भागीरथ की गंगा: सालों बाद क्या पूरी हुई प्रेम कहानी

सुबह 6 बजे का अलार्म पूरी ईमानदारी से बज कर बंद हो गया. वह एक सपने या थकान पर कोई असर नहीं छोड़ पाया. ठंडी हवाएं चल रही थीं. पक्षी अपने भोजन की तलाश में निकल पड़े थे. तभी मां गंगा के कमरे में घुसते ही बोलीं, ‘‘इसे देखो, 7 बजने को हैं और अभी तक सो रही है. रात को तो बड़ीबड़ी बातें करती है कि मैं अलार्म लगा कर सोती हूं. कल जरूर जल्दी उठ जाऊंगी, मगर रोज सुबह इस की बातें यों ही धरी की धरी रह जाती हैं,’’ मां बड़बड़ाए जा रही थीं.

अचानक मां की नजर गंगा के सोए हुए चेहरे पर पड़ी तो वे सोचने लगीं कि यह भी क्या करे बेचारी, सुबह 9 बजे निकलने के बाद औफिस से आतेआते शाम के 8 बज जाते हैं. कितना काम करती है. फिर गंगा को जगाने

लगी, ‘‘गंगा ओ गंगा, उठ जा, औफिस नहीं जाना क्या तुझे?’’

‘‘हूं… सोने दो न मां,’’ गंगा ने करवट बदलते हुए कहा.

‘‘अरे गंगा बेटा, उठ न. देख 7 बज चुके हैं,’’ मां ने फिर से उठाने का प्रयास किया.

‘‘क्या 7 बज गए?’’ यह कहती हुई वह जल्दी से उठी और आश्चर्य से पूछने लगी, ‘‘उस ने तो सुबह 6 बजे का अलार्म लगाया था?’’

‘‘अब ये सब छोड़ और जा कर तैयार हो ले,’’ मां ने गंगा का बिस्तर समेटते हुए जवाब दिया.

गंगा को आज भी औफिस पहुंचने में देर हो गई थी. सब की नजरों से बच कर वह अपनी डैस्क पर जा पहुंची, मगर सुजाता ने उसे देख ही लिया. 5 मिनट बाद वह उस के सामने आ धमकी. कहानियों से भरे उस पत्र को उस की डैस्क पर पटक कर कहने लगी, ‘‘ये ले, इन 5 लैटर्स के स्कैच बनाने हैं आज तुझे लंच तक. मैम ने मुझ से कहा था कि मैं तुझे बता दूं.’’

‘‘पर यार आधे दिन में 5 स्कैच कैसे कंप्लीट कर पाऊंगी मैं?’’

‘‘यह तेरी सिरदर्दी है, इस में मैं क्या कर सकती हूं और वैसे भी मैम का हुक्म है. इस में मैं क्या कर सकती हूं,’’ कह कर सुजाता अपनी डैस्क पर चली गई.

बचपन से ही अपनी आंखों में पेंटर बनने का सपना लिए गंगा अब जा कर उसे पूरा कर पाई है. जब वह स्कूल में थी, तब कापियों के पीछे के पन्नों पर ड्राइंग किया करती थी, मगर अब एक मैगजीन में हिंदी कहानियों के चित्रांकन का काम करती है. अपनी चेयर को आगे खिसका कर वह आराम से बैठी और बुझे मन से एक पत्र उठा कर पढ़ने लगी. वह जब भी चित्रांकन करती, उस के पहले कहानी को अच्छी तरह पढ़ती थी ताकि पात्रों में जान डाल सके.

2 कहानियां पढ़ने में ही घड़ी ने 1 बजा दिया. जब उस की नजर घड़ी पर पड़ी, तो वह थोड़ी परेशान हो गई. वह सोचने लगी कि अरे, लंच होने में सिर्फ 1 घंटा ही बचा है और अभी तक सिर्फ दो ही कहानियां पूरी हुई हैं. कैसे भी

3 तो पूरी कर ही लेगी और वह फिर से अपने काम पर लग गई. लंच भी हो गया.

उस ने 3 कहानियों का चित्रांकन कर दिया था. वह खाना खाती जा रही थी और सोचती जा रही थी कि बाकी दोनों भी 4 बजे तक पूरा कर देगी साथ ही उस के मन में यह डर था कि कहीं मैम पांचों स्कैच अभी न मांग लें. खाना खा कर गंगा मैम को देखने उन के कैबिन की ओर गई, परंतु उसे मैम नहीं दिखीं.

