Serial Story: चाहत के वे पल- भाग 2

शेखर का मन हुआ अभी गौरा को जलील कर के हाथ पकड़ कर ले आए पर वह चुपचाप थके पैरों से औफिस न जा कर घर ही लौट आया. बच्चे हैरान हुए. वह चुपचाप बैडरूम में जा कर लेट गया. बेहद थका, व्यथित, परेशान, भीतरबाहर अनजानी आग में झुलसता, सुलगता… ये सब चीजें, यह घर, यह परिवार कितनी मेहनत, कितने संघर्ष और कितनी भागदौड़ के बाद व्यवस्थित किया था. आज अचानक जैसे सब कुछ बिखरता सा लगा. बेशर्म, धोखेबाज, बेवफा, मन ही मन पता नहीं क्याक्या वह गौरा को कहता रहा.

शेखर अपने मातापिता की अकेली संतान था. उस के मातापिता गांव में रहते थे. गौरा के मातापिता अब दुनिया में नहीं थे. वह भी इकलौती संतान थी. शेखर की मनोदशा अजीब थी. एक बेवफा पत्नी के साथ रहना असंभव सा लग रहा था. पर ऐसा क्या हो गया… उन के संबंध तो बहुत अच्छे हैं. पर गौरा को उस के प्यार में ऐसी क्या कमी खली जो उस के कदम बहक गए… अगर वह ऐसे बहकता तो गौरा क्या करती, उस ने हालात को अच्छी तरह समझने के लिए अपना मानसिक संयम बनाए रखा.

गौरा जैसी पत्नी है, वह निश्चित रूप से अपने पति को प्यार से, संयम से संभाल लेती, वह इतने यत्नों से संवारी अपनी गृहस्थी को यों बरबाद न होने देती… तो वह क्यों नहीं गौरा की स्थिति को समझने की कोशिश कर सकता? वह क्यों न बात की तह तक पहुंचने की कोशिश करे? बहुत कुछ सोच कर कदम उठाना होगा.

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2 घंटे के बाद गौरा आई, अब तक बच्चे खेलने बाहर जा चुके थे. शेखर को अकेला लेटा देख वह चौंकी, फिर प्यार से उस का माथा सहलाते हुए उस के पास ही अधलेटी हो गई, ‘‘आप ने मुझे फोन क्यों नहीं किया? मैं फौरन आ जाती.’’

‘‘रचना को छोड़ कर?’’

‘‘कोई आप से बढ़ कर तो नहीं है न मेरे लिए,’’ कहते हुए गौरा ने शेखर के गाल पर किस किया.

शेखर गौरा का चेहरा देखता रह गया फिर बोला, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘कैसी है तुम्हारी फ्रैंड?’’

‘‘ठीक है,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे कर गौरा खड़ी हो गई, ‘‘चाय बना कर लाती हूं, आप ने लंच किया?’’

‘‘हां.’’

गौरा गुनगुनाती हुई चाय बनाने चल दी. शेखर स्तब्ध था. इतनी फ्रैश, इतनी खुश क्यों? ऐसा क्या हो गया? बस, इस के आगे शेखर कोई कल्पना नहीं करना चाहता था. उस का दिमाग एक अनोखी प्लानिंग कर चुका था. शेखर अब सैर पर नियमित रूप से जाने लगा था. वह स्मार्ट था, मिलनसार था, उस ने धीरेधीरे सैर करते हुए ही अनिरुद्ध से दोस्ती कर ली थी. अपना नाम शेखर ने विनय बताया था ताकि गौरा तक उस का नाम न पहुंचे. शेखर बातोंबातों में अनिरुद्ध से दोस्ती बढ़ा कर, उस का विश्वास पा कर, उस से खुल कर उन के रिश्ते का सच जानना चाहता था. दोनों की दोस्ती दिनबदिन बढ़ती गई. शेखर गौरा का नाम लिए बिना अपने परिवार के बारे में अनिरुद्ध से बातें करता रहता था. अनिरुद्ध ने भी बताया था, ‘‘सीमा लखनऊ में अच्छे पद पर है. वह अपनी जौब छोड़ कर बनारस नहीं आना चाहती. मैं ही ट्रांसफर करवाने की कोशिश कर रह हूं.’’

