नीतू भी हंसने लगी. सुगंधा वहीं बैठी थीं. बोलीं, ‘‘अवनि, अपने ननदोई का मजाक उड़ा रही हो?’’
‘‘हां मां, बात ही ऐसी है.’’
सुगंधा अवनि का मुंह देखने लगीं कि क्या करूं इस लड़की का, ननदोई का मजाक खुलेआम उड़ा रही है… जो मन आए बोल देती है.
घूमने जाने का प्रोग्राम बना. अवनि ने नीतू से कहा, ‘‘दीदी, हर समय सूट, साड़ी पहनती हो? वैस्टर्न नहीं पहनतीं?’’
‘‘हां, मांजी को साड़ी ही पसंद है.’’
अवनि को जैसे कुछ याद आया. बोली, ‘‘आप उन से यह क्यों नहीं कहतीं बेबी को बेस पसंद है,’’ गाते हुए सलमान खान का ही स्टैप करने लगी तो कमरे में बैठी नीतू, उस के बच्चे, अजय हंसहंस कर लोटपोट हो गए.
बाहर बैठी सुगंधा ने उन की आवाजें सुनीं तो मन ही
मन कहा कि शायद छैलछबीली को फिर कोई हरकत सूझी होगी. पर अंदर ही अंदर वे नीतू के लिए अवनि का प्यार देख कर खुश भी थीं. बेटी मायके आ कर कभी इतनी खुश नहीं दिखाई दी थी जितनी वह अवनि के साथ थी.
तभी उमा का फोन आ गया. अवनि के बारे में पूछती रहीं. उस पर थोड़ी सख्ती रखने के लिए समझाती रहीं. सुगंधा ने चुपचाप सब सुना.
नीतू 1 हफ्ते के लिए ही आई थी. अभी उसे आए तीसरा ही दिन था. सुगंधा के मोबाइल पर उन के भाई सुनील का फोन आया. उन का बेटा विजय अपनी फैमिली के साथ मुंबई घूमने आ रहा था. सुगंधा इस फोन के बाद काफी गंभीर दिखीं. उन्होंने जब सब को विजय के आने के बारे में बताया, तो महेश और अजय तो सामान्य दिखे पर जब सुगंधा और नीतू ने एकदूसरे को देखा तो दोनों के चेहरों पर छाया तनाव अवनि से छिप न पाया.
उस के बाद अवनि ने पूरा दिन नीतू को उदास और चुप ही देखा. अब तक हंसतीमुसकराती नीतू बिलकुल चुप हो गई थी. उस के बच्चे शांत, आज्ञाकारी बच्चे थे. वे कभी कुछ पढ़ते, कभी कार्टून देख लेते, कभी बाहर बच्चों के साथ खेल आते.
अगले दिन महेश और अजय के जाने के बाद जब बच्चे टीवी देख रहे थे, सुगंधा के कमरे से नीतू की धीमी सी आवाज आई. जानबूझ कर बाहर खड़ी अवनि सुनने की कोशिश करने लगी. वह अब इस घर को अपना घर समझती थी. वह जानना चाह रही थी कि ऐसी क्या बात है जो दोनों के चेहरों का रंग विजय का
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नीतू कह रही थी, ‘‘मां, मैं सुबह ही पुणे निकल जाती हूं.’’
‘‘नहीं बेटा, अभी इतनी मुश्किल से तो तेरा आना हुआ है.’’
‘‘नहीं मां, मैं विजय की शकल भी नहीं देखना चाहती.’’
‘‘अपनी फैमिली के साथ आ रहा… तू चिंता मत कर… इग्नोर कर…’’
‘‘मां, आप हमेशा यही कहती रहोगी इग्नोर कर… मुझे नहीं देखनी है उस की शक्ल.’’
बाहर खड़ी अवनि समझ गई. वह अंदर आ कर दोनों के साथ आराम से बैठ गई. फिर बोली, ‘‘दीदी, आप क्यों जाएंगी? यह आप का मायका है, आप का घर है, मैं आप लोगों को अपना मान चुकी हूं, आप के दुख अब मेरे दुख हैं… आप लोग भी मुझे अपना समझ कर अपनी परेशानी शेयर नहीं करेंगे?’’
‘‘जरूर करूंगी अवनि, तुम ने तो मेरा दिल जीत लिया है,’’ कह नीतू जरा नहीं झिझकी. खुल कर बताया, ‘‘विजय मेरे मामा का बेटा है, बदतमीज, चरित्रहीन, मेरी शादी से कुछ दिन पहले यहां आया था. उस ने मेरे साथ बदतमीजी करने की कोशिश की. मेरे चिल्लाने, गुस्सा होने पर फौरन चला गया, पर उसे कुछ कहने के बजाय मां ने मुझे ही चुप रह कर इग्नोर करने के लिए कहा… मेरी शादी में नहीं आया था… अब आ रहा है पर मुझे उस की शक्ल भी नहीं देखनी है.’’
