Mother’s Day Special: मां बेटी के बीच मनमुटाव के मुद्दे

मांबेटी का रिश्ता दुनिया के खूबसूरत रिश्तों में से एक होता है. बेटी होती है मां की परछाई और इस परछाई पर मां दुनियाभर की खुशियां वार देना चाहती है. एक औरत जब मां बनती है और खासकर बेटी की मां बनती है तो उसे लगता है एक बेटी के रूप में वह अपना जीवन फिर से जी सकेगी. मांबेटी के प्यारभरे रिश्ते में भी कई बार तल्खियां उभर आती हैं. मांबेटी के रिश्ते में तल्खियां विवाह से पहले या विवाह के बाद कभी भी हो सकती हैं.

1 शादी से पहले के मनमुटाव

मां के हिसाब से बेटी का समय पर न उठना, दिनभर मोबाइल में लगे रहना, ऊटपटांग कपड़े पहनना आदि अनेक ऐसे छोटेमोटे विषय हैं जिन पर मांबेटी के बीच आमतौर पर खींचातानी होती रहती है. ऐसा होना हर मांबेटी के बीच आम है. लेकिन कई बार कुछ मसले ऐसे हो जाते हैं जिन के कारण मांबेटी के बीच मनमुटाव इस कदर बढ़ जाता है कि वे एकदूसरे से बात करना भी नहीं पसंद करतीं या फिर बेटी, मां से अलग रहने का भी निर्णय ले लेती है.  मुझे पसंद नहीं तुम्हारा बौयफ्रैंड :  22 वर्षीया सान्या एमबीए की स्टूडैंट है. वह अपने कालेज के एक ऐसे लड़के को पसंद करती है जिसे उस की मां नापसंद करती है. मां नहीं चाहती कि सान्या उस लड़के के साथ कोई भी संपर्क रखे. लेकिन सान्या के दिलोदिमाग पर तो वह लड़का इस कदर छाया हुआ है कि वह मां की कोईर् बात सुनने को ही तैयार नहीं है. आएदिन की इस लड़ाईझगड़े से तंग आ कर सान्या ने अलग फ्लैट ले कर रहना शुरू कर दिया है.

2 नौकरी बन जाए विवाद का विषय: 

28 वर्षीया रिया कौल सैंटर में नौकरी करती है, वह भी नाइट शिफ्ट की. उस की मां को यह जौब बिलकुल पसंद नहीं है क्योंकि इस नौकरी की वजह से रिया के आसपड़ोस वाले उस की मां को तरहतरह की बातें सुनाते रहते हैं.

रिया की मां ने कई बार उस से कहा है कि वह यह नौकरी छोड़ दे लेकिन चूंकि रिया को इस नौकरी से कोई दिक्कत नहीं है, सो, वह छोड़ना नहीं चाहती. इस बात पर दोनों की अकसर बहस होती रहती है. आएदिन की बहस से परेशान हो कर रिया ने अपने औफिस के पास के एक पीजी में रहना शुरू कर दिया है. उसे लगता है कि रोज की किचकिच से यही बेहतर है.  विवाह के बाद बेटी अपनी ससुराल चली जाती है. ऐसे में मांबेटी के बीच प्यार और अपनापन कायम रहना चाहिए लेकिन कुछ मामलों में शादी के बाद भी मांबेटी के बीच का मनमुटाव जारी रहता है. बस, विवाद के कारण बदल जाते हैं.

3 लेनदेन से उपजा मनमुटाव 

विधि की शादी एक संपन्न घर में हुई है. वह जब भी मायके  आती है तो मां से अपेक्षा करती है उसे वही ऐशोआराम, वही सुखसुविधाएं मायके में भी मिलें जो ससुराल में मिलती हैं. लेकिन चूंकि विधि के मायके की आर्थिक स्थिति सामान्य है, सो, उसे वहां वे सुविधाएं नहीं मिल पातीं.  नतीजतन, जब भी विधि मायके आती है, मां से उस की बहस हो जाती है. इस के अलावा विधि को अपनी मां से हमेशा यह शिकायत भी रहती है कि वे उस की ससुराल वालों के स्टेटस के हिसाब से लेनेदेन नहीं करतीं, जिस की वजह से उसे अपनी ससुराल में सब के सामने नीचा देखना पड़ता है. विधि की मां अपनी हैसियत से बढ़ कर विधि की ससुराल वालों को लेनादेना करती है लेकिन विधि कभी संतुष्ट नहीं होती और दोनों के बीच खींचातानी चलती रहती है.

4 संपत्ति विवाद भी है कारण 

पति के गुजर जाने के बाद स्वाति की मां अपने बेटे रोहन के साथ रहती हैं. रोहन ही उन की सारी जरूरतों का ध्यान रखता है और उन की तरफ से सारे सामाजिक लेनदेन करता है. आगे चल कर कोई प्रौपर्टी विवाद न हो, इसलिए स्वाति की मां ने वसीयत में अपनी सारी जमीनजायदाद रोहन के नाम कर दी. स्वाति को जब इस बात का पता चला तो वह अपनी मां से संपत्ति में हिस्से के लिए लड़ने आ गई. उस का कहना था कि जमीनजायदाद  में उसे बराबरी का हिस्सा चाहिए जबकि स्वाति की मां का कहना था कि उस की शादी में जो लेनादेना था, वह उन्होंने कर दिया और वैसे भी, अब रोहन उन की पूरी जिम्मेदारी संभालता है तो वे प्रौपर्टी रोहन के नाम ही करेंगी. इस बात पर गुस्सा हो कर स्वाति ने मां से बोलचाल बंद कर दी और घर आनाजाना भी बंद कर दिया.

5 मां के संबंधों से बेटी को शिकायत

अनन्या के पिताजी को गुजरे 4 वर्ष हो गए हैं. वह अपनी ससुराल में मस्त है. मां कालेज में नौकरी करती हैं. जहां उन के संबंध कालेज के सहकर्मी से हैं. यह बात अनन्या को बिलकुल पसंद नहीं. अनन्या को लगता है पिताजी के चले जाने के बाद मां ने उस पुरुष से संबंध क्यों रखे हैं.  वह कहती है, ‘मां के इन संबंधों से समाज और ससुराल में उस की बदनामी हो रही है.’ जबकि अनन्या की मां का कहना है कि उम्र के इस पड़ाव के अकेलेपन को वह किस तरह दूर करे. अगर ऐसे में कालेज का उक्त सहकर्मी उस की भावनाओं व जरूरतों का ध्यान रखता है तो उस में बुरा क्या है. बस, यही बात मांबेटी के बीच मनमुटाव का कारण बनी हुई है. इस स्थिति में अनन्या को अपनी मां के अकेलेपन की जरूरत को समझना चाहिए और व्यर्थ ही समाज से डर कर मां की खुशियों की राह में रोड़ा नहीं बनना चाहिए. बेटी को मां की जरूरतों से ज्यादा अपनी प्रतिष्ठा की फिक्र है. वह तो मां को बुत बना कर बाहर खड़ा कर देना चाहती है जो आदर्श तो कहलाए पर आंधीपानी और अकेलेपन को रातदिन सहे.

कम जगह में कैसे बढ़ाएं प्यार

परिवार एक एकल इकाई है, जहां पेरैंट्स और बच्चे एकसाथ रहते हैं. इन्हें प्रेम, करुणा, आनंद और शांति का भाव एकसूत्र में बांधता है. यही उन्हें जुड़ाव का एहसास प्रदान करता है. उन्हें मूल्यों की जानकारी बचपन से ही दी जाती है, जिस का पालन उन्हें ताउम्र करना पड़ता है. जो बच्चे संयुक्त परिवार के स्वस्थ और समरसतापूर्ण रिश्ते की अहमियत समझते हैं, वे काफी हद तक एकसाथ रहने में कामयाब हो जाते हैं.

साथ रहने के फायदे

बच्चों के साथ जुड़ाव और बेहतरीन समय बिताने से हंसीठिठोली, लाड़प्यार और मनोरंजक गतिविधियों की संभावना काफी बढ़ जाती है. इस से न सिर्फ सुहानी यादें जन्म लेती हैं बल्कि एक स्वस्थ पारिवारिक विरासत का निर्माण भी होता है.

इस का मतलब यह नहीं है कि हमेशा ही सबकुछ ठीक रहता है. एक से अधिक बच्चों वाले घर में भाईबहनों का प्यार और उन की प्रतिद्वंद्विता स्वाभाविक है. कई बार स्थितियां मातापिता को उलझन में डाल देती हैं और वे अपने स्तर पर स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं तथा घर में शांतिपूर्ण स्थिति का माहौल बनाते हैं.  कम जगह में आपसी प्यार बढ़ाने के खास टिप्स बता रही हैं शैमफोर्ड फ्यूचरिस्टिक स्कूल की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोड़ा :

व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्यवस्था : प्रत्येक बच्चे के लिए एक कमरे में व्यक्तिगत आजादी का प्रबंध करने से उन में व्यक्तिगत जुड़ाव की भावना का संचार होता है. प्रत्येक बच्चे के सामान यानी खिलौनों को उस के नाम से अलग रखें और उस की अनुमति के बिना कोई छू न सके. बच्चों में स्वामित्व की भावना परिवार से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है जिस से अनेक सकारात्मक परिवर्तन होते हैं. कमरे को शेयर करने के विचार को दोनों के बीच आकर्षक बनाएं.

नकारात्मक स्थितियों से बचाएं बच्चों को : भाईबहनों में दृष्टिकोण के अंतर के कारण आपस में झगड़े होते हैं. इस के कारण वे कुंठा को टालने में कठिनाई महसूस करते हैं और किसी भी स्थिति में नियंत्रण स्थापित करने के लिए झगड़ते रहते हैं, आप अपने बच्चों को ऐसे समय इस स्थिति से दूर रहने के लिए गाइड करें.

हमें अपने बच्चों को झगड़े की स्थिति को पहचानने में सहायता करनी चाहिए और इसे शुरू होने के पहले ही समाप्त करने के तरीके बताने चाहिए.  व्यक्तिगत सम्मान की शिक्षा दें : प्रत्येक व्यक्ति का अपना खुद का शारीरिक और भावनात्मक स्थान होता है, जिस की एक सीमा होती है, उस का सभी द्वारा सम्मान किया जाना चाहिए. बच्चों को समर्थन दे कर उन की सीमाओं को मजबूत करें.

उन्हें दूसरे बच्चों की दिनचर्या और जीवनशैली का सम्मान करने की शिक्षा भी दें. यदि दोनों भाईबहन पहले से निर्धारित सीमाओं से संतुष्ट हैं तो उन के बीच पारस्परिक सौहार्द बना  रहता है.

क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करें : कभी ऐसा भी समय आता है, जब एक बच्चा दूसरे बच्चे की किसी चीज को नुकसान पहुंचा देता है या उस से जबरन ले लेता है. ऐसे में पेरैंट्स को चाहिए कि जिस बच्चे की चीज ली गई है उस बच्चे की भावनाओं का खयाल कर उस के लिए नई वस्तु का प्रबंध करें और गलत काम करने वाले बच्चे को उस की गलती का एहसास करवाएं.

