दुख भरे दिन बीत रे

वरुण समुद्र के किनारे पत्थर पर बैठा विचारों में डूबा हुआ चुपचाप अंधेरे में समुद्र के ठाठें मारते पानी को घूर रहा था. समुद्र की लहरें जब किनारे से टकरातीं तो कुछ क्षण उस के विचारों का तारतम्य अवश्य टूटता मगर विचार थे कि बारबार उसे अपने पंजों में जकड़ लेते. वह सोच रहा था, आखिर, कैसे पार पाए वह अपने जीवन की इस छोटी सी साधारण लगने वाली भीषण समस्या से.

बात बस, इतनी सी थी कि उस की मां व पत्नी में जरा भी नहीं बनती थी. आएदिन छोटीछोटी बातों पर घर में महाभारत होता. कईकई दिन तक शीतयुद्ध चलता और वह घड़ी के पेंडुलम की तरह मां व पत्नी के बीच में झूलता रहता.

दोनों ही न समझ पातीं कि उस के दिल पर क्या गुजर रही है. दोनों ही रिश्ते उसे कितने प्रिय हैं. मां जब सुमी के लिए बुराभला कहतीं तो उसे मां पर गुस्सा आता और सुमी जब मां के लिए बुराभला कहती तो उसे उस पर गुस्सा आता. मगर वह दोनों पर ही गुस्सा न निकाल पाता और मन ही मन घुटता रहता. उस के मानसिक तनाव व आफिस की परेशानियों से किसी को कोई मतलब न था.

सासबहू के झगड़े का मुद्दा अकसर बहुत साधारण होता. हर झगड़े की जड़ में बस, एक ही बात मुख्य थी और वह थी अधिकार की.

मां अपना अधिकार छोड़ना नहीं चाहती थीं और सुमी आननफानन में, कम से कम समय में अपना अधिकार पा लेना चाहती थी. दोनों आपस में जुड़ने के बजाय वरुण से ही जुड़ी रहना चाहती थीं. न मां बड़ी होने के नाते उदारता से काम लेतीं न सुमी छोटी होने के नाते मां के अहं को मान देती.

आज भी वह दोनों के झगड़ों से तंग आ कर यहां आ बैठा था. उस का मन घर जाने को बिलकुल नहीं हो रहा था. उस ने घड़ी पर नजर डाली. रात के 10 बज रहे थे. क्या करे क्या न करे…वह गहरी उधेड़बुन में था. कुछ तो करना ही होगा. सारी जिंदगी ऐसे तो नहीं गुजारी जा सकती. कल उस का बेटा सोनू बड़ा होगा तो क्या संस्कार सीखेगा वह…

इसी उधेड़बुन में डूबताउतराता हुआ वरुण घर आ गया. उसे घर आतेआते 11 बज गए. देर से आने के कारण मां व सुमी दोनों ही चिंतित थीं.

दोनों का एक ही संबल, एक ही आधार फिर भी एकदूसरे से न जाने क्यों प्रतिस्पर्धा है इन्हें. यही सब सोचता हुआ वरुण दोनों के चिंतित चेहरों पर एकएक नजर डालता हुआ सोने चला गया.

सुमी एक बार उस के बेडरूम में आई थी लेकिन आज उस की बदली हुई कठोर मुखमुद्रा देख कर वह लौट गई. वरुण चादर तान कर भूखा ही सो गया.

थोड़ी देर बाद सुमी बेडरूम में चुपचाप आ कर लेट गई. उस का रोज का क्रम था कि वह बेडरूम में आ कर दिन भर की घटना पर चर्चा करती, रोती, ताने कसती. वरुण उसे मनाता, समझाता. लेकिन आज उस का सुमी से बात करने का बिलकुल भी मन नहीं था. सोचने लगा, आखिर कब तक वह यही सब करता रहेगा. 5 साल पूरे हो गए उस के विवाह को, अब तो मां व सुमी को आपस में समझौता करना आ जाना चाहिए.

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मगर आज वरुण को एक बात का एहसास हो गया था कि उस की कठोर मुखमुद्रा देख कर मां व सुमी दोनों ने ही उस से एक भी शब्द नहीं कहा था. वह आत्मविश्लेषण करने लगा कि कहीं यह उस की स्वयं की कमजोरी तो नहीं, जिस की वजह से बात बिगड़ रही है.

वह दोनों को एकसाथ खुश रखना चाहता

है. इसलिए वह मां की सुख- सुविधाओं का खुद ध्यान रखता है. मां की सेवा व उन्हें खुश रखना वह अपना फर्ज भी समझता है. शायद इसलिए मां के प्रति सुमी के हृदय में कर्तव्य व जिम्मेदारी

की भावना विकसित नहीं हो पाई बल्कि उस का स्थान ईर्ष्याजनित प्रतिस्पर्धा ने ले लिया.

सुमी भी उस की कमजोर रग है. वह उस की नाराजगी ज्यादा दिन बरदाश्त नहीं कर पाता इसलिए मां की तरफ से वह उसे खुद ही मनाता रहता है.

मगर मां चाहती हैं कि वह सुमी की गलतियों के कारण उस के प्रति उदासीन रहे, उसे टोके. जबकि वह उस की कमियों के साथ समझौता करना चाहता है. दोनों में उसे अपने पक्ष में करने की होड़ सी है.

लेकिन आज की घटना व अपने रुख से उसे लग रहा था कि उसे दोनों के बीच से हट जाना चाहिए. उस का दोनों को खुश करने की कोशिश करने वाला रुख उन्हें एकदूसरे से अलग करता है. जब वह दोनों के प्रति एकसाथ तटस्थ हो जाएगा तो शायद दोनों उस से जुड़ने के बजाय एकदूसरे से जुड़ने की कोशिश करेंगी. बहाव जब एक तरफ रुकेगा तो दूसरी तरफ बहेगा ही.

इसी उधेड़बुन में रात बीत गई. सुबह चाय का इंतजाम किए बिना वह उठ कर बाथरूम चला गया और नित्यकर्म से निबट कर अखबार पढ़ने लगा. अखबार पढ़ कर वह तैयार होने चला गया और तैयार हो कर आया तो सुमी ने मेज पर नाश्ता लगा दिया. उस ने चुपचाप नाश्ता किया मगर सुमी की तरफ देखा तक नहीं. फिर अपना बैग उठाया और दोनों से कोई बात किए बिना आफिस चला गया.

दूसरा दिन भी ऐसा ही बीता. सुमी ने सोचा, शायद रात को शारीरिक इच्छा के हाथों वह मजबूर हो जाएगा. लेकिन उस ने अपनी इच्छाशक्ति से स्वयं को तटस्थ बनाए रखा.

4-5 दिन इसी तरह बीत गए. उसकी तरफ से बातचीत के कोई आसार न देख कर सासबहू दोनों ने आपस में अब थोड़ा- बहुत बातचीत करना शुरू कर दिया था.

अगले दिन आफिस जाने से  पहले वह नाश्ता कर रहा था कि मां उस की बगल वाली कुरसी पर आ कर बैठ गईं और कराहती हुई बोलीं, ‘‘वरुण, डाक्टर से समय ले लेता तो मुझे डाक्टर को दिखा देता. मेरी तबीयत ठीक नहीं है. लगता है बुखार है.’’

‘‘बुखार है…’’ वरुण के मुंह से तुरंत निकला लेकिन दूसरे ही पल उस ने अपनी आवाज संयत कर ली. माथा छू कर देखा, मां को सचमुच बुखार था.

वरुण का मन छटपटा उठा. मन में आया कि दफ्तर से आधे दिन की छुट्टी ले कर मां को डाक्टर को दिखा लाए, लेकिन मन मजबूत कर लिया. वह चाहता था कि मां की तबीयत खराब है तो उन्हें डाक्टर को दिखाना चाहिए, उन की देखभाल होनी चाहिए, यह जिम्मेदारी की भावना सुमी के मन में आए.

‘‘बुखार तो नहीं है, मां,’’ वरुण लापरवाही से बोला, ‘‘यों ही सर्दीजुकाम हो गया होगा. काम वाली आएगी तो उस से सर्दीजुकाम की कोई टेबलेट मंगवा लेना.’’

मां चौंक कर उसे देखने लगीं. बुखार से भी ज्यादा शायद बेटे का व्यवहार उन्हें आहत कर गया था. वरुण ने किचन के दरवाजे पर खड़ी सुमी के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की जिस से उसे साफ नजर आ रहा था, मानो वह कह रही हो कि कितने लापरवाह हो, लेकिन उस ने कहा कुछ नहीं.

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शाम को वह जब आफिस से आया तो सीधे अपने कमरे में चला गया. रात के खाने तक उस ने मां की तबीयत के बारे में नहीं पूछा. मां अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी थीं. रात में जब वह खाने के लिए नहीं आईं तब उस ने जैसे अचानक याद आने वाले अंदाज में सुमी से पूछा, ‘‘मां का बुखार कैसा है?’’

