पूरे कमरे में बहता खून और खून से सनी लाशें… मासूम बच्चे, बडे़, सब किसी अपने के ही हाथों अपनी जिंदगी गंवा चुके थे. ऊपर जाने वाली सीढि़यों पर भी खून से सने जूतों के निशान, दीवारों पर, सीढि़यों पर, हर तरफ खून के छींटे. कठोर से कठोर दिल वाले पुलिस वालों ने भी ऊपर जा कर देखा तो घबराहट से उन की भी कंपकंपी छूट गई. ऊपर भी लाशें और मां के ही दुपट्टे से गले में फांसी का फंदा लगा झूलता हसन.
मुंबई में ठाणे के इस मुसलिम बहुल इलाके कासारवडावली में छोटीछोटी सड़कों के दोनों तरफ दुकानें थीं. बीचबीच में लोगों के दोमंजिला तिमंजिला खुले मकान. माहौल पूरी तरह से पुराने जमाने के आम मुसलिम परिवारों के महल्ले जैसा ही था. लड़कियां, औरतें बुरके में ही बाहर आतीजाती थीं. लोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न थे, पर उन का रहनसहन, लड़कियों की पढ़ाईलिखाई जमाने के हिसाब से आगे नहीं बढ़ पाई थी. लड़के तो पढ़लिख कर फिर भी अच्छे ओहदे पा चुके थे, पर इस इलाके की लड़कियां आज भी थोड़ाबहुत पढ़लिख कर घर तक ही सीमित थीं.
शौकत अली और आयशा बेगम की3 बेटियां थीं- सना, रूबी और हिबा. तीनों बेटियों की उम्र में 2-2 साल का अंतर था. रूबी मानसिक रूप से अस्वस्थ थी. सब से छोटी हिबा से 5 साल छोटा था हसन, आयशा उस पर दिनरात कुरबान होती थीं. अब तक नीचे 2 बैडरूम थे. आयशा ने अब हसन के लिए पहली मंजिल पर एक आरामदायक कमरा बनवा दिया था. हसन की हर सुविधा का ध्यान रखते हुए आयशा ने हर चीज का प्रबंध कर दिया था.
रूबी तो स्कूल जा नहीं पाई थी. सना और हिबा को आयशा बेगम ने 10वीं क्लास तक ही पढ़ने की छूट दी थी. शौकत अली ने बेटियों को पढ़ाना चाहा तो आयशा उन पर ही बरस पड़ी थीं, ‘‘क्या करना है इन्हें पढ़ कर? शादी हो ही जाएगी जल्दी. बस, हसन को पढ़ालिखा कर बड़ा आदमी बनाना है. हमारे बुढ़ापे का सहारा है वह.’’
हसन की हर बात आयशा हर हाल में पूरा करती थीं. हसन इस बात का खूब फायदा उठाने लगा था. शौकत एक प्राइवेट फर्म में काम करते थे. उन की तनख्वाह इतनी तो थी ही कि घर का गुजारा अच्छी तरह हो जाता.
रूबी बहुत इलाज के बाद भी ठीक नहीं हो पाई थी. वह साफ नहीं बोल पाती थी. इशारे से अपनी बात समझाती थी. समझती तो कुछकुछ थी पर उस का चलने, उठनेबैठने पर अपना नियंत्रण नहीं था. किसी को उस के आसपास रहना होता था. हसन जानबूझ कर उसे तंग करता था.
हसन जैसेजैसे बड़ा हो रहा था, उस की बातें, उस का स्वभाव, उस के हावभाव, तौरतरीके किसी अच्छे लड़के की तरह नहीं थे. उस की किसी भी गलती पर उसे टोकने पर आयशा उस की ढाल बन जाती थीं.
घर के पास एक दरगाह थी. वहीं एक कोने में दिन में एक जमाल बाबा बैठा करता था. वहीं एक कमरे में रात में रहता भी था. उन के पास झाड़फूंक करवाने वालों की भीड़ लगी रहती थी. आयशा को भी उस पर बड़ा भरोसा था. हसन जहां बीमार पड़ता, आयशा झट से उसे बाबा के पास ले जाती थीं.
एक दिन आयशा ने उस से कहा, ‘‘बाबा, हसन को कुछ दीनधर्म की बातें बताओ… आप के कदमों में इसे महजब की जानकारी की राह मिल जाए तो हम सब का भी भला हो जाएगा.’’
