फातिमा बीबी: 10 साल बाद भी क्यों नहीं भुला पाई वह

राजपूताना राइफल्स के मुख्यालय में अपने केबिन में बैठे कर्नल अमरीक सिंह सरकारी डाक देख रहे थे. एक पत्र उन की नजरों में ऐसा आया जो सरकारी नहीं था. वह एक विदेशी और प्राइवेट पत्र था. पत्र पर लगे डाक टिकट से उन्होंने अनुमान लगाया कि या तो यह पत्र किसी गल्फ देश से है या पड़ोसी देश पाकिस्तान से. उर्दू में लिखे शब्दों से यही लगता था. उन्हें इन देशों से पत्र कौन लिख सकता है, अपने दिमाग पर जोर देने पर भी उन्हें दूरदूर तक ऐसा कोई अपना याद नहीं आया, जो विदेश में जा कर बस गया हो.

पत्र खोला तो वह भी उर्दू में था. वे जब पहली क्लास में स्कूल गए थे तो पंजाब के स्कूलों ने उर्दू पढ़ाना बंद कर दिया था. पत्र में क्या लिखा है, वे कैसे जान पाएंगे. दिमाग पर जोर दिया कि उन की रैजिमैंट में ऐसा कौन है जो उर्दू पढ़नालिखना जानता हो. अरे, हां, कैप्टन नूर मुहम्मद, वह अवश्य उर्दू जानता होगा. मुसलमान होने के साथसाथ वह लखनऊ का रहने वाला है जहां उर्दू खासतौर पर पढ़ी और लिखी जाती है.

उन्होंने घंटी बजाई. केबिन के बाहर खड़ा जवान आदेश के लिए तुरंत हाजिर हुआ.

‘‘कैप्टन नूर मुहम्मद से कहिए, मैं ने उन को याद किया है.’’

जवान आदेश ले कर चला गया. थोड़ी देर बाद कैप्टन नूर मुहम्मद ने कर्नल साहब को सैल्यूट किया और सामने की कुरसी पर बैठ गए.

कर्नल साहब ने उन की ओर देखा और पत्र आगे बढ़ा दिया.

‘‘आप तो उर्दू जानते होंगे? आप इसे पढ़ कर बताएं कि पत्र कहां से आया है और किस ने लिखा है?’’

‘‘जी, जरूर. यह पत्र लाहौर, पाकिस्तान से आया है और लिखने वाली हैं कोई बीबी फातिमा.’’

‘‘ओह.’’

‘‘सर, आप तो पाकिस्तान कभी गए नहीं, फिर फातिमा बीबी को आप कैसे जानते हैं?’’

‘‘सब बताऊंगा, पहले पढ़ो कि लिखा क्या है.’’

‘‘जी, जरूर. लिखा है, कर्नल अमरीक सिंह साहब को फातिमा बीबी का सलाम. यहां सब खैरियत है, उम्मीद करती हूं, सारे परिवार के साथ आप भी खैरियत से होंगे. परिवार से मेरी मुराद रैजिमैंट के अफसरों, जूनियर अफसरों और जवानों से है.

‘‘मुझे सब याद है, मैं आप सब को कभी भूल ही नहीं पाई. वह खूनी खेल, चारों तरफ खून ही खून, लाशें ही लाशें, लाशें अपनों की, लाशें बेगानों की, बूढ़े मां, बाप, भाइयों की लाशें, टुकड़ों में बिखरी पड़ी थीं. मैं बहुत डरी हुई थी जब आप के जवानों की टुकड़ी ने मुझे रिकवर किया था. आप ने जिस तरह मेरी हिफाजत की थी, तब से मेरा आप के परिवार से संबंध बन गया था. मैं इस संबंध को कभी भूल नहीं पाई. इस बात को 10 साल होने जा रहे हैं. आज मैं हर तरह से खुश हूं. मेरी खुशहाल जिंदगी है, जो आप की देन है, मैं इसे कभी भूल नहीं पाई और कभी भूल भी नहीं पाऊंगी.

