कैंसर से जुड़ी गलत धारणा और फैक्ट के बारे में बताएं?

सवाल-

मुझे ब्रैस्ट कैंसर है. डाक्टर ने सर्जरी के द्वारा ब्रैस्ट का एक भाग निकालने को कहा है, लेकिन मुझे किसी ने सलाह दी है कि पूरी ब्रैस्ट निकालनी जरूरी है वरना यह दोबारा हो सकता है?

जवाब-

सर्जरी के द्वारा ब्रैस्ट के उसी भाग को निकाला जाता है जिस में कैंसर होता है. डाक्टर हमेशा ब्रैस्ट को सुरक्षित रखना चाहते हैं क्योंकि यह मरीज के आत्मविश्वास और सामान्य जीवन जीने के लिए बहुत जरूरी है. स्वस्थ ब्रैस्ट को बचाने से दोबारा कैंसर होने का रिस्क नहीं बढ़ता है. आप अपने डाक्टर पर विश्वास बनाए रखें और उस के निर्देशों का पालन करें.

सवाल-

मेरी शादी को 2 साल हुए हैं. कोई बच्चा नहीं है. ब्रेस्ट कैंसर के लिए सर्जरी कराने के बाद अब कीमोथेरैपी हो रही है. क्या मैं अपने अंडे प्रिजर्व करा सकती हूं?

जवाब-

ब्रैस्ट कैंसर के उपचार के परिणाम बहुत अच्छे हैं. उपचार के पश्चात अधिकतर मरीज सामान्य जीवन जी सकते हैं. कीमोथेरैपी डिवाइडिंग सैल्स पर काम करती है, इसलिए यह अंडों की कोशिकाओं को भी मार सकती है. इसलिए जो महिलाएं फैमिली प्लान करना चाहती हैं उन्हें अपने अंडे प्रिजर्व करा लेने चाहिए.

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सवाल-

मेरी उम्र 54 वर्ष है. 5 साल पहले मेनोपौज हो गया है. लेकिन कभीकभी वैजाइना से ब्लीडिंग होती है. कोई खतरे की बात तो नहीं?

जवाब-

मेनोपौज के बाद वैजाइना से ब्लीडिंग होना बिलकुल भी सामान्य नहीं है. ब्लीडिंग चाहे मेनोपौज के बाद हो, 2 माहवारी के बीच या शारीरिक संबंध बनाने के बाद, महिलाओं को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. यह सर्वाइकल कैंसर का संकेत हो सकता है. आप तुरंत किसी अच्छे डाक्टर को दिखाएं, जरूरी जांच कराएं और डायग्नोसिस के अनुसार उपचार शुरू करें.

सवाल-

मेरे पति स्मोकिंग करते हैं. उन के फेफड़ों की स्थिति को देखते हुए डाक्टर ने उन्हें स्मोकिंग पूरी तरह बंद करने का सुझाव दिया है. क्या इस कारण मेरे लिए भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ गया है?

जवाब-

विश्वभर में स्मोकिंग को फेफड़ों के कैंसर का सब से बड़ा रिस्क फैक्टर माना जाता है. आप स्मोकिंग नहीं करतीं. लेकिन अपने पति के कारण आप पैसिव स्मोकर तो हैं ही. ऐसे में आप के लिए फेफड़ों के कैंसर का खतरा सामान्य लोगों से अधिक है. आप अपने पति को धूम्रपान पूरी तरह बंद करने के लिए समझाएं.

सवाल-

मेरे स्तन में गांठ है. डाक्टर ने बायोप्सी और एफएनएसी कराने को कहा है. लेकिन मुझे डर लग रहा है कि कहीं नीडिल के कारण कैंसर दूसरे अंगों तक तो नहीं फैल जाएगा?

जवाब-

बायोप्सी और फाइन नीडल एसपाइरेशन साइटोलौजी (एफएनएसी) दोनों ही बड़ी सुरक्षित प्रक्रियाएं हैं. इन्हीं जांचों के द्वारा कैंसर और उस के प्रकार के बारे में पता चलता है. बायोप्सी या एफएनएसी कैंसर के फैलने का कारण बन सकते हैं. यह पूरी तरह गलत धारणा है. आप अपने डाक्टर के कहे अनुसार दोनों जांचें जरूर कराएं.

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सवाल-

मेरी मां को लिवर कैंसर और पिता को प्रोस्टेट कैंसर है. मैं अपने स्वास्थ्य को ले कर बहुत चिंतित हूं. क्या मातापिता दोनों को कैंसर होने से मैं हाई रिस्क कैटेगरी में आती हूं?

जवाब-

यह सही है कि आनुवंशिक कारण कैंसर के लिए प्रमुख रिस्क फैक्टर्स में से एक है. लेकिन परिवार में जब 3 पीढि़यों तक कैंसर के मामले लगातार होते हैं तब उसे आनुवंशिक माना जाता है. आप के मातापिता दोनों को कैंसर है इस से आप को घबराने की जरूरत नहीं है. उन में आपस में कोई रक्त संबंध नहीं है क्योंकि वे अलगअलग परिवारों से आते हैं. इसलिए ये आनुवंशिकता से संबंधित नहीं माना जा सकता है.

सवाल-

डाक्टर मुझे कीमोथेरैपी के बाद स्टेराइड भी दे रहे हैं. मैं ने बहुत पढ़ा है कि स्टेराइड का सेवन नहीं करना चाहिए. यह सेहत के लिए काफी नुकसानदायक होता है?

जवाब-

अगर आप के डाक्टर आप को कीमोथेरैपी के साथ स्टेराइड दे रहे हैं तो आप को जरूर लेना चाहिए. यह कीमोथेरैपी के साइड इफैक्ट्स से बचने के लिए दिया जाता है. कई बार तो स्टेराइड कीमोथेरैपी का ही हिस्सा होता है. ऐसे में इसे लेने से कोई दिक्कत नहीं होती. इसलिए डाक्टर द्वारा सुझाई सभी दवाइयां नियत समय पर और निर्धारित मात्रा में जरूर लें.

सवाल-

मुझे 2-3 महीनों से लगातार खांसी आ रही है. 1-2 बार बलगम में खून भी आया है. क्या यह फेफड़ों के कैंसर का संकेत हो सकता है? लेकिन मैं ने तो जीवन में कभी सिगरेट नहीं पी है?

जवाब-

यह सही है कि फेफड़ों के कैंसर को पहले स्मोकर्स डिजीज के नाम से जाना जाता था. लेकिन आज हालात बदल गए हैं. बढ़ते वायुप्रदूषण, खानपान की गलत आदतें, शारीरिक सक्रियता की कमी के कारण धूम्रपान न करने वाले भी फेफड़ों के कैंसर के शिकार हो रहे हैं. आप डाक्टर को दिखाएं. छाती का एक्सरे या सीटी स्कैन कराने पर ही स्थिति स्पष्ट होगी. फेफड़ों के कैंसर का संदेह होने पर बायोप्सी कराई जाएगी.

-डा. गौतम गोयल

कंसल्टैंट, कैंसर विशेषज्ञ, मैक्स हौस्पिटल, मोहाली, पंजाब.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कैंसर का दर्द: कैंसर का सबसे बड़ा डर

कैंसर की डायग्नोसिस के बाद से प्रभावित लोगों का जीवन बुरी तरह बदल जाता है. लोगों में इसके डर का बड़ा कारण अत्यंत दर्द होना और डायग्नोसिस से जुड़ी घबराहट है. इसका असर लगभग 28 फीसदी डायग्नोज लोगों पर, 50 से 70 फीसदी इलाज करा रहे लोगों पर और एडवांस्ड कैंसर से पीड़ित 64 से 80 फीसदी लोगों पर होता है. अक्सर दर्द के भय के कारण ही लोग चिकित्सा कराने पर मजबूर होते हैं और रोग का पता लगाने के लिए तैयार होते हैं. कैंसर का दर्द अक्सर आम होता है और यही वजह है कि लोग इलाज कराने को तैयार होते हैं, लिहाजा कोई कारण नहीं बनता है कि दर्द से राहत पाने को इलाज की प्राथमिकता में शामिल नहीं किया जाए. डॉ. आमोद मनोचा, मैक्स हॉस्पिटल, साकेत में पेन मैनेजमेंट सर्विसेज के प्रमुख , के मुताबिक