‘‘तो आप उस की शक्ल नहीं देखेंगी, दीदी.’’
‘‘पर वह आ रहा है न?’’
सुगंधा चुप थीं. अवनि ने कहा, ‘‘मां, आप ही नहीं, कई मांएं ऐसा करती हैं. बेटी को ही चुप करवा देती हैं… मांओं के चुप करवाने से बेटियों का जख्म और गहरा हो जाता है. आप ने सुन कर उसी समय विजय को 4 थप्पड़ लगा कर निकाल दिया होता तो आज दीदी जाने की बात न करतीं. खैर, दीदी आप चिंता न करो. एक तो मैं यह भी देख रही हूं कि कोई भी मुंबई यानी यहां चला आता है और मां का कितना काम बढ़ जाता है. मां कुछ कहती नहीं, पर थक जाती हैं. मैं भी औफिस में रहती हूं. चाह कर भी मां की हैल्प नहीं कर पाती और दीदी को तो मैं जरा भी परेशान नहीं होने दूंगी,’’ कहते हुए अवनि ने तुरंत अजय को फोन किया, ‘‘अजय, तुम्हें इतना करना है कि अपने मामा को फोन कर के कहो कि हम सब अचानक बाहर घूमने जा रहे हैं. मां को पता नहीं था… तुम ने सरप्राइज देने के लिए पहले ही टिकट्स बुक किए हुए थे.’’
उधर से अजय ने क्या कहा, वह तो किसी को भी पता नहीं चला पर अवनि के होंठों पर एक प्यारी मुसकान दिख रही थी. वह बोल रही थी, ‘‘अभी करो फोन… ओके… लव यू टू बाय.’’
नीतू के चेहरे पर मुसकान फैल गई. सुगंधा भी मुसकराईं तो अवनि उन की गोद में सिर रख कर लेट गई, ‘‘मां, ये सब करना पड़ता है… गऊ टाइप औरत बन कर अब काम नहीं चलता. हमारा तेजतर्रार होना आज की जरूरत है. अजय मुझे आप के सीधेपन के कई किस्से सुना चुका है. पर आप को चिंता करने की जरूरत नहीं. अब मैं आ गई हूं.’’
उस ने यह जिस ढंग से कहा उस पर सुगंधा और नीतू को जोर से हंसी आ गई.
सुगंधा अवनि का सिर सहलाने लगीं तो वह फिर झटके से उठी, ‘‘नहीं मां, बाल नहीं छेड़ने हैं मेरे… अभी स्ट्रेटनिंग की है.’’
सुगंधा ने हंस कर अपने माथे पर हाथ मारा. तभी उन का फोन बज उठा. उमा का नाम देख वे रूम से बाहर चली गईं.
उमा ने हालचाल पूछा. अपने स्वामीजी की तारीफ की. फिर पूछा, ‘‘तुम्हारी छैलछबीली के क्या हाल हैं?’’
‘‘जीजी, यह छैलछबीली तो मेरे मन को भा गई,’’ कह कर उमा को अवाक कर फोन रख वे वापस नीतू और अवनि के पास चली आईं.
अवनि ने पूछा, ‘‘बूआ क्या कह रही थीं?’’
‘‘कुछ नहीं, बस हालचाल…’’
‘‘क्यों मां, यह नहीं पूछा कि छैलछबीली क्या गुल खिला रही है?’’
सुगंधा को जैसे करंट लगा. उन के चेहरे का रंग उड़ गया, ‘‘यह क्या कह रही हो, बेटा?’’
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अवनि अब हंस कर लोटपोट हो रही थी, ‘‘डौंट वरी मां, मैं ने अपना यह नाम ऐंजौय किया, आप दोनों जिस दिन ये सब बात कर रही थीं, मैं ने उस दिन भी ऐसे ही सुना था जैसे आज आप की और दीदी की बात सुनी… वह क्या है न मां अभी बताया न कि गऊ टाइप बन कर जीने का जमाना गया. सब पर नजर रखनी पड़ती है, पर मैं सचमुच आप लोगों को प्यार करती हूं,’’ कह कर अवनि सुगंधा के गले लग गई.
नीतू उन्हें घूर रही थी, ‘‘मां, यह क्या किया आप लोगों ने?’’
‘‘सौरी… सौरी, बाबा,’’ कह कर सुगंधा ने नाटकीय ढंग से कान पकड़े तो तीनों हंसने लगीं. अवनि ने फर्जी कौलर ऊपर किया, ‘‘देखा, इस छैलछबीली ने सास को कान पकड़वा दिए.’’
सब की मीठी सी हंसी से कमरा गूंज उठा.
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