शेखर हैरान हुआ. इस का मतलब यह तो अस्थाई रिश्ता है, इस का क्या होगा. लेकिन शेखर को इंतजार था कि अनिरुद्ध कब गौरा की बात उस से शेयर करेगा. कभी शाम को शेखर अनिरुद्ध को कौफी हाउस ले जाता, कभी बाहर लंच पर बुला लेता. कहता, ‘‘मेरी पत्नी मायके गई है, बोर हो रहा हूं.’’ उस की कोशिश अनिरुद्ध से ज्यादा से ज्यादा खुलने की थी और एक दिन उस की कोशिश रंग लाई. अनिरुद्ध ने उस के सामने अपना दिल खोल कर रख दिया, ‘‘यहां मेरी दोस्त है गौरा.’’

शेखर के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. हथेलियां पसीने से भीग उठीं. एक पराए पुरुष के मुंह से अपनी पत्नी के बारे में सुनना आसान नहीं था.

अनिरुद्ध कह रहा था, ‘‘बहुत ही अच्छी है, हम साथ पढ़ते थे. अचानक फेसबुक पर मिल गए.’’

‘‘अच्छा? उस की फैमिली?’’

‘‘पति है, 2 बच्चे हैं, उन में तो गौरा की जान बसती है.’’

‘‘फिर तुम्हारे साथ कैसे?’’

‘‘बस यों ही,’’ कह अनिरुद्ध ने बात बदल दी. शेखर ने भी ज्यादा नहीं पूछा था. अब अनिरुद्ध अकसर शेखर से गौरा की तारीफ करता हुआ उस की बातें करता रहता था. उस ने यह भी बताया था कि पढ़ते हुए एकदूसरे के अच्छे दोस्त थे बस. कोई प्रेमीप्रेमिका नहीं थे, और आज भी. अनिरुद्ध चला गया था पर शेखर बहुत देर तक बैंच पर बैठा बहुत कुछ सोचता रहा. फिर उदास सा घर की तरफ चल पड़ा. आज शनिवार था. छुट्टी थी. गौरा ने थोड़ी देर बाद ही उस की कमर में पीछे से हाथ डालते हुए पूछा, ‘‘कहां खोए हुए हो? जब से सैर से आए हो, चेहरा उतरा हुआ है, क्या हुआ?’’

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शेखर को आज गौरा की बांहें जैसे कांटे सी चुभीं. उस के हाथ दूर करते हुए बोला, ‘‘कुछ नहीं, बस जरा काम की टैंशन है.’’

‘‘उफ,’’ कह कर गौरा उस का कंधा थपथपा कर किचन की तरफ बढ़ गई. आजकल शेखर अजीब मनोदशा में जी रहा था. गौरा सामने आती तो उसे कुछ कह न पाता था. घर के बाहर होता तो उस का मन करता, जा कर गौरा को पीटपीट कर अधमरा कर दे… अनिरुद्ध को उस के सामने ला कर खड़ा करे. कभी सालों से समर्पित पत्नी का निष्कपट चेहरा याद आता, कभी अनिरुद्ध की बातें याद आतीं. आज उस ने सोच लिया, छुट्टी भी है,

वह अनिरुद्ध से उन दोनों के संबंध के बारे में कुछ और जान कर ही रहेगा. शेखर ने अनिरुद्ध को फोन किया, ‘‘क्या कर रहे हो? लंच पर चलते हैं.’’

‘‘पर तुम्हारी फैमिली भी तो है?’’

‘‘आज उन सब को बाहर जाना है किसी के घर, मैं वहां बोर हो जाऊंगा. चलो हम दोनों भी लंच करते हैं कहीं.’’

‘‘ठीक है, आता हूं.’’

दोनों मिले. शेखर ने खाने का और्डर दे कर इधरउधर की बातें करने के बाद पूछा, ‘‘और तुम्हारी दोस्त के क्या हाल हैं? कहां तक पहुंची है बात, दोस्ती ही है या…?’’

‘‘वह सब कहने की बात थोड़े ही है, दोस्त,’’ अनिरुद्ध मुसकराया.

