हर माता-पिता का सपना होता है उनके बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर या सीए बनें. यह बात बचपन से ही उनके दिमाग में बिठा दिया जाता है कि उन्हें तो डॉक्टर या इंजीनियर ही बनना है. ऐसे ही दवाब से बचने के लिए कुछ छात्रों ने नीट और जेईई की फर्जी मार्कशीट बना डाली. टाइम्स ऑफ इंडिया को मिले डॉक्यूमेंट्स के अनुसार, करीब 30 छात्रों के पेरेंट्स ने बच्चों पर भरोसा करके एक जगह नहीं, बल्कि ऊपरी लेवल तक शिकायत कर दी. पेरेंट्स ने केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय स्वास्थ्य मंत्रालय और नैशनल टेस्टिंग एजेंसी को भी शिकायत भेजी.
लेकिन चौंकने वाले खुलासे यह हुए कि यहाँ खामी एजेंसी की जांच में नहीं, बल्कि छात्रों की शातिर दिमाग की थी. मानव संसाधन के एक अधिकारी के बयान के अनुसार उम्मीदवार ने असली मार्कशीट के क्यूआर को ही नकली वाली शीट में इस्तेमाल किया. उसी क्यूआर के जरिये जांच आगे बढ़ी तो सारा मामला सामने आ गया और पता चला कि दूसरी मार्कशीट बाहर तैयार की गई थी. कुल मिलाकर इस पूरे मामले में छात्रों पर ही कार्रवाई शुरू कर दी गई.
लेकिन यहाँ दोषी बच्चों से ज्यादा माँ बाप हैं. बच्चों पर इंजीनियर, डॉक्टर बनने का इतना ज्यादा दवाब बनाने लगते हैं कि बच्चे समझ नहीं पाते की क्या करें. बच्चा अगर समझाना भी चाहें और कहें कि वह अपने अनुसार करियर चुनना चाहते हैं, तो माता-पिता उन्हें ही डांट कर चुप करा देते हैं. ‘अब हमें समझाओगे ? हमें सब पता है, जैसी दलीलें देकर उनका ही मुंह बंद करवा देते हैं. लेकिन यह नहीं समझना चाहते कि बच्चा क्या चाहता है, उसकी काबिलियत कितनी है और वह किस फील्ड में जाना चाहता है.
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अंकित, न तो इंजीनियर बनना चाहता था और न ही उसकी रुचि मैनेजमेंट करने की था. लेकिन पिता की जिद के आगे उसकी एक न चली और 12वीं के बाद उसे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने बैंगलोर भेज दिया गया. लेकिन दो साल के अदंर ही वह घर वापस आ गया क्योंकि पढ़ाई में उसका मन ही नहीं लगा. फिर माँ की जिद के चलते मैनेजमेट की पढ़ाई करने लगा. लेकिन वहाँ भी वह असफल हो गया. आज वह बेरोजगार है. शुरू से कह रहा था उसे इन सब में रुचि नहीं है, वह तो एग्रीकल्चरल में जाना चाहता है. मगर किसी ने उसकी एक न सुनी और उस पर दवाब बनाता रहा. आज हालात ये हो गए हैं कि वह किसी भी चीज में इन्टरेस्ट लेना बंद कर दिया है.
कोटा में पढ़ाई कर रहा एक छात्र अपने माता-पिता के नाम चिट्ठी लिखता है, ‘माफ करना पापा, मैं आपके सपनों को पूरा नहीं कर पाऊँगा. लेकिन आप लोग छोटे भाई पर करियर बनाने का दवाब मत बनाना. वह जो बनना चाहे बनने देना’ और फिर वह आत्महत्या कर लेता है. वंदना इसलिए पंखे से लटक गई क्योंकि वह अपने माता-पिता के सपनों पर खरी नहीं उतर पाई. उसके पेरेंट्स उसे डॉक्टर बनाना चाहते थे. यह घटनाएँ समाज को बेचैन करने के लिए काफी है, क्योंकि यहाँ बच्चे पर उसके विपरीत करियर बनाने के लिए दवाब बनाया गया.
हर कोई चाहता है कि उनके सपने पूरे हो. कुछ लोगों के सपने पूरे हो जाते हैं तो कुछ के अधूरे रह जाते हैं. लेकिन अपने उसी अधूरे सपने को माँ-बाप बच्चों के जरिए पूरे होते देखना चाहते हैं. लेकिन सपने पूरे करने के इस जद्दोजहद में जो बिखर जाते हैं, वे सपने बच्चों के ही होते हैं. अपने बच्चों के लिए बेहतर सोचते-सोचते माता-पिता उनके भाग्य विधाता बन जाते हैं, उनके फैसले खुद लेने लगते हैं. लेकिन यह नहीं समझते कि उनके फैसले के दवाब में बच्चे का दम घूंट रहा है.
ये हर घर की कहानी है. यह कहना गलत नहीं होगा कि अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए पेरेंट्स बहुत मेहनत करते हैं और पैसे खर्चने में भी पीछे नहीं रहते, फिर भी बच्चा उनकी उम्मीद पर खरा इसलिए नहीं उतर पाता, क्योंकि उस फील्ड में उसकी रुचि ही नहीं है इसलिए बार-बार वह असफल हो जाता है.
यही बात माता-पिता को समझाने के लिए एक सोशल एक्सपेरिमेंट किया गया. जिसमें बच्चों और उनके माता-पिता को एक कमरे में बुलाया गया. बच्चों और पेरेंट्स को अलग-अलग कैनवास दिए गए, जो वो बड़े होकर बनना चाहते हैं. और माता-पिता से वो चित्र बनाने को कहा गया जो वो अपने बच्चों को बनाना चाहते हैं. आखिर में जब दोनों कैनवास को एक साथ दिखाया गया तो नतीजे चौंकने वाले थे. दोनों चित्र एक दूसरे से विपरीत थे. पेरेंट्स हैरान थे. कुछ को तो पता भी नहीं था कि उनके बच्चे के सपने क्या हैं. माता-पिता बच्चों पर दवाब बनाते हैं, लेकिन बच्चे क्या बनना चाहते हैं कोई नहीं पूछता. माता-पिता बच्चों पर अपनी इच्छाएं लादते हैं, लेकिन यह नहीं देखते कि बच्चे में कैपिसिटी कितनी है या उसे वह बनने की इच्छा है भी या नहीं. जबरन बच्चे पर डॉक्टर, इंजीनियर, सीए या एबीए करने का दवाब बनाने लगते हैं. सपने देखने लगते हैं कि उनका बच्चा बड़ा अधिकारी बनें, भले ही इसके लिए बच्चे का सपना टूट कर बिखर ही क्यों न जाए. बच्चे कई बार अपने माता-पिता का सपना पूरा न कर पाने के कारण खुद को ही नुकसान पहुंचा लेते हैं.
आंकड़े बताते हैं कि देश में हर घंटे एक छात्र जान दे रहा है. क्योंकि उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अपने माता-पिता के सपनों को साकार करें. आज अधिकांश माता-पिता जॉब करते हैं इसलिए वे अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते. बच्चे या तो क्रेच में या आया के भरोसे पलते हैं . और फिर उनसे यह उम्मीद लगाई जाती है कि बच्चे वही करें जो माता-पिता चाहें ? आंकड़े बताते हैं कि बड़ी संख्या में बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं. उन्हें इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास ले जाया जा रहा है.
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18 साल की रिचा, पढ़ाई के बाद मॉडलिंग करना चाहती है लेकिन उसके पापा उसे इंजीनियर बनना चाहते है और उसकी माँ चाहती है बेटी बैंक में जाए. हालात ये हैं कि वह लड़की डिप्रेशन का शिकार हो चुकी है और उसका मनोचिकित्सक से इलाज चल रहा है. लेकिन हमें यह बात समझनी होगी कि देश में जीतने भी महान व्यक्ति हुए वह बहुत बड़े डॉक्टर, इंजीनियर या सीए नहीं थे. देश के पूर्व राष्ट्रपति और प्रसिद्ध वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने तो आईआईटी पास नहीं किया था. जेईई में फेल होने के बाद भी सत्या नडेला माइक्रोसॉफ्ट के सीइओ बने थे. और कलपना चावला, जिन पर देश को गर्व है, उन्होंने आईआईटी परीक्षा पास नहीं की थी, लेकिन उन्होंने इतिहास रच दिया.
आइंस्टीन चार साल तक बोल नहीं पाए थे और सात साल तक लिख नहीं पाए थे. उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था लेकिन वे एक महान व्यक्ति बनें. थॉमस एडिशन को शिक्षक ने स्टुपिड बताते हुए कहा था, यह लड़का कुछ नहीं कर सकता. लेकिन उसी एडिशन ने बल्ब का आविष्कार किया था.
बच्चों पर मनोवौज्ञानिक प्रभाव
2014 में जारी एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में परीक्षाओं में असफल होने के बाद 2,471 छात्रों ने अपनी जान खत्म कर ली. 2012 में यह संख्या 2,246 पर आँकी गई थी. विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से ज़्यादातर आत्महत्याओं का कारण पढ़ाई के लिए बच्चों पर माता-पिता का दवाब और अच्छे रिजल्ट की उम्मीद थी. इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि माता-पिता की तरफ से बच्चों पर पढ़ाई और करियर का दवाब बहुत बड़ा है. महाराष्ट्र और तमिलनाडू इसका उदाहरण हैं जहां बच्चों पर उनके माता-पिता द्वारा हाई स्कूल में विज्ञान और गणित लेने के लिए बाध्य किया जाता है ताकि उनका बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बन सकें. बच्चों के अपने सपने क्या है, वह क्या चाहते हैं उसे अनदेखा कर दिया जाता है.
नशे की गिरफ्त में बच्चे
किशोर बच्चों में माता-पिता द्वारा डाले गए अत्यधिक दवाब से तनाव में विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. जब बच्चों पर माता-पिता का अधिक दवाब बनने लगता है और उन्हें इससे निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझता, तब वह नशे की गिरफ्त में पड़ जाते हैं. बच्चे के मन मुताबिक काम करने से जब उन्हें रोका जाता है तब वह डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं और अपना भविष्य बिगाड़ लेते हैं. यहाँ माता-पिता को यह समझने की जरूरत है कि कहीं वह अपने बच्चे पर जरूरत से ज्यादा दवाब तो नहीं बना रहे हैं ?
माता-पिता का कर्तव्य होता है कि वे बच्चों के अच्छे मार्गदर्शक बनें. एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में माता-पिता को बच्चे के मन में आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत और उसकी उत्कृष्टता पर ध्यान दिलाना होता है. यह भी माता-पिता की ही ज़िम्मेदारी है कि उनका बच्चा उनकी बात दिल से स्वीकार करें न की ज़ोर जबर्दस्ती से.
लड़का और लड़की में भेदभाव
कई बार माता-पिता अपने बच्चों को लड़का या लड़की होने के अनुसार व्यवहार करने के लिए उन्हें कहते हैं. जैसे अगर लड़की है तो उन्हें यह नसीहत दी जाती है कि वो स्पोर्ट्स में भाग न लें और लड़कों को अपनी भावनाएं छिपाने की सलाह दी जाती है. ऐसा करने से बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
माता-पिता अपने बच्चों के करियर को लेकर परेशान तो रहते हैं साथ में बच्चों को भी वह यह बोलकर परेशान कर देते हैं कि ‘देखो, फलां की बेटी ने सीए कंपीट कर लिया. अगर अभी मेहनत नहीं करोगी /करोगे, और अपने भविष्य के बारे में नहीं सोचोगे, तो तुम्हारा फ्यूचर बर्बाद होने से कोई रोक नहीं सकता’ यह लाइन ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के सामने दोहराते हैं. लेकिन भविष्य और करियर को लेकर बच्चों पर ज्यादा दवाब भी, उनके करियर को बर्बाद कर सकता है. करियर ऑप्शन के बारे में ज्यादा सोचना या बेहतर रिजल्ट के लिए अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमता से ज्यादा दवाब डालना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. यह बच्चों की परफ़ोर्मेंस पर असर डाल सकता है, जो कि उनपर अतिरिक्त प्रेशर का कारण बन सकता है.
हाल ही में एक सर्वे आया, जिसमें कहा गया कि भारतीय माता-पिता अपने बच्चों की खुशियों के बजाए उनके करियर को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं. सर्वे के मुताबिक, 51 फीसदी माता-पिता के लिए बच्चों की खुशी से ज्यादा उनका सफल करियर महत्वपूर्ण होता है. बच्चों का करियर कौन चुने ? अभिभावक या बच्चा खुद, यह सबसे बड़ा सवाल है. इस पर एक महान व्यक्ति का कहना है कि बच्चे को पालना एक बीस वर्षीय प्लान है. अगर इस पर ढंग से काम लिया गया तो आपकी ज़िंदगी बेहतर होगी, नहीं तो ताउम्र बच्चे को पालना पड़ सकता है. कौन नहीं चाहता कि उनका बच्चा समाज में ऊंचा मुकाम हासिल करें, नाम और शोहरत कमाए, लेकिन इन सब के लिए जरूरी है पहले बच्चों की खुशियों को महत्व दिया जाए. उसकी काबलियत के अनुसार उसे मनचाहा करियर चुनने की आजादी देना.
नितिन होनहार छात्र है और सोशल साइंस पढ़ने में उसे खूब मजा आता है. लेकिन जब 11वीं में सब्जेक्ट चुनने की बारी आई तो उसने आर्ट्स लेना चाहा. लेकिन टीचर्स कहने लगें कि ‘अरे, तुम तो पढ़ाई में तेज हो, फिर आर्ट्स क्यों लेना चाहते हो ? तुम्हें तो साइंस पढ़ना चाहिए. उसके प्रिंसिपल ने भी वही बात दोहराई. उसके मम्मी पापा भी वही बात दोहराते हुए बोले कि नहीं तुम आर्ट्स नहीं ले सकते. दोस्त-रिश्तेदार क्या कहेंगे कि तुम्हारा बच्चा पढ़ने में तेज नहीं है. यहाँ माँ-बाप को इस बात की चिंता सताने लगी कि दोस्त और नातेरिशतेदार क्या कहेंगे. लेकिन ठहर कर एक बार यह नहीं सोचा कि उनके बच्चे क्या चाहते हैं. यह तो वही बात हुई कि बच्चे को जबर्दस्ती पानी में ठेल दो और कहो कि तैरो, नहीं तो लोग हसेंगे. फिर तो डुबना उसका तय ही है. हर साल 10वी और 12वीं की रिजल्ट के समय नंबर गेम में फँसकर बच्चे डिप्रेशन में चले जाते हैं या अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं.
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क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?
मनोचिकित्सक डॉ. नियति दीवान के मुताबिक, भारतीय माँ-बाप का लक्ष्य चुनने का तरीका सही नहीं है. हम विदेशी संस्कृति के दवाब में हैं. यह नहीं देखते कि हमारा बच्चा इससे खुश भी हैं या नहीं. लेकिन माँ-बाप को समझना चाहिए कि बच्चे की खुशी से महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है. बच्चा तभी अपनी मंजिल तक पहुँच पाएगा, जब वह वाकई में खुश होगा.
बच्चों पर सपने थोपना गलत
अक्सर देखा गया है माता-पिता अपने सपने बच्चों पर थौपते हैं. लेकिन यह बात नहीं समझते कि बच्चों के सपने उनसे अलग हो सकते हैं. यहाँ अगर बच्चा माता-पिता के सपने पूरा करता है, तो जीवन भर इस ग्लानि में गुजार देगा कि उसके अपने सपने पूरे नहीं हो पाएँ. और अगर माता-पिता के सपने नहीं पूरा कर पाया, तो इस अफसोस में रहेगा कि उनके सपने पूरे नहीं हो पाएँ. यह दोनों बातें बच्चों के लाइफ स्टाइल पर असर डाल सकता है जो उनके स्वास्थ्य पर आगे जाकर प्रभाव डाल सकता है. बच्चे जो भी करियर का चुनाव करता है अपने लिए, उसमें माता-पिता को साथ देना चाहिए. बच्चों में कितनी क्षमता है वह क्या कर सकता है क्या नहीं, माता-पिता से बेहतर कोई नहीं जान सकता.
करियर प्रेशर में सेहत का ध्यान
हाई मार्क्स के लिए सेहत का ध्यान न रखना और शारीरिक क्षमता से ज्यादा पढ़ना, अपने दोस्त या कॉलेजमेट से बेहतर कॉलेज या प्लेसमेंट प्राप्त करने की ज्यादा फिक्र, अच्छी सैलरी वाली नौकरी पाने की चिंता, जबतर्दस्ती थोपे गए करियर का दवाब, अपने मनपसंद करियर के न चुन पाने का दुख आदि, बच्चे को कई स्वास्थ्य समस्याएँ प्रदान कर सकता है, जो की बच्चे के भविष्य के लिए हानिकारक है और यहाँ तक कि उनके लिए जानलेबा भी साबित हो सकता है.
करियर प्रेशर की वजह से बच्चे कई समस्याओं से घिर सकते हैं, जैसे कि हाइपरटेंशन, डिप्रेशन, एंग्जायटी, दिल की बीमारी, शारीरिक कमजोरी, सिरदर्द, माइग्रेन, सुसाइट टेंडेंसी आदि.
माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे के व्यवहार और भावनाओं पर नजर रखें. बच्चे के साथ विश्वास बना कर चलें. उनकी बातों का विरोध न कर धर्य से उनकी बात सुनें. बच्चे पर किसी खास करियर या अपनी उम्मीदों का दवाब न बनाएँ. बच्चे जिस भी फील्ड में जाना चाहता है उसमें उसका साथ दें.
हर इंसान की सोच और सपने अलग-अलग होते हैं. लेकिन माता-पिता के दवाब में आकर बच्चे अपने सपने भूल जाते हैं. लेकिन आज के पेरेंट्स को यह बात समझनी होगी कि जब वे अपने बच्चों के करियर के सपने सँजोएँ, तो बच्चों की रुचि का पूरा ध्यान रखें. क्योंकि सफलता उसी काम में मिलती है जिसमें इंसान की खुशी हो, जो वह करना चाहता हो. आज करियर की कमी नहीं है. आज वो समय भी नहीं रहा कि अपनी हॉबी को करियर न बनाया जा सके. बच्चों के जरिए अपनी अधूरी ख्वाइशों को पूरा करने या लोग क्या कहेंगे के बजाय बच्चों की ख्वाबों को आकार दें. बच्चे अपनी काबलियत के हिसाब से अपना करियर और ज़िंदगी बना लेंगे. आने वाले कल में हो सकता है यही बच्चे एपीजे अब्दुल कलाम, कलपना चावला, सचिन, सानिया बन जाएँ.
बच्चों के करियर के लिए फाइनेंशियल प्लानिग
सिर्फ 24 प्रतिशत माता-पिता अपने बच्चों के करियर के लिए वित्तीय रूप से तैयारी करते हैं. एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि इन अभिभावकों में ज़्यादातर परंपरागत विकल्पो, मसलन मेडिसिन और इंजीनियरिंग से लेकर गैर परंपरागत विकल्पों, मसलन फैशन डिजाइनिग और शेफ के रूप में अपने बच्चों का करियर बनाने को भविष्य के लिए पैसे जमा करते हैं.
अवीवा इंडिया की एक रिपोर्ट, सात शहरों में मुंबई, पुणे, बेंगलूर, कोलकाता, नयी दिल्ली, हैदराबाद तथा चेन्नई में 11,300 अभिभावकों के जवाब पर आधारित है. इसमें यह तथ्य सामने आया कि बच्चों के सपनों तथा इसके लिए उनके माता-पिता की वित्तीय तैयारियां में काफी अंतर है. अवीवा इंडिया की मुख्य अंजलि मल्होत्रा कहती हैं कि “भारत में बच्चे बड़े सपने देखते हैं लेकिन अभिभावक इसके लिए तैयारी में पीछे रह जाते हैं हालांकि, बच्चों की शिक्षा के लिए बजट उनकी प्राथमिकता होती है, लेकिन वास्तव में बचत प्रक्रिया के लिए कोई योजना नहीं बनाई जाती” रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि बच्चों की महत्वकांक्षाएं कुछ परंपरा से हटकर करियर विकल्पों की ओर जा रही है, वहीं अभिभावकों की इसके लिए तैयारी कमजोर है.