कैंसर और न्युरोलोजिकल डिसऑर्डर मसलनअल्जाइमर,पार्किन्सनजैसी बिमारियों के इलाज में सकारात्मक परिणाम के उद्देश्य से भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी-एम) और मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी (एमआईटी) अमेरिका के वैज्ञानिकों ने 3D प्रिंटेड बायोरिएक्टर की सहायता से मानव मस्तिष्क के टिश्यु को विकसित किया है, जिसे ‘ऑर्ग़ेनॉइड’ कहा जाता है. ये रिसर्च हेल्थकेयर और फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री के लिए वरदान होगी,जहाँ सेल कल्चर के द्वारा किसी बीमारी को पहचान कर सही दवा देने में आसानी होगी.
इस डिवाइस का उद्देश्य मस्तिष्क के टिश्यु के विकास को ओब्जर्ब करना और एक ऐसी तकनीक का विकास करना, जो कैंसर अल्जाइमर और पार्किन्सन की जैसी न्युरोलोजिकल बीमारी की चिकित्सा और चिकित्सीय खोजो को जल्दी करने में समर्थ हो सकें. इस बारें में डिपार्टमेंट ऑफ़ इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग (आईआईटी-मद्रास ) के प्रोफेसर अनिल प्रभाकर कहते है कि यह एक 3डी प्रिंटेड माइक्रो-इनक्यूबेटर और इमेजिंग चैंबर को एक हथेली के आकार के प्लेटफॉर्म में बनाया गया है,जिसे लंबे समय तक मानव मस्तिष्क कोशिकाओं की कल्चर और रीयल-टाइम इमेजिंग के लिए सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया गया. इस 3D प्रिंट के द्वारा काफी दूर तक इंजिनियरिंग किया जा सकता है, क्योंकि एक डिवाइस में अलग-अलग चैनल बनाकर किसी में कम तो किसी में अधिकन्यूट्रीएंट्स, तापमान के आधार पर डालते है. इन न्यूट्रीएंट्स का सही बैलेंस ‘ऑर्ग़ेनॉइड’ ग्रोथ के लिए बहुत जरुरी होता है. इसमें फायदा यह होता है कि 30 ऐसे ऑर्ग़ेनॉइड’ ग्रो करने पर अधिक काम करने वाली न्यूट्रीएंट्स की कंडीशन के बारें में पता चलता है औरउसके अनुसार किसी में अधिक ड्रग और किसी में कम ड्रग डालने पर कोशिकाओं की स्ट्रेंथ के बारें में पता चल जाता है. इससे बीमारी जल्दी पकड़ में आने के अलावा इलाज करने में आसानी होती है. ऐसी कोशिकाओं को ग्रो करने में 3 सप्ताह लग जाते है. करीब एक सेंटीमीटर होने तक कंट्रोल करना पड़ता है, जिसे डिवाइस में डाला गया है.
ये भी पढ़ें- म्युकोर मायकोसिस का समय रहते करवाएं इलाज
इसके आगे प्रोफेसर अनिल कहते है कि कैंसर में अलग कोशिकाए होती है. अगर ब्रैस्ट कैंसर के बारें में पता करना है तो मेमेलिया सेल को डिवाइस में डालना पड़ेगा और उसी तरीके से किसी कोशिका में कमड्रग, किसी में अधिक तो किसी में ड्रग नहीं डालने पर सेल्स की कंडीशन का पता चलता है. इस काम में मेरे साथ कैंसर सेल की स्टडी करने वाले बायोटेक्नोलोजिस्ट डॉ. शांतनु और कई रिसर्चर है. ये डिवाइस माइक्रो लेवल पर काम करेगी और इससे जांच करना, आज की तुलना में खर्चा भी कम होगा. इसमें मेडिकल कॉलेज की भी सहायता लेकर काम किया जायेगा.
वातावरण का प्रभाव सेल्स पर अधिक होने की वजह से उसका भी ध्यान रखा गया है. अभी मैंने 6 वेल्स बनाये है, आगे 32 वेल्स बनांएगे, 32 के अच्छा काम करने पर 64 वेल्स बनायेंगे, क्योंकि जितने अधिक कोशिकाओं में न्यूट्रीएंट्स डाले जायेगे, उतने अधिक बीमारी को पकड़ने और इलाज में सहायता मिलेगी. इस तकनीक का पेटेंट भारत में कराया गया है.
इसप्रकार यह जीवविज्ञानी या प्रयोगशाला टेक्निशियनों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-असिस्टेड ऑटोमेटेड सेल कल्चर प्रोटोकॉल द्वारा संचालित यूजर-फ्रेंडली सिस्टम के साथ ऑर्गेनॉइड के विकास को संचालित, नियंत्रित और मॉनिटर करने में सक्षम करेगा.