सुजाता से पूछने पर पता चला कि मैम किसी जरूरी काम से अपने घर गई हैं. इतना सुनते ही उस की जान में जान आई. लंच समाप्त हो गया. गंगा अपनी डैस्क पर जा पहुंची. अगली कहानी छोटी होने की वजह से उस ने जल्द ही निबटा दी. अब आखिरी कहानी बची है, यह सोचते हुए उस ने 5वां पत्र उठाया और पढ़ने लगी, ‘‘भागीरथ,’’ इतना पढ़ते ही उस के मन से काम का बोझ मानो गायब हो गया. वह अपने हाथ की उंगलियों के पोर पत्र पर लिखे नाम पर घुमाने लगी. उस की आंखें, बस नाम पर ही टिकी रहीं. देखते ही देखते वह अतीत में खोने लगी…

तब उस की उम्र 15 साल रही होगी. 9वीं कक्षा में थी. घर से स्कूल जाते हुए वह

इतना खुश हो कर जाती थी जैसे आसमान में उड़़ने जा रही हो. मम्मीपापा की इकलौती बेटी थी वह, सो मुरादें पूरी होना लाजिम था. पढ़ने में होशियार होने के साथसाथ वह क्लास की प्रतिनिधि भी थी. दूसरी ओर भागीरथ था, नाम के एकदम विपरीत, कभी न शांत रहने वाला लड़का. क्लास में शोर होने का कारण और मुख्य जड़ वह ही था. पढ़ाई तो वह नाममात्र का ही करता था. क्या यह वही भागीरथ है. दिल की धड़कन जोरों से धड़कने लगी. तुरंत उस ने पत्र को पलटा और ध्यान से हैंडराइटिंग को देखने लगी. बस, चंद सैकंड में ही उस ने पता लगा लिया कि यह उस की ही हैंडराइटिंग है. वह फिर से अतीत में लौट गई…

सालभर पहले तो गुस्सा आता था उसे, पर न जाने क्यों धीरेधीरे वह गुस्सा कम होने लगा था उस के प्रति. जब भी वह इंटरवल में खाना खा कर उस की कापी ले भागता था. कभी मन करता था कि 2 घूंसे मुंह पर टिका दे, मगर हर बार वह मन मार कर रह जाती थी.

रोज की तरह एक दिन इंटरवल में वह चित्र बना रही थी, तभी क्लास के बाहर से भागता हुआ भागीरथ उस के पास आया. वह समझ गई कि कोई न कोई शरारत कर के भाग आया है तभी उस के पीछे पारस, जो उस की ही क्लास में पढ़ता था, वह भी वहां आ पहुंचा. उस ने लकड़ी वाला डस्टर उठा कर भागीरथ की ओर फेंकना चाहा. उस ने वह डस्टर भागीरथ को निशाना बना कर फेंका. उस ने आव देखा न ताव, भागीरथ को बचाने के लिए अपनी कापी सीधे डस्टर की दिशा में फेंकी, जो डस्टर से जा टकराई. भागीरथ को बचा कर वह पारस को पीटने गई, पर वह भाग गया.

‘‘अरे, आज तूने मुझे बचाया, मुझे….’’ भागीरथ आश्चर्य से बोला.

‘‘हां, तो क्या हो गया?’’ उस ने जवाब दिया.

अचानक भागीरथ मुड़ा और अपने बैग से एक नया विज्ञान का बड़ा रजिस्टर ला कर उसे देते हुए बोला, ‘‘यह ले, आज से तू चित्र इस में बनाना, वैसे भी, मुझे बचाते हुए तेरी कापी बेचारी घायल हो गई है,’’ उस ने रजिस्टर लेने से मना कर दिया.

‘‘अरे ले ले, पहले भी तो मैं तुझे कई बार परेशान कर चुका हूं, पर अब से नहीं करूंगा.’’

जब उस ने ज्यादा जोर दिया तो गंगा ने रजिस्टर ले लिया, जो आज भी उस के पास रखा है.

ऐसे ही एक दिन जब उसे स्कूल में

बुखार आ गया था, तो भागीरथ तुरंत टीचर के पास गया और उसे घर ले जाने की अनुमति मांग लाया.