‘‘वैसा ही है,’’ उस ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

वह देखना चाहता था कि आखिर सुमी मां की बीमारी कब तक देख सकती है. रात जब बिस्तर पर लेटा तो पलकें नहीं झपक पा रही थीं. बारबार मां पर ध्यान जा रहा था. सुमी कुहनी से आंखें ढके चुपचाप लेटी थी. मां के कमरे से कराहने की हलकी सी आवाज आ रही थी.

वरुण सोच रहा था कि अब तो मां को सुबह डाक्टर के पास ले जाना ही पड़ेगा. इधर सुमी के प्रति उस के मन में वितृष्णा का भाव जागा, ‘कितनी कठोर है यह.’

थकान के कारण वरुण को झपकी लगी ही थी कि किसी के बात करने की आवाज से आंखें खुल गईं. पलट कर देखा तो सुमी पलंग पर नहीं थी. वह धीरे से उठ कर मां के कमरे की ओर गया. मां के कमरे में रोशनी हो रही थी. उस ने परदे की ओट से अंदर झांका. देखा, सुमी मां का माथा सहला रही है.

‘‘आप का बुखार तो काफी तेज हो गया है, मांजी. यह गोली ले लीजिए,’’ कह कर सुमी ने मां को हाथ के सहारे से उठाया, गोली खिलाई और लिटा दिया. फिर खुद बगल में बैठ कर धीरेधीरे सिर दबाने लगी.

‘‘ये भी तो इतने लापरवाह हैं. ऐसी भी क्या नाराजगी है मां से. नाराज हैं तो नाराज रहते पर कम से कम डाक्टर को तो दिखा लाते,’’ सुमी कह रही थी.

‘‘ऐसा पहले तो कभी नहीं किया वरुण ने. पता नहीं इतनी नाराजगी किस बात की है. तुम से कुछ कहा?’’ मां नेपूछा.

‘‘नहीं, मुझ से तो आजकल बात ही नहीं करते. मेरे से न सही कम से कम आप से तो बात करते. मां से कहीं कोई ऐसे नाराज होता है.’’

वरुण को बेहद सुखद आश्चर्य हुआ. वह लौट कर पलंग पर आ लेटा. सोचने लगा कि पिछले 5 सालों में ऐसा कभी हुआ नहीं कि सुमी ने मां के सिरहाने बैठ कर उन का हालचाल पूछा हो. खाना, नाश्ता, चाय जैसे उस के लिए बनाया वैसे ही मां को दे दिया और बस, कर्तव्यों की इतिश्री हो गई.

वरुण सुबह जब अखबार पढ़  रहा था तो सुमी उस के पास आ कर बैठ गई और बोली, ‘‘सुनो, आप आफिस जाने से पहले मां को डाक्टर को दिखा लाओ. उन का बुखार बढ़ रहा है. सर्दी लग गई है शायद…’’

‘‘मुझे फुरसत नहीं है. बदलता मौसम है,’’ वह लापरवाही से बोला, ‘‘सर्दी- जुकाम 2-4 दिन में अपनेआप ठीक हो जाएगा. मां भी तो बस, छोटीछोटी बातों से परेशान हो जाती हैं.’’

‘‘कैसे बेटे हो तुम,’’ सुमी रोष से बोली, ‘‘उन का बुखार पूरी रात नहीं उतरा. बूढ़ा शरीर कब तक इतना बुखार सहन करता रहेगा.’’

‘‘मुझे आज आफिस जल्दी जाना है. शाम को जल्दी आ गया तो दिखा दूंगा,’’ कह कर वरुण ने अखबार फेंका और उठ खड़ा हुआ.

‘‘कैसी बात कर रहे हैं आप. मां को डाक्टर को दिखाना क्या जरूरी काम नहीं?’’ सुमी सख्ती से बोली.

‘‘मेरा सिर मत खाओ. वैसे ही आफिस की सौ परेशानियां हैं. जल्दी से नाश्ता लगाओ, मुझे आफिस जाना है,’’ कह कर वरुण बाथरूम में घुस गया.

सुमी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. उस ने उलटासीधा नाश्ता बना कर मेज पर लगा दिया.

तैयार हो कर वरुण नाश्ता कर के आफिस चला गया, मगर ध्यान मां पर ही लगा हुआ था. आफिस पहुंच कर उस ने फोन पर डाक्टर से समय लिया.

आफिस से घंटे भर की छुट्टी ले कर वह घर आ गया.

अपने फ्लैट के दरवाजे पर पहुंच कर वह जैसे ही कालबेल बजाने को हुआ कि बगल वाले फ्लैट का दरवाजा खुल गया. पड़ोसिन शालिनी बोली, ‘‘भाई साहब, सुमी तो माताजी को ले कर डाक्टर के पास गई है.’’

