Top 10 Best Father’s Day Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट फादर्स डे कहानियां हिंदी में

Father’s Day Stories in Hindi: एक परिवार की सबसे अहम कड़ी हमारे माता-पिता होते हैं. वहीं मां को हम जहां अपने दिल की बात बताते हैं तो वहीं पिता हमारे हर सपने को पूरा करने में जी जान लगा देते हैं. हालांकि वह अपने दिल की बात कभी शेयर नहीं कर पाते. हालांकि हमारा बुरा हो या अच्छा, हर वक्त में हमारे साथ चट्टान बनकर खड़े होते हैं. इसीलिए इस फादर्स डे के मौके पर आज हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की  Best Father’s Day Story in Hindi, जिसमें पिता के प्यार और परिवार के लिए निभाए फर्ज की दिलचस्प कहानियां हैं, जो आपके दिल को छू लेगी. साथ ही आपको इन Father’s Day Stories से आपको कई तरह की सीख भी मिलेगी, जो आपके पिता से आपके रिश्तों को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौकिन हैं तो पढ़िए Grihshobha की Best Father’s Day Story in Hindi.

1. Father’s Day Story 2023: पिता का वादा

मुदित के पिता अकसर एक महिला से मिलने उस के घर जाया करते थे. कौन थी वह महिला और क्यों मुदित उस महिला के बारे में सबकुछ जानना चाहता था…

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2. Father’s Day Story 2023: अंतराल- क्या बेटी के लिए पिता का फैसला सही था?

चंद मुलाकातों के बाद ही सोफिया और पंकज ने शादी करने का निर्णय कर लिया. पर सोफिया के पिता द्वारा रखी गई शर्त सुनने पर पंकज ने शादी से इनकार कर दिया.

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3. Father’s Day Story 2023: अब तो जी लें

पिता के रिटायरमैंट के बाद उन के जीवन में आए अकेलेपन को दूर करने के लिए गौरव व शुभांगी ने ऐसा क्या किया कि उन के दोस्त भी मुरीद हो गए…

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4. Father’s day Story 2023: फादर्स डे- वरुण और मेरे बीच कैसे खड़ी हो गई दीवार

नाजुक हालात कहें या वक्त का तकाजा पर फादर्स डे पर हुई उस एक घटना ने वरुण और मेरे बीच एक खामोश दीवार खड़ी कर दी थी. इस बार उस दीवार को ढहाने का काम हम दोनों में से किसी को तो करना ही था.

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5. Father’s Day Story : दूसरा पिता- क्या दूसरे पिता को अपना पाई कल्पना

पति के बिना पद्मा का जीवन सूखे कमल की भांति सूख चुका था. ऐसे में कमलकांत का मिलना उस के दिल में मीठी फुहार भर गया था. दोनों के गम एकदूसरे का सहारा बनने को आतुर हो उठे थे. परंतु …

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6. Father’s day Stories : कोरा कागज- घर से भागे राहुल के साथ क्या हुआ?

बच्चे अपने मातापिता की सख्ती के चलते घर से भागने जैसी बेवकूफी तो कर देते हैं, लेकिन इस की उन्हें क्या कीमत चुकानी पड़ती है उस से अनजान रहते हैं. इस दर्द से राहुल भी अछूता नहीं था…

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7. Father’s Day 2023: चेहरे की चमक- माता-पिता के लिए क्या करना चाहते थे गुंजन व रवि?

गुंजन व रवि ने अपने मातापिता की खुशियों के लिए एक ऐसा प्लान बनाया कि उन के चेहरे की चमक एक बार फिर वापस लौट आई. आखिर क्या था उन दोनों का प्लान?

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 8. Father’s Day 2023: जिंदगी फिर मुस्कुराएगी- पिता ने बेटे को कैसे रखा जिंदा

दानव की तरह मुंह फाड़े मौत के आगे सोनू की नन्ही सी जिंदगी ने घुटने तो टेके पर हार नहीं मानी. उस के मातापिता के एक फैसले ने मरणोपरांत भी उसे जीवित रखा क्योंकि जिंदगी का मकसद ही मुसकराना है.

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9. Father’s Day 2023: परीक्षाफल- क्या चिन्मय ने पूरा किया पिता का सपना

मानव और रत्ना को अपने बेटे चिन्मय पर गर्व था क्योंकि वह कक्षा में हमेशा अव्वल आता था, उन का सपना था कि चिन्मय 10वीं की परीक्षा में देश में सब से अधिक अंक ले कर उत्तीर्ण हो.

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10. Father’s Day Story 2023: बाप बड़ा न भैया- पिता की सीख ने बदली पुनदेव की जिंदगी

 

5 बार मैट्रिक में फेल हुए पुनदेव को उस के पिता ने ऐसी राह दिखाई कि उस ने फिर मुड़ कर देखा तक नहीं. आखिर ऐसी कौन सी राह सुझाई थी उस के पिता ने.

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Father’s day Special: जिंदगी के सफर में मां जितने ही महत्वपूर्ण है पापा

आमतौर पर समाज में, साहित्य में या विभिन्न किस्म की संवेदनाओं के बीच यही मान्यता है कि संतान के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ‘मां’ की है. इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया में ‘मां’ की जगह कोई नहीं ले सकता. लेकिन इतना ही बड़ा सच यह भी है कि दुनिया में ‘पिता’ की भी कोई जगह नहीं ले सकता. भले मुहावरों में, कविताओं में पिता की भूमिका ने वह जगह न पायी हो, जो जगह मां की भूमिका को हासिल है लेकिन सच्चाई यही है कि जीवन में जितनी जरूरी मां की सीखें हैं, उतनी ही जरूरी पिता की मौन देखरेख है. भले पिता मां की तरह अपने बच्चों को दूध न पिलाए, उन्हें दुलराए न, उनके साथ बहुत देर तक मान मनौव्वल का खेल न खेले, लेकिन वह भी अपनी संतान से उतना ही प्यार करता है और जीवन में उसकी उतनी ही महत्ता भी है.

जिन बच्चों के सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ जाता है, उन बच्चों में 90 फीसदी से ज्यादा बच्चे अंतर्मुखी हो जाते हैं. ऐसे बच्चे अकसर बहुत आत्मविश्वास के साथ समाज का और अपनी कठिन परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाते. दरअसल पिता उनमें दुनिया से टकराने का आत्मविश्वास देता है. मां अगर संयम सिखाती है तो पिता की मौजूदगी बच्चों में प्रतिरोध का जज्बा भरती है. अगर मां नहीं होती तो बच्चे जीवन जीने के तौर तरीके कायदे से नहीं सीख पाते. अगर पिता नहीं होते तो बच्चे जीवन का सामना ही बमुश्किल कर पाते हैं. मां की देखरेख में पले बच्चों में आत्मविश्वास की कमी तो होती ही है, वे तमाम बार अपनी बात को सार्वजनिक तौरपर व्यवस्थित ढंग से रख तक नहीं पाते.

कहने का मतलब यह है कि जिंदगी में मां और बाप दोनो की ही बराबर की जरूरत होती है. पर अगर गहराई से देखें तो पिता की जरूरत थोड़ी ज्यादा होती हैय क्योंकि पिता की बदौलत ही बच्चे दुनिया से दो चार होने, उससे मुकाबला करने की हिम्मत और हिकमत पाते हैं. अगर बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ जाता है, तो बच्चों का बचपन खो जाता है. खेलन, कूदने की उम्र में बड़े बूढ़ों की तरह चिंताएं करनी पड़ती हैं, कई बार उन्हीं की तरह घर चलाने के लिए मां का हाथ बंटाना पड़ता है यानी खेलने, कूदने की उम्र में ही नौकरी या चाकरी करनी पड़ती है. ज्यादातर बार पिता के न रहने पर बच्चों की पढ़ाई या तो आधी अधूरी रह जाती है या जैसे सोचा होता है, वैसी नहीं हो पाती. हां, कई मांएं अपवाद भी होती हैं जो बच्चों को पिता की गैर मौजूदगी का एहसास नहीं होने देतीं.

पिता की मौजूदगी में बच्चों में एक अतिरिक्त किस्म का आत्मविश्वास रहता है. किसी ने बिल्कुल सही कहा है कि पिता भोजन में नमक की तरह होते हैं, खाने में अगर नमक न हो तो खाना कितना ही बढ़िया, कितना ही कीमती क्यों न हो, बेस्वाद लगता है? लेकिन जब खाने में नमक की उपयुक्त मात्रा होती है तो कई बार हमें इसका एहसास तक नहीं होता. कई बार हम यह याद ही नहीं कर पाते कि हम जो कुछ खा रहे हैं उसमें नमक का भी कुछ महत्व है. पिता की मौजूदगी भी जीवन ऐसी ही होती है. जब होते हैं तो कभी यह ख्याल ही नहीं होता कि पिता के महत्व को समझें. मगर जब नहीं होते तो हर पल, हर कदम उनके न होने का दुख उठाना पड़ता है, परेशानी भोगनी पड़ती है. हर संतान को एक न एक दिन अपनी जिंदगी की जिम्मेदारी या अपने जीवन का भार खुद ही उठाना पड़ता है. मगर जब तक पिता होते हैं, वह भले कुछ न करते हों, संतानें तमाम तरह के दायित्व बोझों से मुक्त रहती हैं. उनमें एक बेफिक्री रहती है. पिता मनोवैज्ञानिक रूप से संतानों की जिम्मेदारी उठाते हैं.

अकसर माना जाता है और किसी हद तक यह सही भी होता है जिन बच्चों की सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ जाता है, उनमें एक खास किस्म की आवरगी, एक खास किस्म का बेफिक्रापन और एक खास किस्म की आपराधिक प्रवृत्ति पैदा हो जाती है. दरअसल ऐसे बच्चों की समाज के लोग ज्यादा परवाह नहीं करते, उन्हें बहुत प्यार और इज्जत नहीं देते, जिस कारण ऐसे बच्चे भी समाज की परवाह नहीं करते, उसकी ज्यादा इज्जत नहीं करते और धीरे धीरे उनके माथे पर किसी न किसी असामाजिक श्रेणी का ठप्पा लग जाता है. समृद्धि का एक आयाम मनोविज्ञान भी होता है, जब पिता होते हैं तो बच्चे खासकर लड़के मनोवैज्ञानिक रूप से खुद को जिंदगी के बोझ से लदा-फंदा नहीं पाते. उन्हें लगता है उनकी जिम्मेदारी उठाने के लिए पिता तो अभी मौजूद ही हैं. फिर चाहे भले पिता कुछ भी कर सकने की स्थिति में न हों लेकिन उनका होना ही बेटों के लिए एक बड़ा संबल होता है.

शास्त्रों में कहा गया है कि माता और पिता दोनो ही संतान के पहले गुरु होते हैं, यह सच भी है. लेकिन माता और पिता अपनी संतान को एक ही पाठ नहीं पढ़ाते, वे दोनो उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए एक ही समय में अलग अलग और महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते हैं. मां जहां बच्चों को पारिवारिक मूल्यों, मान मर्यादा, उठने बैठने, बोलने के तौर तरीके सिखाती है, वहीं पिता बच्चों को घर से बाहर जिंदगी से कैसे जूझें, कैसे टकराएं, कैसे उससे गले मिलें इस सबका पाठ पढ़ाते हैं. इसलिए माता पिता दोनो ही बच्चे के सबसे पहले गुरु होते हैं और दोनो ही उन्हें जिंदगी के दो अलग अलग और महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते हैं.

Father’s day 2023: पिता और पुत्र के रिश्तों में पनपती दोस्ती

‘‘हाय डैड, क्या हो रहा है? यू आर एंजौइंग लाइफ, गुड. एनीवे डैड, आज मैं फ्रैंड्स के साथ पार्टी कर रहा हूं. रात को देर हो जाएगी. आई होप आप मौम को कन्विंस कर लेंगे,’’ हाथ हिलाता सन्नी घर से निकल गया.

‘‘डौंट वरी सन, आई विल मैनेज ऐवरीथिंग, यू हैव फन,’’ पीछे से डैड ने बेटे से कहा. आज पितापुत्र के रिश्ते के बीच कुछ ऐसा ही खुलापन आ गया है. किसी जमाने में उन के बीच डर की जो अभेद दीवार होती थी वह समय के साथ गिर गई है और उस की जगह ले ली है एक सहजता ने, दोस्ताना व्यवहार ने. पहले मां अकसर पितापुत्र के बीच की कड़ी होती थीं और उन की बातें एकदूसरे तक पहुंचाती थीं, पर अब उन दोनों के बीच संवाद बहुत स्वाभाविक हो गया है. देखा जाए तो वे दोनों अब एक फ्रैंडली रिलेशनशिप मैंटेन करने लगे हैं. 3-4 दशकों पहले नजर डालें तो पता चलता है कि पिता की भूमिका किसी तानाशाह से कम नहीं होती थी. पीढि़यों से ऐसा ही होता चला आ रहा था. तब पिता का हर शब्द सर्वोपरि होता था और उस की बात टालने की हिम्मत किसी में नहीं थी. वह अपने पुत्र की इच्छाअनिच्छा से बेखबर अपनी उम्मीदें और सपने उस को धरोहर की तरह सौंपता था. पिता का सामंतवादी एटीट्यूड कभी बेटे को उस के नजदीक आने ही नहीं देता था. एक डरासहमा सा बचपन जीने के बाद जब बेटा बड़ा होता था तो विद्रोही तेवर अपना लेता था और उस की बगावत मुखर हो जाती थी.

असल में पिता सदा एक हौवा बन बेटे के अधिकारों को छीनता रहा. प्रतिक्रिया करने का उफान मन में उबलने के बावजूद पुत्र अंदर ही अंदर घुटता रहा. जब समय ने करवट बदली और उस की प्रतिक्रिया विरोध के रूप में सामने आई तो पिता सजग हुआ कि कहीं बागडोर और सत्ता बनाए रखने का लालच उन के रिश्ते के बीच ऐसी खाई न बना दे जिसे पाटना ही मुश्किल हो जाए. लेकिन बदलते समय के साथ नींव पड़ी एक ऐसे नए रिश्ते की जिस में भय नहीं था, थी तो केवल स्वीकृति. इस तरह पितापुत्र के बीच दूरियों की दीवारें ढह गईं और अब आपसी संबंधों से एक सोंधी सी महक उठने लगी है, जिस ने उन के रिश्ते को दोस्ती में बदल दिया है.

पितापुत्र संबंधों में एक व्यापक परिवर्तन आया है और यह उचित व स्वस्थ है. पिता के व्यक्तित्व से सामंतवाद थोड़ा कम हुआ है. थोड़ा इसलिए क्योंकि अगर हम गांवों और कसबों में देखें तो वहां आज भी स्थितियों में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है. बस, दमन उतना नहीं रहा है जितना पहले था. आज पिता की हिस्सेदारी है और दोतरफा बातचीत भी होती है जो उपयोगी है. मीडिया ने रिश्तों को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है. टैलीविजन पर प्रदर्शित विज्ञापनों ने पितापुत्री और पितापुत्र दोनों के बीच निकटता का इजाफा किया है. समाजशास्त्री श्यामा सिंह का कहना है कि आज अगर पितापुत्र में विचारों में भेद हैं तो वे सांस्कृतिक भेद हैं. अब मतभेद बहुत तीव्र गति से होते हैं. पहले पीढि़यों का परिवर्तन 20 साल का होता था पर अब वह परिवर्तन 5 साल में हो जाता है. आज के बच्चे समय से पहले मैच्योर हो जाते हैं और अपने निर्णय लेने लगते हैं. जहां पिता इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं वहां दिक्कतें आ रही हैं. पितापुत्र के रिश्ते में जो पारदर्शिता होनी चाहिए वह अब दिखने लगी है. नतीजतन बेटा अपने पिता के साथ अपनी बातें शेयर करने लगा है.

खत्म हो गई संवादहीनता

आज पितापुत्र संबंधों में जो खुलापन आया है उस से यह रिश्ता मजबूत हुआ है. मनोवैज्ञानिक समीर मल्होत्रा के अनुसार, अगर पिता अपने पुत्र के साथ एक निश्चित दूरी बना कर चलता है तो संवादहीनता उन के बीच सब से पहले कायम होती है. पहले जौइंट फैमिली होती थी और शर्म पिता से पुत्र को दूर रखती थी. बच्चे को जो भी कहना होता था, वह मां के माध्यम से पिता तक पहुंचाता था. लेकिन आज बातचीत का जो पुल उन के बीच बन गया है, उस ने इतना खुलापन भर दिया है कि पितापुत्र साथ बैठ कर डिं्रक्स भी लेने लगे हैं. आज बेटा अपनी गर्लफ्रैंड के बारे में बात करते हुए सकुचाता नहीं है.

करने लगा सपने साकार

महान रूसी उपन्यासकार तुरगेनेव की बैस्ट सेलर किताब ‘फादर ऐंड सन’ पीढि़यों के संघर्ष की महागाथा है. वे लिखते हैं कि पिता हमेशा चाहता है कि पुत्र उस की परछाईं हो, उस के सपनों को पूरा करे. जाहिर है, इस उम्मीद की पूर्ति होने की चाह कभी पुत्र को आजादी नहीं देगी. पिता चाहता है कि उस के आदेशों का पालन हो और उस का पुत्र उस की छाया हो. टकराहट तभी होती है जब पिता अपने सपनों को पुत्र पर लादने की कोशिश करता है. पर आज पिता, पुत्र के सपनों को साकार करने में जुट गया है. प्रख्यात कुच्चिपुड़ी नर्तक जयराम राव कहते हैं कि जमाना बहुत बदल गया है. बच्चों की खुशी किस में है और वे क्या चाहते हैं, इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है. यही वजह है कि मैं अपने बेटे की हर बात मानता हूं. मैं अपने पिता से बहुत डरता था, पर आज समय बदल गया है. कोई बात पसंद न आने पर मेरे पिता मुझे मारते थे पर मैं अपने बेटे को मारने की बात सोच भी नहीं सकता. आज वह अपनी दिशा चुनने के लिए स्वतंत्र है. मैं उस के सपने साकार करने में उस का पूरा साथ दूंगा. बहरहाल, अब पितापुत्र के सपने, संघर्ष और सोच अलग नहीं रही है. यह मात्र भ्रम है कि आजादी पुत्र को बिगाड़ देती है. सच तो ?यह है कि यह आजादी उसे संबंधों से और मजबूती से जुड़ने और मजबूती से पिता के विश्वास को थामे रहने के काबिल बनाती है.

Father’s day 2023: पिता बदल गए हैं तो कोई हैरानी नहीं, बदलते वक्त के साथ ही था बदलना

आइंस्टीन की बिग बैंग थ्योरी को लेकर भले संदेह हो कि ब्रह्मांड निरंतर फ़ैल रहा है या नहीं.लेकिन इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि दुनिया हर पल बदल रही है.कारण कुछ भी हो.ऐसे में भले किसी की पहचान हमेशा एक सी कैसे रह सकती है.पिता नाम का,समाज का सबसे महत्वपूर्ण शख्स भी इस बदलाव से अछूता नहीं है तो इसमें किसी आश्चर्य की बात नहीं है.आज जब पिछली सदी के जैसा कुछ नहीं रहा,न खानपान,न पहनावा,शिक्षा,न रोजगार,न संपर्क के साधन तो भला पिता कैसे वैसे के वैसे ही बने रहते,जैसे बीसवीं सदी के मध्यार्ध या उत्तरार्ध में थे.पिता भी बदल गए हैं.क्योंकि अब वो घर में अकेले कमाने वाले शख्स नहीं हैं.क्योंकि अब वो अपने बच्चों से ज्यादा नहीं जानते,ज्यादा स्मार्ट भी नहीं हैं.

यही वजह है कि आज पिता घर की अकेली और निर्णायक आवाज भी नहीं हैं. आज के पिता परिवार की कई आवाजों में से एक हैं और यह भी जरूरी नहीं कि घर में उनकी  आवाज सबसे वजनदार आवाज हो.इसमें कुछ बुरा भी नहीं है और न ही इसके लिए पिताओं के प्रति अतिरिक्त सहानुभूति होनी चाहिए.क्योंकि अकेली निर्णायक आवाज न घर के लिए और न ही समाज के लिए,किसी भी के लिए बहुत अच्छी नहीं होती.अकेली आवाज के हमेशा तानाशाह आवाज में बदल जाने की आशंका रहती है.

बहरहाल पहले के पिता ख़ास होने के भाव से अकड़ में रहते थे, इस कारण वह अपने बच्चों के प्रति अपने प्यार और फिक्रमंदी की भावनाएं भी सार्वजनिक तौरपर प्रदर्शित नहीं कर पाते थे.यहां तक कि पहले पिता सबके सामने अपने बच्चों को अपनी जुबान से प्यार भी नहीं कर पाते थे.वही सामाजिक दबाव, क्या कहेंगे लोग.ढाई-तीन दशक पहले जिनका बचपन गुजरा है,उन्हें मालूम है कि कैसे बचपन में ज्यादातर समय उन्हें अपने पिताओं से नकारात्मक व्यवहार ही मिलता रहा है, लेकिन आज ऐसा नहीं है.आज के पिता बच्चों के साथ किसी हद तक दोस्ताना भाव रखते हैं. आज के पिता में वह दंबगई नहीं है, जो पहले हुआ करती थी? आज के बच्चे अपने पापा  से डरते नहीं है?

क्योंकि तकनीक ने,जीवनशैली ने पारिवारिक ताकत और प्रभाव का विकेंद्रीकरण किया है.पहले की तरह सारी पारिवारिक ताकत और प्रभाव का अब कोई अकेला केंद्र नहीं रहा.इस कारण आज का पिता बदल गया है.यह बदलाव कदम कदम पर दिखता है.आज का पिता घर के काम बिल्कुल न करता या कर पाता हो, ऐसा नहीं है.आज का पिता न सिर्फ घर के कई काम बड़ी सहजता से करता है बल्कि रसोई में भी अब वह अनाड़ी नहीं है.पहले जिन कामों को हम सिर्फ घर की महिलाओं को करते देखते थे, जैसे घर की सफाई, बच्चों को उठाना, स्कूल के लिए तैयार करना, उनके लिए नाश्ता और लंच बनाना आदि, आज ये तमाम काम पिता भी सहजता से करते दिखते हैं.

क्योंकि आज की तारीख में विभिन्न कामों के साथ जुड़ी अनिवार्य लैंगिगकता खत्म हो गई है या धीरे धीरे खत्म हो रही है.हम चाहें तो इसे इस तरह कह सकते हैं कि आज के पिता बहुत कूल हैं, हर काम कर लेते हैं.कई बार तो ऐसा इसलिए भी होता है; क्योंकि पिता एकल पालक होते हैं.आज बहुत नहीं पर काफी पिता ऐसे हैं,जिन्होंने सिंगल पैरेंट के रूप में बच्चा गोद लिया हुआ है.सौतेले पिता भी आज अजूबा नहीं हैं. आज के पिता बड़ी सहजता से अपनी बेटियों के हर काम और हर तरह के संवाद का जरिया बन सकते हैं.हम आमतौर पर ऐसा होने को पश्चिमी संस्कृति का असर मान लेते हैं.लेकिन यह महज पश्चिमी संस्कृति का असर भर नहीं है,यह एक स्वाभाविक बदलाव है.जो दुनिया में हर जगह आधुनिक जीवनशैली और शिक्षा से आया है.

इसके कारण आज के पिता बच्चों के लिए ज्यादा रीचेबल हो गये हैं,बच्चे बड़ी सहजता से उन तक पहुँच रखते हैं,वह पिताओं से हर तरह की बातचीत कर लेते हैं.उनमें एक किस्म का धैर्य आया है.आज के पिता बच्चों के रोल मॉडल हैं या नहीं हैं.ज्यादातर लड़कियां अपने ब्वाॅयफ्रेंड या हसबैंड में पिता की छाया तलाशती हैं.जाहिर है आज का पिता भावनात्मक रूप से ज्यादा सम्पन्न, संयमी, मददगार और केयर करने वाला है.यहां तक कि आज के पिता ने अपने बच्चों और परिवार को अपनी आलोचना की भी भरपूर छूट दी है.नहीं दी तो परिवार द्वारा ले ली गयी है,चाहे उसे पसंद हो या न हो. यही वजह है कि आज परिवार नामक संस्था ज्यादा प्रोग्रेसिव है.

इस सबके पीछे कारण बड़े ठोस हैं.आज का पिता घर का अकेला रोजी रोटी कमाने वाला नहीं रहा.मां भी बड़े पैमाने पर ब्रेड बटर अर्नर है.बच्चे भी पहले के मुकाबले कहीं जल्दी कमाने लगते हैं. इस वजह से घर में अब पिता का पहले के जमाने की तरह का दबदबा नहीं रहा,जब वह परिवार की रोजी रोटी कमाने वाले अकेले शख्स हुआ करते थे.

यूं शुरू हुआ फादर्स डे मनाने का सिलसिला

हर साल जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है. इसका सबसे पहले विचार एक अमरीकी लड़की सोनोरा स्मार्ट डोड को साल 1909 में आया था.पहला फादर्स डे 19 जून 1910 को वाशिगंटन में मनाया गया. 1966 में अमरीका के राष्ट्रपति लिंडन बेन जॉनसन ने जून के तीसरे रविवार को हर साल फादर्स डे मनाने की औपचारिक घोषणा की. तब से यह न केवल अमरीका में नियमित रूप से मनाया जाता है बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी इसने धीरे धीरे अपना विस्तार किया है.पिता दिवस के मनाये जाने के इस औपचारिक सिलसिले के बाद से दुनिया में पिता और पितृत्व की भूमिका लगातार चर्चा होती रही है.

Father’s day 2022: Celebs से जानें उनके पिता के साथ बिताई खट्टी मीठी बातें  

हर साल Father”s Day जून महीने की तीसरे रविवार को मनाया जाता है. इसे मनाने का उद्देश्य पिता के प्रति आभार जताना है, क्योंकि एक बच्चे के पालन-पोषण में जितना जरुरी एक माँ की होती है, उतनी ही पिता की भी आवश्यकता होती है. इसलिए इस दिन को सभी बच्चे अपने हिसाब से पिता के पसंद के सामान, सरप्राइज डिनर, ट्रिप, फूल आदि देकर  सेलिब्रेट करते है.

फादर डे की शुरुआत कब और कैसे हुई इस बारें में लोगों के अलग-अलग मत है. कुछ का मानना है कि फादर्स डे 1907 में वर्जिनिया में पहली बार मनाया गया था, कुछ मानते है कि 1910 में वाशिंगटन में मनाया गया था, जबकि वर्ष 1916 में अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने इसे मनाने की मंजूरी दी. साल 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने इसे जून महीने की तीसरे रविवार को मनाने की आधिकारिक घोषणा की, इसके बाद से फादर्स डे को जून के तीसरे संडे को मनाया जाता है.

बच्चों के साथ पिता का सम्बन्ध बहुत ही प्यारा होता है, लेकिन आज की भाग-दौड़ की जिंदगी में बच्चों को पिता के साथ बातें करने या उन्हें समझने का वक्त नहीं होता, ऐसे में ये दिन बच्चों को एक बार फिर से उनके संबंधों को ताजा करने का अच्छा विकल्प है, इसलिए आम बच्चों से लेकर सेलेब्रिटी बच्चे भी शूटिंग पर फंसे रहने की वजह से पिता और फादर्स डे को मिस कर रहे है, आइये जाने पिता से उनके सम्बन्ध, उनकी नजदीकियां, प्यार और टकरार सब कैसा है. जानते है मिलीजुली प्रतिक्रिया उनकी जुबानी.

चारु मलिक

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अभिनेत्री चारू कहती है कि मैं पूरे साल फादर्स डे और मदर्स डे मनाना चाहती हूँ. पिता बेटियों के हमेशा ही बहुत स्पेशल होते है, क्योंकि माँ के साथ बातूनी रिश्ते का इक्वेशन होता है, जबकि पिता के साथ एक अलग ही प्यारा रिश्ता होता है. ये सही है कि उनसे हम अधिक बात नहीं करते, पर उनका प्यार हमेशा किसी न किसी रूप में मिलता रहता है. मैं और मेरी जुड़वाँ बहन पारुल दोनों ही पिता के बहुत करीब है. वे भी हम दोनों के साथ एक मजबूत सम्बन्ध रखते है. मेरे पिता इन्ट्रोवर्ट है और अधिक बात नहीं करते, लेकिन जो भी बात कहते है वह हमारे लिए बहुत उपयोगी होता है. वे एक वकील है और हमेशा अपने केसेज को लेकर व्यस्त रहते है. लाइब्रेरी में बैठकर इन केसेज की स्टडी करते है. उनका शांत और धैर्यवान होना हमारे लिए बहुत ही अच्छा रहा, क्योंकि जब वे बचपन में मुझे मैथ पढाया करते थे और मैं उसमे अच्छे अंक नहीं ला पाती थी. उन्होंने मुझे गणित की बेसिक चीजों को सिखाया. मेरी माँ की मृत्यु के बाद सभी उनके बहुत करीब हो चुके है, ताकि माँ की यादों को वे कुछ हद तक कम कर सकें. अभी वे अमेरिका में पारुल के साथ रहते है. मैंने पिता से कठिन समय में शांत रहना, धैर्य न खोना आदि सीखा है. इसके अलावा मेरे पिता बहुत अच्छा खाना बनाते है और हमें हमारे पसंद का व्यंजन बनाकर खिलाते है.

नसिर खान 

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फिल्म और टीवी अभिनेता नसिर खान का अपने पिता कॉमेडियन और अभिनेता जॉनी वाकर के साथ बहुत अच्छी बोन्डिंग थी. वे कहते है कि उन्होंने मुझे कभी डांटा नहीं. वे मेरे साथ बहुत ही सौम्य स्वभाव रखते थे, लेकिन वे अपने सिद्धांतो पर हमेशा अडिग रहे. मैं परिवार का छोटा बेटा होने की वजह से उन्होंने मुझे अपना कैरियर चुनने की पूरी आज़ादी दी थी. इसके अलावा परिवार के बच्चों के किसी भी निर्णय को वे कभी नहीं लेते थे, उसकी जिम्मेदारी मेरी माँ की थी. वे स्ट्रिक्ट पिता नहीं थे. बड़े होने पर मुझे उनके व्यक्तित्व को काफी हद तक समझ में आया. वे एक शांत इंसान थे और सबके लिए कुछ अच्छा करने की इच्छा रखते थे. मेरे हिसाब से पिता का बच्चों और पत्नी से हमेशा बातचीत करते रहना चाहिए , ताकि एक दूसरे की भावनाओं को समझने का अवसर मिले.

अनुज सचदेवा 

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अभिनेता अनुज का कहना है कि इमोशन को व्यक्त करने का तरीका पुरुषों में अलग होता है. बेटे के लिए उनके इमोशन 2 से 3 बातों के बाद ख़त्म हो जाती है, मसलन आप कैसे हो, क्या कर रहे हो या तबियत कैसी है? आदि. ऐसे कुछ प्रश्नों के उत्तर जान लेने के बाद बातें खत्म हो जाती है, जैसा मैंने अभी तक अपने पिता से सुना है और मुझे लगता है कि सभी पिता और बेटे में सम्बन्ध ऐसा ही होता होगा. मेरे पिता मेरे कैरियर में एक माइलस्टोन की तरह है. मेरे साथ मेरे पिता की सोच का कभी भी मेल नहीं हुआ, जो हर किसी के साथ होता है और ये जेनरेशन गैप का ही परिणाम है, लेकिन मेरे पिता ने हमेशा मेहनत करना सिखाया है, जिसमे शोर्ट कट की कोई जगह नहीं. 

अशोक कुमार बेनीवाल 

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अभिनेता अशोक कुमार बेनीवाल का कहना है कि पूरे विश्व में मैं अपने पिता के सबसे करीब हूँ. उनके साथ मेरा स्ट्रोंग ट्रेडिशनल सम्बन्ध और जुड़ाव है. इनका व्यक्तित्व मेरे लिए बहुत खास है, जब भी मुझे उनकी जरुरत होती है, वे हमारे साथ होते थे. मेरे किसी भी सन्देश को पिता तक पहुँचाने में मेरी माँ का हमेशा सहयोग रहा है. पिता ने अपनी सामर्थ्यता से अधिक किसी काम को करने में मुझे सहयोग दिया. उन्होंने मुझे इमानदारी, मेहनत और लगन से काम करने की सीख दी, जिसे मैंने अपने जीवन में उतारा है. आज वे हमारे बीच नहीं है, मैं उन्हें बहुत मिस करता हूँ. मुझे आज भी याद आता है जब मैंने अपने पिता, माँ, बड़ी बहन और 6 रिश्तेदारों को वर्ष 2013 को हुए केदारनाथ फ्लड में खो दिया.

सुधा चंद्रन 

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अभिनेत्री सुधा चंद्रन कहती है कि मेरे लिए फादर्स डे केवल एक दिन नहीं 365 दिन भी उनके लिए बात करूँ तो कम पड़ जायेंगे. मेरे हिसाब से हर लड़की के लिए उसका पहला हीरो उसका पिता होता है. मैने हमेशा से उनके जैसा बनना चाहती थी. वे एक विनम्र परिवार से थे. केवल 13 साल की उम्र से उन्होंने अपने परिवार को सेटल किया था.मेरे पिता की तरफ से दो पुरस्कार मेरे लिए बहुत माईने रखती है, जब मैं अस्पताल में थी और मुझे नकली पैर मिला था. उन्होंने कहा था कि मैं तुम्हारा वो पैर बनूँगा, जिसे तुमने खोया है. मैंने पूछा था कि ऐसा आप कब तक कर पाएंगे? इस पर उन्होंने कहा था कि मैं तुम्हारे साथ तब तक रहना चाहता हूँ, जब तक तुम्हे जरुरत है और ये सही था जब मैं कामयाबी की पीक पर थी, तब वे हमें छोड़ गए. दूसरा अवार्ड मुझे तब मिला जब मैंने पहली बार नकली पैर से डांस किया. परफोर्मेंस के बाद जब मैं घर आई तो उन्होंने मेरे पैर छू लिए. उनके इस व्यवहार के बारें में पूछने पर बताया था कि मैं उनके लिए कला की मूर्ति हूँ.

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पिता के रूप में अभिनेता अनिल कपूर की सोच क्या है, पढ़ें इंटरव्यू

हॉलीवुड और बॉलीवुड में अपनी एक अलग छवि बनाने वाले अभिनेता अनिल कपूर ने हर शैली में काम किया है और आज भी नई-नई भूमिका निभाकर दर्शकों को चकित कर रहे है. कॉमेडी हो या सीरियस, हर अंदाज में वे फिट बैठते है. उन्होंने जिस भी फिल्म में काम किया, दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बने, इसे वे अपनी उम्र के हिसाब से सही फिल्म और किरदार का चुनना बताते है, जो उन्हें सावधानी से करना पड़ता है, जिसमें वे अपने दिल की सुनते है. यही वजह है कि उन्होंने काम से कोई ब्रेक नहीं लिया. उनके साथ ‘कॉम बैक’ का कोई टैग नहीं लगा. हंसमुख और विनम्र स्वभाव के अनिल कपूर खुद को नकारात्मक चीजों से दूर रखना पसंद करते है, ताकि हर सुबह उन्हें नया और फ्रेश लगे. खुश रहना और किसी तनाव को पास न आने देना ही उनके फिटनेस का राज है. उन्होंने हर बार माना है कि जीवन एक है और इसमें उतार-चढ़ाव का आना स्वाभाविक है. अनिल कपूर पहली बार धर्मा प्रोडक्शन के साथ फिल्म ‘जुग-जुग जियो’ में पिता की भूमिका निभा रहे है. जो रिलीज पर है. कोविड की वजह से ये फिल्म रिलीज नहीं हो पाई थी, इसलिए सभी इसके आने का इन्तजार कर रहे है.

इतना ही नहीं अनिल कपूर एक अच्छे अभिनेता के अलावा अभिनेत्री सोनम कपूर, अभिनेता हर्षवर्धन कपूर और रिया कपूर के पिता भी है, उन्होंने बच्चों को एक दोस्त की तरह पाला, जिसमे साथ दिया उनकी पत्नी सुनीता कपूर ने. जिससेउन्होंने इमानदारी के साथ काम किया. आइये जानते है अनिल कपूर से उनके पिता बनने और उससे जुड़े कुछ अनुभव जो पेरेंट्स के लिए बहुत उपयोगी होगा, आइये जानते है, इस बारें में उनकी सोच क्या है.

सवाल – ये फिल्म पिता-पुत्र के संबंधों पर आधारित है, रियल लाइफ में आप किस तरह के पिता है ? क्या बच्चों को अनुसाशन में रखना पसंद करते है?

जवाब – फिल्मों का सम्बन्ध और रियल लाइफ का सम्बन्ध बहुत अलग होता है. (हँसते हुए) रियल पिता को समझने के लिए घर आना पड़ेगा. मैं कभी भी स्ट्रिक्ट पिता नहीं हूं, प्यार से उन्हें कुछ भी कराया जा सकता है, स्ट्रिक्ट होने से नहीं. साथ ही धैर्य की भी बहुत जरुरत पड़ती है, स्ट्रिक्ट होने से बच्चा कभी भी अच्छा नहीं बन सकता. तकनिकी युग के बच्चे पहले से ही सब जानते है, इसलिए उन्हें समझ कर पेरेंट्स को कोई सुझाव देनी चाहिए. बच्चों को अपना क्षेत्र चुनने की पूरी आज़ादी भी पेरेंट्स को देनी चाहिए.

सवाल – आपका और आपकी पत्नी सुनीता कपूर का एक कामयाब रिश्ता रहा है, इस बारें में क्या कहना चाहते है?

जवाब – किसी भी रिलेशनशिप में कॉम्प्रोमाइज करने की जरुरत होती है. इससे व्यक्तिदूसरे की तरफ से देख सकता है और कोई ऐसी बात किसी को कह नहीं पाता, जिससे वह व्यक्ति हर्ट हो. गलती हर इन्सान से होती है और उसे मान लेना सबसे सहज बात होती है.

सवाल – इतने सालों बाद भी जब आपकी फिल्म रिलीज पर होती है, तो क्या आपमें पहले जैसा एक्साइटमेंट होता है?

जवाब – ये फिल्म की बनावट पर निर्भर करता है कि फिल्म की कहानी क्या है और निर्देशक कौन है. अगर मैंने किसी डायरेक्टर के साथ पहले भी काम किया है, तो अधिक चिंता नहीं करता.

सवाल – अभिनेत्री नीतू कपूर के साथ काम करना कैसा रहा?

जवाब – नीतू मेरे परिवार की एक सदस्य है और पहली बार मैं उनके साथ फिल्म में काम कर रहा हूं, इसलिए काम करना सहज था, क्योंकि वह खूबसूरत, फ्रेश और नए लुक में सबके सामने आएगी. अभिनय के अलावा उन्हें डांस भी आता है, मैं उन्हें तब से जानता हूं, जब से वह ऋषि कपूर को डेट कर रही थी.

सवाल – सालों साल एक जैसे कद काठी होने का राज क्या है? फिल्मों को चुनते समय किस बात का ध्यान रखते है?

जवाब – मैं पहले जैसा था, वैसा अब नहीं लग सकता, लेकिन मैं खुद पर बहुत ध्यान देता हूं. साथ ही मैं कभी गलतफहमी में नहीं जीता, मैंने उन फिल्मों चुना जो मेरी उम्र के हिसाब से ठीक हो. दर्शक मुझे कुछ कहे, इससे पहले ही मैंने खुद को चुपचाप हीरों से चरित्र अभिनेता में बदल दिया. ये मेरे लिए सही था. मैंने उन फिल्मों को चुना, जिसमे मैं लीड भले ही न हूं, लेकिन जरुरी है. ये चुनाव मेरे लिए सफल रहा. आज मैं बहुत खुश हूं कि दर्शक आज भी मुझे देखना चाहते है. आज के दर्शकों को कोई मुर्ख नहीं बना सकता. इसके अलावा मैं नियमित वर्कआउट करता हूं. किसी प्रकार का नशा नहीं करता. मुझे दक्षिण भारतीय व्यजन में स्टीम्ड इडली बहुत पसंद है, क्योंकि ये बहुत सुरक्षित भोजन है.

सवाल – आप अभी भी किसी फिल्म में सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन बने रहते है, इस बारें में क्या कहना चाहते है? सोशल मीडिया पर आप कितने एक्टिव है?

जवाब – उम्र के हिसाब से हमेशा अभिनय करना चाहिए, अभी मैं वरुण धवन की भूमिका नहीं निभा सकता. मैं अपने उम्र की भूमिका निभा रहा हूं. इसलिए सभी मेरे चरित्र को पसंद करते है. हालाँकि इस फेज में आना कठिन था, पर मैंने खुद को समझाया.

सोशल मीडिया पर मैं अधिक एक्टिव नहीं, लेकिन मेरे काफी यंग फोलोअर्स है, जो अधिकतर मिम्स भेजते है. मैं उनका जवाब मिम्स से ही देता हूं. (हँसते हुए) यंग फोलोअर्स अधिक होने की वजह मेरी भूमिका है, जो यंग को भी आकर्षित करती है. फिल्म वेलकम में मेरी भूमिका मजनू भाई की थी, जो पेंटिंग बनाता है. मुझे जब पेंटिंग बनाकर निर्देशक अनीस बज्मी ने दी, तो किसी को पता नहीं था कि मेरी ये भूमिका इतनी पोपुलर होगी. यूथ को मेरा ये किरदार इतना पसंद होगा. मैं कई बार कुछ निर्देशक की कहानियां भी नहीं पढता, क्योंकि वे मेरे टेस्ट को जान चुके है. फिल्म अच्छी तरह बननी चाहिए, सफल हो या न हो ये तो दर्शकों की टेस्ट पर निभर करता है. मैं खुद निर्णय लेता हूं और अंत तक उसे पूरा करता हूं.

सवाल – कंट्रोवर्सी को आप कैसे लेते है और खुद को क्या समझाते है?

जवाब – मैं कंट्रोवर्सी को देखता नहीं हूं, उन लेखों को पढता हूं, जिन्होंने मेरी बातों को ठीक तरह से लिखा है. क्रिटिक सही है, क्योंकि इससे मैं खुद को इम्प्रूव कर सकता हूं, पर मेरे घर में बहुत सारे अच्छे आलोचक है, मैं उनकी अवश्य सुनता हूं.

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Top 10 Best Father’s Day Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट फादर्स डे कहानियां हिंदी में

Father’s Day Story in Hindi: एक परिवार की सबसे अहम कड़ी हमारे माता-पिता होते हैं. वहीं मां को हम जहां अपने दिल की बात बताते हैं तो वहीं पिता हमारे हर सपने को पूरा करने में जी जान लगा देते हैं. हालांकि वह अपने दिल की बात कभी शेयर नहीं कर पाते. हालांकि हमारा बुरा हो या अच्छा, हर वक्त में हमारे साथ चट्टान बनकर खड़े होते हैं. इसीलिए इस फादर्स डे के मौके पर आज हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की 10 Best Father’s Day Story in Hindi, जिसमें पिता के प्यार और परिवार के लिए निभाए फर्ज की दिलचस्प कहानियां हैं, जो आपके दिल को छू लेगी. साथ ही आपको इन Father’s Day Story से आपको कई तरह की सीख भी मिलेगी, जो आपके पिता से आपके रिश्तों को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौकिन हैं तो पढ़िए Grihshobha की Best Father’s Day Story in Hindi 2022.

1. Father’s Day 2022: दूसरा पिता- क्या दूसरे पिता को अपना पाई कल्पना

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पति के बिना पद्मा का जीवन सूखे कमल की भांति सूख चुका था. ऐसे में कमलकांत का मिलना उस के दिल में मीठी फुहार भर गया था. दोनों के गम एकदूसरे का सहारा बनने को आतुर हो उठे थे. परंतु …

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2. Father’s day 2022: फादर्स डे- वरुण और मेरे बीच कैसे खड़ी हो गई दीवार

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नाजुक हालात कहें या वक्त का तकाजा पर फादर्स डे पर हुई उस एक घटना ने वरुण और मेरे बीच एक खामोश दीवार खड़ी कर दी थी. इस बार उस दीवार को ढहाने का काम हम दोनों में से किसी को तो करना ही था.

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3. Father’s day 2022: अब तो जी लें

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पिता के रिटायरमैंट के बाद उन के जीवन में आए अकेलेपन को दूर करने के लिए गौरव व शुभांगी ने ऐसा क्या किया कि उन के दोस्त भी मुरीद हो गए…

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4. Father’s day 2022: चेहरे की चमक- माता-पिता के लिए क्या करना चाहते थे गुंजन व रवि?

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गुंजन व रवि ने अपने मातापिता की खुशियों के लिए एक ऐसा प्लान बनाया कि उन के चेहरे की चमक एक बार फिर वापस लौट आई. आखिर क्या था उन दोनों का प्लान?

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5. Father’s Day 2022: वह कौन थी- एक दुखी पिता की कहानी?

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स्वार्थी बेटेबहू ने पिता अमरनाथ को अनजान शहर में भीख मांगने के लिए छोड़ दिया था. व्यथित अमरनाथ की ऐसे अजनबी ने गैर होते हुए भी विदेश में अपनों से ज्यादा सहयोग और सहारा दिया.

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6. Father’s Day 2022: त्रिकोण का चौथा कोण

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जीवनरूपी शतरंज के सभी मुहरों को अपनी मरजी से सैट करने वाले मोहित को किसी के हस्तक्षेप का अंदेशा न था. लेकिन उस के बेटे ने जब ऐसा किया तो क्या हुआ.

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7. Father’s Day 2022: पापा जल्दी आ जाना- क्या पापा से निकी की मुलाकात हो पाई?

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पापा से बातबात पर मम्मी झगड़तीं जबकि मनोज नाम के व्यक्ति के साथ खूब हंसतीबोलती थीं. नटखट निकी को यह अच्छा नहीं लगता था. समय वह भी आया जब पापा को मम्मी से दूर जाना पड़ा.

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8. Father’s day 2022: पापा मिल गए

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शादी के बाद बानो केवल 2-4 दिन के लिए मायके आई थी. उन दिनों सोफिया इकबाल से बारबार पूछती, ‘‘मेरी अम्मी को आप कहां ले गए थे? कौन हैं आप?’’

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9. Father’s day 2022: बाप बड़ा न भैया- पिता की सीख ने बदली पुनदेव की जिंदगी

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5 बार मैट्रिक में फेल हुए पुनदेव को उस के पिता ने ऐसी राह दिखाई कि उस ने फिर मुड़ कर देखा तक नहीं. आखिर ऐसी कौन सी राह सुझाई थी उस के पिता ने.

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10. Father’s Day 2022: परीक्षाफल- क्या चिन्मय ने पूरा किया पिता का सपना

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मानव और रत्ना को अपने बेटे चिन्मय पर गर्व था क्योंकि वह कक्षा में हमेशा अव्वल आता था, उन का सपना था कि चिन्मय 10वीं की परीक्षा में देश में सब से अधिक अंक ले कर उत्तीर्ण हो.

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Father’s day 2022: कुहरा छंट गया- रोहित क्या निभा पाया कर्तव्य

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Father’s Day 2022: अथ से इति तक- बेटी के विद्रोह ने हिला दी माता- पिता की दुनिया

‘‘चल न शांता, बड़ी अच्छी फिल्म लगी है ‘संगीत’ में. कितने दिन से घर से बाहर गए भी तो नहीं हैं…इन के पास तो कभी समय ही नहीं रहता है,’’ पति के कार्यालय तथा बच्चों के स्कूल, कालेज जाते ही शुभ्रा अपनी सहेली शांता के घर चली आई.

‘‘आज नहीं शुभ्रा, आज बहुत काम है. फिर मैं ने राजेश्वर को बताया भी नहीं है. अचानक ही बिना बताए चली गई तो न जाने क्या समझ बैठें,’’ शांता ने टालने का प्रयत्न किया.

‘‘लो सुनो, अरे, शादी को 20 वर्ष बीत गए, अब भी और कुछ समझने की गुंजाइश है? ले, फोन उठा और बता दे भाईसाहब को कि तू आज मेरे साथ फिल्म देखने जा रही है.’’

‘‘तू नहीं मानने वाली…चल, आज तेरी बात मान ही लेती हूं, तू भी क्या याद करेगी,’’ शांता निर्णयात्मक स्वर में बोली.

निर्णय लेने भर की देर थी, फिर तो शांता ने झटपट पति को फोन किया. बेटी प्रांजलि के नाम पत्र लिख कर खाने की मेज पर फूलदान के नीचे दबा दिया और आननफानन में तैयार हो कर घर की चाबी पड़ोस में देते हुए दोनों सहेलियां बाहर सड़क पर आ गईं.

‘‘अकेले घूमनेफिरने का मजा ही कुछ और है. पति व बच्चों के साथ तो सदा ही जाते हैं, पर यह सब बड़ा रूढि़वादी लगता है. अब देखो, केवल हम दोनों और यह स्वतंत्रता का एहसास, मानो हर आनेजाने वाले की निगाह हमें सहला रही हो,’’ शुभ्रा चहकते हुए बोली.

‘‘पता नहीं, मेरी तो इतनी उलटीसीधी बातें सोचने की आदत ही नहीं है,’’ शांता ने मुसकरा कर टालने का प्रयत्न किया.

‘‘अच्छा शांता, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ समय के लिए हमारी किशोरावस्था हमें वापस मिल जाए. फिर वही पंखों पर उड़ते से हलकेफुलके दिन, सपनीली पलकें लिए झुकीझुकी आंखें…’’ शुभ्रा, अपनी ही रौ में बोलती चली गई.

‘‘शुभ्रा, हम सड़क पर हैं. माना कि तुझे कविता कहने का बड़ा शौक है, पर कुछ तो शर्म किया कर…अब हम किशोरियां नहीं, अब हम किशोरियों की माताएं हैं. कोई ऐसी बातें सुनेगा तो क्या सोचेगा?’’ शांता ने उसे चुप कराने के लिए कहा.

‘‘तू बड़ी मूर्ख है शांता, तू तो किशोरा- वस्था में भी दादीअम्मां की तरह उपदेश झाड़ा करती थी, अब तो फिर भी आयु हो गई, पर एक राज की बात बताऊं?’’

‘‘क्या?’’

‘‘कोई कह नहीं सकता कि तेरी 17-18 वर्ष की बेटी है,’’ शुभ्रा मुसकराई.

‘‘शुभ्रा, तू कभी बड़ी नहीं होगी, यह हमारी आयु है, ऐसी बातें करने की?’’

‘‘लो भला, हमारी आयु को क्या हुआ है…विदेशों में तो हमारे बराबर की स्त्रियां रास रचाती घूमती हैं,’’ शुभ्रा ने शरारत भरा उत्तर दिया.

इस से पहले कि शांता कोई उत्तर दे पाती, आटोरिकशा एक झटके के साथ रुका और दोनों सहेलियां वास्तविकता की धरती पर लौट आईं.

टिकट खरीदने के लिए लंबी कतार लगी थी. शुभ्रा लपक कर वहां खड़ी हो गई और शांता कुछ दूर खड़ी हो कर उस की प्रतीक्षा करने लगी. रंगबिरंगे कपड़े पहने युवकयुवतियों और स्त्रीपुरुषों को शांता बड़े ध्यान से देख रही थी. ऐसे अवसरों पर ही तो नए फैशन, परिधानों आदि का जायजा लिया जा सकता है.

फिल्म का शो खत्म हुआ. शांता भीड़ से बचने के लिए एक ओर हटी ही थी कि तभी भीड़ में जाते एक जोड़े को देख कर मानो उसे सांप सूंघ गया. क्या 2 व्यक्तियों की शक्ल, आकार, चालढाल इतनी अधिक मेल खा सकती है? युवती बिलकुल उस की बेटी प्रांजलि जैसी लग रही थी. ‘कहीं यह प्रांजलि ही तो नहीं?’ एक क्षण को यह विचार मस्तिष्क में कौंधा, पर दूसरे ही क्षण उस ने उसे झटक दिया. प्रांजलि भला इस समय यहां क्या कर रही होगी? वह तो कालेज में होगी. वह युवती कुछ दूर चली गई थी और अपने पुरुष मित्र की किसी बात पर खिलखिला कर हंस रही थी. शांता कुछ देर के लिए उसे घूर कर देखती रही, ‘नहीं, उस की निगाहें इतना धोखा नहीं खा सकतीं, क्या वह अपनी बेटी को नहीं पहचान सकती?’

पर तभी उसे खयाल आया कि प्रांजलि आज स्कर्टब्लाउज पहन कर गई थी और यह युवती तो नीले रंग के चूड़ीदार पाजामेकुरते में थी. शांता ने राहत की सांस ली, पर दूसरे ही क्षण उसे याद आया कि ऐसा ही चूड़ीदार पाजामाकुरता प्रांजलि के पास भी है. संशय दूर करने के लिए उस ने उस युवती को पुकारने के लिए मुंह खोला ही था कि शुभ्रा के वहां होने के एहसास ने उस के मुंह पर मानो ताला जड़ दिया. शुभ्रा लाख उस की सहेली थी पर अपनी बेटी के संबंध में शांता किसी तरह का खतरा नहीं उठा सकती थी. प्रांजलि के संबंध में कोई ऐसीवैसी बात शुभ्रा को पता चले और फिर यह आम चर्चा का विषय बन जाए, यह वह कभी सहन नहीं कर सकती थी. अत: वह चुपचाप खड़ी रह गई.

‘‘क्या बात है शांता, तबीयत खराब है क्या?’’ तभी शुभ्रा टिकट ले कर आ गई.

‘‘पता नहीं शुभ्रा, कुछ अजीब सा लग रहा है. चक्कर आ रहा है. लगता है, अब मैं अधिक समय खड़ी नहीं रह सकूंगी,’’ शांता किसी प्रकार बोली. सचमुच उस का गला सूख रहा था तथा नेत्रों के सम्मुख अंधेरा छा रहा था.

‘‘गरमी भी तो कैसी पड़ रही है…चल, कुछ ठंडा पीते हैं…’’ कहती शुभ्रा उसे शीतल पेय की दुकान की ओर खींच ले गई.

शीतल पेय पी कर शांता को कुछ राहत अवश्य मिली किंतु मन अब भी ठिकाने पर नहीं था. कुछ देर पहले के हंसीठहाके उदासी में बदल गए थे. फिल्म देखते हुए भी उस की निगाह में प्रांजलि ही घूम रही थी. किसी प्रकार फिल्म समाप्त हुई तो उस ने राहत की सांस ली.

अब उसे घर पहुंचने की जल्दी थी लेकिन शुभ्रा तो बाहर ही खाने का निश्चय कर के आई थी. पर शांता की दशा देख कर शुभ्रा ने भी अपना विचार बदल दिया और दोनों सहेलियां घर पहुंच गईं.

शांता घर पहुंची तो देखा, प्रांजलि अभी घर नहीं लौटी थी. उस की घबराहट की तो कोई सीमा ही नहीं थी. सोचने लगी, ‘लगभग 3 घंटे पहले प्रांजलि को देखा था, न जाने किस आवारा के साथ घूम रही थी? लगता है, यह लड़की तो हमें कहीं का न छोड़ेगी,’ सोचते हुए शांता तो रोने को हो आई.

जब और कुछ न सूझा तो शांता पति का फोन नंबर मिलाने लगी, लेकिन तभी द्वार की घंटी बज उठी. वह लपक कर द्वार तक पहुंची. घबराहट से उस का हृदय तेजी से धड़क रहा था. दरवाजा खोला तो सामने खड़ी प्रांजलि को देख कर उस की जान में जान आई, पर इस बात पर तो वह हैरान रह गई कि प्रांजलि तो वही स्कर्टब्लाउज पहने थी जो वह सुबह पहन कर गई थी. फिर वह नीले चूड़ीदार पाजामेकुरते वाली लड़की? क्या यह संभव नहीं कि उस ने प्रांजलि जैसी शक्लसूरत की किसी अन्य लड़की को देखा हो.

‘‘क्या बात है, मां? इस तरह रास्ता रोक कर क्यों खड़ी हो? मुझे अंदर तो आने दो.’’

‘‘अंदर? हांहां, आओ, तुम्हारा ही तो घर है,’’ शांता वहां से हटते हुए बोली, पर प्रांजलि के अंदर आते ही उस ने शीघ्रता से बेटी के कंधे पर लटकता बैग उतारा और सारा सामान उलट दिया.

नीला चूड़ीदार पाजामाकुरता बैग से बाहर पड़ा शांता को मुंह चिढ़ा रहा था. प्रांजलि भी मां के इस व्यवहार पर स्तब्ध खड़ी थी.

‘‘इस तरह छिपा कर ये कपड़े ले जाने की क्या आवश्यकता थी?’’ शांता का स्वर आवश्यकता से अधिक तीखा था.

‘‘मैं क्यों छिपा कर ले जाने लगी?’’ प्रांजलि अब तक संभल चुकी थी, ‘‘पहले से ही रखा होगा.’’

‘‘तुम अब भी झूठ बोले जा रही हो, प्रांजलि. कालेज छोड़ कर किस के साथ फिल्म देख रही थीं, ‘संगीत’ में? वह तो शुभ्रा मेरे साथ थी और मैं नहीं चाहती थी कि उस के सामने कोई तमाशा खड़ा हो, नहीं तो यह प्रश्न मैं तुम से वहीं करती,’’ शांता गुस्से से चीखी.

‘‘वहीं पूछ लेना था, मां. शुभ्रा चाची तो बिलकुल घर जैसी हैं. फिर एक दिन तो सब को पता चलना ही है.’’

‘‘अपनी मां से इस तरह बेशर्मी से बातें करते तुम्हें शर्म नहीं आती?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या किया है, मां? सुबोध और मैं एकदूसरे को प्यार करते हैं और विवाह करना चाहते हैं…साथसाथ फिल्म देखने चले गए तो क्या हो गया?’’

‘‘शर्म नहीं आती, ऐसा कहते? तुम क्या समझती हो कि तुम मनमानी करती रहोगी और हम चुपचाप देखते रहेंगे? आज से तुम्हारा घर से निकलना बंद…बंद करो यह कालेज जाना भी, बहुत हो गई पढ़ाई,’’ शांता ने मानो अपना आज्ञापत्र जारी कर दिया.

प्रांजलि पैर पटकती अपने कमरे में चली गई और स्तंभित शांता वहीं बैठ कर फूटफूट कर रो पड़ी.

Summer Special: ऐसे बनाए टेस्टी पनीर का चीला

पनीर का चीला स्‍वादिष्‍ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होता है. इसमें बेसन का भी इस्‍तेमाल होता है, इसलिए बेसन पनीर चीला भी कहते हैं. तो आज आपको पनीर चीला बनाने की विधि बताते हैं. इसे जरूर ट्राई कीजिए.

हमें चाहिए:

– बेसन (200 ग्राम)

– पनीर (75 ग्राम)

– प्याज 2 (बारीक कटा हुआ)

– लहसुन 6-7 कली (बारीक कटा हुआ)

– हरी मिर्च  04 (बारीक कटी हुई)

– हरा धनिया ( 01 छोटा चम्मच)

– लाल मिर्च (01 छोटा चम्मच)

– सौंफ ( 01 छोटा चम्मच)

– अजवायन ( 01 छोटा चम्मच)

– तेल ( सेंकने के लिये)

– नमक ( स्वादानुसार)

– अदरक ( 01 छोटा चम्मच)

बनाने का तरीका

– सबसे पहले पनीर को कद्दूकस कर लें और इसके बाद बेसन को छान लें.

– फिर उसमें पनीर के साथ सारी सामग्री मिला लें.

– अब मिश्रण में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते हुए उसका घोल बना लें.

– यह घोल पकौड़ी के घोल जैसा होना चाहिए, न ज्यादा पतला, न ज्यादा गाढ़ा.

– घोल को अच्छी तरह से फेंट लें और फिर उसे 15 मिनट के लिए ढ़क कर रख दें.

– अब एक नौन स्टिक तवा गरम करें और तवा गरम होने पर 1/2 छोटा चम्मच तेल तवा पर डालें और उसे पूरी सतह पर फैला दें.

– ध्यान रहे तेल सिर्फ तवा को चिकना करने के लिये इस्तेमाल करना है. अगर तवा पर तेल ज्यादा लगे,   तो उसे तवा से पोंछ दें.

– तवा गरम होने पर आंच कम कर दें और 2-3 बड़े चम्मच घोल तवा पर डालें और गोलाई में बराबर से        फैला दें. चीला की नीचे की सतह सुनहरी होने पर उसे पलट दें और उसे सेंक लें.

– इसी तरह सारे चीले सेंक लें, अब  आपकी पनीर चीला बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

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