‘‘जब आप को मेरा यह खत मिलेगा, मैं दिल्ली के लिए रवाना हो चुकी होऊंगी. वहां मेरी खाला (मौसी) रहती हैं जिन का पता भी लिख रही हूं. मुझे पता नहीं, आप हिंदुस्तान में कहां हैं पर मैं जानती हूं, आप कुछ ऐसा जरूर करेंगे कि मैं आप से और आप के परिवार से मिल सकूं.

‘‘आप की खैरियत चाहने वाली.

फातिमा.’’

कैप्टन नूर मुहम्मद ने देखा, शेर सा दिल रखने वाले कर्नल साहब, जिन्हें भारत सरकार ने उन की बहादुरी के लिए ‘महावीर चक्र’ से नवाजा है, यह छोटा सा पत्र सुन कर पिघल गए, आंखें नम हो गईं. यह आश्चर्य ही था कि विकट से विकट परिस्थितियों में चट्टान की तरह खड़ा रहने वाला व्यक्ति इस प्रकार भावनाओं में बह जाएगा.

‘‘सर, आप की आंखों में आंसू? और यह फातिमा कौन है?’’

‘‘क्यों भई, मैं भी इंसान हूं. मेरी आंखों में भी आंसू आ सकते हैं. फातिमा की एक लंबी कहानी है. आप रैजिमैंट में 65 की लड़ाई के बाद आए.

‘‘65 की लड़ाई का अभी सीजफायर हुआ ही था. 22 दिन यह लड़ाई चली थी. हमारी रैजिमैंट पाक के सियालकोट सैक्टर के ‘अल्लड़’ गांव में थी. ‘अल्लड़’ रेलवे स्टेशन हमारे कब्जे में था. वही रैजिमैंट का मुख्यालय भी था. सियालकोट से डेराबाबा नानक तक पाकिस्तान की मिलिटरी सप्लाई बिलकुल रोक दी गई थी. रैजिमैंट मोरचाबंदी मजबूत करने और छिपे हुए दुश्मनों को सफाया करने में व्यस्त थी. गांव के एक घर से अस्तव्यस्त और क्षतविक्षत अवस्था में यह फातिमा हमारी एक पैट्रोलिंग पार्टी को मिली जिस की कमांड मेजर रंजीत सिंह के हाथ में थी. फातिमा के परिवार के सारे लोग लड़ाई में मारे गए थे. पाक के फौजी फातिमा के पीछे पड़े हुए थे. शायद उस की इज्जत लूटने के बाद मार देते. पर हमारी टुकड़ी से उन की भिड़ंत हो गई. कुछ मारे गए, कुछ भाग गए. डरी, सहमी और जख्मी फातिमा को रिकवर कर लिया गया. जब उसे मेरे सामने पेश किया गया तो वह डर के मारे थरथर कांप रही थी. कपड़े जगहजगह से फटे हुए थे, शरीर पर जख्म थे जिन से खून बह रहा था. उस की आंखों से भी झलक रहा था कि वह अपने फौजियों से बड़ी मुश्किल से बची है, अब तो वह दुश्मन के खेमे में है.

‘‘उस के डर को मैं बखूबी समझ रहा था. वह एकदम पत्थर हो गई थी. मैं ने मेजर रंजीत से कहा, तुरंत डाक्टर को भेजो और इस के शरीर को कंबल से ढंकने का प्रबंध करो. आदेश का पालन हुआ, कंबल से जब उस ने शरीर को ढक लिया तो अनायास ही मेरे मुख से निकला, ‘माफ करना, बहन, इस समय हमारे पास इस से अधिक कुछ नहीं है. लड़ाई के मैदान में जनाना कपड़े नहीं मिलेंगे.’ पहली बार उस ने अपनी बड़ीबड़ी आंखों से मेरी ओर देखा. पहली बार मैं ने भी उसे गौर से देखा. गोरा रंग, सुंदर व कजरारी आंखें. सांचे में ढला शरीर, ऐसी सुंदरता मैं ने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी थी.

