बौलीवुड की कार्यशैली बहुत अलग है. यहां हमेशा अनिश्चितता और असुरक्षा का माहौल बना रहता है. बाल कलाकार के रूप में कैरियर शुरू कर जबरदस्त शोहरत बटोरने के बावजूद किशोरावस्था व युवावस्था में पहुंचते ही यह बाल कलाकार गुमनामी के अंधेरे में खो गए. वास्तव में यहां कलाकार को हर दिन संघर्ष करना पड़ता है. हर दिन, हर फिल्म के साथ उसे अपनी प्रतिभा को साबित करना पड़ता है. मगर बाल कलाकार के रूप में स्टार बन गए कलाकार किशोरावस्था या युवावस्था में पहुंचने पर औडिशन देना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं, परिणामतः उनका कैरियर आगे नहीं बढ़ पाता.
मगर ‘दंगल’फेम फातिमा सना शेख ने हर मोड़ पर संघर्ष करने का जज्बा जीवंत रखा. कमल हासन की फिल्म ‘चाची 420’ से बाल कलाकार के रूप में अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाली अभिनेत्री फातिमा सना शेख ने सुपर स्टार बाल कलाकार के रूप में पहचान बनाने के बाद किशोरावस्था में पहुंचने पर दो तीन वर्ष का विश्राम लेने के बाद पुनः नए सिरे से औडिशन देना शुरू किया. काफी रिजेक्शन मिले, अंततः वह दिन भी आया, जब उन्हे आमीर खान के साथ फिल्म ‘दंगल’ में लीड रोल निभाने का अवसर मिला. और उनकी गिनती सफल अभिनेत्रियों में होने लगी. पर यह खुशी ज्यादा दिन तक टिक न पायी. 2018 में प्रदर्शित फिल्म ‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’की असफलता ने उन्हे काफी पीछे ढकेल दिया, पर फातिमा ने हार मानना नहीं सीखा था. अब उनकी दो फिल्में ‘लूडो ’ और ‘सूरज पे मंगल भारी’ एक दिन के अंतराल से प्रदर्शित होने वाली हैं.
प्रस्तुत है फातिमा सना शेख से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .
आज आपको अपना कैरियर किस मुकाम पर नजर आता है?
-मुझे लगता है कि मेरा कैरियर काफी अच्छा जा रहा है. मुझे उम्मीद है कि आगे भी बहुत अच्छा अच्छा काम मिलेगा. बेहतरीन व प्रतिभाशाली लोगों के साथ काम करने का अवसर मिलेगा. क्योंकि मैने अब तक जिन लोगों के साथ भी काम किया है, मैं बचपन से ही उनकी फैन रही हूं. फिर चाहे वह आमीर खान सर हों या अमिताभ बच्चन सर हों. चाहे वह मनोज बाजपेयी सर हों या राजकुमार राव हों. सच कहूं तो मेरा कैरियर अब तक बहुत ही सही दिशा में आगे जा रहा है. मुझे उम्मीद है कि आगे भी बेहतर ही होगा. फिर होना वही है, जो नसीब में होगा.
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आपने बाल कलाकार के तौर पर अपने माता पिता के कहने पर अभिनय किया होगा. मगर किशोरावस्था में पहुंचने के बाद जब आपकी समझ बढ़ी क्या उस वक्त आपके मन में अभिनय को कैरियर बढ़ाने को लेकर कोई द्विविधा थी?
-कुछ समय तक बाल कलाकार के रूप में काम करने के बाद जब मैंने कुछ समय के लिए अभिनय से विश्राम लिया था, तब मेरे मन में कुछ और करने की इच्छा थी. मैं फाइन आर्ट में जाना चाहती थी. बारहवीं के बाद मैने पढ़ाई छोड़ दी थी. उस वक्त मेरे दिमाग में था कि मैं फाइन आर्ट में जाउंगी. पर उस वक्त मुझे अहसास हुआ कि मुझे कहानी सुनना, कहानी सुनाना और अभिनय में आनंद आता है. 15 या 16 वर्ष की उम्र में मैने तय कर लिया कि मुझे अभिनय ही करना है. मुझे समझ में आया कि जब मैं सेट पर रहती हूं, तो अच्छा लगता है. मैं जो निजी जीवन में नही हूं, उसे निभाना अच्छा लगता है. मुझे परफार्म करना अच्छा लगता है.
