आईटी छोड़ कर ब्यूटी इंडस्ट्री में आने के लिए लोग मुझे टोकते थे- अर्पिता दास

अर्पिता दास, फाउंडर, बिजनैस बाई अर्पिता

अर्पिता दास ब्यूटी प्रोफैशनल हैं. उन्होंने भारत में अपनी ब्यूटी ऐंड वैलनैस कंसल्ंिटग कंपनी की शुरुआत की जिस का नाम ‘बिजनैस बाई अर्पिता’ रखा.

ब्यूटी ऐंड वैलनैस को बाहर और अंदर से अच्छी तरह जानने के बाद अर्पिता ने महसूस किया कि ब्यूटी प्रोफैशनल्स को बहुत कुछ सीखने और जानने की जरूरत है और इस के लिए एक सही मार्गदर्शक की जरूरत है. इसी मकसद से उन्होंने 3000 से अधिक औपरेटरों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षित किया है. उन्होंने लैक्मे, काया स्किनकेयर और वीएलसीसी जैसे ब्रैंड्स के लिए कौरपोरेट ट्रेनिंग भी दी है.

उन्होंने इंडियन सैलून ऐंड वैलनैस कांग्रेस द्वारा व्यक्तिगत श्रेणी में ‘ऐक्सीलैंस इन ऐस्थैटिक्स कस्टमर सर्विस’ पुरस्कार भी जीता है. हाल ही में ‘बिजनैस बाई अर्पिता’ को ब्यूटी, वैलनैस ऐंड पर्सनल केयर में ‘ऐसोचैम स्टार्टअप औफ द ईयर 2018’ के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. पेश हैं, अर्पिता से हुए कुछ सवालजवाब:

इस मुकाम तक पहुंचने के क्रम में किस तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा?

किसी भी मुकाम तक पहुंचने के लिए संघर्ष का सामना तो क रना ही पड़ता है. मुझे भी करना पड़ा. मेरे लिए जरूरी था कि मैं ब्यूटी इंडस्ट्री की सारी जानकारी लूं. मैं कई पार्लर्स में गई. वहां काम करने के आधुनिक तरीके देखे. देखा कि क्याक्या प्रोडक्ट्स यूज होते हैं. जब मैं इस इंडस्ट्री में आई तो मुझे पता चला कि ब्यूटी इंडस्ट्री हरकोई नहीं चुनता, क्योंकि सब को लगता है कि यह काम बहुत छोटा है. वैसे भी मेरी बैकग्राउंड आईटी की रही है. लोग टोकते थे कि मैं आईटी छोड़ कर ब्यूटी इंडस्ट्री में क्यों आ गई. लोगों को यह समझा पाना बहुत कठिन था कि मैं इस इंडस्ट्री को बहुत पसंद करती हूं.

भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या कहेंगी?

इस मुद्दे पर काफी कुछ कहा जा सकता है. मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि पहले और आज की महिलाओं में बहुत अंतर है. पिछले 10-15 साल में काफी बदलाव आए हैं. कई संस्थाएं हैं, जिन्होंने महिलाओं की स्थिति को बदलने के लिए हाथ आगे बढ़ाए हैं. आज हर फील्ड में महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं. मैं ने महिलाओं को मैट्रो, ट्रक, के्रन चलाते और अपने घर व बच्चों का ध्यान रखते हुए भी देखा है. स्थिति पहले से काफी बेहतर है.

एक महिला के तौर पर आगे बढ़ने के क्रम में क्या कभी असुरक्षा का एहसास हुआ?

हां, महिला होने के नाते कई मौकों पर असुरक्षित महसूस होता है. हमें कहीं जाने के लिए समय देखना पड़ता है. मैं जिस इंडस्ट्री में हूं वहां भी पुरुष मौजूद हैं पर हमें असुरक्षित महसूस नहीं होता. लोगों को लगता है कि महिलाओं में इतनी क्षमता नहीं है कि वे ज्यादा काम कर पाएं और चीजों को बखूबी निभा पाएं.

घर और काम एकसाथ कैसे संभालती हैं?

दोनों चीजों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है खासकर एक महिला के तौर पर आप को थोड़ा ज्यादा जिम्मेदार होना पड़ता है. आप को घर के साथसाथ अपने काम को भी संभालना होता है. कई जगह सिर्फ महिलाओं को ही काम करना पड़ता है. यदि आप मां हैं तो आप को अपने बच्चे की ओर ज्यादा ध्यान देना होता है और यदि आप की फैमिली, आप के दोस्त सपोर्टिव हैं तो कोई भी काम आप के लिए मुश्किल भरा नहीं रह जाता. मेरे मांबाप बहुत सपोर्टिव हैं. उन्होंने मुझे किसी भी चीज के लिए नहीं रोका.

क्या आज भी महिलाओं के साथ अत्याचार और भेदभाव होते हैं?

हां, अभी भी महिलाएं खुल कर नहीं जी पाती हैं. कई घटनाएं आए दिन हम सब के सामने आती रहती हैं. इतने कानूनों के बाद भी क्राइम रुक नहीं रहे हैं. मेरे सैंटर में भी जब कोई महिला अपनी कहानी बताती है तो जितना हो सकता है मैं उस की हैल्प करती हूं.

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