इस से परिवार में अनुशासन और ईमानदारी सुनिश्चित होगी. इस से भाईबहनों को भी यह एहसास होता है कि  पेरैंट्स उन का खयाल रखते हैं और घर में न्याय की महत्ता बरकरार है.  चरित्र निर्माण में सहयोग : एकदूसरे के नजदीक रहने से दूसरे के आचारव्यवहार पर निगरानी बनी रहती है. किसी की अवांछनीय गतिविधि पर अंकुश लगा रहता है. यानी कि बच्चा चरित्रवान बना रहता है. किसी समस्या के समय दूसरे उस का साथ देते हैं. दूसरी और, सामूहिक दबाव भी पड़ता है और बच्चा गलत कार्य नहीं कर पाता. अत: मौरल विकास अच्छा होता है.

बच्चे की जागरूकता की प्रशंसा करें : यदि कोई बच्चा समस्या के समाधान की पहल करता है और नकारात्मक स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करता है तो उस की प्रशंसा करें.

समस्या के समाधान के सकारात्मक नजरिए को सम्मान प्रदान करें, क्योंकि इस से उस का बेहतर विकास होगा और वह परिपक्वता की दिशा में आगे बढ़ेगा. प्रोत्साहन मिलने  से हम अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं.  इस से बच्चों को अपनी उपलब्धियों पर गर्व का एहसास होगा और वे इस स्वभाव को दीर्घकालिक रूप से आगे बढ़ाएंगे. हमेशा बच्चे द्वारा नकारात्मक स्थिति में सकारात्मक समाधान तलाशने के प्रयास की प्रशंसा करें.  याद रखें इन नुस्खों को अपना कर आप अपने बच्चों को संभालने में आसानी महसूस करेंगे. भाईबहन एकदूसरे के पहले मित्र और साझीदार होते हैं, जो एक सुंदर व स्वस्थ समरसता को साझा करते हैं, इस से कम जगह में भी पूरा परिवार खुशीखुशी जीवन व्यतीत कर सकता है.

ये भी पढ़ें- व्यावहारिकता की खुशबू बिखेरते रिश्ते

सलाह दें कि मैं अपने प्रति भाई की नफरत को कैसे कम करूं?

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवती हूं और अपने भाई भाभी के साथ रहती हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरा भाई मुझ से नफरत करता है. मैं नहीं जानती मेरे प्रति उस के इस व्यवहार का क्या कारण है? सलाह दें कि मैं अपने प्रति भाई की नफरत को कैसे कम करूं क्योंकि भाई की नफरत के साथ उस घर में रहना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है.

जवाब

सब से पहले आप अपने भाई से उस के मन में आप के प्रति नफरत का कारण जानने की कोशिश करें. भाई की नफरत का कारण बचपन की कोई घटना हो सकती हैं. जिस की वजह से भाई के दिल पर आप के प्रति नाराजगी पैदा हो गई हो. भाइयों को कई बार लगता है कि बहन संपत्ति में हिस्सा मांगेगी और बिना मांगे ही उसे शत्रु मान लेते हैं.

वैसे भी हमारे देश में पुरुष अपने को बहन का रखवाला मानते हैं और लड़के पिता की तरह पेश आते हैं. आप भाई के अच्छे मूड को देख कर उस से बात करें. भाभी को अपनी समस्या बताएं और आप उस कड़वाहट को आमनेसामने बैठ कर सुलझाने का प्रयास करें. बात करने से ही नफरत का कारण पता चलेगा और समस्या का समाधान भी तभी निकल पाएगा.

ये भी पढ़ें-  मेरे बाद क्या बेटी को भी ब्रैस्ट कैंसर होने का खतरा है?

ये भी पढ़ें…

जलन नहीं हो आपस में लगन

यों तो पैदा होते ही एक शिशु में कई सारी भावनाओं का समावेश हो जाता है, जो कुदरती तौर पर होना भी चाहिए, क्योंकि अगर ये भावनाएं उस में नजर न आएं तो बच्चा शक के दायरे में आने लगता है कि क्या वह नौर्मल है? ये भावनाएं होती हैं प्यार, नफरत, डर, जलन, घमंड, गुस्सा आदि.

अगर ये सब एक बच्चे या बड़े में उचित मात्रा में हों तो उसे नौर्मल समझा जाता है और ये नुकसानदेह भी नहीं होतीं. लेकिन इन में से एक भी भाव जरूरत से ज्यादा मात्रा में हो तो न सिर्फ परिवार के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए समस्या का कारण बन जाता है, क्योंकि किसी भी भावना की अति इंसान को अपराध की तरफ ले जाती है. जैसे कुछ साल पहले भाजपा के प्रसिद्ध नेता प्रमोद महाजन के भाई ने अपनी नफरत के चलते उन्हें गोली मार दी.

कहने का तात्पर्य यह है कि जलन और द्वेष की भावना इंसान को कहीं का नहीं छोड़ती. अगर द्वेष और जलन की यही भावना 2 बहनों के बीच होती है, तो उन से जुड़े और भी कई लोगों को इस की आग में जलना पड़ता है. ज्यादातर देखा गया है कि 2 बहनों के बीच अकसर जलन की भावना का समावेश होता है. अगर यह जलन की भावना प्यार की भावना से कम है, तो मामला रफादफा हो जाता है, लेकिन इस जलन की भावना में द्वेष और दुश्मनी का समावेश ज्यादा है, तो यह काफी नुकसानदेह भी साबित हो जाती है.

द्वेष व जलन नहीं

अगर 2 बहनों के बीच जलन का कारण ढूंढ़ने जाएं तो कई कारण मिलते हैं. जैसे 2 बहनों में एक का ज्यादा खूबसूरत होना, दोनों बहनों में एक को परिवार वालों का ज्यादा अटैंशन मिलना या दोनों में से किसी एक बहन को मां या पिता का जरूरत से ज्यादा प्यार और दूसरी को तिरस्कार मिलना, एक बहन का ज्यादा बुद्धिमान और दूसरी का बुद्धू होना या एक बहन के पास ज्यादा पैसा होना और दूसरी का गरीब होना. ऐसे कारण 2 बहनों के बीच जलन और द्वेष के बीज पैदा करते हैं.

इसी बात को मद्देनजर रखते हुए 20 वर्षीय खुशबू बताती हैं कि उन के घर में उस की छोटी बहन मिताली को जो उस से सिर्फ 3 साल छोटी है, कुछ ज्यादा ही महत्ता दी जाती है. जैसे अगर दोनों बहनें किसी फैमिली फंक्शन में डांस करें, जिस में खुशबू चाहे कितना ही अच्छा डांस क्या करें, लेकिन उस की मां तारीफ उस की छोटी बहन की ही करती हैं.

खुशबू बताती है कि वह अपने घर में अपने सभी भाईबहनों में कहीं ज्यादा होशियार और बुद्धिमान है, बावजूद इस के उस को कभी प्रशंसा नहीं मिलती. वहीं दूसरी ओर उस की बहन में बहुत सारी कमियां हैं बावजूद इस के वह हमेशा सभी के आकर्षण का केंद्र बनी रहती है. इस की वजह हैं खासतौर पर खुशबू की मां, जो सिर्फ और सिर्फ खुशबू की छोटी बहन की ही प्रशंसा करती हैं. इस बात से निराश हो कर कई बार खुशबू ने आत्महत्या तक करने की कोशिश की, लेकिन उस के पिता ने उसे बचा लिया.

ये भी पढ़ें- साइनोसाइटिस के कारण मैं काफी परेशान हूं, कृपया बताएं मुझे क्या करना चाहिए?

वजह दौलत भी

खुशबू की तरह चेतना भी अपनी बहन की जलन का शिकार है, लेकिन यहां वजह दूसरी है. चेतना छोटी बहन है और उस की बड़ी बहन है आशा. जलन की वजह है चेतना की खूबसूरती. बचपन से ही चेतना की खूबसूरती के चर्चे होते रहते थे वहीं दूसरी ओर आशा को बदसूरत होने की वजह से नीचा देखना पड़ता था, जिस वजह से आशा चेतना को अपनी दुश्मन समझने लगी. चेतना की गलती न होते हुए भी उस को अपनी बहन के प्यार से न सिर्फ वंचित रहना पड़ा, बल्कि अपनी बड़ी बहन की नफरत का भी शिकार होना पड़ा.

कई बार 2 बहनों के बीच जलन, दुश्मनी, द्वेष का कारण जायदाद, पैसा व अमीरी भी बन जाती है. इस संबंध में नीलिमा बताती हैं, ‘‘हम 2 बहनों ने एक जैसी शिक्षा ली, लेकिन मैं ने मेहनत कर के ज्यादा पैसा कमा लिया. अपनी मां के कहे अनुसार बचत करकर के मैं ने अपनी कमाई से कार और फ्लैट भी खरीद लिया जबकि मेरी बहन ज्यादा पैसा नहीं कमा पाई और गरीबी में जीवन निर्वाह कर रही थी. इसी वजह से उस की मेरे प्रति जलन की भावना इतनी बढ़ गई कि वह दुश्मनी में बदल गई. आज हमारे बीच जलन का यह आलम है कि हम बहनें एकदूसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करतीं. बहन होने के बावजूद वह हमेशा मेरे लिए गड्ढा खोदती रहती है. हमेशा इसी कोशिश में रहती है कि मेरे घरपरिवार वाले मेरे अगेंस्ट और उस की फेवर में हो जाएं.’’

ये भी पढ़ें- ओवेरियन कैंसर क्या आनुवंशिक रोग है, मैं क्या करुं?

पिता के अमीर दोस्त, मां के गरीब रिश्तेदार

रिश्तों की अपनी अहमियत होती है. बिना रिश्तेदारों के जिंदगी नीरस हो जाती है व अकेलापन कचोटने लगता है. जिंदगी में अनेक अवसर ऐसे आते हैं जब रिश्तों के महत्त्व का एहसास होता है.

अकसर देखने में आता है कि किशोरकिशोरियां उन रिश्तेदारों को ज्यादा अहमियत देते हैं जो आर्थिक रूप से ज्यादा संपन्न होते हैं और गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते, गरीब रिश्तेदारों को अपने घर बुलाना उन्हें अच्छा नहीं लगता. वे खुद भी उन के घर जाने से कतराते हैं. भले ही बर्थडे पार्टी या शादी हो, अगर जाते भी हैं तो बेमन से.

आज के किशोरकिशोरियों में एक बात और देखने को मिलती है. वे अपने पिता के अमीर दोस्तों का दिल से स्वागत करते हैं. अपने मातापिता की बर्थडे पार्टी या मैरिज ऐनिवर्सरी में वे उन्हें खासतौर से इन्वाइट करते हैं. उन की पसंद की चीजें बनवाते हैं, लेकिन मां के गरीब रिश्तेदारों को बुलाना जरूरी नहीं समझते. यदि मां के कहने पर उन्हें बुला भी लिया, तो उन के साथ उन का बिहेवियर गैरों जैसा रहता है.

