केयर ऑफ: कैसी थी सुमित्रा की जिंदगी

समूची दुनिया में कहर बरपा रही संक्रामक बीमारी कोरोना का आतंक कुछ मद्धिम हुआ है.यह खुशी की बात है कि शुरुआती तीन मौतों के बाद हमारे डाॅक्टरों और नर्सों की सतर्कता ने इस अस्पताल में भर्ती तिरपन में से ग्यारह जानें बचा ली हैं. इस तरह उन ग्यारहों लोगों को अपने घर लौटने की छुट्टी दी जाती है.शेष लोगों के लिए हम प्रयासरत हैं. आशा है कि उनके परिजन भी शीघ्र उन्हें अपने पास पायेंगे.” अस्पताल के सुपरिंटेंडेंट जब वार्डों में गूंजी , तो उन चेहरों पर मुस्कानें फैल गयीं , जो इस महामारी में मरते – मरते बच गये थे और अब स्वस्थ घोषित किये जा रहे थे.उन चेहरों पर भी एक हरापन आकार लेने लगा था , जिन पर मास्क चढ़े थे या जिनके नथुनों में ऑक्सीजन की नलियाँ घुसेड़ी गयी थीं. कुछ लोग बेसुध थे. उनकी तीमारदारी में लगे डॉक्टरों एवं नर्सों ने मास्कों के भीतर से मुस्कानें बिखेरकर अपनी सफलताओं के लिए स्वयं की प्रशंसा की.

घंटे – दो घंटे में सारी ऑपचारिकताएँ पूरी कर ली गयीं. वार्ड के दस बेड खाली हो गये. सुमित्रा ने महीनेभर के बाद यह हल्कापन महसूस किया. किसी नर्स के लिए उसके मरीजों का स्वस्थ होकर घर के लिए लौटना तपस्या से वरदान प्राप्त करने जैसा है. उसने मास्क और दस्ताने को ढक्कन वाले कूड़ेदान में उतारकर फेंका.वाॅशरूम गयी और आधे घंटे में निकल आयी.अब इस वार्ड में जब तक कोई नया मरीज नहीं आता , नहीं आना पड़ेगा. वह दरवाजे से निकलने ही वाली थी कि ठहर गयी.वह कुछ समझ पाती कि हल्की – सी मुस्कान के साथ बेड पर बैठे बैठे युवक ने कहा : ” मैं अभी ठीक नहीं हुआ हूँ”
सुमित्रा सन्न रह गयी , अब यह कौन -सी बला है!उसने जाँच के लिए स्वयं सैंपल इकट्ठे किये थे और सिनियर डाॅक्टर अमिताभ शुक्ला ने रिपोर्ट बनायी थी.

सुमित्रा ने याद किया , यह तो वही युवक है , जिसे पहले ही से टीबी है, नाम रघुवर है. सुमित्रा ने दुपट्टे को नाक पर चढ़ाया और निकट चली गयी , ” तुम बिल्कुल ठीक हो , रघुवर जाओ, घरवाले चिंतित होंगे”
वह कुछ नहीं बोला , हल्की – फीकी मुस्कान लाकर होठों पर जीभ फेरी और सिर झुका लिया.
” समस्तीपुर के हो न ? ” सुमित्रा ने फिर पूछा
जवाब में उसने सिर हिला दिया, बोला नहीं
सुमित्रा ने फिर पूछा: ” कौन – सा प्रखंड? रघुवर ”
” मोहीउद्दीननगर हजरतपुर गाँव” इस बार उसे बोलना पड़ा
” तुम बिल्कुल ठीक हो” सुमित्रा ने उसे आश्वस्त किया
” लेकिन , मैं नहीं जा पाऊंगा, मैडम!कमजोरी है” रघुवर ने असमर्थता व्यक्त की
वार्ड की पहरेदारी में लगे चार सिपाहियों में से एक उत्तेजित हो गया, ” जवान आदमी है. तीस – बत्तीस की उम्र कहीं से रोगी नहीं लग रहा घंटेभर से कहे जा रहा हूँ कि घर लौटने के लिए सरकारी व्यवस्था है , लौट जाये।र जिद पर अड़ा हुआ है”
” मैं कल जाऊंगा” रघुवर ने निगाहें उठाकर सुमित्रा पर टिका दीं
” तब तुम यहाँ नहीं रह सकते सिपाहियो ! रघुवर के साथ किसी प्रकार की सख्ती नहीं होनी चाहिए. इसे बाहर खड़ी गाड़ियों में से किसी पर बैठाओ और शीतला माता मंदिर वाली धर्मशाला में पहुँचा दो.ऐसे लोगों के लिए वहीं व्यवस्था की गयी है” सुमित्रा नर्स इंचार्ज है , लोग अदब भी करते हैं. एक सिपाही ने स्वीकृति में सिर हिलाया. सुमित्रा घर के लिए निकल गयी.

दिनभर की थकी – मांदी सुमित्रा ने जैसे ही कालोनी में पाँव रखे , खिड़कियों से घूरती हुईं नजरों ने उसे अविनम्रता से देखा. उसे न तो गुस्सा आया , न ग्लानि महसूस हुई.ऐसा रोज होता है , पर वह किसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त करना उचित नहीं समझती सुमित्रा के परिवार के लोग भी उसके प्रति ऐसे ही भाव रखते हैं.वह किस – किस से कहे- बीते तेईस दिनों में उसने जो सहा है , वह असह्य है. हालांकि पेशे से इंजीनियर पति साकेत ने कभी नहीं चाहा कि सुमित्रा नर्स की इस छोटी-सी नौकरी से लिपटी रहे.विवाह के छह सालों के बाद भी सुमित्रा अपने पति को अपने सुख – दुःख का सहभागी नहीं बना सकी.पति को मित्र के रूप में देखने की इच्छा दबाये हुए उसने एक बेटे को जन्म दिया, पर वह स्वामी और अधिपति ही बना रहा.
सुमित्रा ने घड़ी पर निगाह डाली, छह बजेंगे. सीढ़ियों पर पाँव रखे , तो सिहर गयी.पति की डाँट वह बीते तेईस दिनों से नहीं सुन रही. एक प्रकार से इन तेईस दिनों में उससे दूर रहकर वह सुकून ही महसूस करती रही है. पर चार साल के बेटे नलिन के निकट नहीं जाना उसके लिए सबसे अधिक दुःखदायी है.दूसरे कमरे में वह अपने पिता के साथ कैसे रहता होगा. सुमित्रा की चिंता पति के कड़े स्वभाव को लेकर नहीं बढ़ती,वह तो इंजीनियर होने के दंभ में जीता है. सुमित्रा अपने पति के साथ नहीं जीती, यहाँ तो एक इंजीनियर के साथ कोई नर्स जबरन रिश्तेदारी कायम करने की चेष्टा करती हुई बीते छह सालों में बार बार पिछड़ी है.
दरवाजे के करीब पहुँचकर उसने फोन लगाया, कोरोना संक्रमितों की तीमारदारी में लगी नर्स को काॅलबेल छूने का अधिकार नहीं.दाई दरवाजा खोलकर पीछे हट गयी. सुमित्रा अपने कमरे की ओर बढ़ गयी.
कोई दो घंटे बाद दाई खाना रख गयी और दूसरे कमरे से झाँकते नलिन की ओर इशारा किया.सुमित्रा ने मुस्कुराकर हाथ हिला दिया.नलिन के पीछे बिछावन पर लेटा हुआ उसका पति मोबाइल पर व्यस्त था.उसके कमरे से टेलीविजन के आते – जाते चित्र शीशे पर चमक जा रहे थे.सुमित्रा ने एक बार पति के कमरे को शीशे की दीवार से ऐसे ही देख लिया.उसके मन में कोई भाव नहीं आया. इंजीनियर के कमरे के ऐश्वर्य ने उसे आकर्षित नहीं किया. बेटे नलिन को देखकर मुस्कुराते हुए उसने हाथों से इशारे किये.शीशे की दीवार आर – पार के लोगों का दीदार भले करा दे ,पर आवाज निगल जाती है.सुमित्रा ने कुछ बोलना निरर्थक समझा.

थकावट से बोझिल आँखें लग गयीं , तो दिनभर के लिए ताजग देकर सुबह – सुबह खुल भी गयीं. यह तो रोज का सिलसिला है.सुमित्रा की तरह के सैंकड़ों लोगों के भीतर के अंधेरे को रात अपने आँचल में छुपा लेती है.ऐसे ही , हर दिन फिर से जीवन शुरु करती है सुमित्रा.

अस्पताल में पहुँचते ही उसने बड़े – से रजिस्टर पर निगाह दौड़ायी. गहरी साँस ली , ” उफ ! रात भर में तीन मरीज बढ़ गये. ”
सुमित्रा वार्ड में घूमने के लिए उठी ही थी कि रघुवर दिख गया।वह उसी को देख रहा था।
” अरे ! गये नहीं ? ” सुमित्रा ने आश्चर्य से पूछा।
रघुवर कुछ नहीं बोला।
सुमित्रा जल्दीबाजी में थी , वार्ड की ओर निकल गयी।

दूसरे दिन रघुवर फिर सुमित्रा को अस्पताल के दरवाजे पर दिख गया।उसके साँवले चेहरे पर एक प्रसन्नकारी ताजगी दिखाई पड़ रही थी।सुमित्रा ने मुस्कुराकर पूछा , ” खुश लग रहे हो । लेकिन घर क्यों नहीं गये ? ”
” घर में क्या रखा है ! ”  रघुवर ने हल्की – सी मुस्कान बिखेरी।
” क्यों ?  पत्नी, बच्चे , माँ – बाप ।इंतजार तो करते होंगे? ” सुमित्रा ने सहजता से पूछा।
” पत्नी बीते साल चल बसी।एक बच्चा है, उसे मेरे माँ – बाप देखते हैं।” रघुवर ने सिर झुका लिया।
” ओह ! लेकिन , घर जाना चाहिए।” सुमित्रा ने अधिक रुचि नहीं ली और अस्पताल के वार्डों की ओर निकल गयी।

रात में खाना खाने के बाद रघुवर का चेहरा अनायास सुमित्रा की आँखों में आ गया।उसके लिए रघुवर के संबंध में सोचने की न तो कोई जरूरत थी , न कोई विषय था।पर , वह यह नहीं समझ पा रही थी कि यह लड़का ठीक होने के बजाय अस्पताल के निकट क्यों मंडराता रहता है।सुमित्रा की आँखें बंद हुई जा रही थीं।कोरोना के नये मरीज अब अस्पताल में नहीं आ रहे थे, सरकार आश्वस्त हुई जा रही थी।उसने अनायास अपने कमरे का टीवी ऑन कर दिया।महीनेभर से वह देश दुनिया से बेखबर रही है।पर टीवी के समाचारों ने उसे आकर्षित नहीं किया ।जैसे खोला था , वैसे ही बंद भी कर दिया।

सुमित्रा ने सुबह उठते उठते विचार किया था, आज कुछ सवेरे अस्पताल जायेगी।यदि रघुवर फिर खड़ा दिखा , तो आज कुछ बातें करेगी।नर्स प्रेम और अपनापन बाँटती है , यदि यह किसी को भला लगता है , तो इसे उसकी सफलता कहेंगे।
नियत समय से एक घंटा पूर्व सुमित्रा ने अस्पताल में
कदम रखा।रघुवर फिर उसका इंतजार करता दिखा।वह उसी के निकट जा बैठी। रघुवर ऐसे मुस्कुराया , जैसे उसकी मुराद पूरी हो गयी।
” रघुवर ! मैं आज तुम्हारे लिए सवेरे आयी हूँ।कहो , कुछ कहना है मुझसे?” सुमित्रा के मुँह से अनायास निकल गया।
रघुवर एक पल कुछ नहीं बोला, हाथ जोड़कर उसे निहारता रहा।फिर , हाथ जोड़कर उसे निहारता रहा।फिर , धीरे – से बोल पड़ा- ” आप मुझे अच्छी लगती हैं, बस।”
” मुझे ही देखने आते हो ? ” पता नहीं उसने क्यों मुस्कुरा दिया।
” हाँ। ” रघुवर ने सिर हिला दिया।
” ऐसा क्या है मुझमें ? ” सुमित्रा के इस प्रश्न पर रघुवर  चुप हो गया।फिर धीरे से बोला, ” मेरी पत्नी आप ही के जैसी थी।स्वभाव , चाल – चलन , हँसी – मुस्कुराहट सब कुछ आप से मिलता था।”
सुमित्रा गंभीर हो गयी।
” मैं मैं आपके साथ रह सकता हूँ? ” उसने हकलाते हुए हिम्मत जुटायी।
” क्या ?” जैसे चौंक पड़ी सुमित्रा, ” रघुवर ! मैं शादीशुदा हूँ।मेरा एक बच्चा भी है।मेरा इंजीनियर पति सुन भी लेगा , तो तुम्हें कच्चा चबा जायेगा।”
रघुवर उदास हो गया।
” और कुछ बोलो ।” सुमित्रा ने सहानुभूति दिखायी।रघुवर दूसरी ओर देखने लगा।
अस्पताल दुःखों की दुनिया है।दुःखों को देख – देखकर नर्स जीना सीखती है और दूसरों के दुःख में अपनत्व बढ़ाकर उनके लिए जीवन की आशाएँ जगाती हैं।रघुवर का दुःख अपने दुःख जैसा लगा , उसे लगा कि रघुवर जैसे अनजान युवक के जीवन को उसकी जरूरत है।पर यह तो सर्वथा असंभव है।
उसीने बात बढ़ायी , ” कैसे मरी तुम्हारी पत्नी?”
रघुवर की आँखें छलछला आयीं, ” हम दोनों ने प्रेमविवाह किया था।महीनों तक ससुरालवालों से भागते रहे ।केस हो गया।हमने आपसी मर्जी से विवाह का हलफनामा दिया , तो जान छूटी।मैं एक हाॅस्टल में दरबानी करने लगा।कम आमदनी होती थी , पर हम खुश थे।मेरी पत्नी रूना मुझपर जान लुटाती थी।उसने जान लुटा भी दी।बच्चे के जन्म के बाद महीनों तक खून गिरा।वह घर – आंगन में थकावट महसूस करने लगी और उचित चिकित्सा के अभाव में उसे कैंसर हो गया।” रघुवर चुप हो गया , उसकी आँखें पनीली हो गयीं।
कुछ देर चुप रहकर फिर बोलना शुरु किया , ” मैं कंपाउंडरी करने लगा , इच्छा थी कि अपने जैसे कमजोर लोगों की सेवा करूँ।दिल्ली में एक अस्पताल में नौकरी की , साल भर।वहीं से आया हूँ। ”
” ओह ! ” रघुवर के दर्द को सुमित्रा ने महसूस किया।
सुमित्रा ने रघुवर की आँखों में देखा , ” अब बीती हुई बातें भूलकर नया जीवन शुरु करो रघुवर!मेरा दुःख तुम- सा ही है , मैं हर रोज एक नया जीवन शुरु करती हूँ।”
” आप आपके साथ कंपाउंडर बनकर रह लेता , तो अच्छा होता।” रघुवर ने विकल्प सुझाया।
” साथ रहोगे और मुझमें अपनी पत्नी का चेहरा
देखोगे ।” सुमित्रा खीझ गयी।वह उठकर जाने लगी , तो रघुवर ने फिर टोका , ” मैं यही कहने के लिए रुका हुआ था।कल गाँव लौट जाऊंगा।फोन नंबर देतीं , तो कभी – कभार बात कर लेता ।”
सुमित्रा ने सुना , पर जैसे नहीं सुना।वह आगे बढ़ गयी। फिर पीछे लौटकर रघुवर की ओर देखा , कहा :
” लिखो।”
रघुवर ने जेब से कलम निकाली और हाथ ही पर जल्दी – जल्दी में सुमित्रा का मोबाईल नंबर लिख लिया।

कोरोना के मरीज नहीं आ रहे थे।सरकार ने सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए पूर्णबंदी समाप्त कर दी।लेकिन नर्स की दिनचर्या तो रोगियों से शुरु होती है और रोगियों पर ही खत्म।इस दौरान रघुवर का कोई फोन नहीं आया।न जाने क्यों , सुमित्रा ने प्रायः हर दिन उसके फोन का इंतजार किया।उसने रघुवर का नंबर लिया भी नहीं कि हालचाल पूछ लेती।किसी से हालचाल पूछ लेना अंतरंगता बढ़ाना तो नहीं होता।रघुवर टीबी का मरीज था , पर लगता नहीं था।उसकी आँखें गहरी और सपने देखनेवाली थीं, उनमें जीने का साहस था।
सुमित्रा ने गहरी साँस ली और शीशे की दीवार से पति और बच्चे की ओर निगाह दौड़ायी, ” मैं इनके बारे में क्यों नहीं सोचती कि एक अनजान युवक के बारे में सोचकर परेशान हुई जाती हूँ!” उसका प्रश्न अपने आप से था ।उसीके अंदर से उत्तर भी आ गया , ” किसी के बारे में सोचने में हर्ज क्या है ! ”

वक्त के साथ यादें धुंधली हो ही जाती हैं।कि एक दिन फिर रघुवर अस्पताल के अहाते में दिख गया ।सुमित्रा ने तपाक से पूछ दिया , ” अरे , फोन नहीं किया ? ”
” आपने इंतजार किया था ? ”
” कैसे हो ? ” सुमित्रा ने उसकी पीठ पर हाथ रख दिया।
” यहाँ से जाने के बाद खून की कई उल्टियाँ हुईं।अब कुछ ठीक हूँ, तो रहा न गया।आपको देखने आ गया।अब एक भी उल्टी हुई , तो नहीं बचूंगा । ” वह एक पीली- सी हँसी हँसकर रह गया।
” आओ। ” सुमित्रा के पीछे – पीछे रघुवर अस्पताल में दाखिल हो गया।
अस्पताल में रघुवर की जाँच हुई, टीबी के अतिरिक्त पेप्टिक अल्सर भी निकला।सुमित्रा ने तय कर लिया , यहीं अपनी देखरेख में उसका ऑपरेशन करायेगी।अस्पताल के सुपरिंटेंडेंट सुमित्रा को मानते हैं।उसने तय कर लिया कि उसके ठीक होते ही इसी अस्पताल
में कंपाऊंडर के रूप में रघुवर को रखवाने के लिए बात करेगी।यदि उसे देखकर किसी को खुशी मिले , तो इसमें क्या बुराई है !
चार दिनों तक रघुवर की चिकित्सा चली।हिमोग्लोबिन की स्थिति ठीक होते ही उसका ऑपरेशन होना तय हो गया।
सुमित्रा दूसरे वार्ड में थी ।तभी वार्डब्वाय दौड़ा हुआ आया , ” आपका मरीज खून की उल्टियाँ कर रहा है।”
वह दौड़ी।रघुवर बुखार से तप रहा था, उसके कपड़े खून से रंग गये थे।
सुमित्रा सुई लाने के लिए मुड़ी , रघुवर ने हाथ पकड़ लिया , ” कहीं मत जाइए।” हिचकियों से उसका दम उखड़ रहा था।सुमित्रा ने उसके सिर पर हाथ रखा ,
” रघुवर ! हौसला रखो।”
रघुवर ने एक और हिचकी ली, ” आपको देखने की इच्छा थी , पूरी हुई।” उसके मुँह से निकली लार में खून के थक्के निकल आये।सिर एक तरफ लुढक कर शांत हो गया।सुमित्रा सन्न रह गयी , उसकी ओर झुकती चली गयी।
” आपका कोई सगा था सिस्टर? ” वार्डब्वाय ने पूछा।पर वह बिना कुछ बोले चुप रही।
डाॅक्टर ने पूछा , ” रजिस्टर में इसके किसी परिजन का नाम नहीं! ”
” केयर ऑफ माइन ” उसके मुँह से निकल गया।
शुक्र है , किसी ने नहीं पूछा कि मृतक उसका कौन था।

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