‘‘वह थोड़ी देर मुझे देखती रही फिर उस की आंखें छलछला आईं. उस की सीमा का बांध टूट गया था. परिवार को खोने का दुख, दुश्मनों के हाथों पड़ने का गम. भविष्य की अनिश्चितता. जीवन में अंधेरा ही अंधेरा था. उस का रोना जायज था. मैं उसे चुप नहीं कराना चाहता था. रोने से मन हलका हो जाता है. मैं ने मेजर रंजीत को पानी देने को कहा. उस ने पानी लिया. कुछ पीया, कुछ से अपना मुंह धो लिया. मैं ने मुंह पोंछने के लिए अपना रूमाल आगे किया. उस ने फिर एक बार मेरी ओर देखा. मैं बोला, ‘ले लो, गंदा नहीं है. बस, थोड़ी नाक पोंछी थी,’ और मुसकराया. मैं ने माहौल को हलका करने का भरसक प्रयत्न किया परंतु उस के चेहरे का दुख कम नहीं हुआ. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘बाथरूम जाना है.’ मैं ने अपने लिए निश्चित बाथरूम की ओर इशारा किया. वह अंदर गई.

‘‘‘सर, एक सुझाव है.’

‘‘‘यस, मेजर रंजीत.’

‘‘‘सर, अल्लड़ गांव में बहुत सा सामान पड़ा है जिसे हमारे जवानों ने छुआ तक नहीं. जैसे किचन का सामान, कपड़ों के टं्रक आदि. उन में इस लड़की के नाप के कपड़े मिल जाएंगे.’

‘‘‘गुड आइडिया.’

‘‘‘सर, वह लड़की.’

‘‘‘हमें पता ही नहीं चला, वह कब बाथरूम से निकल कर हमारे पीछे आ कर खड़ी हो गई थी. हम ने सोचा, उस ने हमारी बातें सुन ली थीं. ‘इस के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है,’ मैं ने कहा, ‘हमें आप का नाम नहीं पता, नहीं तो हम आप को नाम से पुकारते.’

‘‘कुछ देर वह चुप रही, फिर उस के मुख से निकला, ‘फातिमा सिद्दीकी’. पहली बार हम जान पाए कि उस का नाम फातिमा है. उस की आंखें फिर छलछला आईं. वह रोने भी लगी.

‘‘‘अब आप क्यों रो रही हैं? आप यहां बिलकुल महफूज हैं. मैं कर्नल अमरीक सिंह, राजपूताना राइफल्स का कमांडिंग अफसर, इस बात का यकीन दिलाता हूं.’

‘‘‘एक सवाल मुझे बारबार  साल रहा है. मैं अपनी  पाकिस्तान की फौज के रहते महफूज नहीं थी तो यहां दुश्मन की फौज में कैसे महफूज हूं?’

‘‘‘यह हिंदुस्तान की फौज है जो दुश्मनों के साथ दुश्मनी निभाती है और इंसानों के साथ इंसानियत,’ थोड़ी देर बाद मैं ने फिर कहा, ‘यह बताओ, आप के परिवार वालों को किस ने मारा?’

‘‘‘पाकिस्तान की फौज ने, घर की औरतों की इज्जत लूटने के लिए वे बहुत सी औरतों को अपने साथ भी ले गए. मैं आप की टुकड़ी की वजह से बच गई.’

‘‘‘इतने समय में आप को हिंदुस्तान और पाकिस्तान की फौज में अंतर नजर नहीं आया?’

‘‘‘जी.’

‘‘‘मैं ने आप को बहन कहा है. मेरी पूरी रैजिमैंट मेरा परिवार है. इस नाते आप भी इस परिवार की सदस्य हैं. हमारे देश में जिस को भी बहन कह दिया जाता है उस की रक्षा फिर अपनी जान दे कर भी की जाती है. यही हमारे देश और हमारी फौज की रिवायत है, परंपरा है.’

