अंकुश की मां अपनी बहू दीपा के व्यवहार से बहुत दुखी रहती थीं. दीपा उन्हें पोते से मिलने नहीं देती थी. पहले अलग घर लिया और अब एक शहर में रहने के बावजूद बच्चे को उन से दूर रखती. अंकुश ने जब मां का पक्ष ले कर बीवी से जिरह की तो उस ने हर महीने एक बार दादी को पोते से मिलने की अनुमति दी. इस के अलावा न कोई फोन पर बातचीत और न गिफ्ट का आदानप्रदान.
अगर सास बिना बताए बच्चे से मिलने आ जाती तो वह मुंह बना लेती. दीपा का यह रवैया अंकुश की मां को बहुत तकलीफ देता. इधर अंकित के मन में भी दादी के लिए प्यार और लगाव कम होता जा रहा था. वह महीने में 1-2 बार भी दादी से मिलने से कतराने लगा था.
समय के साथ अंकुश की मां ने इसी तरह जीना सीख लिया था. मगर एक दिन परिस्थितियां बदल गईं. उस दिन दीपा की तबीयत खराब हो गई थी. मेड भी छुट्टियों पर थी. दीपा ने अपनी बहन को फोन किया तो उस ने ऐग्जाम की वजह से हैल्प के लिए आने को इनकार कर दिया. दीपा की मां के पैरों में भी चोट लगी थी इसलिए वह नहीं आ सकीं.
दीपा ने अंकुश को अपनी समस्या बताई तो अंकुश ने सु झाव दिया, ‘‘अंकित को मां के पास छोड़ देता हूं ताकि वे उस के खानेपीने का खयाल रख सकें. खुद भी वहीं खा कर तुम्हारे लिए खाना लेता आऊंगा.’’
दीपा को थोड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई. उसे लग रहा था कि सास हैल्प करने से मना कर देंगी. मगर अंकुश को विश्वास था कि मां सब संभाल लेंगी. ऐसा ही हुआ. सास ने न सिर्फ अंकित और अंकुश को संभाला बल्कि दोपहर में समय मिलने पर आ कर दीपा का घर भी साफ कर दिया. दीपा को फल काट कर खिलाए और सिर पर प्यार से हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘तु झे जब भी जरूरत हो मु झे याद कर लेना.’’
दीपा की आंखें भर आईं. प्यार से उन का हाथ थामते हुई बोली, ‘‘आप के जैसी प्यारी मां के साथ मैं ने ज्यादती की. आप को अंकित से दूर रखा जबकि आप से ज्यादा प्यार उसे कौन कर सकता है? अपनों के साथ की अहमियत तकलीफ में ही पता चलती है.’’
इस घटना के बाद दीपा बिलकुल बदल गई. उसे सम झ में आ चुका था कि सास कितने काम की हैं. साथ न रहते हुए भी उन्होंने उसे सहारा दिया था और इसलिए अब दीपा ने अंकित को दादी से मिलने पर लगी रोक हटा ली. वह खुद कोशिश करती कि अंकुश दादी से बातें करे और उन का प्यार महसूस करे. वह सम झ चुकी थी कि दादी का प्यार हमेशा उस का साथ देगा.
सास की असलियत समझें
अकसर बहुएं सास की अहमियत नहीं सम झ पातीं और उन्हें घर और बच्चों से दूर करने का प्रयास करने लगती हैं. मगर समय के साथ जब उन्हें अपनी गलतियों का एहसास होता है तो वे अपने किए पर बहुत पछताती हैं.
एक और घटना पर गौर करें
राजदेव ने मु झे फोन किया और बोला, ‘‘मेरे बेटे राहुल की शादी हो रही है और पता है, सब से अच्छा क्या है?’’
‘‘क्या?’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछा.
‘‘लड़की का उस की मां के साथ अच्छा रिश्ता नहीं है.’’
उस का जवाब सुन कर मैं चौंक उठी, ‘‘मगर आप इस के लिए खुश क्यों हैं?’’
