सूरज के मांपापा भी बहू को बंधन में बांध कर नहीं रखना चाहते थे और अब जब बेटा ही नहीं रहा उन का, फिर बहू को वे किस अधिकार से अपने पास रख सकते थे? लेकिन लीना दूसरे विवाह को हरगिज तैयार न थी क्योंकि सूरज अब भी उस का प्यार था, उस का पति था. लीना वह स्थान किसी और को नहीं देना चाहती थी. उस के लिए तो अब यही घर उस का अपना घर था और सूरज के मांपापा उस की ज़िम्मेदारी.
याद है उसे, जब भी सूरज का खत या फोन आता, एक बात तो वह जरूरत कहता था, ‘लीना, मेरे मांपापा अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी हैं, उन का ध्यान रखना’ और लीना कहती, ‘हां, वह इस ज़िम्मेदारी को अच्छे से निभाएगी, चिंता न करें.’ ऐसे में कैसे वह अपने वचन से पलट सकती थी? इसलिए उस ने कभी फिर दूसरा विवाह न करने का फैसला ले लिया.
सूरज के जाने के बाद वह बखूबी अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही है. लेकिन सूरज की कमी उसे खलती रहती है. इसलिए तो उस ने अपनेआप को किताबों में झोंक दिया था. वैसे, सूरज के मांपापा भी यही चाहते थे कि लीना दूसरा विवाह कर ले अब. कई बार कहा भी उन्होंने. कई रिश्ते भी आए. पर लीना का एक ही जवाब था कि वह दूसरा विवाह नहीं करेगी.
उस दिन सोनाक्षी को अच्छे से तैयार होते देख लीना कहने लगी, “कब तक यों ही सजसंवर कर विशाल को रिझाती रहोगी ननद रानी? क्यों नहीं कह देतीं उस से अपने मन की बात? एकदूसरे को अच्छी तरह समझने लगे हो तुम दोनों, तो अब क्या सोचविचार करना? कहीं ऐसा न हो, मांपापा तुम्हारी शादी कहीं और तय कर दें और फिर तुम कुछ न कर पाओ.”
भाभी की बात सोनाक्षी को भी सही लगी कि अगर विशाल आगे नहीं बढ़ रहा है, तो क्यों नहीं वही आगे बढ़ कर अपने प्यार का इजहार कर देती है. लेकिन कैसे वह अपने प्यार का इजहार करे, समझ नहीं आ रहा था.
“अब इस में सोचनासमझना क्या है सोनू? देखो, अगले हफ्ते ही विशाल का जन्मदिन है, तो इस से अच्छा मौका और क्या होगा.” लीना की यह बात सोनाक्षी को जंच गई और मन ही मन उस ने इजहारे प्यार का फैसला कर लिया. सोचा लिया उस ने कि कैसे वह विशाल के सामने अपने प्यार कर इजहार करेगी.
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सोनाक्षी ने तो पहली ही नजर में विशाल को अपना दिल दे दिया था. लेकिन विशाल ने आज तक नहीं जताया उसे कि वह उस से प्यार करता है. लेकिन उस की बातों, हावभाव और सोनाक्षी को ले कर उस की बेचैनी को देख, उसे यही लगता है कि वह भी उस से प्यार करता है. वैसे भी, जरूरी तो नहीं की हर बात कह कर ही जताई जाए. मेरे लिए तो इतना ही काफी है कि मुझ से मिले बिना वह एक दिन भी नहीं रह पाता है. तभी तो कोई न कोई बहाना बना कर सीधे मेरे घर आ पहुंचता है. अपने मन में यह सोच सोनाक्षी मुसकरा पड़ी थी.
सोनाक्षी को यह नहीं पता कि विशाल उस से नहीं, बल्कि उस की विधवा भाभी लीना से प्यार करता है और उस की खातिर ही वह उस के घर बहाने बना कर जाता रहता है. यह कब, कैसे और कहां हुआ. नहीं पता उसे. लेकिन जैसेजैसे उस ने लीना को जाना, उस के प्रति वह आकर्षित होता चला गया. इसलिए सोनाक्षी से मिलने के बहाने ही वह उस के घर चला आता था. भले ही वह सोनाक्षी से बातें करता था पर उस का दिल और दिमाग तो लीना के पास ही होता था.
लीना को एक दिन भी न देखना उसे बेचैन कर देता था. रातदिन, बस, उसी का चेहरा उस की आंखों के सामने नाचता रहता. जब वह अपनी आंखें बंद करता तब भी लीना दिखाई देती उसे और जब आंखें खोलता तब भी उस का ही चेहरा नजर आता था उसे. लेकिन वह यह बात किसी से भी बता नहीं पा रहा था. अपने परिवार वालों से भी नहीं क्योंकि जानता था एक विधवा से शादी समाज सहन नहीं कर पाएगा.
पूछना चाहता है वह समाज से और समाज में रह रहे लोगों से कि जब एक विधुर दूसरा विवाह कर सकता है, तो विधवा क्यों नहीं? क्यों एक पति के न रहने पर औरत अपने मन का खापी और पहनओढ़ नहीं सकती? हंसबोल नहीं सकती? आखिर इतना जुल्म क्यों होता है औरत पर? लेकिन दुख तो उसे इस बात का होता है कि औरत अपने ऊपर हो रहे जुल्म को बरदाश्त करती रहती है. ऐसा नहीं है कि औरत में हिम्मत नहीं होती या उस के पास बोलने को शब्द नहीं होते. वह अपनी हिम्मत और शब्द का इस्तेमाल करती नहीं. इधर, विशाल ने संकल्प ले लिया कि वह लीना के चेहरे से उदासी का बादल हटा कर रहेगा. उसे अपना बना कर रहेगा. आदमी की संकल्पशक्ति दृढ़ होनी चाहिए.
उस दिन अचानक विशाल को अपने घर आए देख लीना चौंक पड़ी क्योंकि कभी वह सोनाक्षी के न होने पर घर नहीं आया और सब से बड़ी बात यह कि वह जानता था सोनाक्षी अपने मांपापा के साथ बीमार बूआजी को देखने गई है.
“वि…विशाल जी आप, इस वक़्त? सोनू, मतलब सोनाक्षी तो घर पर नहीं है. मांपापा के साथ बूआजी को देखने गई…“
“हां, पता है मुझे,” बीच में ही विशाल बोल पड़ा, “वैसे, मैं यहां सोनाक्षी से नहीं, बल्कि आप से मिलने आया हूं लीना जी.” विशाल बोलने में भले घबरा रहा था मगर आज वह अपने दिल की बात लीना तक पहुंचा कर रहेगा, सोच कर आया था.
“आ…आप बैठिए, मैं आप के लिए चाय ले कर आती हूं,” कह कर लीना मुड़ी ही थी कि विशाल ने उस का हाथ पकड़ लिया. विशाल को इस रूप में देख कर वह चौंक उठी क्योंकि उस की आंखें आज कुछ और ही भाषा बोल रही थीं जो लीना को साफसाफ दिखाई दे रहा था. “वि…विशाल जी, आप आप यह क्या कर रहे हैं? छोड़िए मेरा हाथ” अपने हाथों को उस की पकड़ से छुड़ाते हुए लीना बोली.
“मैं ने यह हाथ छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा है लीना जी. मैं आप से प्यार करता हूं. शादी करना चाहता हूं आप से,” एक सांस में ही विशाल ने अपना फैसला लीना को सुना दिया.
“पर, आप तो सोनाक्षी से…” अचकचा कर लीना पूछ बैठी.
“नहीं, मैं ने कभी भी सोनाक्षी को उस नजर से नहीं देखा. मैं तो आप से प्यार करता हूं लीना जी,” उस के करीब जाते हुए विशाल बोला. लेकिन लीना उस से दूर छिटक गई.
“पागल हो गए हैं आप? ये कैसी बातें कर रहे हैं मुझ से ?” गुस्से से लीना की आंखें लाल हो गईं. उसे तो यही लगता था कि विशाल सोनाक्षी से प्यार करता है, इसलिए वह बहाने बना कर उस से मिलने को घर आ जाता है. लेकिन यह तो… “प्लीज,” अपने दोनों हाथ जोड़ कर लीना कहने लगी, “ऐसी बातें मत कीजिए मुझ से. जाइए यहां से, वरना किसी ने देख लिया, तो अनर्थ हो जाएगा. जानते नहीं क्या आप, मैं एक विधवा हूं?” यह कह कर वह जाने लगी कि विशाल ने उसे रोक लिया और उस के आसपास अपनी बलिष्ठ भुजाओं का घेरा बना दिया जिस से वह निकल नहीं पाई.
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आज वह सोच कर आया था कि जरूरत पड़ी तो वह लीना के सासससुर से भी बात कर लेगा. कहेगा कि वह लीना से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है. नहीं मानता वह समाज के इन ढकोसलों को. लेकिन उसे नहीं पता था की पीछे खड़ी सोनाक्षी सब देख ही नहीं रही है, बल्कि उस ने सब सुन भी लिया है.
विशाल से वह कुछ पूछती, मगर वह वहां से बिना कुछ बोले ही निकल गया और लीना ने अपने कमरे में जा कर दरवाजा लगा लिया. सोनाक्षी ने कई बार विशाल को फोन लगाया, पर उस ने उस का फोन नहीं उठाया और न लीना कुछ बता रही थी.
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सोनाक्षी ‘बाय’ बोल कर औफिस जाने लगी, तभी उस की भाभी लीना ने उसे रोका और खाने का डब्बा थमा दिया, जिसे वह आज भी भूल कर जा रही थी. मगर वह कहने लगी कि रहने दो, आज वह औफिस की कैंटीन में खा लेगी.
“कोई जरूरत नहीं, ले कर जाओ. रोजरोज बाहर का खाना सेहत के लिए ठीक नहीं होता, झूठमूठ का गुस्सा दिखाती हुई लीना बोली, “मां को बताऊं क्या?”
“अच्छाअच्छा, ठीक है, लाओ, पर मां को कुछ मत बताना, वरना उन का भाषण शुरू हो जाएगा.” उस की बात पर लीना मुसकरा पड़ी और खाने का डब्बा उसे थमा दिया.
सोनाक्षी और लीना थीं तो ननद-भाभी लेकिन दोनों सखियां जैसी थीं जिन्हें हर बात बेझिझक बताई जा सकती है. “प्लीज भाभी, मां को मत बताना की कभीकभार मैं कैंटीन में खा लेती हूं, वरना वह गुस्सा करेगी,” सोनाक्षी बोल ही रही थी कि विशाल उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया.
लीना जानती थी वह कुछ न कुछ बोलेगी ही विशाल के बारे में और फिर दोनों के बीच बहसबाजी शुरू हो जाएगी. और वही हुआ भी. सोनाक्षी कहने लगी, “अब मैं निकलती हूं, वरना वह राक्षस, विशाल, गला फाड़ कर सोनाक्षीसोनाक्षी चिल्लाने लगेगा. अजीब इंसान है, कितनी बार कहा है नीचे से आवाज मत लगाया करो, सब सुनते हैं, पर नहीं, अक्ल से दिवालिया जो ठहरा, समझता ही नहीं है.“
“अच्छा, तो अक्ल से दिवालिया इंसान हूं मैं, और तुम ज्ञान की देवी, ओहो ओहो… पीछे से विशाल की आवाज सुन सोनाक्षी ने दांतों तले अपनी जीभ दबा ली कि यह क्या बोल गई वह. अब तो यह विशाल का बच्चा छोड़ेगा नहीं उसे. “बोलो, चुप क्यों हो गई? वैसे, मुझे लगता है दिमागी इलाज की तुम्हें जरूरत है क्योंकि आज औफिस बंद है. पता नहीं, शायद, आज ईद है?” बोल कर विशाल हंसा, तो लीना को भी हंसी आ गई.
दोनों को खुद पर हंसते देख सोनाक्षी को पहले तो बहुत गुस्सा आया, लेकिन फिर दांत निपोरती हुई बोली, “हां भई, पता है मुझे, वह तो मैं तुम्हारा टैस्ट ले रही थी.“
“टेस्ट… ले रही थी या अपने दिमाग का टैस्ट दे रही थी?” ज़ोर का ठहाका लागते विशाल बोला, तो लीना हंसी रोक न पाई.
“वैसे, एक बात बताओ, क्या सच में तुम्हें पता नहीं था कि आज औफिस बंद है या मुझ से मिलने की बेताबी थी?” उस की आंखों में झांकते हुए विशाल बोला, तो शरमा कर सोनाक्षी ने अपनी नजरें नीची कर लीं.
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सच बात तो यही है कि उसे सच में पता नहीं था कि आज औफिस की छुट्टी है. वह तो विशाल से मिलने को इतना आतुर रहती है कि औफिस जाने के लिए रोज वक़्त से पहले ही तैयार हो कर उस की राह देखने लगती है और आज भी उस ने वही किया. जरा भी भान नहीं रहा उसे की आज औफिस की छुट्टी है. वह तैयार हो कर विशाल की राह देखने लगी. विशाल के साथ बातें करना, उस के साथ वक़्त गुजारना सोनाक्षी को बहुत अच्छा लगता है. दरअसल, मन ही मन वह उस से प्यार करने लगी है और यह बात लीना भी जानती है कि सोनाक्षी विशाल को पसंद करती है. लेकिन घर में सब को यही लगता है कि दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं. विशाल और सोनाक्षी एक ही औफिस में काम करते हैं और दोनों एकदूसरे को 2 सालों से जानते हैं. चूंकि दोनों एक ही औफिस में काम करते हैं इसलिए सोनाक्षी विशाल के साथ उस की ही गाड़ी में औफिस जातीआती है.
दोनों बातों में लगे थे. तब तक लीना सब के लिए चाय बना लाई. वह अपनी चाय ले कर सोफ़े पर बैठ गई और उन की बातों में शामिल हो गई. लीना के हाथों की बनी चाय पी कर विशाल कहने से खुद को रोक नहीं पाया कि लीना के हाथों में तो जादू है. उस के हाथों की बनी चाय पी कर मूड फ्रेश हो जाता है.
सच में, लीना चाय बहुत अच्छा बनाती है, यह सब कहते हैं और सिर्फ चाय ही नहीं, बल्कि उस का हर काम फरफैक्ट होता है और यही बात विशाल को बहुत पसंद है. उसे गैर जिम्मेदार और कामों के प्रति लापरवाह इंसान जरा भी पसंद नहीं है. वह खुद भी अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाता है. लड़का है तो क्या हुआ? अपने घर के सारे काम वह खुद करता है और यह बात लीना को बहुत अच्छी लगती है.
लीना की बड़ाई सुन कर मुंह बनाती हुई सोनाक्षी कहने लगी कि चाय वह भी अच्छा बना लेती है. तो चुटकी लेते हुए विशाल बोला, “हां, पी है तुम्हारे हाथों की बनी चाय भी, बिलकुल गटर के पानी जैसी.” उस की बात पर सब हंस पड़े और सोनाक्षी मुंह बनाते हुए विशाल पर मुक्का बरसाने लगी कि वह उस का मज़ाक क्यों बनाता है हमेशा?
कुछ देर और बैठ कर विशाल वहां से जाने को उठा ही कि लीना ने उसे रोक लिया यह बोल कर कि वह खाना खा कर ही जाए. लीना के इतने प्यार से आग्रह पर विशाल ‘न’ नहीं कह पाया. वैसे, विशाल यहां यह बताने आया था कि आज बुकफेयर का अंतिम दिन है, इसलिए वहां चलना चाहिए, लेकिन सोनाक्षी मूवी देखने के मूड में थी.
“मूवी? नहींनहीं, बेकार में 3 घंटे पकने से अच्छा है बुकफेयर चलना चाहिए,” सोनाक्षी की बात को काटते हुए विशाल बोला. कब से विशाल बुकफेयर जाने की सोच रह था पर औफिस के कारण जा नहीं पा रहा था. आज छुट्टी है, तो सोचा वहां चला जाए.
सोनाक्षी का तो बिलकुल वहां जाने का मन नहीं था पर लीना बुकफेयर का नाम सुनकर ही चहक उठी. उसे किताबें पढ़ना बहुत अच्छा लगता है. कोई कहे कि पूरे दिन बैठ कर किताबें पढ़ती रहो, तो उकताएगी नहीं वह, इतना उसे किताब पढ़ना अच्छा लगता है. तभी तो वह जब भी मार्केट जाती है, बुकस्टॉल से अपने लिए दोचार अच्छीअच्छी किताबें खरीद लाती है.
अकसर औरतों को कपड़ेगहनों का शौक होता है. अलमारी अटी पड़ी होती है कपड़ों से उन की, लेकिन लीना की अलमारी किताबों से अटी पड़ी है. एक भूख है उसे पढ़ने की. एक दिन भी न पढे, तो खालीखाली सा लगता है उसे और विशाल के साथ भी ऐसा ही है. कितना भी बिजी क्यों न हो अपनी लाइफ में, रोज थोड़ाबहुत पढ़ना नहीं भूलता वह. रहा ही नहीं जाता बिना पढ़े उसे. ज़िंदगी सार्थक लगती है उसे पढ़ने से, वरना तो इंसान के जीवन में भागमभाग लगा ही रहता है.
लेकिन लीना दोनों के बीच कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती थी. इसलिए ‘घर में बहुत काम है,’ का बहाना कर जाने से मना कर दिया. लेकिन विशाल तो जिद पर अड़ गया कि उसे भी उन के साथ बुकफेयर चलना ही पड़ेगा. हार कर लीना को उन के साथ जाना पड़ा.
बुकफेयर में जहां लीना और विशाल किताबें देखने में व्यस्त थे, वहीं सोनाक्षी बस आतेजाते लोगों को निहारने और मोबाइल में व्यस्त दिख रही थी. उस के चेहरे से लग रहा था उसे यहां आ कर जरा भी अच्छा नहीं लगा. वह तो कहीं घूमने या फिल्म देखने की सोच रही थी, मगर विशाल उसे यहां खींच लाया. इशारों से कहा भी उस ने कि चलो अब यहां से, बोर हो रही हूं, तो विशाल ने भी इशारों से कहा कि ‘अभी रुकेगा वह यहां, चाहे तो वह जा सकती है घर.
क्या करती वह, एक तरफ बैठ गई और अपना मोबाइल चलाने लगी. गुस्सा भी आ रहा था उसे कि यहां आई ही क्यों? घर में ही रहती इस से अच्छा. भले ही सोनाक्षी और विशाल एकदूसरे को 2 सालों से जानते थे, पर उन की एक भी आदत ऐसी नहीं थी जो आपस में मेल खाती हो. इसलिए अकसर दोनों में अपनेअपने मत को ले कर टकराव होता. और फिर हारने को दोनों में से कोई तैयार नहीं होता.
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वहीँ, विशाल को लीना का साथ इसलिए भी अच्छा लगता था क्योंकि दोनों की बहुत सी आदतें मिलतीजुलती थीं. बातविचारों में भी वह बहुत शालीन थी. उस से बातें कर विशाल को मानसिक स्फूर्ति मिलती थी. जिस तरह से वह बोलती थी न, लगता जैसे उस की बातों से शहद टपक रहा हो. उस के रूप, रस और गंध में विशाल ऐसे खो जाता कि उसे कुछ होश ही नहीं रहता था. जब सोनाक्षी टोकती, उसे तब होश आता कि कहां है वह और किसी सोच मे डूबा था.
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2 दिनों बाद विशाल फिर आया, लेकिन लीना से मिलने नहीं, बल्कि उस के सासससुर से उस का हाथ मांगने. अब अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें ही न? बहू को बेटी बना कर विदा करना सपना था उन का, लेकिन लीना ही दूसरा विवाह करने को तैयार नहीं हो थी. लेकिन आज जब सामने से आ कर विशाल ने उस का हाथ मांगा तो उन्होंने तुरंत हां कर दी. इस उम्र में अपने सासससुर को और दुख नहीं देना चाहती थी, इसलिए लीना ने भी मौन सहमति दे दी. पर, वह विशाल से शादी नहीं करना चाहती थी, क्योंकि जानती है विशाल सोनाक्षी का प्यार है.
उधर लीना के मातापिता भी बेटी की गृहस्थी फिर से बसते देख खुशी से झूम उठे थे. मगर विशाल के मातापिता इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे. वे एक विधवा को अपनी बहू नहीं स्वीकारना चाहते थे. लेकिन विश्वास था विशाल को कि वे इस रिश्ते के लिए मानेंगे जरूर एक दिन, और न भी मानें, तो उस का फैसला अटल है.
सूरज के मांपापा ने जब लीना और विशाल की शादी की बाद सोनाक्षी को बताई और कहा कि अब वे चैन से मर सकते हैं, तो सोनाक्षी, विशाल और लीना की शादी से खुश होने का दिखावा जरूर कर रही थी, मगर अंदर से वह आग की तरह धधक रही थी. विशाल के मुंह से यह बात सुन कर ही कि, वह लीना से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है, कैसे उस का गुलाबी चेहरा झुलस कर राख़ हो आया था. सहन नहीं कर पा रही थी कि विशाल उसे ठुकरा कर उस की भाभी का हो गया. अपने कमरे में जा कर तड़ातड़ अपने ही गालों पर थप्पड़ बरसाने लगी थी वह और फिर घुटनों में सिर दे कर बुक्का फाड़ कर रोई थी.
उसे लग रहा था कि जिस भाभी को उस ने अपना दोस्त माना, उस ने ही उस की पीठ पर खंजर भोंक दिया. भले ही वह सब के सामने अखंड शांति का दिखावा कर रही थी, जता रही थी कि उन की शादी से वह प्रसन्न है, पर अपने अभिमान पर हुए आघात से वह धूधू कर जल रही थी.
एक बार तो उस के मन में आया था कि आत्महत्या कर ले. जिस अतुल रूप यौवन पर उसे बहुत गुमान था, उसे अपने हाथों से नोच डाले, टुकड़ेटुकड़े कर तोड़ दे उसे. पर तभी ध्यान आया कि इस से क्या होगा? उन का कुछ बिगड़ेगा? नहीं, बल्कि और उन का रास्ता साफ हो जाएगा. इसलिए वह उन्हें सिखाएगी.
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उस के मन में लीना को ले कर बहुत गुस्सा भरा हुआ था और जब तक वह उसे सबक नहीं सिखा देती, बदला नहीं ले लेती उन से, तब तक उस के मन को शांति नहीं मिलेगी. लीना सोनाक्षी का दुख समझ रही थी, पर क्या करे वह भी. लेकिन एक रास्ता सूझा उसे और उस ने विशाल से मिलने का मन बना लिया.
फोन पर लीना को विशाल से बातें करते देख सोनाक्षी का खून खौल उठा. मन तो किया उस के हाथ से फोन छीन कर फेंक दें और कहे, ‘लज्जा नहीं आई तुम्हें मेरे प्यार को छीनते हुए? अरे, दोबारा विवाह ही करना था, तो क्या लड़कों की कमी थी दुनिया में? मेरा प्यार क्यों छीन लिया तुम ने?’ फिर मन हुआ टेबल पर रखी गरम चाय उस के मुंह पर दे मारे, ताकि उस का यह सुंदर चेहरा बिगड़ जाए. आखिर इस के इसी सुंदर चेहरे पर विशाल को प्यार हो गया न? और इस के इसी सुंदर चेहरे की वजह से ही विशाल ने उसे ठुकरा दिया न? लेकिन उस ने अपने उबलते गुस्से को कंट्रोल कर लिया और उस की बातें सुनने लगी.
लीना विशाल से पास के ही कौफीहाउस में मिलने की बात कह रही थी. लीना के जाने के कुछ देर बाद वह भी घर से निकल पड़ी. अपने चेहरे को दुपट्टे से आधा ढक कर उस ने गौगल्स चढ़ा लिया था ताकि कोई उसे पहचान न पाए. और जा कर ठीक उन के पीछे वाली टेबल पर बैठ गई ताकि उन की बातें ठीक तरह से सुन पाए. फिर वह सोचेगी कि उसे क्या करना है. पता नहीं वह क्या प्लान बना रही थी दोनों को ले कर, यह तो वही जाने.
विशाल ने 2 कप कौफी और्डर किया और गौर से लीना को देखने लगा, जो अब भी सिर झुकाए उसी तरह बैठी थी. “कुछ परेशान लग रही हो,” लीना के चेहरे को पढ़ते हुए विशाल बोला.
“हां, हूं मैं परेशान. और इस की वजह आप हैं. क्यों कर रहे हैं आप ऐसा? मांपापा के सामने मैं कुछ बोल नहीं पाई और न ही फोन पर आप को समझा सकती थी. लेकिन आज मैं आप को यहां यह समझाने आई हूं कि जिद छोड़ दीजिए. आप का प्यार मैं नहीं, बल्कि सोनाक्षी है. अच्छा किया क्या आप ने उस का दिल तोड़ कर? नहीं चाहिए मुझे आप की दया. आप खुद इस शादी से इनकार कर दीजिए, प्लीज,” हाथ जोड़ कर लीना कहने लगी, “और अपना लीजिए मेरी सोनू को. प्यार करती है वह आप से बहुत.”
लीना की बातें सुन कर पहले तो कुछ देर विशाल उसे देखता रहा, फिर बोला, “एक बात बताओ, क्या कभी कहा तुम से सोनाक्षी ने कि मैं ने उसे आई लव यू कहा? क्या एक लड़का और एक लड़की की दोस्ती का मतलब प्यार हो जाता है? नहीं न, फिर कैसे लगा तुम्हें या किसी को भी कि मैं उस से प्यार करता हूं. मैं ने अपनी ज़िंदगी में सिर्फ एक लड़की को चाहा और वह तुम हो लीना तुम और मैं तुम पर कोई दया नहीं कर रहा, बल्कि सच्चे दिल से तुम्हें प्यार करता हूं.”
उस बातों पर लीना का चेहरा झुक गया, क्योंकि विशाल की आंखों में उस के लिए प्यार साफसाफ दिख रहा था. “और जब मैं उस से प्यार ही नहीं करता, फिर शादी का क्या मतलब? बेईमानी नहीं होगा, यह हम दोनों के साथ? क्या खुश रह पाएंगे हम एकदूसरे के साथ, बोलो? मैं तुम से प्यार करता हूं लीना और तुम्हारे साथ ही खुश रह पाऊंगा. जानता हूं कि, मैं भी तुम्हें अच्छा लगता हूं. मेरे साथ रहते हुए तुम कितनी खुश रहती हो, देखा है मैं ने. लेकिन तुम जकड़ी हुई हो समाज की सोच के साथ कि लोग क्या कहेंगे? एक विधवा का जो ठप्पा लगा है न तुम पर, उस से तुम भी नहीं निकलना चाहती हो. बताओ न, क्यों नहीं निकलना चाहतीं? तुम ने ही एक रोज बताया था मुझे कि जब तुम्हारी चाची की जौंडिस से मौत हो गई थी, तब उन के मरने के कुछ महीने बाद ही तुम्हारे चाचा ने दूसरा विवाह कर लिया था. तो उन्हें समाज कुछ क्यों नहीं बोलता? सिर्फ औरतें ही क्यों समाज की बनाई चक्की में पिसती रहें, बोलो न?”
“वह सब मुझे नहीं पता, लेकिन यह जानती हूं कि एक विधवा के लिए दूसरा विवाह करना पाप है. हो सके तो आप सोनाक्षी से शादी कर लीजिए, वह आप से बहुत प्यार करती है,” कह कर नम आंखों से लीना वहां से उठ कर चली गई और विशाल वहीं बैठा जाने क्या सोचने लगा. कुछ देर बाद वह भी वहां से चला आया. काफी अपसेट लग रहा था वह. उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे?
विशाल के जाने के बाद सोनाक्षी भी वहां से निकल गई. आज लीना की बातें सुन कर उस का मन रो पड़ा. सोचने लगी, वह कितनी स्वार्थी हो गई है? जब उस के भाई सूरज की मौत हुई थी तब लीना को देख कर उस का भी कलेजा फटा था. वह भी चाहती थी लीना की गृहस्थी फिर से बस जाए. कोई उस का हाथ थाम कर फिर से उस की ज़िंदगी में बहार ले आए.
लेकिन आज जब कोई उसे दिल से प्यार करने वाला मिला है, उस से शादी करना चाहता है, तो उसे बुरा लग रहा है? सही तो कहा विशाल ने, कब उस ने मुझ से प्यार का इजहार किया? बल्कि मुझे ही यह गलतफहमी हो गई थी कि वह मुझे चाहता है.
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मैं तो यह सोच कर वहां गई थी कि सब के सामने उन्हें जलील करूंगी. बताऊंगी लोगों को कि कैसे उस की अपनी भाभी, जिसे वह अपना सबकुछ समझती थी, ने उस का प्यार छीन लिया. लेकिन वह तो यहां आ कर स्तब्ध रह गई. उस की भाभी तो आज व अब भी पहले उस के बारे में ही सोचती है, चाहती है विशाल उस से शादी करने से मना कर सोनाक्षी को अपना ले. यह सब सोचतेसोचते सोनाक्षी घर पहुंच गई.
आज उस के मन में विशाल और लीना को ले कर कोई गुस्सा या द्वेष नहीं था. बल्कि, वह खुश थी कि उस की भाभी का दूसरा विवाह होने जा रहा है और वह अपने हाथों से उसे सजाएगी, उसे लाल जोड़ा पहनाएगी. खूब नाचेगीगाएगी. और वह गुनगुनाने लगी, ‘मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुलहिया, सज के आएंगे दूल्हे राजा…’
लीना को भी विशाल से बातें करना अच्छा लगता था. पता नहीं क्यों, पर उसे देखते ही लीना के चेहरे पर मुसकान तैर जाती. उन की दोस्ती तो किताबों से शुरू हुई थी. अकसर दोनों एकदूसरे को अपनीअपनी किताबें लेतेदेते रहते थे. पढ़ना दोनों को बहुत अच्छा लगता था. लेकिन वहीं सोनाक्षी किताबों से कोसों दूर भागती. कहता जब विशाल कि किताबें पढ़ कर देखो कभी, ज्ञान का खजाना छिपा है उस में. तब मुंह बनाती सोनाक्षी कहती कि नहीं, उसे इन किताबोंउताबों में कोई दिलचस्पी नहीं है. उसे तो, बस, विशाल में दिलचस्पी है. और उस की बात पर विशाल मुसकरा पड़ता था.
सोनाक्षी का किताबों से दूरदूर तक कोई नातारिश्ता नहीं था. आश्चर्य होता उसे कि कैसे कोई इतनी मोटीमोटी किताबें हफ्तेदस दिन में खत्म कर सकता है? वह तो सालों तक भी एक किताब खत्म नहीं कर पाएगी.
उसे तो फिल्में देखना, घूमना, होटलों में भोजन करना पसंद है. ज़िंदगी में मौजमस्ती होती रहे, बस, और कुछ नहीं चाहिए उसे. इसलिए तो कभीकभी विशाल के साथ भी वह बोर होने लगती थी क्योंकि उस के साथ होते हुए भी वह किताबों में खोया रहता था. गुस्से में कह भी देती, ‘किताबों से ही क्यों नहीं बातें करते? उसे ही अपना दोस्त बना लो न.’ तो हंसते हुए विशाल कहता कि वह तो अभी कुछ साल पहले उस की दोस्त बनी है. लेकिन ये किताबें तो बचपन से उस की साथी हैं, जो आजीवन उस का दोस्त रहेंगी.
लेकिन, अब एक और दोस्त मिल गई है उसे लीना के रूप में. बिलकुल उस की तरह ही सोच रखने वाली. जब भी दोनों बातें करने लगते, सोनाक्षी तुनक कर वहां से उठ कर चल देती और कहती कि उन की बातों का मुद्दा सिर्फ किताबें और पढ़ाई ही क्यों होती है, कुछ और क्यों नहीं होता? और उस की बात पर दोनों हंस पड़ते.
‘हंसो मत यार, सही कह रही हूं. और कोई बात नहीं सूझती क्या तुम दोनों को? जब देखो किताबें, देशदुनिया और राजनीति पर बातें करते रहते हो. अरे भई, कुछ इंट्रेस्टिंग बातें भी कर लिया करो कभी. मैं तो स्कूलकालेज की ही किताबें पढ़पढ़ इतनी ऊब चुकी थी कि सोचती कब पीछा छूटे इन से और मैं चैन की सांस लूं,’ हंसती हुई सोनाक्षी अपने बचपन की बातें याद कर कहती, ‘तुम्हें पता है विशाल, बचपन में मेरा स्कूल से भागने का रिकौर्ड था.
‘घर से मेरा स्कूल कुछ दूरी पर ही था. पापा मुझे स्कूल छोड़ कर जैसे ही जाते, मैं पीछेपीछे घर पहुंच जाती. यह रोज का किस्सा बन गया था. परेशान थे मांपापा मुझे ले कर. डर लगता उन्हें की कहीं रास्ते में कोई गाड़ी ठोकर न मार दे मुझे या कोई उठा कर ही ले भागा, तो फिर क्या करेंगे वे. और स्कूल से भागना क्या अच्छी बात है? इसलिए एक बार पापा ने टीचर को ही डांट पिला दी कि बच्चा उन के स्कूल से भाग जाता है, क्या उन्हें पता नहीं चलता? अगर बच्चे को कुछ हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा फिर?
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‘फिर क्या था, टीचर ने उस रोज मुझे रस्सी से बांध दिया ताकि मैं स्कूल से भाग न सकूं. लेकिन मैं ने रोनाचिल्लाना इतना मचाया कि उन्हें मुझे खोलना ही पड़ा. लेकिन प्रिंसिपल ने भी कह दिया कि स्कूल में अब मेरे लिए कोई जगह नहीं है. ऐसे बच्चे को वह अपने स्कूल में नहीं पढ़ा सकते. बहुत खुश थी मैं कि स्कूल और किताबों से मेरा पाला छूटा. लेकिन पापा ने जो मार मारी न उस रोज, आह, आज भी कांप उठती हूं याद कर के.
‘उस दिन के बाद से मैं स्कूल से कभी नहीं भागी, लेकिन किताबों के प्रति मेरी नफरत बरकरार रही. वह तो पापा के डर के कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी पड़ी, वरना तो पढ़ाई मुझे सजा से कोई कम नहीं लगती है आज भी,’ सोनाक्षी बोली.
‘कैसी बातें कहती हो तुम सोनाक्षी? पढ़ना क्या सजा होता है? अरे, किताबों में तो ज्ञान का भंडार छिपा है. मैं तो किताब पढ़ने के अलावा और कुछ सोच ही नहीं सकता. सोने से पहले रोज जब तक थोड़ा पढ़ न लूं, नींद नहीं आती’ विशाल की बात पर लीना ने भी सहमति जताई और कहा कि उसे भी बिना पढे नींद नहीं आती. काम से फुरसत मिलते ही वह किताब ले कर बैठ जाती है. मजा आता है उसे पढ़ने में.
एक सुर में दोनों को बोलते देख सोनाक्षी हंस पड़ी और एक लंबी सांस छोड़ती हुई बोली, ‘हूं, मुझे लगता है तुम दोनों की जोड़ी खूब जमेगी, क्योंकि एकजैसे जो हो तुम दोनों.’
उस की बातों पर दोनों एकदूसरे को देखने लगे और आंखों ही आंखों में जो बातें हुईं, ये तो उन्हें ही पता था. कहते हैं, आंखें दिल के झरोखे सी होती हैं. झरोखे बंद भी हो सकते हैं, पर होंठों की कोर एक ऐसा सूचक है जो कभी चुकता नहीं.
विशाल अपलक अब भी लीना को वैसे ही निहार रहा था. कुछ क्षणों की वह तंद्रा लीना को मानो उस कमरे से दूर अलग कहीं ले गई थी जहां होंठों के कोरों का कसाव, बिना तनिक कांपें भी, जैसे अनजाने कुछ नरम पड़ गया था. मुंह के आसपास की असंख्य शिराओं का अदृश्य तनाव कुछ ढीला हो गया था और जीवन का अदम्य लचीलापन जैसे फिर उभर कर एक स्निग्ध लहर बन गया था. ऐसा पहले भी कई बार हुआ जब किताबें लेतेदेते दोनों के हाथ आपस में स्पर्श कर जाता तो उन की आंखें बातें करने लगती थीं.
सोनाक्षी ने उसे झंकझोरा तो पाया कि वह कहीं खो गया था. लेकिन लक्ष्य किया उस ने कि उस के चेहरे के हावभाव को कोई पढ़ नहीं पाया. नास्तिकों की भीड़ में जैसे कोई भक्त अनदेखे क्षणभर आंख बंद कर अपने आराध्य का ध्यान कर लेता है, वैसे ही विशाल कहीं पर भी हो या किसी के साथ हो, अपनी लीना को मन की आंखों से देख ही लेता था.
लेकिन फिर भी लीना विशाल को सिर्फ एक अच्छा दोस्त समझती थी. उस के दिल में कुछ भी नहीं था उसे ले कर. वह तो आज भी अपने दिल में सूरज को बसाए हुए थी, जो अब इस दुनिया में नहीं है. 4 वर्षों पहले लीना और सूरज विवाह बंधन में बंधे थे. हंसतेमुसकराते शादी के 2 साल कैसे गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला. लेकिन एक दिन सूरज की मौत की खबर ने लीना को तोड़ कर रख दिया. एक तसल्ली थी की उस का सूरज देश के लिए शहीद हुआ है. गर्व था उसे अपने पति पर.
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सूरज फौज में था. अपनी बेटी को विधवा के रूप में देख कर लीना की मां ने तो खटिया ही पकड़ ली और उस के पापा गुमसुम से हो गए. लेकिन वे चाहते थे कि उन के जीतेजी बेटी का घर फिर से बस जाए क्योंकि ज़िंदगी इतनी छोटी भी नहीं होती कि बगैर किसी सहारे के जिया जा सके और वे कब तक बेटी के साथ रह पाएंगे. आज न कल, वे भी अपनी आंखें मूंद ही लेंगे, फिर क्या होगा लीना का?
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