अब हसन अकसर बाबा के पास बैठने लगा था. उस के दोस्त कम होते जा रहे थे. वह अपनेआप में ही खोया रहने लगा था. आयशा बेटे को शांत देख कर खुश होती थीं. उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि उन के बेटे के अंदर कैसेकैसे बीज अपनी जड़ें जमा रहे हैं.
शौकत को हसन के बाबा के पास बैठ कर समय बिताने के बारे में पता चला तो उन्होंने डांटा, ‘‘उस के पास बैठ कर क्यों टाइम खराब करते हो? बैठ कर पढ़ाई करो, मेहनत करो.’’
जवाब आयशा ने दिया, ‘‘कैसे बाप हो तुम? पढ़ाई के साथसाथ तुम्हारा बेटा दीनधर्म की राह पर चल रहा है… इस बात से तुम्हें खुश होना चाहिए… बेचारे बाबा मजहब के बारे में ही तो बताते हैं.’’
बस यहीं शौकत चुप हो जाते थे, क्योंकि आम इनसान की तरह उन के दिल में भी धर्म का बड़ा खौफ था.
कुछ साल और बीत गए. सना के रिश्ते आने शुरू हुए तो आयशा को पहली बार बेटियों के निकाह की फिक्र हुई. उन्होंने हसन से इस विषय पर बात की तो उस ने जवाब दिया, ‘‘अम्मी, मेरी आप की बेटियों की जिंदगी में कोई दिलचस्पी नहीं है. अब्बू की चहेती हैं, वे ही जानें. मुझे और भी काम हैं.’’
शौकत यह सुन कर हैरान रह गए. फिर बोले, ‘‘शाबाश बेटा, यही उम्मीद थी तुम से… आयशा, सुन लिया?’’
आयशा को तो अपने कानों पर विश्वासही नहीं हुआ. बोलीं, ‘‘हसन, अपनी बहनों के बारे में ये कैसी बातें कर रहे हो? तुम्हारी कितनी देखभाल की है उन्होंने? कितना प्यार दिया है तुम्हें?’’
‘‘तो मैं क्या करूं? यह उन का फर्ज था, मुझ से यह आम सी बातें मत करो, मैं इस दुनिया में कुछ अलग करने आया हूं. मुझे इन छोटीछोटी बातों में मत खींचो,’’ कह कर वह पैर पटकते हुए चला गया.
शौकत ने अपनी बेगम को देखा. लाड़ले बेटे के बिगड़े तेवर देख कर पहली बार आयशा के चेहरे का रंग उड़ा देखा तो शौकत को तरस आ गया. फिर धीरे से बोले, ‘‘दुखी मत हो, यह सब तुम्हारे जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार का नतीजा है.’’
आयशा गुमसुम खड़ी थीं. महसूस हो गया था कि कहीं तो कुछ गलत है. पर क्या, यह समझ नहीं आ रहा था.
कुछ ही दूर स्थित ‘भिवंडी’ से सना के लिए रशीद का रिश्ता आया. वह बैंक में कार्यरत था. शौकत को शांत, सभ्य रशीद सना के लिए बिलकुल उचित लगा. रशीद के मातापिता को भी सना पसंद आई.
निकाह की तारीख तय होते ही घर में जोरशोर से तैयारी शुरू हो गई. पर हसन को किसी बात से कोई मतलब नहीं था.
अब सना हसन में कुछ बदलाव देख रही थी. जब एक दिन सना दोपहर में आराम कर रही थी, तो हसन आ कर उस के पास लेट गया. सना ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या हुआ हसन? कुछ चाहिए?’’
‘‘नहीं. ऐसे भी तो अपनी बाजी के पास लेट सकता हूं न.’’
सना मुसकरा दी. सोचा अब भाई का दिल शायद यह महसूस कर रहा हो कि बड़ी बहन ससुराल चली जाएगी.
फिर अचानक हसन उठ कर बैठ गया. उस के घुटने पर हाथ रख कर इधरउधर की बातें करता रहा. पहले तो सना भाई की बातें ध्यान से सुनती रही, फिर अचानक जब हसन का घुटने पर रखा हाथ इधरउधर घूमने लगा तो सना को धक्का सा लगा. वह उठ बैठी. थी तो औरत ही और यह तो हर औरत के अंदर गजब का एहसास होता है कि वह होश संभालते ही अच्छेबुरे स्पर्श का फर्क समझने लगती है. उसे पल भर खुद को संभालने में लग गया कि छोटा भाई उसे कैसे छू रहा है, मन तो हुआ एक थप्पड़ लगा दे. वह उठ कर जाने लगी तो हसन ने कहा, ‘‘कहां जा रही हो बाजी, बैठो न.’’
‘‘नहीं, अम्मी ने कुछ जरूरी काम बताए थे, वे करने हैं.’’
हसन ने उसे अजीब नजरों से देखा तो सना को अपना वहम साफसाफ सच लगा. उस के बाद कई बार ऐसा हुआ कि सना को हसन जबतब कहीं भी छू कर बात करने लगा, जबकि पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. सना मन ही मन बहुत परेशान रहने लगी कि किस से कहे? कहना चाहिए भी या नहीं? कहीं यह मन का वहम ही न हो… जिस भाई को गोद में खिलाया, उस के बारे में ऐसा सोचना भी दिल को बहुत तकलीफ पहुंचा रहा था.
हसन को सना के पास मंडराता देख आयशा बेगम मुसकरा कर कहतीं, ‘‘देख, भाई है न. अब तेरे ससुराल जाने की बात सोच कर परेशान होता घूम रहा है.’’
सना हर बार कुछ जवाब न दे कर कुछ परेशान सी दिखती. आखिर एक दिन हिबा ने अकेले में पूछ ही लिया, ‘‘बाजी, आजकल कुछ परेशान सी दिख रही हैं. बताओ न?’’
आयशा का सारा ध्यान हसन पर ही रहता था. मां की इस उपेक्षा को दोनों बहनों ने बराबर महसूस किया था. इन बातों ने दोनों बहनों को, बहनों के साथ, हमराज, सहेली बना दिया था. अत: सना धीरे से बोली, ‘‘हिबा, आजकल हसन की हरकतें अच्छी नहीं लग रही हैं.’’
हिबा चौंकी, ‘‘बाजी, क्या आप ने भी कुछ महसूस किया? हसन अजीब सा व्यवहार करता है न?’’
सना हैरान हुई, ‘‘तुझे भी कुछ कहा है क्या?’’
‘‘हां, बाजी, पहले तो ऐसा नहीं करता था. अब जब भी अकेली होती हूं, कभी भी, कहीं भी, इधरउधर की बातें करता हुआ यहांवहां छूता रहता है. उस की हरकतें कुछ ठीक नहीं लग रही हैं. आप के निकाह की तैयारी चल रही है, इसलिए मैं आप को यह सब बता कर परेशान नहीं करना चाह रही थी. रूबी के सामने ये बातें कर भी नहीं सकती थी… बेचारी कुछ समझ भी लेगी तो घबरा जाएगी.’’
‘‘हिबा, मुझे तो लगा मैं ही कुछ गलत तो नहीं सोच रही. चल, अम्मी से बताते हैं.’’
‘‘अम्मी यकीन करेंगी?’’
‘‘मुश्किल तो है पर बताना जरूरी है.’’
हसन कालेज गया हुआ था. आयशा बेगम उस का कमरा ठीक करने ऊपर गई हुई थीं. रूबी नीचे सो रही थी. सना और हिबा ऊपर चली गईं.
दोनों को साथ और गंभीर देख कर आयशा चौंकी. पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘आप से जरूरी बात करनी है अम्मी.’’
‘‘बोलो.’’
सना ने बात शुरू की, ‘‘अम्मी,
आजकल हसन का हमारे साथ व्यवहार ठीक नहीं है.’’
‘‘क्या कह रही हो… आजकल तो हर समय तुम लोगों के आगेपीछे घूमता है… तुम्हें तो खुश होना चाहिए.’’
‘‘नहीं अम्मी, कुछ गलत हरकतें हैं उस की… हमें यहांवहां छूने की कोशिश करता है.’’
आयशा बेगम को जैसे एक धक्का सा लगा. धम्म से वहीं बैड पर बैठ गईं. मुश्किल से आवाज निकली जैसे खुद को तसल्ली दे रही हों, ‘‘नहीं बेटा, भाई है तुम्हारा. आजकल के खराब माहौल की बातें सुन कर वहम हो गया होगा तुम्हें.’’
नीचे से रूबी की आवाज आई तो तीनों नीचे उतर आईं.
अब हसन की हरकतों पर आयशा ने ध्यान देना शुरू किया, तो उन्हें बेटियों की बात ठीक लगी. हसन जानबूझ कर कभी उन के गले में हाथ डाल देता तो कभी कमर में, तो कभी गाल छूता. पहले ऐसा नहीं था.
क्या करें, शौहर को बताएं? नहीं, वे उन से नहीं कहेंगी, शादी का घर है. आयशा बेगम सोच में पड़ गईं कि अगर शौहर को बताया तो बेकार में तनाव का माहौल हो जाएगा.
अत: चुप रहना ही मुनासिब समझा. फिर जब तक हसन घर में रहता, वे साए की तरह उस पर निगाह रखने लगीं.
कई बार हसन चिल्ला पड़ता, ‘‘क्यों मेरे पीछेपीछे घूमती रहती हैं आप… मैं क्या कोई बच्चा हूं.’’
‘‘मेरे लिए तो बच्चे ही रहोगे.’’
इसी बीच सना का रशीद से निकाह हो गया. सना के जाने के बाद हिबा अकेलेपन का शिकार होने लगी. घर के कामों में, रूबी की देखभाल में दिन तो बीत जाता पर रात को बहन की याद आंखें नम कर जाती.
हसन घर के बाहर शांत, सभ्य लड़का था पर घर के अंदर वह एक आवारा, बदतमीज लड़के की तरह हरकतें करता था. हिबा उस से बहुत दूरदूर रहने की कोशिश करने लगी थी. शौकत अली जितनी देर घर पर रहते, वह उन के आसपास ही रहती थी.
हसन के कालेज जाने पर जैसे सब चैन की सांस लेते. उस का जमाल बाबा के पास बैठना जारी था. जमाल बाबा से हसन के बारे में पूछताछ करने का मतलब था बात का बतंगड़ बनाना. हसन मजहब के बारे में खूब लंबीचौड़ी बातें करने लगा था. बाहर वालों को लगता था कि कितना अमनपसंद, मजहबी लड़का है पर सच सिर्फ घर वाले जानते थे.
सना की कोशिशों से हिबा के भी रिश्ते आने लगे थे. सना को बहुत अच्छी ससुराल मिली. रशीद और उस के अम्मीअब्बू सना के साथ बहुत ही प्यार से रहते थे. सना का जीवन अचानक बहुत खुशियों से भर उठा था पर मन ही मन उसे अपनी बहनों की बहुत चिंता रहती थी. फोन पर सब से बात भी होती रहती थी. उस का जब मन होता मिलने भी चली आती थी. रूबी तो उसे देखते ही उस से ऐसे लिपटती थी जैसे कोई छोटी बच्ची अपनी मां से लिपट जाती है.
सना ने हिबा से फोन पर ही ढकेछिपे शब्दों में पूछा, ‘‘हिबा, कोई परेशानी तो नहीं है?’’
‘‘बाजी, सब वैसा ही है जैसा आप के सामने था, कोई फर्क नहीं पड़ा है.’’
‘‘मैं जल्दी तुम्हारे लिए अच्छा लड़का ढूंढ़ूंगी, हिबा.’’
‘‘पर बाजी, हमारे बाद रूबी कैसे रहेगी?’’
‘‘देखते हैं… हिबा, कुछ तो करना पड़ेगा.’’
रशीद के ही एक रिश्तेदार जहांगीर से हिबा की शादी हो गई तो सना खुशी से चहक उठी. जहांगीर प्रोफैसर था. सना की कोशिशें रंग लाई थीं.
सना मायके आई हुई थी. उस ने आयशा से कहा, ‘‘अम्मी, रूबी के लिए मैं ने अपने यहां काम करने वाली फायजा काकी की बेटी निगहत से बात कर ली है. वह तलाकशुदा है, सुबह से शाम तक रूबी की देखभाल करेगी. रात को काकी के पास घर चली जाएगी. उस के 2 बच्चे हैं, कभीकभी जरूरत पड़ने पर वह दिन में भी बच्चों को देखने जाया करेगी. रात को आप रूबी के साथ सो जाया करो. ठीक है न अम्मी?’’
हिबा का निकाह जहांगीर से हो गया. उसे भी एक अच्छा जीवनसाथी मिल गया था. बेटियों को खुश और संतुष्ट देख कर आयशा का मन भी हलका हो गया था. शौकत अली भी खुश थे.
हसन ने किसी तरह बी.कौम. पूरा कर एक प्राइवेट फर्म में नौकरी कर ली, तो सब ने चैन की सांस ली. वह अब दिन में औफिस रहता. पर शाम को बाबा से मिलने का समय निकाल ही लेता था. जमाल बाबा ने जीवन में उसे अंधविश्वासों को पीछे छोड़ आगे बढ़ने केnबजाय अपनी बातों से इतना गुमराह कर दिया था कि वह अब अपनेआप को बहुत खास, खुदा का बंदा समझने लगा था, जो सब बुराइयों को मिटाने आया है, वह कुछ भी कर सकता है, उसे किसी से डरने की जरूरत नहीं है. आयशा ने जो अच्छी मजहबी बातें सीखने के लिए उसे बाबा के सुपुर्द किया था, इन बातों का असर भविष्य में क्या होगा, उन्हें इस का अंदाजा नहीं था.
हसन का नौकरी में मन नहीं लग रहा था. एक दिन वह बाबा के पास पहुंचा. वहां काफी लोग लाइन में लगे थे. बाबा आंखें मूंद कर कह रहा था, ‘‘दुनिया दुखों से भरी है, इनसान अपने कर्मों का फल भोगता है. दुनिया में ऐसी कोई तकलीफ नहीं जो दूर न की जा सके. तुम मेरी पनाह में आए हो तो मुझ पर भरोसा रखो. कुदरत ने हर चीज की 2 सूरतें बनाई हैं… कांटे हैं तो फूल भी हैं, धूप है तो छांव भी है… शैतान है तो खुदा भी है, उसी खुदा की इच्छा से मैं तुम्हारे पास आया हूं… ऊपर बैठा वह देख रहा है… मुझ से कुछ न छिपाओ, सब कुछ कह दो, अपने दिल में कुछ न रखो, डरो मत.’’
विश्वास के बाजार में बैठे बाबा के चेहरे के पीछे एक और चेहरा था. कहने को तो बाबा अपने हाथ में कोई पैसा नहीं पकड़ता था, पर उस के सामने एक कपड़ा बिछा रहता था, जिस की जितनी मरजी होती, उस पर उतना रख कर चला जाता था. उस के पास धीरेधीरे इतना पैसा जमा हो चुका था कि दूसरे शहर में उस का अपना घर था, पत्नी थी, 3 बच्चे थे. जब भी वह अपने शहर जाता, सब यही समझते बाबा तो सिद्धपुरुष है, अपनी किसी विद्या की खोज में गया है… उस के घर वाले समझते थे कि बाबा दूसरे शहर में कोई नौकरी कर रहा है. कुल मिला कर मूर्ख लोगों की कृपा से बाबा अच्छी जिंदगी गुजार रहा था.
हसन भी उस की चादर पर अच्छेखासे रुपए रख जाता था. बाबा के हिसाब से उस के सभी शागिर्दों में हसन सब से मूर्ख शागिर्द था, जो भी बाबा कहता हसन के लिए वह फरमान है. यह बाबा जान चुका था.
बाबा ने आंखें खोलीं. देखा, हसन उदास, चुपचाप बैठा है. फिर जल्दीजल्दी बाकी लोगों पर झाड़फूंक का काम निबटाया. फिर पूछा, ‘‘हसन मियां, क्यों परेशान हो?’’
‘‘मेरा नौकरी में मन नहीं लग रहा है, बाबा.’’
‘‘तो छोड़ दो.’’
‘‘फिर क्या करूं?’’
‘‘अपना काम कर लो. तुम में तो हुनर ही हुनर है. तुम्हें किसी की नौकरी की क्या जरूरत है?’’
‘‘पर इतना पैसा कहां है मेरे पास?’’
‘‘तुम्हारे अब्बू हैं, बहनें हैं, बहनोई हैं, सब तुम्हारी मदद करेंगे. तुम ही तो इकलौते बेटे हो घर के.’’
बात हसन के दिमाग में बैठ गई. अब हसन ने सोचा कि पहले बहनों को खुश रखना पड़ेगा. उन के दिल से अपने लिए गुस्सा निकालना पड़ेगा. इस में समय लगेगा पर करना तो पड़ेगा ही. अत: उस ने घर पर कुछ समय देना शुरू किया. सना और हिबा से फोन पर हालचाल लेने लगा. दोनों हैरान तो होतीं पर इस बदलाव का कारण समझ नहीं पाईं. हसन रशीद और जहांगीर से भी दोस्ताना संबंध बनाने लगा. सना और हिबा ने फोन पर आपस में बात की. सना ने कहा, ‘‘हसन कुछ बदल गया है.’’
‘‘हां, बहुत ज्यादा बदल गया है, पर अचानक क्यों?’’
‘‘हो सकता है उम्र के साथसाथ अपनी हरकतों पर पछतावा हो, अब शर्मिंदा हो.’’
‘‘अगर ऐसा है तो ठीक है, देर आयद, दुरुस्त आयद.’’
कुछ साल और बीत गए. सना के 2 बेटे और 1 बेटी और हिबा के भी 2 बेटियां और
1 बेटा हो चुका था.
हसन की शादी की भी बात शुरू हो चुकी थी. सब की सलाह के बाद सुंदर जोया घर की बहू बन कर आ गई. जोया के आने से हसन की जिंदगी में कुछ बदलाव हुआ पर दिमाग से बिजनैस का भूत नहीं उतरा.
इसी खयाल को अंजाम देते हुए उस ने अपने दिमाग में एक योजना बना कर सना और हिबा को फोन कर के शनिवार को सुबह आने के लिए कहा.
जोया ने आते ही सब का दिल जीत लिया था. हसन जोया के साथ अच्छा व्यवहार रखता था. अब उस का बातबात में गुस्सा करना कम हो गया था. शौकत अली और आयशा खुश थीं कि उन के सब बच्चे जीवन में राजीखुशी आगे बढ़ रहे हैं.
हसन का बाबा के पास बैठना कम तो हुआ था पर अब भी समय मिलते ही उस के पास पहुंच जाता था.
हसन के दिमाग में जो चल रहा था उस का अंदाजा भी किसी को नहीं था. वह जो बाहर से दिखाई देता था अंदर से बिलकुल उस के उलट था. उस की सोच से अनजान दोनों बहनें शनिवार को सुबह आ गईं. सुबह से ही जोया के साथ मिल कर हसन ने सब के लिए शानदार लंच तैयार किया. सब साथ खाने बैठे तो घर में अलग ही रौनक थी. बच्चे तो मिल कर खूब मस्ती करने लगे तो हसन ने कहा, ‘‘जाओ बच्चो, सब ऊपर खेलो.’’
फिर हसन ने कहा, ‘‘मैं ने सोचा है अब हर शनिवार को हम सब लंच और डिनर साथ किया करेंगे,’’ कह हसन हंसा तो सना और हिबा भी हंस पड़ीं.
रशीद ने छेड़ा, ‘‘मतलब मुझे और जहांगीर को छोड़ कर सब यहीं रहेंगे रात भर… ठीक है भई, जैसी तुम्हारी मरजी.’’
कुछ महीने और बीते. जोया ने बेटे को जन्म दिया जिस का नाम शान रखा. शान की पैदाइश पर भी भाईबहनों ने मिल कर खूब जश्न मनाया, खूब दावतें हुईं. अब तो दोनों बहनें और उन के परिवार शनिवार की दावत का इंतजार करते थे. शनिवार, रविवार घर में भाईबहनों का प्यार देख शौकत अली और आयशा के दिल को चैन आ जाता था.
एक शनिवार और आया. हमेशा की तरह सब ने साथ बैठ कर डिनर किया. बच्चे आपस में मस्ती कर रहे थे. हसन काफी चुप और गंभीर था.
सना ने पूछा, ‘‘हसन, क्या कुछ हुआ है? परेशान हो?’’
‘‘कुछ नहीं, बाजी.’’
हिबा ने भी टोका, ‘‘कुछ बात तो है.’’
शौकत और आयशा भी वहीं बैठे थे. बहुत पूछने पर हसन ने बहुत गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘बाजी, मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है. मैं अपना बिजनैस करना चाहता हूं.’’
‘‘तुम तो अच्छी भली नौकरी कर रहे हो, बिजनैस क्यों?’’
‘‘मैं नौकरी छोड़ने वाला हूं… मुझे पैसों की सख्त जरूरत है… समझ नहीं आ रहा कहां से इंतजाम करूं.’’
शौकत ने डांट दिया, ‘‘बिजनैस का आइडिया बिलकुल बेकार है. हम आम नौकरी करने वाले लोग हैं. इतना पैसा कहां से आएगा और अगर उधार लिया तो चुकाएगा कैसे?
कब? कौन देगा पैसा? बेकार की बात है यह, जितनी पढ़ाई तुम ने की है उस हिसाब से तुम्हें नौकरी ठीक ही मिली है. चुपचाप मन से इसे ही करते रहो.’’
‘‘अब्बू, मैं सब चुका दूंगा. मैं ने अच्छी तरह से सोच लिया है,’’ कह कर हसन माथे पर हाथ रख कर दुखी हो कर बैठ गया.
आयशा से बेटे के चेहरे की उदासी देखी नहीं गई. इतनी मुश्किल से तो बेटा खुश रहने लगा था, घर में उस के खुश रहने से ही कितना बदलाव आ गया था. अत: प्यार से हसन के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘पर बेटा, यह खयाल छोड़ ही दो, हमारे पास इतना पैसा कहां है?’’
हिबा ने पूछा, ‘‘कितना चाहिए?’’
‘‘25-30 लाख.’’
‘‘क्या?’’ सब चौंक पड़े.
‘‘इतना कहां से आएगा हसन?’’ सना ने परेशान होते हुए कहा.
जोया चुपचाप हैरान सी बैठी थी. अपने शौहर को वह आज तक समझ नहीं पाई थी. उस के दिमाग में कुछ चलता रहता था पर क्या, वह अंदाजा नहीं लगा पाती थी. कभी वह कुछ कहता था, तो कभी कुछ. कभी वह बड़ीबड़ी मजहबी बातें करता था, कभी एक लालची, मक्कार की तरह व्यवहार करता था.
हसन ने कहा, ‘‘जोया के पास जितने भी जेवर हैं, उन्हें बेच भी दूं तो काम नहीं होगा. बाजी, आप लोग मुझे कुछ रकम उधार दे दो. मैं बहुत जल्दी चुका दूंगा,’’ सना जो हैरान सी थी, बोली, ‘‘हसन, हम कहां से लाएं?’’
‘‘आप रशीद भाई से बात करो न, उन का तो अच्छा बिजनैस है. वे तो मुझे आराम से लोन दे सकते हैं.’’
हिबा ने कहा, ‘‘हसन, मेरे लिए तो यह नामुमकिन है. 2-2 ननदें हैं, जहांगीर अकेले हैं. उन्हीं पर सारी जिम्मेदारी है. उन दोनों के निकाह का भी सोचना है.’’
‘‘तो आप मुझे अपने गहने दे दो.’’
हिबा चौंकी, ‘‘यह क्या कह रहे हो हसन. गहने कैसे दे दूं?’’
‘‘बाजी, पहली बार आप के भाई ने आप से कुछ मांगा है. मैं सब वापस दे दूंगा, वादा करता हूं. आप लोग समझ नहीं रही हैं, अगर आप लोगों ने मेरी मदद नहीं की तो बहुत बुरा होगा.’’
शौकत अली ने हसन को टोका, ‘‘हसन, यह बेकार का फुतूर अपने दिमाग से इसी समय निकाल दो. बहनों से उधार ले कर बिजनैस करोगे? ऐसी क्या आफत आई है… घर की बेटियों को इस परेशानी में डालने की कोई जरूरत नहीं है.’’
हसन को गुस्सा आ गया, ‘‘आप को हमेशा बेटियों की ही चिंता रही है. आप मेरे लिए तो कुछ करना ही नहीं चाहते. बेटियां ही आप के लिए सब कुछ हैं,’’ कह कर हसन पैर पटकते हुए घर से बाहर चला गया.
– क्रमश: