किसानों की आत्महत्याओं के मामले वर्षों से सुर्खियां बनते रहे हैं, क्योंकि खेती लगातार अच्छी रहेगी इस की गारंटी नहीं है और इसलिए किसान अकसर कर्ज में डूबे रहते हैं. अनपढ़ किसानों को बैंकों के बावजूद साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है और न चुका पाने पर आत्महत्या ही अकेला रास्ता बचता है. अब यही ट्रैंड पढ़ेलिखे युवाओं में भी दिखने लगा है.हर थोड़े दिनों में बीवीबच्चों वाले युवा द्वारा सभी घर वालों को मार कर आत्महत्या कर लेने के मामले सामने आने लगे हैं.
नोटबंदी के बाद व्यापार में जो हाहाकार मचा है और बेरोजगारी बढ़ी है उस से ये आत्महत्याएं ज्यादा होने लगी हैं. मार्च के पहले सप्ताह में हैदराबाद के सौफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी बीवी और 2 बच्चों को मार कर आत्महत्या कर ली, क्योंकि उस पर क्व22 लाख से ज्यादा का कर्ज चढ़ा हुआ था.उस ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि उसे अपने मातापिता का खयाल रखना था, पर वह उन्हीं पर निर्भर होने लगा था. वह नौकरी छोड़ कर व्यापार करना चाहता था, पर जो भी उस ने किया उस में घाटा हुआ और उसे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था कि वह कर्ज चुका सके.1991 के आर्थिक सुधारों के बाद देश में नौकरियों और व्यापारों की बाढ़ आ गई थी. परेशान नौकरी देने वाले होते थे कि न जाने कब उन का होनहार कर्मचारी छोड़ जाए, वेतन वृद्धि भी हो रही थी और व्यापार फूलफल रहे थे.
ये भी पढ़ें- #coronavirus: Lockdown के दौरान महिला सुरक्षा
2014 के बाद यह आशा धीरेधीरे निराशा में बदलने लगी. व्यापार चलाना मुश्किल होने लगा. नियमकानून सख्त होने लगे. बैंकों का दीवाला पिटने की नौबत आने लगी. साहूकारों तक को मुश्किल होने लगी, क्योंकि उन का पैसा भी डूबने लगा.वे कर्ज देते पर वसूली के लिए हर हथकंडा अपनाते और जिस ने लिया और अगर उसे घाटा हो गया तो सिवा खुदकुशी के उसे और कोई रास्ता नहीं दिखता. पहले लोग खुद मरते थे और बीवीबच्चों को मातापिता के हवाले कर जाते थे, अब पूरा परिवार साथ मरने लगा है. जिम्मेदार युवा हताश हो जाते हैं पर जानते हैं कि उन के बिना उन के बीवीबच्चों को कोई नहीं पालेगा. उन्हें भटकता न देखने के लिए वे आत्महत्या से पहले उन्हें मार देते.
हैदराबाद का 36 वर्ष का यह युवा आईबीएम जैसी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर था. जब उस जैसे इस तरह निराश हो चले हों तो देश का क्या हाल हो रहा होगा इस का अंदाजा लगाया जा सकता है. देश को धर्म की पट्टी तो रोज पढ़ाई जा रही है पर कर्म के रास्ते न कोई बना रहा है न औरों को बनाने दिए जा रहे हैं. लाखों बेरोजगार युवाओं में से कितने दंगाई बनेंगे, गुंडेचोर बनेंगे, कितने आत्महत्या करेंगे और कितने सड़कों पर आ जाएंगे इस का तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता.