रेटिंग : 2 स्टार
निर्माता : नवीन शेट्टी ,श्लोक शर्मा, आरती काडव और अनुराग कश्यप
निर्देशक व लेखक : आरती काडव
कलाकार : विक्रांत मैसे, श्वेता त्रिपाठी, नंदू माधव, हंसल मेहता व अन्य
अवधि: एक घंटा 53 मिनट
ओटीटी प्लेटफॉर्म : नेटफ्लिक्स
इन दिनों साइंस फिक्शन को लेकर काफी लोग फिल्में बना रहे हैं. कुछ लोग साइंस फिक्शन के साथ उसमें दर्शनशास्त्र भी जोड़ रहे हैं .कुछ ऐसा ही प्रयास कई लघु फिल्मों के लिए पुरस्कृत फिल्मकार आरती काडव ने किया है. अफसोस वह बेहतरीन विषय वस्तु/कांसेप्ट को कहानी और पटकथा में सही ढंग से पेश करने में पूरी तरह से असफल रही है.
कहानी:
-फिल्म‘‘कार्गो’’की कहानी पृथ्वी पर हर सुबह आने वाले पुष्कर नामक ‘प्रे शिप’’की है. प्रे शिप पर मौत के बाद आने वाले इंसानो के साथ जो कुछ किया जाता है उसकी कहानी है.यह कहानी प्रहस्त( विक्रांत मैसे)नामक इंसान की है,जो कि साठ साल से ‘पुष्कर 634 ए’’पर कार्यरत है.तो वह बहुत ही मेकेनिकल हो गया है.कार्गो से मृत लोग आते हैं और प्रहस्त के पास वह अपने पास मौजूद सारी चीजें जमा कराने के बाद एक नए प्रोसेेस के साथ गुजरते हैं. प्रहस्त भी सारा काम मेकेनिकल तरीके से करता रहता है.अचानक प्रहस्त को एक सहायक युविश्का(श्वेता त्रिपाठी) मिलती है,जो कि इस नौकरी को लेकर बहुत उत्साहित है.उसे यह पहली नौकरी मिली है.यह लड़की अहसास करती है कि यह मस्ती वाला नहीं,बल्कि लार्जर आॅस्पेक्ट वाला काम है.वह यह जानने का प्रयास करती है कि आखिर जिंदगी का मतलब क्या है,यदि हर इंसान आकर सब कुछ देेने लगेे, तो उसके इस संसार में रहने का क्या मतलब है.इंटरवल के बाद फिल्म पूरी तरह से फिलाॅसाफिकल हो जाती है. इसमें कई छोटी-छोटी कहानियां है इसी के साथ एक कहानी प्रहस्त और मंदाकिनी की प्रेम कहानी भी है ,जोकि प्रहस्त की मृत्यु से पहले की है. एक दिन वह आता है, जब प्रहस्त को पुष्कर प्रेशिप से कार मुक्त कर दिया जाता है.
ये भी पढ़ें- प्रोड्यूसर होना एक बच्चे को जन्म देने जैसा है– नेहा धूपिया
लेखन व निर्देशन:
फिल्मकार आरती काडव ने एक बेहतरीन कॉन्सेप्ट/कथानक को चुना, मगर इस कॉन्सेप्ट को वह बेहतरीन कहानी और पटकथा में बदलने में पूरी तरह से असफल रही. इस तरह की विषय वस्तु वाली फिल्मों में हयूमर भी रखा जाना चाहिए, पर इस फिल्म में कहीं कोई ह्यूमर नहीं है. फिल्म बहुत ही ज्यादा धीमी गति से आगे बढ़ती है. जब फिल्म शुरू होती है ,तो लोगों को अहसास होता है कि इसमें स्वर्ग या नरक की कोई बात होगी. पर ऐसा कुछ नहीं है. फिल्म देखते देखते दर्शक बोर हो जाता है.
अभिनय:
यूं तो विक्रांत मैसे व श्वेता त्रिपाठी दोनों ही बेहतरीन अभिनेता है, पर अफसोस पटकथा की कमजोरियों और चरित्र चित्रण सही ढंग से ना होने के चलते दोनों अपनी अभिनय क्षमता का परिचय नहीं दे पाए. पूरी फिल्म में विक्रांत और श्वेता के बीच कोई केमिस्ट्री भी नजर नहीं आती है.