‘‘भोलाः तमिल फिल्म ‘‘कैथी’’ का घटिया रीमेक…’’

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः अजय देवगन,भूषण कुमार, किषन कुमार,एस आर प्रकाष बाबू, रिलायंस इंटरटेनमेंट

लेखकःआमिल कियान खान, अंकुष सिंह, श्रीधर दुबे व संदीप केलवानी

निर्देषकः अजय देवगन

कलाकारःअजय देवगन,तब्बू,विनीत कुमार,किरण कुमार,दीपक डोबरियाल, संजय मिश्रा,गजराज राव, आमला पौल, मकरंद देषपांडे,यूरी सूरी,अभिषेक बच्चन,अक्ष आहुजा, राज लक्ष्मी व अन्य

अवधिःदो घंटे 24 मिनट

प्रदर्षन की तारीखः तीस मार्च 2023

दक्षिण भारतीय लेखक व निर्देषक लोकेष कनगराज की तमिल भाषा की फिल्म ‘‘कैथी’’ 25 अक्टूबर 2019 को सिनेमाघरों में पहुॅची थी.25 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर 105 करोड़ से अधिक कमाए थे.फिर यह फिल्म ‘एम एक्स प्लेअर पर भी हिंदी में डब करके मुफ्त दिखायी गयी.जिससे प्रभावित होकर अजय देगवन ने स्वयं इस फिल्म का हिंदी रीमेक बनाने का फैसला लिया.अब अजय देवगन बतौर निर्माता, निर्देषक व अभिनेता एक्षन व रोमांचक फिल्म ‘कैथी’ का हिंदी रीमेक ‘‘भोला’ ’लेकर आए हैं.जो कि अति खराब फिल्म है.कैथी में जिस किरदार को कार्थी ने और पुलिस इंस्पेक्टर बिजौय के किरदार को नरेन ने निभाया था,उसे ही ‘भोला’’में क्रमषः

अजय देवगन और तब्बू ने निभाया है.यानी कि कैथी का पुरूष इंस्पेक्टर बिजौय का लिंग बदलकर भोला में इंस्पेक्टर डायना जोसेफ कर दिया गया.फिर भी यह फिल्म ‘काथी’ के मुकाबले काफी कमजोर है. तथा दर्षकों को बांध नही पाती है.जिन्हे कहानी की बजाय सिर्फ एक्षन देखना चाहते हैं,वह अवष्य इसे देख सकते हैं.‘कैथी’ एक रात की कहानी है और इसमें रोमांचक तत्व काफी हैं. जबकि ‘भोला’ में रोमांच का अभाव है.इतना ही नही यह फिल्म रात संे दिन तक चलती है.आखिर अजय देवगन अपने एक्यान के करतब दिन मे ंन दिखांए,यह कैसे हो सकता है.

 

 

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कहानी:

2019 की सफल तमिल फिल्म ‘‘कैथी’’ के हिंदी रीमेक वाली फिल्म ‘‘भोला’’ की कहानी उत्तर प्रदेष की पृष्ठभूमि में है और कहानी के केंद्र में पुलिस इंस्पेक्टर डायना जोसेफ ( तब्बू ) और दस साल बाद जेल से छूटा कैदी भोला ( अजय देवगन ) है.पुलिस इंस्पेक्टर डायना जोसेफ उनकी टीम ने करोड़े रूपए मूल्य की कोकीन को जब्त करने के साथ ही ड्ग्स व कोकीन के सिंडिकेट के प्रमुख निठारी ( विनीत कुमार ) सहित सिंडिकेट के कुछ सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया, जिनकी पहचान उन्हें नहीं है.डायना जोसेफ ऐसा करते हुए बुरी तरह से घायल हो जाती है.डायना जोसेफ को लगता है कि अभी तक निठारी उनकी पकड़ से कोसो दूर है.इसलिए वह निठारी के भाई, श्वत्थामा ‘आशु‘ (दीपक डोबरियाल ) को गुस्सा दिलाती है,जिससे निठारी समाने आ सके.उधर आषू गुस्से में 5 पुलिस वालों के खिलाफ इनाम की घोषणा करने के साथ ही पुलिस द्वारा जब्त अपने कोकीन को भरी प्राप्त करने के प्रयास में लग जाता है.उधर आषु भ्रष्ट एनसीबी सिपाही देवराज सुब्रमण्यम की मदद से डायना के वरिष्ठ अफसर की सेवानिवृत्ति की पार्टी में पुलिस वालों के खाने-पीने में जहर घुलवा देता है.डायना जोसेफ इस पार्टी में कुछ नही खाती,क्योंकि घायल होने के बाद वह दवाएं ले रही थी. उधर हाल ही दस साल तक जेल में कैद रहने के बाद अच्छे व्यवहार के चलते जेल से छूटने पर भोला अपनी बेटी ज्योति से मिलने अनाथाश्रम की तरफ बढ़ता है,जिसे रास्तें में पुनः पुलिस पकड़ लेती है. और अब डायना के निवेदन पर भोला अपनी बेटी के पास जाने के बदले 80 किलोमीटर दूर निकटतम अस्पताल में डायना जोसेफ के साथ ही पुलिस वालों को ट्क में में भरकर पहुॅचाने के लिए अनिच्छा से सहमत हो जाता है.रास्ते में हर कोने पर भोला,डायना जोसेफ व पुलिस कर्मियों पर मौत मंडराती रहती है.आखिर आशु और गैंगस्टर पुलिस वालों के साथ ही डायना को मौत के घाट उतारने के लिए तत्पर है.परिणामतः भोला और आषू के गैंग्स्टरों के बीच चूहे बिल्ली का खेल षुरू हो जाता है.

 

 

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लेखन व निर्देषन:

मषहूर एक्षन निर्देषक स्व. वीरू देवगन के बेटे अजय देवगन ने 1991 में फिल्म ‘‘फूल और कोटे’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था.अब तक सौ से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं.पर 11 अप्रैल 2008 को प्रदर्षित व बुरी तरह से असफल फिल्म ‘‘यू मी और हम’’ का निर्देषन कर निर्देषन के क्षेत्र में कदम रखा था. इस फिल्म में अजय देवगन ने स्वयं अपनी पत्नी व अभिनेत्री काजोल के संग अभिनय किया था.फिर आठ वर्ष बाद अजय देवगन ने फिल्म ‘‘षिवाय’’ का निर्देषन करते हुए खुद ही अभिनय किया था.फिल्म को औसत दर्जे की ही सफलता मिल पायी थी.इसके बाद 2022 में अजय देवगन ने ‘‘रनवे 34’ का निर्देषन किया.सत्य घटनाक्रम पर आधारित इस फिल्म में अजय देवगन के साथ अमिताभ बच्चन,बोमन ईरानी और रकूल प्रीत सिंह ने भी अभिनय किया था.

मगर यह फिल्म अपनी आधी लागत वसूलने में भी नाकामयाब रही.यानी कि ‘रनवे 34’ जितनी बुरी तरह से बाक्स आफिस पर धराषाही हुई,उसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी.लेकिन अजय देवगन और उनके नजदीकी लोग हार मानने को तैयार नही है.तभी तो अब अजय देवगन ने 2019 की सफलतम तमिल फिल्म ‘‘कैथी’’ की हिंदी रीमेक फिल्म को ‘‘भोला’’ नाम से निर्देषित करने के साथ ही अपनी सफल फिल्म ‘दृष्यम’ व ‘दृष्यम 2’ की सह कलाकार तब्बू के साथ अभिनय भी किया है.फिल्म ‘‘भोला’’ देखकर दो बातें साफ तौर पर उभर कर आती हैं.पहली यह कि एक भाषा की सफल फिल्म का हिंदी रीमे करते हुए किस तरह पूरी कहानी व फिल्म का बंटाधार किया जा सकता है,इसका सबूत है ‘भोला’’.दूसरी बात बौलीवुड को दक्षिण की फिल्मों या हौलीवुड से कोई खतरा नही है.हकीकत यह है कि बौलीवुड से जुड़े दिग्गज लोग ही सिनेमा को खत्म करने पर आमादा हैं. यहां याद दिल दें कि 2016 में भाजपा सरकार ने अजय देवगन के सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए ‘पद्मश्री’ से भी नवाजा था.

वाराणसी,हैदराबाद व मंुबई में फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘भोला’’ में कहानी, पटकथा,निर्देषन सब कुछ गड़बड़ है.फिल्म में सिर्फ एक्षन दृष्य हैं,इमोषन का दूर दूर तक अता पता नही है.षायद अजय देवगन को भी पता था कि उन्होने एक घटिया फिल्म बनायी है,इसी कारण उन्होने और उनकी इस फिल्म के कलाकारों ने फिल्म ‘‘भोला’’ के संदर्भ में बात करने की बनिस्बत देष के कुछ षहरों में ‘भोला’’ नामक ट्क दौड़ाते हुए फिल्म को नए अंदाज में प्रमोट करते हुए फिल्म को जबरदस्त सफलता मिलेगी, ऐसा दावा करते रहे. हमें लगता है कि फिल्म के प्रमोषन की इस स्ट्ेटजी को गढ़ने वाले लोग अजय देवगन को बर्बाद करने पर ही आमादा हैं.क्योंकि अनूठे ेतरीके के प्रचार के बावजूद इस फिल्म का पहले दिन की एडवांस बुकिंगी काफी कमजोर हुई है.इस  वैसे बतौर निर्देषक अजय देवगन अपनी इस चैथी फिल्म में भी मात खा गए हैं.वैसे प्रेस षो में मेरे बगल में बैठा एक पत्रकार बुदबुदा रहा था कि इस एक्षन फिल्म में सारा का तो एक्षन डायरेक्टर ने किया है.तो फिर निर्देषक ने क्या किया?

 

 

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तमिल की सफलतम फिल्म ‘‘कैथी’’ का हिंदी रीमेक करते समय इसकी पटकथा चार लोगों, आमिल कियान खान,अंकुष सिंह,श्रीधर दुबे व संदीप केलवानी ने मिलकर लिखी है.पर यह सभी मात खा गए.नकल करने पर यह हाल है,तो इनसे मौलिक फिल्म की उम्मीद करना बेकार ही है.‘नकल के लिए भी अक्ल चाहिए.’फिल्म में कहानी व पटकथा के स्तर पर काफी गड़बड़ियां हैं.भोला को जेल से रिहा होते समय पात चला कि उसकी बेटी ज्योति अनाथाश्रम में है.पर भोला की पत्नी कब गर्भवती हुई और बेटी कब पैदा हुई.फिल्म मेें वाराणसी में गंगा नदी के तट पर भोला एक डाक्टर(आमला पौल ) से विवाह करता है.और वहीं होटल में रूका है.तभी गंगा नदी में नाव पर बैठकर अभिषेक बच्चन व विनीत कुमार सहित सत्तर लोग आते हैं.भोला की पत्नी पर हमला हो जाता है. बाकी भोला संवाद में बताता है कि इन सत्तर लोगों की हत्या के जुर्म में उसे सजा हुई थी.भोला ने कभी भी अपनी दस वर्षीय बेटी ज्योति की षक्ल नही देखी है.दस वर्ष से भोला जेल में था.अब क्या समझा जाए…? इसी तरह जब भोला के पास जेल से छोड़े जाने का पत्र है,तो फिर उसे बिना किसी गुनाह के दूसरी जगह की पुलिस गिरफ्तार क्यांे करती है?फिल्म में कुछ ऐसे दृष्य भी हैं,जिनका जिक्र करने पर फिल्म के लिए स्पाॅयलर हो जाएगा.पर वह दृष्य भी गड़बड़ हैं.

कुछ एक्षन दृष्य जरुर अच्छे हैं. वैसे भी षुरू से अंत तक फिल्म में मार धाड़,खून खराबा ही है.फिल्म ड्ग्स की तस्करी या ड्ग्स गिरोह को लेकर कुछ नही कहती.इंटरवल के बाद फिल्म अधिक कमजोर हो जाती है. फिल्म के क्लायमेक्स खत्म होते जब ज्योति अपने पिता भोला से पुलिस स्टेषन में तमाम लाषों के बीच मिलती है,उस वक्त पिता पुत्री के बीच जो इमोषन होने चाहिए थो,वह उभर कर नही आ पाए.पहली बात तो ज्योति को उसके पिता से मिलवाने की जगह ही गलत चुनी गयी.उस वक्त वहां जो दृष्य था,उसका दस वर्ष की बालिका के दिलो दिमाग पर किस तरह का मनोवैज्ञानिक असर हो सकता है,इस पर लेखक व निर्देषक ने विचार ही नहीं किया. ‘‘भोला’’ में सारे मसाले भर दिए गए हैं.रोमांस भी है.गाने और आइटम सांग भी है.इतना ही नही किसी भी दृष्य में अजय देवगन मार धाड़ करते हुए थकने की बजाय एकदम तरोताजा नजर आते हैं. फिल्म को थ्री डी में भी बनाया गया है.मगर इसका थ्री डी प्रभाव नही छोड़ता है.वीएफएक्स भी काफी कमजोर है.फिल्म का पाष्र्वसंगीत इतना कानफोड़ू है कि कई दृष्यों में संवाद भी ठीक से सुनायी नही पड़ते. फिल्म में उत्तर प्रदेष की आंचलिक भाषा व लहजे में संवाद सुनकर सुखद अहसास होता है.क्रिष्चियन पुलिस इंस्पेक्टर डायना जोसेफ को षुद्ध हिंदी बोलते सुनकर कुछ लोग आष्चर्य चकित होंगे,तो कुछ लोग इसे निर्देषक की कमजोर कड़ी मानेंगे.

इस फिल्म को देखकर यह समझना मुष्किल हो रहा है कि भोला अकेले ही सौ लोगो से कैसे भिड़ जाता है? उसके अंदर यह ताकत माथे पर भगवान षंकर की भस्म लगाने से आती है,अथवा कई किलो मटन एक साथ खाने से आती है या षराब का सेवन करने से आती है? कुछ लोगों की राय में षराब का सेवन करने के बाद इंसान षारीरिक रूप से कमजोर हो जाता है.पर षराब पीने के बाद भी भोला का दिमाग तेज गति से चलता है और उसकी ताकत कम नही होती.फिल्म कहीं न कहीं धार्मिक अंधविष्वास को भी बढ़ावा देती है.फिल्म के कुछ दृष्यों पर सेंसर बोर्ड का मौन समझ में आता है.क्योकि फिल्म के कुछ दृष्य वाराणसी और गंगा नदी पर फिल्माए गए हैं.फिल्म में भोला माथे पर भस्म लगाकर गंगा आरती भी करता है. बहरहाल, फिल्म इस सूचना के साथ खत्म होती है कि भोला वापस आ गया है,जिससे निपटना है.यानी कि इसका सिक्वल भी आएगा.

अभिनयः

भोला के जटिल किरदार मंे अजय देवगन कुछ नया नही कर पाए.वह खुद को दोहराते हुए ही नजर आते हैं.ड्ग्स गिरोह के खात्मे के लिए प्रयासरत पुलिस इंस्पेक्टर डायना के किरदार में तब्बू का अभिनय ठीक ठाक है.आषु के किरदार में दीपक डोबरियाल का अभिनय जरुर आकर्षित करता है. छोटे किरदारो में किरण कुमार,विनीत कुमार, अभिषेक बच्चन, आमला पौल,गजराज राव के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं.यह सभी महज षो पीस ही रहे.

सस्टेनेबल फैशन में हाथ बढाने, आगे आये कई सेलेब्स

पिछले कई सालों से फैशन इंडस्ट्री को सस्टेनेबिलिटी के साथ जोड़ा जाता रह है, क्योंकि फैशन इंडस्ट्री का एनवायर्नमेंटल पोल्यूशन में एक बड़ा हाथ रहा है, क्योंकि फैशन प्रोडक्ट से एक बहुत बड़ी मात्रा में वेस्ट प्रोडक्ट निकलता है, जिसका सही रूप में प्रयोग करना जरुरी है, इसलिए सभी डिज़ाइनर इस बात का ध्यान रखने की कोशिश करते है कि स्लो फैशन हो, ताकि अंधाधुंध कपडे न खरीदकर एक अच्छी और खूबसूरत पोशाक पर व्यक्ति पैसे खर्च करें जो सालों साल एक जेनरेशन से दूसरी जेनरेशन को हस्तांतरित की जा सकें. इस बार की लेक्मे फैशन वीक 2023 जो फैशन डिजाइनिंग काउंसलिंग ऑफ़ इंडिया के पार्टनरशिप के साथ शुरू की गयी, जिसमे पहले दिन इको फैशन पर आधारित शो में आईएनआईऍफ़डी जेन नेक्स्ट के विजेता ‘कोयटोय’ ने ब्राइट कलर्स और ब्राइट मोटिफ्स से सबके मन को मोहा, राज त्रिवेदी की कलेक्शन "Scintilla" ने मेटेलिक पोशाक को रैंप पर जगह दी. हीरू के कलेक्शन की स्मार्ट लेयरिंग फ्री फ्लो फैशन पर अधिक ध्यान दिया, जिसमें स्टोन वाशिंग, चुन्नटे, प्लीट्स और स्मोकिंग पर अधिक काम किया गया. जैकेट, पलाज़ो पेंट, स्कर्ट, फ्रॉक्स आदि सभी मेलेनियल पोशाक जो यूथ हर अवसर पर पहन सकते है, उसको प्राथमिकता दी गई.

सस्टेनेबल साडी की बात करें, तो इसमें डिज़ाइनर अनाविला मिश्रा की पोशाक ‘डाबू’ की खूबसूरती देखने लायक थी. 10 साल के उनके इस अनुभव में उन्होंने साड़ी पहनने को एक नया रूप दिया है, जो मॉडर्न, लाइट एंड ऑथेंटिक रही. इसमें डिज़ाइनर ने ब्लाक प्रिंटिंग, वेजिटेबल डाई आदि का प्रयोग किया है, जो बहुत ही स्टाइलिंग और अलग दिखे. उनके कॉटन साडीज, जो धोती पैटर्न, जुड़े के साथ सबके आकर्षक का केंद्र बनी, ये स्टाइल अनाविला मिश्रा ने बंगाल के शान्तिनिकेतन से प्रेरित हो कर क्रिएट किया है, वह कहती है कि आजकल की लडकिया साड़ी ड्रेपिंग नहीं जानती, उन्हें ये कठिन लगता है. मैंने बंगाल के फुलिया से प्रेरित मसलिन फेब्रिक को साड़ी में प्रयोग किया है, जो बहुत सॉफ्ट और आरामदायक है और इसे सालों से बंगाल में महिलाएं बिना ब्लाउज के पहना करती थी, जिसे आज की लड़कियों ने कभी देखा और जाना नहीं, ये कपडे बहुत ही सॉफ्ट और सालों साल पहने जा सकते है. इसमें उन्होंने ब्लाक प्रिंट के लिए मड यानि कीचड़ का प्रयोग किया है, जिसमे कपडे पर पहले कीचड़ को स्प्रे कर बाद में रंगों का स्प्रे किया जाता है, जो पर्यावरण के हिसाब से भी हानिकारक नहीं होता और कूल फील देता है.

दिल्ली की डिज़ाइनर डूडल एज ने भी रिसायकलड वेस्ट मटेरियल से बने पोशाक रैम्प पर उतारें, जिसमे 90 के दशक के सुंदर फ्लोरल प्रिंट्स, सॉलिड कलर्स, डेनिम प्रस्तुत किये. दूसरी सबसे अच्छी रुचिका सचदेवा की ब्रांड बोडीस रही, जिसके कैजुअल आउटफिट काफी सुंदर रहे, जिसमे प्लेटेड शर्ट्स, फ्लेयर्ड ट्राउजर्स, असमान टॉप, जो किसी भी दिन और रात को पहनने के लिए परफेक्ट पोशाक है, उसे दिखाया गया.

इस दिन एक्ट्रेस रकुल प्रीत सिंह डिज़ाइनर श्रुति संचेती के लिए शो स्टॉपर रही, जबकि अभिनेता विजय वर्मा दिव्यम मेहता के लिए और अभिनेत्री, मॉडल आर माँ नेहा धूपिया आईएनआईऍफ़डी लांचपैड के लिए रैम्प पर वाक् किया और नए डिजाईनरों को सस्टेनेबल फैशन के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. इसके अलावा इस दिन कोंकना सेन शर्मा, सोनाली बेंद्रे और मंदिरा बेदी भी सस्टेनेबल फैशन को सपोर्ट करने के लिए इंडियन ऑउटफिट में दिखाई पड़ी.

इस साल गर्लफ्रेंड सबा के साथ दूसरी शादी करेंगे Hrithik Roshan?

बॉलीवुड के मशहूर एक्टर ऋतिक रोशन अपनी फिल्मों के साथ-साथ एक्ट्रेस सबा आजाद संग अपने रिलेशनशिप के लिए काफी सुर्खियों में रहते हैं. ऋतिक रोशन को अक्सर सबा आजाद के साथ स्पॉट किया जाता है. जहां फैंस उन्हें साथ देखना पसंद करते हैं तो वहीं ट्रोल्स उनका मजाक उड़ाने से जरा भी पीछे नहीं हटते हैं. इन सबसे इतर ऋतिक रोशन और सबा आजाद को लेकर हाल ही में बड़ी खबर आ रही है। दरअसल, कहा जा रहा है कि ऋतिक रोशन और सबा आजाद इस साल के अंत तक शादी के बंधन में बंध सकते हैं

 

ऋतिक रोशन और सबा आजाद की शादी से जुड़ी खबर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है. हालांकि अभी तक इस खबर की आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है. न ही खुद ऋतिक और सबा ने मामले पर अपनी चुप्पी तोड़ी है. बता दें कि दोनों की शादी को लेकर पिछले साल भी खबर आई थी. दरअसल, बताया जा रहा था कि ऋतिक रोशन और सबा आजाद 2023 में सीक्रेट वेडिंग कर सकते हैं, जिसमें केवल परिवार और बेहद खास दोस्त शामिल होंगे.

रोशन परिवार के करीब हैं सबा आजाद

ऋतिक रोशन की गर्लफ्रेंड और सबा आजाद ने धीरे-धीरे एक्टर के परिवार के दिल में भी जगह बना ली है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो न केवल ऋतिक के मम्मी-पापा ने, बल्कि उनके दोनों बच्चों ने भी सबा आजाद को अपना लिया है. हैरानी की बात तो यह है कि सबा आजाद और ऋतिक रोशन को कई बार सुजैन खान और अर्सलान गोनी के साथ पार्टी करते भी देखा जाता है.

 

 

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कुछ इस तरह शुरू हुई थी ऋतिक और सबा की प्रेम कहानी

बता दें कि ऋतिक रोशन और सबा आजाद की मुलाकात ट्विटर के जरिए हुई थी. यहां दोनों की थोड़ी बातचीत हुई, जिसके बाद ऋतिक ने सबा को डिनर के लिए बुलाया था. धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे को दिल भी दे बैठे. हालांकि कई बार अपनी प्रेम कहानी के लिए ऋतिक रोशन और सबा आजाद ट्रोल भी हो जाते हैं.

‘‘एंटमैन एंड द वास्प- क्वांटमेनियाः निराशाजनक

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः मार्वल स्टूडियो

निर्देशकःपीटन रीड

कलाकारः पाॅल रूड, कैथरीन न्यूटन, इवांगेलिन लिली,माइकल डगलस,मिशेल फिफेर, बिल मुरे, जोनाथन मेजर्स व अन्य.

अवधिः दो घंटे चार मिनट

मार्वल काॅमिक्स पर आधारित कई सुपर हीरोज की कहानियांे पर मार्वल की तरफ से फिल्में बन चुकी हैं.अब मार्वल फेज 5 की शुरूआत करने जा रहा है,उसी के तहत लगभग पांच वर्ष बाद ‘एंटमैन एंड द वास्प’ की तीसरी सीरीज ‘‘एंट मैन द वास्पः क्वांटमेनिया’’ 17 फरवरी से भारतीय सिनेमाघरों में पहुंची है.

कहानीः

एंट-मैन एंड द वास्प की शुरूआत सेन फ्रांसिस्को से होती है. जहां स्कॉट लैंग (पॉल रुड ) सामान्य जिंदगी जी रहा है. उसके पास करने का कुछ खास नही है.वह अपनी बेटी के संग समय बिताता है.पत्नी के संग रोमांस करता है.और अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक माता पिता के संग अपने संबंधों को मजबूती प्रदान करता है.स्कॉट लैंग- एंट मैन (पॉल रुड ) ने अपनी आत्मकथा भी लिखी है.लैंग लाइमलाइट से असहज दिखते हैं. अपनी वीरता के बावजूद, एंट-मैन अन्य मार्की एवेंजर्स की तुलना में एक अंडररेटेड सुपर हीरो की तरह है.भोजनालय का वृद्ध कर्मचारी उन्हे स्पाइडर मैन समझता है

.स्काॅट की बेटी कैसी लैंग(कैथरीन न्यूटन) अब बड़ी हो गयी है और विज्ञान में उसे महारत हासिल हो चुकी है.वह भी अपने पिता की ही तरह एंटमैन सूट और विज्ञान का उपयोग करने लगी है.कैसी ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है,जो क्वांटम क्षेत्र को संकेत भेजती है.मगर वह कुछ ऐसी गड़बड़ी कर देती है जिसके चलते स्काट लैंग,कैसी लैंग,होप( इवांगेलिन लिली ),हैंक(माइकल डगलस ) व जेनेट(मिषेल फिफेर ) क्वांटम रेल्म में पहुॅच जाते हैं.जहां एक पुराने मित्र लॉर्ड क्रिलर ( बिल मुरे ) के साथ जेनेट की मुलाकात हांक को असहज करती है .क्वांटम रेल्म में पहले से ही खलनायक कांग द क्वान्क्वेरर (जोनाथन मेजर्स) मौजूद है.सवाल है कि कांग बना कैसे? क्या एंटमैन व उनकी टीम कांग को रोक सकती है? कांग और जेनेट के बीच क्या रिश्ता है?

लेखन व निर्देशनः

जिन दर्शकों ने ‘एंटमैन एंड द वास्प’ की पिछली दो फिल्में देखी हैं,उन्हें ‘‘एंटमैन एंड द वास्पः क्वांटमेनिया’’

जरुर निराष्श् करेगी.माना कि इस बार कहानी बहुत ही सपाट है,मगर पटकथा लेखक जेफ लवनेस इस बार बुरी तरह से मात खा गए हैं.सभी किरदार सुपहीरो के करीब होकर भी साधारण लगते हैं.एंट मैन के साथी लुईस (माइकल पेना) के किरदार और उसके दो साथियों के सहारे ‘एंट मैन‘ जैसा ह्यूमर भरने की कोशिश फिल्म को बेाझिल बना देती है.

इस फिल्म का निर्देशन पीटन रीड ने किया है,जो कि पिछली दो सीरीज का निर्देषन कर चुके हैं.अफसोस पिछली दो सीरीज के मुकाबले इस बार वह कुछ खास करिश्मा नही दिखा पाए.निर्देशक पीटन रीड की एंट-मैन को गार्डियंस ऑफ द गैलेक्सी जैसी जगह में ले जाने की कोशिश दर्शकों के गले नही उतर रही.

अभिनयः

पाॅल रुड, लिली, डगलस, सभी केवल गतियों का सामना करते हुए प्रतीत होते हैं.पाॅल रूड अपनी तरफ से मेहनत करते नजर आते हैं,मगर उन्हें पटकथा का सहयोग नही मिलता.युवा कैथरीन न्यूटन ने मार्वल फ्रैंचाइजी में कैसी के रूप में कदम रखा, जो अब स्कॉट और इवांगेलिन की बड़ी हो चुकी बेटी है. न्यूटन अपनी संवाद अदायगी में ईमानदार हैं, लेकिन कार्रवाई में अपेक्षित तीव्रता का अभाव है.विलेन कांग के किरदार में जोनाथन मेजर्स डराने में सफल नही होते.इवांगेलिन लिली के पास नया हेयरकट है जो वास्प लुक के साथ अच्छा लगता है. इसके अलावा, उसके या चरित्र के बारे में बहुत कुछ नहीं है.छोटे किरदार में बिल मुर्रे अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

म्यूजिक इवेंट के दौरान सोनू निगम और उनके भाई पर हमला, ऐसी है सिंगर की हालत

चेंबूर में एक लाइव म्यूजिक इवेंट के दौरान ये हादसा हुआ, जहां सोनू निगम के साथ कुछ लोगों ने हमला कर दिया. बताया जा रहा है कि सोमवार को चेम्बूर फेस्टिवल का आखरी दिन था, जिसमें सोनू निगम को बुलाया गया था. जिस वक्त सोनू निगम परफॉर्म कर वापस जा रहे थे, उसी दौरान कुछ लोग सेल्फी लेने लगे और धक्का- मुक्की होने लगी. तभी सोनू निगम की टीम का एक आदमी नीचे गिर गया, उसे अस्पताल लाया गया.

सोनू निगम से मारपीट का मामला सामने आ रहा है. एक लाइव शो के दौरान सिंगर के साथ कुछ लोगों ने धक्का-मुक्की की. जिसमें उनके उस्ताद के बेटे रब्बानी खान को चोट आई है. जिन्हें इलाज के लिए अस्पताल भेजा गया, जहां से उन्हें बाद में घर भेज दिया गया है. वहीं मामले को लेकर सोनू निगम ने चेंबूर थाने पहुंचकर शिकायत भी दर्ज कराई है. जिसके बाद पुलिस मामले की जांच में जुट गई है और धक्का-मुक्की करने वालों की पहचान कराई जा रही है.

 

 

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एक आरोपी के खिलाफ केस दर्ज

पुलिस अधिकारी ने आगे कहा कि मिली जानकारी के मुताबिक हमला जानबूझकर नहीं किया गया था. उन्होंने कहा, “सोनू निगम के साथ बातचीत के अनुसार, घटना जानबूझकर नहीं लगती थी, यह एक शख्स ने की थी. इसके बाद वॉलंटियर्स ने सिचुएशन को कंट्रोल किया. एफआईआर में सिर्फ एक नाम है यह सिर्फ एक मामला है जहां गायक को आरोपी ने फोटो खिंचवाने के इरादे से पकड़ा था.”

 

 

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कॉन्सर्ट आयोजक ने सोनू निगम और टीम से मांगी माफी

चेंबूर में इवेंट के दौरान सोनू निगम और उनकी टीम से बदसलूकी के मामले में कॉन्सर्ट के आयोजक की तरफ से भी अब  ट्वीट किया गया है. ट्वीट में लिखा गया है, “सोनू निगम स्वस्थ हैं. ऑर्गेनाइजेशन की टीम की ओर से हमने ऑफिशियली सोनू सर और उनकी टीम से अप्रिय घटना के लिए माफी मांगी है. प्लीज किसी भी बेसलेस अफवाहों और मामले का राजनीतिकरण करने की कोशिश करने वालों पर विश्वास न करें.”

बॉलीवुड के दिग्गज सिंगर हैं सोनू निगम

बताते चलें कि कार्तिक आर्यन और कृति सेनन की ‘शहजादा’ का टाइटल सॉन्ग रिलीज किया गया था जिसे सोनू निगम ने गाया था. इस गाने को लोग खूब पसंद कर रहे हैं. लंबे समय बाद सोनू की आवाज किसी बॉलीवुड सॉन्ग में सुनाई पड़ रही ह. सोनू निगम ने कई सिंगिंग रियलिटी शोज भी होस्ट किए हैं. सोनू को उनकी शानदार सिंगिंग के लिए कई अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं.

अभिनेत्री कावेरी प्रियम से जाने बुजुर्गो के अकेलापन का सीधा हल, कैसे, पढ़े इंटरव्यू

अभिनेत्री कावेरी प्रियम झारखंड के बोकारों की है. उन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक रहा. उनके पिता सेल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) में प्रबंधक के रूप में काम करते हैं, उनके भाई रितेश आनंद ब्रिटिश टेलीकॉम में वित्तीय विश्लेषक हैं. कावेरी के परिवार में कोई भी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से नहीं है, फिर भी उनका साथ हमेशा रहा है. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, वेल्लोर से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया. कावेरी ने एक्टिंग का कोर्स दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिएटिव एक्सीलेंस से वर्ष 2016 में किया था. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह कैरियर बनाने के लिए मुंबई आ गईं और कई प्रिंट शूट और विज्ञापन करके एक मॉडल के रूप में अपना करियर शुरू किया.

टेलीविजन पर कैरियर की शुरुआत उन्होंने साल 2015 में नागिन सीजन 2 से की थी. उस शो में उन्होंने एक छोटी सी भूमिका निभाई थी. इस शो के बाद उन्होंने सीरियल “परदेस में है मेरा दिल” में काम मिला. साल 2019 में, उन्होंने हिंदी टीवी सीरियल “ये रिश्ते हैं प्यार के” में कुहू माहेश्वरी की भूमिका निभाई थी, जिसमे आलोचकों ने उनके काम को काफी सराहा. इसके बाद उन्हें कई शोज मिले, हर तरह की भूमिका पसंद करने वाली कावेरी अब सोनी सब की शो ‘दिल दिया गल्लां’ में अमृता ब्रार की मुख्य भूमिका में है. शो और अपनी  जर्नी के बारें में उन्होंने खास गृहशोभा के लिए बात की,  आइये जानते है उनकी जर्नी कैसी रही.

 

रिलेटेबल कहानी

कावेरी के पेरेंट्स झाड़खंड के बोकारो में रहते है और उन्होंने स्कूल की पढ़ाई वही से की है. आज के हालात पर बनी इस शो में काम करने की वजह के बारें में पूछने पर कावेरी बताती है कि आज अधिकतर घरों में बच्चे पेरेंट्स को छोड़कर बाहर या विदेश काम करने या पढने चले जाते है, ऐसे में उनके पेरेंट्स अकेले रह जाते है. धीरे-धीरे उनके बीच दूरियां बढती जाती है, जेनरेशन  गैप बढ़ता जाता है. माता-पिता अपने दिल की बात किसी से शेयर नहीं कर पाते. उनमे डिप्रेशन और अकेलापन का विकास हो जाता है. इतना ही नहीं मैं इस भूमिका से खुद को हमेशा रिलेटेबल पाती हूँ, क्योंकि मैं भी अपने पेरेंट्स को छोड़कर मुंबई आ गई हूँ. मुझे उनकी भावनाओं की समझ है. चरित्र को निभाना भी मुझे अच्छा लग रहा है, क्योंकि इसमें मैं मॉडर्न लड़की हूँ, लेकिन गुजराती पारंपरिक परिवार से हूँ, ऐसी परिस्थिति में भी मैं बहुत ग्राउंडेड हूँ. मैं इससे खुद को बहुत अच्छी तरीके से जोड़ पाती हूँ, क्योंकि मैं रियल लाइफ में प्रैक्टिकल होने के साथ-साथ पारंपरिक चीजों को भी फोलो करती हूँ. दोनों शेड मुझे बहुत पसंद है.

रिश्तों में होनी चाहिए बातचीत

आज के एकाकी परिवार में बुजुर्गों को एक उम्र के बाद सम्हालने वाले कम होते है और विदेशों की तरह यहाँ उतनी सुविधा नहीं है कि एक बुजुर्ग अकेले शांतिपूर्वक सुरक्षित रह सकें और उनकी देखभाल सरकार या किसी संस्था के द्वारा किया जाता हो. देखभाल की व्यवस्था होने पर उन्हें अकेले रहने में किसी प्रकार की समस्या नहीं होती, पर यहाँ ऐसा नहीं है और बुजुर्गो की देखभाल कमोवेश बच्चों को ही करना पड़ता है. कावेरी कहती है कि रिश्ते को अच्छा बनाए रखने के लिए दो लोगों के बीच में बातचीत होने की बहुत जरुरत है, क्योंकि भाई-बहन, पति-पत्नी, या किसी भी रिश्ते में एक दूसरे की खैर खबर लेने की जरुरत होती है, इससे व्यक्ति दूर रहकर भी एक दूसरे से जुड़ा रह सकता है. इसे अपनाने की जरुरत है, क्योंकि भविष्य में आगे बढ़ने के लिए कोई भी कही जा सकता है, लेकिन परिवार भी इग्नोर न हो, इसका ख्याल उन्हें रखना है. मैं कितनी भी व्यस्त क्यों न रहूं, मैं अपने परिवार और दोस्तों से बात करने का समय अवश्य निकाल लेती हूँ और ये मुझ पर ही निर्भर करता है. इसलिए ये सभी बच्चों पर अधिक निर्भर करता है, वैसे ही पेरेंट्स को भी बच्चों को समझना है, वे अधिक एक्सपेक्टेशन बच्चों से न रखे, तभी वे खुश रह सकते है. ये सही है कि बाहर जाने वाले बच्चों के लिए लगातार एक सपोर्ट की जरुरत होती है. पहले विदेश जाने पर किसी को भी परिवार की खबर लेना मुश्किल होता था, पर आज ये नहीं है, तकनीक ने अपना योगदान दिया है. इसमें सब सही हो सकता है, एफर्ट दोनों तरफ से होनी चाहिए.

 

मिली प्रेरणा

फिल्मों में आने की प्रेरणा के बारें में पूछने पर कावेरी का कहना है कि बचपन से ही मुझे एक्टिंग का काफी शौक रहा है. स्कूल कॉलेज में मैंने काफी नाटकों और डांस में भाग लिया है. बडी हुई, तो एक्स्ट्रा कर्रिकुलम भाग लेना भी अच्छा लगता था, इससे मेरे अंदर अभिनय की तरफ बढ़ने की प्रेरणा मिली. सोसाइटी में किसी भी फेस्टिवल पर मैं आसपास के सबको बुलाकर स्क्रिप्ट लिखती थी और स्टेज पर परफॉर्म करती थी. ये खेल-खेल में निकल जाता था. तब मैंने नहीं सोचा नहीं था कि एक्टिंग मेरा प्रोफेशन बनेगा, क्योंकि परिवार में एजुकेशन को अधिक महत्व दिया जाता था, पढाई को पूरा करना मेरे लिए जरुरी था. मैं उसे पूरा कर रही थी और साथ में दिल्ली में नाटक देखा करती थी. एक जगह मैंने शो के लिए ऑडिशन दिया था, जो मुंबई में होना था, मैं चुन ली गई और उस शो के लिए मुंबई आई, लेकिन शो शुरू नहीं हुआ, पर मैंने समय न गवाकर मुंबई आकर एक्टिंग का कोर्स ज्वाइन कर लिया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि मैं अभिनय के क्षेत्र में कुछ कर सकती हूँ. मेरा पैशन एक्टिंग ही है और इसमें मुझे समय देने और मेहनत करने की जरुरत है.

परिवार का सहयोग 

कावेरी का आगे कहना है कि परिवार ने हमेशा सहयोग दिया है, पहले उनके मन में डाउट तो था कि मैं कैसे मुंबई जाकर सरवाईव करुँगी, लेकिन उन्होंने ही मुझे मुंबई छोड़ने आये और सारा इंतजाम कर वापस गए. मैं इस बात में खुद को लकी मानती हूँ.

संघर्ष 

कावेरी कहती है कि मेहनत की बात करें. तो वह मेरे लिए बहुत अधिक ही था, शुरू में मैंने एक दिन में 20 से 25 ऑडिशन दिए है. हर दिन ऑडिशन के लिए जाती है, ऑडिशन देकर ही मैंने बहुत कुछ सीखा है. कैसे रिलेटेबल ऑडिशन दिया जाता है, उनकी पसंद क्या होती है, आदि को समझने में समय लगा, लेकिन मैं उन दिनों थिएटर करती रहती थी, इससे समय का पता अधिक नहीं चला. असल ब्रेक वर्ष 2018 में ‘ये रिश्ते है प्यार के’ से मिला. मैने दो साल तक संघर्ष किया है. हर स्टेज का अलग संघर्ष रहता है. पहले लोगों को जानना, जान जाने पर काम का मिलना, और अंत में खुद के अनुसार काम का मिल पाना. ऑफ़र आते है, पर मुझे करना नहीं है, तो ना बोलना पड़ता है. ना कहने के बाद पसंद का काम मिलना, इसमें संघर्ष रहता है. मुझे अब अच्छा काम मिला.

नहीं है कोई दायरा

मैंने कभी खुद को किसी दायरे में नहीं बाँधा, अलग-अलग एक्टिंग करनी है, बस यही सोच हमेशा रही है. किसी भी फिल्म, वेब या टीवी शो हर में काम करने की इच्छा है. वेब में इंटिमेट सीन्स होते है, पर ये कहानी पर निर्भर होता है.  मैंने हमेशा फॅमिली शो करने की कोशिश की है. मैं इंटिमेट सीन्स को गलत नहीं कहती. ये हर कलाकार पर निर्भर करता है कि वह कौन सी शो करे और किसे ना कहे. मैं एक कलाकार हूँ और हर एक्टर डायरेक्टर के साथ काम करना चाहती हूँ, लेकिन अमिताभ बच्चन मेरे ड्रीम को-स्टार है.

दिल्ली से मुंबई आकर खुद को सेटल्ड करना कावेरी के लिए आसान नहीं था, लेकिन उन्हें करना क्या है, इसकी जानकारी थी, जिससे उन्हें अधिक इधर-उधर भटकना नहीं पड़ा. बाहर से आने पर स्ट्रेस लेवल हमेशा हाई रहता है, ऐसे में खुद को स्ट्रेस मुक्त रखने के लिए कावेरी ने हमेशा परिवार का सहारा लिया. वह कहती है कि तकनीक का सहारा आज अधिक है, ऐसे में तनाव होने पर एक वेब सीरीज उठा कर पूरा देख लेती हूँ, ताकि बाकी कुछ भी भूल जाऊं, इसके अलावा मैडिटेशन करती हूँ. मेरी इच्छा है कि दर्शक मुझे देंखे और उनका प्यार मेरे लिए हमेशा बनी रहे.

फिल्म समीक्षाः ‘‘पठान: बेहतरीन एक्शन, बेहतरीन लोकेशन,बाकी सब शून्य…’’

रेटिंग: डेढ़ स्टार

निर्माता: आदित्य चोपड़ा

पटकथा लेखक: श्रीधर राघवन

निर्देषक: सिद्धार्थ आनंद

कलाकार: ष्षाहरुख खान,जौन अब्राहम,दीपिका पादुकोण, आषुतोष राणा,डिंपल कापड़िया, सिद्धांत घेगड़मल,गौतम रोडे,गेवी चहल,षाजी चैहान, दिगंत हजारिका, सलमान खान व अन्य.

अवधि: दो घंटे 26 मिनट

‘ये इश्क नही आसान’, ‘दुनिया मेरी जेब में’,‘शहंशाह ’ जैसी फिल्मों के निर्माता बिट्टू आनंद के बेटे सिद्धार्थ आनंद ने बतौर निर्देषक फिल्म ‘‘सलाम नमस्ते’’ से कैरियर की षुरूआत की थी.उसके बाद उन्होने ‘तारा रम पम’,‘बचना ऐ हसीनों’,‘अनजाना अनजानी’,‘बैंग बैंग’ और ‘वाॅर’ जैसी फिल्मंे निर्देषित कर चुके हैं.सिद्धार्थ आनंद निर्देषित पिछली फिल्म ‘‘वार’’ 2019 में रिलीज हुई थी,जो कि आदित्य चोपड़ा निर्मित ‘वायआरएफ स्पाई युनिवर्स’ की तीसरी फिल्म थी.और लगभग साढ़े तीन वर्ष बाद  बतौर निर्देषक सिद्धार्थ आनंद नई फिल्म ‘‘पठान’’ लेकर आए हैं, जिसका निर्माण ‘यषराज फिल्मस’ के बैनर तले आदित्य चोपड़ा ने किया है. फिल्म ‘पठान’,‘वायआरएफ स्पाई युनिवर्स’ की चैथी फिल्म है.फिल्म ‘पठान’ पर ‘यषराज फिल्मस’के साथ ही इसके मुख्य अभिनेता षाहरुख खान ने भी काफी उम्मीदें लगा रखी हैं.2022 में ‘यषराज फिल्मस’ की सभी फिल्में बुरी तरह से असफल हो चुकी हैं.जबकि षाहरुख खान की पिछली फिल्म ‘‘जीरो’’ 2018 में प्रदर्षित हुई थी,जिसने बाक्स आफिस पर पानी तक नहीं मांगा था.फिल्म ‘पठान’ को तमिल व तेलगू में भी डब करके प्रदर्षित किया गया है.‘यषराज फिल्मस’ की यह पहली फिल्म है,जिसे आईमैक्स कैमरों के साथ फिल्माया गया है.

dipika

‘यषराज फिल्मस’ ने फिल्म ‘पठान’ का जब पहला गाना अपने यूट्यूब चैनल पर रिलीज किया था,उस वक्त से ही वह गाना और  फिल्म विवादों में रही है.उस वक्त बौयकौट गैंग ने दीपिका पादुकोण की भगवा रंग की बिकनी को लेकर आपत्ति दर्ज करायी थी.पर अफसोस की बात यह है कि फिल्म ‘पठान’ में भगवा रंग कुछ ज्यादा ही फैला है.फिल्म देखकर दर्षक की समझ में ेआता है कि भगवा रंग तो ‘आईएसआई’ के एजंटांे को भी हिंदुस्तान की तरफ खीच लेता है.

कहानीः

एक्षन प्रधान,देषभक्ति व जासूसी फिल्म ‘‘पठान’’ की कहानी के केंद्र में राॅ एजेंट फिरोज पठान (षाहरुख खान) और पूर्व ‘राॅ’ अफसर जिम्मी (जौन अब्राहम) और पाकिस्तानी खुफिया एजंसी की जासूस डाॅ. रूबैया मोहसीन (दीपिका पादुकोण) और पाकिस्तानी आईएसआई जरनल हैं.फिल्म की षुरूआत 5 अगस्त 2019 से होती है,जब कष्मीर से धारा 370 हटाए जाने की खबर से बौखलाया हुआ पाकिस्तानी सेना का जनरल अपनी मनमानी करते हुए पूर भारत को नेस्तानाबूद करने का सौदा जिम्मी से करता है. जिम्मी दक्षिण अफ्रीका के खतरनाक हथियार विक्रताओं से हथियार खरीदने का सौदा करता है.जहां पर पठान घायलअवस्था में बंदी है.फिर कहानी तीन साल के बाद षुरू राॅ के आफिस से षुरू होती है.जब एक खुफिया पुलिस अफसर (सिद्धांत घेगड़मल),राॅ की अफसर नंदिनी को सूचना देता है कि पठान की तस्वीर नजर आयी है.अब नंदिनी उस अफसर के साथ पठान से मिलने निकलती है.विमान में बैठने के बाद वह पठान की कहानी बताती है कि राॅ प्रमुख कर्नल लूथरा ( आषुतोष राणा ) राॅ के हर एजेंट को कुछ समझता नही है.एक दिन खबर मिलती है कि दुबई में हो रहे वैज्ञानिकों के सम्मेलन में भारत के दो वैज्ञानिक भी होंगे तथा मुख्य अतिथि भारत के राष्ट्पति है.कर्नल लूथरा भारत के राष्ट्पति की पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं.पठान अपनी टीम के साथ आतकंवादियों को पकड़ने की जिम्मेदारी लेता है.कर्नल लूथरा राष्ट्पति व वैज्ञानिकों अलग अलग राह पर भेज देते हैं.जिम्मी वैज्ञानिको के सामने आकर उन्हे अपने कब्जे मंेकर लेता है,पठान पहुॅचता है,पर जिम्मी के हाथों परास्त हो जाता है.उसके हाथ कुछ नही आता.यहीं पर जिम्मी की बातों से खुलासा होता है कि जिम्मी एक पूर्व राॅ अफसर है,जिसे सरकार ने मरने के लिए छोड़ दिया था.भारत सरकार के रिकार्ड मंे राॅ अफसर जिम्मी की मौत हो चुकी है और उसे षौर्य पदक से नवाजा जा चुका है.इसलिए अब जिम्मी भी भारत के खिलाफ है.अब वह पैसे के लिए पाकिस्तानी आईएसआई एजंसंी के जनरल के लिए काम करता है.फिर एक दिन पता चलता है कि लंदन में डांॅ रूबया के एकाउंट से बहुत बड़ी रकम जिम्मी को ट्ांसफर हुई है. पठान जानकारी निकाल कर स्पेन पहुॅचता है?जहां पता चलता है कि उसे जिम्मी ने वहां बुलाने के ेलिए यह खबर राॅ तक भिजवायी थी.डाॅ रूबिया आईएसआई एजेट हैं और जिम्मी के साथ काम कर रही है.पर उसका दिल पठान पर आ जाता है,इसलिए वह जिम्मी के गुंडांे ेसे उसे बचाती है और फिर उसके ेसाथ मिलकर रक्तबीज लेने जाती है.रक्तबीज हाथ में आते ही डाॅ. रूबिया अपनी असलियत पा आ जाती है और पठान को बताती है कि उसने तो जिम्मी के कहने पर उसके ेसाथ यह नाटक किया क्योंकि रक्तबीज उसकी मदद के बिना पाना मुष्किल था.पठान को मौत के मंुहाने पर छोड़ देती है.रक्तबीज की मदद से जिम्मी रूस के एक षहर में बंदी बनाए गए भारतीय वैज्ञानिक से ऐसा वायरस बनवा रहा है जिसे छोड़ देने पर पूरे भारत के लोग ‘स्माल फाॅक्स’ की बीमारी से ग्रसित होकर एक सप्ताह के अंदर मौत के मंुह में समा जाएंगे.अब पठान की लड़ाई देष को बचाने के लिए जिम्मी से है.बीच में टाइगर (सलमान खान) भी पठान की मदद के लिए आ जाते हैं.अंततः  यह लड़ाई कई मोड़ांे से गुजरती है और नंदिनी सहित कई राॅ के अफसर व वैज्ञानिको की मौत के बाद जिम्मी की चाल असफल हो जाती है.पठान को अब नंदिनी की जगह बैठा दिया जाता है.

लेखन व निर्देषनः

फिल्म बहुत तेज गति से दौड़ती है,मगर पटकथा मंे काफी गड़बड़ियंा हैं. कहानी कब वर्तमान मंे और कब अतीत में चल रही है,पता ही नही चलता.पूरी फिल्म एक खास अजेंडे के तहत बनायी गयी है.फिल्म मेंपाकिसतानी एजेट रूबिया भगवा रंग के कपड़े व भगवा रंग की बिकनी पहनती है और अंततः भारत के पक्ष में कदम उठाती हैं.फिल्म में ंअफगानिस्तान को दोस्त बताया गया है.यानीकि ‘अखंड ’भारत का सपना साकार होने वाला है,षायद ऐसा फिल्मकार मानते हैं. फिल्म अजेंडे के तहत बनायी गयी है,इसका अहसास इस बात से होता है कि भारत को बर्बाद करने की जिम्मेदारी एक भारतीय राॅ एजंसी के एजेंट जिम्मी ने उठाया है.जिम्मी कहता है कि- ‘भारत माता’ ने उसे क्या दिया.भारत माता ने उसकी मां को मरवा दिया.उसके पिता को बम से उड़वा दिया.वगैरह वगैरह..इन संवादांे से जिसे जो अर्थ लगाने हो लगाए.पर देष के राजनीतिक घटनाक्रमों व घटनाओं को इन संवादांे सेे जोड़कर देखे,तो कुछ बातें साफ तौर पर समझ में आ सकती हैं कि फिल्मकार कहना क्या चाहता है? पर क्या इस तरह के संवाद व इस तरह के किरदार को फिल्म में प्रधानता देकर हमारी अपनी ‘राॅ’ के  कार्यरत लोगों का उत्साह खत्म नही कर रहे हैं? अब तक हमेषा यह होता रहा है कि जब भी फिल्मकार किसी अजेंडे के तहत फिल्म बनाता है तो फिल्म की कहानी व उसकी अंतर आत्मा गायब हो जाती है. इसलिए फिल्म देखना दुष्कर हो जाता है.फिल्म में एक्यान दृष्य बहुत अच्छे ढंग से फिल्माए गए हैं. एक्षन के षौकीन इंज्वाॅय कर सकते हैं.फिल्म में कुछ खूबसूरत लोकेषन हैं.तो वहीं कई दृष्य देखकर फिल्मकार व लेखक की सोच पर तरस आता है.मसलन-विमान के ऐसी डक के अंदर ‘वायरस’ रक्तबीज है.राॅ अफसर विमान के पायलट को उसके नाम से फोन कर कहते है कि वह देखे.पायलट एसी डक मंे वायरस रक्तबीज के होने की पुष्टि करता है.पर पायलट के चेहरे पर या विमान यात्रियों के चेहरे पर कोई भय नजर नही आता.फिर कर्नल लूथरा आदेष देते हैं कि विमान को दिल्ली षहर से बाहर ले जाओ और पूरे विमान को गिरा दो.जबकि ‘एटीसी’ कंट्ोलर ही विमान के पायलट से फ्लाइट का नाम लेकर बात करता है.राॅ अफसर कर्नल लूथरा मिसाइल से विमान को गिराने का आदेष देते है,मिसाइल छूटने के बाद उसका रास्ता भी मुड़वा देेते हैं.यानीकि बेवकूफी की घटनाए भरी पड़ी हैं.फिल्म के अंत में प्रमोषन गाने के ेबाद पठान(षाहरुख खान  )और टाइगर (सलमान खान)एक साथ रूस में उसी टूटे हुए पुल पर नजर आते हैं, और कहते है कि अब हमने बहुत कर लिया.अब दूसरो को करने देते हैंफिर किसे दे,यह काम का नहीख्,यह बेकार है.अंत में कहते है कि हमें ही यह सब करना पड़ेगा,हम बच्चों के हाथ में नही सौंप सकते.अब इस दृष्य की जरुरत व मायने हर दर्षक अपने अपने हिसाब से निकालेगा..फिर विरोध होना स्वाभाविक है.रूस में बर्फ के उपर के एक्षन दृष्य अतिबचकाने व मोबाइल गेम की तरह नजर आते हैं.

संवाद लेखक अब्बास टायरवाला के कुछ संवाद अति सतही हैं.

कैमरामैन बेजामिन जस्पेर ने बेहतरीन काम किया है.पर संगीतकार विषाल षेखर निराष करते हैं.

अभिनयः

पठान के किरदार में षाहरुख खान नही जमे.एक्षन दृष्यों में बहुत षिथिल नजर आते हैं.उनके ेचेहरे पर भी उम्र झलकती है.जिम्मी

के किरदार में जौन अब्राहम को माफ किया जा सकता है क्योंकि वह पहले ही कह चुके हैं कि उनके किरदार के साथ और उनके साथ न्याय नही हुआ.पाकिस्तानी एजेंट रूबैया के किरदार में दीपिका पादुकोण के हिस्से कुछ एक्षन दृष्यों के अलावा सिर्फ जिस्म की नुमाइष करना व खूबसूरत लगने के अलावा कुछ आया ही नही.खूफिया एजेंट होते हुए जब आप किसी को फंसा रही है,तो उस वक्त जो चेहरे पर कुटिल भाव होने चाहिए,वह दीपिका के चेहरे पर नही आते.डिंपल कापड़िया,प्रकाष बेलावड़े व आषुतोष राणा की प्रतिभा को जाया किया गया है.

‘‘सिर्फ औरतों के प्रति ही नहीं, बल्कि आज के वक्त में लड़कों के लिए भी आवाज उठाना चाहिए.’’ -रिद्धि डोगरा

मषहूर अदाकारा रिद्धि डोगरा पिछले 15 वर्षों से अभिनय जगत में काम कर रही हैं,जबकि वह अभिनेत्री बनना नहीं चाहती थी.वह तो डंास के षौक के चलते षाॅमक डावर से डांस की ट्ेनिंग ले रही थी.उसके बाद उन्हे एक चैनल पर नौकरी मिल गयी.पर एक दिन नौकरी छोड़ दी और अचानक दिया टोनी सिंह ने उन्हे सीरियल ‘‘मर्यादा’’ में अभिनय करने का अवसर दे दिया.उसके बाद से उन्होने पीछे मुड़कर नहीं देखा.कई टीवी सीरियलांे में अभिनय करने के अलावा वह ‘नच बलिए’ और ‘खतरों के खिलाड़ी’ जैसे रियालिटी षो का भी हिस्सा बनी.फिर वेब सीरीज ‘असुर’,‘मैरीड ओमन’ व ‘पिचर्स’ में भी नजर आयीं.मगर वह फिल्मों से नहीं जुड़ना चाहती थी.लेकिन उनकी तकदीर उन्हे फिल्मों में ले आयी.बतौर हीरोईन उनकी पहली फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ तेरह जनवरी 2023 को सिनेमाघरों में प्रदर्षित हो चुकी हंै.जबकि षाहरुख खान के साथ फिल्म ‘जवान’ और सलमान खान के साथ फिल्म ‘‘टाइगर 3’’ की षूटिंग कर चुकी हैं.

 

प्रस्तुत है रिद्धि डोगरा के साथ हुई बातचीत के अंष…

 

सवाल – आपके अंदर अभिनय के प्रति रूचि कहां से पैदा हुई थी?

जवाब – मुझे लगता है कि मेरे मम्मी पापा में कुछ तो रहा होगा.मेरी मम्मी ने स्कूल व कालेज में स्टेज पर बहुत काम किया है.तो वही मेरे खून में आ गया.मेरे पापा को फिल्मों का बहुत षौक था.उनको सिनेमा का काफी ज्ञान था.जब मैं व मेरा भाई बच्चे थे,तब वह हमें फिल्मों के बारे में बताया करते थे कि कौन सी फिल्म में क्या है और वह कहंा फिल्मायी गयी थी.तो आप कह सकते हैं कि हमें यह सिनेमा के प्रति लगाव व रचनात्मकता के प्रति झुकाव कहीं न कहीं हमें हमारे माता पिता से ही मिला है.पर यह सच है कि मुझे अभिनेत्री नही बनना था.पर तकदीर ने मुझे  अभिनेत्री बना दिया.

सवाल – 2007 से 2022 तक के अपने कैरियर को किस तरह से देखती हैं?

जवाब – मैं पीछे मुड़कर देखती नही हॅूं.मैं तो सिर्फ काम करते जा रही हॅूं.लेकिन अब मैं 2007 से पहले की बहुत सी चीजों को देख व समझ सकती हॅॅंू.मेरे अभिनेत्री बनने की बात अब मेरी समझ में आ रही है.हकीकत यही है कि मैं कभी भी अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी.मैने कभी नहीं सोचा था कि मुझे बड़े होकर अभिनय को कैरियर बनाना है.जबकि षुरू से ही मैं स्टेज पर या लोगों के बीच सहज रही हूॅॅं,क्योंकि मैं डांसर रही हॅूं.जब मैं कालेज में थी,तो मैने सायकोलाॅजी आॅनर्स किया.इसी के चलते मानवीय व्यवहार की समझ विकसित हुई.कलाकार को बहुत आॅब्जर्व करना चाहिए,वह आदत मेरे अंदर भी है.हर कलाकार मानवीय भावनाओं से काफी जुड़ा रहता है.मैं कभी अकेले रहते हुए बोर नही होती.क्योंकि तब मैं लोगों को आॅब्जर्व करती रहती हॅूं.उनके बात करने के तरीके,चाल ढाल वगैरह पर मेरी नजर रहती है.तो अब मेरी समझ में आया कि मैने सायकोलाॅजी/मनोविज्ञान से पढ़ाई क्यों की थी? मैं जूम टीवी पर नौकरी कर रही थी,पर यह नौकरी छोड़ दी,क्योंकि मुझे लगा कि मुझे कोई ‘बाॅस’ कैसे बता सकता है कि मुझेक्या करना है और क्या नहीं करना है.अब मेरी समझ में आया कि वह नौकरी मुझे क्यों नही भायी और मैं अपनी बाॅस बन गयी.आज बतौर कलाकार मैं अपने निर्णय खुद ले रही हॅॅंू.तो अब 2007 से पहले की बातें मेरी समझ में आ रही हैं.

सवाल – कभी आपने कहा था कि आप टीवी पर काम करते हुए खुष हैं.फिल्म नही करना चाहती.पर अब आपकी पहली फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ सिनेमाघर में पहुॅच चुकी है?

जवाब – मैने बहुत बड़े सपने कभी नही देखे.मैं तो अच्छा काम करना चाहती थी.टीवी पर मुझे सषक्त किरदार निभाने को मिल रहे थे.पर जब ओटीटी षुरू हुआ,तब भी मुझे उससे जुड़ने की इचछा नही हुई.लेकिन एक दिन मेरे पास वेब सीरीज ‘असुर’ का आफर आया,कहानी सुनकर मना नही कर पायी.फिर‘मैरीड ओमन’ ओर ‘पिचर्स’ भी की.फिर जब एक दिन मेरे पास अंषुमन झा व फिल्म ‘लकड़बग्घा’ के निर्देषक विक्टर मुखर्जी आए और मुझे कहानी सुनायी,तो कर लिया.अगर आप इस पर कोई लेबल लगाना चाहते हैं तो यह मेरी पहली फिल्म है.हालांकि, मुझे लगता है कि मैं हमेशा दर्शकों से जुड़ी रही हूं, इसलिए मुझे ऐसा नहीं लग रहा है कि मैं पहली बार दर्शकों से मिली.जब भी मैं कहती हूं कि यह मेरी पहली फिल्म है,तो कभी-कभी मुझे यह अजीब लगता है.लेकिन यह भी सच है कि मैं पहली बार बड़े पर्दे पर नजर आ रही हूं, जो मेरे लिए काफी रोमांचक है.मैने इस फिल्म को दो वजहों से किया.एक तो यह फिल्म जानवरों पर बनी है और दूसरी वजह यह कि मुझे क्राव मागा सीखना था,जो कि इस फिल्म के निर्माता ने मुझे क्राव मागा सीखने का अवसर दिया.

riddhi dogra

सवाल – क्राव मागा सीखना कितना फायदेमंद रहा?

जवाब – मेरी समझ से क्राव मागा सभी को सीखना चाहिए,क्योंकि यह एक उस तरह का मार्शल आर्ट है,जिसमें हाथ से हाथ का मुकाबला होता है.यहां हथियार का उपयोग नहीं होता.क्राव मागा हमारे देष की महिलाओं के लिए बहुत उपयोगी है.वह इसका उपयोग आत्मरक्षा के लिए कर सकती हैं.

सवाल – अब तो आप षाहरुख खान और सलमान खान के साथ भी फिल्में कर रही हैं?

जवाब – जी हाॅ! जब मैने ‘लकड़बग्घा’ साइन की थी,उसके बाद ही मुझे षाहरुख खान के ेसाथ फिल्म ‘जवान’ और सलमान खान के ेसाथ ‘‘टाइगर 3’’ की है.इन फिल्मों को लेकर फिलहाल ज्यादा बात नही कर सकती.

सवाल – डांसर होने का अभिनय में कितनी मदद मिल रही है?

जवाब – मेरी राय में डांस और अभिनय सब परफार्मेंस ही हैं.डांस,अदाकारी में बहुत मदद करती हैं.हालांकि मैने क्लासिकल डांस कभी नही किया.क्लासिकल डांस से अभिनय करने में मदद बहुत मिलती है.लेकिन मुझे डांस से उर्जा मिलती है.जिसके चलते जब मैं कैमरे के सामने होती हॅूं,तो वह पल जाया नहीं होने देती.इतना ही नही डांस परफार्मेंस देते रहने के कारण जब मैं पहली बार कैमरे के ेसामने पहुॅची,तो मुझे डर नहीं लगा.जबकि तमाम कलाकार बताते हैं कि वह कैमरे के सामने फ्रिज हो गयी थी.या उन्हें डर लगा था.मंै तो सेट पर पूरी युनिट व कैमरे के सामने एकदम सहज थी.दूसरी बात स्टेज पर डांस करते रहने के कारण मेरे अंदर अनुषासन की भावना आ गयी है.मैंने षाॅमक डावर से नृत्य सीखा है. उन्होेने सिखाया था कि बिना अनुषासन के परफार्मेंस अच्छी हो ही नही सकती.सुबह से षाम तक एक ही डांस को बार बार करते रहना होता था.डांस करते समय हमें यह याद रखना होता था कि हर स्टेप सही होना चाहिए.तो डंास से मैंने हर छोटी छोटी चीज पर ध्यान देना सीखा.

सवाल – सायकोलाॅजी की पढ़ाई करने के कारण अभिनय में कितनी मदद मिल रही है?

जवाब – मुझे तो यही लगता है कि मैने सायकोलाॅजी मंे आॅनर्स किया, इसीलिए अभिनय मंे मेरा षौक बढ़ा.पहले मैं काॅमर्स स्टूडेंट थी.पर कालेज जाने पर मंैने साॅयकोलाॅजी ले ली.मेरे इस निर्णय से मेरे माता पिता भी हैरान हुए थे.अब जब मैं पटकथा पढ़ती हॅंू,अपने किरदार के बारे में पढ़ती हॅूं,या अलग अलग निर्देषक के साथ किरदार को लेकर विचार विमर्ष करती हॅूं,तो इंज्वाॅय करती हॅूं.सायकोलाॅजी पढ़ा है,इसलिए मैं किरदार का विष्लेषण करती हॅंूं कि यह इंसान ऐसा क्यों है?

मैं यहां पर बताना चाहॅूॅंगी कि जब मैं जूम टीवी में नौकरी कर रही थी,तो मेरा आफिस मंुबई में ही लोअर परेल में था.वहां से यहां अंध्ेारी तक लोकल ट्ेन से आती जाती थी.तो मैं हर किसी को आॅब्जर्व करती रहती थी.ट्ेन में मछली वाली मिलती थी.उनकी आपस की लड़ाईयों को आब्जर्व किया करती थी.घर आकर मैं मौसी को उसी तरह से एक्टिंग करके बताती थी कि आज ट्ेन में ऐसा हुआ.उन दिनों मैं अपनी मौसी के साथ रहती थी.तब मुझे अभिनेत्री नहीं बनना था.पर वह मेरे अंदर कहीं न कहीं था.क्यांेकि मैं आब्जर्व कर अभिनय कर रही थी.

सवाल- वैसे भी अभिनय में दो चीजमहत्वपूर्ण होती हैं.एक तो कलाकार के निजी जीवन के अनुभव व उसका अपना आब्जर्वेषन और दूसरा उसकी कल्पना षक्ति.आप इनमें से किसका कितना उपयोग करती हैं?

जवाब – कलाकार के तौर पर मैं दोनों का ही उपयोग करती हॅूं.आब्जर्वेषन और कल्पनाषक्ति दोनों का उपयोग करती हॅूं.मगर मैं अपनी निजी जिंदगी का ज्यादा उपयोग नहीं करती.क्यांेकि फिर मैं बहुत खर्च हो जाती हॅूं.इसलिए उससे बचने का प्रयास करती हॅूं.कई बार जब रोने का दृष्य हो,तो मैं अपनी निजी जिंदगी की घटना याद करती हॅूं,पर फिर लगता है कि मैं यह क्या कर रही हॅूं.मैं तो अपने गम को ही याद करके यूज करती हॅॅंू.पहले मैं अपनी निजी जिंदगी की घटनाओं का उपयोग करती थी,पर अब कम करती हॅूं.पहले मैं अपनी निजी जिंदगी के अनुभव,भावनाओं, अहसास का बहुत उपयोग करती थी,पर फिर लगा कि इसे अपने आप से अलग करना बहुत भारी हो जाता है.इसलिए षूटिंग से पहले वर्कषाॅप करना जरुरी है.वर्कषाॅप में हमंे समझ मंे आता है कि यह किरदार है,इसके यह चारित्रिक विषेषताएं हैं,इसकी यह बौडी लैंगवेज है और इस हिसाब से हमें चलना है.मैं मानती हॅूॅं कि कल्पना षक्ति काम आती है.कलाकार के तौर पर हमें किरदार में रूचि लेनी होती है.इसीलिए कहते हंै कि कलाकार भावुक होता है.कलाकार खुद को खर्च करने किए बगैर किरदार को समझ पाता है.

सवाल – आपने अब तक कई किरदार निभाए.कोई ऐसा किरदार जिसने आपकी निजी जिंदगी पर असर किया हो?

जवाब – टीवी पर तो लगभग सभी किरदार असर करते थे.क्योकि मैं ख्ुाद सीखती थी,मैं हर किरदार निभाते हुए बड़ी हो रही थी.षुरूआत में मेेरे हिस्से ऐसे किरदार आए,जहंा मैं कई संवाद बोलती थी,जो कि लड़कियों की जिंदगी के उत्थान के लिए होते थे.उस वक्त मैं भी बीस वर्ष की थी,तो उसका असर मुझ पर भी हो रहा था. उन चीजों,संवादों ने मुझे खुद को स्ट्ांग बनाने में बहुत प्रभावित किया था.फिर अभी मैने ओटीटी पर वेब सीरीज ‘‘मैरीड ओमन’’ किया,जिसका मुझ पर काफी असर हुआ.यदि हम औरतों की सेक्सुअल ओरिएंटेषन को नजरंदाज कर दें,तो समाज में कितनी औरते हैं,जो बोल नहीं पाती.तमाम औरतें बोल या बता नही पाती कि उनके दिल में क्या है?वह क्या अहसास करती हैं.मेरे मन में औरतों के प्रति संवेदना है.सिर्फ औरतों के प्रति ही नहीं,बल्कि आज के वक्त में लड़कों के लिए भी आवाज उठाना चाहिए.सभी ने अपने घर की बेटियों को सिखा दिया है कि आपको अपनी आवाज उठानी चाहिए.लड़कों को किसी ने नही सिखाया कि लड़कियां आवाज उठा रही हैं,उनकी इज्जत करो.लड़के तो अपने आप मंे जी रहे हैं.मुझे लगता है कि अब लड़कों को भी सिखाना चाहिए.बेचारे लड़के कन्फ्यूज हंै कि लड़कियां स्ट्ांग हो गयी,अब हम क्या करें?

सवाल – आप ओमन इम्पावरमेंट की बात कर रही हैं.पर आपको लगता है कि इसका समाज पर कुछ असर हो रहा है?

जवाब – फिल्म इंडस्ट्ी में ओमन इम्पावरमेंट तो कई वर्षों से चल रहा है.ब्लैक एंड व्हाइट के युग से स्ट्ांग ओमन किरदार फिल्मों में पेष किए जाते रहे हैं.मुझे लगता है कि समाज व फिल्म इंडस्ट्ी दोनों एक दूसरे के प्रतिबिंब ही हैं.लेकिन समाज ज्यादा बड़ा है.समाज की सोच ज्यादा बड़ी है.समाज में काफी बदलाव आया है.सोषल मीडिया की वजह से भी बदलाव आया है.अब उन्हे अपने मन की बात कहने की जगह मिल गयी है.पर अभी और बदलाव आने की जरुरत है.मैं टीवी से ओटीटी और फिल्म तक पहुॅची हॅूं,तो मैं बहुत ज्यादा आब्जर्व कर रही हॅूं.मैं अहसास कर रही हूॅॅं कि महिलाओं की आवाज उठाने का अवसर टीवी में ज्यादा था.फिल्मों में स्ट्ांग किरदार कम हैं, मुझे स्ट्ांग किरदार ढूढ़ने पड़ेंगे. इसके लिए मुझे ही लिखना पड़ेगा.नारी सषक्त है,पर समाज उन्हें दबा देता है.तो हम लड़कियों और औरतों को आवाज उठाते रहना पड़ेगा.दुनिया का दस्तूर तो औरतों को दबाते रहना ही है.

सर्कस फिल्म रिव्यू: रणवीर सिंह की फिल्म नही कर पाई फैंस को खुश

  • सर्कस: बहुत ही ज्यादा बुरी फिल्म
  • रेटिंग: एक स्टार
  • निर्माताः टीसीरीज और रोहित षेट्टी
  • निर्देषकः रोहित षेट्टी
  • कलाकारः रणवीर सिंह, वरूण षर्मा, संजय मिश्रा,जैकलीनफर्नाडिष,पूजा हेगड़े,मुरली शर्मा, अश्विनी कालसेकरऔर मुकेश तिवारी,जौनी लीवर, सिद्धार्थ जाधव,राधिकाबांगिया,वृजेष हीरजी, टीकू टलसानिया,विजय पाटकर, उदयटिकेकर,सुलभा आर्या,ब्रजेंद्र काला व अन्य.
  • अवधिः दो घंटा 22 मिनट

मषहूर लेखक,कवि व निर्देषक गुलजार 1982 में षेक्सपिअर के नाटक ‘‘द कॉमेडी आफ एरर्स’’ पर आधारित फिल्म ‘‘अंगूर’’ लेकर आए थे.जिसमें संजीव कुमार व देवेन वर्मा की मुख्य भूमिका थी.इस फिल्म में दो जुड़वाओं की जोड़ी बचपन में बिछुड़ जाती है.युवावस्था में पहुचने पर यह जोड़ी मिलती है,तो कई तरह की उलझनें पैदा होती हैं.अब 40 साल बाद उसी अंगूर’ फिल्म के अधिकार लेकर ‘गोलमाल’ सीरीज फेम निर्देषक रोहित षेट्टी टैजिक कौमेडी फिल्म ‘‘सर्कस’’ लेकर आए हैं और उन्होने एक क्लासिक फिल्म का बंटाधार करने में कोई कसर नही छोड़ी है.

यूं तो फिल्म के ट्रेलर से ही आभास हो गया था कि फिल्म कैसी होगी? इसके अलावा जब कुछ दिन पहले हमने फिल्म के पीआरओ से पूछा था कि फिल्म के कलाकारों के इंटरव्यू कब होगे,तो उसने जवाब दिया था-‘‘अब कलाकारों का इंटरव्यू से विष्वास उठ गया है.इसलिए कोई इंटरव्यू नहीं होगे.’’ फिल्म देखकर समझ में आया कि जब निर्देषक व कलाकारों को पता था कि उन्होने बहुत घटिया फिल्म बनायी है,तो इंटरव्यू क्या देते. पर ‘सर्कस’ सफल नही होगी,इसका अहसास निर्देषक रोहित षेट्टी को था,इसीलिए कुछ दिन पहले उन्होने कहा था कि हर वर्ष सिर्फ चार फिल्में ही सफल होती हैं.’

कहानीः

फिल्म की षुरूआत में कुछ डाॅक्टरों को संबोधित करते हुए डाक्टर राय बच्चों के ख्ूान की बजाय परवरिष की बात करते हुए एक नए प्रयोग की बात करते हैं.जिससे अन्य डाक्टर सहमत नही होते.पर वह अपना प्रयोग जारी रखने की बात करते हैं.पता चलता है कि डाक्टर राॅय अपने मित्र जाॅय के साथ मिलकर ‘जमनादास अनाथालय’’ चला रहे हैं.इसी अनाथालय में चार जुड़वा बच्चे हैं,इनमें से दो एक घर से और दो दूसरे घर से हैं.जब उन्हें गोद लेने के लिए एक परिवार उटी से आता है जो कि बहुत बड़े सर्कस के मालिक हैं और दूसरा परिवार बंगलोर का उद्योगपति है.तब डॉक्टर रौय (मुरली शर्मा) अपने प्रयोग को सही  साबित करने के लिए दोनों जुड़वा बच्चों की अदला बदली कर देते हैं.वह दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि एक बच्चे के लिए उसका वंश नहीं, बल्कि उसकी परवरिश जरूरी होती है.

दोनों परिवार अपने बच्चों का नाम रौय (रणवीर सिंह) और जौय (वरुण शर्मा) रखते हैं.चारों सुकुन से अपनी जिंदगी गुजार रहे होते हैं.इस बीच सर्कस के मालिक की मौत के बाद रौय व जौय अपने पिता केव्यवसाय को आगे बढ़ाते हैं.और माला (पूजा हेगड़े ) से रौय की षादी को पांच साल हो जाते हैं.उधर बंगलोर में राय बहादुर (संजय मिश्रा ) की बेटी बिंदू (जैकलीन फर्नाडिष ) से रौय प्यार कर रहे हैं और षादी करना चाहते हैं.राय बहादुर को लगता है कि उनकी बेटी बिंदू गलत युवक से षादी करना चाहती है.एक दिन उटी में एक चाय बागान को खरीदने के लिए बैंगलौर वाले रौय और जौय लाखों रूपए लेकर ऊटी आते हैं.उन्हे लूटने के लिए पाल्सन (जौनी लीवर ) के गंुडे उनके पीछे लग जाते हैं.ऊटी शहर पहुॅचते ही कन्फ्यूजन षुरू होता है. अब उटी षहर में दो रौय और दो जौय. हैं. कभी लोग एक से टकराते हैं तो कभी दूसरे से.परिणामतः उलझनें बढ़ती हैं और यह भी फंसते जाते हैं.वहीं अब डाॅक्टर रौय भी छिप्कर सारामाजरा देख रहे हैं.जब यह चारो सामने आएंगे,तब क्या होगा?

लेखन व निर्देषनः

किसी क्लासिक कृति को कैसे तहस नहस किया जाए,यह कला रोहित षेट्टी व रणवीर सिंह से बेहतर कोई नहीं बता सकता.फिल्म में कहानी का कोई अता पता नहीं,उपर से संवाद भी अति बोझिल.बतौर निर्देषक जमीन’,‘गोलमाल’,‘सूर्यवंषी’ के बाद रोहित षेट्टी की यह 15 वीं फिल्म हैं,जहां वह बुरी तरह से चूक गए हैं.इस फिल्म से साफ झलकता है कि उनका जादू खत्म हो गया.रोहित षेट्टी के कैरियर की यह सबसे ज्यादा कमजोर फिल्म है. फिल्म का नाम सर्कस है,मगर फिल्म में सर्कस ही नही है.युनूस सजावल लिखित पटकथा बेदम है.

फिल्म षुरू होने पर लगता है कि कुछ मजेदार फिल्म होगी,लेकिन पंाच मिनट बाद ही फिल्म दम तोड़ देती है.इंटरवल के बाद संजय मिश्रा,जौनी लीवर, सिद्धार्थ जाधव अपनी कौमेडी से फिल्म को संभालने का असलप्रयास करते नजर आते हैं,मगर अफसोस इन्हें पटकथा व संवादों का सहयोग नही मिलता. यह पहली बार है,जब रोहित शेट्टी फिल्म के किसी भी किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाए.सभी किरदार काफी अधपके से लगते हैं.मुरली षर्मा का किरदार उटी में आकर क्या करता है और फिर अचानक कहंा गायब हो जाता है,किसी की समझ में नही आता.फिल्म का क्लायमेक्स तो सबसे घटिया है.रोहित षेट्टी जैसा समझदार फिल्मकार इतनी घटिया फिल्म बना सकता है,इसकी तो कल्पना भी नही की जा सकती. कहानी तीस साल आगे बढ़ जाती है,मगर डाॅक्टर रौय यानी कि मुरली षर्मा की उम्र पर असर नजर नही आता.अमूमन देख गया है कि जुड़वा बच्चों में से एक को दर्द होता है, तो दूसरे को भी होता है.पर यहां उसका उल्टा दिखाया गयाहै.

रोहित षेट्टी ने कुछ क्लासिकल गीतों के अधिकार खरीदकर फिल्म में पिरोए हैं,मगर कहानी का काल गानों से मेल ही नही खाता.यहां तक कि दीपिका पादुकोण का गाना ‘करंट लगा..’भी फिल्म को नही बचा पाता. बंटी नागी की एडीटिंग और जोमोन टी जॉन की सिनेमैटोग्राफी प्रभावित नहीं करती है.

अभिनयः

दोहरी भूमिका में रणवीर सिंह और वरूण षर्मा हैं.फिल्म देखकर लगता है कि दोनो अभिनय की एबीसीडी भूल चुके हैं.जैकलीन ने यह फिल्म क्यों की,यह बात समझ ेसे परे हैं.पूजा हेगड़े के अभिनय मंे ंभी दम नजर नहीं आता.मुरली षर्मा को मैने छोटे किरदारों से लेकर बड़े किरदारों तक में देखा है और हर बार उनका अभिनय निखरता रहा है.मगर इस फिल्म में वह भी मात खा गए.राय बहादुर के किरदार में संजय मिश्रा कुछ हद तक फिल्म को संभालते हैं.मगर उनके अभिनय में भी दोहराव ही नजर आता है.इसफिल्म में संजय मिश्रा जिस अंदाज में अंग्रेजी बोलते नजर आते हैं,उस तरह से वह कई फिल्मों में कर चुके हैं.उनके अभिनय नयापन नही है.पर यह कहना गलत नही होगा कि संजय मिश्रा,रणवीर सिंह पर भारी पड़ गए हैं.मुकेष तिवारी को इस तरह की फिल्म व इस तरह के फालतू किरदारों को निभाने से बचना चाहिए.सुलभा आर्या,अष्विनी कलसेकर,टीकू तलसानिया,ब्रजेष हीरजी,ब्रजेंद्र काला तो महज षोपीस’ ही हैं.सिद्धार्थ जाधव ओवरएक्टिंग ही करते है.

षान्तिस्वरुप त्रिपाठी

REVIEW: बदले की कहानी है Chup: Revenge of the Artist 

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताःराकेश झुनझुनवाला,  आर बाल्की और गौरी शिंदे

निर्देशकः आर आल्की

कलाकारः दुलकर सलमान, श्रेया धनवंतरी, सनी देओल, पूजा भट्ट, सरन्या पोंवन्नन, राजीव रविंदनाथन, अभिजीत सिन्हा व अन्य.

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

सिनेमा समाज का दर्पण होता है. यह बहुत पुरानी कहावत है.  इसी के साथ सिनेमा मनोरंजन का साधन भी है. लेकिन भारतीय, खासकर बौलीवुड के फिल्मकार निजी खुन्नस निकालने व किसी खास अजेंडे के तहत फिल्में बनाने के लिए सत्य को भी तोड़ मरोड़कर ही नहीं पेश कर रहे हैं, बल्कि कई फिल्म स्वतः रचित झूठ को सच का लबादा पहनाकर अपनी फिल्मों में पेश करते हुए उम्मीद करने लगे हैं कि दर्शक उनके द्वारा उनकी फिल्म में पेश किए जाने वाले हर उल जलूल व असत्य को सत्य मान कर उनकी स्तरहीन फिल्मों पर अपनी गाढ़ी कमाई लुटाते रहें. ऐसे ही फिल्मकारों में से एक हैं- आर.  बाल्की, जिनकी नई फिल्म ‘‘चुपः रिवेंज आफ आर्टिस्ट’’ 23 सितंबर को सिनेमा घरांे में पहुॅची है.

लगभग तीस वर्ष तक एडवरटाइजिंग से जुड़े रहने के बाद 2007 में जब आर बाल्की बतौर लेखक व निर्देशक पहली फीचर फिल्म ‘‘चीनी कम’’ लेकर आए थे, उस वक्त कई फिल्म क्रिटिक्स ने उनकी इस फिल्म को अति खराब फिल्म बतायी थी. यह बात आर बाल्की को पसंद नही आयी थी. उसी दिन उन्होने फिल्म क्रिटिक्स को संवेदनशीलता व संजीदगी का पाठ पढ़ाने के लिए फिल्म बनाने का निर्णय कर लिया था. यह अलग बात है कि ‘चीनी कम’ के बाद उन्होने ‘पा’ जैसी सफल फिल्म के अलावा ‘शमिताभ’ जैसी अति घटिया व ‘की एंड का’ जैसी अति साधारण फिल्में बनाते रहे. और अब ‘चुपः रिवेंज आफ आर्टिस्ट’ लेकर आए हैं. जिसमें उन्होने संवेदनशीलता की सारी हदें पार करने के साथ ही दर्शकों को असत्य परोसने की पूरी कोशिश की गयी है. इतना ही नही आर बाल्की ने अपनी पहली फिल्म की समीक्षा की ख्ुान्नस निकालते हुए फिल्म ‘चुपः द रिवेंज आफ आर्टिस्ट’ में चार फिल्म क्रिटिक्स की बहुत विभत्स तरह से हत्या करवायी है. अफसोस सेंसर बोर्ड ने ऐसे दृश्यों को पारित भी कर दिया.

आर बाल्की ने अपनी फिल्म ‘‘चुप. . ’’ में दिखाया है कि गुरूदत्त की अंतिम फिल्म ‘‘कागज के फूल ’’ थी. इस फिल्म की फिल्म क्रिटिक्स ने इतनी बुराई की थी कि इसी अवसाद में गुरूदत्त ने ‘कागज के फूल’ के बाद कोई फिल्म नहीं बनायी और इसी गम में उनका देहांत हो गया था. अब फिल्म ‘चुप’ में गुरूदत्त का शागिर्द फिल्मों को एक स्टार देने वाले फिल्म क्रिटिक्स की निर्मम हत्या करने पर निकला है. मुझे नही पता कि हमारे साथ ही फिल्म ‘‘चुपः रिवेंज आफ आर्टिस्ट’ देख रही अदाकारा वहीदा रहमान पर यह सब देखकर क्या बीत रही होगी,  क्योंकि गुरूदत के संंबंंध में वहीदा रहमान से बेहतर कौन जानता है?

हर कोई जानता है कि स्व. गुरूदत्त अपने जमाने के मशहूर कलाकार, निर्माता,  लेखक व निर्देशक थे. गुरूदत्त की फिल्म ‘कागज के फूल ’ 1959 में प्रदर्शित हुई थी.  फिर 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘चैंदहवीं का चांद’ का निर्माण करने के साथ ही गुरूदत्त ने इसमें अभिनय भी किया था. फिल्म ‘कला बाजार’ में भी अभिनय किया था. 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘साहिब बीबी और गुलाम’ का भी  निर्माण करने के साथ उसमें अभिनय किया था. इसके अलावा 1963 में प्रदर्शित ‘भरोसा’ व ‘बहूरानी’, 1964 में प्रदर्शित ‘सुहागन’, ‘सांझ और सवेरा’ में गुरूदत्त ने अभिनय किया था. जब गुरूदत्त की मृत्यू हुई तब वह अभिनेत्री साधना के साथ फिल्म ‘पिकनिक’ में अभिनय कर रहे थे, जो कि बाद में पूरी नही हो पायी. पर इस बात को आर बाल्की अपने स्वार्थ व निजी बदले की कहानी लिखते समय नजरंदाज कर गए. .

इतना ही नही आर बाल्की को अपनी बात को रखने के लिए 110 वर्ष के भारतीय सिनेमा में महज एक फिल्म ‘कागज के फूल’ ही याद रही. वह फिल्म ‘शोले’’ या ‘लम्हे’ को क्यों भूल गए?

कहानीः

फिल्म ‘चुप’ शुरू होती है फिल्म क्रिटिक्स नितिन श्रीवास्तव की विभत्स तरीके से निर्मम हत्या से. पता चलता है कि उन्होने एक फिल्म की समीक्षा लिखते हुए एक स्टार दिया था. इसके बाद इसी तरह से तीन क्रिटिक्स की हत्याएं होती हैं. पुलिस हत्यारे को पकड़ने के लिए सक्रिय हो जाती है. उधर ‘फिल्म क्रिटिक गिल्ड’ निर्णय लेता है कि वह किसी भी फिल्म की समीक्षा नही लिखेगें. और हत्याओं का सिलसिला रूक जाता है. एक तरफ पुलिस इंस्पेक्टर अरविंद( सनी देओल) अपनी टीम के साथ हत्यारे की तलाश की में लगे हुए हैं. उधर एक फिल्म पत्रकार नीला(श्रेया धनवंतरी ) और फूल की दुकान चलाने वाले डैनी(दुलकर सलमान ) के बीच प्रेम कहानी चल रही है. कोई सुराग न मिलता देख  पुलिस इंस्पेक्टर अरविंद फिल्म वालों की चहेती सायके्रटिक जिनोबिया (पूजा भट्ट ) की मदद लेते हैं. और फिर एक नाटक रचकर उसमंे नीला का साथ लेती है. अंततः हत्यारा पकड़ा जाता है. पता चलता है कि हत्यारा गुरूदत्त को पूजता है. वह फिल्म ‘कागज के फूल’ का दीवाना है. उसके घर में एक फिल्म की रील पड़ी है. उसे गुस्सा इस बात का है कि उसके पिता की फिल्म की क्रिटिक्स ने आलोचना की थी और फिर उसके पिता ने फिल्म नहीं बनायी.

लेखन व निर्देशनः

इस फिल्म की पटकथा आर बाल्की ने फिल्म क्रिटिक राजा सेन और रिषि विरमानी के साथ मिलकर लिखा है. लेकिन आर बाल्की मात खा गए हैं. जो फिल्मसर्जक या फिल्म क्रिटिक्स नही है, वह इस फिल्म को समझ पाएंगे, इसमें शक है? फिल्म का क्लायमेक्स बहुत गड़बड़ है. क्लायमेक्स में हत्यारा जेल में बंद है. उसके कार्यों से अहसास होता है कि कुछ विक्षिप्त है. एक दिन अखबार में छपी खबर ‘‘फिल्म क्रिटिक्स रोहित वर्मा की कोविड से मौत’ पढ़कर वह हंसता है और कहता है कि यह सब इसी तरह मरेंगें? भले ही आर बाल्की ने उसे विक्षिप्त जतला दिया, पर इस दृश्य से फिल्मकार स्वयं कितना संवेदनशील व संजीदा है, इसका अहसास भी हो जाता है.

फिल्म की गति काफी धीमी है. इंटरवल से पहले फिल्म सशक्त है, मगर इंटरवल के बाद फिल्म पर फिल्मकार की पकड़ ढीली हो जाती है. वैसे गुरूदत्त को फिल्म के माध्यम से अच्छा ट्ब्यिूट दिया गया है. गुरूदत्त की फिल्म के गाने व कुछ दृश्य दिखाए गए हैं. तो वहीं लीना व डैनी के प्यार में भी फिल्म ‘कागज के फूल’ के दृश्य नजर आते हैं. मगर श्रेया धनवंतरी व दुलकर सलमान को अर्धनग्न अवस्था में दिखाए बिना भी काम चल सकता था. इतना ही नही फिल्मकार ने फिल्म के अंत में क्रेडिट देते समय मशहूर गीतकार ‘साहिर लुधियानवी’ को का नाम ‘साहिर लुधियाना’ लिखकर अपने सिनेमा के ज्ञान का बखान भी कर दिया.

गुरुदत्त की ‘कागज के फूल’ के जाने के तूने कही,  ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है जैसे गानों को निर्देशक ने कहानी में काफी रूमानी और मार्मिक अंदाज में फिल्माया है.  अमित त्रिवेदी का संगीत कानों को सुकून देता है.

अभिनयः

फूल की दुकान चलाने वाले डैनी के किरदार में दुलकर सलमान का अभिनय शानदार हैं. उन्होने इस किरदार की जटिलता को भी बाखूबी अपेन अभिनय से उकेरा है. नीला के किरदार में श्रेया धनवंतरी खूबसूरत लगने के साथ ही चपल व चंचल नजर आयी हैं. पूजा भट्ट का अभिनय कमाल का है. इंटरवल से पहले पुलिस इंस्पेक्टर अरविंद के किरदार में सनी देओल का अभिनय साधारण है, पर इंटरवल के बाद उनकी परफॅार्मेंस जोरदार है.

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