने का पूरा प्रयास किया. सब से पहले उस ने अपने पति से बात की.
‘यह सब क्यों हुआ रवि…बोलो, ऐसा क्यों किया तुम ने? तुम्हारे जीवन में मैं इतनी महत्त्वहीन हो गई? इतनी जल्दी? मात्र 5 वर्षों में?’
‘ऐसी बात नहीं है वृंदा, तुम्हारा महत्त्व तनिक भी कम नहीं है,’ एकदम सपाट और भावशून्य शब्दों में जवाब दिया था रवि ने. वृंदा कुछ संतुष्ट हुई, ‘तो फिर यह महज भूल थी जो हो गई होगी. कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’ मन में सोचा था उस ने, पर ऊपर से कठोर बनी प्रश्न करती रही.
‘जब तुम्हारे जीवन में मेरा महत्त्व कम नहीं हुआ है तो तुम ने ऐसा क्यों किया…? कुंदा तो नासमझ है, पर तुम्हें तो कुछ सोचना था?’
‘तुम इतनी छोटी बात का बतंगड़ बना रही हो?’ रवि की आवाज में खीज थी. वृंदा सब्र खो बैठी. क्षणभर पहले उस के मन में रवि के लिए उठे विचार विलीन हो गए.
‘मैं बतंगड़ बना रही हूं…? मैं? तुम्हारी नजर में यह इतनी छोटी बात है? अरे, तुम ने मेरे विश्वास का गला घोंटा है रवि, जिंदगीभर की चुभन दी है तुम ने मुझे. समय बीत जाएगा, ये बातें समाप्त हो जाएंगी लेकिन मेरे दिल में पहले जैसे भाव कभी नहीं आएंगे. हमेशा एक अविश्वास घेरे रहेगा मुझे. मुझे तो तुम ने जिंदगीभर की पीड़ा दी ही, साथ ही मेरी बहन को भी बेवकूफ बनाया.’
‘क्या बकवास कर रही हो? मैं ने किसी को बेवकूफ नहीं बनाया है…किसी को कोई पीड़ा नहीं दी है,’ क्रोध में रवि चिल्ला पड़े थे. फिर थोड़ी देर बाद संयत हो कर अपने एकएक शब्द पर जोर देते हुए बोले, ‘कुंदा से मेरी बात हो चुकी है. मैं उस से शादी करूंगा. वह भी राजी है. हां, तुम इस घर में पूरे मानसम्मान के साथ रह सकती हो. अब यह तुम्हारे ऊपर निर्भर है कि तुम बात का बतंगड़ बनाती हो या अपना और कुंदा का जीवन बरबाद करती हो,’ रवि ने बेपरवाह उद्दंडता से जवाब दिया.
वृंदा अवाक् रवि का मुंह ताकती रह गई. हाथपैर जम गए उस के. मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. बात यहां तक बढ़ गई और वह कुछ जान ही न पाई. किस दुनिया में रहती है वह.
छत पर पंखा धीमी गति से घूम रहा है. दोनों बेटियां अब भी गहरी नींद में सो रही हैं. वृंदा ने पंखे को कुछ तेज किया किंतु उस की रफ्तार ज्यों की त्यों रही. बेटियों के माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को वृंदा ने अपने आंचल से थपथपा कर सुखाया, फिर छत निहारती हुई लेट गई.
पति के जवाब से आहत वृंदा के मन में उम्मीद की डोर अभी बाकी थी. सास से उम्मीद. वे कुछ करेंगी. वैसे थीं वे कड़क गुस्से वाली. वृंदा को उन के साथ रहते हुए 5 वर्ष बीत चुके थे किंतु हिम्मत थी कि उन के सामने सिकुड़ कर रह जाती थी. मुंह ही नहीं खुलता था. पर बात तो करनी थी, आखिर उसे इस घर से अलगथलग कर देने का षड्यंत्र रचा जा रहा है.
इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यह उस के अस्तित्व का प्रश्न है. वह बात करेगी. अनुचित के विरोध में बोलना अपने अस्तित्व को बनाए रखने की बुनियादी जरूरत है. कुंदा के साथ अपने खिलौनों को बांटना छोटी बहन के प्रति प्यार है, बड़ी बहन का बड़प्पन है. पति खिलौना नहीं है, वह उसे कैसे बांटेगी? कैसे बंट जाने देगी? पर क्या करे वह, जब पति खुद ही बंटना चाहता हो. बंटना ही नहीं पूरी तरह से निकल जाना चाहता हो. फिर भी वह प्रयास करेगी.
मौका देख कर वृंदा ने सास से बात शुरू की, ‘मां, रवि कुंदा से शादी करने की सोच रहे हैं.’
‘हां, कह तो रहा था,’ एकदम ठंडी आवाज में जवाब दिया था सास ने.
‘तो मां, आप को पता है?’ वृंदा की आवाज में आश्चर्य समाया था.
‘हां, पता है.’
‘तो क्या आप यह सब होने देंगी?’
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‘क्या करूंगी मैं? तुम देखो. तुम्हारी ही तो बहन है…उसे नहीं सोचना था तुम्हारे बारे में? चौबीस घंटे आगेपीछे नाचेगी तब तो यही होगा न?’
आगे पढ़ें- वृंदा को लगा था कि शादी की बात सुनते ही सास के ऊपर…