टीचर के हामी भरते ही वह उस का बैग उठा कर घर तक छोड़ने गया. वहीं

शाम को वह उस का हाल जानने उस के घर फिर चला आया. उस की इतनी परवाह करता है वह, यह देख कर उस का उस से लगाव बढ़ गया, साथ ही वह यह भी समझ गई कि कहीं न कहीं वह भी उसे पसंद करता था. पर पिछले 10 सालों में वह एक बार भी उस से नहीं मिला. दिल्ली जैसे बड़े शहर में न जाने कहां खो गया.

इस की एक कापी कर के मेरे कैबिन में भिजवाओ जल्दी सुजाता, अचला मैम की आवाज कानों में पड़ने से उस की तंद्रा टूटी.

मैम आ गईर् थीं. अपने कैबिन में जातेजाते मैम ने उसे देखा और पूछ बैठीं, ‘‘हां, वे पांचों कहानियों के स्कैचेज तैयार कर लिए तुम ने?’’

‘‘बस 1 बाकी है, मैम,’’ उस ने चेयर से उठते हुए जवाब दिया.

‘‘गुड, वह भी जल्दी से तैयार कर के मेरे पास भिजवा देना, ओके.’’

‘‘ओके मैम,’’ कह कर गंगा चेयर पर बैठी और फटाफट भागीरथ की लिखी कहानी पढ़ने लगी. 10 मिनट पढ़ने के बाद जल्दी से उस ने स्कैच बनाया और मैम को दे आई. औफिस का टाइम भी लगभग पूरा हो चला था. शाम 6 बजे औफिस से निकल कर गंगा बस का इंतजार करने लगी. कुछ ही देर में बस भी आ गई. वह बस में चढ़ी, इधरउधर नजर घुमाई तो देखा कि बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी, गिनेचुने लोग ही थे. कंडक्टर से टिकट ले कर वह खिड़की वाली सीट पर जा बैठी और बाहर की ओर दुकानों को निहारने लगी. अचानक बस अगले स्टौप पर रुकी, फिर चल पड़ी.

बस के इंजन के नीचे दबी कंडक्टर की आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘करोल बाग एक,’’ पीछे से किसी ने जवाब दिया.

‘‘लगभग 1 घंटा तो लगेगा,’’ सोच कर वह पर्स से मोबाइल और इयरफोन निकालने लगी कि अचानक कोई आ कर उस की बगल में बैठ गया. उसे देखने के लिए उस ने अपनी गरदन घुमाई, तो बस देखती ही रह गई.

वह खुशी से चिल्लाती हुई बोली, ‘‘भागीरथ तुम?’’

भागीरथ ने घबरा कर उस की ओर देखा, ‘‘अरे गंगा, इतने सालों बाद… कैसी हो?’’ और वह सवाल पर सवाल करने लगा.

‘‘मैं अच्छी हूं, तुम कैसे हो?’’ गंगा ने जवाब दे कर प्रश्न किया. उसे इतनी खुशी हो रही थी कि वह सोचने लगी कि अब यह बस

2 घंटे भी ले ले, तो भी कोई बात नहीं.

‘‘मैं ठीक हूं और बताओ? क्या करती हो आजकल?’’

‘‘वही जो स्कूल के इंटरवल में करती थी.’’

‘‘अच्छा, वह चित्रों की दुनिया?’’

‘‘हां, चित्रों की दुनिया ही मेरा सपना और मैं ने अपना वही सपना अब पूरा कर लिया है.’’

‘‘सपना, कौन सा? अच्छी स्कैचिंग

करने का.’’

‘‘हां, स्कैचिंग करतेकरते मैं 1 दिन अलंकार मैगजीन में इंटरव्यू दे आई थी. बस उन्होंने रख लिया मुझे.’’

‘‘बधाई हो, कोई तो सफल हुआ.’’

‘‘और तुम क्या करते हो? जौब लगी

या नहीं?’’

‘‘जौब तो नहीं लगी हां, एक प्राइवेट कंपनी में जाता हूं.’’

तभी भागीरथ को कुछ याद आया,

‘‘1 मिनट, क्या बताया तुम ने? अभी, कौन सी मैगजीन?’’

‘‘अलंकार मैगजीन,’’ गंगा ने बताया.