‘‘क्योंकि वह लड़की हमारे परिवार का हिस्सा बनना चाहती है. मां से अच्छे रिश्ते न होने का मतलब है वह छुट्टियों में अपनी मां के पास जाने की जिद नहीं करेगी,’’ राजदेव ने हंसते हुए बताया.
मैं सोच में पड़ गई और धीरे से बोली, ‘‘शायद आप सही ही कह रहे हो. लड़की अकसर मायके जाने की जिद करती है ताकि अपना सुखदुख मां के साथ बांट सके. कुछ समय उन की ममताभरी हाथों का खाना खा सके. अकसर मां ही सास से अलग होने की सलाह देती है और मां के भरोसे ही बहुएं अपनी सास की अवहेलना करनी शुरू कर देती हैं क्योंकि परेशानी के समय उन्हें मां का सहारा होता है.
‘‘मेरी बहू ने भी तो ऐसा ही कुछ किया और मु झे मेरे बेटे और पोते से भी दूर कर दिया. उस ने तो अपनी मां के घर के पास किराए का घर ले लिया और मु झे मेरे पति के साथ पुश्तैनी घर में अकेला छोड़ दिया. पर जब लड़की का अपनी मां से रिश्ता ही सही नहीं तो वह वहां जाएगी क्यों?’’
‘‘जी हां, हेमाजी, आप के साथ जो हुआ उसे याद कर ही मु झे इस लड़की के साथ बेटे का रिश्ता जोड़ना अच्छा लग रहा है,’’ राजदेव ने बताया.
जीवन आसान बन जाता है
सच है, जब एक लड़की दुलहन बन कर नए घर में आती है तो उसे अपनी मां का बहुत सहारा होता है. वह मां को हर बात बता कर उन की सलाह लेती रहती है. मगर एक बहू को इस बात का एहसास होना चाहिए कि मां के साथसाथ सास का सपोर्ट भी उसे काफी फायदा पहुंचा सकता है. यदि वह अपनी मां का खयाल रखती है तो अपने पति की मां का सम्मान करना भी उसी का कर्तव्य है.
वैसे भी याद रखें कि शादी के बाद एक लड़की बीवी के साथसाथ एक बहू भी बनती है. ऐसे में पति का प्यार पाने के साथसाथ सास ससुर के साथ भी बहू का रिश्ता अच्छा होना चाहिए. आप सास से झगड़े कर के पति के साथ सुखी नहीं रह सकतीं. थोड़ा कंप्रोमाइज कर यदि आप सास के साथ भी सही तालमेल बैठाने में कामयाब हो जाती हैं तो फिर आप का जीवन काफी आसान हो जाएगा. सास आप के बहुत काम आती है. भले ही वह घर में साथ न रहती हो फिर भी यदि वह उसी शहर में आसपास है तो आप को बहुत तरह से आराम मिल सकता है. खासकर बच्चे को संभालने और बेहतर व्यक्तित्व देने में में सास बहुत मदद करती हैं.
यूरोपीय देश चेक रिपब्लिक में साल 2007 में बच्चों के बरताव और बड़े होने पर किरदार के बीच रिश्ता तलाशने का रिसर्च हुआ. मनोवैज्ञानिकों ने इस के लिए 12 से 30 महीने के बच्चों पर रिसर्च की. इन्हीं बच्चों को 40 बरस की उम्र में फिर से परखा गया. इन सभी की शख्सियत के बहुत से पहलू सामने आए. जो लोग बचपन में ज्यादा सक्रिय और बोलने वाले थे बड़े होने पर वे आत्मविश्वास से लबरेज पाए गए. यानी बच्चे को बचपन में जैसा माहौल मिलता है उस का बहुत गहरा असर बड़े होने के बाद भी उस के पूरे व्यक्तित्व पर पड़ता है. यही वजह है कि अगर बचपन में बच्चे को एकल परिवार में अकेलेपन से गुजरना पड़े तो बड़े हो कर वह स्वार्थी और अक्खड़ इंसान बनेगा. लेकिन बचपन में दादादादी का प्यार, दुलार और संस्कार मिलें तो वह खुशमिजाज और संतुलित व्यक्तित्व का स्वामी बनेगा.