‘‘इतने में एक जवान ट्रंक ले कर हाजिर हुआ. मैं ने फातिमा को अपने लिए कपड़े चुनने के लिए कहा, ‘मुझे दुख है, मैं आप के लिए इस से अच्छा इंतजाम नहीं कर सका.’

‘‘मैं बाहर जाने लगा कि फातिमा अपने लिए कपड़े निकाल कर पहन सके. उसी समय मेजर रंजीत ने आ कर बताया कि मोरचाबंदी पूरी हो चुकी है और अल्लड़ गांव क्लियर कर दिया गया है.

‘‘‘अच्छी बात है, पर सभी को आगाह कर दिया जाए कि पूरी चौकसी बरती जाए. दीपक जब बुझने लगता है तो उस की लौ और बढ़ जाती है. सांप घायल हो कर और खतरनाक हो जाता है, इसलिए सावधान रहा जाए.’

‘‘‘यस सर.’

‘‘‘देखो, अभी तक डाक्टर क्यों नहीं आया.’

‘‘‘सर, मैं हाजिर हूं. कुछ घायल जवानों को संभालना जरूरी था, इसलिए थोड़ी देर हो गई.’

‘‘‘ओके फाइन. ड्रैसिंग के साथ आप यह भी जांच करें कि कोई सीरियस चोट तो नहीं है. इस के बाद हमें इसे तुरंत पीछे कैंप में भेजना होगा. तब तक इस की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है.’

‘‘‘जी सर. अगर आप इजाजत दें तो मैं इलाज के लिए इसे एमआई रूम में ले जाऊं, वहां इस की अच्छी देखभाल हो सकेगी.’

‘‘‘ले जाओ पर ध्यान रहे, इस की जान को कुछ नहीं होना चाहिए. इस की सुरक्षा हमें अपनी जान से भी प्यारी है. पूरी रैजिमैंट की इज्जत का सवाल है.’

‘‘‘मैं समझता हूं, सर. जान चली जाएगी पर इस को कुछ नहीं होने दिया जाएगा,’ डाक्टर ने कहा.

‘‘‘इसे कुछ खिलापिला देना, सुबह से कुछ नहीं खाया.’

‘‘‘यस सर.’

‘‘‘एडयूटैंट साहब से बोलो, इस के बारे में सारी जानकारी हासिल करें और ब्रिगेड हैडक्वार्टर को इन्फौर्म करें,’ आदेश दे कर मैं अपने कमरे में आ गया.

‘‘थोड़ी देर बाद एडयूटैंट मेजर राम सिंह मेरे सामने थे.

‘‘‘सर, यह लड़की इसी गांव अल्लड़ की रहने वाली है. इस के साथ बहुत बुरा हुआ. सारा परिवार पाकिस्तानी फौजों के हाथों मारा गया. घर की जवान औरतों को वे साथ ले गए और बूढ़ी औरतों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया. इस भयानक दृश्य को इस ने अपनी आंखों से देखा है. यह किसी बड़े ट्रंक के पीछे छिपी रह गई और बच गई. पाक फौज इसे ढूंढ़ ही रही थी कि हमारी टुकड़ी से टक्कर हो गई. कुछ मारे गए, कुछ भाग गए. यह सियालकोट के जिन्ना कालेज के फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट है. रावलपिंडी में इस का मामू रहता है जिस का उस ने पता दिया है.’

‘‘‘यह सब ब्रिगेड हैडक्वार्टर को लिख दो और आदेश का इंतजार करो.’

‘‘‘यस सर,’ कह कर एडयूटैंट साहब चले गए.

‘‘युद्ध के बाद चारों ओर भयानक शांति थी, श्मशान सी शांति. दूसरे रोज फातिमा के लिए आदेश आया कि 2 रोज के बाद पाकिस्तान के मिलिटरी कमांडरों के साथ कई मुद्दों को ले कर सियालकोट के पास मीटिंग है. उस में फातिमा के बारे में भी बताया जाएगा. यदि उन के कमांडर रावलपिंडी से उस के मामू को बुला कर वापस लेने के लिए तैयार हो गए तो ठीक है, नहीं तो वह पीछे कैंप में भेजी जाएगी, तब तक वह आप की रैजिमैंट में रहेगी, मेहमान बन कर. हमें ऐसे आदेश की आशा नहीं थी. सारी रैजिमैंट समझ नहीं पा रही थी कि ब्रिगेड ने ऐसा आदेश क्यों दिया.

‘‘हमारे अगले 2 दिन बड़े व्यस्त थे. मोरचाबंदी के साथसाथ घायल सैनिकों को पीछे बड़े अस्पताल में भेजना था. शहीद सैनिकों के शव भी पीछे भिजवाने थे. सब से महत्त्वपूर्ण था, लिस्ट बना कर पाकिस्तान के शहीद सैनिकों को दफनाना. उन की बेकद्री किसी भी कीमत पर बरदाश्त नहीं की जा सकती थी. इस में पूरे 2 दिन लग गए. हम जान ही नहीं पाए कि फातिमा कैसी है और किस हाल में है.

‘‘जब याद आया तो मेरे पांव खुद ही एमआई रूम की ओर उठ चले. जब वहां पहुंचा तो फातिमा नाश्ता कर रही थी. मुझे देखते ही उठ खड़ी हुई.

‘‘‘बैठोबैठो, नाश्ता करो. माफ करना, फातिमा, 2 दिन तक हम आप की सुध नहीं ले पाए. आप को कोई तकलीफ तो नहीं हुई?’

‘‘‘नहीं सर, कोई तकलीफ नहीं हुई, बल्कि सभी ने इतनी खिदमत की कि मैं अपने गमों को भूलने लगी,’ फिर प्रश्न किया, ‘आप सभी दुश्मनों के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं?’

‘‘‘यह हिंदुस्तानी फौज की रिवायत है, परंपरा है कि हमारी फौज अपने दुश्मनों के साथ भी मानवीय व्यवहार करने के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है.’

‘‘फिर मैं ने ब्रिगेड के आदेश और 2 दिन बाद कमांडरों की मीटिंग के बारे में बताया कि यदि उन्होंने मान लिया तो बहुत जल्दी वह अपने मामू के पास भेज दी जाएगी.

‘‘‘सर, यदि ऐसा हो गया तो मरते दम तक मैं आप को, आप के पूरे परिवार को यानी आप की रैजिमैंट को, उन जांबाज जवानों को जिन्होंने

अपनी जान पर खेल कर पाक फौजी दरिंदों से मुझे बचाया था, कभी भूल नहीं पाऊंगी.’

‘‘‘हमारी फौज की यही परंपरा है कि जब कोई हम से विदा ले तो वह उम्रभर हमें भूल कर भी भूल न पाए.’

‘‘एक सप्ताह के भीतर फातिमा को हमारे और पाक कमांडरों की देखरेख में सियालकोट के पास उस के मामू के हवाले कर दिया गया.’’

कर्नल अमरीक सिंह पूरी कहानी सुना कर फिर भावुक हो उठे. उन की आंखें फिर नम हो गईं.

कैप्टन नूर मुहम्मद ने कहा, ‘‘सर, मेरे लिए क्या आदेश है? क्या फातिमा को आने के लिए लिखा जाए?’’

‘‘नहीं, कैप्टन साहब, फातिमा को उन की मीठी यादों के सहारे जीने दो. किसी भी मुल्क के सिविलियन को मिलिटरी यूनिट विजिट करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. हां, उस के लिए हमारी ओर से तोहफा ले कर आप अवश्य जाएंगे, बिना किसी अंतर्विरोध के. उस का देश हमारे देश में आतंकवाद फैलाता है, लाइन औफ कंट्रोल पर जवानों के गले काटता है, 26/11 जैसे हमले करता है, सूसाइड बौंबर भेजता है.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें