कहानी- अवनीश शर्मा
शिखा और मैं 1 सप्ताह नैनीताल में बिता कर लौटे हैं. वह अपनी बड़ी बहन सविता को बडे़ जोशीले अंदाज में अपने खट्टेमीठे अनुभव सुना रही है.
सविता की पूरी दिलचस्पी शिखा की बातों में है. मैं दिवान पर लेटालेटा कभी शिखा की कोई बात सुन कर मुसकरा पड़ता हूं तो कभी छोटी सी झपकी का मजा ले लेता हूं.
मेरी सास आरती देवी रसोई में खाना गरम करने गई हैं. मुझे पता है कि सारा खाना सविता पहले ही बना चुकी हैं.
सारा भोजन मेरी पसंद का निकलेगा, पुराने अनुभवों के आधार पर मेरे लिए यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं. ससुराल में मेरी खूब खातिर होती है और इस का पूरा श्रेय मेरी बड़ी साली सविता को ही जाता है.
शिखा अपनी बड़ी बहन सविता के बहुत करीब है, क्योंकि वह उस की सब से अच्छी सहेली और मार्गदर्शक दोनों हैं. शायद ही कोई बात वह अपनी बड़ी बहन से छिपाती हो. उन की सलाह के खिलाफ शिखा से कुछ करवा लेना असंभव सा ही है.
‘‘हमें पहला बच्चा शादी के 2 साल बाद करना चाहिए,’’ हमारी शादी के सप्ताह भर बाद ही शिखा ने शरमाते हुए यों अपनी इच्छा बताई तो मैं हंस पड़ा था.
‘‘मैं तो इतना लंबा इंतजार नहीं कर सकता हूं,’’ उसे छेड़ने के लिए मैं ने उस की इच्छा का विरोध किया.
‘‘मेरे ऐसा कहने के पीछे एक कारण है.’’
‘‘क्या?’’
‘‘इन पहले 2 सालों में हम अपने वैवाहिक जीवन का भरपूर मजा लेंगे, सौरभ. अगर मैं जल्दी मां बनने के झंझट में फंस गई तो हो सकता तुम इधरउधर ताकझांक करने लगो और वह हरकत मुझे कभी बरदाश्त नहीं होगी.’’
‘‘यह कैसी बेकार की बातें मुंह से निकाल रही हो?’’ उसे सचमुच परेशान देख कर मैं खीज उठा.
‘‘मेरी दीदी हमेशा मुझे सही सलाह देती हैं और हम बच्चा…’’
‘‘तो यह बात तुम्हारी दीदी ने तुम्हारे दिमाग में डाली है.’’
‘‘जी हां, और वह गलत नहीं हैं.’’
‘‘चलो, मान लिया कि वह गलत नहीं हैं पर एक बात बताओ. क्या तुम हर तरह की बातें अपनी दीदी से कर लेती हो?’’
‘‘बिलकुल कर लेती हूं.’’
‘‘वह बातें भी जो बंद कमरे में हमारे बीच होती हैं?’’ मैं ने चुटकी ली.
‘‘जी, नहीं.’’
वैसे मुझे उस के इनकार पर उस दिन भरोसा नहीं हुआ क्योंकि मेरा सवाल सुन कर उस के हावभाव वैसे हो गए थे जैसे चोरी करने वाले बच्चे को रंगे हाथों पकडे़ जाने पर होते हैं.
इस बात की पुष्टि अनेक मौकों पर हो चुकी है कि शिखा अपनी बड़ी बहन को हर बात बताती है. इस कारण अगर मैं या मेरे परिवार वाले परेशान नहीं हैं तो इसलिए कि सविता बेहद समझदार और गुणवान हैं. मैं उन्हें अपने परिवार का मजबूत सहारा मानता हूं, टांग अड़ा कर परेशानी खड़ी करने वाला रिश्तेदार नहीं.
सविता के पास न रंगरूप की कमी है न गुणों की. कमाती भी अच्छा हैं पर दुर्भाग्य की बात यह है कि बिना शादी किए ही वह खुद को विधवा मानती हैं.
रवि नाम के जिस युवक को वह किशोरावस्था से प्रेम करती थीं, करीब 2 साल पहले उस का एक सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया. इस सदमे के कारण सविता ने कभी शादी न करने का फैसला कर लिया है. किसी के भी समझाने का सविता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
मेरे मातापिता ने भी उन्हें शादी करने के लिए राजी करने की कोशिश दिल से की थी. तब उन का कहना था, ‘‘मेरी तकदीर में अपनी घरगृहस्थी के सुख लिखे होते तो मैं जिसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहती थी वह मुझे यों छोड़ कर नहीं जाता. रवि की जगह मैं किसी और को नहीं दे सकती.’’
करीब महीने भर पहले मेरा जन्मदिन था. सविता ने कमीजपैंट और मैचिंग टाई का उपहार मुझे दिया था.
‘‘थैंक यू, बड़ी साली साहिबा,’’ मैं ने मुसकराते हुए उपहार स्वीकार किया और फिर भावुक लहजे में बोला, ‘‘मुझे आप से एक तोहफा और चाहिए. आशा है कि आप मना नहीं करोगी.’’
‘‘बिलकुल नहीं करूंगी,’’ उन्होंने आत्मविश्वास से भरे स्वर में फौरन जवाब दिया.
‘‘आप शादी कर लो, प्लीज,’’ मैं ने विनती सी की.
पहले तो वह चौंकीं, फिर उन की आंखों में गंभीरता के भाव उपजे और अगले ही पल वह खिलखिला कर हंस भी पड़ीं.
‘‘सौरी, सौरभ, उपहार तुम्हें अपने लिए मांगना था. मेरा शादी करना तुम्हारे लिए गिफ्ट कैसे बन सकता है?’’
‘‘आप का अकेलापन दूर हो जाए, इस से बड़ा गिफ्ट मेरे लिए और कुछ नहीं हो सकता.’’
‘‘तुम सब के होते हुए मुझे अकेलेपन का एहसास कैसे हो सकता है?’’ शिखा और मेरी बहन प्रिया के गले में बांहें डाल कर सविता हंस पड़ीं. और मेरा प्रयास एक बार फिर बेकार चला गया.
हमारे नैनीताल घूम कर आने के बाद सविता दीदी ने मुझे और शिखा को पास बिठा कर एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा शुरू की थी.
‘‘सौरभ, तुम को भविष्य को ध्यान में रख कर अब चलना शुरू कर देना चाहिए. खर्चे संभल कर करना शुरू करो. बचत करोगे तो ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाओगे… अपने मकान में रह सकोगे,’’ वह हमें इस तरह समझाते हुए काफी गंभीर नजर आ रही थीं.
‘‘हम दोनों नौकरी करते हैं, पर आज के समय में मकान खरीदना बड़ा महंगा हो गया है. अपने मकान में रहने का सपना जल्दी से पूरा होने का फिलहाल कोई मौका नहीं है,’’ मैं ने दबी आवाज में कहा.
‘‘तुम दोनों क्या मुझे पराया समझते हो?’’ उन्होंने फौरन आहत भाव से पूछा.
‘‘ऐसा बिलकुल भी नहीं है.’’
‘‘तब अपने मकान का सपना पूरा करना तुम दोनों की नहीं, बल्कि हम तीनों की जिम्मेदारी है. सौरभ, आखिर मैं, मां और तुम दोनों के अलावा और किस के लिए कमा रही हूं?’’
वह नाराज हो गई थीं. उन्हें मनाने के लिए मुझे कहना पड़ा कि जल्दी ही हम 3 बेडरूम वाला फ्लैट बुक कराएंगे और उन की आर्थिक सहायता सहर्ष स्वीकार करेंगे. मेरे द्वारा ऐसा वादा करा लेने के बाद ही उन का मूड सुधरा था.
शिखा और मेरे मन में उन के प्रति कृतज्ञता का बड़ा गहरा भाव है. हम दोनों उन के साथ बड़ी गहराई से जुड़े हुए हैं. तभी उन की व्यक्तिगत जिंदगी का खालीपन हमें बहुत चुभता है. बाहर के लोगों के सामने वह सदा गंभीर बनी रहती हैं, पर हम दोनों से खूब खुली हुई हैं.
उस दिन दोपहर का खाना सचमुच मेरी पसंद को ध्यान में रख कर सविता ने तैयार किया था. मैं ने दिल खोल कर उन की प्रशंसा की और वह प्रसन्न भाव से मंदमंद मुसकराती रहीं.
खाना खाने के बाद मैं ने 2 घंटे आराम किया. जब नींद खुली तो पाया कि शरीर यों टूट रहा था मानो बुखार हो. कुछ देर बाद ठंड लगने लगी और घंटे भर के भीतर पूरा शरीर भट्ठी की तरह जलने लगा.
सविता दीदी जिद कर के मुझे शाम को डाक्टर के पास ले गईं. हमें रात को घर लौट जाना था पर उन्होंने जाने नहीं दिया.
‘‘ज्यादा परेशान मत होइए आप,’’ मैं ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘इस मौसम में यह बुखार मुझे हर साल पकड़ लेता है. 2-4 दिन में ठीक हो जाऊंगा.’’
उन की चिंता दूर करने के लिए मैं ने अपनी आवाज में लापरवाही के भाव पैदा किए तो वह गुस्सा हो गईं.
