बुढ़ापे में आपके पिता को स्वस्थ रखने में मदद करेंगे ये 5 टिप्स

इस साल 20 जून को फादर्स डे मनाया गया और हरेक बच्चा, चाहे छोटा हो या बड़ा, अपने पिता के आभार, प्रेम और सम्मान की भावना से भरा महसूस किया है. भले ही बच्चे हर दिन इसी तरह की भावना का अहसास कर सकते हैं, लेकिन फादर्स डे उन्हें अपनी उन भावनाओं को जाहिर करने का मौका देता है जो वे अपने पिता के बारे में अभिव्यक्त करना चाहते हैं और पितृत्व की भावना का जश्न मनाना चाहते हैं. पिता भी अपने बच्चों को उतना ही प्यार करते हैं जितना कि मां अपने बच्चों को पालन-पोषण में करती है और यही वजह है कि उन्हें कुछ भी मांगनने की जरूरत महसूस नहीं होती. वे मांगने से पहले ही अपने बच्चों की सभी इच्छाएं पूरी कर देते हैं. हालांकि हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि जिस तरह से हम बढ़ रहे हैं, उसी तरह हमारे माता-पिता भी बढ़ रहे और बूढ़े हो रहे होते हैं.

सामान्य तौर पर, पिता अपनी समस्याओं को लेकर इतने ज्यादा चिंतित नहीं होते हैं, चाहे वह अपने काम से जुड़ी हो या स्वास्थ्य से. अक्सर ऐसा होता है कि वे परिवार में किसी के सामने अपनी समस्याओं को नहीं उठाते हैं और चुपचाप समस्याओं का सामना करते रहते हैं. लेकिन जैसे ही उनकी उम्र बढ़ती है, उनके स्वास्थ्य का खास खयाल रखे जाने की भी जरूरत होती है. इसलिए, यह उनके बच्चों की जिम्मेदारी है कि वे अपने डैड को स्वस्थ और खुश बनाए रखने में मदद करें.

इन पांच तरीकों से अपने पिता का अच्छा स्वास्थ्य और खुशियां सुनिश्चित करेंः ये तरीके बता रहे हैं, स्टार इमेजिंग एंड पैथ लैब्स के निदेशक समीर भाटी.

1. नियमित आधार पर उनके टेस्ट कराएं

जब हमारी उम्र बढ़ती है तो शरीर में बदलाने आने लगते हैं. शरीर कमजोर होने लगता है और उम्र के साथ कार्य करने की क्षमता घट जाती है. इस उम्र में नियमित तौर पर टेस्ट कराना बेहद जरूरी है क्योंकि बुढ़ापे में काॅलेस्टेराॅल, मधुमेह, दिल के रोग, लिवर के रोग आदि बढ़ जाते हैं. नियमित टेस्ट से आपके पिता की सेहत सुनिश्चित होगी. इसके अलावा, यदि आप शुरुआती संकेत देखते हैं तो इन टेस्ट से आपको बीमारी बढ़ने से रोकने में मदद मिलेगी. कई पिता स्वयं इसकी जरूरत महसूस नहीं करते. इसलिए आपको समय समय पर उनके टेस्ट कराने चाहिए.

2. उन्हें अपने साथ रोजाना व्यायाम कराएं

नियमित व्यायाम हर किसी के लिए जरूरी है, इसमें यह मायने नहीं रखता कि आप जवान हैं या बुजुर्ग. व्यायाम से न सिर्फ अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद मिलती है बल्कि शरीर में कई बीमारियों को फैलने से रोकने में भी मदद मिलती है. इस पर ध्यान दें कि आपके पिता अपनी अच्छी सेहत सुनिश्चित करने के लिए आपके साथ कुछ व्यायाम अवश्य करें.

3. उनके आहार का ध्यान रखें

व्यायाम और आहार के अलावा अन्य बातों का भी ध्यान रखें. कई बार आपके पिता किराना खरीदारी के लिए अतिरिक्त प्रयास नहीं करते हैं और वह खाते हैं जो भी घर पर उपलब्ध हो, चाहे वह उनके लिए अच्छा हो या नहीं. चूंकि संतुलित और हेल्दी आहार आपके पिता के लिए बेहद जरूरी है, इसलिए आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे वह सब खाएं जो उनके लिए हेल्दी हो.

4. उनके साथ समय बिताएं

जैसे बच्चे बढ़े होते हैं, वे अपनी जिंदगी के साथ व्यस्त होते जाते हैं जिससे वे अक्सर अपने परिवार के साथ समय बिताना भूल जाते हैं. हमारे पिता अक्सर इसके लिए नहीं कहते हैं, लेकिन वे कभी कभार अकेलापन महसूस करने लगते हैं. यह अकेलापन उनके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. आपको कुछ समय अपने पिता के लिए निकालना चाहिए और उन्हें यह अहसास कराना चाहिए कि आपकी जिंदगी में हर कदम पर उनकी जरूरत है. आप उनके साथ छुट्टियां बिताने और उन्हें आनंददायक अनुभव मुहैया कराने की भी योजना बना सकते हैं.

5. उनकी सराहना करें और समर्थन करें

हमेशा अपने पिता का समर्थन करें. उन्हें सम्मान दें और उनके द्वारा किए गए कार्य की सराहना करें और उनका उत्साह बढ़ाएं. उन्होंने आपकी देखभाल में अपनी पूरी जिंदगी बिता दी, इसलिए उनके निर्णयों को सम्मान दें और उनकी सलाह पर हमेशा अमल करें. आपको अपने पिता के अलावा कोई भी बेहतर सलाह नहीं दे सकता, क्योंकि वे हमेशा आपकी भलाई चाहते हैं.

बौयफ्रैंड डैडी

कृति औफिस में काम कर रहे अपने पिता को जबतब फोन कर देती है. कभी किसी रेस्तरां में चलने, तो कभी किसी नई फिल्म के लिए फ्रैंड के घर जाने या किसी पार्टी में जाने के लिए. कृति हर जगह अपने डैडी को ले जाना पसंद करती है. इसलिए नहीं कि उस के डैडी बाकी फ्रैंड्स के पिताओं की तुलना में यंग हैं बल्कि इसलिए क्योंकि उसे अपने डैडी की कंपनी काफी पसंद है. कृति के पिता न सिर्फ अपनी इकलौती बेटी की जरूरतों का खयाल रखते हैं बल्कि उस की हर छोटी से बड़ी बात भी उस के बोलने से पहले ही सम  झ जाते हैं.

दरअसल, कृति के पिता चाहे कितने भी व्यस्त क्यों न हों, अपनी प्यारी बिटिया के लिए हमेशा फ्री रहते हैं. यही वजह है कि स्कूल के टीचर्स से ले कर कृति के फ्रैंड्स तक सब कृति के पिता की मिसाल देते हैं.

बेटी-पिता की दोस्ती

एक वक्त था जब बेटियों को घर की इज्जत मान कर उन्हें पाबंदियों में रखा जाता था. पहननेओढ़ने से ले कर उन की हर चीज पर नजर रखी जाती थी. लेकिन अब फादर काफी बदल गए हैं. वे बेटियों पर लगाम लगाने के बजाय उन की हर इच्छा को अपनी इच्छा सम  झ कर पूरी करते हैं. फिर चाहे बात कपड़ों की हो अथवा घूमने की. बदलते वक्त के साथ अब यह प्यार और ज्यादा गहरा हो चला है.

बेटियों को मिलने लगी है स्पेस

ऐसी नहीं है कि पिता हर वक्त बेटियों पर चिपके ही रहते हैं बल्कि अब बेटियां ही पिता के साथ वक्त बिताना पसंद करने लगी हैं. कृति के स्कूल में कई दोस्त ऐसे भी हैं जो कृति को अकसर चिढ़ाते हैं कि देखों कृति आज अपने बौयफ्रैंड के साथ आई है. लेकिन बजाय इस बात पर चिढ़ने के कृति इसे मजाक के रूप में लेती है और फख्र से सब के सामने बोलती है हां मेरे पापा मेरे बौयफ्रैंड हैं. किसी को कोई दिक्कत? कृति का यह रूप देख कर हरकोई मुसकराए बिना नहीं रह पाता.

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कुछ अलग है यह रिश्ता

पापाबेटी का रिश्ता अलग होता है. कुछ खट्टा होता है तो कुछ मीठा है. कभी बेशुमार प्यार होता है तो कभी खटपट भी होती है. बदलते वक्त के साथ मातापिता में काफी बदलाव आया है. ऐसा नहीं है कि उन की मनमरजियां पूरी कर के वे उन्हें बिगाड़ रहे हैं बल्कि आजकल मातापिता बच्चों के साथ कदमताल करते हुए चल रहे हैं. एक समय था जब मातापिता में जैनरेशन गैप आ जाता था, लेकिन समय के साथ मातापिता ने खुद को काफी हाइटैक कर लिया है. यही वजह है कि बच्चे चाह कर भी मातापिता को नजरअंदाज नहीं कर पाते.

ऐसा नहीं है कि बच्चे मातापिता को कहीं ले कर नहीं जाना चाहते या फिर बच्चे सिर्फ स्कूल मीटिंग तक ही मातापिता को सीमित रखना चाहते हैं बल्कि बेटियां पिता की कंपनी को बखूबी ऐंजौय करती हैं पार्टियों में कृति अकसर अपने पिता के साथ डांस करती नजर आ जाती है. पिता के साथ खिलखिलाती है.

जब रिश्ता न हो अच्छा

कई मातापिता बच्चों पर पाबंदी लगा देते हैं. उन्हें कई आनेजाने नहीं देते, लेकिन ऐसा करने से न सिर्फ बच्चों के विकास पर फर्क पड़ता है बल्कि मातापिता बच्चों का नजरिया भी बदलने लगता है. टीनएज ऐसी उम्र होती है जिस में बच्चे अकसर मातापिता को गलत सम  झने लगते हैं. उन्हें अपना दुश्मन मान बैठते हैं, अत: बच्चों के हमदर्द बनें. उन से उन की तकलीफ पूछें क्योंकि इस ऐज में बच्चे अकसर विद्रोही बन जाते हैं. उन्हें प्यार से समझाएं कि उन के लिए क्या गलत है और क्या सही. उन्हें घुमाने ले जाएं.

हो सकता है कि आप के पास वक्त की कमी हो, लेकिन बच्चों को समय की जरूरत होती है. छुट्टी के दिनों घुमाने ले जाएं, फिल्म दिखाएं, बाहर खाना खिलाएं. इस से धीरेधीरे आप को रिश्ता भी मधुर हो जाएगा.

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जब मां-बाप करें बच्चों पर हिंसा

दिल्ली के दक्षिणपुरी इलाके में (13 सितम्बर 2019 ) को इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई. दरअसल बच्ची के रोने से परेशान हो कर सौतेले पिता ने 3 साल की मासूम बेटी को गर्म चिमटे से जला दिया. अफ़सोस की बात यह है कि इस काम में बच्ची की सगी माँ सोनिया ने भी पति का साथ दिया. पड़ोसियों ने बच्ची के रोने की आवाज सुन कर चाइल्ड हेल्पलाइन में फ़ोन कर दिया और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया. बच्ची के साथ इस तरह के जुल्म करीब 4 माह से हो रहे थे. जब भी वह रोती थी उस का सौतेला बाप उस के साथ ऐसे ही मारपीट करता था.

घरेलू हिंसा जो बच्ची की मौत की वजह बनी

10 सितम्बर, 2019 को दिल्ली में 21 दिन की बेटी की हत्या करने के आरोप में पिता को गिरफ्तार किया गया. दिल्ली के द्वारका के बिंदापुर क्षेत्र में एक कारोबारी व्यक्ति ने पत्नी से झगड़ा करने के बाद 21 दिन की बेटी की हत्या कर दी. आरोपी ने पहले अपनी बेटी का गला घोटा और फिर उसे पानी की टंकी में डुबो दिया. बच्ची की 23 वर्षीय मां ने पुलिस में अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. युवती द्वारा दर्ज शिकायत के मुताबिक़ वह शुक्रवार को मायके जाने की योजना बना रही थी. बच्ची का जन्म 16 अगस्त को हुआ था. मुकेश इस बात को ले कर खुश नहीं था. वह बच्ची को छत पर ले कर गया और दरवाजा बंद कर इस घटना को अंजाम दिया.

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20 जुलाई, 2019 को मध्यप्रदेश के जबलपुर में एक व्यक्ति ने शराब के नशे में अपनी डेढ़ वर्षीय मासूम बेटी की जमीन पर पटक कर हत्या कर दी. इस वारदात को आरोपी की बड़ी बेटी ने देखा. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया, घटना के दिन आरोपी युवक अज्जू वर्मन ने नशे की हालत में अपनी डेढ़ साल की मासूम बेटी को सिर के बल पटक दिया जिस से उसकी मौत हो गई. युवक की पत्नी उस वक्त अस्पताल में भर्ती थी. रात के समय जब वह घर आया तो उसकी छोटी बेटी रो रही थी. तब उस ने मंझली बेटी को पीटा और छोटी बेटी को सिर के बल पटक दिया.

जब पिता ने किया यौन उत्पीड़न

हाल ही में(18 अगस्त, 2019 ) उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में रिश्तों को शर्मसार करने वाली ऐसी ही घटना सामने आई. वहां एक ऐसे आरोपी को गिरफ्तार किया गया है जिस पर पहले अपनी ही बेटी से 2 साल तक रेप करने और बाद में उस की हत्या करने का आरोप है. आरोपी की पत्नी का निधन 15 साल पहले हो गया था. पीड़िता लड़की की उम्र 19 साल है.

बेटी के यौन उत्पीड़न का यह कोई पहला मामला नहीं है. इस से पहले देश की राजधानी दिल्ली से सटे गुरुग्राम में एक युवक को अपनी आठ साल की बेटी के साथ कई महीनों तक रेप करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. लड़की पिछले कुछ दिनों से सामान्य व्यवहार नहीं कर रही थी, जब पड़ोसियों ने उससे पूछताछ की तो उसने यौन उत्पीड़न के बारे में बताया.

मार खाती बच्ची और गाली बकते बाप का वीडियो

मार्च 2019 में बिहार के कंकरबाग की एक बच्ची का वीडियो वायरल हुआ था. जिस में 5 साल की बच्ची का पिता कभी उसे थप्पड़ मारता है, कभी उस के कंधे तक के बालों को मुट्ठी में भींच कर उस का सिर पटक देता है तो कभी लात से मारता है।

बच्ची लगातार मार खा रही है लेकिन एक बार भी अपने घावों को सहला नहीं रही. उस के मुंह से एक बार भी आह सुनने को नहीं मिलता.उल्टा वह बारबार माफ़ी मांग रही है,” पापा हम से ग़लती हो गई…हम अपना क़सम खाते हैं कि कभी भी जन्मदिन मनाने के लिए नहीं कहेंगे…हम साइकिल नहीं मांगेंगे… हम को माफ़ कर दीजिए…”

जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, कंकड़बाग पुलिस ने इस शख़्स को तुरंत हिरासत में ले लिया. इस बच्ची का नाम जयश्री है और पिता का नाम कृष्णा मुक्तिबोध है.

राजस्थान का वीडियो

राजस्थान के राजसमंद जिले में देवगढ़ थाना ‘फूंकिया की थड़’ गांव से एक वीडियो वायरल हुआ जिस में दो मासूम बच्चों को उन का पिता सिर्फ इसीलिए खूंटी से बांध कर पीटता है क्यों कि मना करने के बावजूद बच्चे मिट्टी खाते थे और जहांतहां गंदगी कर बैठते थे। बच्चों के चाचा ने वीडियो बनाया और वायरल कर दिया। मामला उठा तो पुलिस कार्रवाई हुई। बच्चों को पीटने वाला पिता गिरफ्तार हुआ. वीडियो बनाने वाले चाचा पर भी कार्रवाई की गई. इस वीडियो को देख कर कोई भी सिहर उठेगा.

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ऐसे मामले एक दो नहीं बल्कि हजारों की संख्या में होते रहते हैं. पूरे देश में बच्चे घरेलू हिंसा के शिकार होते रहे हैं। दीगर बात यह है कि इस का कोई ऑफिशियल आंकड़ा तब ही रिकॉर्ड होता है जब शिकायत होती है। ज्यादातर घरों में लोगों को ही अंदाजा नहीं बच्चे जानेअनजाने किस तरह ‘घरेलू हिंसा’ का शिकार हो रहे हैं। बच्चों के प्रति मारपीट, उन की उपेक्षा, उदासीनता और अनदेखी, समय न दे पाना, अपेक्षाओ का बोझ ,धमकाना जैसी बातें आम हैं. मानसिक प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के ऐसे मामले बच्चों के व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं. कुछ मामलों में नौबत जान से हाथ धोने की आ जाती है.

यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में करीब 13 करोड़ बच्चे अपने आसपास बुलिंग या दादागीरी का सामना करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हर 7 मिनट में दुनिया में कहीं न कहीं एक किशोर को हिंसा के कारण अपनी जान गंवानी पड़ती है। ऐसी मौतों की वजह झगड़ों के बाद हुई हिंसा होती है। वस्तुतः किशोरों में हिंसा की बढ़ी प्रवृति बढ़ का जवाब उन के बचपन में ही छिपा होता है।

21वीं शताब्दी के पहले सोलह सालों (वर्ष 2001 से 2016 तक) में भारत में 1,09,065 बच्चों ने आत्महत्या की है. 1,53,701 बच्चों के साथ बलात्कार हुआ है. 2,49,383 बच्चों का अपहरण हुआ है. कहने को हम विकास कर रहे हैं लेकिन हमारे इसी समाज में स्कूली परीक्षा में असफल होने के कारण 34,525 बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं. ये महज वो मामले हैं जो दर्ज हुए हैं. इन से कई गुना ज्यादा घरेलु हिंसा, बलात्कार और शोषण के मामले तो दर्ज ही नहीं होते हैं.

इसी कड़ी में आगे पढ़िए बच्चों का उत्पीड़न हो सकता है खतरनाक…

तौबा यह गुस्सा

चाहें या न चाहें अक्सर हमें गुस्सा आ ही जाता है और अक्सर इसे हम अपने बच्चों पर निकालते हैं. गुस्सा भले ही उन पर आ रहा हो या नहीं पर हाथ उठाने में देर नहीं लगती. कभी बच्चे पर अंकुश लगाने के लिहाज से तो कभी कम नंबर लाने पर, कभी उस की किसी मांग को पूरी कर पाने में असमर्थ होने पर तो कभी घरबाहर के तनावों की वजह से हम अपने बच्चे की पिटाई शुरू कर देते हैं. पर क्या आप जानते हैं कि इस का असर क्या होता है.

बच्चे के कौन्फिडेंस पर पड़ता है असर

कई शोध बताते हैं कि अभिभावकों का मारनापीटना बच्चों के आत्मविश्वास पर असर डालता है, उन में हिंसा की भावना को जन्म देता है और डिप्रेशन पैदा करता है.चाइल्ड साइकोलौजिस्ट्स के मुताबिक ऐसे बच्चे जो घर में शारीरिक,मानसिक प्रताड़ना के शिकार होते हैं वे आगे चल कर आत्मविश्वास की कमी और कमजोर निर्णय क्षमता के साथ बड़े होते हैं. परिवार के साथ उन की दूरी इतनी बढ़ जाती है कि वे समाज में नए अपराधी की शक्ल में सामने आने लगते हैं.

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14 साल के सोनू को जब गुस्सा आता है तो वह अपना आपा खो देता है. कभी दीवार पर हाथ मारता है तो कभी सिर. कभी सामने वाले पर बुरी तरह चीखनेचिल्लाने लगता है तो कभी हाथ में जो भी चीज़ है जमीन पर दे मारता है. स्कूल और पासपड़ोस से सोनू की शिकायतें आने लगीं तो घरवाले चिंतित हो उठे. घरवाले यह नहीं समझ पा रहे थे कि सोनू के ऐसे बर्ताव के लिए वे खुद जिम्मेदार हैं. घरवालों ने उस के साथ बचपन में जैसा व्यवहार किया वही बर्ताव अधिक उग्र रूप में सोनू का स्वभाव बन गया था. घरवालों ने शुरू में कभी भी उस के गुस्से को सीरियसली नहीं लिया. उस की सीमाएं और गुस्से के खतरे से आगाह नहीं किया.  न ही उन्होंने अपने बर्ताव में बदलाव लाये. नतीजा अब सोनू का स्वभाव समाज में स्वीकार नहीं किया जा रहा.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की साल 2017 में आई रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों के हिंसक बर्ताव की वजह घरों में हिंसा देखना भी है. जिस में पति का पत्नी को पीटना या मातापिता का बच्चों को मारना शामिल है. पहले वे अपने से छोटों पर हिंसा करते हैं. वयस्क हो जाने पर पत्नी पर और बाद में कभीकभी कमजोर हो गए मांबाप पर भी हिंसा कर डालते हैं.

गुस्सा हर चीज का इलाज नहीं

अक्सर हिंसा कर के आप बच्चे से अपनी बात मनवाते कम हैं और अपना नुकसान ज्यादा करते हैं. आप का मानसिक सुकून तो खोता ही है बच्चे का व्यक्तित्व पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. बच्चो को प्यार से भी समझाया जा सकता है और उस का इम्पैक्ट भी ज्यादा अच्छा रहता है.

देख कर ही सीखते हैं बच्चे

कई बार अभिभावक बात मनवाने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करते हैं. वे बच्चो को बातबेबात थप्पड़ मार देते हैं. सब के आगे उन्हें डपट देते हैं. ऐसा होने पर बच्चों के मन में यह धारणा घर कर जाती है कि हिंसा का इस्तेमाल सही है.

सख्त रवैया क्यों

देखा जाए तो किसी भी घर में बच्चें आंख के तारे होते हैं. लेकिन ज्यादा लाड़प्यार में बच्चे बिगड़ते है यह थ्योरी बच्चों के प्रति सख्त रवैया भी लाती है. कहना न मानने पर डांटफटकार और मारपीट का चलन भी आम है. डिजीटल और सोशल मीडिया के दौर में वैसे भी बच्चे एकाकी जीवन जी रहे हैं. अभिभावक बच्चों को अपना समय नहीं दे पाते. जो बातें और जो संस्कार घर में एक माँ अपने बच्चे को दे सकती है वह कामकाजी माँ नहीं दे सकती. एकल परिवारों की वजह से दादादादी तो घर में होते नहीं जो पीछे से बच्चे को संभाल ले. भाईबहन भी आजकल मुश्किल से एक होते है या नहीं भी होते. ऐसे में अकेला बच्चा घर में बैठ कर क्या करेगा. उस का भटकना संभव है. मगर इस वजह से वह कुछ गलती करता है तो क्या उसे मारनापीटना उचित है?

जहां तक बात एजुकेशन सिस्टम की है तो कहना न होगा कि नर्सरी क्लास से जो कम्पटीशन का दौर शुरू होता है वह अंत तक बना रहता है.बस्तों का बोझ ऐसा मानों बच्चे पूरा स्कूल कंधे पर लिए घूम रहे हों. स्कूल से छूटे तो कोचिंग की टेंशन शुरु. हर २ माह पर एग्जाम और उस एग्जाम में बेहतरीन करने का दवाब ताकि बच्चे का भविष्य संवर सके. बच्चा हमारी खींची लकीर पर न चलें तो हम नाराज और हिंसक हो उठते हैं. लेकिन अभिभावक के रूप में कभी बच्चों की बेचैनी नहीं समझते.

क्या मांबाप होने की जिम्मेदारी का मतलब बच्चों के साथ मारपीट का अधिकार है ? अपनी उम्मीदों की गठरी हम अपने बच्चों के सिर रख कर क्यों चलते हैं ? हमारी यह आस होती है कि हमारा बच्चा हमारी सारी उम्मीदों पर खरा उतरे. वह हमारे अधूरे सपनों को पूरा करे और इस के लिए छुटपन से ही हम उसे अनुशासन में रखने लगते हैं. अभिभावक अमीर हों, मध्यम वर्ग के हों या फिर गरीब तीनों वर्ग के लोग बच्चों के साथ हिंसा करते हैं भले ही तरीका अलगअलग क्यों न हो.

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भविष्य की फिक्र में हम यह भूल रहे हैं कि बच्चों की जिंदगी में यह दौर दोबारा नहीं आएगा. बच्चों को ले कर समाज का नजरिया भी ज़रा अजीब है. हम नें ‘अच्छी परवरिश’ का पैमाना सिर्फ बड़े स्कूल, हाई परसेंटेज और कामयाबी तक सीमित कर रखा है. यह कहा जाता है कि परवरिश बच्चों का भविष्य तय करती है तो क्या बच्चों में बढ़ते अपराध या आत्महत्या के बढ़ते मामलों के लिए हम अपनी जिम्मेदारी से बच जाएंगे?

अभिभावकों के हिंसक होने की मूल वजह

अगर अभिभावक ने खुद बचपन में हिंसा का सामना किया होतो बड़े हो कर वे बच्चों पर हाथ उठाते हैं.

कुछ अभिभावक अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाते.

वैसे अभिभावक बच्चों की जयादा पिटाई करते हैं जिन का सेल्फ एस्टीम लो होता है.

कुछ अभिभावक खुद मानसिक रोगी होते हैं और अल्कोहल या ड्रग्स का सेवन करते हैं सामान्यतः वे ही इस तरह की हरकतें करते हैं.

जो एक्स्ट्रा मेरीटल अफेयर्स के चक्कर में होते हैं वे भी ऐसी हरकतें करते हैं.

आर्थिक समस्याएं होने पर भी माँबाप अपनी झल्लाहट बच्चों पर उतार सकते हैं.

इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर चिल्ड्रन एंड फैमिलीज के अनुसार बच्चों के व्यवहार को सुधारने के लिए और खुद की अपनी इस हरकत पर अंकुश लगाने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना जरुरी है;

मातापिता करें बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार;

कई दफा ऐसा होता है जब बच्चे मां-बाप की बिल्कुल नहीं सुनते. मां-बाप को भलाबुरा कहने में जरा भी नहीं डरते. इसी कारणवश मातापिता भी अपने बच्चों के साथ बिना सोचेसमझे मारपीट और डांटफटकार करने लगते हैं. उन्हें अपमानित करने में भी पीछे नहीं रहते. यह रवैय्या उचित नहीं.

अगर आप के बच्चे ने कोई गलत व्यवहार किया है जिस से आप को शर्मसार होना पड़ रहा है तो बेहतर होगा की हिंसा के बजाय प्यार से उन्हें समझाने का प्रयास करें. सही गलत का भेद बताएं.

यही नहीं बच्चों को जीवन में अनुशासन के महत्व से परिचित कराना भी जरुरी है. बातव्यवहार, पढ़ाईलिखाई के साथसाथ दूसरों के आगे अनुशाशन और कायदे से पेश आना भी सिखाएं ताकि आप को दूसरों के आगे उन्हें डपटना न पड़े.

जरूरी है कि अभिभावक खुद के लिए पर्याप्त समय निकालें. जीवन को सुकून के साथ जीएं.व्यायाम करने, पढ़ने, टहलने और मनोरंजन के लिए समय जरूर निकालें ताकि वे बच्चों के आगे झल्लाया हुआ व्यवहार न करें.

अभिभावक उस समय ज्यादा गुस्सा करते हैं जब बच्चा बार-बार उन के द्वारा दी गई हिदायतों को नहीं मानता और वही चीजें दुहराता है. ऐसे में प्यार से बच्चे को कम शब्दों में समझाएं. चिल्ला कर या झल्लाते हुए न बोले. अपना गुस्सा न दिखाएं.

अपने बच्चों की पिटाई की बजाय उस के सामने कुछ विकल्प दें. उदाहरण के लिए अगर वह खाने की मेज पर बदतमीजी कर रहा है तो उसे स्पष्ट शब्दों में कहें कि वह या तो ठीक से खाए या फिर डाइनिंग टेबल से उठ जाए. ऐसे में या तो वह उठ जाएगा या फिर माफ़ी मांग लेगा. अगर वह माफ़ी मांग ले तो उसे वापस बैठने दें और प्यार से उस की गलती समझाएं. दोनों ही स्थितियों में वह आगे से खुद पर कंट्रोल रखना सीख जाएगा.

अपने बच्चे को कभी भी शारीरिक दंड न दें. अपनी बातों को तर्क से प्रूव करें. अगर उसने किसी का नुकसान किया है और गुस्से में आप उसे मारेंगे तो उस समय तो वह चुप हो जाएगा, लेकिन बाद में अपनी ऐसी गलतियों को छिपाएगा. उसे डर रहेगा कि आप उसकी पिटाई करेंगे, इसलिए बच्चे को अपनी गलती की जिम्मेदारी लेने को कहें.

अगर बच्चा आप से ठीक से बात नहीं कर रहा तो बजाय उसे पीटने या चिल्लाने के उस कमरे से बाहर निकल जाएं. उसे कहें कि आप दूसरे कमरे में हैं और जब उस की इच्छा हो और वह ढंग से बात करना चाहता हो आप से बात करने आ सकता है. इस से वह खुद ही अपनी गलती मह्सूस कर सकेगा.

बच्चों की पिटाई की जाए या नहीं

स्वीडन पहला यूरोपीय देश बना जहां बच्चों को मारना-पीटना गैरकानूनी बनाया गया. साल 2013 में फ्रांस की एक अदालत ने फ़ैसला किया था कि एक आदमी ने अपने नौ साल के बेटे को पीटने में ज़्यादती कर दी है. उस ने पीटने से पहले अपने बेटे की कमीज़ उतरवा दी थी. उस पर 500 यूरो का जुर्माना लगाया गया लेकिन इस फैसले से देश2 भागों में बंट गया.

फ्रांस में बच्चों की पिटाई का इतिहास काफी पुराना है. कहा जाता है कि फ्रांसीसी राजा लुइस तेरहवें को एक साल की उम्र से पिता के आदेश पर लगातार पीटा जाता रहा था.

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अन्य यूरोपीय देशों की तरह फ्रांस में भी बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा को अपराध बना दिया गया है लेकिन यह अभिभावकों को अपने बच्चों को हल्के हाथ से अनुशासित करने का अधिकार भी देता है.

यह ‘हल्का हाथ’ से अनुशासन क्या है और आपराधिक हिंसा क्या है, यह तय करने का अधिकार अदालतों को है जिस से अक्सर विवाद होते रहे हैं. हालांकि ब्रिटेन और फ्रांस में हुए एक सर्वे में बच्चों को पीटने पर कानूनी प्रतिबंध के परिणाम करीबकरीब एक जैसे थे. हाल में ब्रिटेन में सर्वे में शामिल 69 प्रतिशत इस के ख़िलाफ़ थे वहीं फ्रांस में साल 2009 में 67 प्रतिशत लोग इस के विरोध में थे.

अब समय आ गया है कि हम इस पर गंभीरता से विचार करें कि क्या सचमुच संस्कार और शिक्षा थोपने की आड़ में चाहेअनचाहे हम बच्चों के साथ अन्याय कर जाते हैं.

बच्चों का उत्पीड़न हो सकता है खतरनाक

पहला भाग पढ़ने के लिए-जब मां-बाप करें बच्चों पर हिंसा

आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों को अनजान लोगों से खतरा हो सकता है जब कि अभिभावक और रिश्तेदारों के पास उन्हें सुरक्षा मिलती है. पर हमेशा ऐसा ही हो यह जरुरी नहीं. अभिभावक, देखभाल करने वाला शख्स, ट्यूशन देने वाले टीचर या फिर बड़े भाईबहन और रिश्तेदार, इन में से कोई भी बच्चों के साथ बदसलूकी यानी बाल उत्पीड़न कर उन्हें ऐसी चोट दे सकते हैं जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक सेहत और व्यक्तित्व के विकास में बाधक बन सकता है. ऐसी वजहें बच्चे की मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं. बच्चों के साथ इस तरह के उत्पीड़न कई तरह के हो सकते हैं;

शारीरिक उत्पीड़न का अर्थ उन हिंसक क्रियाओं से है जिस में बच्चे को शारीरिक चोट पहुँचाने, उस के किसी अंग को काटने, जलाने , तोड़ने या फिर उन्हें जहर दे कर मारने का प्रयास किया जाता है. ऐसा जानबूझ कर या अनजाने में भी किया जा सकता है. इन की वजह से बच्चे को चोट पहुंच सकती है, खून बह सकता है या फिर वह गंभीर रूप से बीमार या घायल हो सकता है.

भावनात्मक उत्पीड़न का अर्थ है अभिवावक या देखरेख करने वाले शख्स द्वारा बच्चे को नकार दिया जाना ,बुरा व्यवहार करना, प्रेम से वंचित रखना, देखभाल न करना और बातबेबात अपमान किया जाना आदि. बच्चे को डरावनी सजा देना, गालियां देना, दोष मढ़ना, छोटा महसूस कराना, हिंसक बनने पर मजबूर करना, जैसी बातें भी इसी में शामिल हैं. इन की वजह से बच्चा मानसिक रूप से बीमार हो सकता है. उस का व्यक्तित्व प्रभावित हो सकता है और उस के अंदर हीनभावना विकसित हो सकती है.

1. यौन उत्पीड़न:

बाल यौन उत्पीड़न का मतलब यौन दुर्भावना से प्रेरित हो कर बच्चे को तकलीफ पहुँचाना और शारीरिक शोषण करना  है. बचपन में यदि इस तरह की घटना होती है तो बच्चा ताउम्र सामान्य जीवन नहीं जी पाता. लम्बे समय तक ऐसी तकलीफों से उपजा हुआ अवसाद, बच्चे में अलगाव और खुद को ख़त्म कर डालने की भावनाएं पैदा कर सकती हैं. यौन समक्रमण, एच.आई.वी/एड्स या अनचाहा गर्भ बाल यौन उत्पीड़न के खतरनाक परिणाम हैं.

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महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन ‘चाइल्ड एब्यूज़ इन इंडिया’ के मुताबिक भारत में 53.22 प्रतिशत बच्चों के साथ एक या एक से ज़्यादा तरह का यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न हुआ है.

2. बाल विवाह:

बाल विवाह भी अभिभावक द्वारा बच्चों पर किये जाने वाले उत्पीड़न का एक रूप है. भारत के बहुत से हिस्सों में 12-14 साल या उस से भी कम उम्र की लड़कियाँ का ब्याह कर दिया जाता है. इस से पहले कि वे शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से विकसित हो सकेमाँ बाप उन्हें ससुराल भेज देते हैं. कम उम्र में शादी होने से बहुत सी लड़कियां अपने सारे अधिकारों से, विद्यालय जाने से वंचित हो जाती है.

3. बच्चे की अवहेलना

अवहेलना करने का मतलब है जब अभिभावक साधनसंपन्न होने के बावजूद अपने बच्चे की शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने में असफल रहते हैं या फिर उन के द्वारा ध्यान न देने की वजह से बच्चा किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है.

4. अंधविश्वास का दंश भी झेल रहे हैं मासूम बच्चे.

सिर्फ अपेक्षाओं और प्रतियोगिताओ का बोझ ही नहीं हमारे बच्चे समाज के अंधविश्वास के भी शिकार हैं. मसलन राजस्थान में बच्चों को होने वाली निमोनिया जैसी बीमारियों का इलाज उन को गर्म सलाखों से दाग कर किया जाता है. भीलवाड़ा और राजसमंद में ऐसे कई मामले हो चुके हैं. बनेड़ा में दो साल की मासूम बच्ची पुष्पा को निमोनिया होने पर इतना दागा गया कि दर्द से तड़पते हुए उस की सांसे टूट गई. 3 महीने की परी को निमोनिया हुआ तो उस के शरीर में आधा दर्जन जगहों पर गर्म सलाखें चिपका दी गई.

5. जब मारपीट बन जाती है बच्चे की मौत का कारण

ओईसीडी कन्ट्रीज (और्गनाइजेशन फौर इकोनोमिक कोऔपरेशन & डेवलपमेंट ) द्वारा किये गए अध्ययन के मुताबिक़ 15 से 17 साल तक की उम्र के बच्चे सब से ज्यादा रिस्क में रहते हैं. इन के बाद न्यूबोर्न का नंबर आता है. 1 से 4 साल तक के बच्चों की तुलना में 1 साल तक के बच्चों की इस तरह मौत का खतरा 3 गुना तक अधिक होता है.

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6. वैसी शारीरिक हिंसा जिस में मौत का भय नहीं होता

कई दफा हिंसा से मौत का खतरा तो नहीं होता मगर बच्चे की सेहत, उस के विकास या आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है. हिटिंग ,किकिंग ,बीटिंग ,बाईटस ,बर्नस ,पोइज़निंग आदि के द्वारा तकलीफ पहुंचाई जाती है. एक्सट्रीम केसेस में इस तरह की हिंसाएं बच्चे की मौत, अपंगता या फिर गंभीर चोटों के रूप में सामने आ सकती हैं. यह उन की मानसिक सेहत और विकास को भी प्रभावित कर सकती है.

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