कोख पर कानूनी पहरा क्यों?

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सरकार ने भारीभरकम नाम वाला कानून प्री-कन्सैप्शन ऐंड प्री-नैटेल डायग्नोस्टिक टैक्निक (प्रोहिबिशन औफ सैक्स सिलैक्शन) ऐक्ट 1994 बना रखा है. इस की एक धारा के अनुसार इंस्पैक्टरों की एक टीम जगहजगह अस्पतालों में जा कर अल्ट्रासाउंड मशीनों की जांच करती हैं और फिर रजिस्टर, रिपोर्टें आदि खंगालती है कि कहीं से कुछ पता चल जाए तो डाक्टर, नर्स, टैक्नीशियन और अस्पतालों को लपेटे में ले लिया जाए. इस तरह की टीमें देश भर में छापे मारती रहती हैं सैक्स सिलैक्शन रोकती हैं या नहीं, मोटा पैसा अवश्य बनाती हैं.

इसी वजह से छोटी जगहों पर मारे गए छापों के बारे में राज्य सरकारें खासी गंभीर रहती हैं और इन छापों को पूरा संरक्षण देती हैं.

उड़ीसा के अनजाने से जिले ढेंकनाल में 2014 में एक टीम ने जगन्नाथ अस्पताल पर छापा मारा और ममता साहू व अन्य के खिलाफ मुकदमा चलाने के समन जारी कर दिए.

अस्पताल कलैक्टर के बाद हाई कोर्ट पहुंचा और वहां मामला खारिज कर दिया गया तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई कि मुकदमा तो चलना ही चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और इंस्पैक्टरों की सुनी और मामला फिर चालू हो गया है.

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इतनी लंबी बात सिर्फ यह बताने के लिए की गई है कि सैक्स सिलैक्शन प्रक्रिया पूरी तरह औरत की मरजी पर होती है. जो औरतें मनचाही सैक्स की संतान चाहती हैं, चाहे कारण धार्मिक हों, सामाजिक, पारिवारिक या निजी, कोई अस्पताल इस मामले में न तो जबरदस्ती कर सकता है और न ही धोखेबाजी. जरा से सीने के दर्द को हार्टअटैक बता कर अस्पताल लाखों कमा सकता है. यूरिन इन्फैक्शन को किडनी फेल्योर बता कर उसे निकाल भी सकता है पर प्रीनैटेल जांच तभी कर सकता है जब गर्भवती चाहे.

उस की इस इच्छा पर सरकारी बंधन लगे यह अति है. हो सकता है कि धार्मिक व सामाजिक कारणों से ही औरतें मनचाहे सैक्स की संतान चाहती हों तो इस के लिए धर्म को कटघरे में खड़ा करो, समाज को सजा दो. औरत को सजा क्यों?

हर औरत के लिए अपनी संतान प्रिय होती है. प्रकृति ने सैक्स सिलैक्शन अपनेआप सिखाया है कि संतुलन बना रहे.

होने वाली संतान किस सैक्स की है, यह जन्म से पहले पता होना गलत नहीं है. उसी आधार पर तैयारी की जाती है, कपड़े खरीदे जाते हैं, पतिपत्नी अपने सपने बुनते हैं. यदि होने वाली संतान का सैक्स मनचाहा नहीं है और गर्भपात कराया भी गया तो भी क्या? यह निर्णय तो गर्भवती वैसे भी ले सकती थी कि उसे संतान चाहिए या नहीं. समाज और धर्म को पेडस्टल पर रख कर अस्पताल, अल्ट्रासाउंड मशीन या डाक्टरों को अपराधी बना कर सरकार धर्म व समाज के प्रति अपना डर दर्शा रही है. अब तो दोमुंही सरकार है जो एक तरफ आधुनिक तकनीक की बात करती है और दूसरी तरफ योग व गौमूत्र से हजार रोगों से मुक्ति दिलाने पर ठप्पा लगाती है. एक तरफ उस धर्म के नाम पर दूसरों के घरो में आग लगाई जाती है जो औरतों को पैर की जूती समझता है, उन्हें व्रतों, उपवासों, पूजाओं, आरतियों, शोभायात्राओं में उलझा कर पुत्र की गरिमा बताता रहा है और दूसरी तरफ अस्पतालों से आधुनिक सुविधाजनक तकनीक को हटाया जा रहा है.

संतान औरत का हक है. गर्भ उन की संपत्ति है. सरकार को कोई हक नहीं है कि उस पर डाका मारे. न वह बंध्याकरण करा सकती है, न सैक्स सिलैक्शन के हक को छीना जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट चाहे सरकार की हां में हां मिला दे, सैक्स अनुपात चाहे जो हो, औरत का हक नहीं मारा जा सकता.

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