‘‘अरे, उस में तो…’’

गंगा उस की बात बीच में ही काटती हुई बोली, ‘‘कहानी भेजी थी और संयोग से वह कहानी मैं आज ही पढ़ कर आई हूं. स्कैच बनाने के साथसाथ.’’

‘‘पर तुम्हें कैसे पता चला कि वह

कहानी मैं ने ही भेजी थी? नाम तो कइयों के मिलते हैं.’’

‘‘सिंपल, तुम्हारी हैंडराइटिंग से.’’

‘‘तो क्या तुम्हें मेरी हैंडराइटिंग भी याद है अब तक?’’

‘‘हां भागीरथ.’’

‘‘ओह, फिर तो अब तुम पूरा दिन चित्र बनाती होगी और कोई डिस्टर्ब भी न करता होगा मेरी तरह, है न?’’

‘‘हां वह तो है.’’

‘‘देख ले सब जानता हूं न मैं?’’

‘‘लेकिन तुम एक बात नहीं जानते भागीरथ.’’

‘‘कौन सी बात?’’

बारबार मुझे स्कूल की बातें याद आ रही थी. मैं ने सोचा कि बता देती हूं क्या पता फिर कुदरत ऐसा मौका दे या न दे, यह सोच कर गंगा बोल पड़ी, ‘‘भागीरथ मैं तुम्हें पसंद

करती हूं.’’

‘‘क्या…’’ भागीरथ ऐसे चौंका जैसे उसे कुछ पता ही न हो.

‘‘तब से जब हम स्कूल में पढ़ते थे और मैं यह भी जानती हूं कि तुम भी मुझे पसंद करते हो, करते हो न?’’

भागीरथ ने शरमाते हुए हां में अपनी गरदन हिलाई. तभी बस एक स्टौप पर रुकी. खामोश हो कर वे एकदूसरे को देखने लगे.

‘‘तेरी शादी नहीं हुई अभी तक?’’ भागीरथ ने प्रश्न किया.

‘‘नहीं और तुम्हारी?’’

‘‘नहीं.’’

न जाने क्यों मेरा मन भर आया और मैं ने बोलना बंद कर दिया.

‘‘क्या हुआ गंगा तुम चुप क्यों हो गईं?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ गंगा ने कहा.

‘‘बस चलती जा रही थी, लेकिन दोनों चुप बैठे थे. एकदूसरे के लिए,

स्कूल के समय की दोस्ती, जो एक परवाह थी एकदूसरे के लिए एक लंबा समय तय करती गई दोनों की जिंदगी में.’’

‘‘भागीरथ आज तुम इतने सालों बाद मिले हो… कितना इंतजार किया,’’ गंगा ने कहा.

इतना सुनते ही भागीरथ का गला भर आया, ‘‘हां,’’ इतना ही बोला और फिर दोनों एक ही झटके में चुप हो गए.

क्या कहें एकदूसरे से. कुछ देर खामोशी छाई रही. भागीरथ ने गंगा का हाथ पकड़ कर कस कर दबाया. कहा, ‘‘पता है प्यार का रंग कहीं न कहीं मौजूद रहता है हमेशा.’’

‘‘मतलब,’’ गंगा ने पूछा.

‘‘मतलब यह कि हम साथ नहीं थे, फिर भी तुम्हारे चित्र और मेरे शब्द एकदूसरे से मिल ही गए,’’ भागीरथ ने प्यार से कहा.

‘‘मुझे पता नहीं था कि भागीरथ तुम इतने समझदार भी हो सकते हो.’’

तभी कंडक्टर की आवाज सुनाई दी, ‘‘पंजाबी बाग.’’

‘‘ओके भागीरथ, मेरा स्टौप आ गया है. अब मैं चलती हूं.’’

‘‘नहीं, बहुत जल्दी भागीरथ अपनी गंगा को लेने आएगा क्योंकि भागीरथ की गंगा के बिना कोई पहचान नहीं होती.’’

वह बस से उतरने लगी. हाथ भागीरथ के हाथ में था. भागीरथ ने धीरे से हाथ छोड़ दिया. वह बस से उतरी और जब तक आखों से ओझल न हो गए, तब तक दोनों एकदूसरे को देखते रहे क्योंकि भागीरथ की तपस्या पूरी हो गई. उसे उस की गंगा मिल गई थी.

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