आज सुहानी जब औफिस में आई तो उखड़ीउखड़ी सी दिख रही थी. 2 वर्ष पूर्व ही उस का विवाह उसी की जाति के लड़के विवेक से हुआ था. विवाह क्या हुआ, मानो उस के पैरों में रीतिरिवाजों की बेडि़यां डाल दी गईं. यह पूजा है, इस विधि से करो. आज वह त्योहार है, मायके की नहीं, ससुराल की रस्म निभाओ. ऐसी ही बातें कर उसे रोज कुछ न कुछ अजीबोगरीब करने पर मजबूर किया जाता.
समस्या यह थी कि पढ़ीलिखी और कमाऊ बहू घर में ला कर उसे गांवों के पुराने रीतिरिवाजों में ढालने की कोशिश की जा रही थी. पहनावे से आधुनिक दिखने वाली सास असलियत में इतने पुराने विचारों की होगी, कोई सोच भी नहीं सकता था.
बेचारी सुहानी लाख कोशिश करती कि उस का अपनी सास से विवाद न हो, फिर भी किसी न किसी बहाने दोनों में खटपट हो ही जाती. सास तो ठहरी सास, कैसे बरदाश्त कर ले कि बहू पलट कर जवाब दे व उसे सहीगलत का ज्ञान कराए.
सो, बहू के बारे में वह अपने सभी रिश्तेदारों से बुराइयां करने लगी. यह सब सुहानी को बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. और तो और, उस के पति को भी उस की सास ने रोधो कर और सुहानी की कमियां गिना कर अपनी मुट्ठी में कर रखा था. नतीजतन, पति से भी सुहानी का रोजरोज झगड़ा होने लगा था.
हमारे आसपास में ही न जाने ऐसे कितने उदाहरण होंगे जिन में सासें अपनी बहुओं को बदनाम करती हैं और सभी रिश्तेदारों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में सारी जिंदगी बहुओं की बुराई करने में बिता देती हैं.
एटीएम न मिलने का दुख
12 और 8 वर्षीय बेटियों की मां योगिता कहती हैं, ‘‘शादी होते ही जब मैं ससुराल गई तो मेरी सास ने तय कर रखा था कि पढ़ीलिखी बहू है, नौकरी तो करेगी ही और उस की तनख्वाह पर उन्हीं का ही हक होगा. लेकिन मेरे पति ने मुझे लेटेस्ट कंप्यूटर कोर्स करना शुरू करवा दिया. उन का कहना था कि अभी विवाह के कारण तुम अपनी पुरानी नौकरी छोड़ कर आई हो, नया कोर्स कर लोगी तो आगे भी नौकरी में फायदा रहेगा. मैं ने उन की बात मान कर कोर्स करना शुरू कर दिया.
पूरे दिन मेरी सास घर के बाहर ही रहतीं, उन्हें घूमनेफिरने का बहुत शौक है. मैं सुबह नाश्ते से ले कर रात का डिनर तक सब संभालती. उस के अलावा कंप्यूटर क्लास भी जाती और उस की पढ़ाई
भी करती. घर में साफसफाई के लिए कामवाली आती थी. सास मुझे ताने दे कर कहती कि क्या जरूरत है कामवाली की, तुम नौकरी तो कर नहीं रही हो. कभी कहतीं जब नौकरी करो तो ही सलवार सूट पहनो. अभी रोज साड़ी पहना करो.
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हमारी आर्थिक स्थिति उच्चमध्यवर्गीय थी. सो, मुझे समझ नहीं आया कि कामवाली और पहनावे का नौकरी से क्या ताल्लुक. लेकिन मैं ने कामवाली को नहीं हटाया. सास रोज किसी न किसी तरह मेरे काम में कमी निकाल कर उलटेसीधे ताने मारतीं. मुझे तो समझ ही न आया कि वे ये सब क्यों करती हैं.
मेरे पति से वे आएदिन अपनी विवाहित बेटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे मांगती रहतीं. मेरे पति धीरेधीरे सब समझने लगे थे कि मम्मी की पैसों की डिमांड बढ़ती जा रही है. यदि हम अपने घर में कुछ नया सामान लाते तो वे झगड़ा करतीं और देवर के विवाह की जिम्मेदारी हमें बतातीं.
ऐसा चलते एक वर्ष बीत गया और तो और, मुझ से कहतीं, ‘अभी बच्चा पैदा मत करना.’ जबकि मेरी उम्र 29 वर्ष हो गई थी. मुझे समझ ही न आता कि यह कैसी सास है जो अपनी बहू को बच्चा पैदा करने पर रोक लगाती है.
मुझे हर बात पर टोकतीं और पति के साथ मुझे समय भी न बिताने देतीं. जैसे ही पति दफ्तर से घर आते, वे हमारे कमरे में आ कर बैठ जातीं.
एक दिन जब उन्होंने मुझे किसी बात पर टोका तो मैं ने भी पलट कर जवाब दिया. तो वे गुस्से में आगबबूला हो गईं और बोलीं, ‘‘नौकरी भी नहीं की तू ने, न जाने पढ़ीलिखी भी है कि नहीं, यदि करती तो तनख्वाह मुझे थोड़ी दे देती तू.’’
इतना सुन कर मुझे हकीकत समझते देर न लगी और मैं ने भी पलट कर कहा, ‘‘यही प्रौब्लम है न आप को, कि तनख्वाह नहीं आ रही. इसलिए घर की सारी जिम्मेदारी उठाने पर भी आप मुझे चैन से नहीं रहने देतीं. घर की कामवाली बना रखा है. माफ कीजिए आप को बहू नहीं, एटीएम मशीन चाहिए थी. वह न मिली तो आप मुझे चौबीसों घंटों की नौकरानी की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. बेटा पूरी कमाई आप के हाथ में देदे और बहू चौबीसों घंटे आप की चाकरी करे.’’
बस, उसी दिन के बाद से उन्होंने मेरे देवरननद को मेरे खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया. रिश्तेदारों से जा कर कहने लगीं, बहू को आजादी चाहिए, इसलिए बच्चा भी पैदा नहीं करती. मेरे ससुर को भी झूठी पट्टी पढ़ा कर मेरे खिलाफ कर दिया. कल तक जो ससुर मेरे पढ़ीलिखी होने के साथ घरेलू गुणों की तारीफ करते न थकते थे, अब मुझे बांझ पुकारने लगे थे.
रोजरोज के झगड़ों से परेशान हो कर मेरे पति ने अलग घर ले लिया और किसी तरह उन से पीछा छुड़ाया. अब हम उन्हें हर महीने पैसे दे देते हैं, वे चाहे जैसे रहें. उन्हें सिर्फ पैसा चाहिए, वे न तो मेरी बेटियों से मिलना चाहती हैं और न ही मैं उन की सूरत देखना चाहती हूं. बस, मेरे पति कभीकभी उन से मां होने के नाते, मिल लेते हैं.
संयुक्त परिवार नहीं चाहिए
25 वर्षीया रीता कहती है, ‘‘मेरे विवाह के समय मेरे पति विदेश में रहते थे. सो मैं भी विवाह होते ही उन के साथ चली गई. 2 वर्षों बाद जब हम अपने देश लौट आए और सास के साथ रहे, तब 2 महीने भी मेरी सास ने मुझे चैन से न रहने दिया. सारे दिन अपनी तारीफ करतीं और मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करतीं. सब से पहले उन्होंने कहा कि मैं जींस और वैस्टर्न कपड़े न पहनूं क्योंकि आसपास में कई रिश्तेदार रहते हैं. मैं ने उन की वह बात मान ली. लेकिन हर बात में बेवजह टोकाटाकी देख कर ऐसा लगता जैसे उन्हें हमारा साथ में रहना नहीं भाया.
‘‘जब तक बेटा विदेश में काम कर उन्हें पैसे देता था, सब ठीक था. लेकिन जैसे ही हम यहां आए, न जाने कौन सा तूफान आ गया. वे बारबार मेरे ससुर की आड़ में मुझे ताने देतीं. मेरे ससुर सीधेसादे रिटायर्ड बुजुर्ग हैं. उन से भी वे खूब झगड़ा करतीं. मैं फिर भी चुप रहती क्योंकि मैं जानती थी कि वे ससुर से भी बेवजह झगड़ा कर रही हैं, यदि मैं बीच में कुछ बोलूंगी तो वे मुझ से झगड़ना शुरू कर देंगी.
‘‘लेकिन हद तो तब हो गई जब मैं ने एक दिन खाना बना कर परोसा और वे मेरे हाथ के बने खाने में कमी निकाल कर मुझे नीची जाति का कहने लगीं. जबकि मैं और मेरे पति एक ही ब्राह्मण जाति के हैं. तो मैं ने भी पलट कर कह दिया, ‘आप ही मुझे लेने बरात ले कर आए थे तो मैं यहां आई हूं, तब मेरी जाति नजर नहीं आई आप को?’
‘‘बस, अगली ही सुबह जैसे ही मेरे पति औफिस गए, वे कहने लगीं, ‘‘मैं ने चावल में रखी कीटनाशक गोली खा ली है.’’ पहले तो मैं समझी नहीं, लेकिन मेरे ससुर भी मुझे कोसने लगे और कहने लगे कि डाक्टर को बुलाओ. तो मैं ने अपनी पति को फोन किया. वे बोले कि मम्मी को अस्पताल ले कर जाओ. मैं उन्हें अस्पताल ले कर गई और वहां भरती करवाया.
‘‘इस बीच, मैं ने अपनी जेठानी को भी फोन कर बुला लिया था, जो उसी शहर में ही अलग रहती थीं. क्योंकि मैं जान गई थी कि वे मेरे से ज्यादा अनुभवी हैं और मैं ने यह भी सुन रखा था कि सास के बुरे व्यवहार के कारण ही वे अलग रहने लगी थीं.
‘‘मेरी जेठानी ने वहां आ कर मुझे बताया कि यह पुलिस केस बनेगा तो मैं बहुत घबरा गई और मेरी आंखों से आंसू बह निकले. तब तक मेरे पति दफ्तर से छुट्टी ले कर अस्पताल पहुंच गए, उस से पहले अस्पताल वालों ने पुलिस को खबर कर दी थी कि आत्महत्या की कोशिश का केस आया है. मेरी जेठानी ने पुलिस से बात कर मामला सुलझा दिया.
‘‘नजदीकी रिश्तेदार यह खबर सुनते ही अस्पताल में जमा हो गए. मेरे ससुर ने सभी से कहा कि सासबहू का रात को झगड़ा हुआ. सब ने सोचा कि नई बहू बहुत खराब है और मेरे पति ने भी मुझे डांटा कि मम्मी से रात को उलझने की क्या जरूरत थी. सब से बुरी बात तो यह हुई कि जब अस्पताल में टैस्ट हुए और रिपोर्ट आई तो मालूम हुआ कि उन्होंने कोई कीटनाशक गोली नहीं खाई थी. यह सब मुझे बदनाम करने के लिए किया गया एक ड्रामा था ताकि मैं आगे से उन के सामने पलट कर जवाब देने की हिम्मत ही न करूं.
‘‘आज मैं, अपने पति के साथ विदेश में ही रहती हूं. लेकिन जब भी भारत आती हूं, अपनी सास से नहीं मिलना चाहती.’’
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रीता ने जब मुझे यह सब बताया तो वह आंसुओं में डूबी हुई थी और अपनी जेठानी का बहुत धन्यवाद कर रही थी. लेकिन अपनी सास के लिए उस के मन में नफरत के सिवा कुछ भी नहीं था.
सारी सासें एक सी
योगिता और रीता के किस्सों से मुझे अपनी एक चाइनीज सहेली की याद आई. उस चाइनीज सहेली का नाम है ब्रेंडा. वह शंघाई की रहने वाली थी और मलयेशिया में नौकरी करने गईर् थी. वहीं उसे एक रशियन लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने विवाह भी कर लिया. विवाह को 6 वर्ष बीते और उस के पति का तबादला भारत में हो गया. उस का पति होटल इंडस्ट्री में कार्यरत था.
मेरी ब्रेंडा से मुलाकात हुई और हम सहेलियां बन गईं. हम दोनों अंगरेजी में ही बात किया करते थे.
3 वर्ष हम साथ रहे और उस ने मुझे अपनी सास से होने वाले झगड़ों के बारे में बताया. मैं आश्चर्यचकित थी कि क्या विदेशी सासें, जो देखने में बहुत मौडर्न लगती हैं, भी बुरा व्यवहार करती हैं? तो उस ने कहा, ‘‘यस, देयर आर सम ड्रैगन लेडीज हू कीप डूइंग समथिंग दिस ओर दैट टू स्पौयल अवर इमेज ऐंड शो देयर सैल्फ गुड’’ यानी कि कुछ महिलाएं ड्रैगन के समान बुरी होती हैं, जो अपनेआप को भली दिखाने के लिए हमारा नाम खराब करती रहती हैं. वह मुझे शंघाई और मलयेशिया की सासों के और भी बहुत किस्से सुनाया करती.
जब वह भारत में भी थी, उन 3 वर्षों में एक बार उस की रशियन सास भारत में उस के घर आईं और 2 महीने तक उस के साथ रहीं. उन दिनों ब्रेंडा रोज ही घर में सास द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के किस्से सुनाया करती. साथ ही, उस ने यह भी बताया कि अपार्टमैंट में जो दूसरे रशियन लोग हैं, जिन से उस के पति की अच्छी दोस्ती भी है, उन से उस की सास ने उस के बारे में बहुत बुराइयां की.
उस के बाद ब्रेंडा कहती थी कि मैं अपनी मदर इन ला को भारत बुलाना ही नहीं चाहती. वे दूर रहें तो अच्छा है.
सुहानी, रीता, योगिता और ब्रेंडा सभी के किस्से सुन कर ऐसा लगता है कि यह यूनिवर्सल ट्रुथ है कि सास खाए बिना रह सकती है, पर बोले बिना नहीं.
कैसे पटेगा एकतरफा सौदा
सासबहू के रिश्ते में मधुरता की उम्मीद के साथ कोईर् भी पिता अपनी बेटी को दूसरी महिला के हाथ में सौंप देता है, जोकि उस की बेटी की मां की उम्र की होती है. इस में वह क्यों उस बहू के साथ बराबरी का कंपीटिशन बना लेती है. या यों कहिए कि देने के सिवा सिर्फ लेने का सौदा तय करना चाहती है. और यदि वह न मिले तो उसे सरेआम बदनाम करती है ताकि वह दुनिया की नजरों में अपनेआप को बेचारी साबित कर सके. क्योंकि वह एक नई लड़की के घर में कदम रखते ही घर में बरसों से चलती आई रामायण को महाभारत में बदल देती है, और सिर्फ स्वयं ही नहीं, घर के अन्य सदस्यों समेत उस पर चढ़ाई करने लगती है?
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इसी बात पर एक बार ब्रेंडा ने कहा था, ‘‘एक्चुअली, शी यूज टू बी द क्वीन औफ द हाउस, नाऊ शी कैन नौट टोलरेट एनीबडी एल्स इन द हाउस.’’ यानी कल तक सास ही घर की रानी होती थी, सारा राजपाट उसी का था, अब वह किसी और को घर में राज करते कैसे बरदाश्त करे.’’ शायद ब्रेंडा ने सही ही कहा था, लेकिन क्या इस रिश्ते में खींचातानी की जगह प्यार व मिठास नहीं भरी जा सकती?
यदि गहराई से सोचा जाए तो इस मिठास के लिए सास को राजदरबार की रानी की तरह नहीं, एक मालिन की तरह का व्यवहार करना चाहिए. जिस तरह से मालिन नर्सरी से लाए नए पौधे उगा कर, उन्हें सींच कर हरेभरे पेड़ में बदल देती है, उसी तरह से अगर सास भी पराएघर से आई बेटी को अपने घर की मिट्टी में जड़ें फैलाने के लिए खादपानी व धूप का पूरा इंतजाम कर दे तो बहूरूपी वह पौधा हराभरा हो सकेगा और निश्चित रूप से मीठे फल मिलेंगे ही.