एक किताब सा चेहरा: कौन थी गीतिका

वह अकसर मुझे दिखाई देती थी, जब मैं अपनी साइकिल से सूनीसूनी सड़कों पर शिमला की ठंडक को मन में लिए जब भी निकला हूं मैं… बर्फीले हवा के झेंके सी गुजर जाती है वह. नहीं, वह नहीं गुजरती मैं ही गुजर जाता हूं. उस के पास धीमीधीमी साइकिल पर चलतेचलते मेरा मन होता है कि मैं रुक जाऊं उसे देखने के लिए. कभी तो ऐसा भी लगा साइकिल पर ही रुक कर पलट कर देख लूं. पर शायद यह लुच्चापन लगेगा, वह मुझे लोफर या बदमाश भी समझ सकती है. मैं नहीं कहलाना चाहता बदमाश उस की नजरों में. इसलिए सीधा ही चला जाता हूं. मन में कसक लिए उसे अच्छी तरह देखने की.

वह मुझे आजकल की लड़कियों सी नहीं दिखती थी. अगर तुम पूछोगे कि आजकल की लड़कियां तो मैं बिलकुल पसंद नहीं करूंगा. आज की लड़कियों को पसंद करता भी नहीं क्यों एक फूहड़पन सा झलकता है इन लड़कियों में. अजीब सा चेहरा बना कर बात करना, सैल्फी खींचखींच कर चेहरे और विशेषकर होंठों को सिकोड़े रहने की आदत की शिकार नहीं बीमार कहिए बीमार हो गई हैं आज की लड़कियां.

पहनावा सोचते ही उबकाई आने लगती है. मुझे जीरो साइज के पागलपन में पागल लड़कियां अपने शरीर की गोलाइयों को पूरा सपाट बना देती हैं. इस से जो आकर्षण होना चाहिए वह बचता ही नहीं. अब आप कहेंगे मैं पागल हूं जो आज के माहौल के लिए, आधुनिक युग के लिए ऐसा बोल रहा हूं.

तो साहब, ऐसा नहीं शरीर को प्रयोगशाला बनाने के साथ ही कपड़ों की तो बात ही क्या है? घुटनों के पास से फटी जींस, कमर, पेट दिखाता टौप, कहींकहीं तो पिडलियों के पास से भी फटी जींस के भीतर से झंकते शरीर को देख कर मुझे तो घिन आती है. कहीं से भी सुंदर नहीं दिखती ऐसी लड़कियां. आगे भी सुन लीजिए. बालों को भी नहीं छोड़ा, नीले, लाल कलर के रंग में रंग बाल देख कर मसखरी करने वाले जोकरों की याद आ जाती है.

अब आप बोलें या सोचें क्या इन से प्रेम किया जा सकता है? दिल में बसाया जा सकता है लंबे प्रेम संबंध चलें ऐसी कोई कल्पना की जा सकती है? नहीं साहब, बिलकुल नहीं. एक बात तो बताना ही भूल गया जनाब कि इन का प्रेम भी फास्ट फूड जैसा होने लगा है. विश्वास ही नहीं होता ये कितनों के साथ एकसाथ प्रेम करती हैं. एक से ब्रेकअप हुआ तो दूसरा रैडी है. दूसरे के साथ ब्रेकअप हुआ तो तीसरा तैयार है… नुक्कड़ पर फोन करने की देर है.

अब ऐसे फास्ट फूड के जमाने में कोई शीतल झरने सी लड़की. जी हां लड़की, दिख जाए तो मन बावला हो उठता है. मेरा भी मन बावला हो उठा उस लड़की को देख कर.

घर पर जा कर मैं ने प्रण किया अब तो मैं कुछ दिनों में उस लड़की से जरूरजरूर बात करूंगा. मैं शिमला की ठंडक को मन में संजोए सो गया. कमरे के दरवाजे और खिड़की पर बर्फ की परतें जमनी शुरू हो गई थीं. गरम रजाई के भीतर उस लड़की की सांसों की गरमी मैं महसूस कर रहा था, बर्फ से ढकी पहाडि़यों के पीछे से लड़की का चेहरा बारबार झंक कर मुझे रातभर परेशान करता रहा और मैं जागता रहा, सोता रहा.

सुबह जब नींद खुली तो देखा 9 बजने जा रहे थे. बर्फ की परतें जो रात से

खिड़की और दरवाजे पर लिपटी थीं. हलकीहलकी पिघलने लगी थीं. हलकी सी धूप पहाडि़यों से अंगड़ाई लेते हुए पहाडि़यों की गोद में बसे कौटेजों पर बिखरने लगी थी. क्या करूं? मन नहीं कर रहा था उठने का. चाय पी लेता हूं. नाश्ते के बाद निकलूंगा. आज संडे है पर संडे को भी लाइब्रेरी खुलती है. नाश्ते के बाद 11 साढ़े 11बजे तक लाइब्रेरी पहुंच जाऊंगा. रास्ते में फिर मिलेगी वह लड़की. मैं आज पक्का उस से बात करूंगा, चाहे जो हो. यही सोच कर मैं ने चाय पी पर चाय ठंडी हो गई थी.

गरम करने के लिए दोबारा केतली उठाई. चाय के बाद मैं ने गाम पानी के गीजर को औन किया. तब तक कपड़ों की तैयारी में लग गया कि आज कौन से कपड़े पहनूं जिन से वह लड़की इंप्रैस हो जाए. सोचतेसोचते सब्ज कलर की जींस और ब्लैक टीशर्ट निकाली. हलकेहलके गरम पानी की उड़ती भाप में भी लड़की का चेहरा बनता रहा बिगड़ता रहा, पहाडि़यों से भी वह झंकती रही. मैं उसे देखता रहा.

नहा कर जब बाहर आया तो भूख सी महसूस हो रही थी मुझे. फ्रिज देखा तो कुछ अंडे थे, लेकिन ब्रैड नहीं थी. अब क्या करूं? केसरोल देखा तो कल का एक परांठा बचा पड़ा था. चलो हो गया नाश्ते का इंतजाम. बासी परांठा और ताजा आमलेट. फटाफट मैं प्याज, हरीमिर्च और धनियापत्ती काट कर अंडे फेंटने लगा. नाश्ता भी मैं ने गरम कंबल में लिपटे हुए खाया. नाश्ते के बाद आदमकद आइने के सामने खड़ा हुआ. खुद को आईने में देख कर सोचने लगा कि क्या वह मुझे पसंद करेंगी? बुरा तो नहीं मैं 5 फुट 11 इंच की हाइट, हलकेहलके कर्ली बाल, लंबी नाक, घनी मूंछें, खिलता रंग. पसंद करेगी बात भी करेगी. चेहरे से कुछकुछ शायर सा लगता हूं जैसेजैसे याद नहीं आ रहा, किस ने कहा था? शायद किसी दोस्त ने. ‘वह उस गीत सा…’ कौन सा गीत हां याद आया:

‘किसी नजर को तेरा इंजतार आज भी है…’ सुरेश वाडकर पर फिल्माया गया था यह गीत. डिंपल कपाडि़या बेचैन सी हो कर आती है. चलो देखते हैं…

तैयार हो कर कौटेज से बाहर निकला. धूप अच्छी लग रही थी. हलकीहलकी कुनकुनी सी. जींसब्लेजर में भी इंतजार वाले गीत सा महसूस कर रहा था. फिर सोचा साइकिल आज ठीक रहेगी. काश बाइक ले कर आता घर से, घर तो दिल्ली था, जौब शिमला में थी. साइकिल पसंद थी, इसलिए साइकिल उठा लाया. पर साइकिल से क्या वह इंप्रैस होगी? ऐसा करता हूं मकानमालिक से बाइक ले लेता हूं आज. बाइक ठीक रहेगी.

मकानमालिक ने दे दी बाइक की चाबी. वे आज रैस्ट के मूड में थे. शाम को ही निकलने के मूड में थे. संडे जो था. खैर मैं ने बाईक निकाली और चल दिया शिमला की अजगर जैसी सड़कों पर. सर्पीली सड़कों के जाल, पहाडि़यों की गगन चूमती चोटियां, हंसता सूरज, मुसकराती धूप, पौधोंफूलों से टपकती बर्फ, पिघलती बर्फ की खामोशियां, हवाओं में बहती खुशबू, गरमगरम कपड़ों में कौटेजों से निकल कर धूप को पीते लोग.

हरियाली की चूनर, चिनार के पेड़ों की वे कतारें, कौटेज से उठता धुआं. सबकुछ कितना मनमोहक है, कितना सुंदर, प्यारा और जीवन से प्यार करना सिखाता. ये प्रकृति का अद्भुत चित्र. एक अनदेखे चित्रकार की खूबसूरत कलाकृति यह सृष्टि. बाइक पर उसे याद आया सड़क के किनारे एक छोटा सा देव स्थान है. वह तुंरत उस जगह पहुंच गया.

जूते खोल कर वह आगे बढ़ा. देखा तो घना वटवृक्ष है, उस ने ध्यान से देखा तो पाया बरसों पुराना है शायद सैकड़ों साल पुराना. बहुत घना. उस के नीचे पक्के चबूतरे पर एक देव प्रतिमा थी. सामने एक दीपक जल रहा था. बरगद के पीछे बड़ी काली पहाड़ी थी, पहाड़ी से लगा था छोटा सा तालाब. दीपक जल रहा है. मतलब कोई जला कर गया है. बरगद पर सैकड़ों धागे बंधे थे. शायद मन्नत के धागे… मैं ने पास के तालाब में हाथ धो कर जेब से रूमाल निकाल कर माथे को ढका. देव प्रतिमा के सामने जा कर अपना शीश झका कर जैसे ही आंखें बंद कीं, फिर उस लड़की का चेहरा नाच उठा.

मैं नहीं जानता मुझे क्या हुआ. क्यों आया मैं तेरे द्वार पर इस दौर में मुझे सुकून से भरे कुछ पल दे दे. ऐसा सुकून, शांति जिस की मेरे देश को भी जरूरत हैं. अमनशांति से भर दे सब की झली. कुछ पल तक मैं दीपक की जादू भरी लौ को देखता रहा. फिर न जाने क्या सोच कर वहां पूजा की थाली में रखा रंगीन कलावा ले कर वृक्ष के दामन में बांध कर वापस आ गया.

बाइक स्टार्ट कर के वापस अपनी मंजिल लाइब्रेरी की तरफ चला. अफसोस सारे रास्ते मुझे वह लड़की नहीं दिखी. मन उदास हो चला, दुखी हो गया.

लाइब्रेरी के बाहर बाइक खड़ी करतेकरते भी मन उदास और निराश था, जल्दी से बुक्स ले कर वापस हो जाऊंगा, क्या पता, वह बीमार हो गई हो. आज कुछ ज्यादा ही लोग थे. लाइब्रेरी में. यह एक मात्र लाइब्रेरी थी, जिस में दिन भर पढ़ने के शौकीन विद्यार्थी आते रहते थे. मुझे भी किताबों का शौक था.

बड़े दिनों से टौलस्टौय की बुक ‘इंसान और हैवान’ की तलाश में था. मैं ने अपनी

बुक के लिए शैल्फ पर नजरें दौड़ानी शुरू कीं. आधा घंटा हो गया था. दूसरी वाली शैल्फ में देखता हूं, यह सोच कर मैं ने पलट कर देखा तो सामने से कोई टकरा गया. मेरी बुक जमीन पर मैं ने जल्दी से बुक उठाई और सौरी कहा. यह क्या… सामने तो वही लड़की थी, जिसे मैं देखा करता था.

अरे यह. चमत्कार हो गया. दिल इतनी तेजी से धड़कने लगा जैसे लो बाहर ही आ जाएगा. सौरी बोलने के बाद मैं अपलक उसे निहारता ही रह गया.

‘‘क्या हुआ आप को? सौरी बोल तो दिया आप ने. अब क्या हुआ,’’ लड़की की आवाज मेरे कानों तक पहुंची.

‘‘जीजी हां, वह मैं थोड़ा जल्दी में था,’’ मैं ने अपनी धड़कनों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘कोई बात नहीं… देख ली आप ने?’’ लड़की बोली.

‘‘जी देखी तो लेकिन उस शैल्फ में तो नहीं मिली… इस में देख लेता हूं.’’

‘‘कौन सी बुक है?’’ वह पूछने लगी.

मैं ने कहा, ‘‘टौलस्टौय की बुक ‘इंसान और  हैवान.’’

‘‘अच्छा… कहीं यह तो नहीं,’’ कह कर उस ने बुक अपने हाथ में रख कर मेरी नजरों के सामने की.

‘‘अरे हां ये ही… मैं खुशी से बोला, ‘‘लेकिन आप ने तो अपने नाम से इशू करवाई होगी? आप पढ़ लीजिए. मैं फिर ले लूंगा,’’ मेरा स्वर उदासी भरा था.

‘‘अरे नहीं, आप पढ़ लीजिए मैं फिर पढ़ लूंगी,’’ वह बोली.

मैं खुश हो गया. मैं ने उसे थैंक्स कहा.

‘‘ओकेजी,’’ वह बोली.

‘‘अच्छा आप अभी रुकेंगी या जाएंगी,’’ मैं ने हिम्मत जुटाई.

‘‘मैं अब निकलूंगी,’’ वह बोली.

‘‘अगर आप चाहें तो मैं आप को छोड़ दूं? मैं ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं चलिए साथ चलते हैं,’’ वह बोली.

मैं बाहर आ गया. वह भी साथ थी. मैं ने बाइक निकाली.

‘‘अरे यह क्या… बाइक,’’ वह बोली.

‘‘जी बाइक. बाइक पर नहीं बैठोगी?’’ मैं ने थोड़े आश्चर्य से पूछा.

‘‘नहींनहीं ऐसा कुछ नहीं, लेकिन आप की तो साइकिल ही अच्छी है,’’ वह बोली. ‘‘फिर इन खूबसूरत नजारों को देखने के लिए मुझे पैदल जाना ही पसंद है,’’ वह मुसकराती बोली.

‘उफ, कितनी कातिल मुसकान है,’ मैं ने सोचा, ‘लुट जाते होंगे न जाने कितने इस मुसकान पर.’

‘‘चलिए बाइक यहीं छोडि़ए हम कुछ देर घूम लेते हैं,’’ वह बोली.

‘‘ओके,’’ मैं ने कहा फिर बाइक वहीं छोड़ी और उस के साथ चल दिया.

घुमावदार सड़कें, बर्फ से छिपतेढकते, पेड़, बर्फ

कहींकहीं पिघल कर पैरों को छू कर ठंड भर देती शरीर में. कुछ दूरी पर छोटा सा कौफीहाउस था पहाड़ी के दामन में. मैं ने कहा, ‘‘अगर एतराज न हो तो 1-1 कौफी पी लें?’’

‘‘जरूर,’’ वह बोली.

बड़े दिनों बाद आज धूप निकली थी इस बर्फीले हिल स्टेशन पर. गरम कपड़ों में लोग जगहजगह धूप का आनंद ले रहे थे.

कौफीहाउस में कुछ लोग थे, मैं ने खिड़की के पास वाली टेबल पसंद की. लकड़ी के कौटेज मुझे बहुत पसंद है. कौफीहाउस की डैकोरेशन बड़ी प्यारी थी.

वह मेरे सामने थी, बीच में थी टेबल, टेबल पर था पीले, सफेद, पिंक गुलाबों का गुलदस्ता, जो शायद कुछ देर पहले ही सजाया गया था.

‘क्या बात शुरू करूं?’ मैं ने सोचा. फिर ध्यान आया. अरे नाम…

‘‘हम लाइब्रेरी से इतनी देर से साथ हैं… हम ने एकदूसरे का नाम भी नहीं पूछा,’’ मैं ने कहा.

‘‘ओह,’’ कह कर वह मुसकरा दी. मुसकराते ही दाएं गाल का डिंपल भी मुसकरा दिया.

‘‘मैं आकाश हूं. मतलब मेरा नाम आकाश है. मैं जौब करता हूं. घर मेरा इंदौर में है. शिमला की बर्फ और खूबसूरती मुझे पंसद है. यहां का औफर आया तो तुरंत हां कर दी,’’ अपनी बात समाप्त कर के मैं उसे देखने लगा.

‘‘मैं गीतिका हूं. मुझे भी पहाडि़यों और चर्च से घिरा शिमला पसंद है. मेरे मामा यहां रहते हैं, पापामम्मी भोपाल में हैं. पापा सरकारी जौब में हैं. मम्मी हाउसवाइफ हैं. मुझे पढ़ने का शौक है तो मामा के यहां रह कर पढ़ाई भी करती हूं और अच्छे साहित्यकारों को भी पढ़ती हूं.’’

‘‘साहब, और्डर,’’ तभी वेटर ने आ कर हमारे बातचीत के क्रम को भंग किया.

‘‘कौफी के साथ क्या लोगी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जो आप का मन करे,’’ कह गीतिका मुसकरा दी.

‘‘ओके,’’ कह कर मैं ने पनीर सैंडवीच और कौफी का और्डर कर दिया.

सूर्य की किरणें कौटेज की दरारों से अंदर आ कर शैतानियां कर रही थीं. बर्फ की धुंध को चीर कर बड़े दिनों बाद धूप निकली थी जो अच्छी लग रही थी. धूप की शैतानियों को देखतेदेखते मैं ने गीतिका को देखा जो खिड़की से फूलों को देख रही थी.

मैं ने उसे देखा कि खिलता हुआ रंग, होंठों की बाईं तरफ तिल जो सौंदर्य पर पहरा दे रहा था, कमल सी आंखें, जो खामोशखामोश सी कोई कहानी छिपाए हैं. मुझे पसंद हैं सुंदर आंखें. लंबा कद, मांसलता लिए शरीर, ब्लैक कलर का सूट, उस पर पिंक कलर का ऐंब्रौयडरी वाला दुपट्टा, हलकाहलका काजल. काश, मेरी लाइफपार्टनर बने. मैं कल्पना में खो गया.

‘‘साहब, कौफी,’’ तभी वेटर की आवाज सुनाई दी.

‘‘गीतिका, क्या सोचती हो मेरे बारे में? मैं ने पूछा, मैं तो अकसर ही तलाशता था जब मैं लाइब्रेरी आता था,’’ कह उस के चेहरे के भाव देखने लगा.

‘‘जी मैं ने भी कई बार देखा था आप को. आप मुझे देखने के लिए साइकिल धीमी कर देते थे,’’ कह गीतिका खिलखिला दी. हंसतेहंसते ही उस ने अपने आंखों पर हाथ रख लिए. यह अंदाज मेरे दिल में उतर गया. ऐसा लगा जैसे नन्हेनन्हे घुंघरू बज उठे हों.

‘‘हां गीतिका मैं भी तुम से बात करना चाहता था, पर कर नहीं पाता था. मुझे ओवरस्मार्ट बनने वाली लड़कियां पसंद नहीं हैं. शरीर दिखाऊ कपड़े, अजीब सा हेयरस्टाइल, सिगरेट का धुआं उड़ाती लड़कियों का मानसिक दीवालिया समझता हूं मैं.’’

‘‘अच्छाजी,’’ गीतिका बोली, ‘‘कौफी

खत्म हो गई है. अब चलते हैं मामा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘गीतिका थोड़ी देर प्लीज,’’ मैं रिकवैस्ट के अंदाज में बोला.

‘ओके,’’ कह कर वह बैठ गई.

‘‘एक कौफी और मंगा लें?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मंगा लीजिए.’’

‘‘गीतिका तुम्हारी हौबी क्या है?’’

‘‘पढ़ना. बताया तो था आप को. इस के अलावा प्रकृति की सुंदरता को निहारना पसंद है. भीड़ से मुझे घबराहट होती,’’ गीतिका शिमला की पहाडि़यों को निहारती हुई बोली.

‘‘सच, कितनी सुंदर हौबीज हैं तुम्हारी.’’ मैं बहुत खुश हो उठा. मन ही मन उस देव स्थान पर मेरा सिर झकने लगा.

‘‘गीतिका हम फिर मिलेंगे न?’’ मैं ने उस की तरफ देख कर पूछा.

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘मुझे यह बुक पढ़ कर वापस कर देना मुझे भी पढ़नी है.’’

‘‘ओके बाय,’’ मैं ने हाथ हिला कर कहा.

‘‘बाय फिर मिलते हैं,’’ कह कर वह चली गई. मैं उसे जाते देखता रहा दूर तक.

मन में उस की सूरत बसाए जब अपने रूम पहुंचा तो देखा कि मेरे मकानमालिक एक

बड़ा सा लिफाफा लिए मेरा इंतजार कर रहे थे. मुझे देखते ही बोले, ‘‘तुम्हारे घर से आया है.’’

मैं लिफाफा ले कर रूम में पहुंचा. जैसे ही लिफाफा खोला तो कई फोटो नीचे गिर पड़े, हाथ में ले कर जैसे ही फोटो पर नजर गई, तो आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ. गीतिका के फोटो थे, पापामम्मी ने मेरे लिए लड़की पसंद की थी. मोबाइल के फोटो देखने को खुद मैं ने ही मना किया हुआ था. नहीं समझ आता फोटो फिल्टर हैं या औरिजनल. सामने हो तो बात ही अलग होती है मैं ने तुंरत घर फोन किया.

‘‘बेटा देख ले लड़की को,’’ पापा बोले. ‘‘गीतिका भी शिमला में ही है. पता कर के मुलाकात कर ले.’’

मैं क्या बोलता पापा को कि मैं तो मिल कर देख चुका हूं गीतिका को. मैं ने तुरंत हां कर दी शादी के लिए मेरे सपनों का चेहरा अब मेरा जीवनसाथी बनने जा रहा था.

तेरी सुरमई सूरत जब फूल बन जाए,

किताबी आंखों पर मेरी गजल हो जाए,

बन कर मैं देखूं तुझे रांझे की नजर से,

मेरे प्रेम के एहसास में तू हीर बन जाए.

यही थी मेरे गुलाबी सपनों का गुलाबी सपना किताब सा चेहरा.

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