आगे पढ़ें- अनिरुद्ध ने उस की बात बीच में ही काट कर कहा…

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Serial Story: चाहत के वे पल- भाग 3

‘‘मतलब? क्या तुम शारीरिक रूप से भी…’’

अनिरुद्ध ने उस की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘चलो आज बताता हूं तुम्हें. असल में गौरा बहुत अच्छी है. वह हमेशा पहले भी अपनी मर्यादा में रहने वाली लड़की थी और आज भी वह बहुत अच्छी पत्नी और मां है. हम जब शुरू में मिले तो बातें बहुत आम सी होती रहीं. एक दिन जब गौरा मुझ से मिलने मेरे फ्लैट पर आई तो मैं ने पहली बार उस का हाथ पकड़ा. मुझे अचानक एक शेर याद आया था जो मैं ने उसे सुनाया भी था. उस का हाथ छुआ तो लगा, काश, सारी दुनिया उस के हाथ की तरह गरम और सुंदर होती. फिर मैं अपनेआप को रोक नहीं पाया था और मैं ने उसे बांहों में भर लिया. उस ने खुद पर नियंत्रण रखने की कोशिश की थी, लेकिन फिर वह सब हो गया जो होना नहीं चाहिए था. चाहत के उन पलों में उस ने खुद स्वीकार कर लिया कि उन पलों में वैसी चाहत, प्यार, सरसता उसे अपने पति के साथ अब नहीं मिलती.

उस ने बताया उस का पति है तो बहुत अच्छा इनसान पर अंतरंग पलों में उसे उस का मशीनी अंदाज उतना नहीं छूता जितना उसे मेरा स्पर्श अनोखे उत्साह से भर जाता है. उन पलों की मेरी चाहत में वह खो सी जाती है. उस का पति तो उन पलों को भी जरूरी काम समझता है. वह अंतरंग संबंधों का 1-1 पल जीना चाहती है, एक खुशनुमे माहौल में रोमांटिक समर्पण चाहती है. वह अपने पति को धोखा नहीं देना चाहती, वह अपने पति को बहुत प्यार करती है पर उस के मन के किसी कोने में बसी एक अधूरी सी कसक मेरे साथ मिटती है. कभीकभी पल भर में भी जीवन के अनंत पलों को एकसाथ जीया जा सकता है.

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गौरा उस पल यही महसूस करती है जब मेरे साथ होती है,’’ अनिरुद्ध कहे जा रहा था, खाना कब से सर्व हो कर ठंडा हो रहा था. शेखर बिलकुल सांस रोके अनिरुद्ध की बातें सुन रहा था, जो बताता जा रहा था, ‘‘गौरा जैसे एक प्यासा रेगिस्तान है और शायद उस का पति खुल कर बरसने की कला नहीं जानता. उस के जीवन में साथ रहना, सोना, खाना, पारिवारिक कार्यक्रमों में जाना सब कुछ है पर प्यार की उष्णता न जाने कहां खो गई है… अपने पति का साथ गौरा को किसी महोत्सव से कम नहीं लगता, उस का पति स्नेही भी है पर भावनाओं के प्रदर्शन में अत्यंत अनुदार वह अकसर भूल जाता है कि बच्चों और घर की अन्य जिम्मेदारियों के बीच चक्करघिन्नी सी नाचती गौरा भी प्यार चाहती है.’’ शेखर जो अब तक स्वयं को जीने की कला में पारंगत मानता था आज उसे एहसास हुआ कि उस से चूक हुई है.

‘‘आज तो मैं ने तुम्हें सब बता दिया, मेरे दिल पर भी एक बोझ सा है कि मैं भी सीमा के साथ गलत कर रहा हूं पर क्या करूं, अपने कैरियर के चलते मुझ से दूर रह कर भी उसे मेरी कमी नहीं खलती और यहां गौरा अपने पति के साथ रह कर भी चाहत भरे पल खोजती ही रह जाती है. शायद हमारे जीवन में कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है. मुझे लगता है गौरा को जब यह पता चलेगा कि मेरा ट्रांसफर कभी भी हो सकता है तो वह बहुत दुखी होगी.’’

शेखर चौंका, ‘‘क्या? तुम्हारा ट्रांसफर?’’

‘‘हां, कोशिश कर रहा हूं, सीमा तो आएगी नहीं, बच्चे भी तो हैं. मुझे ही जाने की कोशिश करनी पड़ेगी. घरगृहस्थी सिर्फ सीमा की जिम्मेदारी तो नहीं है न.’’ सामने बैठा व्यक्ति शेखर को अचानक अपने से ज्यादा समझदार लगा. बिल शेखर ने

ही दिया. फिर दोनों अपनेअपने घर लौट आए. शेखर घर आया, बच्चे नहीं दिखे तो पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं?’’

‘‘एक बर्थडे पार्टी में गए हैं.’’

‘‘तो इस का मतलब हम दोनों अकेले हैं घर में.’’