‘‘सौरभ, हर साल तुम बीमार नहीं पड़ोगे तो कौन पड़ेगा?’’ उन्होंने मुझे डांटना शुरू किया, ‘‘तुम्हारा न खाने का कोई समय है, न ही सोने का. दूध से तुम्हें एलर्जी है. फल खाने के बजाय तुम टिक्की और समोसे पर खर्च करना बेहतर मानते हो. अब अगर तुम नहीं सुधरे तो मैं तुम से बोलना बंद कर दूंगी.’’
‘‘दीदी, आप इतना गुस्सा मत करो,’’ मैं ने फौरन नाटकीय अंदाज में हाथ जोडे़, ‘‘मैं ने दूध पीना शुरू कर दिया है. आप के आदेश पर अब लंच भी ले जाने लगा हूं. वैसे एक बात आप मेरी भी सुन लो, अगर कभी सचमुच आप ने मुझ से बोलना छोड़ा तो मैं आमरण अनशन कर दूंगा. फिर मेरी मौत की जिम्मेदार…’’
सविता ने आगे बढ़ कर मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और मेरे देखते ही देखते उन की आंखों में आंसू छलक आए.
‘‘इतने खराब शब्द फिर कभी अपनी जबान पर मत लाना सौरभ. किसी अपने को खोने की कल्पना भी मेरे लिए असहनीय पीड़ा बन जाती है,’’ उन का गला भर आया.
‘‘आई एम सौरी,’’ भावुक हो कर मैं ने उन का हाथ चूमा और माफी मांगी.
उन्होंने अचानक झटका दे कर अपना हाथ छुड़ाया और तेज चाल से चलती कमरे से बाहर निकल गईं.
मैं ने मन ही मन पक्का संकल्प किया कि आगे से ऐसी कोई बात मुंह से नहीं निकालूंगा जिस के कारण सविता के दिल में रवि की याद ताजा हो और दिल पर लगा जख्म फिर से टीसने लगे.
अगले दिन सुबह भी मुझे तेज बुखार बना रहा. शिखा को आफिस जाना जरूरी था. मेरी देखभाल के लिए सविता ने फौरन छुट्टी ले ली.
उस दिन सविता के दिल की गहराइयों में मुझे झांकने का मौका मिला. उन्होंने रवि के बारे में मुझे बहुत कुछ बताया. कई बार वह रोईं भी. फिर किसी अच्छी घटना की चर्चा करते हुए बेहद खुश हो जातीं और अपने दिवंगत प्रेमी के प्रति गहरे प्यार के भाव उन के हावभाव में झलक उठते.
मुझे नहीं लगता कि सविता ने मेरे अलावा कभी किसी दूसरे से इन सब यादों को बांटा होगा. उन्होंने मुझे अपने बहुत करीब समझा है, इस एहसास ने मेरे अहम को बड़ा सुख दिया.
शाम को मेरी तबीयत ठीक रही पर रात को फिर बुखार चढ़ गया. शिखा भी अपनेआप को ढीला महसूस कर रही थी, सो वह मेरे पास सोने के बजाय अपनी मां के पास जा कर सो गई.
सविता को अब 2 मरीजों की देखभाल करनी थी. हम दोनों को उन्होंने जबरदस्ती थोड़ा सा खाना खिलाया. वह नहीं चाहती थीं कि भूखे रह कर हम अपनी कमजोरी बढ़ाएं.
रात 11 बजे के आसपास मेरा बुखार बहुत तेज हो गया. सब सो चुके थे, इसलिए मैं चुपचाप लेटा बेचैनी से करवटें बदलता रहा. नींद आ रही थी पर तेज बदन दर्द के कारण मैं सो नहीं सका.
शायद कुछ देर को आंख लग गई होगी, क्योंकि मुझे न तो सविता के कमरे में आने का पता लगा और न ही यह कि उन्होंने कब से मेरे माथे पर गीली पट्टियां रखनी शुरू कीं.
तपते बुखार में गीली पट्टियों से बड़ी राहत महसूस हो रही थी. मैं आंखें खोलने को हुआ कि सविता ने मेरे बालों में उंगलियां फिराते हुए सिर की हलकी मालिश शुरू कर दी. इस कारण आंखें खोलने का इरादा मैं ने कुछ देर के लिए टाल दिया.
जिस बात ने मुझे बहुत जोर से कुछ देर बाद चौंकाया, वह सविता के होंठों का मेरे माथे पर हलका सा चुंबन अंकित करना था.
इस चुंबन के कारण एक अजीब सी लहर मेरे पूरे बदन में दौड़ गई. मैं सविता के बदन से उठ रही महक के प्रति एकदम से सचेत हुआ. उन की नजदीकी मेरे लिए बड़ा सुखद एहसास बनी हुई थी. मैं ने झटके से आंखें खोल दीं.
सविता की आंखें बंद थीं. वह न जाने किस दुनिया में खोई हुई थीं. उन के चेहरे पर मुझे बड़ा सुकून और खुशी का भाव नजर आया.
‘‘सविता,’’ अपने माथे पर रखे उन के हाथ को पकड़ कर मैं ने कोमल स्वर में उन का नाम पुकारा.
सविता फौरन अपने सपनों की दुनिया से बाहर आईं. मुझ से आंखें मिलते ही उन्होंने लाज से अपनी नजरें झुका लीं. अपना हाथ छुड़ाने की उन्होंने कोशिश की, पर मेरी पकड़ मजबूत थी.
‘‘सविता, तुम दिल की बहुत अच्छी हो…बहुत प्यारी हो…बड़ी सुंदर हो,’’ इन भावुक शब्दों को मुंह से निकालने के लिए मुझे कोई कोशिश नहीं करनी पड़ी.
जवाब में खामोश रह कर वह अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास करती रही.
एक बार फिर मैं ने उस का हाथ चूमा तो उन्होंने अपना हाथ मेरे हाथ में ढीला छोड़ दिया.
मैं उठ कर बैठ गया. सविता की आंखों में मैं ने प्यार से झांका. वह मुझ से नजरें न मिला सकीं और उन्होंने आंखें मूंद लीं.
सविता का रूप मुझे दीवाना बना रहा था. मैं उन के चेहरे की तरफ झुका. उन के गुलाबी होंठों का निमंत्रण अस्वीकार करना मेरे लिए असंभव था.
मेरे होंठ उन के होंठों से जुडे़ तो उसे तेज झटका लगा. उन की खुली आंखों में बेचैनी के भाव उभरे. कुछ कहने को उन के होंठ फड़फड़ाए, पर शब्द कोई नहीं निकला.
सविता ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और कुरसी से उठ कर कमरे से बाहर चल पड़ीं. मैं ने उन्हें पुकारा पर वह रुकी नहीं.
मैं सारी रात सो नहीं सका. मन में अजीब से अपराधबोध व बेचैनी के भावों के साथसाथ गुदगुदी सी भी थी.
अगले दिन सुबह सविता, अपनी मां और शिखा के साथ कमरे में आईं. मैं काफी बेहतर महसूस कर रहा था.
‘‘सौरभ बेटे, एक खुशखबरी सुनो. सविता ने शादी के लिए ‘हां’ कर दी है,’’ यह खबर सुनाते हुए मेरी सास की आंखों में खुशी के आंसू उभर आए.
‘‘अरे, यह कैसे हुआ?’’ मैं ने चौंक कर सविता की तरफ अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा.
‘‘मुझे अचानक एहसास हुआ कि मेरे अंदर की औरत, जिसे मैं मरा समझती थी, जिंदा है और उसे जीने का भरपूर मौका देने के लिए मुझे अपनी अलग दुनिया बसानी ही पडे़गी, सौरभ,’’ सविता ने मुझ से बेधड़क आंखें मिलाते हुए जवाब दिया.
‘‘आप का फैसला बिलकुल सही है. बधाई हो,’’ अपनी बेचैनी को छिपा कर मैं मुसकरा पड़ा.
‘‘थैंक यू, सौरभ. तुम ने रात को मेरी आंखें खोलने में जो मदद की है, उस के लिए मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी,’’ सविता सहज भाव से मुसकरा उठीं.
‘‘सौरभ, ऐसा क्या समझाया तुम ने, जो दीदी ने अपना कट्टर फैसला बदल लिया?’’ शिखा ने उत्सुक लहजे में सवाल पूछा.
मैं ने कुछ देर सोचने के बाद गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मेरे कारण सविता को शायद यह समझ में आ गया है कि टेलीविजन धारावाहिक या फिल्में देख कर…या फिर किसी दूसरे की घरगृहस्थी का हिस्सा बन कर जीने का असली आनंद नहीं लिया जा सकता है. जिंदगी के कुछ अनुभव शेयर नहीं हो सकते…शेयर नहीं करने चाहिए. मैं ठीक कह रहा हूं न, सविता जी?’’
सविता से हाथ मिलाते हुए मैं ने उन्हें एक बार फिर शुभकामनाएं दीं. वह प्रसन्नता से भरी आफिस जाने की तैयारी में जुट गईं.
मैं भी अपनेआप को अचानक बड़ा हलका, तरोताजा और खुश महसूस कर रहा था. शिखा का हाथ अपने हाथों में ले कर मैं ने सविता को दिल से धन्यवाद दिया क्योंकि उन्होंने मुझे बड़ी भूल व गलती की दलदल में फंसने से बचा लिया था.
सविता के प्रति मेरे मन में आदरसम्मान के भाव पहले से भी ज्यादा गहरे हो गए थे.