दुनिया भर में मृत्यु के प्रमुख कारणों में कैंसर से मृत्यु का आंकड़ा सबसे अधिक माना जाता है. ट्रेडिशनली इस रोग से बड़ी उम्र के लोग अधिक प्रभावित होते है, लेकिन, हाल में ही किये गए अध्ययनों से पता चला है कि कैंसर युवाओं में भी तेजी से फ़ैल रहा है, जिससे चिकित्सा के पेशेवरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों में चिंता बढ़ रही है. यूवाओं में खासकर 15 से 19 साल के यूथ में सबसे कॉमन कैंसर ब्रेन ट्यूमर, थाइरोइड कैंसर, मेलिग्नेट बोन ट्यूमर आदि का होना है.
इस बारें में न्यूबर्ग सुप्राटेक रेफरेंस लेबोरेटरी के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर भावना मेहता कहती है कि युवाओं में कैंसर वृद्धि होने की वजह बदलती जीवन शैली, अस्वास्थ्यकर आहार, शारीरिक गतिविधियों में कमी, पर्याप्त नींद न होना, पर्यावरण में विषाक्त पदार्थों से प्रदूषण, कीटनाशक, तंबाकू चबाने की आदत, धूम्रपान, शराब आदि है. इनमे सबसे अधिक योगदान शारीरिक गतिविधियों की कमी और अस्वास्थ्यकर आहार का होना है. ये समस्या हर दशक के बाद कम उम्र के लोगों में वृध्ही देखी जा रही है, जो चिंता का विषय है. दरअसल कैंसर का पता बहुत देर से चलना भी एक बड़ी समस्या है, जिससे इलाज में देर हो जाती है, हालंकि यह देखा गया है कि कम उम्र के युवाओं में जल्दी कैंसर का पता लगने पर इलाज संभव होता है, लेकिन यूथ को पहले विश्वास करना मुश्किल होता है कि उन्हें कैंसर है. तक़रीबन 70 हज़ार टीनएजर्स हर साल कैंसर डाग्नोस किये जाते है, जिनमे से 80 प्रतिशत यूथ सालों तक इलाज के बाद सरवाईव कर पाते है और ये एक अच्छी बात है. देर से जानकारी होने की मुख्य वजह निम्न है,
– कैंसर के बारे में जागरूकता की कमी,
-यूथ होने की वजह से नियमित जांच का न होना,
-कैंसर का पता चलने पर किसी से इस बात का न कह पाने की हिचकिचाहट
-आर्थिक समस्याएँ आदि है.
बेहतर स्क्रीनिंग और डायग्नोस्टिक टूल के कारण ऐसे कैंसर जिनके बारे में पहले पता ही नहीं चल पाता था, अब उनका शुरुआती चरणों में निदान किया जा रहा है, लेकिन इन सब के बावजूद, युवा आबादी के लिए कैंसर का ख़तरा बड़े पैमाने पर बना हुआ है. जिन युवाओं के कैंसर का निदान हुआ है उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे, शिक्षा और करियर में बाधा पड़ना, सामाजिक और भावनात्मक कठिनाइयों का होना और परिवार के लिए आर्थिक तनाव में वृद्धि. इसके अलावा कैंसर के कई उपचारों का प्रजनन क्षमता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए कैंसर से पीड़ित युवाओं को प्रजनन संबंधी अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इन निम्न समस्याओं के होने पर डॉक्टर की सलाह तुरंत लें,
– अचानक वजन का घटना,
– थकान का अनुभव करना,
– बार-बार बुखार आना,
– लगतार दर्द का अनुभव करना,
– त्वचा में परिवर्तन दिखाई पड़ना, मसलन तिल में बदलाव का दिखना, पीलिया का संकेत दिखाई देना आदि है.
इसके आगे डॉ. भावना कहती है कि कैंसर किसी भी अन्य बीमारी की तरह है और किसी को भी हो सकती है, लोगों को परिवार और समाज में भी इसके बारे में खुलकर चर्चा करनी चाहिए. कैंसर जैसी बीमारी के बारे में बात करने से होने वाली झिझक समाप्त होना बेहद जरूरी है. यह बात हर किसी को पता होनी चाहिए कि कैंसर का डाग्नोस जितना शुरुआती चरण में होता है, उपचार की प्रक्रिया और उसका असर बेहतर होता है. और कुछ कैंसर पूरी तरह निदान योग्य हैं.
युवा आबादी देश का भविष्य है और उन्हें बचाना सभी की जिम्मेदारी है. सही जीवन शैली अर्थात जल्दी उठना और जल्दी सोना, स्वस्थ और संतुलित आहार लेना, किसी भी रूप में दैनिक शारीरिक गतिविधियों जैसे टहलना, स्ट्रेचिंग व्यायाम, योग और सबसे बड़ी बात, ऐसा वातावरण बनाना जहां कोई भी बिना किसी हिचकिचाहट के कैंसर के बारे में बात कर सके और प्रारंभिक निदान और उपचार के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों और शोधकर्ताओं द्वारा किए गए प्रयास का लाभ उठा सके.