गौरा ने ‘हां’ में सिर हिलाया. रास्ते भर शेखर को गुस्सा तो बहुत आ रहा था गौरा पर, नफरत भी हो रही थी पर गौरा को देखते ही वह उस से नाराज नहीं हो पाया. उस ने गौरा को बांहों में उठा लिया. गौरा हैरान हुई, फिर उस के गले में बांहें डाल दीं. शेखर खुद पर हैरान था. वह कैसे यह सब कर रहा है. उस ने गौरा पर प्यार की बरसात कर दी. गौरा हैरान सी मुसकराते हुए उस बरसात में नहाती रही. शेखर ने खुद नोट किया, सचमुच सालों हो गए थे गौरा के साथ ऐसा समय बिताए, सालों से वह मशीन बन कर ही तो करता है सारे काम. गौरा के चेहरे पर फैला संतोष और सुख पता नहीं क्याक्या समझा गया शेखर को.

बहुत देर तक शेखर ने गौरा को अपनी बांहों से आजाद नहीं किया तो गौरा हंस पड़ी, ‘‘आप को क्या हो गया आज?’’

‘‘क्यों, अच्छा नहीं लगा?’’

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‘‘मैं तो इन पलों को ढूंढ़ती ही रह जाती हूं, मुझे क्यों नहीं अच्छा लगेगा?’’ शेखर के कानों में अनिरुद्ध की आवाज गूंज गई. वह बहुत देर तक गौरा से बातें करता रहा, बहुत समय बाद दोनों ने बहुत ही अच्छा समय साथ बिताया. बच्चे आ गए तो दोनों उन से बातें करने में व्यस्त हो गए.

अगले 2 दिन शेखर अनिरुद्ध से कोई बात नहीं कर पाया. सैर पर भी नहीं जा पाया. वह बहुत व्यस्त था. तीसरे दिन सैर करते समय अनिरुद्ध मिला तो उस ने बताया, ‘‘मेरा ट्रांसफर हो गया है. मैं अगले हफ्ते चला जाऊंगा.’’

शेखर चौंका, ‘‘तुम्हारी दोस्त? उसे पता है?’’

‘‘नहीं, आज शाम को फोन पर बताऊंगा.’’

‘‘क्यों? वह आई नहीं मिलने?’’

‘‘नहीं, उस के बच्चों की परीक्षाएं हैं. वह व्यस्त है.’’

‘‘तो क्या उस से मिले बिना ही चले जाओगे?’’

‘‘शायद.’’

शेखर जब शाम को औफिस से आया तो उस ने गौरा का चेहरा पढ़ने की कोशिश की. क्या वह जानती है अनिरुद्ध जा रहा है, क्या वह उदास है? उसे कुछ अंदाजा नहीं हुआ. गौरा बच्चों को पढ़ा रही थी. शेखर फ्रैश हो कर आया तो बच्चों से कहने लगी, ‘‘अब तुम दोनों पढ़ो, मैं पापा के लिए चाय बनाती हूं.’’ बच्चे ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चले गए. शेखर ने चाय पीते हुए थोड़ीबहुत इधरउधर की बातें करने के बाद कहा, ‘‘अरे, वह जो तुम्हारा दोस्त था, क्या नाम है उस का?’’

‘‘अनिरुद्ध.’’

‘‘हां, क्या हाल हैं उस के?’’

‘‘ठीक है, उस का ट्रांसफर हो गया है, वह जा रहा है.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘हां, 2 दिन बाद,’’ शेखर को गौरा के चेहरे पर विषाद की एक रेखा भी नहीं दिखी, वह हैरान हुआ जब गौरा ने मुसकराते हुए आगे बात की, ‘‘और बताओ, दिन कैसा रहा?’’

‘‘ठीक रहा. तो वह जा रहा है?’’

‘‘तो उसे तो जाना ही था न. उस का परिवार है वहां. चलो, अब आप टीवी देखो, मैं जल्दी से खाने की तैयारी कर बच्चों की पढ़ाई देखती हूं,’’ कहते हुए गौरा उस के बाल छेड़ती मुसकरा दी. शेखर समझ ही नहीं पाया कि वह अनिरुद्ध के जाने पर खुल कर चैन की सांस ले, ठहाका लगाए या गौरा को सीने से लगा ले. पलभर की देर किए बिना शेखर ने उठ कर जाती गौरा को पीछे से बांहों में भर लिया.

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