सुरेश के मम्मीपापा की मैरिज ऐनिवर्सरी थी. सुरेश और उस की बहन सुषमा एक महीना पहले ही तैयारियों में जुट गए थे. दोनों ने मिल कर मेहमानों की लिस्ट तैयार की और अपनी मम्मी को दिखाई.

लिस्ट में पिता के सभी अमीर दोस्तों का नाम शामिल था. मां को लिस्ट देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ. वे बोलीं, ‘‘अरे, तुम दोनों ने अपने मामामामी, मौसामौसियों के नाम तो लिखे ही नहीं. केवल मुंबई वाले मौसामौसी का ही नाम तुम्हारी लिस्ट में है.’’

यह सुनते ही सुरेश का चेहरा तमतमा उठा. वह बोला, ‘‘मैं आप के गरीब रिश्तेदारों को बुला कर अपनी व पापा की नाक नहीं कटवाना चाहता. न उन के पास ढंग के कपड़े हैं न ही उन्हें पार्टी में मूव करना आता है. क्या सोचेंगे पापा के दोस्त?’’

यह सुन कर मम्मी का चेहरा उतर गया. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का बेटा ऐसा सोचता होगा. उन की मैरिज ऐनिवर्सरी मनाने की सारी खुशी काफूर हो चुकी थी.

ये भी पढ़ें- ‘मैं’ फ्रैंड से कैसे निबटें

सुरेश के पिता ने भी सुरेश और सुषमा को बहुत समझाया कि बेटे रिश्तेदार अमीर हों या गरीब, अपने होते हैं. हमें अपने हर रिश्तेदार का सम्मान करना चाहिए.

सुरेश ने मातापिता के कहने पर मम्मी के रिश्तेदारों को इन्वाइट तो कर लिया पर मैरिज ऐनिवर्सरी वाले दिन जब वे आए तो उन से सीधे मुंह बात तक नहीं की. वह पापा के अमीर दोस्तों की आवभगत में ही लगा रहा.

सुरेश की मम्मी को उस पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर रंग में भंग न पड़ जाए, इसलिए वे शांत रहीं और स्वयं अपने भाई, भाभी और अन्य रिश्तेदारों की खातिरदारी करने लगीं.

मेहमानों के जाने के बाद सुरेश और सुषमा मम्मीपापा को मिले गिफ्ट के पैकेट खोलने लगे. उन्होंने मामामामी के गिफ्ट पैकेट खोले तो उन्हें यह देख कर बड़ा ताज्जुब हुआ. उन के दिए गिफ्ट सब से अच्छे व महंगे थे. रोहिणी वाले मामामामी ने तो महंगी घड़ी का एक सैट उपहार में दिया था और पंजाबी बाग वाली मौसीमौसा ने मम्मीपापा दोनों को एकएक सोने की अंगूठी गिफ्ट की थी, जबकि पापा के ज्यादातर अमीर दोस्तों ने सिर्फ बुके भेंट कर खानापूर्ति कर दी थी.

सुरेश व सुषमा ने अपने मम्मीपापा से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘हमें माफ कर दीजिए. हम गलत थे. जिन्हें हम गरीब समझ कर उन का अपमान करते थे, उन का दिल कितना बड़ा है, यह आज हमें पता चला. आज हमें रिश्तों का महत्त्व समझ आ गया है.’’

ऐसी ही एक घटना मोहित के साथ घटी जब उसे गरीब रिश्तेदारों का महत्त्व समझ में आया. मोहित के पापा बिजनैस के सिलसिले में मुंबई गए हुए थे. एक दिन अचानक उस की मम्मी को सीने में दर्द उठा. मम्मी को दर्द से तड़पता देख मोहित ने पापा के दोस्त हरीश अंकल को फोन मिलाया और अस्पताल चलने को कहा तो उन्होंने साफ कह दिया, ‘‘बेटा, रात को मैं कार ड्राइव नहीं कर सकता, तुम किसी और को बुला लो.’’

मोहित ने पापा के कई दोस्तों को फोन किया, पर सभी ने कोई न कोई बहाना बना दिया. मोहित की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे. अचानक उसे मम्मी के चचेरे भाई का खयाल आया जो पास में ही रहते थे. उस ने उन्हें फोन पर मम्मी का हाल बताया तो वे बोले, ‘‘बेटा, तुम परेशान मत हो, मैं तुरंत आ रहा हूं.’’

चाचाजी तुरंत मोहित के घर पहुंच गए. वे अपने पड़ोसी की कार से आए थे. वे मोहित की मम्मी को फौरन अस्पताल ले गए. डाक्टर ने कहा कि उन्हें हार्टअटैक पड़ा है. अगर अस्पताल लाने में थोड़ी और देर हो जाती तो उन्हें बचाना मुश्किल था.

यह सुनते ही मोहित की आंखों में आंसू आ गए. उसे आज रिश्तों का महत्त्व समझ में आ गया था. पिछले दिनों इन्हीं चाचाजी की बेइज्जती करने से वह नहीं चूका था.

किशोरकिशोरियों को रिश्तों के महत्त्व को समझना चाहिए. अमीरगरीब का भेदभाव भूल कर सभी रिश्तेदारों से अच्छी तरह मिलना चाहिए. उन्हें पूरा सम्मान देना चाहिए.

ये भी पढ़ें- दोस्ती की आड़ में फायदा नहीं

रिश्तों में मिठास घोलें

रिश्ते अनमोल होते हैं. किशोरकिशोरियों को मां के गरीब रिश्तेदारों को भी इज्जत देनी चाहिए. उन के यहां अगर कोई शादी या अन्य कोई फंक्शन हो तो जरूर जाना चाहिए. ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए कि उन्हें अपनी बेइज्जती महसूस हो. चाचाचाची, मामामामी, मौसामौसी से समयसमय पर फोन पर या उन के घर जा कर हालचाल लेते रहना चाहिए, इस से रिश्तों में मिठास घुलती है और रिश्तेदार हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं.

रिश्तेदारों के बच्चों से भी बनाएं संपर्क

किशोरकिशोरियों को चाहिए कि वे अपने गरीब रिश्तेदारों से न केवल संपर्क बनाए रखें बल्कि उन के बच्चों से भी दोस्त जैसा व्यवहार रखें. उन से फेसबुक, व्हाट्सऐप द्वारा जुड़े रहें. परिवार के फोटो आदि शेयर करते रहें. उन्हें कभी इस बात का एहसास न कराएं कि वे गरीब हैं. चचेरे व ममेरे भाईबहनों से भी अपने सगे भाईबहन जैसा ही व्यवहार करें. इस से उन्हें भी अच्छा लगेगा. आजकल वैसे भी एकदो भाईबहन ही होते हैं. कहींकहीं तो एक भी भाई या बहन नहीं होता. ऐसे में कजिंस को अपना सगा समझें और उन के साथ लगातार संपर्क में रहें.

छुट्टियों में रिश्तेदारों के घर जाएं

स्कूल की छुट्टियों में अपने मम्मीपापा के साथ रिश्तेदारों के घर जरूर जाएं. खासतौर से मम्मी के गरीब रिश्तेदारों के घर. जब आप उन के घर जाएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा. उन के बच्चों यानी अपने कजिंस के लिए कोई न कोई गिफ्ट जरूर ले जाएं. इस से आपस में प्यार बढ़ता है.

ये भी पढ़ें- 2 कदम तुम चलो, 2 कदम हम

प्यार साथी के घरवालों से

प्यार की परिधि व्यापक होती है. जिस से प्यार होता है उस से संबंधित लोगों, चीजों और बातों आदि तमाम पक्षों से प्यार हो जाता है. प्यार विवाहपूर्व हो तो प्रिय को पाने के लिए उस के घर वालों से भी प्यार उस राह को आसान और सुगम बना देता है और जहां तक विवाह के बाद की बात है, वहां भी साथी के घर वालों से प्यार रिश्तों में मजबूत जुड़ाव और परिवार का अटूट अंग बनाने में सहायक होता है. हमारे यहां विवाह संबंध 2 व्यक्तियों के बजाय 2 परिवारों का संबंध माना जाता है, इसलिए उस में सिर्फ व्यक्ति के बजाय समूह को प्रधानता दी जाती है. केवल प्रिय या अपने बच्चों तक ही प्यार को स्वार्थ माना जाता है. केवल अपने लिए जिए तो क्या जिए? उस तरह तो हर प्राणी जीता है.

दरअसल, बहू हमारे यहां परिवार की धुरी है, उसी पर हमारे वंश का जिम्मा है, इसलिए उसे परिवार की भावना को अगली पीढ़ी में सुसंस्कार डालने वाली माना जाता है.

क्या कहते हैं अनुभव

राजेश्वरी आमेटा ससुराल में काफी लोकप्रिय हैं. उन के पति डाक्टर हैं और उन्हें भी ससुराल पक्ष व उन के परिचितों से बहुत स्नेह मिला. डा. आमेटा कहते हैं, ‘‘मैं स्वभाव से संकोची और कम बोलने वाला था पर बड़े परिवार में शादी होने से मुझे अपने से छोटेबड़ों का इतना मानसम्मान तथा प्यार मिला कि मुझे जो सामाजिकता पसंद न थी, वह भी अच्छी लगने लगी. राजेश्वरी कहती हैं, ‘‘शादी का मतलब ही प्रेम का विस्तार है. मेरी ससुराल में ससुरजी के 3 भाइयों का परिवार एक ही मकान में रहता था, इसलिए दिन भर घर में रौनक व चहलपहल का माहौल रहता था.’’

अगर मन में यह बात रखी जाए कि पारिवारिकता से आप को प्यार देने के साथसाथ उस की प्राप्ति का सुख भी मिलता है, पारिवारिकता आप के मन को विस्तार देती है, समायोजन में सहूलियत पैदा करती है, तो साथी के घर वालों से भी सहज ही प्यार हो जाता है. मनोवैज्ञानिक सलाहकार डा. प्रीति सोढ़ी इस तरह के संबंधों पर मनोवैज्ञानिक रोशनी डालते हुए बताती हैं कि साथी के घर वालों या संबंधियों से प्यार सपोर्टेड रिलेशनशिप कहलाता है. इस से भावनात्मक जुड़ाव मजबूत होता है, आत्मीयता और एकदूसरे के प्रति हमदर्दी में बहुत सपोर्ट मिलता है और लड़ाईझगड़े कम होते हैं. नकारात्मक सोच के लिए कोई मौका नहीं मिलता.

ये भी पढ़ें- खूबसूरत महिला बौस से परेशान पत्नियां

मिलती सकारात्मक ऊर्जा

हमारे यहां परिवारों में ज्यादातर झगड़े पक्षपात, कमज्यादा लेनदेन व स्नेहभाव कमज्यादा होने पर होते हैं. इसलिए साथी के संबंधियों से प्यार आप का मानसम्मान, हौसला और अहमियत बढ़ाने वाला होता है. लेखिका शिवानी अग्रवाल कहती हैं, ‘‘शुरूशुरू में यह प्यार आप को जतानाबताना पड़ता है, लेकिन धीरेधीरे यह सहज हो जाता है. मसलन, आप उन को बुलाएं, उन का इंतजार करें, उन की पसंदनापसंद का खयाल रखें, उन की जन्मतिथि, शादी की वर्षगांठ आदि याद रखें. यानी भावनात्मक रूप से जुड़ें. फिर ये सब दोनों तरफ से होने लगता है, तो आप अपनेआप पर फख्र करते हैं.’’ आभा माथुर कहती हैं, ‘‘केवल बातों की बादशाही से काम नहीं चलता, उन्हें मूर्त रूप दिया जाना जरूरी होता है. अविवाहित ननद है, तो उस की सहेली बनें. देवर या ननद के छोटेछोटे काम कर दें. साथ खाना खाएं. बाजार से पति बच्चों के लिए कुछ लाएं तो उन्हें न भूलें जैसे सैकड़ों कार्य हैं इस प्यार की अभिव्यक्ति के.’’

सच भी है, साथी के घर वालों से प्यार करने से घरपरिवार में सकारात्मक ऊर्जा रहती है. उन्हें नहीं लगता कि उन का भाई, बेटा, पोता या बहन, बेटी, पोती किसी ने छीन ली या दूर कर ली है. कई बार लगता है एक व्यक्ति से जुड़ कर कई लोगों से रिश्ते बने. अपने घरपरिवार वालों से साथी के बारे में अच्छी प्रतिक्रिया से मन बहुत खुश रहता है. लगता है हमें अच्छा साथी मिला. जिस के साथी की निंदा होती हो, वह अच्छा भी हो, तो भी लगता है जैसे उस व्यक्ति के चयन में कोई गड़बड़ी या गलती हो गई है. एक प्रेमविवाह करने वाला जोड़ा कहता है, ‘‘शुरूशुरू में हम दोनों एकदूसरे में ही खोए हुए थे. इस वजह से हमें किसी और का ध्यान ही नहीं आया. पर संबंधियों से हमें इतना प्यार मिला कि हमें एकदूसरे के घर वालों से बहुत प्यार हो गया और अब बढ़ता जा रहा है. हमारे घर वालों ने हमारी पुरानी बातें भुला कर अच्छा ही किया, वरना तनातनी होती व बढ़ती. अब हमें जिंदगी जीने का मजा आ रहा है.’’ कुछ लोगों को लगता है साथी के घर वालों को ज्यादा भाव देने से वे हमारे घर में दखल करेंगे. उन का हस्तक्षेप हमारे जीवन के सुख को कम कर सकता है, व्यावहारिकता से देखासोचा जाए तो सचाई तो यह है प्यार से रिश्तों को पुख्ता बनाने में मदद मिलती है. हारीबीमारी के वक्त, परिस्थिति को जानना, झेलना आसान हो जाता है. हम किसी के साथ हैं तो कोई हमारे साथ भी है, छोटेछोटे परिवार होने पर भी बड़े परिवार का लाभ मिल जाता है.

जहां नहीं होती आत्मीयता

चिरंजी लाल की 6 बहनें हैं. वे कहते हैं, ‘‘माफ कीजिएगा, हम पुरुष जितनी आसानी से ससुराल वालों को मान देते हैं, उतना हमारी पत्नियां हमारे घर वालों को मान नहीं देतीं. मैं पत्नी के भाइयों की खूब खातिर करता हूं, पर मेरी पत्नी मेरे भाईबहनों का उतना आदरसम्मान नहीं करतं, बल्कि मुझे उन से सावधान रहने जैसी बातें कह कर भड़काती रहती हैं. मेरी पत्नी बेहद सुंदर है फिर भी वह मन से भी उतनी ही सुंदर होती, तो मेरे दिल के और करीब होती.’’ जो एकदूसरे के घर वालों से जुड़ नहीं पाते उन्हें मलाल रहता है. इस का कहीं न कहीं उन के अपने प्यार पर भी प्रभाव पड़ता है. प्यार के शुरुआती दिनों में तो यह चल जाता है पर बाद में यह बात आपसी रिश्तों में खींचतान व खटास का कारण भी बनती है. प्रेमविवाह हो या परंपरागत विवाह, साथी के घर वालों से प्यार करने से सुख बढ़ता ही है, अपना भी व दूसरों का भी. यार से हस्तक्षेप बढ़ता है यह भ्रम ही है. मौके पर अच्छी सलाह और मदद अलादीन के चिराग का काम करती है. आज हम किसी के सुखदुख में खड़े हैं, तो कल को कोई हमारे साथ खड़ा होगा. जीवन हमेशा एक जैसा नहीं चलता.

मेरी बचपन की एक सहेली को विवाह के बाद गुपचुप दूसरा विवाह कर के उस के पति ने धोखा दिया. उस के ससुराल वालों ने अपने बेटे का बहिष्कार कर के कानूनन तलाक करवा कर उसे अपनी बेटी बना कर, उस का अपने घर से ही दूसरा विवाह कराया. यदि उस का पति के घर वालों से लगावजुड़ाव नहीं होता, तो यह कभी संभव ही नहीं था.

देखें अपने आसपास

साथी के घर वालों से जुड़ाव का नतीजा आसपास आसानी से देखा जा सकता है. जो ऐसा करते हैं, वे औरों की अपेक्षा ज्यादा मान और भाव पाते हैं. 3 बहुओं व बेटों के होने पर भी ऐसा करने वाला एक व्यक्ति उन पर भारी पड़ता है, उस की पूछ ज्यादा होती है. विवाह और प्यार के मूल में पारिवारिकता है, जो इसे नहीं समझ पाते वे कटेकटे व अलगथलग पड़ जाते हैं. दूसरों से जुड़ कर और अपने से जोड़ कर ही तो हम भी खुल कर कुछ कह सकते हैं और अपनी बात बता सकते हैं. इस जुड़ाव से बहुत से कठिन मौके आसान हो जाते हैं. साथी के घर वालों से जुड़ कर साथी से जुड़ी शिकायतें भी दूर की जा सकती हैं. मसलन, नशा, जुआ या ऐसे ही तमाम ऐबतथा गैरजिम्मेदारी भरे रवैए. जहां यह पारिवारिक जुड़ाव नहीं, वहां तनाव भी पसरता है. साथी एकदूसरे को खुदगर्ज व अपनों से दूर करने वाला भी समझते हैं. तमाम सुखसुविधाओं के बीच भी आधाअधूरापन अनुभव होता है. बच्चों में भी स्वत: यह प्रवृत्ति आती जाती है.

जब हम किसी से जुड़ाव और प्यार रखते हैं, तो औपचारिकता में कड़वी लगने वाली बातें भी आत्मीयता के कारण सहजस्वाभाविक लगती हैं. एकदूसरे के प्रति स्नेह बढ़ता है व रिश्तों की समझ पैदा भी होती है. व्यर्थ के गिलेशिकवे, ताने, तनातनी, लड़ाईझगड़े हो नहीं पाते. जैसे बिखरे पन्नों को बाइंडर किताब के रूप में जोड़ देता है, जिस से लगता ही नहीं कि वे अलगअलग भी थे. यही काम साथी के घर वालों से प्यार पर किसी रिश्ते का होता है.

ये भी पढ़ें- Diwali Special: दिवाली पर इन तरीकों से सजाएं अपना घर

तो हमेशा रहेगा 2 बहनों में प्यार

‘‘वाह इस गुलाबी मिडी में तो अपनी अमिता शहजादी जैसी प्यारी लग रही है,’’ मम्मी से बात करते हुए पापा ने कहा तो नमिता उदास हो गई.

अपने हाथ में पकड़ी हुई उसी डिजाइन की पीली मिडी उस ने बिना पहने ही अलमारी में रख दी. वह जानती है कि उस के ऊपर कपड़े नहीं जंचते जबकि उस की बहन पर हर कपड़ा अच्छा लगता है. ऐसा नहीं है कि अपनी बड़ी बहन की तारीफ सुनना उसे बुरा लगता है. मगर बुरा इस बात का लगता है कि उस के पापा और मम्मी हमेशा अमिता की ही तारीफ करते हैं.

नमिता और अमिता 2 बहनें थीं. बड़ी अमिता थी जो बहुत ही खूबसूरत थी और यही एक कारण था कि नमिता अकसर हीनभावना का शिकार हो जाती थी. वह सांवलीसलोनी थी. मांबाप हमेशा बड़ी की तारीफ करते थे.

खूबसूरत होने से उस के व्यक्तित्व में एक अलग आकर्षण नजर आता था. उस के अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ गया था. बचपन से खूब बोलती थी. घर के काम भी फटाफट निबटाती, जबकि नमिता लोगों से बहुत कम बात करती थी.

मांबाप उन के बीच की प्रतिस्पर्धा को कम करने के बजाय अनजाने ही यह बोल कर बढ़ाते जाते थे कि अमिता बहुत खूबसूरत है. हर काम कितनी सफाई से करती है, जब कि नमिता को कुछ नहीं आता. इस का असर यह हुआ कि धीरेधीरे अमिता के मन में भी घमंड आता गया और वह अपने आगे नमिता को हीन सम  झने लगी.

नतीजा यह हुआ कि नमिता ने अपनी दुनिया में रहना शुरू कर दिया. वह पढ़लिख कर बहुत ऊंचे ओहदे पर पहुंचना चाहती थी ताकि सब को दिखा दे कि वह अपनी बहन से कम नहीं. फिर एक दिन सच में ऐसा आया जब नमिता अपनी मेहनत के बल पर बहुत बड़ी अधिकारी बन गई और लोगों को अपने इशारों पर नचाने लगी.

यहां नमिता ने प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप दिया इसलिए सफल हुई. मगर कई बार ऐसा नहीं भी होता है कि इंसान का व्यक्तित्व उम्रभर के लिए कुंद हो जाता है. बचपन में खोया हुआ आत्मविश्वास वापस नहीं आ पाता और इस प्रतिस्पर्धा की भेंट चढ़ जाता है.

अकसर 2 सगी बहनों के बीच भी आपसी प्रतिस्पर्धा की स्थिति पैदा हो जाती है. खासतौर पर ऐसा उन परिस्थितियों में होता है जब मातापिता अपनी बेटियों का पालनपोषण करते समय उन से जानेअनजाने किसी प्रकार का भेदभाव कर बैठते हैं. इस के कई कारण हो सकते हैं.

ये भी पढ़ें- सास-बहू मजबूत बनाएं रिश्तों की डोर

किसी एक बेटी के प्रति उन का विशेष लगाव होना: कई दफा मांबाप के लिए वह बेटी ज्यादा प्यारी हो जाती जिस के जन्म के बाद घर में कुछ अच्छा होता है जैसे बेटे का जन्म, नौकरी में तरक्की होना या किसी परेशानी से छुटकारा मिलना. उन्हें लगता है कि बेटी के कारण ही अच्छे दिन आए हैं और वे स्वाभाविक रूप से उस बच्ची से ज्यादा स्नेह करने लगते हैं.

किसी एक बेटी के व्यक्तित्व से प्रभावित होना:

हो सकता है कि एक बेटी ज्यादा गुणी हो, खूबसूरत हो, प्रतिभावान हो या उस का व्यक्तित्व अधिक प्रभावशाली हो, जबकि दूसरी बेटी रूपगुण में औसत हो और व्यक्तित्व भी साधारण हो. ऐसे में मांबाप गुणी और सुंदर बेटी की हर बात पर तारीफ करना शुरू कर देते हैं.

इस से दूसरी बेटी के दिल को चोट लगती है. बचपन से ही वह एक हीनभावना के साथ बड़ी होती है. इस का असर उस के पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है.

बहनों के बीच यह प्रतिस्पर्धा अकसर बचपन से ही पैदा हो जाती है. बचपन में कभी रंगरूप को ले कर, कभी मम्मी ज्यादा प्यार किसे करती है और कभी किस के कपड़े/खिलौने अच्छे हैं जैसी बातें प्रतियोगिता की वजह बनती हैं. बड़ा होने पर ससुराल का अच्छा या बुरा होना, आर्थिक संपन्नता और जीवनसाथी कैसा है जैसी बातों पर भी जलन या प्रतिस्पर्धा पैदा हो जाती है.

बहने जैसेजैसे बड़ी होती हैं वैसेवैसे प्रतिस्पर्धा का कारण बदलता जाता है. यदि दोनों एक ही घर में बहू बन कर जाएं तो यह प्रतिस्पर्धा और भी ज्यादा देखने को मिल सकती है.

पेरैंट्स न करें भेदभाव

अनजाने में मातापिता द्वारा किए भेदभाव के कारण बहनें आपस में प्रतिस्पर्धा करने लगती हैं. उन के स्वभाव में एकदूसरे के प्रति ईर्ष्या और द्वेष पनपने लगता है. यही द्वेष प्रतिस्पर्धा के रूप में सामने आता है और एकदूसरे से अपनेआप को श्रेष्ठ साबित करने का कोई अवसर नहीं छोड़तीं.

इस के विपरीत यदि सभी संतान के साथ समान व्यवहार किया गया हो और बचपन से ही उन के मन में बैठा दिया जाए कि कोई किसी से कम नहीं है तो उन के बीच ऐसी प्रतियोगिता पैदा नहीं होगी. यदि दोनों को ही शुरू से समान अवसर, समान मौके और समान प्यार दिया जाए तो वे प्रतिस्पर्धा करने के बजाय हमेशा खुद से ज्यादा अहमियत बहन की खुशी को देंगी.

40 साल की कमला बताती हैं कि उन की 2 बेटियां हैं. उन की उम्र क्रमश: 7 और 5 साल है. छोटीछोटी चीजों को ले कर अकसर वे आपस में   झगड़ती हैं. उन्हें हमेशा यही शिकायत रहती है कि मम्मी मु  झ से ज्यादा मेरी बहन को प्यार करती हैं.

दरअसल, इस मामले में दोनों बेटियों के बीच मात्र 2 साल का अंतर है. जाहिर है जब छोटी बेटी का जन्म हुआ होगा तो मां उस की देखभाल में व्यस्त हो गई होंगी. इस से उस की बड़ी बहन को मां की ओर से वह प्यार और अटैंशन नहीं मिल पाया होगा जो उस के लिए बेहद जरूरी था.

जब 2 बच्चों के बीच उम्र का इतना कम फासला हो तो दोनों पर समान रूप से ध्यान दे पाना मुश्किल हो जाता है.

इस तरह लगातार बच्चे होने पर बहुत जरूरी है कि उन दोनों के साथ बराबरी का व्यवहार किया जाए. नए शिशु की देखभाल से जुड़ी ऐक्टिविटीज में अपने बड़े बच्चे को विशेष रूप से शामिल करें. छोटे भाई या बहन के साथ ज्यादा वक्त बिताने से उस के मन में स्वाभाविक रूप से अपनत्व की भावना विकसित होगी.

रोजाना अपने बड़े बच्चे को गोद में बैठा कर उस से प्यार भरी बातें करना न भूलें. इस से वह खुद को उपेक्षित महसूस नहीं करेगा.

प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप में लें

आपस में प्रतिस्पर्धा होना गलत नहीं है. कई बार इंसान की उन्नति/तरक्की या फिर कहिए तो उस के व्यक्तित्व का विकास प्रतिस्पर्धा की भावना के कारण ही होता है. यदि एक बहन पढ़ाई, खेलकूद, खाना बनाने या किसी और तरह से आगे है या ज्यादा चपल है तो दूसरी बहन कहीं न कहीं हीनभावना का शिकार होगी. उसे अपनी बहन से जलन होगी.

बाद में कोशिश करने पर वह किसी और फील्ड में ही भले, लेकिन आगे बढ़ कर जरूर दिखाती है. इस से उस की जिंदगी बेहतर बनती है. इसलिए प्रतिस्पर्धा को हमेशा सकारात्मक रूप में लेना चाहिए.

ये भी पढ़ें- जब मायके से न लौटे बीवी

रिश्ते पर न आए आंच

अगर दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा है तो यह महत्त्वपूर्ण है कि आप उसे टैकल कैसे करती हैं. आप का उस के प्रति रवैया कैसा है. प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप में लीजिए और इस के कारण अपने रिश्ते को कभी खराब न होने दीजिए. याद रखिए 2 बहनों का रिश्ता बहुत खास होता है. आज के समय में वैसे भी ज्यादा भाईबहन नहीं होते हैं.

यदि आप का बहन से रिश्ता खराब हो जाए तो आप के मन में जो खालीपन रह जाएगा वह कभी भर नहीं सकता क्योंकि बहन की जगह कभी भी दोस्त या रिलेटिव नहीं ले सकते. बहन तो बहन होती है. इसलिए रिश्ते में पनपी इस प्रतिस्पर्धा को कभी भी इतना तूल न दें कि वह रिश्ते पर चोट करे.

और भी गम हैं जमाने में…

आन्या 22 वर्षीय खूबसूरत होनहार और स्वतंत्र विचारों वाली युवती है. बचपन से ले कर आज तक अपने सारे फैसले खुद करती आई है. फिर वह हुआ जो आमतौर पर आजकल के युवकयुवतियों के साथ होता है यानी मुहब्बत. स्वतंत्र आन्या मुहब्बत की बेडि़यों में ही अपनी पहचान ढूंढ़ने लगी थी. अपने बौयफ्रैंड के साथ आन्या ने सतरंगी जीवन के सपने बुनने आरंभ कर दिए थे. अपने शौक, कपड़े पहनने का तरीका सबकुछ उस ने मुहब्बत के फेर में पड़ कर बदल लिया. और फिर टूटे दिल के साथ डिप्रैशन में चली गई.

दीया बचपन से बड़े होने तक एक ही सपना देखती आई कि उस की जिंदगी में एक राजकुमार आएगा. पासपड़ोस, रिश्तेदारों में सब की लव स्टोरी थी. ऐसे में दीया को लगने लगा कि उस की जिंदगी बिना साथी के बेमानी है और फिर इसी विचारधारा के कारण वह जल्द ही एक लंपट किस्म के लड़के के चंगुल में फंस गई.

आखिर ऐसा क्यों है कि हर लड़की चाहे वह शहर की हो या कसबे की या फिर महानगर की अपनी पूर्णता एक साथी के साथ ही ढूंढ़ती है? इस के पीछे छिपी है वही पुरानी सोच कि लड़की की जिम्मेदारी तब तक पूरी नहीं होती है जब तक उस का घर नहीं बसता है.

कसबों में तो आज भी बहुत सारी लड़कियां पढ़ाई ही विवाह करने के लिए करती हैं. वहीं महानगरों में नौकरी करना एक बेहतर जीवनसाथी और शादी के लिए जरूरी हो गया है.

यानी लड़कियों की जीवनयात्रा में पुरुष नामक जीव का बहुत महत्त्व है. उन के अधिकतर कार्यकलाप पुरुष मित्रों, प्रेमी या पति के इर्दगिर्द ही घूमते हैं और जैसे ही पुरुष नामक धुरी उन की जिंदगी से अलग हो जाती, उन का अस्तित्व गौण हो जाता है.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: बच्चे को दुनिया से रूबरू कराएंगी ये 5 जरूरी स्किल

एक नाकामयाब मुहब्बत के कारण ये लड़कियां अपनी जिंदगी तक खत्म कर लेती हैं और इस के पीछे छिपी है वही रूढि़वादी सोच कि अकेली औरत कैसे रह पाएगी. एक अकेली औरत के साथ बेचारी शब्द क्यों जुड़ जाता है? क्यों हम अपनी बेटियों के मन में यह बात बैठा देते हैं कि उन का औरत होना तभी सार्थक है जब उन की जिंदगी में कोई आदमी हो?

अगर थोड़ा गहराई से सोचें तो लड़कियां ही हैं जो विवाह के बाद अपनेआप को नख से शिख तक बदल लेती हैं, क्योंकि उन्हें बचपन से यही सिखाया जाता है कि प्यार का मतलब है बलिदान, चाहे इस में वह खुद का अपमान भी कर रही हो.

ऐसे में हम क्यों न अपनी बेटियों को यह बात सिखाएं कि प्यार जिंदगी का बस एक और रंग है परंतु प्यार जिंदगी नहीं है. किसी के होने या न होने से वे खुद को नकारना बंद करे. किसी का साथ होना अच्छा है, परंतु बिना साथ भी वे जिंदगी अच्छी तरह गुजार सकती हैं. किसी के साथ की चाह में अपनी खूबसूरत जिंदगी को बेवजह जाया न करें.

अगर आप की बेटी, भानजी, भतीजी, छोटी या बड़ी बहन या कोई सहेली इस मुहब्बत के गम से गुजर रही हो तो आप इन छोटेछोटे टिप्स से उस की मदद कर सकती हैं:

एकला चलो रे:

आप का जीवन एक यात्रा है और हर शख्स के साथ आप को एक पड़ाव तय करना होता है. जरूरी नहीं है कि आप का साथी आप के साथ जिंदगी के हर पड़ाव पर साथ चले. कुछ लोग आप की जिंदगी में कुछ सिखाने ही आते हैं. जरूरी है कि आप उन लोगों से जो सीख सकते हैं, सीखें और फिर अपनी यात्रा  जारी रखें.

याद रखिए कि यह जीवन आप की अपनी यात्रा है और अब यह आप को ही तय करना है कि आप को इस यात्रा को रोते हुए पूरा करना है या फिर हर अच्छेबुरे अनुभवों से गुजरते हुए अपनी खुशियों की जिम्मेदारी खुद लेते हुए अपने सफर को पूरा करना है.