कैंसर के इलाज में प्रगति होने के कारण मरीज के बचने की दर में सुधार के साथ ही कैंसर मरीजों में गंभीर दर्द के मामले भी बढ़ रहे हैं. एक शोध के मुताबिक, कैंसर के लगभग 33 फीसदी मरीज लंबे समय तक दर्द से जूझते रहते हैं और शोध बताते हैं कि दर्द पर नियंत्रण के साथ प्रतिकूल जीवन गुणवत्ता सुधारने तक इलाज का लक्ष्य सिर्फ मरीज को जैसे—तैसे बचाना नहीं होता है. अनियंत्रित दर्द का प्रभाव मरीज को लंबे समय तक पीड़ित और विकलांगता का शिकार बना देता है जिस कारण वह शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्याओं से जूझता रहता है. नियंत्रण का अभाव, ताकत और गतिशीलता की कमी, घबराहट, डर और अवसाद इस अनियंत्रित दर्द के साथ आम तौर पर जुड़े होते हैं. मरीज की बढ़ती परेशानियों के कारण तीमारदारों के साथ उनके रिश्तों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

कैंसर के दर्द पर काबू पाना

कैंसर के दर्द पर काबू पाना वाकई एक चुनौती है क्योंकि कैंसर के अलावा अन्य अंगों और नसों पर अधिक दबाव, कब्ज, पेट या शरीर के अन्य हिस्सों में सूजन समेत कई कारण दर्द को बढ़ा देते हैं. सर्जरी, कीमोथेरापी या रेडियोथेरापी जैसे इलाज का दुष्प्रभाव भी उतना ही कष्टदायी होता है या फिर रीढ़ में अर्थराइटिस जैसी अन्य समस्या दर्द को बढ़ा देती है. इससे भी बड़ी चुनौती होती है जब कुछ प्रकार के कैंसर बड़े आक्रामक तरीके से बढ़ते हुए कई तरह के दर्द का कारण बन जाते हैं और इसके लिए नियमित जांच और थेरापी में सुधार की जरूरत पड़ती है.

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अच्छी खबर यह है कि कैंसर मरीजों के बड़े हिस्से को प्राथमिक उपचार पद्धति के साथ योजनाबद्ध इलाज से दर्द से संतोषजनक राहत मिल सकती है. इसमें मेडिकेशन, नर्व ब्लॉक, फिजियोथेरापी और मनोवैज्ञानिक तकनीकों समेत दर्द से निजात दिलाने की आधुनिक पद्धतियों के साथ ट्यूमर का इलाज भी शामिल है. शोध बताते हैं कि शुरुआती इलाज से बेहतर परिणाम मिलते हैं, इसलिए सलाह दी जाती है कि शुरुआती चरण में ही डॉक्टरी मदद लें. कम से कम साइड इफेक्ट के साथ अधिकतम राहत देने का लक्ष्य रखते हुए विशेष दर्द प्रबंधन इनपुट अधिक प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि इस बीमारी की जटिलता या दर्द की गंभीरता समय के साथ बढ़ती ही जाती है.

एक तरह की थेरेपी सभी मरीजों के लिए कारगर नहीं होती

कैंसर के दर्द पर नियंत्रण सिर्फ दवाइयों या इंजेक्शन से नहीं हो सकता है. संतोषजनक नियंत्रण के लिए विस्तृत जांच से दर्द का सटीक कारण जानना जरूरी होता है और मरीज को शिक्षित करने से उसे अपेक्षित परिणाम मिल सकता है. बीमारी के कारण अनुपयोगी मान्यताओं, मिजाज, घबराहट, असुरक्षा की भावना जैसे कारकों पर काबू पाना और इलाज, आध्यात्मिक एवं सामाजिक आवश्यकताएं पूरी करना जरूरी है क्योंकि बीमारी के साथ उनका दर्द बढ़ता जाएगा. मेडिटेशन जैसे सुकूनदायी थेरापी, नियोजित इलाज से मरीजों की सोच बदल सकती है, उनको राहत दिला सकती है. हर मर्ज की एक ही दवा नहीं होती है और किसी भी मरीज पर फार्मास्यूटिकल, इंटरवेंशनल, रिहैबिलिटेशन उपचार और अच्छा बर्ताव का इलाज पर खासा असर पड़ता है.

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आपको एक उदाहरण देता हूं. हाल ही में मैंने सीने के दर्द से पीड़ित एक बुजुर्ग मरीज का इलाज किया. उन्हें रीढ़ में बड़ा ट्यूमर होने के कारण नसों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा था. उन्हें दर्द से तत्काल राहत देना जरूरी था और 80 डिग्री से कम तापमान पर प्रभावित नसों को फ्रीज करने जैसी क्रायोएब्लेशन पद्धति का इलाज दिया गया. कुछ ही घंटे में उनका दर्द कम होने लगा. आधुनिक टेक्नोलॉजी का यह एक बेहतरीन उदाहरण है. उनकी हर तरह से देखभाल की गई और उनके परिवारवालों ने भी महसूस किया कि वह अपने जीवन के आखिरी दिनों में अपने परिजनों के साथ बेहतर जिंदगी गुजारने लगे.

आखिर क्यों होती है कीमोथेरेपी से मौत, जानें क्या-क्या हैं Side Effects

50 वर्षीय गरिमा को जब अचानक पता चला कि उसे ब्लड कैंसर है तो उसे पहले अपने उपर विश्वास नहीं हुआ कि उसे इतनी बड़ी बीमारी है, लेकिन सारे टेस्ट पॉजिटिव होने के बाद उसने इलाज कर सही होने को ठानी. इसमें उसकी हिम्मत और साहस ही सबसे बड़ी थी जिसने उसे इलाज के लिए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, लेकिन कीमोथेरेपी ने उसके इस हौसले को इतना पस्त कर दिया  कि उसने केवल 6 महीने में दम तोड़ दिया. कीमोथेरेपी की वजह से वह धीरे-धीरे कमजोर होती गयी गयी. उसके शरीर के अंग ख़राब होते गए और वह जिंदगी की जंग नहीं जीत पायी. यहाँ ये समझना जरुरी है कि आखिर वजह क्या थी कि 20 प्रतिशत कैंसर सेल्स होने के बावजूद वह जिंदगी से हार गयी.

असल में एक ब्रिटिश शोध में ये पाया गया है कि सीरियसली कैंसर के 27 प्रतिशत मरीज़ कीमोथेरेपी से ही मर जाते है न कि कैंसर से. जबकि 600 से अधिक लोग कीमोथेरेपी के प्रयोग से 30 दिन के अंदर ही दम तोड़ देते है. इस बारें में जानकार बताते है कि सही मात्रा में सही तरीके से शरीर में किमो देने पर मरीज़ का इलाज हो सकता है. जिसके लिए प्रशिक्षित डॉक्टर का होना बहुत जरुरी है. इसके अलावा कई बार कुछ कैंसर में किमोथिरेपी देने के बाद कैंसर सेल्स अधिक उग्र हो जाते है, क्योंकि कैंसर सेल के साथ-साथ व्यक्ति की इम्यून सिस्टम किमो से ख़राब हो जाते है. ऐसे में रोगी की सरवाईवल क्षमता कम हो जाती है.

मुंबई की रिजनेरेटिव मेडिसिन रिसर्चर Stem Rx  बायोसाइंस सलूशन्स प्राइवेट लिमिटेड. के डॉ. प्रदीप महाजन, जो एन के सेल और डी सी सेल पर रिसर्च करने के अलावा रेडियो थिरेपी और इम्यूनो थिरेपी पर भी एडवांस काम रहे है, उनका कहना है कि किमो से नार्मल और कैंसर दोनों के सेल मरते है, ऐसे में नए ट्रीटमेंट जिसे इम्यूनो थिरेपी कहते है, उसमें कैंसर सेल को टारगेट कर मार सकते है. कीमोथेरेपी और रेडियो थिरेपी से बॉडी को लाभ से अधिक नुकसान होता है.

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कैसे करे कीमोथेरेपी

किमो देते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरुरी होता है, ताकि रोगी की बीमारी कम हो और उसे किसी प्रकार की असुविधा न हो, शरीर में कैंसर के प्रकार, उसकी मात्रा, वजन उम्र, कोई अन्य बिमारी आदि सभी को देखते हुए कीमोथेरेपी देने की जरुरत होती है, ये हमेशा कॉम्बिनेशन में दिया जाता है, जो रोगी की कैंसर के प्रकार के आधार पर दिया जाता है, इसके अलावा प्रशिक्षित डॉक्टर की निगरानी में इसे दिया जाना चाहिए.

कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट

किमो देने के बाद कैंसर सेल के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता और नार्मल सेल भी मर जाते है, जिसकी वजह से कैंसर, जितना कम होता है उससे अधिक इम्यून सिस्टम ख़राब हो जाती है, जिससे उससे बार-बार इन्फेक्शन होना, कमजोरी लगना, वजन का कम होना, हड्डियों का कमजोर पड़ना, बाल झड़ना, किडनी और लीवर का ख़राब हो जाना, महिलाओं में ओवेरी का ख़राब हो जाना,पुरुषों में प्रजनन क्षमता का कम हो जाना आदि कई समस्याएं आ जाती है,

इसके आगे डॉ. महाजन का कहना है कि किमो की खुराक कभी अधिक नहीं होती. एक्सपर्ट डॉक्टर रोग की अधिकता को देखते हुए दवा देते है. अगर कैंसर सेल अधिक मात्रा में है तो उसे कम करने के लिए जरुरी मात्रा में कीमोथेरेपी देने पड़ते है, ऐसे में स्वास्थ्य लाभ की संभावना कम हो जाती है.

सही इलाज

ग्लोबली आजकल इम्यूनो थेरेपी पर अधिक जोर दिया जाता है और एंटी बॉडीज पर फोकस किया जाता है, ताकि टारगेट कर कैंसर सेल को मारकर, इम्युन सिस्टम को बूस्ट कर और लाइफ स्टाइल को बदलकर कैंसर को काफी हद तक कंट्रोल में किया जाना है. अर्ली स्टेज में पूरी तरह से क्योर होना भी संभव हो सकेगा. असल में कैंसर की कोई भी इलाज सस्ता नहीं है. रेडियोथेरेपी और सर्जरी कोई भी सस्ता नहीं. नई थिरेपी की अगर तुलना करें, तो 10 से 15 प्रतिशत तक इसका खर्चा अधिक होता है, पर इसका लाभ रोगी को बहुत अधिक होता है. अभी कैंसर को बीमारी नहीं, लाइफस्टाइल बीमारी का नाम दिया जाने लगा है, क्योंकि गलत आदतें, गलत लाइफस्टाइल और तनाव की वजह से ये बिमारी आजकल अधिक हो रहा है.

इम्यूनो थिरेपी में रोगी की लाइफस्टाइल और फ़ूड हैबिट्स को पूरी तरह से बदल दिया जाता है. खाना ऐसा दिया जाता है, जिसमें उसकी इम्युन सिस्टम बूस्ट होगी, एंटी कैंसर एक्टिविटी शरीर में चालू होगी और कैंसर को मारने वाले सेल्स भी एक्टिव हो जायेंगे. इसके लिए हाई डोज विटामिन डी, सी ,विटामिन बी 17, क्रुकोमिन जैसे एंटी कैंसर ड्रग और इम्यूनो थेरेपी आदि दिए जाते है. इसके अलावा आजकल नयी पद्यति का प्रयोग भी इन सबके साथ किया जाता है, जिसमें इंटेंसिव पल्स प्रेशर देकर शारीरिक रूप से कैंसर सेल को ख़त्म करने का काम किया जाता है. आजकल विज्ञान बहुत आगे है. महंगा इसलिए है, क्योंकि नया है, धीरे-धीरे इसका प्रयोग होने और रोगी ठीक होने पर मूल्य भी घट जायेगा, लेकिन इससे परिणाम बहुत अच्छा रहता है.

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कैसे करें सही डॉक्टर का चुनाव

इस बारें में डॉ. प्रमोद कहते है कि ये बहुत मुश्किल नहीं जब भी रोगी किसी डॉक्टर से सम्पर्क करता है तो ऑनलाइन उसकी रिव्यु देखें और पढ़ लें, इसके अलावा सेकंड ओपिनियन डॉक्टर से अवश्य लें, ताकि आपका इलाज सही हो.

कैंसर बढने की वजह

इसके आगे डॉक्टर महाजन का कहना है कि कैंसर बढ़ने की मूल वजह आजकी फ़ूड हैबिट है. लोग रात-रात तक काम करते है इसके अलावा आर्सेनिक युक्त भोजन करना, प्रदूषण में रहना, तनावयुक्त जीवन बिताना आदि है, जिससे इम्युन सिस्टम कमजोर पड़ने लगती है म्युटेशन बढ़ता है. बॉडी एसिडिक हो जाती है, जिसमें कैंसर के सेल का फैलाव अधिक होने लगता है.यही वजह है कि ये बढ़ रहा है.

कैसे करें कम

  • इसे कम करने के उपाय निम्न है,
  • फ़ूड हैबिट्स बदले,
  • समय पर भोजन करें,
  • अपनी नीद पूरी करें,
  • तनाव को अपने से दूर रखें,
  • खाने में नट्स,फल और सब्जियों का प्रयोग अधिक करें,
  • योग और मेडिटेशन पर अधिक ध्यान दें.

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कैंसर के क्षेत्र में कारगर साबित हो रही है, नई तकनीक हाइपैक और पेरिटोनेक्‍टोमी, जानें यहां

32 वर्षीय रश्मि को पेरिटोनियल बीमारी के साथ ओवेरियन कैंसर था, कीमोथेरेपी देने के बाद भी उसकी बीमारी बनी रही. वह युवा थी और पहले से ही वह माँ बन चुकी थी, ऐसे में रश्मि का इलाज हाइपैक तरीके से किया गया. चार साल बाद भी वह स्टेज 4 कैंसर से जंग जीतकर  बेहतर जिंदगी जी रही है, जो इस इलाज की पद्यति से संभव हो पाया.

65 वर्षीय महिला अनीता एपेंडिसाइटिस ट्यूमर से परेशान थी, जो उसके लीवर, पेट और कई अन्य अंगों में फैल गया था, हाइपैक के बाद, स्टेज चार कैंसर के बावजूद, वह पिछले दो वर्षों से ठीक है.

असल में कैंसर का सही इलाज आज तक संभव नहीं हो पाया है, लेकिन इसकी संख्या लगातार बढ़ रही है. अब तो इसे लाइफ स्टाइल डिसीज की संज्ञा भी दी जाने लगी है. हाल ही में एक शोध से पता चला है कि आज सबसे अधिक ब्रैस्ट कैंसर, फिर लंग्स कैंसर और इसके बाद प्रोस्टेट कैंसर का आता है और इसकी संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. इस बारें में नवी मुंबई के रिलायंस हॉस्पिटल के ओंको सर्जन डॉ. डोनाल्ड जॉन बाबू का कहना है कि कैंसर का सबसे बड़ा खतरा यह है कि ये कई बार पूरे शरीर में फैल जाता है, जिसके चलते इसका इलाज और मुश्किल हो जाता है. खासकर एब्डोमिनल कैविटी  (पेरिटोनियम या पेरिटोनियल गुहा) की लाइनिंग जैसी मुश्किल जगहों में होने वाले कैंसर का इलाज अधिक चुनौतीपूर्ण होता है. पेरिटोनियम, एब्डोमिन से लगे झिल्लीनुमान उत्‍तक का आवरण होता है. पेरिटोनियम, पेट के अंगों को सहारा देता है, साथ ही तंत्रिकाओं, रक्त वाहिकाओं और लिम्फ के गुजरने के लिए एक सुरंग के रूप में कार्य करता है. पेरिटोनियल गुहा (कैविटी) में डायफ्राम, पेट और पेल्विक कैविटीस की वॉल्‍स के साथ पेट के अंग भी होते है.

जाने कीमोथेरेपी के साइड इफ़ेक्ट 

कीमोथेरेपी के क्षेत्र में हाल में हुई कई प्रगतियों के बावजूद, कीमोथेरेपी के संपूर्ण रूप से आरोग्यकारी होने की संभावना निश्चित नहीं होती और कई बार इसके दुष्प्रभावों को सहन कर पाना रोगियों के लिए मुश्किल होता है. हालांकि, जब ये कैंसर पेरिटोनियल कैविटी तक सीमित होते हैं, तो हाइपैक अर्थात हाइपरथेराटिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी का प्रयोग ऐसे रोगियों के लिए एक अच्छा विकल्प बन जाता है.

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विधि  

डॉ. पॉल हेड्रिक सुगरबेकर द्वारा खोजी गयी, यह एक अमेरिकी कांसेप्ट है और इसे सुगरबेकर प्रोसेस के रूप में भी जाना जाता है. हाइपैक से पहले, सर्जन द्वारा पेरिटोनियल कैविटी से सभी दिखायी देने वाले ट्यूमर को सर्जिकल रूप से हटा दिया जाता है. इसे पेरिटोनोक्‍टॉमी सर्जरी कहा जाता है. इस सर्जरी के बाद, सर्जन द्वारा ऑपरेटिंग सेटिंग में हाइपैक उपचार किया जाता है.

हाइपैक है क्या 

हाइपैक का अर्थ हाइपरथेराटिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी है. हाइपैक एक बड़ी सर्जरी है. ‘इंट्रापेरिटोनियल’ शब्द का अर्थ यह है कि इसके द्वारा एब्डोमिनल कैविटी का इलाज किया जाता है. यह कैंसर का एक ऐसा इलाज है, जो पेट में कीमोथेरेपी दवाओं के हीट को पंप कर बाहर निकाल देता है. इसलिए कीमोथेरेपी की एक बड़ी खुराक जब दी जाती है, तो यह उतना टॉक्सिक नहीं होता. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ड्रग्स को खून की धमनियों में इंजेक्ट नहीं किया जाता, इसलिए ये आईवी (इंट्रावेनस) के जरिए दिये जाने वाले कीमोथेरेपी को शरीर के अंदर फ़ैलाने में असमर्थ होता है.

इसके अलावा हाइपरथेराटिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी में दवाओं को लगभग 106-109 डिग्री फॉरेनहाइट तक गर्म किया जाता है. कैंसर कोशिकाएं इतनी गर्मी सहन नहीं कर सकती और गर्मी की वजह से दवाओं को अधिक आसानी से एब्सोर्ब करने और कैंसर सेल्स पर बेहतर काम करने में मदद करती है.

हाइपैक से इलाज  

हाइपैक प्रक्रिया के दौरान, सर्जन द्वारा कीमोथिरेप्‍यूटिक एजेंट वाले हीटेड स्‍टराइल सॉल्‍यूशन को पूरी पेरिटोनियल कैविटी में अधिक से अधिक दो घंटे तक लगातार सर्कुलेट किया जाता है. हाइपैक प्रक्रिया का प्रयोग इसलिए किया जाता है, ताकि कैंसर की बाकी बची कोशिकाओं को नष्ट किया जा सकें. यह प्रक्रिया शरीर के बाकी हिस्सों में न्यूनतम जोखिम के साथ दवा अवशोषण और प्रभाव में भी सुधार करती है. इस तरह से कीमोथेरेपी के सामान्य दुष्प्रभावों से बचा जाता है. इस विधि से इलाज करने में 6 से 10 लाख तक का खर्चा होता है, लेकिन मरीज़ इसके लिए ओंकोलोजिस्ट से बात कर निर्णय ले सकते है.

किन-किन कैन्सर्स के लिए है उपयोगी 

हाइपैक का उपयोग कठिन कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है, जैसे एपेंडिक्‍स, कोलोरेक्टल कैंसर और पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा (पेट के अस्तर का एक कैंसर, जो अक्सर एस्बेस्टस में सांस लेने के कारण होता है) इस प्रक्रिया ने डिम्बग्रंथि और गैस्ट्रिक कैंसर की उपचार के लिए भी एक अच्छा विकल्प है.

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पेरिटोनेक्टोमी के साथ हाइपैक के उपयोग के फायदे 

इसके आगे डॉ.डोनाल्ड का कहना है कि जब कैंसर केवल अंगों की सतह पर हो और रक्त प्रवाह में नहीं फैले, तो कुछ रोगियों के लिए हाइपैक के साथ साइटोरिडक्टिव सर्जरी को अच्छा माना जा सकता है. इसके अलावा इसके कई फायदे निम्न है,

  • यह ट्यूमर के वॉल्‍यूम को काफी कम करता है, शेष बचे कोशिकाओं को कीमोथेरेपी दवाओं के द्वारा इफेक्टिव तरीके से कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकती है,
  • हाइपैक सभी आयु वर्गों के लिए प्रभावी है,
  • हाइपैक का परिणाम 60-70 प्रतिशत रोगियों के लिए अच्छा पाया गया है और इसके बाद लास्‍ट स्‍टेज कैंसर में भी 5 वर्षों से अधिक समय तक जीवन प्रदान करने की क्षमता देखी गयी है,
  • इस प्रक्रिया को करने के लिए किसी विशेष एहतियात या देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन कैंसर रोगी को नियमित देखभाल की आवश्यकता होती है.

इस तरह ना करें तेल का प्रयोग, हो सकता है कैंसर

अक्सर त्यौहारों में तेल और वनस्पतियों की खपत दुगनी तिगुनी हो जाती है. इसके अलावा बाहर के खानों में भी हमें तेल की मात्रा काफी ज्यादा मिलती है. तेल सभी व्यंजनों में जरूरी तो है, पर इसके कई नुकसान भी हैं. फास्टफूड स्टौल्स अक्सर पुराने तेल का भी इस्तेमाल करते हैं. इसका सेहत पर जो नुकसान होता है उस बारे में जान कर आप हैरान रह जाएंगे. आपको बता दें कि एक बार से ज्यादा तेल के इस्लेमाल से कैंसर होने का खतरा काफी बढ़ जाता है.

लोग अक्सर कड़ाही में बचे तेल का दोबारा से उपयोग करते हैं. कड़ाही में बचे तेल का दोबारा या कई बार उपयोग करना आपकी सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है. आपको ये जान कर हैरानी होगी कि जितनी बार आप तेल गर्म करते हैं, उसमें उतने ही कैंसर के कारक बनते हैं. यही कारक जब अधिक देर तक उस तेल में रह जाते हैं तो वह बढ़ते जाते हैं और अगली बार फिर से उबालने पर इनकी शक्ति और भी बढ़ जाती है. इसका प्रमुख कारण विशेषज्ञों ने बताया कि बार-बार तेल गर्म करने उसके मुख्य कारक नष्ट हो जाते हैं.

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बढ़ जाती है कैंसर की सम्‍भावना

तेल के बार बार प्रयोग से उसमें कैंसर के तत्व पैदा हो जाते हैं. इसका सबसे ज्यादा असर हमारे पेट पर होता है. गौल ब्लैडर में कैंसर होने की संभावना सबसे ज्यादा बढ़ जाती है.

शरीर के लिए खतरा

कड़ाही में बचे तेल के दुबारा इस्तेमाल से कई तरह के नुकसान सामने आए हैं. कारण है तेल से सभी जरूरी तत्वों का खत्म हो जाना. बार बार तेल गर्म करके यूज करने से उनमें धीरे-धीरे फ्री रेडिकल्स बनने लगते हैं. इन रेडिकल्स के रिलीज़ होने से तेल में एंटी औक्सीडेंट खत्म हो जाते हैं और यह बचा हुआ तेल कैंसर का कारण बन सकता है. इसके साथ ही इस तेल के प्रयोग से शरीर में कौलेस्ट्रौल की मात्रा बढ़ जाती है.

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