मीनू के पेरैंट्स उसे डाक्टर बनाना चाहते थे. पेरैंट्स के कहने पर उस ने मैडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी की, पर उस का स्कोर सही न होने की वजह से कहीं एडमिशन नहीं मिला. उस के पेरैंट्स उस से फिर मैडिकल प्रवेश की तैयारी करने को कहने लगे. लेकिन मीनू ने साफ मना कर दिया और अब वह बीएससी फाइनल में है और अच्छा स्कोर कर रही है. उस की साइंटिस्ट बनने की इच्छा है.
पेरैंट्स कुछ चाहते हैं, जबकि बच्चों की इच्छा कुछ और होती है. बिना मन के किसी भी विषय में बच्चा सफल नहीं होता है. इसलिए 12वीं कक्षा के बाद कैरियर काउंसलिंग करवा लेनी चाहिए ताकि बच्चे की इच्छा का पता चल सकें मगर कुछ हठी पेरैंट्स का जवाब बहुत अलग होता है. मसलन, कैरियर काउंसलिंग क्या है? उसे करवाना क्यों जरूरी है? पहले तो हम ने कभी नहीं करवाई? क्या हमारी बेटी पढ़ाई में कमजोर है? हम जानते हैं कि उसे क्या पढ़ना है आदि. ऐसे हठधर्मी पेरैंट्स को समझना बहुत मुश्किल होता है.
अर्ली कैरियर काउंसलिंग है जरूरी
इस बारें में पिछले 30 सालों से छात्रों की काउंसलिंग कर रहे कैरियर काउंसलर एवं डाइरैक्टर डा. अजित वरवंडकर, जिन्हें इस काम के लिए राष्ट्रपति अवार्ड भी मिल चुका है. कहते हैं, ‘‘मैं बच्चों की काउंसलिंग 10वीं कक्षा से शुरू करता हूं क्योंकि कैरियर प्लानिंग का सही समय 10वीं कक्षा ही होती है.
‘‘इस कक्षा के बाद ही छात्र विषय का चुनाव करते हैं, जिस में ह्यूमिनिटीस, कौमर्स, साइंस आदि होते है. अगर कोई बच्चा डाक्टरी या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहता हो और उस ने कोई दूसरा विषय ले लिया तो उसे आगे चल कर मुश्किल होगी. इसलिए इस की प्लानिंग पहले से करने पर बच्चे को सही गाइडेंस मिलती है.’’
बच्चे के 12वीं कक्षा में आने पर यह समझ लेना चाहिए कि उस ने अपने स्ट्रीम का चुनाव कर लिया है. बड़ेबड़े कैरियर औप्शन 6-7 ही होते है, जिन में डाक्टर, इंजीनियर, चार्टेड अकाउंटैंट, मैडिसिन, ला आदि हैं, लेकिन आज इंडिया में
5 हजार से अधिक कैरियर औप्शन हैं, जिन्हें वे जानते नहीं हैं, इसलिए बच्चों को परेशान होने की जरूरत नहीं.
उन्हें केवल यह पता होना चाहिए कि उन के लिए कौन सा कैरियर औप्शन सही है, जिस में वे अधिक खुश रह सकते हैं. बच्चों का वैज्ञानिक रूप से 3 बातों को ध्यान में रखते हुए कैरियर औप्शन का चुनाव करना ठीक रहता है-व्यक्तित्व, कार्यकुशलता, व्यावसायिक रुचि.
नौकरियों की नहीं कमी
व्यावसायिक रुचि के बारे में 1958 में जौन हौलैंड सोशल साइकोलौजिस्ट ने सब से पहले परिचय करवाया था. उन के अनुसार व्यक्ति उस काम को चुनता है, जिस में उस के जैसे वातावरण और काम करने वाले हों, तो उन की योग्यता और क्षमता का विकास जल्दी होगा और वे अपनी किसी भी समस्या को खुल कर कोलिंग से कहने में समर्थ होते है.
डा. अजित वरवंडकर का कहना है कि इन 3 चीजों को मिला कर कैरियर चुनना सब से अच्छा होता है. इस के अलावा 12वीं कक्षा के बाद अपने हुनर को पहचानने और उस के अनुसार पढ़ाई या वोकेशनल ट्रेनिंग भी ली जा सकती है.
हर किसी को इंजीनियर बनने की जरूरत नहीं क्योंकि हर साल हमारे देश में 17% से भी ज्यादा इंजीनियर बन रहे हैं, जबकि केवल डेढ़ लाख बच्चों को ही उस में जौब मिलती है. बाकी या तो पोस्ट ग्रेजुएट कर रहे हैं या फिर लाइन बदल कर कोई दूसरा काम कर रहे हैं. इसलिए बच्चा अपने हुनर को पहले से पहचान कर पायलट, एनिमेशन ऐक्सपर्ट, रिसर्च आदि कुछ भी अपनी इच्छा के अनुसार कर सकती है, लेकिन इस की जानकारी बहुत कम बच्चों और उन के पेरैंट्स को होती है, जो कैरियर काउंसलिंग से आसानी से मिल सकती है.
इनफौर्मैशन टैक्नोलौजी में बदलाव
डा. अजित कहते हैं कि कोविड के बाद इनफौर्मेशन टैक्नोलौजी में जितना बदलाव पिछले 2 सालों में आया है, उतना कोविड न होने पर 10 सालों में भी नहीं आता. आईटी इंडस्ट्री में बच्चों को बहुत रोजगार मिला है. आगे की सारी जौब डिजिटल टैक्नोलौजी के साथ तेजी से ग्रो करेंगी. इस में जौब डिजिटल टैक्नोलौजी, डेटा ऐनालिटिक और आर्टिफिशियल इंटैलीजैंट एनेबल्ड होंगे.
अब डाक्टर्स को भी डिजिटल टैक्नोलौजी पर ही काम करना पड़ेगा. अभी 60 से 70% सर्जरी रोबोट्स कर रहे हैं, इसलिए 12वीं कक्षा पास करने वाले बच्चों के लिए मेरा सुझव है कि वे अपनी 2-3 तरीके की स्किल्स को तैयार करें, जिस में सब से जरूरी है, डाटा ऐनालिटिक्स औरबेसिक कोडिंग की स्किल्स का भी होना. मसलन, कार चलने वाले को टायर बदलना आना चाहिए.
इस के अलावा किसी भी क्षेत्र में जाने पर प्रोग्रामिंग आना चाहिए क्योंकि यही हमारा भविष्य होगा. कम्युनिकेशन भी अच्छा होना चाहिए ताकि आप की बातचीत को समझने में किसी को समस्या न हो. साथ ही बच्चे की अपने विषय पर कमांड होनी भी जरूरी है.
स्किल डैवलपमैंट है जरूरी
अजित कहते हैं कि ऐसे बहुत सारे बच्चे हमारे देश में हैं, जिन के पास वित्तीय क्षमता बहुत कम है. उन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से स्किल डैवलपमैंट की कई सुविधाए मिलती हैं. उस के अंदर भी बहुत सारे कोर्सेज चलते हैं और कोर्सेज करने की वजह से स्टाइपैंड भी मिलता है. इसलिए थोड़ा जागरूक हो कर सरकार के रोजगार विभाग में जाएं और पता लगाएं कहां क्या हो रहा है. इस में एक बात तय है कि बिना कुछ किए आप आगे नहीं बढ़ सकते. स्किल डैवलप तो करना ही पड़ेगा.
क्षेत्र के हिसाब से चुनें स्किल्स
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि अलगअलग शहरों में अलगअलग तरीके के जौब पैटर्न होते है. ऐसे में बच्चे का अपने आसपास के वातावरण को देखते हुए स्किल डैवलपमैंट करना सही रहता है. गांव कृषि प्रधान हैं, इसलिए वहां के छात्रों को कृषि से संबंधित जानकारी, खदानों में काम करने के लिए उन से जुड़ी जानकारी होने की अधिक जरूरत होती है. छोटे शहरों में रिटेल नैटवर्किंग, डिस्ट्रीब्यूशन आदि होते हैं.
इस के अलावा यह भी देखना जरूरी है कि किस क्षेत्र में किस तरह के उद्योग का विकास हो रहा है. मसलन, खनिज, बिजली, मनोरंजन इंडस्ट्री आदि में नियुक्तियों को देखते हुए अपनी योग्यता को बढ़ाना चाहिए ताकि जौब मिलने में आसानी हो. इस के लिए बच्चों का अपने क्षेत्र के बारे में जानकारी लेते रहना जरूरी है और यह उन्हें अच्छी पत्रपत्रिकाएं पढ़ते रहने से मिलती रहेगी.
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