सास की सलाह मानें
सास आप के साथ हैं तो संभव है कि थोड़ाबहुत आपसी कलह चलता रहे. मगर यदि वे उसी शहर में कुछ दूर रहती हैं तो दूरी आप दोनों के बीच की यह कलह को कम करने में मददगार साबित होगी. मगर इस दूरी की वजह से दादीपोते के बीच दूरी न आने दें. आप का अपनी सास से मेल न जमता हो तो भी इस का खामियाजा बच्चे को न भुगतने दें. बच्चे के जन्म के बाद के कुछ सालों में आप को अपनी सास के सपोर्ट की जरूरत काफी रहती है.
इसलिए सास को कभी बच्चे को ले कर जलीकटी न सुनाएं. वह बच्चे को ले कर कुछ सलाह देती हैं तो उन की बात पर गौर करें और उन की सलाह को अमल में लाएं. आखिर उन्हें बच्चे को पालने का अनुभव आप से ज्यादा है.
सुरक्षा को ले कर निश्चिंतता
आजकल हर दूसरी महिला जौब कर रही है. ऐसे में उसे सुबहसुबह औफिस के लिए निकल जाना होता है और शाम तक लौट कर आना होता है. बच्चा थोड़ा बड़ा है तो उस का आधा समय स्कूल में बीत जाता है पर स्कूल से लौट कर या तो बच्चे को खाली घर में अकेले रहना होता है या किसी मेड के भरोसे समय बिताना होता है. ये दोनों ही औप्शन उतने सुरक्षित नहीं.
यही वजह है कि औफिस में रहते हुए भी महिला का मन घर में बच्चे के पास बना रहता है और वह उस की चिंता में परेशान रहती है. इस से उस के काम पर भी असर पड़ता है. इस के विपरीत यदि बच्चा अपने दादा या दादी के पास रहे तो महिला बेफिक्र अपना काम कर सकती है. दादी के पास बच्चा पूरी तरह सुरक्षित रहता है और उस का मन भी लगा रहता है. दादी थोड़ी पढ़ीलिखी है तो वे उसे खाली समय में पढ़ा भी सकती हैं.
औफिस से जल्दी लौटने की अनिवार्यता नहीं
कामकाजी महिलाओं का आधा ध्यान अपने बच्चों पर ही रहता है. वह औफिस से जल्दी से जल्दी निकल कर अपने बच्चे के पास जाना चाहती हैं क्योंकि उन्हें चिंता लगी रहती है कि वह क्या कर रहा होगा, कुछ खाया होगा या नहीं. मगर यदि उस ने बच्चे को सास के पास छोड़ा है तो फिर उसे जल्दी भागने की टैंशन नहीं रहती. उस के लिए जरूरी काम से कुछ दिनों के लिए बाहर जाना भी संभव हो जाता है.
अगर आप की सास साथ नहीं रहती है तो भी आप बच्चे का उस से प्यार बढ़ा सकती हैं. छोटी छोटी कोशिशों से आप उन्हें एकदूसरे के करीब आने में मदद कर सकती हैं. इस के लिए आप कुछ बातों का खयाल रखें:
द्य हर संडे आप बच्चे की बात वीडियो कौल पर अपनी दादी से कराएं. जब बच्चा दादी से बात कर रहा हो तो जरूरी नहीं कि आप वहां बैठ कर बच्चे को निर्देश देती रहें. आप अपने काम में व्यस्त हो जाएं फिर देखें बच्चा कैसे खुल कर दादी से बातें करता है.
द्य पोतेपोतियों की फरमाइशें पूरी करने में दादी को एक अलग ही आनंद आता है. इस बात की चिंता कतई न करें कि उन के रुपए खर्च होंगे या फिर बुढ़ापे में उन्हें बाजार जाना पडेगा. उलटा ऐसा कर के दादी की तबियत और चंगी हो जाएगी.