‘‘डाक्टर के पास…’’ वरुण चकित रह गया, ‘‘सोनू को भी ले गई?’’

‘‘नहीं, सोनू तो मेरे पास सो रहा है.’’

वरुण पल भर खड़ा रहा. फिर जैसे ही चलने को हुआ वह बोल पड़ी, ‘‘आप चाहें तो अंदर बैठ कर इंतजार कर लीजिए.’’

‘‘नहींनहीं, बस, ठीक है. मैं आफिस जा रहा हूं. मुझे कुछ जरूरी कागज लेने थे,’’ कह कर वरुण सीढि़यां उतर गया.

वरुण पता नहीं क्यों आज खुद को इतना हलकाफुलका महसूस कर रहा था. सुमी को अपनी जिम्मेदारियां निभानी आती हैं, पर शायद मां के प्रति उस के बेहद समर्पित भाव ने उसे अलग छिटका दिया था. जब वरुण की लापरवाही देखी तो उसे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया.

शाम को जब वरुण घर आया तो मां आराम से अपने कमरे में सो रही थीं. उस ने अपनी तरफ से कुछ न पूछा. वह तटस्थ ही बना रहा. 3-4 दिन में मां बिलकुल ठीक हो गईं. इस दौरान सुमी ने मां की बहुत देखभाल की. रात में जागजाग कर वह मां का कई बार बुखार देखती थी. एक तरफ छोटा सोनू उसे चैन न लेने देता, दूसरी तरफ मां की देखभाल, सुमी पर काम का बहुत बोझ बढ़ गया था.

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वरुण का दिल करता उसे सीने से लगा ले. उस पर बहुत प्यार आता. उस के मन से सुमी के प्रति सारी नफरत खत्म हो गई थी लेकिन उस ने भरसक प्रयास कर खुद को तटस्थ ही बनाए रखा.

एक शाम मां सत्संग में गई हुई थीं. वह आफिस से आ कर बालकनी में बैठा ही था कि सुमी चाय ले कर आ गई. दोनों चुपचाप बैठ कर चाय पीने लगे.

सुमी बीचबीच में छिटपुट बात करने की कोशिश कर रही थी, पर वह ‘हूं…हां’ में ही जवाब दे रहा था.

‘‘सुनो,’’ अचानक सुमी बोली, ‘‘मुझ से बहुत नाराज हो क्या?’’

उस की आवाज नम थी. उस ने अचकचा कर सुमी के चेहरे पर नजर डाली, आवाज की नमी आंखों में भी तैर रही थी लेकिन चेहरा अपनी जिम्मेदारियां निभाने के कारण आत्म- विश्वास से दमक रहा था. बहू की तरफ से इतनी देखभाल होने के कारण मां से जो प्यार व स्नेह उसे मिल रहा था उस से वह खुश थी और उसे पूर्ण विश्वास था कि वरुण भी मन ही मन उस से जरूर खुश हुआ होगा. लेकिन शायद इस बात को वह उसी के मुंह से सुनना चाहती थी, मगर प्रत्यक्ष में वरुण ने स्वयं को अप्रभावित ही दिखाया.

‘‘नहीं तो.’’

‘‘तो फिर ऐसे क्यों रहते हो. आप ऐसे अच्छे नहीं लगते,’’ भरी आंखों से उस की तरफ देख कर सुमी मुसकरा पड़ी.

‘‘जो हुआ उसे भूल जाओ न. आगे से नहीं होगा,’’ वरुण ने धीरे से उस के हाथों के ऊपर अपना हाथ रख दिया और प्यार से सुमी की तरफ देखा. वह आगे कुछ कहता इस से पहले ही कालबेल बज उठी.

‘‘लगता है मां आ गईं,’’ कह कर सुमी दरवाजा खोलने चली गई.

मां आ गई थीं. उन्हें शायद पता नहीं था कि वरुण आफिस से आ गया है. वह सुमी को सत्संग का विवरण सुनाने लगीं. सुमी भी पूरी दिलचस्पी से सुन रही थी, साथ ही साथ चाय बना रही थी.

वरुण के विवाह के बाद शायद यह पहला मौका था जब उस ने मां व सुमी को ऐसे मांबेटी की तरह घुलमिल कर बातें करते देखा होगा. उस की नाराजगी व तटस्थता की वजह से दोनों एकदूसरे के नजदीक आ गई थीं.

वरुण चाहता था कि जैसे सुमी को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ है वैसे ही मां को भी एहसास हो कि सुमी उन की बेटी है. उस के सुखदुख की परवा करना उन का कर्तव्य है. एक मां की तरह उसे बेटी समझ कर उस की कमजोरियों व गलतियों को नजरअंदाज करना भी उन के लिए जरूरी है. समय के साथ सुमी कई काम अपनेआप सीख जाएगी. सभी धीरेधीरे परिपक्व हो जाते हैं, वह भी हो जाएगी.

जल्दी ही वह क्षण भी आ गया. वरुण आफिस के लिए निकल रहा था. सुमी सोनू के साथ बाथरूम में थी.

बाहर निकलते हुए उसे किचन में गैस पर रखी दूध की पतीली दिख गई. दूध उबलउबल कर फैलता जा रहा था.

सुमी अकसर ही दूसरे कामों में उलझ कर या सोनू के साथ उलझ कर गैस पर रखे दूध का खयाल भूल जाती थी और वरुण देख कर भी नजरअंदाज कर देता था, लेकिन मां देख लेतीं तो कुहराम मचा देतीं. ऐसी छोटीमोटी गलतियों पर सुमी को कोसने का मौका वह कभी नहीं चूकतीं. वह तब तक कोसती रहतीं जब तक झगड़ा नहीं हो जाता.

किसी और दिन की बात होती तो वरुण गैस बंद कर के सुमी को बता कर चुपचाप आफिस चला जाता और सुमी भी चुपचाप किचन साफ कर देती, लेकिन उस दिन वह जोर से चिल्ला पड़ा, ‘‘सुमी…’’

वरुण की आवाज इतनी तेज थी कि सुमी व मां एकसाथ आ कर उस के सामने खड़ी हो गईं.

‘‘क्या हुआ?’’ दोनों एकसाथ बोल  पड़ीं.

‘‘वहां किचन में देखो क्या हुआ. तुम रोजाना ही गैस पर कुछ न कुछ रख कर भूल जाती हो. तुम्हारी लापरवाही से तो मैं तंग आ गया. अगर थोड़ी देर और रह जाता तो आग लग जाती. पतीली का दूध सारा का सारा उबल कर गिर गया. क्या करती रहती हो दिन भर…बाकी काम तुम बाद में नहीं कर सकतीं.’’

सुमी के मुंह से एक शब्द भी न निकला. उस ने 5 साल में पहली बार वरुण की इतनी ऊंची व क्रुद्ध आवाज सुनी थी. वह बुरी तरह से अपमानित हो उठी. मां के सामने तो और भी ज्यादा.

उमड़ते हुए आंसुओं को दबाते हुए वह किचन में चली गई और दूध साफ करने लगी, लेकिन सुमी की हर गलती व लापरवाही पर हमेशा बखेड़ा खड़ा करने वाली मां चुप रह गईं और उलटा वरुण पर ही बरस पड़ीं.

‘‘कैसे चिल्ला कर बात कर रहा है, वरुण. ऐसे कोई बोलता है पत्नी से. अरे, छोटे बच्चे के साथ इतने काम होते हैं कि लापरवाही हो ही जाती है. तुझे तो आजकल पता नहीं क्या हो गया है. न सीधे मुंह बात करता है न हंसताबोलता है, जब देखो, गुस्से में भरा बैठा रहता है. एक औरत के लिए दिन भर के घरगृहस्थी के कितने काम होते हैं आदमी क्या जाने…’’ मां बड़बड़ाती जा रही थीं और साथ ही सुमी की मदद भी करती जा रही थीं.

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मां की तरफदारी से सुमी रो पड़ी. वह उस के आंसू पोंछती हुई बोलीं, ‘‘तू इस की परवा मत किया कर. इसे तो सचमुच कुछ हो गया है. दिन भर बीवी घरगृहस्थी में खटती रहती है पर यह नहीं होता कि हंस कर जरा दो बात कर ले, शाम को थोड़ी देर बीवीबच्चे को कहीं घुमा लाए.’’

यह सुन कर तो वरुण चकित रह गया. कुछ सोचता हुआ सा सीढि़यां उतरने लगा.

यही मां उन दोनों के घूमने जाने पर अकसर कोई न कोई ताना मार देती थीं और उन का मूड खराब हो जाता था, आज वही मां उसे बीवी को न घुमाने के लिए डांट रही थीं. उसे लगा उस का जीवन खुशियों के इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर हो गया.

सीढि़यों से उतरते हुए उस का ध्यान एक पुराने गीत ‘दुख भरे दिन बीते रहे भैया…’ के बजने की आवाज में खो कर रह गया जो किसी फ्लैट से आ रही थी.

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