Father’s Day Special: दीपिका-आलिया से जानें क्यों खास हैं पापा

फादर्स डे हर साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है इसके मनाने का उद्देश्य पिता को मान देना है. हालांकि यह परंपरा विदेशों से आया है, जहां अधिकतर वैवाहिक रिश्ते टूटने पर पिता बच्चे की परवरिश करते है, लेकिन आजकल हमारे देश में भी इसकी संख्या बढ़ी है. फादर्स डे को सिर्फ आम लोग ही नहीं बल्कि बौलीवुड सेलेब्स भी सेलिब्रेट करते हैं. तो चलिए इस मौके पर इन सेलेब्स से ही जानते हैं उनके पिता के बारे में कुछ खास बातें…

  1. दीपिका पादुकोण…

एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण अपने पिता प्रकाश पादुकोण के बहुत करीब है. जब उन्होंने अभिनय क्षेत्र में कदम रखा था तो उन्होंने सबसे पहले अपनी राय पिता को बताई थी और उन्होंने उसे उसकी परमिशन दी थी. वह कहती है कि मेरे पिता ने हमेशा मुझे प्रोत्साहन दिया है और आज किसी भी सेलिब्रेशन को मैं उनके साथ साझा करना पसंद करती हूं, उन्होंने मुझे हमेशा किसी भी काम को सौ प्रतिशत कमिटमेंट करने की सलाह दी है. मेरी जिंदगी में उनकी बहुत अहमियत है.

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  1. आलिया भट्ट…

आलिया भट्ट अपने पिता महेश भट्ट के बहुत नजदीक है. वह कहती है कि फिल्मों में आने के बाद उनके और मेरे रिश्ते काफी गहरे हुए है. मेरे पिता बहुत ही साधारण जिंदगी जीना पसंद करते है. उन्हें मैंने हमेशा चप्पलों के साथ चलते हुए देखा है. मैंने उन्हें सबसे पहले एक शू प्रेजेंट किया था,जिसे उन्होंने सम्हाल कर रखा है. मैं हर दिन उनके साथ बिताना पसंद करती हूँ. वे मेरे आदर्श हैं.

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  1. अक्षय कुमार…

अक्षय कुमार के पिता हरि ओम भाटिया आर्मी औफिसर थे. उनके साथ उन्होंने बहुत अच्छा समय बिताया. वे कहते है कि मेरे अनुशासित जीवन का राज मेरे पिता है, जिन्होंने बचपन से मुझे इसकी ट्रेनिंग दी. वे मेरे आदर्श है. उन्हें हर तरह के मनोरंजक फिल्में पसंद थी. वे स्ट्रिक्ट पिता थे ,पर हर तरह के काम को प्रोत्साहन देते थे. मुझे याद आता है कि मेरी फिल्म ‘वक्त- द रेस अगेंस्ट टाइम’ के समय शूटिंग करना मेरे लिए बहुत कठिन था ,क्योंकि अभिनय और रियल लाइफ दोनों एक साथ चल रहे थे. फिल्म में अमिताभ बच्चन को कैंसर से लड़ते हुए दिखाया गया था जब कि रियल लाइफ में भी मेरे पिता भी कैंसर से जूझ रहे थे. ये फिल्म मैंने उनको समर्पित की है.

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  1. शाहिद कपूर

शाहिद कपूर की मां एक्ट्रेस नीलिमा अज़ीम, एक्टर पंकज कपूर से तब अलग हुए जब वह बहुत छोटे थे. वे कहते है कि मेरे पिता बहुत ही अच्छे पिता है. ये मैंने तब जाना जब मैं पिता बना. ये सही है कि जब मैं सिर्फ 2 साल का था, तब मेरे माता-पिता अलग हो गए थे. मुझे उस समय की कोई बात याद नहीं. जब मैं 17-18 साल का हुआ, तब मेरे और पिता के बीच में नजदीकियां बढ़ी. वह मेरे जीवन में बहुत अहमियत रखते है. मैं अपने पिता और मेरे बच्चों को साथ देखना पसंद करता हूं. वह मुझे बहुत ख़ुशी देती है.

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  1. कृष्णा भारद्वाज

कृष्णा कहते है कि मैं रांची से हूं और मेरे पिता का नाम डौ. अनिकेत भारद्वाज है. मेरे अंदर अभिनय की प्रतिभा को मैंने अपने पिता में भी देखा है. वे एक एक्टर,राइटर और डायरेक्टर है. हिंदी की ट्रेनिंग मुझे बचपन से ही मिली है, इसलिए मैं तेनाली राम की भूमिका अच्छी तरह से निभा पा रहा हूं, क्योंकि इसमें शुद्ध हिंदी बोलना पड़ रहा है. इस बार मैं पिता से दूर हूं,पर हमेशा उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता है.

एडिट बाय- निशा राय

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Father’s Day 2019: जीवन की पाठशाला के प्रधानाचार्य हैं पापा

गीतांजलि चे

मेरे पिता…

मां, अगर किसी बच्चे के जीवन की पहली पाठशाला है तो पिता पाठशाला के प्रधानाचार्य हैं. उनकी समूची जिंदगी का एक ही मकसद होता है बच्चे को इंसान बनाना. कभी बोल कर तो, कभी बिना बोले वो अपनी संतान को कोई न कोई शिक्षा देते हैं.

हम बच्चे की तरह मेरे आदर्श मेरे पापा हैं. जिन्होंने हम सभी भाई-बहनों को जीना सिखाया. अनुशासन हो या समय का प्रबंधन ये गुण हमें पापा से विरासत में मिला है. वक्त या पैसे की कीमत क्या होती है ये हम सब ने पापा को देख कर ही सीखा है. काम के प्रति इमानदारी और समर्पण का जो बीज बचपन से हमारे दिमाग में बोया गया वो आज भी संस्कार बन कर हमारे साथ है. संस्कार देकर भी कभी उसके नाम पर दब्बू बनना नहीं सिखाया.

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जब कभी पापा गुस्सा होकर भी कुछ कहतें हैं तो उसमें जीवन का सार छिपा होता है. जीवन में किस चीज़ की कीमत क्या होती है, किस बात को कितना महत्व दिया जाना चाहिए यह सब बोलते बतियाते हमें समझा देते हैं. अपनी जिंदगी को हमें अपने शर्तों पर जीने की शिक्षा दी.

भले ही कोई आसमान की बुलंदियों को क्यों न छू ले पर जमीन पर कैसे बिलकुल सामान्य हो कर चलना चाहिए. यह बचपन से पापा को देख देख कर ही सिखा है. हमें स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर तो बनाया पर कभी अहंकारी नहीं बनने दिया.

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Father’s Day 2019: दुनिया का सबसे मजबूत रिश्ता होता है वो…

कंचन…

मेरे पापा…..

मेरे हर कदम को अपने हाथों से थाम लिया
मेरी आंखों से गिरने वाले हर एक आंसू को अपने नाम किया
दुनिया का सबसे मजबूत रिश्ता होता है वो
इस धरती में पिता कहते हैं जिनको

मेरी हर जरूरत को पूरा किया मेरे कहने से पहले,
मेरी हर तकलीफ को दूर किया मुझ तक आने से पहले,
मेरी सफलता के लिए हमेशा ढाल बनकर खड़े रहे
फिर भी मेरी हर जीत को सिर्फ मेरा नाम दिया

इस दुनिया में रिश्ते तो कई होते हैं
मगर पिता रिश्ता का सबसे अनमोल कहलाता है
जो जीता है सिर्फ अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए
और उनकी ख्वाहिशों को पूरा करने में बूढ़ा हो जाता है…..

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Father’s Day 2019: “थैंक्यू डैडू”

सुनीता पवार, (रोहिणी-नई दिल्ली)

अपने डैडू (पापा) को मैंने हमेशा अपना प्रेरक समझा है, अपना खुदा समझा है क्योंकि उन्होंने हम दोनों भाई-बहन के पालन पोषण में अपने सामर्थ्य से कहीं अधिक मेहनत और काम किया पर उफ्फ तक नहीं करी. दफ्तर से सीधे वह ट्यूशन पढ़ाने चले जाते थे, इतवार को भी वह घर नहीं रहते थे, रविवार को भी वह इनशोरेंस के काम में व्यस्त रहते.

मैं अपने डैडू को जब इतनी मेहनत करते देखती तो सोचती “डैडू एक दिन मैं आपको कुछ बन कर दिखाऊंगी, मैं कमाऊंगी और आपको सारे आराम दूंगी, आपको हवाई यात्रा पर लेकर जाऊंगी” पता नहीं मैं कितने ही सपने बुनती.

