एक दिन उस ने ही चाय के लिए कहा. उसी के चैंबर में बैठे थे हम. मुझे बात बनती सी नजर आई. कई बातें हुईं पर मेरे मतलब की कोई नहीं हुई.
आगे चल कर चायकौफी का दौर जब बढ़ गया तो वैभव ने कहा कि तुम्हारी बात सिर्फ चाय तक ही है या आगे भी बढ़ी? मैं ने एक टेढ़ी सी स्माइल दी और खुद को यकीन दिलाया कि मैं उसे कुछ ज्यादा ही पसंद हूं. कभी कोई कहता कि सिगरेटशराब पीती है, तो कोई कहता ढेरों मर्द हैं इस की मुट्ठी में, तो कोई कहता कि देखो साड़ी कहां बांधती है? सैंसर बोर्ड इसे नहीं देखता क्या? जवाब आता कि इसे जीएम देखता है न.
ऐसी बातें मुझे उत्तेजित कर जातीं. कब वह आएगी मेरे हाथ? और तो और अब तो मुझे अपनी बीवी के सारे दोष जिन्हें मैं भूल चुका था या अपना चुका था, शूल की भांति चुभने लगे. उसे देखता तो लगता कैक्टस पर पांव आ पड़ा है. क्यों कभीकभी लगता है जिसे हम सुकून समझे जा रहे थे वह तो हम खुद को भुलावा दे रहे थे. कभी अचानक सुकून खुद कीमत बन जाता है सुख की… हर चीज की एक कीमत जरूर होती है.
ये बीवियां ऐसी क्यों होती हैं? कितना फर्क है दोनों में? वह कितनी सख्त दिल और संपदा कितनी नर्म दिल. वह किसी शिकारी परिंदे सी चौकस और चौकन्नी… और संपदा नर्मनाजुक प्यारी मैना सी. कोई खबर रखने की कोशिश नहीं करती कि कहां क्या हो रहा है, कोई उस के बारे में क्या कह रहा है.
संपदा की फिगर कमाल की है. और पत्नी को लाख कहता हूं ऐक्सरसाइज करने को, पर नहीं. कैसी लगेगी वह नीची साड़ी में? उस की कमर तोबा? शरीर में कोई कर्व ही नहीं है, परंतु इस के बाद भी घर में मेरा व्यवहार ठीक रहा. कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया.
एक दिन संपदा ने पूछ ही लिया परिवार के बारे में. मैं ने बताया बीवी के अलावा 1 बेटा और 1 बेटी है. तब उस ने भी बताया कि उस की भी 1 बिटिया है, टिनी नाम है. पति के बारे में उस ने न तो कुछ बताया और न ही मैं ने कुछ पूछा. पूछ कर मूड नहीं खराब करना चाहता था. हो सकता है कह देती कि मैं आज जो कुछ हूं उन्हीं की वजह से हूं या बहुत प्यार करते हैं मुझे. उन के अलावा मैं कुछ सोच भी नहीं सकती. अमूमन बीवियां या पति भी यही कहते हैं. हां, अगर वह ऐसा कह देती तो यह जो थोड़ीबहुत नजदीकी बढ़ रही है वह भी खत्म हो जाती.
लेकिन उस से बात करने के बाद, उसे जानने के बाद एक बात हुई थी. वह मुझे कहीं से भी वैसी नहीं लग रही थी जैसा सब कहते थे. पहली बार लगा संपदा मेरे लिए जिस्म के अलावा कुछ और भी है. क्या मेरी राय बदल रही थी?
औफिस की ओर से न्यू ईयर पार्टी रखी गई थी. संपदा गजब की सुंदर लग रही थी. लो कट ब्लाउज के साथ गुलाबी शिफौन की साड़ी पहनी थी. उस ने जिन भी पी थी शायद. मेरी सोच फिर डगमगा सी गई. अजीब सी खुशी भी हो रही थी. एक उत्तेजना भी थी. यह तो बहुत बाद में जाना कि डांस करने, हंसने, पुरुषों से हाथ मिलाने से औरत बदचलन नहीं हो जाती, अगली सुबह संपदा फिर वैसी की वैसी. पहले जैसी थोड़ी सोबर, थोड़ी चंचल.
चाय पीते हुए मैं ने उस से कहा, ‘‘कल तुम बहुत खूबसूरत लग रही थीं. मैं ने पहली बार किसी औरत को इतना खुल कर हंसते व डांस करते देखा था. कुछ खास है तुम में.’’
उस ने आंखें फैलाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें डांस करते हुए ग्रेसफुल लगी? वैरी स्ट्रेज, बट दिस इज ए नाइस कौंप्लिमैंट. मैं तो उम्मीद कर रही थी कि आज सुनने को मिलेगा जानेमन कल बहुत मस्त लग रही थी या क्या चीज है यार यह औरत भी?’’
उस की हंसी नहीं रुक रही थी. अब मैं कैसे कहूं कि मैं भी उन्हीं मर्दों में से एक था. चीज तो मैं भी कहता था उसे.
अगले हफ्ते उस ने टिनी के जन्मदिन पर बुलाया था.
‘‘सुनो, मैं ने सिर्फ तुम्हें ही बुलाया है. मेरा मतलब औफिस में से.’’
मेरी उत्सुकता चौकन्नी हो गई थी. उस की चमकती आंखों में क्या था, मेरे प्रति भरोसा या कुछ और? क्यों सिर्फ मुझे ही बुलाया है? उसे ले कर वैभव से झगड़ा भी कर लिया था.
‘‘क्यों, पटा लिया तितली को?’’ कितने गंदे तरीके से कहा था उस ने.
‘‘किस की और क्या बात कर रहे हो?’’
‘‘उस की, जिस से आजकल बड़ी छन रही है. वही जिस ने सिर्फ तुम्हें दावत दी है. गजब की चीज है न.’’
बस बात बढ़ी और अच्छेखासे झगड़े में बदल गई. मैं यह सब नहीं चाहता था न ही कभी मेरे साथ यह सब हुआ था. खुद पर ही शर्म आ रही थी मुझे. मैं सोचता रहा, हैरान होता रहा कि ये सब क्या हो गया? क्यों बुरा लगा मुझे? खैर, इन सारी बातों के बावजूद मैं गया था. उस ने बताया कि इस साल टिनी 15 साल की हो जाएगी. मेरी आंखों के सामने मेरी बेटी का चेहरा आ गया. वह भी तो इसी उम्र की है. मैं ने देखा टिनी की दोस्तों के अलावा मैं ही आमंत्रित था. अच्छा भी लगा और अजीब भी. थोड़ी देर बाद पूछा था मैं ने, ‘‘टिनी के पापा कहां हैं?’’
‘‘हम अलग हो चुके हैं. उन्होंने दूसरी शादी कर ली है. मैं अपनी बिटिया के साथ रहती हूं.’’
कायदे से, अपनी मानसिकता के हिसाब से तो मुझे यह सोचना चाहिए था कि तलाकशुदा औरत और ऐसे रंगढंग? कहीं कोई दुखतकलीफ नजर नहीं आती. ऐसे रहा जाता है भला? जैसे कि तलाकशुदा या विधवा होना कोई कुसूर हो जाता है और ऐसी औरतों को रोतेबिसूरते ही रहना चाहिए. लेकिन यह जान कर पहली बात मेरे मन में आई थी कि तभी इतना आत्मविश्वास है. आज के वक्त में अकेले रह कर अपनी बच्ची की इतनी सही परवरिश करना वाकई सराहनीय बात है. वह मुझे और ज्यादा अच्छी लगने लगी, बल्कि इज्जत करने लगा मैं उस की. एक और बात आई मन में कि ऐसी खूबसूरत और अक्लमंद बीवी को छोड़ने की क्या वजह हो सकती है?
अब मैं उस के अंदर की संपदा तलाशने में लग गया. उस के जिस्म का आकर्षण खत्म तो नहीं हुआ था, पर मैं उस के मन से भी जुड़ने लगा था. मेरी आंखों की भूख, मेरे जिस्म की उत्तेजना पहले जैसी नहीं रही. हम काफी करीब आते गए थे. मैं कभीकभी उस के घर भी जाने लगा था. उस ने भी आना चाहा था पर मैं टालता रहा. अब उसे ले कर मैं पहले की तरह नहीं सोचता था. मैं उसे समझना चाहता था.
एक शाम टिनी का फोन मोबाइल पर आया, ‘‘अंकल, मां को बुखार है, आप आ सकते हैं क्या?’’
कई दिन लग गए थे उसे ठीक होने में. मैं ने उस की खूब देखभाल की थी और वह मना भी नहीं करती थी. हम दोनों को ही अच्छा लग रहा था. इस दौरान मैं ने कितनी बार उसे छुआ. दवा पिलाई, सहारा दे कर उठायाबैठाया पर मन बिलकुल शांत रहा.