आरोही ने रात 8 बजे औफिस से निकलते ही जय को फोन किया, ‘‘मैं अभी निकली हूं, तुम घर पहुंच गए?’’
‘‘हां, जल्दी फ्री हो गया था, सीधे घर ही आ गया. औफिस नहीं आया फिर.’’
‘‘डिनर का क्या करना है? कुछ बना लोगे या और्डर करना है? मु झे भी घर आतेआते 1 घंटा तो लग ही जाएगा.’’
‘‘और्डर कर दो यार, कुछ बनाने का मन नहीं… और हां आइसक्रीम भी खत्म हो गई है, वह भी और्डर कर दो.’’
आरोही ने फोन रख दिया, दिन काफी व्यस्त रहा था, शारीरिक और मानसिक रूप से काफी थक गई थी. अभी भी दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था…
जय और आरोही एक ही कंपनी में अलगअलग डिवीजन में काम करते हैं. आरोही पुणे की है और मुंबई में 2 साल से एक बड़ी कंपनी में जय से बड़ी पोस्ट पर है और बहुत अच्छी तरह अपनी लाइफ जी रही है. जय के साथ 1 साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही है. दोनों एक मीटिंग में मिले थे, एक ही बिल्डिंग में दोनों के औफिस हैं, बस अलगअलग हैं, जय दिल्ली का है. दोनों एकदूसरे के साथ खुशीखुशी फ्लैट शेयर कर रहे हैं और काम भी मिलबांट कर करते हैं.
दोनों के परिवार वालों को नहीं पता कि दोनों लिव इन में रहते हैं. आरोही का जय का मस्त स्वभाव बहुत अच्छा लगता है. जय को आरोही का जिम्मेदार स्वभाव भाता है. दोनों एकदूसरे से बिलकुल अलग हैं पर एकदूसरे को बहुत पसंद करते हैं. मगर आजकल जय के बारे में जितनी गहराई से सोचती जा रही थी, कहीं कुछ खल रहा था, जिस पर पहले कभी ध्यान नहीं गया था…
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तभी उस की मम्मी रेखा का फोन आ गया, दिन में एक बार आरोही की अपनी फैमिली से बात हो ही जाती. बात कर के आरोही ने डिनर और्डर कर दिया. वह जब घर पहुंची, जय कोई मूवी देख रहा था. फ्रैश हो कर आरोही भी लेट गई. इतने में खाना भी आ गया.
आरोही ने कहा, ‘‘चलो जय, खाना लगा लें?’’
‘‘प्लीज, तुम ही लगा लो, मूवी छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा है,’’ जय ने कहतेकहते आरोही को फ्लाइंग किस दे दिया. आरोही मुसकरा दी. दोनों ने डिनर साथ किया. मूवी खत्म होने पर जब जय सोने आया, आरोही लेटीलेटी फोन पर ही कुछ देख रही थी. जय ने आरोही के पास लेट कर अपनी बांहों में भर लिया.
आरोही भी उस के सीने से लगती हुई बोली, ‘‘कैसा था दिन?’’
‘‘बोर.’’
आरोही चौंकी, ‘‘क्यों?’’
‘‘बहुत काम करना पड़ा.’’
‘‘तो इस में बुराई क्या है?’’
‘‘अरे यार, मेरा मन ही नहीं करता कोई काम करने का, मन होता है कि बस आराम करूं. घर में भी सब मु झे कामचोर कहते हैं,’’ जय ने हंसते हुए बताया और आगे शरारत से कहा, ‘‘असल में बस मन यही होता है कि या आराम करूं या तुम्हें प्यार.’’
‘‘पर डियर, खाली आराम या मु झे प्यार करने से तो लाइफ नहीं चलेगी न?’’
‘‘चल जाएगी बड़े आराम से… देखो, तुम्हारी सैलरी मु झ से बहुत ज्यादा है, इस में हमारा घर आसानी से चल सकता है और तुम हो भी अपने पेरैंट्स की इकलौती संतान, वहां का भी सब तुम्हारा है. चलो, शादी कर लेते हैं. मजा आ जाएगा,’’ कहतेकहते जय उस के थोड़ा और नजदीक आ गया.
2 युवा दिलों की धड़कनें जब तेज होने लगीं तो बाकी बातों की फिर जगह न रही. सब भूल दोनों एकदूसरे में खोते चले गए. अगले कुछ दिन तो रोज की तरह ही बीते, दोनों पतिपत्नी तो नहीं थे पर लिव इन में रहने वाले रहते तो पतिपत्नी की ही तरह हैं. रिश्ते पर मुहर नहीं लगी होती है पर रिश्ता तो होता ही है.
कभी नोक झोंक भी होती, फिर रूठनामनाना भी होता, पर कुछ बातें आरोही को आजकल सचमुच खल रही थीं, बातें तो छोटी थीं पर उन पर ध्यान तो जा ही रहा था. हर तरह के खर्च आरोही के ही जिम्मे आते जा रहे थे, सारे बिल्स, खानेपीने के सामान की जिम्मेदारी, फ्लैट का किराया भी काफी दिन से जय ने नहीं दिया था. यह विषय आने पर कहता कि यार, तुम तो मु झ से ज्यादा कमाती हो, मेरे पास तो प्यार है, बस.
ऐसा नहीं कि जय की सैलरी बहुत कम थी, हां, आरोही जितनी नहीं थी. इस पर
आरोही कहना तो बहुत कुछ चाहती थी पर जय को इतना प्यार करने लगी थी कि उस से पैसों की बात करना उसे बहुत छोटी बात लगती थी. वह यही सोचती कि एक दिन तो दोनों शादी कर ही लेंगे, क्या फर्क पड़ता है, पर जितना जय को दिन ब दिन जान रही थी, वह मन ही मन थोड़ा अलर्ट हो रही थी. 6 महीने और बीते, आरोही ने नोट किया, जय जब भी अपने घर दिल्ली जाता, वहां से उसे न कोई फोन करता, न किसी तरह का कोई मतलब रखता. एक दिन उस के कलीग रवि ने आरोही को हिंट दिया कि जय अपने पेरैंट्स की पसंद की लड़की से शादी करने के लिए तैयार है, इसलिए उस के दिल्ली के चक्कर बढ़ गए हैं.
आरोही के लिए यह एक बड़ा झटका था. वह अकेले में खूब रोई, सचमुच जय को अपना जीवनसाथी मानने लगी थी. बहुत दुखी भी रही पर वह आजकल की हिम्मती, आत्मनिर्भर और इंटैलीजैंट लड़की थी. जीभर कर रोने के बाद वह सोचने लगी कि अच्छा हुआ,जय की सचाई पता चल गई. वही तो सारे खर्च, सारे काम करती आ रही थी. ठीक है, अब ब्रेकअप होगा, ठीक है, कोई बात नहीं, दुनिया में न जाने कितनी लड़कियों के साथ ऐसा होता है. मैं एक चालाक लड़के के लिए अब और नहीं रोऊंगी, एक बार फिर अपनी लाइफ शुरू करूंगी.
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जय जब वापस आया तो आरोही ने उसे लंच टाइम में औफिस की कैंटीन में आने के लिए कहा और सीधेसीधे बात करना शुरू किया, ‘‘देखो जय, मु झे साफसाफ बात करना पसंद है… अब हम साथ नहीं रह सकते.’’
जय चौंका, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मैं और बेवकूफ नहीं बन सकती, तुम आराम से अपने पेरैंट्स की मरजी से शादी करो, मु झे कोई प्रौब्लम नहीं है. मैं तुम्हारे साथ रह कर काफी आर्थिक रूप से नुकसान उठा चुकी हूं. अब इतनी भी बेवकूफ नहीं कि तुम्हें पालती रहूं और जब तक तुम्हारी शादी न हो, तुम्हारे शरीर की जरूरतों के लिए एक सुविधा बनी नहीं… अब यह बताओ मैं दूसरा फ्लैट ढूंढ़ू या तुम जाओगे?’’
जय का चेहरा शर्म और अपमान से काला हो गया. झेंपते हुए बोला, ‘‘मैं ही चला
जाता हूं.’’
‘‘ठीक है, अगर हो सके तो कल शनिवार है, कल कहीं भी शिफ्ट हो जाना, मैं पुणे जा
रही वीकैंड में… मेरे आने से पहले अपना सामान ले जाना.’’
आरोही ने औफिस से जल्दी उठ कर रात की ही बस पकड़ ली और पुणे चली गई. शिवनेरी बस पुणे और मुंबई के बीच चलने वाली आरामदायक बसें हैं, सोफे जैसी सीट पर बैठ कर आरोही बीते दिनों को याद कर उदास तो हो रही थी पर वह लाइफ में आगे बढ़ने के लिए भी खुद को संभालती जा रही थी.
कई बार आंखें नम हुईं, कई बार दिल बैठने को हुआ पर जय की चालाकियां बहुत दिनों से देख रही थी, बहुत कुछ खलने लगा था. दिमाग कहता रहा जो हुआ, अच्छा हुआ.
पुणे आने तक दिल भी दिमाग का साथ देने लगा कि अच्छा हुआ, एक लालची, स्वार्थी और कामचोर इंसान का साथ छूटा. मजबूत कदमों से चलते हुए उस ने घर पहुंच कर खुद को मां की नर्म, स्नेही बांहों में सौंप दिया. मां मां थीं, उदास चेहरा देख कर सम झ गईं बेटी रात को यों ही तो नहीं आई. हमेशा सुबह की बस पकड़ कर आती थी, पर उस समय किसी ने कुछ नहीं पूछा.
उस के पापा संजय ने उसे खूब दुलारा. खाना खा कर थकी हूं मां, सुबह बात करते हैं, कह कर आरोही सोने लेट गई.
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शनिवार और रविवार आरोही ने हमेशा की तरह अपने मम्मीपापा के साथ बिताए, तीनों थोड़ा घूम कर आए, बाहर खायापीया. रेखा आरोही की पसंद की चीजें बनाती रहीं, आरोही का बु झा चेहरा देख 1-2 बार पूछा, ‘‘आरोही, सब ठीक तो है न? औफिस के काम का स्ट्रेस है क्या?’’
‘‘नहीं मम्मी, सब ठीक है.’’
रेखा सम झदार मां थीं. सम झ गईं, बेटी अभी अपने मन की कोई बात शेयर करने के मूड में नहीं है, जब ठीक सम झेगी, खुद ही शेयर कर लेगी. मांबेटी की बौंडिंग अच्छी है, जब ठीक लगेगा, बताएगी. संडे की रात आरोही वापस मुंबई आने के लिए पैकिंग कर रही थी.
संजय ने कहा, ‘‘बेटा, एक परिचित हैं, उन्होंने अपने बेटे सुमित के लिए तुम्हारे लिए
बात की है. तुम जब ठीक सम झो, उन से मिल लो, कहो तो अगली बार तुम्हारे आने पर उन्हें बुला लूं?’’
बैग बंद करते हुए आरोही के हाथ पल भर को रुके, फिर रेखा की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मु झे थोड़ा समय दो.’’
संजय ने कहा, ‘‘अरे बेटा, अब तुम 30 की हो गई, वैलसैटल्ड हो… यह परिवार अच्छा है. एक बार मिल तो लो. सबकुछ तुम्हारी हां कहने के बाद ही होगा.’’
आरोही ने कहा, ‘‘इस समय मु झे जाने दें, मैं बहुत जल्दी आप से इस बारे में बात कर लूंगी.’’
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संजय और रेखा आज के जमाने के पेरैंट्स थे… उन्होंने बेटी पर अपनी मरजी कभी नहीं थोपी. उसे भरपूर सहयोग दिया हमेशा. यह भी एक कारण था कि आरोही बहुत स्ट्रौंग, बोल्ड और इंटैलीजैंट थी, वह अपनी शर्तों पर जीने वाली लड़की थी, फिर भी अपने पेरैंट्स की बहुत रिस्पैक्ट करती.
रेखा ने मन ही मन कुछ अंदाजा लगाया कि कोई बात है जरूर, हमेशा खिला रहने वाला
चेहरा यों ही नहीं बु झा, फिर कहा, ‘‘ठीक है,
तुम आराम से जाओ… ये बातें तो फोन पर भी
हो जाएंगी.’’
मुंबई अपने फ्लैट पर आ कर आरोही ने देखा कि जय अपना सारा सामान ले जा चुका है… खालीखाली तो लगा पर उस ने अपनेआप को इतने समय में संभाल लिया था. उस ने यह बात स्वाभाविक तौर पर ली. खुद से ही कहा
कि इतने दिन का साथ था, कोई बात नहीं.
आदत थी उस की, छूट जाएगी. ऐसे झूठे रिश्तों के लिए अफसोस करने में वह अपनी लाइफ नहीं बिता सकती. अभी बहुत कुछ करना है, खुश रहना है, जीना है, लाइफ जय जैसों के साथ खत्म नहीं हो जाती.
बस यह विचार आते ही आरोही रोज की तरह औफिस पहुंची. रवि ने बताया कि जय किसी दोस्त के साथ रहने चला गया है… तुम ने जो किया, ठीक किया.
जय के औफिस की बिल्डिंग से आतेजाते जब भी कभी उस का आमनासामना हुआ, आरोही के निर्विकार चेहरे को देख जय की कभी हिम्मत ही नहीं हुई उस से बात करने की. कुछ महीनों बाद आरोही ने पेरैंट्स के कहने पर सुमित से मिलना स्वीकार कर लिया.
सुमित मुंबई में ही काम करता था. वह अपने 2 दोस्तों के साथ फ्लैट शेयर करता था. पुणे में सुमित अपने मम्मीपापा, विकास और आरती और छोटी बहन सीमा के साथ उन के घर आया. पहली मीटिंग में तो सब एकदूसरे से मिल कर खुश हुए.
मुंबई में ही होने के कारण सुमित चाहता था कि वह मुंबई में ही जौब करने वाली लड़की के साथ शादी करे. सब को यह सोच कर अच्छा लग रहा था कि दोनों पुणे आतेजाते रहेंगे. दोनों के ही घर एक जगह थे, सबकुछ ही देखते तय होता गया. आरोही ने पेरैंट्स की पसंद का मान रखा, सुमित से जितना मिली, वह ठीक ही लगा.
आरोही चाहती थी कि नया रिश्ता वह ईमानदारी के साथ शुरू करे, वह
सुमित को जय के साथ लिव इन में रहने के बारे में बताना चाहती थी. इस बारे में जब उस ने अपने पक्के दोस्त रवि से बात की, तो रवि ने कहा, ‘‘क्या जरूरत है? मत बताओ, कोई भी लड़का कितनी भी मौडर्न हो, यह बरदाश्त नहीं करेगा.’’
‘‘क्यों? अगर वह मु झे बताए कि वह भी किसी गर्लफ्रैंड के साथ लिव इन में रहा है, तो मैं तो कुछ नहीं कहूंगी, उलटा इस बात पर खुश होऊंगी कि मेरे होने वाले पति ने ईमानदारी के साथ मु झ से अपना सच शेयर किया.’’
‘‘यार, तुम आरोही हो. सब से अलग, सब से प्यारी लड़की,’’ फिर आरोही को हंसाने के लिए शरारत से कहा, ‘‘मेरी बीवी आज तक मेरे कालेज की गर्लफ्रैंड को ले कर ताने मारती है… अब बोलो.’’
आरोही हंस पड़ी, ‘‘बकवास मत करो, जानती हूं मैं तुम्हारी बीवी को, वह बहुत अच्छी हैं.’’
‘‘हां, यही तो… सम झो, लड़के जल्दी हजम नहीं करते ऐसी बातों को… वह तो तुम बहुत बड़े दिल की हो.’’
रवि ने काफी सम झाया पर आरोही जब सुमित के कहने पर उस के साथ डिनर पर गई, तो आरोही ने जय के बारे में सब बता दिया.
सुन कर सुमित मुसकराया, ‘‘तुम बहुत सच्ची हो. आरोही, मु झे इन बातों का फर्क नहीं पड़ता, मेरे भी 2 ब्रेकअप हुए हैं, क्या हो गया. यह तो लाइफ है. होता ही रहता है. अब तुम मिली हो, बस मैं खुश हूं.’’
आरोही के दिल से जैसे बो झ हट गया.
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1-2 बार और सुमित से मिलने के बाद उस ने अपने पेरैंट्स को इस शादी के लिए हां कर दी. उन की खुशी का ठिकाना न था. 4 महीने बाद की शादी की डेट भी फिक्स हो गई.
दोनों पक्ष शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए. बहुत तो नहीं पर सुमित और आरोही बीचबीच में मिलते रहते, दोनों औफिस के काम में व्यस्त रहते पर चैटिंग, फोन कौल्स चलते रहते. शादी पुणे में ही धूमधाम से हुई. दोनों के काफी कलीग्स आए.
मुंबई आ कर आरोही के ही फ्लैट में सुमित अपने सामान के साथ शिफ्ट कर गया.
दोनों खुश थे, आरोही ने जय का खयाल पूरी तरह से दिलोदिमाग से निकाल दिया था. 1 साल बहुत खुशी से बीता.
आरोही अपनी लाइफ से अब पूरी तरह संतुष्ट व सुखी थी. दोनों छुट्टी होने पर कभी साथ पुणे निकल जाते, कभी किसी के पेरैंट्स मिलने आ जाते. सब ठीक था, आरोही की अगली 2 प्रोमोशंस तेजी से हुई, वह अब काफी अच्छे पैकेज पर थी, उस ने बहुत जल्दी अब एक अपना फ्लैट लेने की इच्छा जाहिर की.
सुमित ने कहा, ‘‘देखो आरोही, तुम्हारी सैलरी मु झ से अब काफी ज्यादा है, तुम चाहो तो ले लो.’’
आरोही चौंकी, ‘‘अरे, मेरा पैसा तुम्हारा पैसा अलगअलग है क्या? हमारा भी प्यारा सा अपना घर होगा, कब तक इतना किराया देते रहेंगे?’’
‘‘देख लो, तुम ही सोच लो, मैं तो अपनी सैलरी से ईएमआई दे नहीं पाऊंगा, घर भी पैसा भोजना होता है मु झे.’’
आरोही ने सुमित के गले में बांहें डाल दीं. कहा, ‘‘ठीक है, तुम बस मेरे साथ फ्लैट पसंद करते चलो, सब हो जाएगा.’’
यह सच था कि सुमित की सैलरी आरोही से बहुत कम थी और जब से आरोही की प्रोमोशंस हुई थीं, सुमित की मेल ईगो बहुत हर्ट होने लगी थी. वह अकसर उखड़ा रहता. आरोही यह सम झ रही थी, उसे खूब प्यार करती, उस की हर जरूरत का ध्यान रखती और जब आरोही ने कहा कि सुमित, मैं सोच रही हूं, मैं औफिस जानेआने के लिए एक कार ले लूं. बस में ट्रैफिक में बहुत ज्यादा टाइम लग रहा है. मजा आएगा, फिर पुणे भी कार से जायाआया करेंगे, अभी तो बस और औटो में बैठने का मन नहीं करता.’’
सुमित ने कुछ तलख लहजे में कहा, ‘‘तुम्हारे पैसे हैं, चाहे उड़ाओ चाहे बचाओ, मु झे क्या,’’ कह कर सुमित वहां से चला गया.
आरोही इस बदले रूप पर सिर पकड़ कर बैठी रह गई. 2 महीने में ही आरोही ने फ्लैट और कार ले ही ली. सुमित मशीन की तरह पसंद करने में साथ देता रहा.
थोड़ा समय और बीता तो आरोही को
सुमित के व्यवहार में कुछ और बदलाव दिखे, अब वह कहता, ‘‘तुम ही पुणे जा कर सब से मिल आओ, तो कभी कहता टूर पर जा रहा हूं, 2 दिनों में आ जाऊंगा.’’
आरोही ने कहा, ‘‘मैं भी चलूं? कार से चलते हैं, मैं घूम लूंगी… तुम अपना काम करते रहना. आनेजाने में दोनों का कुछ चेंज हो जाएगा.
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सुमित ने साफ मना कर दिया. वह चला गया. अब वह पहले की तरह बाहर जा कर आरोही से उस की खबर बिलकुल न लेता. आरोही फोन करती तो बहुत बिजी हूं, घर आ
कर ही बात करूंगी, कह कर फोन रख देता. सुमित बहुत बदल रहा था और इस का कारण
भी आरोही के सामने जब आया, तो वह ठगी सी रह गई.
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एक सुबह सुमित सो रहा था, उस का मोबाइल साइलैंट था, पर जब कविता नाम उस की स्क्रीन पर बारबार चमकता रहा, आरोही ने धीरे से फोन उठाया और दूसरे कमरे में जा कर जैसे ही हैलो कहा, फोन कट गया. आरोही ने यों ही व्हाट्सऐप चैट खोल ली और जैसेतैसे फिर कविता और सुमित की चैट पढ़ती गई, साफ हो गया कि दोनों का जबरदस्त अफेयर चल रहा है, गुस्से के मारे आरोही का खून खौल उठा.
साफसाफ सम झ आ गया कि सुमित की बेरुखी का क्या कारण है. वह चुपचाप सोफे पर बैठी कभी रोती, कभी खुद को सम झाती, सुमित के जागने का इंतजार कर रही थी, सुमित जब सो कर उठा, आरोही के हाथ में अपना फोन देख चौंका. आरोही का चेहरा देख उसे सब सम झ आ गया. बेशर्मी से बोला, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘तुम बताओ, यह सब क्या चल रहा है?
‘‘तो तुम भी तो शादी से पहले लिव इन रिलेशनशिप में रही थी?’’
आरोही हैरान रह गई. बोली, ‘‘ये सब तो शादी से पहले की बात है और तुम्हें सब पता था. मैं ने तुम्हें शादी के बाद तो कभी धोखा नहीं दिया? तुम तो मु झे अब धोखा दे रहे हो…’’
‘‘असल में मैं तुम से अलग होना चाहता हूं… मैं अब कविता से शादी करना चाहता हूं.’’
आरोही ने गुस्से से कहा, ‘‘तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आ रही है?’’
‘‘तुम्हें आई थी लिव इन में रहते हुए?’’
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‘‘पहले की बात अब इतने दिनों बाद करने का मतलब? अब अपनी ऐय्याशी छिपाने के लिए मु झ पर ऊंगली उठा रहे हो?’’
‘‘मैं ने अपना ट्र्रांसफर दिल्ली करवा लिया है. आज मैं पुणे जा रहा हूं,’’ कह कर सुमित आरोही की तरफ कुटिलता से देखते हुए मुसकराया और वाशरूम चला गया.
आरोही को कुछ नहीं सू झ रहा था. यह क्या हो गया, अपना अफेयर चल रहा है, तो गड़े मुरदे उखाड़ कर मु झ पर ही इलजाम डाल रहा है. मेड आ गई तो वह भी औफिस के लिए तैयार होने लगी और चुपचाप सुमित को एक शब्द कहे बिना औफिस चली गई.
रवि ने उस की उड़ी शकल देखी तो उसे कैंटीन ले गया और परेशानी का कारण पूछा. देर से रुके आंसू दोस्ती की आवाज सुन कर ही बह निकले. वह सब बताती चली गई. इतने में दोनों की एक और कलीग दोस्त सान्या भी आ गई. सब जान कर वह भी हैरान रह गई. थोड़ी देर बाद तीनों उठ कर काम में लग गए.
आरोही के दिल को चैन नहीं आ रहा था. फिर एक और धोखा. क्या करे. क्या यह रिश्ता किसी तरह बचाना चाहिए? नहीं, जबरदस्ती
कैसे किसी को अपने से बांध कर रखा जा सकता है? यह तो प्यार, विश्वास का रिश्ता है. अब तो कुछ भी नहीं बचा. वह अपना आत्मसम्मान खो कर तो जबरदस्ती इस रिश्ते को नहीं ढो सकती.. जो होगा देखा जाएगा. ऐसे रिश्ते का टूटना ही अच्छा है.
जब रात को आरोही घर लौटी, सुमित जा चुका था. वह अपनी पैकिंग अच्छी तरह
कर के गया था, लगभग सारा सामान ले गया. कुछ दिन बाद ही आरोही को तलाक के पेपर मिले तो वह रो पड़ी. यह क्या हो गया, सब बिखर गया. उस की कहां क्या गलती है.
सुमित ने उसे फोन किया और कहा, ‘‘साइन जल्दी कर देना, मैं कोर्ट में यही कहने वाला हूं कि तुम चरित्रहीन हो, तुम पहले भी लिव इन में बहुत समय रह चुकी हो और मु झे ये सब बताया नहीं गया था.’’
‘‘पर मैं ने तुम्हें सारा सच बता दिया था और तुम्हें कोई परेशानी नहीं थी.’’
‘‘पर तुम्हारे पास कोई सुबूत नहीं है न कि तुम ने मु झे सब बता दिया था.’’
आरोही चुप रह गई. अगले दिन रवि और सान्या ने सब जान कर अपना सिर पकड़ लिया. फिर सान्या ने पूछा, ‘‘आरोही, तुम ने कैसे बताया था सुमित को जय के बारे में?’’
‘‘मिल कर, फिर बहुत कुछ चैटिंग में भी इस बारे में बात होती रही थी.’’
‘‘चैट कहां है?’’
‘‘उन्हें तो मैं डिलीट करती रहती हूं. सुमित भी जानता है कि मु झे चैट डिलीट करते रहने की आदत है.’’
‘‘अभी राजनीति में, ड्रग केसेज में जो इतनी चैट खंगाल दी गईं, वह भी नामी लोगों की, तो इस का मतलब यह मुश्किल भी नहीं.’’
‘‘और मेरे पास कविता और उस के अफेयर का सुबूत है… मैं ने जब उन दोनों की चैट पढ़ी, खूब सारी पिक्स ले ली थीं.’’
‘‘यह अच्छा किया तुम ने, गुस्से में होश नहीं खोया, दिमाग लगाया. भांडुप में मेरा कजिन सुनील पुलिस इंस्पैक्टर है, उस से बात करूंगी, वह तुम्हारी पुरानी चैट निकलवा पाएगा, इसे तो तलाक हम देंगे. बच्चू याद रखेगा.’’
सान्या ने उसी दिन सुनील से बात की. उस ने कहा सब हेल्प मिल जाएगी. रवि और सान्या आरोही के साथ खड़े थे. वीकैंड आरोही ने पुणे जा कर अपने पेरैंट्स से बात करने का, उन्हें पूरी बात बताने का मन बनाया.
अभी तक आरोही ने अपने पेरैंट्स से कुछ भी शेयर नहीं किया था. सुमित आरोही से अब बिलकुल टच में नहीं था. कभीकभी एक मैसेज तलाक के बारे में कर देता.
संजय और रेखा पूरी बात सुन कर सिर पकड़ कर बैठ गए. कुछ सम झ न आया, दोनों को जय के बारे में भी अब ही पता चला था, क्या कहते, बच्चे जब आत्मनिर्भर हो कर हर फैसला खुद लेने लगें तो सम झदार पेरैंट्स, कुछ कहने का फायदा नहीं है, यह भी जानते हैं. जय के साथ, सुमित के साथ बेटी का अनुभव अच्छा नहीं रहा, प्यारी, सम झदार बेटी दुखी है, यह समय उसे कुछ भी ज्ञान देने का नहीं है.
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इस समय उसे अपने पेरैंट्स की सपोर्ट चाहिए. कोई ज्ञान नहीं… और सुमित तो गलत कर ही रहा था… जय की बात जरूर अजीब लगी थी, पर अब वे बेटी के साथ थे.
संजय ने कहा, ‘‘मैं आज ही वकील से बात करता हूं.’’
रेखा ने सुमित के पेरैंट्स अनिल और रमेश से बात की. मिलने के लिए कहा, उन्होंने आरोही को चरित्रहीन कहते हुए रेखा के साथ काफी अपमानजनक तरीके से बात की तो सब को सम झ आ गया, यह रिश्ता नहीं बचेगा.
रवि और सान्या आरोही के टच में थे. सुनील ने काफी हिम्मत बंधा दी थी, बहुत कुछ सोच कर सुमित को आरोही ने फोन किया, ‘‘सुमित, मैं पुणे आई हुई हूं, कल सुबह चली जाऊंगी. आज तुम से मिलना चाहती हूं… कैफे कौफी डे में आज शाम को 5 बजे आओगे?’’
‘‘ठीक है,’’ पता नहीं क्या सोच कर सुमित मिलने के लिए तैयार हो गया.
आरोही बिना पेरैंट्स को बताए सुमित से मिलने के लिए पहुंची. दिल में अपमान और क्रोध का एक तूफान सा था. आज भड़ास निकालने का एक मौका मिल ही गया था. एक टेबल पर बैठा सुमित उसे देख कर जीत और बेशर्मी के भाव के साथ मुसकराया. उस के बैठते ही कहा, ‘‘देखो, गिड़गिड़ाना मत, मु झे दीनहीन लड़कियां अच्छी नहीं लगतीं.’’
यह सुनते ही आरोही के दिल में कुछ बचा भी एक पल में खत्म हो गया. मजबूत स्वर में
बोली, ‘‘मु झे भी धोखेबाज लोग अच्छे नहीं लगते. आज तुम्हें बस इतना बताने आई हूं कि मैं जा कर तलाक के पेपर साइन कर दूंगी… अभी तक पूरी तैयारी भी तो करनी थी.’’
सुमित उस की आवाज की मजबूती पर चौंका, ‘‘कैसी तैयारी?’’
‘‘तुम मु झे चरित्रहीन बताने वाले हो न? मैं ने भी तुम्हारी और कविता की सारी चैट के फोटो ले लिए थे और इंस्पैक्टर सुनील हमारी वे चैट निकाल रहे हैं, जिन में मैं ने तुम्हें साफसाफ जय के बारे में पहले ही बता दिया था और तुम्हें
उस में कोई आपत्ति नहीं थी. तुम्हारे ऊपर तो ऐसीऐसी बात उठेगी कि किसी लड़की को आगे धोखा देना भूल जाओगे, सारी ऐयाशियां न भूल जाओ तो कहना.
‘‘मैं कभी कमजोर लड़की नहीं रही… तुम्हारे जाने का अफसोस हो ही नहीं सकता
मु झे, मैं खुश हूं कि जल्द ही तुम से पीछा छूट गया. मैं तो एक बार फिर जीवन में आगे बढ़ने के लिए पूरी तरह तैयार हूं. अब कोर्ट में अपने वकील के साथ मिलेंगे,’’ कह कर मुसकराते हुए आरोही खड़ी हो गई. फिर कुछ याद करते हुए बैठ गई. वेटर को इशारा करते हुए बिल मांगा और कहा, ‘‘कौफी भले ही ठंडी हो गई थी, भले ही पी भी नहीं, पर आज एक बार फिर मेरे आत्मविश्वास को देख कर तुम जैसे, जय जैसे पुरुष की यह उड़ी शकल देखने में बहुत मजा आया,’’ कहतेकहते उस ने पेमैंट की और वहां से निकल गई.
सुमित आने वाले तूफान से अभी से घबरा गया था.
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