फिर मैने नए सिरे से संघर्ष करना शुरू किया. करीबन तीन चार वर्ष जबरदस्त संघर्ष करना पड़ा. जकि मैं हर दिन औडिशन दे रही थी. मगर कुछ चरित्र भूमिकाएं मिल रही थी. कुछ अच्छा नहीं मिल रहा था. रिजेक्शन ही ज्यादा हो रहे थे. उसके बाद मुझे आमीर खान के साथ ‘दंगल’मिली. यदि‘दंगल’से पहले कोई दूसरी फिल्म मिली होती, तो मेरा कैरियर कहीं और होता. पर ‘दंगल’के चलते कैरियर ने तेजे गति पकड़ ली.
बाल कलाकार के तौर पर आपका अपना कैरियर रहा है. ऐसे में कुछ समय के अंतराल के बाद युवावस्था में कैरियर में शुरू करते समय जब रिजेक्शन मिल रहे थे, उस वक्त आपके दिमाग में क्या चल रहा होता था?
-बाल कलाकार के रूप में मैने अभिनय जरुर किया था, मगर फिर मैने निर्णय लिया था कि मुझे अभिनय नहीं करना है. बचपन में बहुत ज्यादा काम करने के कारण मैं कुछ दिन उससे कुछ अलग करना चाहती थी. लेकिन फिर अभिनय में जो आनंद मिलता था, उसकी कमी खलने लगी. जिसने मुझे पुनः अभिनय की तरफ खींचा. मैने औडिशन देना शुरू किया. मुझे रिजेक्शन मिलने लगे थे. पर इससे मुझे पर असर नही हो रहा था. क्योंकि मुझे इस बात की खुशी थी कि मैं औडिशन में जाकर परफार्म कर रही हूं. भले ही उस औडिशन के चलते मुझे कोई प्रोजेक्ट फिल्म न मिली हो. मुझे आनंद इस बात का मिल रहा था कि औडिशन ही सही, पर अभिनय करने का अवसर तो मिल रहा है. पर साथ में कुछ दूसरे काम भी करने की कोशिश कर रही थी. मैं एक फोटोग्राफर के साथ बतौर सहायक काम कर रही थी. मैं शादीयों में जाकर वीडियो और फोटो शूट करती थी. तो एक तरफ मैं औडिशन दे रही थी, दूसरी तरफ इस तरह के काम करके अनुभव हासिल कर रही थी. पर यह तय कर लिया था कि अभिनय नहीं छोड़ना है. इसी कारण मैने औडीशन देना बंद नहीं किया और औडिशन देते देते ही मुझे आमीर खान के साथ फिल्म ‘‘दंगल’’में लीड किरदार करने का अनुभव मिला, जिसने मेरी तकदीर ही बदल दी.
‘दंगल’ने आपके कैरियर को न सिर्फ एक दिशा दी, बल्कि आमीर खान के होते हुए शोहरत दिलायी. अन्यथा अक्सर होता यही रहा कि जिस फिल्म में आमीर खान हों, उसका सारा श्रेय आमीर खान ले जाते हैं. क्या इस फिल्म को करते समय आपके मन में भी ऐसा कोई डर था कि सारा श्रेय आमीर खान ले जाएंगे?
-इमानदारी से कहॅंू तो मैने यह सब कभी सोचा ही नहीं था. मेरे लिए आमीर खान के साथ किसी फिल्म में लीड किरदार करने का मौका मिलना ही बड़ी बात थी. आप खुद सोचिए कि आप तीन चार वर्ष से लगातार औडीशन दे रहे हों, और कुछ न मिल रहा हो. इतने समय के बाद जब पहली खबर मिली कि मैं इसके लिए चुनी जाने वाली हूं, तो मेरे लिए उस वक्त यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी. मुझे चार पांच राउंड के औडीशन के बाद यह फिल्म मिली थी. सच कहॅूं तो उस वक्त जब मैं औडीशन देने जाती थी, तो वह सोचती ही नही थी कि यह फिल्म मुझे मिल जाएगी. लेकिन जब फिल्म मिली, तो मुझे कुछ समय तक यकीन ही नही हो रहा था कि मुझे‘दंगल’मिली.
उस वक्त श्रेय किसे जाएगा, यह सोचना का वक्त नही था. उस वक्त तो सबसे बड़ी बात मेरे लिए यही थी कि आमीर खान के साथ ‘दंगल’ फिल्म मुझे मिल रही थी. उस वक्त तो मैं संघर्षरत कलाकार थी. मेरे पीछे कोई गॉड फादर नहीं था. सिर्फ औडिशन की बदौलत मुझे यह फिल्म मिल रही थी. मैने किसी डर के साथ इस फिल्म में कदम नहीं रखा. मैं तो खुश थी कि मुझे लीड किरदार मिल रहा था. उससे पहले मैने चरित्र भूमिकाएं और साइड भूमिकाएं ही की थीं. मै छोटे मोटे किरदार वाला काफी काम कर चुकी थी.
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‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’के असफल होने पर बुरा लगा होगा? इंडस्ट्री की तरफ से किस तरह के रिस्पांस आए थे?
-मेरी राय में फिल्म इंडस्ट्री या बाहरी लोगों से ज्यादा असर कलाकार की अपनी सोच व अपने दबाव का पड़ता है. हम कलाकार के तौर पर खुद से बहुत ही ज्यादा आपेक्षाएं रखते हैं और जब वह आपेक्षाएं पूरी नहीं होती हैं, तो हमें तकलीफ होती है. मैने भी ‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’’से काफी आपेक्षाएं रखी थी, पर फिल्म नहीं चली. इससे तकलीफ हुई. यह बहुत बड़ी फिल्म थी. इसका सारा बोझ अमिताभ बच्चन, आमीर खान व ‘यशराज फिल्मस’पर था. फिल्म की असफलता का असर मुझ पर कम था. इसलिए फिल्म इंडस्ट्ी के लोग मेरे बारे में जो सोच रहे थे, वह मुझे कम परेशान कर रहा था, मेरे अंदर के ख्यालात मुझे ज्यादा परेशान कर रहे थे. क्योंकि मेरा ख्ुाद पर से विश्वास उठ गया था. जबकि उस वक्त मैं फिल्म ‘लूडो’ की शूटिंग कर रही थी. मगर मेरे मन में डर पैदा हुआ था कि अब इसके बाद मुझे फिल्में नहीं मिलेंगी?मेरा कैरियर खत्म हो जाएगा. जबकि मुझे दूसरी फिल्म के आफर मिल रहे थे. दिल बैठ गया था. पर लंबे संघर्ष के बाद मुझे जो फिल्में मिली थी, उसके बाद एक फिल्म के असफल होने पर आसानी से हार नहीं मान सकती थी. उसके बाद मैने सोचा कि मुझे बिना कुछ सोचे सिर्फ ईमानदारी व पूरे लगन के साथ अपना काम करते रहना है. फिल्म‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’की असफलता के पूरे दो वर्ष बाद मेरी दो फिल्में ‘लूडो’ और‘सूरज पे मंगल भारी’एक साथ प्रदर्शित हो रही हैं. दोनों ही फिल्में बेहतरीन निर्देशक व बेहतरीन सह कलाकारों के साथ वाली फिल्में हैं.
फिल्म‘लूडो’को लेकर क्या कहना चाहेंगी?
-मैं इस फिल्म के निर्देशक अनुराग बसु दा की बहुत बड़ी फैन हूं. मुझे उनकी ‘बर्फी’, ‘गैंगस्टर, ‘लाइफ इन मेट्रो ’सहित सभी फिल्में बहुत पसंद हैं. उनकी कार्यशैली बहुत अलग है. वह अपने कलाकारों को पहले से पढ़ने के लिए पटकथा नहीं देते. उनकी राय के अनुसार सेट पर कलाकार के अंदर से स्पॉटेनियसली जो किरदार निकलता है, वह ज्यादा यथार्थ परक होता है. बनिस्बत कि कलाकार उस किरदार को लेकर पहले से ही काफी रिहर्सल कर किरदार को परदे पर उकेरे. वह सेट पर किसी भी तरह का समझौता नहीं करते हैं. इसी के साथ इस फिल्म मे मेरे सह कलाकार राजकुमार बेहतरीन अभिनेता हैं. मुझे बहुत मजा आया उनके साथ काम करने का. इसमें चार कहानियां हैं, जिनमें से एक कहानी में मैं हूं, तो स्वाभाविक तौर पर मेरा किरदार बहुत लंबा तो नहीं हो सकता. यह एक एंथोलॉजी डार्क कॉमेडी क्राइम फिल्म है. यह नेटफ्लिक्स पर आएगी.
फिल्म‘लूडो’के किरदार को कैसे परिभाषित करेंगी?
-इसमें मैने ऐसी पत्नी का किरदार निभाया है, जो कि अपने पति को जेल से बाहर निकालने के लिए प्रयासरत है. इस प्रयास में वह हर मुसीबत अड़चन को दूर करती है. छोटे शहर की है. एक बच्चे की मां है. उसकी अपनी एक यात्रा है, इस यात्रा में वह खुद की भी तलाश करती है. बोल्ड भी है.
पहली बार हास्य फिल्म ‘सूरज पे मंगल भारी’में अभिनय करने से पहले अपनी तरफ से कोई होमवर्क किया था?
-फिल्म के निर्देशक के कहने पर मैंने पटकथा पढ़कर किरदारों को समझने का प्रयास किया था. तकनीक को लेकर कोई होमवर्क नहीं किया था. हॉं. . . मैने अपने किरदार पर जरुर काम किया. मसलन यह एक महाराष्ट्यिन लड़की है, तो मैने मराठी भाषा सीखी. मराठी के उच्चारण पर काफी काम किया. उसकी सोच पर काम किया. अन्यथा पटकथा में भी यह किरदार फनी था. इसके अलावा इस फिल्म मेरे सभी सहकलाकारों की कॉमिक टाइमिंग कमाल की है, तो उसका भी मुझे फायदा मिला. एक्शन पर ही रिएक्शन निर्भर करता है.
लेकिन ‘सूरज पे मंगल भारी’में मनोज बाजपेयी और दिलजीत दोसांझ हैं. दिलजीत दोशांझ की ईमेज हास्य कलाकार की है. मगर मनोज बाजपेयी की ईमेज तो गंभीर किरदार निभाने वाले कलाकार की है? तो दो विपरीत धुरी के कलाकारों के साथ काम करने के आपके अनुभव क्या रहे?
-आपने एकदम सही कहा. मैं मनोज सर की बहुत बड़ी फैन हूं. मुझे उनकी सत्या, अलीगढ़, गैंग आफ वासेपुर, सहित सभी फिल्में बहुत पसंद हैं. इसलिए मैं भी एक्साइटेड थी. क्योंकि मैने उन्हे कभी हास्य किरदार में नहीं देखा. जबकि दिलजीत तो हास्य में माहिर हैं. उनकी कॉमिक टाइमिंग कमाल की है, यह तो हम सभी जानते हैं. वह पंजाब के सुपर स्टार हैं. इसी वर्ष ‘गुड न्यूज’ में उन्होने कमाल का काम किया था. दोनो बेहतरीन कलाकार हैं. यह दोनो स्पॉटेनियसली कुछ न कुछ अजूबा करते ही रहते हैं. मनोज पाहवा, सीमा पाहवा व अन्नू कपूर, सुप्रिया पिलगांवकर यह सभी हास्य में माहिर हैं. मैने सुप्रिया पिलगांवकर को ‘तूतू मंैमैं’ सहित कई हास्य सीरियलों में देखा है. जब हास्य के इतने महारथी कलाकार साथ में हों, तो सब कुछ आसान हो जाता है.
‘सूरज पे मंगल भारी’के अपने किरदार को आप कैसे परिभाषित करेंगी?
-मैने इस फिल्म में तुलसी का किरदार निभाया है. जो कि महाराष्ट्यिन जासूस मधु मंगल राणे(मनोज बाजपेयी) की बहन है. एकदम सरल व शुद्ध तुलसी के पौधे की तरह ही मेरा किरदार है. तुलसी का उपयोग शुद्धि के अलावा बॉडी डिटॉक्स करने के लिए भी करते हैं. यह परिवार वालों के लिए एक संस्कारी लड़की है. मगर घर से बाहर उसका एक पंजाबी युवक सूरज सिंह ढिल्लों (दिलजीत दोसांझ ) से अफयर है. इससे अधिक बताना ठीक नही होगा.
अब तक आपने जितने किरदार निभाए, उनमें से कोई ऐसा किरदार रहा, जिसने आपकी जिंदगी पर असर किया हो?
-‘दंगल’की गीता के किरदार ने मेरी जिंदगी पर काफी असर किया. यह मेरी निजी जिंदगी व मेरे व्यक्तित्व से एकदम भिन्न था. इसके लिए मुझे अलग तरह का प्रशिक्षण लेना पड़ा था. मुझे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एनर्जी व समय लगाना पड़ा. यह किरदार काफी डिमांडिंग था. मुझे इमोशन के साथ शारीरिक मेहनत भी करनी थी.
किसी भी किरदार को निभाने में मेकअप कितनी मदद करता है?
-‘दंगल’में मेकअप नहीं था, पर बाल छोटे करने पड़े थे. वजन बढ़ाना पड़ा था. ‘लूडो’में भी कोई खास मेकअप नहीं है. सिर्फ बिंदी, मंगलसूत्र आदि ही धारण करना पड़ा. तो जिस तरह का किरदार हो, उस तरह का दिखना जरुरी है. हम हमेशा निर्देशक के वीजन के अनुसार ही रूप धारण करते हैं. इसके लिए मेकअप और गेटअप बहुत मददगार साबित होता है. क्योंकि वही किरदार को परदे पर उस तरह से दिखाता है. गीता का किरदार निभाते हुए मेरे बाल लंबे होते और मैने लाइनर व मसकारा लगाया होता, तो कोई यकीन न करता कि यह कुश्ती लड़ने वाली गीता है.
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फिल्म के थिएटर में रिलीज होने पर कलाकार को जिस तरह का रिस्पॉस मिलता है. क्या उस तरह का रिस्पॉंस ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होने पर मिलेगा?
-देखिए, अभी कोरोना महामारी की वजह से एक वर्ष होने जा रहा है. कोई फिल्म थिएटर में रिलीज नहीं हो पायी. ऐसे में कहना मुश्किल है कि कौन सी फिल्म सफल होगी या नहीं. कौन सी फिल्म को किस तरह से कहां रिलीज होना चाहिए?अब तो ओटीटी प्लेटफार्म पर कई बड़ी बड़ी फिल्में भी रिलीज हो रही हैं. तो अब समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है. आपके साथ ही मैं भी स्थिति को समझने का प्रयास कर रही हूं. जब मेरी फिल्म ‘ओटीटी’पर रिलीज हो जाएगी, उसके बाद मुझे अहसास होगा कि क्या रिस्पांस मिला या क्या हो सकता था?इससे पहले कभी ऐसा नही हुआ कि कोरोना महामारी फैली हो, लोग एक वर्ष तक घर में बैठे हों और सिर्फ ओटीटी देख रहे हों. रियालिटी बहुत बदल गयी है. हम शायद एक या दो वर्ष बाद पीछे मुड़कर कह सकंेगे कि क्या सही था.
आपने टीवी सीरियल भी किए हैं. जब आप टीवी कर रही थी, उस वक्त से अब टीवी की जो स्थिति है, उसको लेकर क्या सोचती हैं?
-दुर्भाग्यवश मेरे घर में एक दो वर्ष पहले ही टीवी आया है. मैने कई वर्षों से टीवी नहीं देखा है. मेरे घर पर केबल नही है. मैं नेटफिलिक्स, अमैजान आदि पर ही कार्यक्रम देख रही हूं. इसलिए टीवी की स्थिति का सही आकलन नही कर सकती. जब मैं टीवी कर रही थी, उस वक्त मैं बच्ची थी. उस वक्त मैने फारुख शेख के साथ ‘अलविदा डार्लिंग’ जैसा बेहतरीन सीरिलय किया था. उस वक्त बड़े बडे़ कलाकार टीवी कर रहे थे. चरित्र अभिनेत्री के तौर पर मैने ‘अगले जनम मोहे बिटिया कीजो’भी किया था. पर उस वक्त भी मुझे टीवी सीरियल करने में मजा नहीं आया था. एक ही कहानी कई वर्ष तक चलती रहती है. पर मैं टीवी नही देखती, इसलिए मुझे पता नहीं कि बदलाव क्या हुआ है.
आपके दिमाग में कोई किरदार हो, जिसे आप निभाना चाहती हों?
-मेरा मकसद हर तरह के किरदार निभाना है. हर जॉनर में काम करना है.
आपके शौक?
-मुझे लोगों से मिलना, किताबे पढ़ना और ट्रैकिंग करना पसंद है. वक्त मिलते ही मैं धर्मशाला चली आती हूं. मैं व्हॉट्सअप भी उपयोग नही करती. फोन से भी दूरी बनाकर रखने का प्रयास करती हूं.
आप ट्रैकिंग करने कहां जाती हैं?
-मैं हिमाचल प्रदेश में वर्ष में चार बार ट्रैकिंग करने के लिए जाती हूं. नदीवॉटर फाल, गुना देवी मंदिर, करीबी लेक गयी हूं. मेरा अनुभव अच्छा रहता है. मुझे प्रकृति से प्रेम है. अभी मैं हिमाचल के आखिरी गांव में गयी थी, जहां एक बच्ची ने मुझे पहचान लिया, तो वह अपने घर ले गयी और मुझे खाना खिलाया, चाय पिलायी. मुझे स्थानीय भोजन करना बहुत पसंद है. स्थानीय लोगों से बात करना पसंद है. मुझे लोगों से बात करना, उनकी जिंदगी में झांकने, उनके रहन सहन आदि को समझने में काफी दिलचस्पी है.
क्या यह सब आपको अभिनय में मदद करता है?
-जी हां! लोगों से मिलना हो या किताबें पढ़ना हो, यह जो अनुभव होते हैं, वह सब किसी किरदार को निभाते समय मददगार साबित होते हैं.
आपको कोई सामाजिक मुद्दा परेशान करता हो, जिस पर आप काम करना चाहती हों?
-मुझसे जानवरों की पीड़ा देखी नही जाती. मैं व मेरे भाई बचपन से ही कुत्ते व बिल्लियों की देखभाल करते, उन्हे सुरक्षित हाथों में पहुंचाने का काम करते आए हैं. कोरोना काल में हमने अपने क्षेत्र के कुत्तों की काफी देखभाल की. दो तीन और चीजे हैं, जिनको लेकर मैं अपने हिसाब स काम करती हूं. मैं एनजीओ के माध्यम से कोई काम नही करती. मैं निजी स्तर पर जो काम कर सकती हूं, वह करती रहती हूं.
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आपका फिटनेस मंत्रा?
-वाकिंग. . और ट्रैकिंग. .
नई लड़कियों को क्या संदेश देना चाहती हैं?
-अपने सपनों को पंख हर लड़की को देना चाहिए. आइए, बौलीवुड का हिसा बने. हर लड़की को अपने दिल की सुननी चाहिए. अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी तोड़ मेहनत व संघर्ष करना चाहिए. अपने काम के प्रति इमानदार होना चाहिए. हर काम को पूरी शिद्दत से अंजाम दें.