पढ़ाई में करते थे मदद…

स्कूल में मैं हमेशा प्रथम स्थान पर रहती, खेल-कूद में भी मैने बहुत इनाम जीते. मेरे डैडू की अंग्रेजी बहुत अच्छी थी, चाहे कितनी ही देर रात डैडू घर लौटें लेकिन वह मेरे कहने से मुझे अंग्रेज़ी का पाठ जरूर समझाते और अगले दिन जब वह पाठ मैं पूरी कक्षा के सामने अर्थ सहित पढ़ती तो अध्यापिका भी मेरी तारीफ किये बिना न रहती.

एक दिन स्कूल में अंग्रेज़ी कविता बोलने की प्रतियोगिता थी, मेरे पिताजी ने मेरे लिए एक बहुत ही प्रेरणादायी अंग्रेज़ी कविता लिखी जिसका शीर्षक था ” How should students be happy (विद्यार्थियों को कैसे प्रसन्न रहना चाहिए)?”

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जिस दिन अंग्रेज़ी कविता की प्रतियोगिता थी उस दिन मेरे डैडू भी स्कूल में उपस्थित थे, मेरी कविता को प्रथम स्थान ही नहीं मिला बल्कि स्कूल की वार्षिक पत्रिका में भी शामिल करने की घोषणा हुई. मेरे डैडू बहुत खुश थे, दूर खड़े तालियों से अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रहे थे. मुझे जो इतनी वाह-वाही मिल रही थी वो तो केवल मैं ही जानती थी कि ये सारी मेहनत तो मेरे डैडू की थी, मैं चिल्ला-चिल्ला कर कहना चाहती “थैंक्यू डैडू” पर ऐसा चाह भी न कर पाई.

हर मोड़ पर की मदद…

जीवन में ऐसे कितने ही मुकाम आये जिसका श्रेय डैडू को मिलना चाहिए था पर वो मुझे मिला, फिर चाहे फैशन शो प्रतियोगिता के लिए कपड़ों की व्यवस्था करना हो, चाहे डांस शो प्रतियोगिता अभ्यास के लिए अच्छी अकेडमी चुनना हो, मेरी हर जीत के पहले हक़दार मेरे डैडू ही तो थे.

जब नौकरी के लिए मेरा पहला इंटरव्यू था तब देर रात तक मेरे डैडू मुझे हर सवाल का जवाब देने के तरीके समझाते रहे, उन्होने ये भी समझाया कि यदि कोई सवाल समझ न आये या उसका जवाब न आता हो तब निःसंकोच माफी मांगते हुए कह देना “सर! आई एम सौरी”, डरना बिल्कुल नहीं और निडरता से इंटरव्यू में अपने आप को प्रेजेंट करना .

नौकरी मिलने की खुशखबरी सबसे पहले मैंने डैडू को ही दी थी, डैडू उस दिन घर लौटते समय लड्डुओं का डिब्बा साथ लाये, पहले भगवान को भोग लगाया और फिर सबको बांटने लगे, मैंने फटाफट डैडू के मुंह में लड्डू डाल दिया, इससे पहले मैं डैडू को थैंक्यू कहती उन्होंने मुझे ही अपना गौरव, अपना अभिमान घोषित कर दिया.

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जब पहली सैलरी से खरीदा तोहफा… 

मेरी पहली कमाई का पहला चेक मैंने अपने डैडू के हाथों में सौंपा और आदतानुसार उन्होंने भगवान के चरणों में. मेरी बरसों की ख्वाहिश थी कि मैं अपनी पहली कमाई से डैडू के लिए कोई उपहार लूं, मैंने उनके और मां के लिए हाथ-घड़ी का जोड़ा खरीदा. उपहार उनको बहुत पसंद आया पर साथ ही मुझे खूब डांट भी पिलाई, वो जानते थे कि मुझे घड़ी पहनने का बहुत शौक है और उनके पास पहले से ही घड़ी है, मैने भी उनको कह दिया “डैडू ! आपके पास स्ट्रेप वाली घड़ी है और उपहार में जो घड़ी है वह चेन वाली घड़ी है” क्योंकि मैं भी अच्छी तरह से जानती थी कि उनको गोल्डन चेन वाली घड़ी पहनने की बड़ी चाह थी.

ऐसे पूरा किया पापा का सपना…

मेरी शादी भी उन्होंने पूरे धूम-धाम से की जैसे हर पिता अपनी सामर्थ्य से थोड़ा ज्यादा अपनी बेटी के लिए करता है..बस बिल्कुल वैसे ही.. भाग्यवश मेरे पतिदेव भी बहुत सरल और सवेंदनशील स्वभाव के निकले. मेरे पुत्र के जन्म के बाद हम सबने मिलकर शिरडी जाने का प्लान बनाया, हम मुंबई तक हवाई जहाज से गये और वहां से आगे टैक्सी द्वारा. डैडू पहली बार हवाई यात्रा कर रहे थे, वह बहुत ही खुश और उत्साहित थे, मां को तरह-तरह के निर्देश दे रहे थे, डैडू को हवाई यात्रा करवाने का मेरा सपना भी पूरा हो गया था

रिटायरमेंट के बाद शुरू की नई पहल…

समय बीतते देर न लगी, मेरे डैडू अब सरकारी नौकरी से रिटायर हो गए हैं. अब तो दांत भी असली नहीं और आंखें भी कमजोर हो गईं थी. लेकिन जिंदादिली की मिसाल मेरे डैडू और अन्य सीनियर सिटीजन्स ने मिलकर एक संगठन बनाया, वह रोज सुबह पार्क में मिलते हैं, योगा करते हैं, गीत गाते हैं, छोटी छोटी पार्टीज करते हैं. जल्द ही एक पब्लिशर ने इस सीनियर सिटीजन्स एसोसिएशन की एक हिंदी किताब छपवाने का फैसला किया. सभी बुजुर्गों को अपने अनुभव लिखने को कहा.

सालों बाद ऐसे की पापा की मदद…

देर रात डैडू का फोन मेरे पास आया, उन्होंने किताब वाली सारी बात मुझे बताई. उन्होंने मुझे कहा “बेटू ! तेरे तो हिंदी लेख और कहानियां अखबारों में छपती रहती हैं, तेरी हिंदी बहुत अच्छी भी है इसलिए सीनियर सिटीजन वाला हिंदी लेख भी तुझको ही लिखना है, मुझे तो अब अच्छे से दिखाई भी नही देता और न ही लिख पाता हूं”.

मुझे भी अपने बचपन का वह दिन याद आया, जिस दिन अंग्रेज़ी कविता की प्रतियोगिता थी और मैंने भी डैडू को ऐसे ही कहा था और उन्होंने स्वयं ही शीर्षक चुना था और प्रेरणादायी कविता लिख कर मुझे विजेता बनाया था. मैंने देर रात जाग कर उनके लिए लेख लिखा और सुबह की पहली किरण के साथ उनको व्हाट्स अप पर भेज दिया.

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डैडू का फोन आया, वह बोले “बेटू, मुझसे पढ़ा नहीं जा रहा है पर मैं ऐसे ही पब्लिशर को भेज देता हूं, वैसे शीर्षक क्या दिया है तूने?”

मैंने कहा “डैडू, बेफिक्र हो कर भेज दीजिये और शीर्षक वो ही है जो आपने मेरी कविता के लिए चुना था बस विद्यार्थीयों की जगह सीनियर सिटीजन्स हो गया है, मतलब ‘सीनियर सिटीजन्स को कैसे प्रसन्न रहना चाहिए?” . शीर्षक सुनते ही वह बोले “अरे वाह ! मैं ये ही शीर्षक कहने वाला था”.

जो हूं आपकी वजह से हूं…

किताब के पहले पन्ने पर उनके फोटो और उनके नाम के साथ यह लेख छपा तो वह खुशी से फूले न समाये. वह बोले “बेटू ये सारी तेरी मेहनत थी, और देखो तो, मैं ऐसे ही हीरो बन गया” मैने कहा “डैडू, ये मेरी नहीं सब आपकी मेहनत है, आपकी मेहनत ने ही आज मुझे इस लायक बनाया है, मेरी हर जीत के पीछे आपकी मेहनत थी डैडू, मेहनत आप करते थे और सुपर हिरोइन मैं बन जाती थी , मेरी हर तरक्की और उन्नति के लिए ‘थैंक्यू डैडू”.

Father’s Day 2019: सबसे प्यारे ‘मेरे पापा’

तथागत कुमार, (नई दिल्ली)

मेरे पापा बहुत ही मेहनती, दयालु, प्यारे और सही का साथ देने वाले इंसान हैं, उनका नाम श्री मान राकेश कुमार योगी है. वे दिन में 14 घंटे काम करते हैं फिर भी थकान उनके चेहरे पर नहीं दिखती. वे अपनी जरूरतों को छोड़ पहले हमारा ध्यान रखते हैं.

मम्मा ने कैंसर के दौरान नहीं खोई हिम्मत…

जब मेरी मम्मा को मल्टीपलमायलोमा (ब्लड कैंसर) जैसी खतरनाक बीमारी हो गई थी और डाक्टरों ने भी जवाब दे दिया था तब पापा ही थे जिन्होंने हिम्मत नहीं हारी, मेरी मम्मा को भरपूर सपोर्ट किया… अपने प्यार से, अपने साथ से. मेरी मम्मा की विल पावर को बढ़ाने में पापा ने हमेशा मदद की. आज मेरी मम्मा बिल्कुल ठीक हो गई हैं. मां की बीमारी के वक्त पापा ने मुझे कभी भी मम्मा का मेरे पास न होने का अहसास तक नहीं होने दिया.

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हर जन्म में आपका बेटा होना चाहूंगा…

मैं उस वक्त मात्र पांच साल का था. 2016 में मम्मा जब ठीक हो गयी तब हम सबको बहुत खुशी हुई, घर में जश्न भी हुआ. पापा ने हमेशा हमारा ख्याल रखा, पर  वे हमें थोड़ा कम ही समय दे पाते हैं क्योंकि पापा अपनी मेहनत और काम करके हमारी जिन्दगी को कुशल और बेहतर रखना चाहतें हैं. आप दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं और मेैं हर जन्म में आपका ही बेटा होना चाहूंगा. लव यू पापा…

मैं अपनी इस कहानी के माध्यम से संदेश देना चाहता हूं कि अपने मां-पापा का हमेशा ध्यान रखें, आप कभी भी साथ मत छोड़ना क्योंकि उन्होंने भी कभी आपका साथ नहीं छोड़ा और ना छोड़ेंगे…

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Father’s Day 2019: वह बात जो कभी पापा से कह नहीं पायी…

‘गृहशोभा’ दे रहा है आपको मौका अपनी बात उन तक पहुंचाने का. अपनी कहानी आप हमे इस ईमेल पर भेजें- grihshobhamagazine@delhipress.in

Father’s Day 2019: घर,परिवार और बच्चों की नींव हैं पिता

पूनम झा,  (कोटा, राजस्थान)

घर के मजबूत स्तम्भ होते हैं पिता,

बच्चों की ताकत हैं पिता, भविष्य की उम्मीद हैं पिता,

संघर्ष की धूप में छत्रछाया हैं पिता,

पथप्रदर्शक हैं पिता, कंटक भरी राहों में

मजबूत साया हैं पिता, मां की पदचाप हैं पिता,

मां की आवाज हैं पिता, हर नाउम्मीद पर

ढाढ़स हैं पिता, बच्चा यदि पिता की लाठी है,

तो उस लाठी की मजबूती हैं पिता,

घर,परिवार और बच्चों की नींव हैं पिता,

पिता के लिए जितना कहें वो कम है क्योंकि

उनसे ही तो अस्तित्व है हमारा ।

पिता को मेरा सादर नमन

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जयति जैन “नूतन” (भोपाल)

पापा से शिकायतें… 

जब बच्चे थे तब कई सपने थे और ढेर सारी ख्वाहिशें, जिनकी पूरी ना होने पर पापा से बहुत शिकायतें रही जैसे हर साल कहीं घूमने जाना, पंद्रह दिन में एक बार होटल में खाना आदि. यह छोटी-छोटी सी चीजें थी, जो उस समय बहुत बड़ी हुआ करती थी. हमारे गांव में कोई शुद्ध शाकाहारी होटल भी नहीं था, अगर होटल जाना है तो मऊ रानीपुर जाओ या झांसी. ये अलग समस्या थी.

काम ही सब कुछ है…

पापा पेशे से डौक्टर हैं और एक ऐसे डौक्टर हैं जिनके लिए मरीज पहले आता है. मरीज की जान उसका दर्द उसकी परेशानी घर से भी पहले. वह मरीज देखने के लिए कभी-कभी रात भर जागते तो कभी सुबह का नाश्ता/खाना उनका दोपहर 3:00 बजे हो रहा है. दिन रात मरीजों की तरफ से उनका ध्यान नहीं हटता है और आज भी यही है. लेकिन पापा ने जो दिया व शायद ही कोई पिता दे पाए.

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हर इच्छा की पूरी…

वह हमें ज्यादा समय तो नहीं दिए लेकिन कमी कोई नहीं होने दी. हौस्टल में जहां बच्चों को एक सीमित पौकेट मनी मिलती थी, वही मेरे पास हजारों रुपए होते थे खर्च करने पर उन्होनें कभी हिसाब भी नहीं मांगा. पापा ने कभी किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी, जो चाहा वह मंगा दिया. खाने-पीने से लेकर, गाड़ी, कपड़े बिना मांगे मिले लेकिन वह घूमने जाने वाली बात हमेशा खटकती रही कि सभी के पापा 6 महीने में या फिर साल भर में एक बार जरूर घूमने जाते हैं लेकिन यहां तो पापा को समय ही नहीं है.  और आज जब उनसे दूर हूं, शादी हो चुकी है तब समझ आता है कि जितना पापा ने किया उतना कोई भी पिता नहीं कर सकता क्योंकि मुंह पर बात आती नहीं थी की वह पूरी हो जाती थी.

पैसे खर्च करते समय कभी सोचा नहीं कि पापा कितनी मेहनत करते हैं, यह कितनी मेहनत का पैसा है. लेकिन आज जब खुद के परिवार को संभाल रही हूं, तब समझ आता है पैसों की कीमत का.

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आप सबसे अच्छे हो पापा…

पापा आपसे मैंने कभी नहीं कहा, शायद कभी कभी नहीं पाऊं कि आप सबसे अच्छे पापा हैं जो शादी के बाद भी मेरी छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखते हैं. मैंने जब ऐसे लोगों को देखा, जिनके पिता उन्हें कहीं बाहर घुमाने तो ले जाते हैं लेकिन उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए बार बार सोचते हैं. तब मुझे एहसास हुआ कि जो आपने किया, जो आपने दिया वह कोई पिता नहीं दे सकता. मेहनत क्या होती है वह आप से सीखा है.

पापा से रही ये शिकायत…

पापा से एक और हमेशा शिकायत रही कि वह छोटे भाई को कभी नहीं डांटते थे, हमेशा मुझे ही डांट पड़ी. लेकिन कुछ समय पहले जब यही बात मैंने उनको बातों बातों में बोली, तब उन्होंने कहा कि- तुम्हें क्या पता की कितनी बुरी तरीके से उसको डांट पड़ती है, बस तुम्हारे सामने नहीं पड़ती. तब वहीं पर मौजूद मेरे मामा ने कहा कि “लड़कियों को पालने का और लड़कों को पालने का तरीका अलग अलग होता है, लड़के किस तरह डांट खाते हैं यह वही जानते हैं.” तब मुझे एहसास हुआ शायद इस बात पर भी मैं गलत थी क्योंकि मां बाप अपने बच्चों को इसीलिए डांटते हैं कि वह गलत रास्ते पर ना जाए.

थैंक यू पापा फ़ौर एवरीथिंग.

Father’s Day 2019: इस फादर्स-डे पर दुनिया को बताइए अपने पापा की कहानी

Father’s Day 2019: “अभी तो जानने लगा था मैं तुम्हे फिर क्यों इतनी जल्दी चले गए”

मोहित राठौर, (दिल्ली)

अभी तो जानने लगा था मैं तुम्हे
फिर क्यों इतनी जल्दी चले गए
अभी तो समझने लगा था मैं तुम्हे
फिर क्यों मुझे अकेला छोड़ के चले गए
अभी तो तुम्हारी डांंट समझने लगा था मैं
फिर क्यों मुझे प्यार से वंचित कर चले गए
अभी तो अपनी गोद में खिलाया करते थे तुम हमे
फिर क्यों हमें बीच भंवर में छोड़ चले गए
अभी तो तुम्हारी जरूरत महसूस होने लगी थी हमें
फिर क्यों दुनिया को अलविदा कह गए
आखिर क्यों पा??

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Fathers Day 2019: जब पिता जी ने की अंजान मुसाफिर की मदद

सरिता दीक्षित, (आगरा) 

मेरे पिता जी का जीवन ‘सादा जीवन उच्च विचार’ से प्रेरित था. वह एक ईमानदार व्यक्ति थे और जरूरतमंद की यथाशक्ति मदद करते रहते थे. कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति उनके घर से खाली हाथ नहीं जाता था. वे अक्सर यह बात कहते थे कि ‘ग़रीबी क्या होती है’ यह तुम सभी ने नहीं देखी. अपनी इसी आदत की वजह से वे अपने लिए कभी धन-दौलत का संग्रह नहीं कर पाए. पिता जी की ईमानदारी से जुड़ी एक बात मैं साझा करना चाहती हूं.

बात करीब 40 वर्ष पहले की है. मेरे घर के सामने एक बड़े से नीम के पेड़ के नीचे एक कुआं था. कुएं से पानी भरने के लिए रस्सी व बाल्टी रखी रहती थी. सामने सड़क से गुजरने वाले राहगीर के लिए उस समय पानी पीने का एकमात्र यही साधन था. कुएं के पास ही छाया में बैठने के लिए पिता जी ने खपरैल की झोपड़ी बनवाई थी.

Father’s Day 2019: इस फादर्स-डे पर दुनिया को बताइए अपने पापा की कहानी

जब पिता जी ने की अंजान मुसाफिर की मदद…

एक दिन दोपहर में एक यात्री ने पानी पीने के लिए बस रुकवाई. उसके हाथ में एक बैग था. उसने पानी पिया और गलती से कुएं के पास रखा हुआ अपना बैग छोड़कर बस में बैठ कर चला गया कुछ समय बाद मेरे पिता जी कुएं की तरफ गये तो उन्हें वह बैग दिखाई दिया. उन्होंने इधर-उधर देखा तो वहां कोई भी नहीं दिखा.

पिता जी ने बैग खोल कर देखा तो वह सोने-चांदी के आभूषण से भरा हुआ था. पिता जी ने बैग घर पर ले जाकर रख दिया. वापस कुएं के पास बैठ कर बैग वाले यात्री का इन्तजार करने लगे. कुछ समय बाद एक आदमी बदहवास सा बस से उतरा. वहां पिता जी को बैठा हुआ देखकर बैग के बारे पूछने लगा. बात करने के बाद जब पिता जी आश्वस्त हो गए तो घर से लाकर बैग वापस किया.

आज भी साथ हैं उनके आदर्श…

वह यात्री एक सुनार थे और पास के बाजार में उनकी दुकान थी. सुनार ने अपने सभी परिचित को इस घटना के बारे में बताया. अब पिता जी इस दुनिया में नही हैं लेकिन उनके विचार व आदर्श हमेशा हमारे साथ हैं. मुझे उन पर बहुत गर्व है.

Father’s Day 2019: इस फादर्स-डे पर दुनिया को बताइए अपने पापा की कहानी

पापा, बाबा, डैड, अब्बू या पिता जी…

नाम भले ही अलग हो, लेकिन हर शब्द में प्यार समाया है. अपने सुख-दुख भूलकर जो हरदम हमारी खुशियों के लिए जीता है. वो अपना प्यार तो नहीं दिखाते, लेकिन उनका साया हमे हर मुश्किल से बचाता है. लेकिन जरूरी नहीं है कि जन्म देना वाला इंसान ही पिता कहलाए… जिंदगी में कई बार ऐसा होता है जब किसी मुश्किल में कोई आपकी मदद करता है और आपको अपने पिता की याद आ जाती है…

वो कोई भी हो सकता है दादा जी, ताया, चाचा जी, बड़ा या छोटा भाई, कोई टीचर या कोई सीनियर, कोई दोस्त या आपका हमसफर… वो हर शख्स जिसने बुरे दौर में आपका साथ दिया… आपको मुसीबत से बाहर निकाला… मुश्किल घड़ी में आपको रास्ता दिखाया…

तो इस ‘फादर्स डे’ पर दुनिया को बताइए अपने पापा से जुड़ी वो कहानी जिसने आपकी जिंदगी पर गहरी छाप छोड़ी हो. वो बातें जो आप कभी अपने पिता से नहीं कह पाए.

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