खुद से ही आप की पहचान:

अगर अपने नाम के साथ किसी और का नाम जोड़ कर ही आप अपनी पहचान देखती हैं तो साथी का जिंदगी से चले जाना आप को बहुत दर्द देगा. आप की पहचान आप से ही है. किसी की गर्लफ्रैंड या बीवी बन कर आप उस शख्स की जिंदगी का एक हिस्सा बन सकती हैं, मगर जिंदगी नहीं. इस बात को आप जितनी जल्दी समझ जाएंगी उतना ही अच्छा होगा.

खुद को न बदले:

अकसर देखने में आता है लड़कियां प्यार में पड़ कर या विवाह के बाद अपनेआप को इतना अधिक बदल लेती हैं कि उन को पहचानना मुश्किल हो जाता है. अपने साथी की पसंद के कपड़े, गहने, हेयरकट अपनाना और हद तो तब हो जाती है जब कुछ लड़कियां पति या प्रेमी के कारण मदिरा आदि का सेवन भी आरंभ कर देती हैं. उन का हर प्रोग्राम अपने साथी के मूड या काम पर निर्भर होता है. अगर कम शब्दों में कहें कि ऐसी लड़कियां खुद को इतना अधिक बदल लेती हैं कि साथी के न रहने या धोखा देने पर उन के जीवन की नींव ही हिल जाती है.

मित्रों का दायरा बढ़ाएं:

आप की चाहे शादी हो गई हो या आप किसी के साथ रिलेशनशिप में हों फिर भी अपने मित्रों से मिलनाजुलना न छोड़ें. याद रखिए कोई भी एक व्यक्ति आप की सारी जरूरतों को पूरी नहीं कर सकता है. मित्रों का जीवन में होना बेहद जरूरी होता है. अगर प्यार जरूरी है तो दोस्तों का होना और भी अधिक जरूरी है. अपने मित्रों का दायरा थोड़ा सा विस्तृत रखिए ताकि आप को बुरे समय में अकेलापन न लगे.

परिवार भी है जरूरी:

शादी होते ही लड़कियां परिवार से कट जाती हैं. पति की नींद ही सोना और पति की नींद ही जगना. जिंदगी में हर रिश्ते का अपना महत्त्व होता है. जैसे आप के साथी या पति की जगह कोई नहीं ले सकता है ठीक उसी तरह आप के परिवार की जगह भी कोई नहीं ले सकता है. ऐसा न हो अपने साथी के प्यार में डूब कर आप अपने परिवार को इग्नोर कर दें. परिवार की इकाई ही आप को भावनात्मक संबल दे सकती है.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: मां बनने के बाद भी कायम रहा जलवा

काम से कर ले दोस्ती:

समय चाहे अच्छा हो या बुरा, काम ही एक ऐसी चीज है, जो आप के गम को भुलाने में सहायक होती है. जिंदगी में साथी तो बहुत मिल जाएंगे, मगर यदि आप ने अपने काम का सम्मान नहीं किया तो आप खुद को भी खो देंगी. आप का काम भी आप के साथी की तरह आप के साथ हमेशा रहेगा. आप के साथी की तो फिर भी आप से कुछ अपेक्षाएं होंगी, मगर आप का काम बिना किसी अपेक्षा के आप को नाम और सम्मान दिलाने में सक्षम है.

4 टिप्स: जब रिश्तों में सताए डर

किसी भी रिश्ते को लौंग टाइम तक चलाने के लिए सबसे पहले उसमें एक-दूसरे को लेकर डर दूर करना आवश्यक होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप अपने रिश्ते से डर दूर नहीं करेंगी तो आप अपने विचार खुलकर साझा नहीं कर पाएंगी और आपके रिश्ते पर इसका गलत असर पड़ेगा.

चलिए जानते हैं वो कौन से ऐसे तरीके  हैं जिनकी मदद से आप अपने डर को दूर कर सकती हैं.

1. जब आपको जरूरत हो मदद के लिए तो खुलकर बोलें

कभी भी अपने डर को अपने रिश्ते पर हावी नहीं होने देना चाहिए वरना इससे आपका रिश्ता टूट सकता है. अगर आपको किसी भी तरह की मदद की जरूरत पड़ें तो आपको बिना किसी झिझक के अपने पार्टनर से बात करनी चाहिए.

ये भी पढ़ें- शादी हो या नौकरी, महिलाओं की पीठ पर लदी है पुरुषों की पसंद

2. अपने सुझाव जरूर दें

हमेशा अपने पार्टनर को सुझाव दें. बिना इस डर के, कि वह आपके सुझाव को मानेगा या नहीं. इससे आपका पार्टनर आपकी बातों पर कैसी प्रतिक्रिया देता है आपको यह पता चलेगा. साथ ही झिझक खत्म होने से आप अपने रिश्ते को और मजबूत बना सकती हैं.

3. स्पष्ट रूप से बातचीत करें

अगर आप अपने साथी से किसी बात को लेकर डरती हैं, तो आपको खुलकर उनसे बात करनी चाहिए क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो यह आपके रिश्ते को गलत दिशा में ले जा सकता है और शायद इससे आपका रिश्ता टूट भी सकता है. किसी भी रिश्ते में डर को दूर करने के लिए आपको हर एक बात को शेयर करना चाहिए.

4. पूरी वफादारी से जवाब

कभी भी अपने साथी से किसी भी बात को लेकर झूठ बोलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. यह आपके साथ-साथ आपके रिश्ते को भी कमजोर कर देता है. किसी भी बात का जवाब पूरी वफादारी से दें और अपने अंदर के डर को दूर करें. अगर आप गलत भी हो तो भी आपको बिना डरे अपने पार्टनर से उस बारे में बात करनी चाहिए. यह आपके डर को खत्म करने के साथ-साथ आपके रिश्ते को और भी गहरा कर देगा.

ये भी पढ़ें- बच्चों को बिगाड़ते हैं बड़े

बेटियों को ही नहीं, बेटों को भी संभालें

मेरी सहेली ने एक बार मुझे एक वाकया सुनाया. जब वह अपनी 8 वर्षीया बेटी रिचा को अकेले में ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ के बारे में बता रही थी, तब बेटी ने उस से कहा था, ‘मम्मी, ये बातें आप भैया को भी बता दो ताकि वह भी किसी के साथ बैड टचिंग न करे.’

सहेली आगे बताती है, ‘‘बेटी की कही इस बात को तब मैं महज बालसुलभ बात समझ कर भूल गई. मगर जब मैं ने टीवी पर देखा कि प्रद्युम्न की हत्या में 12वीं के बच्चे का नाम सामने आया है तो मैं सहम उठी. इस से पहले निर्भया कांड में एक नाबालिग की हरकत दिल दहला देने वाली थी. अब मुझे लगता है कि 8 वर्षीया रिचा ने बालसुलभ जो कुछ भी कहा, आज के बदलते दौर में बिलकुल सही है. आज हमें न सिर्फ लड़कियों के प्रति, बल्कि लड़कों की परवरिश के प्रति भी सजग रहना होगा. 12वीं के उस बच्चे को प्रद्युम्न से कोई दुश्मनी नहीं थी. महज पीटीएम से बचने के लिए उस ने उक्त घटना को अंजाम दिया.’’

आखिर उस वक्त उस की मानसिक स्थिति क्या रही होगी? वह किस प्रकार के मानसिक तनाव से गुजर रहा था जहां उसे अच्छेबुरे का भान न रहा. हमारे समाज में ऐसी कौनकौन सी बातें हैं जिन्होंने बच्चों की मासूमियत को छीन लिया है. आज बेहद जरूरी है कि बच्चों की ऊर्जा व क्षमता को सही दिशा दें ताकि उन की ऊर्जा व क्षमता अच्छी आदतों के रूप में उभर कर सामने आ सकें.

ये भी पढ़ें- जब हो सनम बेवफा

आज मीडिया का दायरा इतना बढ़ गया है कि हर वर्ग के लोग इस दायरे में सिमट कर रह गए हैं. ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि हम अपने बच्चों को मीडिया की अच्छाई व बुराई दोनों के बारे में बताएं. एक जमाना था जब टैलीविजन पर समाचार पढ़ते हुए न्यूजरीडर का चेहरा भावहीन हुआ करता था. उस की आवाज में भी सिर्फ सूचना देने का भाव होता था. मगर आज समय बदल गया है. आज हर खबर को मीडिया सनसनी और ब्रेकिंग न्यूज बना कर परोस रहा है. खबर सुनाने वाले की डरावनी आवाज और चेहरे की दहशत हमारे रोंगटे खड़े कर देती है.

घटनाओं की सनसनीभरी कवरेज युवाओं पर हिंसात्मक असर डालती है. कुछ के मन में डर पैदा होता है तो कुछ लड़के ऐसे कामों को अंजाम देने में अपनी शान समझने लगते हैं. अफसोस तो इस बात का भी होता है कि मीडिया घटनाओं का विवरण तो विस्तारपूर्वक देती है परंतु उन से निबटने का तरीका नहीं बताती.

कुछ मातापिता हैलिकौप्टर पेरैंट बन कर अपने बच्चों पर हमेशा कड़ी निगाह रखे रहते हैं. हर वक्त हर काम में उन से जवाबतलब करते रहते हैं. इसे आप भले ही अपना कर्तव्य समझते हों परंतु बच्चा इसे बंदिश समझता है. कई शोधों में यह सामने आया है कि बच्चे सब से ज्यादा बातें अपने मातापिता से ही छिपाते हैं, जबकि हमउम्र भाईबहनों या दोस्तों से वे सबकुछ शेयर करते हैं.

आज के बच्चे वर्चुअल वर्ल्ड यानी आभासी दुनिया में जी रहे हैं. वे वास्तविक रिश्तों से ज्यादा अपनी फ्रैंड्सलिस्ट, फौलोअर्स, पोस्ट, लाइक, कमैंट आदि को महत्त्व दे रहे हैं. वे किसी भी परेशानी का हल मातापिता से पूछने के बजाय अपनी आभासी दुनिया के मित्रों से पूछ रहे हैं. वे अंतर्मुखी होते जा रहे हैं, साथ ही, उन का आत्मविश्वास भी वर्चुअल इमेज से ही प्रभावित हो रहा है. बच्चों को यदि सोशल मीडिया तथा साइबर क्राइम से संबंधित सारी जानकारी होगी और अपने मातापिता पर पूर्ण विश्वास होगा, तो शायद वे ऐसी हरकत कभी नहीं करेंगे.

एकल परिवारों में बच्चे सब से ज्यादा अपने मातापिता के ही संपर्क में रहते हैं. ऐसे में वे अपने अभिभावक की नकल करने की कोशिश भी करते हैं. बच्चों में देख कर सीखने का गुण होता है. ऐसे में अभिभावक उन्हें अपनी बातों द्वारा कुछ भी समझाने के बजाय अपने आचरण से समझाएं तो यह उन पर ज्यादा असर डालेगा. उदाहरणस्वरूप, नीता अंबानी अपने छोटे बेटे अनंत को मोटापे से छुटकारा दिलाने के लिए उस के साथसाथ खुद भी व्यायाम तथा डाइटिंग करने लगी थीं.

ये भी पढ़ें- बच्चों पर करियर प्रेशर

प्रौढ़ होते मातापिता अपने किशोर बेटों से बात करते समय उन से बिलकुल भी संकोच न करें. मित्रवत उन से लड़कियों के प्रति उन की भावनाओं को पूछें. रेप के बारे में वे क्या सोचते हैं, यह भी जानने की कोशिश करें. यदि कोई लड़की उन्हें ‘भाव’ नहीं दे रही है तो वे इस बात को कैसे स्वीकार करते हैं, यह जानने की अवश्य चेष्टा करें.

आमतौर पर यदि खूबसूरत लड़की किसी लड़के को भाव नहीं देती तो लड़का इसे अपनी बेइज्जती समझता है और इस बारे में जब वह अपने दोस्तों से बात करता है तो वे सब मिल कर उसे रेप या एसिड अटैक द्वारा उक्त लड़की को मजा चखाने की साजिश रचते हैं. एसिड अटैक के मामलों में 90 प्रतिशत यही कारण होता है. इसलिए, ‘लड़कियां लड़कों के लिए चैलेंज हैं’ ऐसी बातें उन के दिमाग में कतई न डालें.

निर्भया कांड में शामिल नाबालिग युवक या प्रद्युम्न हत्याकांड में शामिल 12वीं के छात्र का उदाहरण दे कर बच्चों को समझाने का प्रयास करें कि रेप और हत्या करने वाले को समाज कभी भी अच्छी नजर से नहीं देखता. कानून के शिकंजे में फंसना मतलब पूरा कैरियर समाप्त. सारी उम्र मानसिक प्रताड़ना व सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ता है.

मातापिता अपने बच्चों को अच्छा व्यक्तित्व अपनाने के लिए कई बार समाज या परिवार की इज्जत की दुहाई देते हुए उन पर एक दबाव सा बना देते हैं, जो बच्चों के मन में बगावत पैदा कर देता है. मनोवैज्ञानिक फ्रायड के अनुसार, ‘‘जब हम किसी को भी डराधमका कर या भावनात्मक दबाव डाल कर अपनी बात मनवाना चाहते हैं तो यह एक प्रकार की हिंसा है.’’

बच्चे में किसी भी तरह की मानसिक कमियां हैं तो अभिभावक उसे छिपाएं नहीं, बल्कि स्वीकार करें और उसी के अनुसार उस की परवरिश करते हुए उस के व्यक्तित्व को संवारें. दिल्ली के निकट गुरुग्राम के रायन इंटरनैशनल स्कूल के प्रद्युम्न की हत्या करने वाला 12वीं का छात्र अपराधी नहीं था, बल्कि एक साइकोपैथ था. यह एक ऐसा बच्चा है जिसे सही मौनिटरिंग व सुपरविजन की जरूरत है यानी उसे परिवार के प्यार व मातापिता के क्वालिटी टाइम की जरूरत है. समय रहते यदि उस की मानसिक समस्याओं का निवारण किया गया होता तो शायद प्रद्युम्न की जान बच सकती थी. जिस तरह शरीर की बीमारियों का इलाज जरूरी है उसी तरह मानसिक बीमारियों की भी उचित इलाज व देखभाल की आवश्यकता होती है. इसे ले कर न ही मातापिता कोई हीनभावना पालें और न ही बच्चों को इस से ग्रसित होने दें.

ये भी पढ़ें- गंदी बात नहीं औरत का और्गेज्म

जिंदगी की बाजी जीतने के 15 सबक

कोरोना ने हमारी जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली है. हमारी मस्ती, फुजूलखर्ची, आए दिन रैस्टोरैंट्स में पार्टी, खानापीना, बेमतलब भी घूमने निकल जाना, कभी शौपिंग, कभी मूवी तो कभी रिश्तेदारों का आनाजाना धूममस्ती इन सब पर विराम लग चुका है. ज्यादातर लोग वर्क फ्रौम होम कर रहे हैं. लोगों के बेमतलब आनेजाने पर ब्रेक लग गया है. मास्क और सैनिटाइजर जीवन के अहम हिस्से बन गए हैं.

ऐसे में यदि आप भी बीती जिंदगी से कुछ सबक ले कर आने वाली जिंदगी को बेहतर अंदाज में जीना चाहते हैं तो अपनी जीवनशैली, सोच और जीने के तरीके में कुछ इस तरह के बदलाव लाएं ताकि एक सुकून भरी जिंदगी की शुरुआत कर सकें.

रिश्तों को संजोना सीखें

रिश्ते आप की जिंदगी में अहम भूमिका निभाते हैं. परेशानी के समय इंसान अपने घर की तरफ ही भागता है. हम ने कोरोनाकाल में देखा कि किस तरह लोग शहर छोड़ कर अपनेअपने गांव की तरफ भाग रहे थे. दरअसल, हर इंसान को पता होता है कि अजनबी शहर में तकलीफ के समय आप अकेले होते हैं. इस से तकलीफ अधिक बड़ी महसूस होती है.

पर जब आप अपनों के बीच होते हैं तो मिलजुल कर हर तकलीफ से नजात पा जाते हैं. भले ही तकलीफ खत्म न हो पर दर्द बांट कर उसे सहना आसान हो जाता है. मांबाप, भाईबहन जिन्हें आप कितना भी बुरा क्यों न कहें पर जब बीमारी हारी या कोई परेशानी आती है तो वही हमारा संबल बनते हैं.

ये भी पढ़ें- इन 17 सूत्रों के साथ बनाएं लाइफ को खुशहाल

इसलिए हमेशा अपने रिश्तों को सहेज कर रखना चाहिए. उन्हें एहसास दिलाते रहना चाहिए कि आप उन्हें कितना प्यार करते हैं. जिस तरह बैंकों और दूसरी जगहों पर आप समयसमय पर रुपए जमा करते हैं वैसे ही रिश्तों में भी निवेश कीजिए. थोड़ाथोड़ा प्यार बांट कर रिश्तों की बगिया को गुलजार रखिए, एक समय आएगा जब यही बगिया आप की जिंदगी को सींच कर फिर से हरीभरी बना देगी.

मंदिरा की अनिल के साथ लव मैरिज हुई थी. अनिल हमेशा से मंदिरा की हर बात मानता था. शादी के बाद मंदिरा और अनिल मुश्किल से 2-4 महीने सब के साथ रहे. इस के बाद अनिल ने मंदिरा की सलाह पर अलग होने का फैसला ले लिया. मांबाप उन के इस फैसले से बहुत दुखी थे, मगर मंदिरा को ससुराल रास नहीं आ रही थी.

सास ने बहू का हाथ थाम कर कहा, ‘‘बेटा साथ रहने में क्या बुराई है? इतना बड़ा घर है. तुझे कोई परेशानी नहीं होगी.’’

मंदिरा ने साफ जवाब दिया, ‘‘मम्मीजी घर कितना भी बड़ा हो पर लोगों की भीड़ तो देखो ननद, देवर, जेठजी, जेठानीजी, आप, पापाजी और नंदू इतने लोगों के बीच मेरा दम घुटता है. उस पर यह रिश्तेदारों का आनाजाना. मुझे बचपन से मम्मीपापा के साथ अकेले रहने की आदत है. अब शादी के बाद पति के साथ अकेली घर ले कर रहूंगी. मैं ने अनिल से पहले ही कह दिया था.’’

मां ने बेटे की तरफ देखा फिर नजरें झका लीं. अनिल और मंदिरा ने दूसरी लोकैलिटी में एक अच्छा सा घर लिया और वहां रहने लगे. वक्त गुजरता रहा. मंदिरा आराम से अकेली पति के साथ रहती और खाली समय में टीवी देखती या मोबाइल पर सहेलियों के साथ लगी रहती.

वह अपने ससुराल वालों की कभी कोई खोजखबर भी नहीं लेती थी. न अनिल को उन के घर जाने देती. अनिल की अच्छीखासी कमाई होने लगी. उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी.

इस बीच कोरोना का प्रकोप शुरू हुआ. अनिल की नौकरी छूट गई. मंदिरा इस समय प्रैगनैंट थी. आर्थिक समस्याएं सिर उठाने लगीं. मुसीबत तब और बढ़ गई जब अनिल कोरोना पौजिटिव निकला. मंदिरा के हाथपैर फूल गए. अब वह अपनी और गर्भ के बच्चे की चिंता करे या पति की. उस ने अपनी मां को फोन लगाया, मगर वे खुद बीमार थीं.

हार कर उस ने अपनी सास को सारी परिस्थितियों से अवगत कराया. सास ने सारी बात सुनते ही अपना सामान पैक किया और मंदिरा के पास रहने आ गईं.

उन्होंने आते ही अनिल को अलग कमरे में क्वारंटाइन कर दिया. मंदिरा की प्रैगनैंसी का आठवां महीना देखते हुए उसे भी दूसरे कमरे में बैड रैस्ट पर रहने को कहा और खुद काम में लग गईं. खानेपीने, दवा देने और बाकी देखभाल की सारी जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले ली. मंदिरा के देवर ने भी बाहरभीतर की सारी जिम्मेदारियां उठा लीं तो ससुर ने हर संभव आर्थिक सहायता पहुंचानी शुरू कर दी. मंदिरा का जीवन बिखरने से बच गया.

10-12 दिनों में अनिल की हालत सुधर गई. 1 सप्ताह के अंदर मंदिरा की डिलिवरी भी हो गई. उस ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया था. पूरे परिवार ने बच्ची को हाथोंहाथ लिया. मंदिरा मन ही मन में बहुत शर्मिंदा थी.

उस ने अनिल से रिक्वैस्ट करते हुए कहा, ‘‘मैं चाहती हूं कि हमारी बच्ची अस्पताल से सीधी अपने घर जाए यानी अपनी दादी के घर.’’

मंदिरा की बात सुन कर सास की आंखों  से आंसू बह निकले. उन्होंने मंदिर को गले से लगा लिया.

सब से बड़ी पूंजी

असल में रिश्ते हमारी जिंदगी की सब से बड़ी पूंजी होते हैं. हम धनदौलत कितनी भी कमा लें, मगर जब तक रिश्तों की दौलत नहीं कमाते जिंदगी में असली खुशी और सुकून हासिल नहीं हो पाता. जीवन में जो भी आप के अपने हैं उन के लिए हमेशा खड़े रहें.

किसी भी रिश्ते को ग्रांटेड न लें. हर रिश्ते को अपना सौ प्रतिशत दें तभी मौके पर वे आप के काम आएंगे.

आप मिलजुल कर जीवन का हर इम्तिहान पास कर लेंगे. अपनों को इतना करीब रखें कि उन का साथ आप की खुशियों को दोगुना और गमों को आधा कर दे.

आजकल हम एकल परिवारों में रहने के आदी होते जा रहे हैं और ऐसे में बहुत से  करीबी रिश्तों से भी दूर हो जाते हैं. जरूरत के वक्त हमें उन रिश्तों की अहमियत समझ में आती है. कोरोना ने काफी हद तक लोगों की आंखें खोली हैं. उन्हें अपनों के साथ के महत्त्व का पता चला है.

ये भी पढ़ें- पति-पत्नी के Bond को मजबूती करने के 26 सूत्र

निवेश पर दें विशेष ध्यान

संकट में जरूरत के वक्त 2 ही चीजें काम आती हैं- अपनों का साथ और जमा किए गए रुपए. रिश्ते बना कर रखने के साथ हमें इस नए साल में निवेश की अहमियत पर भी ध्यान देना होगा. जरूरी नहीं कि आप बहुत बड़ी रकम ही निवेश करें. आप की इनकम ज्यादा नहीं तो भी कोई हरज नहीं है. आप छोटेछोटे निवेश कर बड़े लक्ष्य पा सकते हैं.

वैसे भी एक जगह ज्यादा निवेश करने से बेहतर होता है कई जगह थोड़ीथोड़ी मात्रा में निवेश करना. इस से रुपए डूबने के चांस कम होते हैं और प्रौफिट अधिक होने की संभावना बढ़ जाती है.

सिप

जहां तक निवेश की बात है तो म्यूचुअल फंड निवेश का एक बेहतरीन औप्शन है. म्यूचुअल फंड में सिप में आप पैसे लगा  सकते हैं. इस में शेयर का लाभ भी मिल जाता  है और यह सुरक्षित भी होता है. फिक्स्ड इंटरैस्ट रहता है जो  बहुत ज्यादा फ्लक्चुएशन  नहीं होता है.  इस में लंबे  समय तक छोटीछोटी  रकम निवेश की  जा सकती है. जो लोग रिस्क लेने को तैयार हैं  वे इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम में रुपए लगा सकते हैं. जो सेफ निवेश चाहते हैं वे हाइब्रिड  या डेट म्यूचुअल फंड में रुपए लगा सकते हैं.  इस में आप को काफी हद तक फिक्स रिटर्न मिलता है.

लाइफ इंश्योरैंस

लाइफ इंश्योरैंस के तहत 15 साल में अधिकतर कंपनियां डबल इनकम देती हैं. आप अपनी सुविधानुसार मंथली, क्वार्टरली, हाफईयरली या ईयरली निवेश कर सकते हैं.

सुकन्या समृद्धि योजना

बेटी पैदा होने के 10 साल के अंदर इस योजना का लाभ ले सकते हैं. यह एक सरकारी योजना है, जिस में आप को सालाना 250 रुपए का निवेश करना होता है. इस में रिटर्न काफी अच्छा मिलता है. 7.5% तक का ब्याज मिल जाता है. लड़़की के 21 साल की होने पर रुपए मैच्योर हो कर मिल जाते हैं.

पब्लिक प्रोविडैंट फंड

आप पीपीएफ में थोड़ेथोड़े पैसे लगा कर अच्छाखासा कमा सकते हैं. यह भी एक सुरक्षित निवेश है.

शेयर

पहले एफडी में रिटर्न अच्छा था सो ज्यादातर लोग जो सुरक्षित निवेश चाहते थे वे फिक्स डिपौजिट या रेकरिंग डिपौजिट में निवेश करते थे. पर अब बैंकों द्वारा ब्याज काफी कम दिया जा रहा है, इसलिए लोग दूसरे औप्शंस की ओर देख रहे हैं.

फुजूलखर्ची पर रोक

आज तक हम जिंदगी को बहुत ही हलके में लेते आए हैं. जब मन किया बिना किसी जरूरत भी कपड़े खरीद लिए, शौपिंग कर ली, कोई गैजेट पसंद आया तो औनलाइन और्डर कर दिया, जब मन किया बाहर खाने चले गए, हर वीकैंड दोस्तों के साथ पार्टी की, छोटीबड़ी बात पर सैलिब्रेट करने पहुंच गए. यानी कुल मिला कर हम फुजूलखर्ची में सब से आगे रहते हैं. पर अब इस महामारी के बाद हमें यह सबक जरूर लेना चाहिए कि बेवजह रुपए उड़ाना उचित नहीं. कोरोनाकाल में कितनों की नौकरी चली गई और कितनों को कट कर सैलरी मिल रही है. आगे आने वाले कुछ समय में भी स्थिति ऐसे ही रहने वाली है. इसलिए खर्च पर लगाम जरूरी है.

वैसे भी जीवन में आने वाली तरहतरह की परेशानियों से लड़ने का पहला जरीया पैसा ही होता है. इसलिए सब से महत्त्वपूर्ण है कि कभी भी अपनी बचत से समझौता न करें.

सेहत है तो सब है

इस कोरोनाकाल ने हमें यह बात तो अच्छी तरह समझ दी है कि जिंदगी में सेहत से बढ़ कर कुछ नहीं. सेहत खराब हो तो दुनियाभर की सुखसुविधाएं और धनदौलत रखी रह जाती है और आप की जिंदगी 1-1 सांस को मुहताज हो जाती है. अपनी इम्यूनिटी मजबूत रख कर हम खुद को हर तरह के रोगों से बचा सकते हैं. इम्यूनिटी के लिए हैल्दी लाइफस्टाइल अपनाना और अच्छा खानपान बहुत जरूरी है.

रोजाना सुबह टहलना और व्यायाम करना, सेहतमंद भोजन लेना, सकारात्मक सोच और गहरे रिश्ते आप की सेहत बनाए रखते हैं. नए साल में आप सब से पहले अपनी दिनचर्या पर ध्यान दें और शरीर की तंदुरुस्ती पर काम करें. अच्छा खाएं, अच्छा सोचें और अच्छा करें. इस से न सिर्फ मन को सुकून मिलेगा, बल्कि शरीर भी अंदर से मजबूत बनेगा.

बेकार के विवादों से बचें

अकसर हम अपनी जिंदगी का सुखचैन बेवजह के लड़ाईझगड़ों और तनावों में खो देते हैं पर हासिल कुछ नहीं होता. उलटा रिश्तों के साथसाथ सेहत भी जरूर बिगड़ जाती है. बीते साल ने हमें एहसास दिलाया है कि जिंदगी में कभी भी कुछ भी हो सकता है. कल का कोई भरोसा नहीं है. ऐसे में हमें अपने आज पर फोकस करना चाहिए. आज को खूबसूरत बनाने के लिए दिल और दिमाग में सुकून का होना बहुत जरूरी है. सुकून के लिए जरूरी है कि हम विवादों से दूरी बना कर रखें.

ये भी पढे़ं- जानें कैसे बदलें पति की दूरी को नजदीकी में

ऐसी जगह घूमने जाएं जहां कभी न गए हों

प्रकृति का आंचल बहुत बड़ा है. हम जितना ही प्रकृति के करीब रहेंगे उतना ही हमारा शरीर सेहतमंद रहेगा. वैसे भी नईनई जगह घूमने से हमारी जिंदगी में रोमांच बना रहता है. कोरोना ने जब हमें घरों में बंद कर दिया तो हमें एहसास हुआ कि बाहर घूमने का आनंद क्या है.

हालात धीरेधीरे ठीक होंगे और हमें मौका मिलेगा कि हम एक बार फिर प्रकृति के करीब जा सकें. उन जगहों पर घूमने निकल सकें, जहां सेहत के साथ आप को आंतरिक खुशी भी मिले. जितना हो सके अपने घर के आसपास भी हरियाली बनाए रखने का प्रयास करें.

होल्ड पर रखे काम पूरा करें

अकसर हम अपनी जिंदगी के महत्त्वपूर्ण कामों/लक्ष्यों को होल्ड पर रख कर चलते हैं. इस के पीछे हमारा एक ही बहाना होता है कि समय नहीं मिलता. कभी औफिस की आपाधापी तो कभी घर और बच्चों के काम, सुबह से उठ कर जो दौड़भाग शुरू होती है वह देर रात तक चलती है. फिर ऐक्स्ट्रा काम कैसे किया जाए. यह बहाना सुनने में उचित लगता है. पर इस की आड़ में आप कुछ बहुत कीमती चीज खो रहे हैं.

अनिमेष एक गवर्नमैंट औफिसर था, साथ ही लिखता भी था. लंबे समय से उस की इच्छा थी कि वह अपनी कहानियों का संग्रह छपवाए. मगर काम में व्यस्त होने की वजह से वह इस ओर ध्यान नहीं दे सका. फिर जब कोरोना के कारण वह 15 दिन अस्पताल के बैड पर रहा तब उस ने खुद से सवाल किया कि कोरोना के कारण उसे आज कुछ हो जाता तो सब से ज्यादा अफसोस किस बात का होगा. इस वक्त उस के दिमाग में एक ही बात आई और वह थी काश उस ने अपना कहनी संग्रह छपवा लिए होता.

समय का सदुपयोग

कोरोनाकाल में हम ने सीखा है कि कैसे भागदौड़ कम कर के भी हम अपने सारे दायित्व निभा सकते हैं. वर्क फ्रौम होम करते हुए आप के दिमाग में यह बात जरूर आई होगी कि कहीं न कहीं आप रैग्युलर दिनों में अपना समय फुजूल के कामों में भी बरबाद करते थे.

एक तरफ औफिस आनेजाने में कई घंटे लगना तो दूसरी तरफ दोस्तों के साथ कभी शौपिंग तो कभी डिनर, कभी महंगे रैस्टोरैंट के बाहर अपनी बारी का इंतजार करते रहना तो कभी मूवी के बहाने घंटों बरबाद करना. इस के बजाय यदि आप उस समय का सदुपयोग करते हुए होल्ड पर रखे काम पूरे कर लें तो आप वह अचीव कर सकेंगे जो आप का सपना है.

याद रखिए कई बार जो काम आप भविष्य के लिए होल्ड करते जाते हैं क्या पता जिंदगी उन्हें बाद में पूरा करने का मौका ही न दे. इसलिए जो भी काम करना है वर्तमान में निबटाइए. आज का दिन आप के पास है. कल की खबर नहीं. तो क्यों न सारे जरूरी काम आज ही निबटा लिए जाएं.

बिना वजह भी खुश रहें

जिंदगी में यदि आप खुश होने के लिए किसी मौके की तलाश करते रहेंगे तो कभी खुश नहीं रह सकेंगे. इंसान खुश रहता है तो उस की इम्यूनिटी मजबूत होती है और वह चुस्तदुरुस्त बना रहता है. मन की खुशी का अच्छी सेहत से सीधा संबंध है. इसलिए खुद को हमेशा खुश रखें. इस से चेहरे पर भी चमक आती है. बिना वजह भी कुछ अच्छी बातें सोच कर मुसकराएं. आकर्षक और स्मार्ट कपड़े पहनें, अच्छी दिखें, मेकअप करें और अंदर से आत्मविश्वास बना कर रखें इस तरह आप सुंदर भी दिखेंगे और सेहतमंद भी रहेंगे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें