महिलाओं के लिए अचूक हथियार आर्थिक आत्मनिर्भरता

आजादी के 75 साल हो गए हैं. बीते दशकों से भारत की महिलाओं ने सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक कई मोरचों पर बदलाव देखे हैं. कुछ मोरचों पर वे कमजोर हैं तो कुछ मोरचों पर धीरेधीरे पहले से भी ज्यादा सशक्त और मजबूत हो रही हैं जैसे कि आर्थिक मोरचे पर.

एक दौर था जब महिलाएं आर्थिक तौर पर पूरी तरह से पुरुषों पर निर्भर थी. लेकिन आजादी के 75 सालों बाद हालात बदले हैं. आज की औरत किचन भी संभालती है और मिसाइल भी लौंच करती है. बनिए से राशन का हिसाबकिताब भी देखती है और बैंक में भी कई पदों पर काम कर रही हैं.

आइए, चलिए विश्लेषण करते हैं मौजूदा दौर में महिलाओं की आर्थिक स्थिति के बारे में:

घूंघट से पावर तक तब और अब

पहले महिलाएं पूरी तरह से अपने परिवार पर आश्रित होती थीं. उन्हें जैसा परिवार ने कह दिया, वे चुपचाप उसे ही पत्थर की लकीर मान कर बैठ जाती थीं. पिता ने जहां शादी तय कर दी, वहां बिना अपने पति का मुंह देखे, जाने हां कह कर पूरी जिंदगी उस के साथ जीवनयापन करने के लिए तैयार हो जाती थीं. शादी के बाद भी अपने वजूद को त्याग कर सिर्फ और सिर्फ परिवार, पति की आवभगत में लग जाती थीं. पढ़ाईलिखाई के आभाव में जिस ने जैसा बोल दिया मान लेती थीं.

उन का काम तो बस लंबा घूंघट निकाल कर सुबह से शाम तक चूले के आगे बैठे रहना, पति की बिना बात की मार खाना, परिवार के ताने सुनना. इतना सब सहने के बाद भी उसी पति को भगवान मानती थीं और उस परिवार को जन्नत समझती थीं क्योंकि उन के मातापिता ने जो सीख दे कर भेजा था कि अब वही तुम्हारा घर है. इस घर पर आज से तुम्हारा कोई हक नहीं.

ऐसे में बेचारी बन लंबा घूंघट निकाल कर ससुराल को ही सब कुछ मान लेती थीं और उन के इसी बेचारेपन का सब लोग खूब फायदा उठाते थे क्योंकि उन्होंने खुद को सब पर आश्रित जो कर रखा था, खुद को बेचारा जो बना रखा था. ऐसे में दूसरे तो उन का फायदा उठाएंगे ही. लेकिन अब हालात बिलकुल उलट हैं. आज की नारी खुद को अबला नहीं समझती, बल्कि खूब पढ़लिख कर अपने दम पर आज ऐसा मुकाम हासिल कर रही है कि देशदुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना ली है. अब के पेरैंट्स भी लड़कियों को पढ़ाने में व उन की मरजी जानने में ज्यादा यकीन रखते हैं ताकि उन्हें किसी के आगे हाथ न फैलने पड़ें. वे अपनी पढ़ाई व काबिलीयत के दम पर इतना नाम व शोहरत कमाए कि उन्हें लड़कों की नहीं बल्कि लड़कों को खुद उन की जरूरत महसूस हो.

ताजा उदाहरण

हाल का ताजा उदाहरण देखें तो आप देख कर हैरान रह जाएंगे. बता दें कि इस समय कानपुर देहात जिले में ज्यादातर महत्त्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी महिलाएं ही संभाल रही हैं. जैसे डीएम नेहा जैन, एसपी सुनीति, सीडीओ सोमन्या पांडेय. यहां तक कि कई एसडीएम, बीएसए और जिला पंचायती राज अधिकारी भी महिलाएं ही हैं, जिन्होंने इन पदों पर आसीन हो कर जता दिया कि अब हम घर की भागदौड़ से ले कर देशदुनिया की भागदौड़ संभाल सकते हैं.

इंदिरा गांधी हमारे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. सिर्फ वे नाम के लिए ही प्रधानमंत्री नहीं थीं बल्कि उन के कार्यकाल में हरित क्रांति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया गया. प्रतिभा पाटिल भारत की आजादी के बाद हमारे देश की पहली महिला राष्ट्रपति रह चुकी हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल में महिलाओं व बच्चों के कल्याण के लिए हर संभव प्रयास किए. किरण बेदी हमारे देश की पहली महिला आईपीएस रही हैं, जिन्होंने नवज्योति व इंडिया विजन जैसी संस्थाओं का गठन किया. इंदिरा नूई पेप्सिको कंपनी की अध्यक्ष व मुख्य कार्यकारी अधिकारी रह चुकी हैं. उन की लगन, मेहनत का ही परिणाम है कि उन्होंने दुनिया में 100 शक्तिशाली महिलाओं में अपनी जगह बनाई है. वे हम सब के लिए प्रेरणास्रोत्र हैं.

द्रौपदी मुर्मू सब से युवा राष्ट्रपति बनीं. उन का जीवन संघर्षों से भरा होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा में कोई कमी नहीं छोड़ी. ये सभी उदाहरण दर्शाते हैं कि आज की महिलाएं पढ़लिख कर अपने दम पर आगे बढ़ कर आर्थिक रूप से खुद को सशक्त बनाने पर जोर दे रही हैं, जो एकदम सही है.

मौजूदा आर्थिक स्थिति अब और तब

पहले की बात करें तो महिलाएं पढ़ीलिखी नहीं होने के कारण पूरी तरह से अपने परिवार पर निर्भर रहती थीं, जिस कारण उन पर शोषण भी ज्यादा होते थे. लेकिन अगर आजादी के इतने सालों बाद की बात करें तो अभी भी देखने में यही आया है  कि आर्थिक आजादी और विकास में महिलाओं की भूमिका उतनी ज्यादा नहीं है, जितनी ज्यादा होनी चाहिए.

ऐसा हम नहीं बल्कि ‘इन्वैस्ट इंडिया इनकम एंड सेविंग सर्वे’ के आंकड़े बताते हैं, जिस में बताया गया है कि शहरी आबादी की तुलना में गांवों की महिलाएं घर के बाहर जा कर यानी खेतों आदि में ज्यादा काम करती हैं. गांवों में 35% से ज्यादा महिलाएं खेतों में काम करती हैं और इन में से 45% महिलाएं सालभर में 50 हजार रुपए भी नहीं कमा पाती हैं. उन में सिर्फ 26% महिलाएं ही सिर्फ अपने पैसे को अपनी मरजी के अनुसार खर्च कर पाती हैं.

इस के अलावा यह भी देखने में आया है कि शहरी क्षेत्र में जिन परिवारों की वार्षिक आय 2 से 5 लाख रुपए है, उन में सिर्फ 13% महिलाएं ही सिर्फ बाहर नौकरी के लिए जाती हैं, जबकि 5 लाख से ऊपर की आय वाले परिवारों में यह प्रतिशत सिर्फ 9% है. वहीं अगर बात करें गांव की तो 50 हजार से 5 लाख की आय वाले परिवारों में यह प्रतिशत 16 से 19% है.

कैसे बनें मजबूत

किसी काम को छोटा न समझें. अकसर हम यह सोच कर कि क्यों करें रिसैप्शनिस्ट की जौब, क्यों करें सेल्स गर्ल की जोब, हम खाना बनाना आने के बावजूद यह सोच कर कुकिंग क्लासेज नहीं देती हैं या फिर टिफिन सेवा शुरू नहीं करती हैं कि ऐसे छोटे काम कर के हमारी शान में कमी आएगी. हम पेंटिंग बनाना तो जानती हैं, लेकिन बना कर बेचने में शर्म आती है. अरे शर्म कैसी, यह तो आप का हुनर है, जिसे सही तरीके से यूज कर के आप नाम व शोहरत कमा सकती हैं.

हाउसवाइफ खुद को समझे

अगर आप हाउसवाइफ हैं तो खुद को किसी भी माने में काम न आंकें और न ही यह समझें कि मैं तो सिर्फ घर व किचन का काम ही संभाल सकती हूं बल्कि अगर आप बाहर जा कर नौकरी नहीं कर पा रही हैं तो घर के छोटेमोटे काम सीख कर पैसों को बचा सकती हैं. जैसे खुद से बल्ब, ट्यूबलाइट लगाना. अगर घर का कोई स्विच खराब हो जाए तो उसे ठीक करना आता हो तो इस से एक तो आप इन कामों पर होने वाले पैसों को बचा सकती हैं, साथ ही आप का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.

फ्रीलांस काम से बनें आत्मनिर्भर

आज आप घर बैठे भी अच्छाखासा पैसा कमा सकती हैं अगर आप में कुछ करने का टैलेंट हो. जैसे अगर आप कंटैंट का काम जानती हैं, या फिर आप को कुछ क्रिएटिव करने का शौक है तो आप औनलाइन फ्रीलांस साइट्स पर रजिस्टर कर के घर बैठे अपनी पसंद का काम कर के घंटों व महीनों के हिसाब से कमा सकती हैं. इस से आप की प्रतिभा भी बेकार नहीं जाएगी और आप धीरेधीरे अपने इस हुनर से घर बैठे अपने परिवार को देखने के साथसाथ खुद को भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना पाएंगी.

डांस कला से कमाएं

अगर आप को प्रोफैशनल डांस आता है, तो आप उस हुनर का इस्तेमाल करें. इस के लिए आप औनलाइन क्लासेज ले सकती हैं. अब आप सोच रही होंगी कि इस की शुरुआत कहां से करें तो आप को बता दें कि आप अपने आसपास के बच्चों से इस की शुरुआत करें. भले ही शुरुआत में ज्यादा अच्छा रिस्पौंस न मिले, फिर भी आप हिम्मत न हारें क्योंकि आप का हुनर और मेहनत एक दिन जरूर रंग लाएगी.

अपना बिजनैस शुरू करें

अगर आप को होममेड मसाले, अचार आदि बनाने का शौक है तो फिर अपने इस हुनर को अपने घर तक ही न समेट कर रखें बल्कि इन मसालों, आचार को अपनी एक औनलाइन साइट बना कर कम मेहनत में आप ज्यादा पैसा कमा सकती हैं.

सेविंग पर जोर दें

अगर आप आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं और आप को ज्यादा पैसा खर्च करने की आदत है तो इस बात का ध्यान रखें कि जो कमाया उसे उड़ा दिया वाली नीति को आप को छोड़ना होगा वरना आप अपने व अपने परिवार के भविष्य को सुरक्षित नहीं कर पाएंगी. ठीक इसी तरह अगर आप हाउसवाइफ हैं तो आप छोटीछोटी बचत करना सीखें.

बात करें अगर ‘वूमंस ऐंड मनी पावर 2022’ की रिपोर्ट की, तो भारत में 33 फीसदी महिलाएं बिलकुल निवेश नहीं करती हैं. ऐसे में जरूरी है उन में निवेश संबंधित जागरूकता बढ़ाने की. तो आइए जानते हैं कि महिलाएं कहां व कैसे निवेश कर सकती हैं:

पीपीएफ: पब्लिक प्रौबिडैंट फंड लोकप्रिय बचत योजनाओं में से एक है, जिस में आप सालाना 500 रुपए से डेढ़ लाख रुपए तक जमा कर सकती हैं, जिस में 15 साल तक पैसे जमा करने पर आप को अंत में अच्छीखासी रकम मिलती है.

फिक्स्ड डिपौजिट: बैंकों में फिक्स्ड डिपौजिट एक भरोसेमंद निवेश का विकल्प है, जिस में आप अच्छीखासी ब्याज दर पर पैसा जमा कर के उस का लाभ उठा सकती हैं.

रेकरिंग डिपौजिट: यह निवेश का आसान सा विकल्प है, जिस में आप 500 रुपए से ले कर अपनी मरजी मुताबिक राशि का अकाउंट खोल सकती हैं, जिस से आप को सेविंग की भी आदत पड़ जाती है और साथ ही एक समयसीमा पर आप को फिक्स्ड अमाउंट भी मिल जाएगा. इस तरह आप रिसर्च व रिस्क फैक्टर्स को देख कर निवेश के विभिन्न विकल्पों को चुन कर सेविंग कर सकती हैं.

Mutual Fund में कब और कैसे करें निवेश

अपने रोजमर्रा के खर्चों के बीच छोटीमोटी बचत तो हम सब कर ही लेते हैं, मगर फायदा तो तब है जब बचत के साथसाथ निवेश की भी आदत डाली जाए. जब निवेश की बात आती है तो ज्यादातर लोगों के दिमाग में शेयर मार्केट में पैसे लगाने का खयाल आता है. जबकि असलियत तो यह है कि यदि आप को शेयर बाजार में पैसे लगाने का अनुभव नहीं है तो यह आप के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है. फाइनैंशियल प्लानर, अनुभव शाह के मुताबिक नए निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश करना एक बेहतरीन विकल्प है. ऐसा नहीं है कि म्यूचुअल फंड में निवेश करने में कोई जोखिम नहीं, पर शेयर बाजार में निवेश की तुलना में यह फिर भी कम जोखिम भरा है.

आइए, जानते हैं कि इक्विटी में निवेश की तुलना में म्यूचुअल फंड क्यों है बेहतर:

क्या है

आप म्यूचुअल फंड में निवेश करें इस से पहले आप को शेयर और म्यूचुअल फंड के बीच का फर्क पता होना चाहिए. जब आप शेयर बाजार में पैसा लगाते हैं, तो इस का मतलब है कि आप एक सार्वजनिक कंपनी के शेयर तब खरीद रहे हैं जब उन की कीमत कम है और कीमत बढ़ने पर इन्हें बेच देंगे. हालांकि म्यूचुअल फंड में निवेश करने का मतलब यह है कि आप का फंड मैनेजर आप के द्वारा निवेश की गई रकम को बौंड, शेयर, डिबैंचर जैसे निवेश के अलगअलग विकल्पों में लगाता है. ऐसे में म्यूचुअल फंड का रिटर्न अलगअलग प्रतिभूतियों पर हो रहे मुनाफे पर निर्भर करेगा.

जोखिम

म्यूचुअल फंड और शेयर इक्विटी में निवेश दोनों में ही जोखिम है. हालांकि जब आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो यह जोखिम थोड़ा कम हो जाता है. जब आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो आप के पास का निवेश विभिन्न प्रकार के निवेश उपकरणों में किया जाता है. यदि एक उपकरण का प्रदर्शन खराब है तो दूसरे का अच्छा हो सकता है. ऐसे में जोखिम कम हो जाता है. इक्विटी में निवेश का सब से बड़ा नुकसान यह है कि यदि शेयर बाजार नीचे जा रहा है तो आप को उसी अनुपात में नुकसान भी होता है. कुल मिला कर आप के निवेश का प्रदर्शन किसी एक कंपनी के शेयरों के प्रदर्शन तक ही सीमित रह जाता है.

नए निवेशकों के लिए बेहतर

जो लोग पहली बार निवेश कर रहे हैं और उन्हें शेयर बाजार का अनुभव नहीं, ऐसे निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड बेहतर है. म्यूचुअल फंड में निवेश करने के बाद इस के प्रबंधन की सारी जिम्मेदारी फंड मैनेजर की होती है. इस के लिए निवेशक को परेशान नहीं होना पड़ता. हालांकि इस के लिए निवेशक को समयसमय पर इस के प्रबंधन के लिए फीस चुकानी पड़ती है. जहां तक इक्विटी शेयर में निवेश की बात है तो इस के लिए पर्याप्त रिसर्च की जरूरत पड़ती है और यदि घाटा होता है तो सारी जिम्मेदारी आप की होती है.

जटिल

म्यूचुअल फंड की तुलना में इक्विटी शेयर में निवेश करना काफी जटिल है. साथ ही इस में समय भी काफी लगता है. शेयर में निवेश करने की स्थिति में हर पल बाजार की स्थिति और शेयर के भाव पर नजर रखनी पड़ती है. जबकि म्यूचुअल फंड में निवेश करने की स्थिति में यह काम फंड मैनेजर का होता है.

डाइवर्सिफिकेशन

एक अच्छा निवेशक वही होता है, जो मुनाफा कमाने के लिए केवल एक तरह के निवेश विकल्प और सैक्टर पर निर्भर न रहे. विभिन्न सैक्टरों और निवेश के विकल्पों में पैसा लगाना ही डाइवर्सिफिकेशन कहलाता है. म्यूचुअल फंड में निवेशक को डाइवर्सिफिकेशन का विकल्प मिलता है, जबकि ऐसा इक्विटी शेयर के साथ नहीं है.

सावधानी

अकसर देखा गया है कि म्यूचुअल फंड या फिर अन्य किसी विकल्प में निवेश के दौरान लोग लापरवाही से दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर देते हैं. ऐसा करने से आप मुसीबत में पड़ सकते हैं. लिहाजा, हस्ताक्षर करने से पहले पौलिसी से संबंधित दस्तावेज ध्यान से पढ़ें.

दस्तावेज जमा करते वक्त एड्रेस पू्रफ देते समय अपना स्थाई पता दें. सभी प्रकार के पत्राचार में यह काम आएगा.

आप के निवेश से संबंधित सारी स्टेटमैंट आप को बड़ी आसानी से ईमेल पर मिल सकती है. लिहाजा ईमेल एड्रेस का कौलम भरते वक्त सतर्क रहें.

म्यूचुअल फंड में निवेश के दौरान फंडों का प्रबंधन करना फंड मैनेजर की जिम्मेदारी होती है. इस का मतलब यह नहीं कि आप अपने निवेश की सुध ही न लें. समयसमय पर अपने निवेश की समीक्षा करते रहें. यदि आप इस के प्रदर्शन से संतुष्ट न हों तो फंड मैनेजर बदलने पर विचार करें.

म्यूचुअल फंड भी कई प्रकार के होते हैं. उदाहरण के तौर पर डेट, इक्विटी, लिक्विड म्यूचुअल फंड आदि. लिहाजा, इस में निवेश से पहले यह जानना बेहद जरूरी है कि आप ने जिस म्यूचुअल फंड में निवेश किया है वह कौन सा है और विभिन्न परिस्थितियों में इस का प्रदर्शन कैसा होगा.

जल्दी खत्म हो जाती है सैलरी…

महंगाई ज्यादा है और सैलरी कम. ऐसे में बचत और निवेश करें, तो कैसे करें. यहां दो जून की रोटी जुगाड़ने में सारा पैसा जा रहा है. हममें से ज्यादातर लोगों की सैलरी महीना पूरा होने से पहले ही खत्म हो जाती है.

फिर शुरू होता है वो दौर जब अगली सैलरी का बेसब्री से इंतजार किया जाता है. सैलरी, बचत और निवेश के कई ऐसे आंकड़े सामने आए हैं जिन्हें जानकर आप दंग रह जाएंगे.

रोजाना की जरूरत में खर्च होती सैलरी

आपको जानकर हैरानी होगी कि 10 में से 9 परिवार अपनी सारी कमाई रोजाना की जरूरत पूरा करने में खर्च कर देते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में 94% परिवार ऐसे हैं जो 70-100% सैलरी खर्च कर देते हैं. अब इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि भारत के लोग बचत को लेकर कितने अलर्ट हैं.

भारतीयों को लोन का बोझ नापसंद

भले ही सबका सपना घर खरीदने का हो, लेकिन ज्यादातर लोग इसके लिए लोन लेने में सहज महसूस नहीं करते. शायद इसलिए क्योंकि हम भारतीयों की एक खासियत है कि हम किसी के बोझ तले दबे रहने में सुकून महसूस नहीं करते. यही कारण है कि 20 में से 17 परिवारों पर होम लोन का कोई बोझ नहीं है.

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खाली जेब

देश के आधे परिवार की तनख्वाह महीने के अंत तक खत्म हो जाती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक 47 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जो अपनी इनकम का 1-29 फीसदी हिस्सा बचा लेते हैं. वहीं हैरानी वाली बात यह है कि सिर्फ 1.3 फीसदी परिवार ऐसे हैं जो हर महीने 50-100 फीसदी की बचत करते हैं.

ठन-ठन गोपाल

चौंकाने वाली बात है कि 10 में से 8 परिवार ऐसे हैं, जिनके पास निवेश के लिए कोई बचत नहीं होती. 84 फीसदी परिवार ऐसे हैं जो 1-29 फीसदी के बीच निवेश करते हैं. वहीं, 50 फीसदी से ज्यादा निवेश करने वालों की लिस्ट में एक फीसदी परिवार भी शामिल नहीं हैं.

बैंक में भागीदारी

करीब आधे भारतीय आज भी बचत के लिए पुराने फिक्स डिपॉजिट पर कायम हैं. वहीं, 5 में से 1 आदमी का पैसा टैक्स बचत वाले देशों के बैंकों में रखा है.

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बचत के लिए अच्छी जगह

भारत में 56.2 फीसदी लोग बैक डिपॉजिट में निवेश करते हैं. वहीं, 9.5 फीसदी (रियल स्टेट), 6.3 फीसदी (बीमा,) 3.8 फीसदी (सोना) और 2.1 फीसदी दूसरी चीजों में. बता दें कि 20.7 फीसदी लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने इस बात का जवाब देने से ही इनकार कर दिया.

भविष्य की चिंता

हमारे देश में दो तिहाई लोग ऐसे हैं, जो नौकरी जाने के खौफ से बचत करते हैं. आपको जानकर हैरानी ऐसे लोगों की तादाद 70.6 फीसदी है.

जानें रिटायरमेंट के लिए उम्र के किस पड़ाव पर करनी चाहिए सेविंग

रिटायरमेंट के लिए हर कोई थोड़ी-थोड़ी सेविंग करता ही है. यह एक ऐसा समय होता है जो आपके जीवन में आराम के साथ-साथ कई तरह की चिंताएं भी लेकर आता है. बचत किन तरीकों से करनी चाहिए यह जानना भी सबसे अहम होता है. हमें यह मालूम होना चाहिए कि किस उम्र से रिटायरमेंट के लिए सेविंग करना शुरू करना बेहतर होता है.

आपको रिटायरमेंट को एक लक्ष्य बनाकर चलना चाहिए और उसी हिसाब से प्लानिंग करनी चाहिए. नौकरीपेशा लोगों के लिए रिटायरमेंट की उम्र आमतौर पर 60 होती है. सेविंग के लिए सजग रहने के बावजूद देखा गया है कि कई लोग रिटायरमेंट की प्लानिंग करने में देरी कर देते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता कि इसकी प्लानिंग कब से शुरू करनी चाहिए. हम आपको अपनी इस खबर में बता रहे हैं कि रिटायरमेंट के लिए कब से सेविंग करना बेहतर रहेगा.

युवा अवस्था:

वर्ष 1980 के बाद पैदा होने वाले लोग थोड़ी सी ही सेविंग करते हैं. इन लोगों में महंगी लाइफस्टाइल का शौक होता है. जैसे कि गैजेट्स रखना, रेस्टोरेंट में खाना खाना, ईएमआई पर चीजें खरीदना, एजुकेशन लोन लेना इत्यादि. इस उम्र में लोगों को रिटायरमेंट प्लानिंग से कुछ खास लेना-देना नहीं होता है. इस उम्र में जो लोग थोड़ा बुद्धिमान होते हैं उन्हें भी रिटायरमेंट की प्लानिंग की सुध बहुत बाद में आती है. नौकरीपेशा लोगों के लिए नौकरी का शुरूआती समय कार बंगला या एक लग्जरी लाइफ-स्टाइल मेंटेन करने में बीतता है. इस उम्र में आपको अपनी आय एक अंश रिटायरमेंट के लिए सेव जरूर करना चाहिए.

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35 से 45 साल की उम्र में:

यह वह उम्र होती है जब जिम्मेदारियां बढ़ती रहती हैं, जिससे फाइनेंस का दबाव बहुत अधिक रहता है. 35 से 45 वर्ष की आयु के दौरान आपको कई तरह की जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ सकतीं हैं, लेकिन आपकी प्राथमिकता रिटायरमेंट के लिए सेविंग होनी चाहिए. आपको इस दौरान अपनी आय का 20 फीसद हिस्सा रिटायरमेंट के लिए बचाना शुरू कर देना चाहिए, आप इसे 40 से 50 फीसद तक भी ले जा सकते हैं.

रिटायरमेंट से कुछ समय पहले:

रिटायरमेंट के करीब बच्चों की शिक्षा और शादी के लिए रिटायरमेंट सेविंग बहुत जरूरी होती है. यह फेज हर व्यक्ति की लाइफ में आता है. अगर आपको लगता है कि आप पर शिक्षा संबंधी बहुत सारी जिम्मेदारियां आने वाली हैं तो आपको अपनी आय का 15 फीसद हिस्सा सेव करना ही चाहिए.

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अच्छी सेविंग के लिए ध्यान में रखें ये 5 जरूरी बातें

घर की पूरी जिम्मेदारी महिलाएं संभालती हैं. राशन से लिए हाउस मैनेजमेंट संबंधी सारी चीजें उनके हिस्से की होती हैं. महिलाएं पुरुषों से अच्छा घर संभाल सकती हैं इसका कारण उनके अंदर की बचत की भावना है. महिलाएं पुरुषों से बेहतर बचत करती हैं. उनकी इस आदत में चार चांद लगाने के लिए हम बताने वाले हैं कुछ जरूरी टिप्स. ये टिप्स महिलाओं को बेहतर बचत करने में सहायक होंगी.

1. हर महीने का खर्च की करें तुलना

आपकी बेहतर बचत के लिए जरूरी है कि आप कहां और कितना खर्च कर रही हैं इसका ब्योरा रखें. हर महीने के खर्च की तुलना करें. यह बचत का पहला चरण है. अगक किसी महीने में ज्यादा खर्च हो रहा है तो उसकी वजह जानने की कोशिश करें.

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2. ट्रांजेक्शन के स्‍टेटमेंट चेक करें

जोभी आपके खर्चे हैं उनको कहीं नोट कर के रखें. जो भी ट्रांजेक्शन बैंक से हैं उनका स्‍टेटमेंट चेक करें और पिछले कुछ महीने के खर्च पर ध्‍यान दें. इसके लिए आपके बैंक का मोबाइल ऐप की सहायता ले सकती हैं. इसके अलावा आप हर सप्‍ताह के खर्च की एक डायरी बना सकती हैं.

3. बजट बनाने की शुरूआत करें

जो भी आपके खर्चे होते हैं उनका बजट बना लें, अपने खर्च का सही ब्योरा रखने के लिए ये जरूरी है.  इसे आप साप्ताहिक, मासिक या हर तिमाही रख सकती हैं. सबसे जरूरी बात यह कि आपको यह ध्‍यान रहे कि आप इस बजट का पालन कर रही हैं या नहीं.

4. घर में करें सेविंग्स

बैंक की सेविंगस अपनी जगह हैं, कोशिश करें की आप अपने घर में भी एक मिनी बैंक बना कर रखें जिसमें हर महीने छोटी-छोटी राशि बचत के रुप में रखें. बजट बनाते समय आपको सेविंग के आप्‍शन पर भी ध्‍यान देना चाहिए. आपकी छोटी-छोटी बचत किसी दिन बड़े निवेश में काम आएगी.

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5. ना करें बिना सोचे समझे खर्च

अक्सर शौपिंग पर आप जरूरत से ज्यादा चीजें खरीद लेती हैं. कभी दोस्तों के साथ बाहर निकलने पर गैर जरूरी खर्च भी कर आती हैं. इन आदतों को छोड़े.

महिलाएं कैसे लें पर्सनल लोन

पर्सनल लोन वह कर्ज होता है, जिस के लिए कुछ गिरवी नहीं रखना पड़ता. इसी वजह से सुरक्षित ऋण के मुकाबले इस की ब्याज दर कुछ अधिक होती है. कर्ज लेने वाले व्यक्ति का क्रैडिट स्कोर, कर्ज चुकाने का इतिहास, आय और उस की नौकरी जैसे पैरामीटरों के आधार पर तय किया जाता है कि उसे कर्ज दिया जाए या नहीं.

पर्सनल लोन की पात्रता से जुड़ी कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को हमेशा ध्यान में रखें:

अच्छा क्रैडिट स्कोर

पर्सनल लोन हेतु अच्छा क्रैडिट स्कोर बुनियादी जरूरत है. स्त्री हो या पुरुष, कर्ज देने से पहले कर्जदाता सब से पहले क्रैडिट स्कोर ही देखते हैं. दूसरी ओर फाइनैंशियल टैक्नोलौजी (फिनटैक) युक्त स्टार्टअप कर्जदाता कंपनियां इस शर्त में थोड़ी सी राहत देते हुए कम क्रैडिट स्कोर वालों को भी ऋण दे देती हैं. फिनटैक ऋणदाता सिर्फ क्रैडिट स्कोर नहीं देखते, बल्कि अन्य पैरामीटरों का भी इस्तेमाल करते हैं और इस प्रकार आवेदकों को सबप्राइम क्रैडिट स्कोर के साथ पर्सनल लोन हेतु आवेदन करने की सुविधा देते हैं.

कर्जअदायगी का इतिहास

दूसरी अहम बात ध्यान में रखने की यह है कि जब आप पर्सनल लोन के लिए जाएं तो पुराने कर्ज की अदायगी का अच्छा इतिहास हो. किसी भी व्यक्ति की रिपेमैंट हिस्ट्री बेहद महत्त्वपूर्ण पैरामीटर है और आवेदक के क्रैडिट स्कोर में इसे सब से अधिक महत्त्व मिलता है. आवेदक की रिपेमैंट हिस्ट्री से कर्जदाता को उस का क्रैडिट बिहेवियर समझने में मदद मिलती है और साथ ही उस की कर्जअदायगी क्षमता का भी पता लगता है. जो महिलाएं पर्सनल लोन के लिए आवेदन कर रही हैं उन के पुराने कर्ज चुकाने के इतिहास को सर्वाधिक अहमियत मिलेगी.

कंपनी का स्टेटस

ऋण आवेदन की स्वीकृति या मनाही में कंपनी का स्टेटस बहुत महत्त्व रखता है. निजी बैंक केवल उन्हीं लोगों को पर्सनल लोन देते हैं जो ‘ए’ श्रेणी या कभीकभार ‘बी’ श्रेणी की कंपनी में नौकरी करते हैं. ‘सी’ और ‘डी’ श्रेणी की कंपनी में नौकरी करने वालों को अकसर अस्वीकृत कर दिया जाता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि निजी बैंक क्रैडिट हैल्थ की जांच व कंपनियों की रिस्क प्रोफाइलिंग करते हैं और उन्हें उसी हिसाब से श्रेणियों में रखते हैं. निजी बैंक इस जानकारी का इस्तेमाल यह तय करने के लिए करते हैं कि आवेदक की कर्ज चुकाने की क्षमता क्या है. ‘सी’ और ‘डी’ श्रेणी में आने वाली कंपनियां नईनई स्टार्टअप कंपनियां होती हैं या वे होती हैं जिन के पास पर्याप्त नकद प्रवाह नहीं होता, इसलिए ऐसी कंपनियों में काम कर रहे लोगों की कर्ज चुका पाने की संभावना कम होती है.

फिनटैक कर्जदाता और पी2पी लैंडिंग प्लेटफौर्म के मामले में हालांकि कंपनी के स्टेटस की ज्यादा फिक्र नहीं की जाती और उस के बाद ही ऋण देते हैं. इसलिए अगर आप महिला हैं और आप को स्टेटस कंपनी में काम न करने की वजह से लोन नहीं मिला तो आप को फिनटैक कर्जदाता या पी2पी लैंडिंग प्लेटफौर्म के पास जाना चाहिए.

नौकरी में स्थिरता

वर्तमान संगठन में आप कितने सालों से नौकरी कर रहे हैं- यह पहलू भी पैरामीटर में शामिल होता है और लोन की स्वीकृति को प्रभावित करता है. कर्जदाता यह देखते हैं कि किसी आवेदक का नौकरी करने का रिकौर्ड कितना स्थिर है और उसी हिसाब से वे जोखिम का मूल्यांकन करते हैं. इसलिए कई वर्षों की नौकरी का अनुभव यह जताता है कि आवेदक कम जोखिम वाला है और इसीलिए कर्ज स्वीकृति की संभावना अपनेआप बढ़ जाती है.

कर्ज की रकम का इस्तेमाल

पर्सनल लोन में कई सारी ऐप्लिकेशंस शामिल होती हैं. एक महिला होने के नाते आप कर्ज की रकम का इस्तेमाल परिवार के साथ बढि़या छुट्टियां मनाने, शानदार शादी, घर को नया रूप देने या कैरियर में प्रगति हेतु अतिरिक्त शिक्षा प्राप्त करने के लिए कर सकती है.

एकसाथ बहुत सारे कर्जदाताओं के पास न जाएं

लोगों को यह बात मालूम नहीं है, लेकिन यह पहलू आप के क्रैडिट स्कोर पर गलत असर डाल सकता है, क्योंकि इस से कर्जदाताओं के पास यह छवि बनेगी कि आवेदक कर्ज का लालची है, जिस का परिणाम आवेदन की अस्वीकृति के रूप में हो सकता है. कर्ज की अस्वीकृति का भी क्रैडिट स्कोर पर गलत असर पड़ता है और एक से अधिक बार अस्वीकृति के बाद कर्ज स्वीकार होना अकसर कठिन हो जाता है.

सह आवेदक का विकल्प: यह बहुत बढि़या कदम हो सकता है. विशेषकर महिलाओं के लिए. पर्सनल लोन लेते वक्त सह आवेदक का विकल्प चुनना कोई नई बात नहीं है और सभी किस्म के कर्जदाता चाहे निजी बैंक हों या फिनटैक, लैंडर, सभी इसे अनुमति दे रहे हैं. सह आवेदक के होने से कर्ज के पुन: भुगतान का बोझ बहुत कम हो जाता है, साथ ही पारदर्शिता को भी बढ़ावा मिलता है. सह आवेदक को गारंटर चुनने के बारे में एक और अच्छी बात यह है कि प्रभावशाली क्रैडिट स्कोर के बिना भी कर्ज मिल जाता है, बशर्ते सह आवेदक का क्रैडिट स्कोर स्वीकार करने योग्य हो. खास तौर पर कामकाजी, विवाहित महिलाओं के लिए सह आवेदक का विकल्प चुनना बहुत ही लाभकारी हो सकता है. यद्यपि आवेदक के कर्ज चुकाने में नाकाम रहने पर सह आवेदक कर्ज अदायगी के लिए जिम्मेदार होगा.

जितना चाहिए उस से ज्यादा न लें

अकसर पर्सनल लोन लेने वाले इस चक्कर में फंस जाते हैं. क्रैडिट स्कोर, आय व कंपनी का स्टेटस जैसे पैरामीटरों के आधार पर कर्जदाता आवेदन की गई राशि से बहुत ज्यादा कर्ज स्वीकृत कर देते हैं. बड़े काम की बात यह है कि जितना आप को चाहिए उतना ही कर्ज लें.

वेतनभोगी होने के नाते

आजकल कर्जदाता वेतनभोगी और स्वरोजगार दोनों किस्म के लोगों को पर्सनल लोन की पेशकश कर रहे हैं. लेकिन फिनटैक कंपनियां और पी2पी लैंडिंग प्लेटफौर्म अधिकतर वेतनभोगी लोगों को ही कर्ज की पेशकश करते हैं. इसीलिए यदि आप वेतनभोगी महिला हैं और कम से कम कागजी कार्यवाही करते हुए तुरंत अपने बैंक खाते में लोन पाना चाहती हैं तो यह आप के लिए ज्यादा सरल व सुविधाजनक है.

-आदित्य कुमार

संस्थापक व सीईओ, क्यूबेरा

फायदा चाहिए तो 31 मार्च से पहले जुटाएं ये 7 डाक्यूमेंट्स

चालू वित्तीय वर्ष 2019, 31 मार्च को खत्म होने वाला है. ऐसे में विभिन्न स्रोतों से हुई आय की जानकारी जुटा लें. इसके लिए जरूरी है कि आप कुछ जरूरी कागजातों को इक्कठ्ठा कर लें. ये डाक्यूमेंट्स आपके आय की वैद्यता के लिए जरूरी हैं. इनमें इंटरेस्ट सर्टिफिकेट, ट्रांजेक्शन सर्टिफिकेट, कैपिटल गेन स्टेटमेंट, टीडीएस सर्टिफिकेट जैसे अन्य कागजात शामिल हैं. इन डाक्यूमेंट्स में कैपिटल गेन और इंटरेस्ट या डिविडेंट भी शामिल हैं. ये इस लिए भी जरूरी है ताकि रिटर्न फाइलिंग करते वक्त पकी कर देयता का निर्धारण आसानी से हो सके.

तो आइए जाने कि कौन कौन से दस्तावेजों को जुटाना आपके लिए जरूरी है.

सिक्योरिटी स्टेटमेंट

म्यूचुअल फंड निवेशक अपने निवेश के लिए एक कंसौलिडेटेड होल्डिंग स्टेटमेंट प्राप्त करते हैं. शेयर्स की सिक्योरिटी और अन्य डिमेट सिक्योरिटीज के लिए भी निवेशक एनुअल होल्डिंग स्टेटमेंट प्राप्त करते हैं.

टीडीएस सर्टिफिकेट

ब्याज के 10,000 रुपये से अधिक होने की सूरत में बैंक ब्याज आय पर टीडीएस की कटौती करता है. टीडीएस कटौती को बैंक की ओर से प्राप्त किया जा सकता है.

कैपिटल स्टेटमेंट

ब्रोकर और म्युचुअल फंड, यूजर के आग्रह पर कैपिटल गेन स्टेटमेंट उपलब्ध करवाते हैं. इससे पूरे वित्तीय पर्ष में कुल फायदा या नुकसान की जानकारी मिलती है.

होम लोन इंटरेस्ट

होम लोन लेने पर बैंक एक सर्टिफिकेट उपलब्ध करवाता है. इस सर्टिफिकेट में एक वित्तीय वर्ष के दौरान हुए कुल रीपेमेंट की जानकारी होती है. इसमें प्रिंसिपल औप मिले ब्याज का ब्रेकअप होता है. इनकम टैक्स डिडक्सन को क्लेम करने के लिए इसका इस्तेमाल होता है.

बैंक स्टेटमेंट

निवेशक वित्तीय वर्ष के आखिर में अपना बैंक स्टेटमेंट जुटा लें जिसमें उनकी प्राप्त हुई आय और निवेश की पूरी जानकारी शामिल हो. बैंक जा कर लेने के अलावा इसे औनलाइन माध्यम से भी पाया जा सकता है.

इंटरेस्ट सर्टिफिकेट

निवेशक की सभी जमाओं पर एक वित्त वर्ष के दौरान ब्याज भुगतान के संबंध में बैंक एक सर्टिफिकेट औफ इंटरेस्ट भी उपलब्ध करवाता है. बचत खातों के लिए बैंक ये सर्टिफिकेट देता है. अगर किसी कारण से ये नहीं मिल पाता है तो इसे बैंक स्टेटमेंट से प्राप्त किया जा सकता है.

ट्रांजेक्शन स्टेटमेंट

अगर किसी सूरतच में निवेशक सिक्योरिटी की बिक्री करता है या उसकी ट्रेडिंग करता है तो ऐसे में ट्रांजेक्शन स्टेटमेंट और अकाउंट स्टेटमेंट को प्राप्त करना जरूरी है. ये एक वित्तीय वर्ष के लिए होता है.

अभी अभी लगी है नौकरी तो इन बातों को रखे ध्यान में

अपने कामकाजी वर्षों में उतर रहे अधिकतर युवा इस बात से अनजान होते हैं कि वित्तीय नियोजन (फाइनेंशियल प्लेनिंग) की शुरुआत कब की जाए. कुछ तो आर्थिक नियोजन के बारे में काफी देर तक सोचते भी नहीं, जबकि कुछ इसे बेहद कठिन काम मान कर इससे बचते हैं.

निजी वित्त प्रबंधन (फाइनेंस मेनेजमेंट) में किसी का गणित में अच्छा होना जरूरी नहीं है. आर्थिक नियोजन की सही राह पर चलने के लिए आपको थोड़े से अध्ययन और इस दिशा में काम करने के लिए तैयार होने की ही जरूरत है. कुछ मूलभूत बातों का पालन कर इसे आसानी से किया जा सकता है.

खर्च पर नियंत्रण रखना जरूरी

अच्छे वित्त के प्रबंधन के लिए आप को अपनी जरूरतों और इच्छाओं में अंतर समझना आवश्यक है. कोई भी सामान खरीदने से पहले अपनी वित्तीय स्थिति पर उसके परिणामों का आकलन करें और इस पर भी गौर करें कि आपको उसकी कितनी जरूरत है.

यदि उस सामान को खरीदने की अत्यंत आवश्यकता है और आपके वित्त पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ेगा तभी अपने फैसले पर आगे बढ़ें. इसका यह मतलब कतई नहीं कि आप जिंदगी का आनंद उठाना छोड़ दें.

दोस्तों के साथ घूमना-फिरना और मनोरंजन किसी भी युवा के लिए प्रमुख जरूरत है, क्योंकि उन्होंने कई सालों तक पढ़ाई में कड़ी मेहनत करने के बाद नौकरी करना आरंभ किया है. लेकिन जिन चीजों की आपको जरूरत नहीं है, उन्हें खरीदने पर लगाम लगाना बहुत जरूरी है और इसके लिए आप में आत्म-नियंत्रण की भावना मजबूत होनी चाहिए.

बजट बनाकर तय करें दायरा

एक बार वित्तीय लक्ष्य तय करने के बाद, बजट बनाएं और प्रयत्न पूर्वक उसका ज्यादा से ज्यादा पालन करें. एक महीने बाद, आपको अहसास होगा कि बजट बनाना और खर्चों पर नजर रखना कितना मददगार होता है.इससे आपको पता चलता है कि आपको कितना पैसा खर्च करना चाहिए और कितनी बचत करने की आवश्यकता है. इससे आपके वित्तीय मसलों के बारे में भी स्पष्ट जानकारी मिलती है और आप अनावश्यक खर्चों अथवा उधारी से बचकर अपने पास उपलब्ध साधनों में जीवन-यापन कर सकते हैं.

सुनियोजित बजट द्वारा चिंता के मामलों पर जोर दिया जाता है और यह व्यर्थ खर्चों से दूर रहने में मदद करता है. आपको यह समझना जरूरी है कि समझदारी से किया गया खर्च एक प्रकार की बचत है.

इमरजेंसी के लिए भी बचत करें

हर दिन एक जैसा नहीं होता. जरूरी नहीं कि आज आपकी नौकरी सुरक्षित है, तो कल भी ऐसा ही हो. आज के परिदृश्य में व्यक्ति को कभी भी मंदी की मार झेलनी पड़ सकती है और कारोबारी रणनीति में बदलाव होने अथवा उच्च शिक्षा का फैसला करने के कारण नौकरी से भी अलग होना पड़ सकता है.

परेशानी के वक्त के लिए थोड़ा पैसा बचाना समझदारी भरा कदम होता है. नियमित मासिक राशि में से थोड़ा सा हिस्सा अलग निकालें, जिसे मासिक खर्च से अलग रखना चाहिए. स्वस्थ इमरजेंसी फंड आपको बेहद जरूरी आराम एवं सहजता प्रदान करता है.

अपने लक्ष्यों पर टिके रहें

नौकरी की शुरुआत करने से पूर्व जरूरी है कि आप अपने लक्ष्यों को निर्धारित कर उसी दिशा में काम करें. लक्ष्यों की समय सीमा अलग-अलग होती है. कुछ लक्ष्य छोटी अवधि के होते हैं, तो कुछ मध्य अवधि के. वहीं कुछ लक्ष्य दीर्घकालिक होते हैं, लेकिन हमेशा अपने लक्ष्यों की दिशा में ही काम करें. लक्ष्य तय करना और उसी दिशा में आगे बढ़ने से आप अपनी पूंजी और समय का सही चीजों में निवेश करने में सक्षम होंगे.

अनफेबरेबल सिचुएशन के लिए भी रहें तैयार

जीवन में अपने आप को बुरे वक्त के लिए तैयार रखना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि यह किसी पर भी आ सकता है. स्वास्थ्य और जीवन बीमा कवर लेना बुरे वक्त में काफी मददगार साबित होता है.

अप्रत्याशित स्थितियों में आपको वित्तीय स्थिरता उपलब्ध कराकर आपकी एवं परिवार की मदद करता है. यह अप्रत्याशित स्थिति अस्पताल में भर्ती होना, चोट लगना अथवा मौत होना हो सकती है, जो आपकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल सकती है.

जीवन बीमा इन अप्रत्याशित घटनाओं के प्रति सुरक्षा प्रदान करता है. जीवन बीमा लेने से पहले खुद का पर्याप्त बीमा कराने पर अवश्य ध्यान दें, ताकि भविष्य में आप पर निर्भर लोगों को सहयोग मिल सके.

इन 2 योजनाओं से अपना बिजनेस शुरू करें महिलाएं

देश की महिलाएं अब चौका बेलन से आगे निकल चुकी हैं. इंद्रा नूई, चंदा कोचर जैसी पौध पैदा करने वाले इस धरती पर अब उंची उड़ान भरने की ख्वाहिश के साथ औरते खुद को तैयार करती हैं. महिलाओं के लिए अब कोई काम मुश्किल नहीं रहा. नौकरी से लिए बड़ी-बड़ी कंपनियों का नेतृत्व कर रही हैं महिलाएं. महिलाओं को और ज्यादा सशक्त करने के लिए सरकार भी काफी प्रयासरत है. यही कारण है कि उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं लाती रहती है. इस खबर में हम आपको ऐसी दो योजनाओं के बारे में बताएंगे जिनकी मदद से महिलाएं अपने सपनों को साकार कर सकती हैं.

ट्रेड सब्सिडी स्कीम

ट्रेड रिलेटेड एंटरप्रेनरशिप असिस्टेंस एंड डेवलपमेंट (ट्रेडर) स्कीम मिनिस्ट्री औफ माइक्रो, स्मौल एंड मीडियम एंटरप्राइजेस की ओर से कम पढ़ी-लिखी, अशिक्षित, असंगठित और जरूरतमंद महिला उद्यमियों के लिए है.

इस लोन के तहत जरूरतमंदों को लोन मुहैया किया जाता है.

छोटे मोटे रोजगार के लिए महिलाओं को 30 फीसदी की आर्थिक सहायता मिलती है.

ये सुविधा उन महिलाओं के लिए है, जिन्हें बैंक से लोन की सुविधा नहीं मिल पा रही है.

इस योजना के तहत आर्थिक मदद पाने के लिए आपको किसी एनजीओ की मदद लेनी होगी. सीधे तौर पर स़िर्फ किसी महिला को यह सुविधा नहीं दी जाती यानी अगर आप किसी ग़ैरसरकारी संगठन से जुड़ी हैं, तो आपको इस योजना का फ़ायदा मिलेगा.

प्रधानमंत्री मुद्रा लोन योजना

देश के लोगों को व्यवसाय के लिए प्रेरित करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत की गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य था कि ज्यादा से ज्यादा लोग नौकरी की भीड़ से दूर हो कर कुछ खुद का काम शुरू करें. महिलाएं इस योजना का लाभ उठा कर अपना खुद का काम शुरू कर सकती हैं.

कैसे लें इस योजना का लाभ

  • इस योजना से पैसा उठा कर आप ब्यूटी पार्लर, टेलरिंग और ट्यूशन जैसे उद्यम की शुरुआत कर सकती हैं.
  • इसके अलावा कई महिलाएं मिल कर साथ में कुछ काम शुरू कर सकती हैं. इस योजना के तहत उन्हें लोन और फंड की सुविधाएं मिल सकेंगी.
  • इस योजना के तहत महिलाओं को 50 हजार से 10 लाख तक का लोन मुहैया किया जा सकता है.
  • इसका लाभ किसी भी सहकारी बैंक से लिया जा सकता है.
  • योजना के तहत लोन जारी होने पर आपको मुद्रा कार्ड मुहैया किया जाएगा. इसका उपयोग आप क्रेडिट कार्ड की तरह कर सकती हैं.
  • इस योजना को तीन हिस्सों में बांटा गया है, जिसके तहत आपको 50 हजार से लिए 10 लाख तक का लोन मिल सकेगा.

निवेश के लिए जरूरी हैं ये बातें

समझदारी से निवेश करना आसान काम नहीं है. इसके लिए धैर्य, निवेश में भरोसा और अपनी गलती मानने जैसी आदतें डालनी पड़ती हैं. वौरेन बफेट जैसी शख्सियत ने भी बर्कशायर स्टौक्स में की गई गलती को माना था. निवेश के दौरान कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए. इस खबर में हम आपको ऐसी ही चार बातों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें आप निवेश के बिल्डिंग ब्लौक्स भी कह सकती हैं.

सही लक्ष्य रखें

अपना पैसा किसी भी तरह के निवेश में डालने से पहले अपने लक्ष्य को परिभाषित कर लें. अपने लक्ष्य को तय करने के लिए कई तरीके हो सकते हैं. निवेश से पहले खुद से ये सवाल जरूर करें.

  • आपकी जोखिम क्षमता कितनी है?
  • आपको अपने पोर्टफोलियो पर कितना समय बिताना होगा?
  • आपके शौर्ट टर्म और लौन्ग टर्म योजनाएं क्या हैं?
  • आपके शौर्ट टर्म और लौन्ग टर्म योजनाएं क्या हैं?
  • क्या आपका निवेश उदेश्य अपनी पूंजी को जमा करना और लंबी अवधि में महंगाई को मात देने वाले रिटर्न रेट के साथ बढ़ने वाला होना चाहिए?

इन लक्ष्यों को निर्धारित करने से आप एसेट एलोकेशन तय कर सकती हैं. साथ ही इसके आप अपने पोर्टफोलियो की खरीद व बिक्री की रणनीति भी बना सकती हैं. लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि आप अपना लक्ष्य समय के अनुसार बदल भी सकती हैं.

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घबराएं नहीं

आमतौर पर निवेशक छोटी अवधि में हो रहे नुकसान को देखकर घबरा जाते हैं. ऐसी स्थिति में अपने स्वाभव पर नियंत्रण रखना आना चाहिए. कई निवेशक बाहरी संकेत जैसे कि न्यूजपेपर, टीवी चैनल्स पर चलाई गईं खबरों और वर्ड औफ माउथ के आधार पर अपनी निवेश रणनीति बदल लेते हैं. बाजार में हलचल दो कारणों से होती है पहला डर और दूसरा लालच. आपको अपनी निवेश रणनीति पर भरोसा रखना चाहिए और शांत रहना चाहिए. इस चीज को स्वीकार करें कि बाजार की प्रव़ृत्ति अस्थिर होती है. ऐसे में इस अस्थिरता को लाभ उठाना सीखें.

अच्छा फाइनेंशियल एडवाइजर हायर करें

ऐसा न सोचिए कि आप सब कुछ कर सकते हैं, अपनी मेहनत की कमाई को अच्छे से मैनेज करने और निवेश पर बेहतर रिटर्न पाने के लिए वित्तीय सलाहाकार की मदद जरूर लें. ये अपनी फील्ड में ट्रेंड होते हैं. साथ इनके पास वर्षों का अनुभव होता है. ये अपने क्षेत्र में फुल टाइम काम करते हैं. यह बाजार पर नजर बनाएं रखे होते हैं. इन्हें किसी भी आम निवेशक की तुलना में निवेश और उसके मैनेजमेंट के बारे में ज्यादा पता होता है.

समझदारी से करें एसेट एलोकेशन

अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करें. बाजार में कई निवेश विकल्प मौजूद हैं. लेकिन हर विकल्प का अपना रिस्क फैक्टर है. अधिकांश लोग निवेश में कई गलतियां कर देते हैं. एसेट एलोकेशन एक ऐसी स्ट्रैटेजी है जिसके जरिए आप न सिर्फ सही एसेट क्लास का चुनाव करते हैं बल्कि यह आपके निवेश को भी उचित तरह से मैनेज करता है.

 

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